लंबी कविता/नये कवि
खंड-एक
हम दंतकथाओं के बाहर के पति पत्नी थे जो गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को लेकर दंतकथाओं के पहाड़ जाते दंतकथाओं की वे सबसे लंबी रातें थीं जहां बादल और पहाड़ एक हो जाते,
बादलों के ऐन सीध में मेरी पत्नी रस्सियाँ बाँधती, रस्सियाँ जिन्हें हम सोनपरी की दूकान से खरीदते हम पीतली, मोरपंखी, तितहरी, सुरमई रंगों की रस्सियाँ बांधते और गाते लोग हमें सतरंगी आवाज में सुनकर हैरान हो जाते
खंड- दो
रूसी पत्नी और मेहरांव की हिचकी
वे दंतकथाओं के दिन थे आसपास के बच्चे 'सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी' गाते थे गाते थे और दूर आसमान में टोपियाँ उछालते थे गाना और उछलना साथ साथ था वह रूसी पत्नी थी जिसका ब्याह मेहरांव से हुआ था और यह दंतकथा के बाहर की कथा थी जिसके साथ एक दंतकथा जैसी कहानी लोगों ने गढ़ ली थी कि मेहरांव की हिचकी सोते, बैठते, उठते, खाते, बोलते सारी क्रियाओं में शामिल हो गयी तो बैध जी डर गये उन्होंने ऐसी दवा लिख दी जो, रूस में फूलों से बनती थी मेहरांव हिचकी से परेशान उसने रूसी लड़की से व्याह कर लिया उस दिन के बाद किसी ने उसको हिचकाते नहीं सुना था और सबने मान लिया कि बैद्द ने जो जड़ी बूटी लिखी उसका कोई ना कोई रिश्ता इस दुल्हन से जरूर होगा और वह रूस की रही होगी
मेहरांव ने कभी इस बात की पुष्टि नहीं की पुष्टि न होने से तथ्य अप्रमाणित था और पत्नी रूसी
हमारे बच्चों ने भी कोई दूसरी कहानी नहीं गढ़ी थी.
खंड-तीन
विस्मय और असमय के दिन
ये वो दिन थे जब हमारे जीवन से, कई सारी भाव भंगिमाएं गायब थीं
हम नहीं जानते थे कि, किसी के एकाएक आ जाने पर, या अचानक गायब हो जाने पर, कौनसा मुखाभिनय किया जाता है
ये वे ही दिन थे जब हमारे बच्चे विस्मित होना नहीं जानते थे, कोई अचरज वाली बात आती तो वे नहीं जानते थे, कि क्या करना चाहिए और इस तरह वे अचंभित हुये बिना रह जाते थे
खंड-चार
खोये हुए बच्चों के दृश्य
हमने पहाड़ छोड़ दिया था और हमारे बच्चे वापिस नहीं लौटे थे
कई अलग-अलग खोजों के बाद जो तथ्य सामने आये वे ये थे- किसी ने बताया कि उसने हमारे खोये हुए बच्चों को, एक पुलिया पर झूलते हुए देखा,
किसी ने बताया वे पिघलते ग्लेशियर पोस्टर के साथ, किसी फिल्म के लिए विज्ञापन कर रहे थे, और उन पर उम्र का कोई असर नहीं पड़ा था
उनके बारे में यह सूचना अंतिम नहीं थी सूचनाएं हमें लगातार मिल रही थीं
किसी ने उन्हें हरे पत्ते बेचते हुए देखा किसी ने पहाड़ पर रस्सियाँ बांधते हुये कई बार लोगों ने उन्हें हमारे घर की छत पर टहलते हुए पाया हालांकि अब लोग मानने लगे थे कि, हम किसी ऐसी दुनिया की बात करते हैं, जिसमें हम दोनों जादूगर हैं, जिन्होंने अपने जादू से अपने ही बच्चों को गायब कर दिया, अब उन्हें वापिस बुलाने का जादू हम भूल गये हैं, या आधा भूल गए हैं, जिस से वे आधे लोगों को दिख रहे हैं
उनका गायब होना हमारी लापरवाही था हमने उन्हें बहुत ऊपर से नीचे उतरना नहीं सीखाया हमने उन्हें स्मृतियों में लौटना नहीं सीखाया
कई बार जब हम पहाड़ पर होते, तो वे गेंद से खेलते-खेलते, उलझकर सोनपरी की कहानियों में गिर जाते
ऐसी ही किसी विचित्र यात्रा से लौटकर उन्होंने हमें बताया था, कि वहाँ एक बहुत बड़ी ईरानी चिडिय़ा थी, जो आदमी की तरह चलती थी, जिसके कंधों पर खरगोश बैठे थे, और इस तरह के अपने देखे किसी भी दृश्य से वे चौंके नहीं थे, उन्हें हैरान करने वाला वाक्य या तो अभी तक घटित नहीं हुआ था, या वे ऐसे किसी भी अभिनय से परे की किसी दुनिया में थे
खंड-पांच
उनका हमारे साथ न लौटना
हम वापसी के लिये अपना सारा सामान समेट रहे थे हमें याद आया कि शायद वे भूल गये हों कि पहाड़ पर किस के साथ आये हैं,
इस तरह से भूल जाने के बाद उन्हें याद करना नहीं आया हो फिर तेज आंधी से अमलतास, काकनूस, आबनूस, बुरांस, देवदार, अंगूर के पत्ते उन पर गिरते रहे होंगे और वे पूरी तरह से ढँक गये होंगे, क्योंकि उन्हें अपने ऊपर से चीजें हटानी अभी नहीं आती
