मैं शोकसभा में

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    जनवरी 2013
श्रेणी कहानी
संस्करण जनवरी 2013
लेखक का नाम देवीप्रसाद मिश्र





देवीप्रसाद मिश्र की अन्य कहानियां

आदिवास

जंगलों  से घिरे झोपड़ में बेस्ता ने दिये की बाती तेज़ कर दी और थाली में मक्के की रोटी और लोटे में खट्टा मट्ठा रख दिया और कहा - यही है। मैंने कहा कि वेस्ता, इसी निर्विकल्पता के लिये यहां आया था।

रोटी

मैंने अजमल से कहा कि मेरे पास दो रोटियां हैं तुम एक ले लो तो उसने कहा कि आप क्या खाएंगे तो मैंने कहा कि एक।

अंतर्वस्तु

मेरे पास इस महीने का किराया नहीं है। इसका मायने यह हुआ कि मेरे पास अगले महीने का किराया भी नहीं है। और उसके बाद के महीने का भी। मेरे पास पिछले महीने का किराया भी नहीं था। मेरे पास इस महीने राजनीति है लेकिन किराया नहीं है। मेरे पास पिछले महीने राजनीति थी लेकिन किराया नहीं था। मेरे पास पिछले के पिछले महीने किराया नहीं था जबकि राजनीति थी। बहुत राजनीति हो तो किराया होने से रह भी जाया करता है। मकान भी। तब अरण्य बचता है। और लिखने के लिए आरण्यक।

जल्दी

मेट्रो रेल में फोन पर बहुत बहुत धीमी आवा•ा को सुनते हुए लगा कि एक सेक्स वर्कर को एक बजे एक होटल में पहुंचने की जल्दी थी। एक और आदमी जल्दी पहुंचने के लिये बेचैन था - देर से पहुंचने पर उसकी पूरे दिन की पूरी तनख्वाह कटने वाली थी। मैंने सोचा कि अगर किसी ने ट्रेन से आपाधापी में बाहर की ओर निकलने हुए मुझसे पूछ ही लिया तो मुझे कहना ही पड़ेगा कि मुझे दुनिया बदलने की जल्दी है। और यह बात मुझे अगले स्टेशन की ट्रेन पकडऩे की जल्दी है जैसी नसर्गिक बात से आसपास की बात लगेगी।

धुआं

आदमी ने सारे पत्ते बटोरकर बोझ बनाकर सिर पर रख लिया। वह चल पड़ा तो पेड़ ने कहा कि इन पत्तों का तुम करते क्या हो। आदमी ने कहा हम बीड़ी बनाते हैं। पेड़ ने कहा यार, पिलायी तो कभी नहीं। आदमी बहुत शरमाया। उसने कहा कि अगली बार आऊंगा तो बीड़ी का पूरा बंडल लेकर आऊंगा। पेड़ ने कहा ठीक है। पेड़ ने यह भी कहा कि गृहमंत्री पीचि सोचेगा कि ये धुआं कहां से उठता है।

सुबह

सुबह है और चिडिय़ों की आवाज़ें सुनायी दे रही हैं। खिड़की से बाहर जाती मेरे चाय बनाने की आवाज़ें - केतलियों, चम्मचों, कपों की आवाज़ें उन्हें सुनायी दे रही होंगी। हम एक दूसरे की आवाज़ें सुन रहे हैं।

एडिटिंग

अपने जीवन से मुझे बहुत सारे दृश्य एडिट करने हैं। मैंने अपने फिल्म एडिटर से कहा कि मेरे जीवन को एडिट कर दो - कई दृश्य डिलीट कर दो। उसने कहा ठीक है। दोपहर के बाद बैठ जाएँगे आपकी फिल्म देखने। जो कहोगे हटा देंगे। मैंने कहा कि जीवन की फिल्म को रिवाइंड करके देखना भी तो दुस्सह है।