इससे पहले कि उन पर अमलतास, ककनूस, आबनूस, बुरांस, देवदार या अंगूर के पत्ते गिरते हमें बापिस लौटना चाहिए था
वे हर सुन्दर चीज को चकित हुए बिना कपड़ों की तरह पहन लेना चाहते थे, जिस तरह उन्होंने अपने ऊपर से चीजों को हटाना नहीं सीखा है
उसी तरह उन्होंने अभी कुछ पकडऩा भी नहीं सीखा था इसलिए जब हम बहुत दिन तक उन्हें नहीं तलाश पाए मैंने अपनी पत्नी से रस्सियाँ खोल लेने को कहा, ताकि वे उनमें फंसकर गिर ना जाएँ,
गिर जाने के बाद उठना भी, उनकी सीखी हुयी किसी क्रिया में शामिल नहीं था उस पहली रात जब हम अपने बच्चों के साथ पहाड़ पर पहुंचे थे
पहाड़ पर वह पहली रात मेरी पत्नी एक सपने से डरी थी उसने देखा था कि उसी काले पहाड़ पर बकरियों का रेवड़ मय्यं-मय्यं करता हुआ जा रहा था पहाड़ आबाद हो गया था और हमारे बच्चे बकरियों के बच्चों के साथ रहने लगे थे,
उनकी शक्ल सूरत बकरियों के बच्चों से मिलने लगी थी, वे मय्यं-मय्यं करके बकरियों के बच्चों सरीखा बोलना सीख गये थे वे चाहते थे कि उन्हें अब स्कूल न भेजा जाये पत्नी सपने से एकदम डर गयी अचानक बिस्तर से उठ, बच्चों के मुँह से रजाई उठाकर देखने लगी उसे बकरियों बकरियों सरीखे लग रहे थे कह रही थी हमें अब पहाड़ छोड़ देना चाहिए जितनी जल्दी हो सके हमें लौट जाना चाहिए,
उस दिन मैंने उसे प्रकृति के खुलेपन से डरते हुए देखा, मैं चाहता था कि वह ऐसी किसी भी चीज से न डरे, जिससे हमें कोई खतरा नहीं था
हम इस निरंतर उदासी और एकांत से बाहर आना चाहते थे और अपने बच्चों को जितनी जल्दी हो सके उस पहाड़ से लौटा लाना चाहते थे इन पिछले छ: महीनों में हमने दिन रात उन्हें खोजा है
इस बीच हमारे जीवन में अनेक कथाएं जुड़ गयी थी मेरी पत्नी को एक अजीब सी बीमारी ने घेर लिया था वह रात दिन उठते बैठते सोते जागते हूँ...हूँ की हुंकार जैसी आवाज निकालती जैसे कथाओं के बाहर गीदड़ बोलते हैं रात में बाघ बोलते हैं जैसे हूँआं... हूँआं करते हुए जैसे पुकार में उनका मिलना शामिल होकर हुंकारता हो जैसे पुकार में ह...ह करता हुआ सब कुछ शामिल हो
कई लोगों ने इस बीच हमारे घर आना बंद कर दिया था आना बंद करने वालों ने मान लिया था कि हम किसी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं यहाँ मेरी पत्नी अपने अदृश्य बच्चों से बात करती है कभी कभी हम अपने किसी तिलस्म से, अपने बच्चों को वापिस बुला लेते हैं और उस पहाड़ की खूबसूरत जड़ी-बूटियों और उन पर गिरे अमलताल, काकनूस, आबनूस, बुरांस, देवदार, अंगूर के पत्तों के बारे में बाते करते हैं और हंसते हैं (हम हमारे द्वारा किये गये ऐसे किसी भी आयोजन को नहीं जानते थे लोगों ने यहां तक मान लिया था) कि मेहरांव की रूसी पत्नी, जादूगरनी है जिसने अपने पति की हिचकियों को, मेरी पत्नी की हूँ...हूँ हूकांर में बदल दिया था हमारे बच्चों को किसी राक्षस के हाथों बेच दिया था
हूँ हूँ की इस हुंकार के बीच दन्तकथाएं जारी थीं इस हूँ हूँ के बीच रूसी पत्नी कुछ अलग से स्वाद की सब्जियाँ बनाकर रख जातीं, जिन्हें ज्यादा भूख लगने पर हम खा लेते थे जैसे ज्यादा नींद आने पर... दंतकथाओं से बाहर निकल हम थोड़ा सुस्ता लेते थे हूँ हूँ के चलते पत्नी के गले की त्वचा ढीली होकर लटक गयी थी उसका चेहरा लगातार आकर्षण खोता जाता था
यह (खोये हुए बच्चों) के बारे में अंतिम सूचना थी कि किसी ने उन्हें स्कूल की प्रार्थना सभा में खड़े देखा
पहाड़ से वापिस लौटते या पहाड़ पर फिर से चढ़ते, उन्हें किसी ने नहीं देखा था हमने अपनी दिनचर्या इस उम्मीद के साथ शुरू कर दी कि एक दिन वे जरूरी वापिस लौट आयेंगे और इस बीच उन्होंने आश्चर्यचकित होना सीख लिया होगा हम उनसे पहाड़ पर मंडराती, चितकबरी चील की चोंच के बारे में पूछेंगे और वे अपनी स्मृतियों से हमें हैरान कर देंगे इसी बीच मेरी पत्नी की हुंकार टूटेगी
पुनश्च: (दंतकथाओं में गिरे बच्चे कभी नहीं लौटते) (वे जिन्हें क्रोध, विस्मय, आश्चर्य करना नहीं आता वे दंतकथाओं में गिर जाते हैं) (एक दिन हूँ हूँ की हुंकार ऊं...ऊँ की उंकार में बदल जाती है) (हिचकी एक इंतज़ार हैं जिसमें रूस की जड़ी... बूटियाँ शामिल होती हैं) |