प्रसाद

मैंने सोचा कि मैं प्रसाद की तरह काम कहाँ कर पाया। वे 48 में नहीं रहे थे जबकि मैं चार साल बड़ा हो चला हूँ। मैं तनाव में पूरे दिन घूमता रहा। फिर मैं बाहर निकल आया। शाम के बाद धुंधलका शुरु हो गया था। मैं पास के पार्क में घुस गया जहां एक बेंच पर प्रसाद बैठे थे। नमस्कार के बाद उन्होंने कहा कि आप देवी प्रसाद हैं। मैंने कहा कि आप जय शंकर प्रसाद है। मैंने उन्हें उनका नाम और उन्होंने मुझे मेरा नाम बताया। इसके बाद हम दोनों बहुत देर तक चुप बैठे रहे। उन्होंने कहा कि कामायनी लिखने की जो गलती मैंने की थी वह तुम मत करना। मैंने कहा कि आपकी अमरता का आधार वही है तो उन्होंने कहा कि मैं कहना दरअसल यह चाह रहा था कि अमरता निर्माण के लिए अगर कामायनी लिखनी पड़े तो यह काम मत करना। मैं पार्क से प्रकाशित होकर लौटा। जयशंकर प्रसाद ने मुझे मेरा देवी प्रसाद लौटाया। जय हो। जयशंकर प्रसाद की जय हो। बहुत कलात्मक और सूक्ष्म और अमूर्त जो अतीत और आभ्यंतर नहीं है उसकी भी।

जूते खरीदना

मैं अपने जूतों को खरीदने के लिए काफी चलता हूं। और किसी ऐसी दुकान में घुसता हूं जो किसी कोने में हो, जहां काफी गर्दो गुबार हो, जहां अंदर जाने पर पता लगे कि वहां दो एक लोग हैं भी। घुसने के बाद मैं बैठ जाता हूं और फिर पूछता हूं कि मेरे लिये जूते किस रेंज से शुरू होते हैं। दाम सुनकर मैं कहता हूं कि सैंडिल ले आओ। लेकिन उनके दाम सुनकर मैं इधर उधर देखता हूं और फिर कहता हूं कि चप्पल दिखा दो... लेकिन दिखाने के पहले यह भी बता दो कि वे किस रेंज में हैं। वह चप्पलों के दामों की रेंज बताता है तो मैं अपनी पहनी चप्पल देखकर कहता हूं कि ज़रा मेरी चप्पल देखकर बताओ कि क्या इसकी मरम्मत करायी जा सकती है। वह कहता है हाँ तो मैं कहता हूं कहां। वह पास के एक मोची का नाम बताता है जहां मैं जाने के लिए खड़ा होता हूं और उसे धन्यवाद देता हूं।वह मुस्कुरा कर कहता है कि फिर आइयेगा जूते खरीदने। मैं कहता हूं कि हां, मैं जूते खरीदने फिर आऊंगा।

जीवन

मेरे सामने जो लड़की बैठी थी वह दांतों की डाक्टर थी। वह धारवाड़ जा रही थी। किसी डेंटल कालेज में आगे पढऩे के लिए। उसने मुझसे कहा कि मैंने दांतों की परवाह नहीं की। मैंने उसे बताया कि मैंने दरअसल जीवन की परवाह नहीं की। मैंने उससे कहा कि क्या वह धारवाड़ घराने से परिचित है तो उसने कहा कि आप कहेंगे कि मैंने संगीत की परवाह नहीं की। मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि मैं उससे पूछना चाहता था कि देह की सुंदरता क्या आत्मिक गुण भी है और क्या इच्छाएं प्रेम में पर्यवसित होती ही हैं। मैंने उससे जाते हुए कहा कि दांतों का मैं नहीं कह सकता लेकिन मेरी सांसें एक प्रेमी की हैं। विदा होते हुए हंसने को उसने रोने में तब्दील नहीं होने दिया।

साथ

मेरा दरवाज़ा जब किसी ने खटखटाया तो मैंने दरवाज़ा खोला। मैंने उसे देखा
था - मैं उसे सीढिय़ों से उतरते हुए देखा करता था। उसने कहा कि आप तेज़ संगीत बजाते हैं। मैंने कहा कि आप क्या चाहते हैं। उसने कहा मैं नहीं जानता। वह आदमी अंदर आकर बैठ गया। उसने पूछा कि क्या यह आपका रोना है। मैंने कहा कि मैं कह नहीं सकता। उसने पूछा कि क्या यह आपका हँसना है तो मैंने कहा कि मैं नहीं जानता। मैंने सोचा वह कहेगा कि वह गाने की सीडी चाहता है। उसने बहुत धीमे से मेरे हाथ पर अपने हाथ रखते हुए कहा कि क्या आप मुझे अपने साथ बैठने देंगे।

मध्यवर्ग

मैं बार बार गिन रहा था कि सामान पूरा तो है। लगता था कि सामान छूटने वाला है। वह मेरे गिनते न गिनते गायब हो जायेगा। मैं पत्नी से कहता था कि गिन लो। बेटे से कहता था। मैं पूरी यात्रा में केवल सामान गिन रहा था। मैं लगभग चिल्लाते हुए यह कहकर कि सामान पूरा है कि नहीं का जवाब सुनकर आश्वस्त होने की कोशिश करता था।

प्रतिकार

दरवाज़े के नीचे से अखबार घर में दाखिल हुआ। अखबार में राहुल, मनमोहन, मायावती, मुलायम, वाद्रा, गडकरी, प्रकाश जायसवाल, मोंटेक सिंह, मुकेश अंबानी की तस्वीरें छपी थीं। मैं डरा। मुझे लगा कि घर में इनके दाखिल होने के बाद मेरी छोटी सी गिरिस्ती में जो बचा है वह भी नहीं बचेगा। सब लुट जायेगा। मैंने बहुत आहिस्ता से अखबार को गोल किया और रबर बैंड से लपेटा कि इन लोगों को बाहर फेंक दूं। यह सब मुझे आतताइयों के तख्तापलट की प्रारंभिक कार्रवाइयों जैसा लगा।

टहलना

माल में मैंने तमाम ऐसे लोगों को देखा जो कुछ खरीद नहीं रहे थे। टहल रहे थे। बस टहल रहे थे। वे हंसते थे। दाम पूछते थे और आगे बढ़ जाते थे। वे यहां से वहां टहल रहे थे। उनके इस फालतू टहलने ने मल्टीनेशनल के रुतबे को धूल कर दिया था और माल खरीदने बेचने की संस्कृति को निरर्थक बना दिया था।

बेकाबू

मैं पार्क में जाकर बैठ गया जबकि मैं वहां बैठने नहीं टहलने गया था। इस बात से मुझे लगा कि मैं खुद के बस में नहीं हूं। एक और बात से मुझे लगा कि मेरा काबू खुद पर नहीं है। और वह यह थी कि मैं ज़मीन की तरफ देख रहा था जबकि मैं आसमान की तरफ देखना चाहता था। जब मैंने टहलने का फैसला लिया तो मैं बेंच पर सोना चाह रहा था। जिस आदमी से मैंने पार्क में हाथ मिलाया उसके बारे में मेरी राय बिल्कुल अच्छी नहीं है। और जिस आदमी को देखते हुए, पास से गुजरते हुए मैं पार्क में घूमता रहता हूं उसे मोहल्ले के स्तर की क्रांति में भी मैं गोली मार देता।

शोक सभा

मैं शोक सभा में गया। लोग एक दूसरे से मिल रहे थे। लोगों ने मर जाने वाले के बारे में तरह-तरह की बातें कहनी शुरु कीं। वे उसके बारे में अच्छी बातें थीं - वे झूठ थीं लेकिन उन्हें सच की तरह कहा जा रहा था। वे सच लग भी रही थीं। तो यह किसी की अपर्याप्तता को ढँकने की कोशिश थी। शायद वक्ता अपनी भी अपर्याप्तताओं को छिपाने की कोशिश में लगे थे। यह किसी संपूर्णता को पाने की बियाबन कोशिश थी। किसी अनिर्वचनीय मनुष्यता को पाने का यत्न। उसके जाने के बाद जो जगह बची थी सारे शोक संतप्त उसी जगह में बैठे थे - एक दूसरे की शोक सभा में।

आम का पेड़

घर से निकलता हूं तो पत्नी बालकनी पर आकर हाथ हिलाया करती है। एक दिन मैंने महसूस किया कि पत्नी कम दिख रही हैं। ऐसा क्यों हुआ ऐसा मैंने सोचा तो लगा कि अलक्षित तरीके से उठता और धीरे धीरे बढ़ता आम का पेड़ मेरे और पत्नी के बीच आ गया है। अब मेरी पत्नी का हाथ नहीं दिखता - आम के कितने ही हरे पत्ते दिखते हैं जो मेरे जाने पर विदा का हाथ हिला रहे होते हैं। मेरी पत्नी का हाथ आम का पत्ता बनकर पत्तों के बीच हिलता रहता है। हाथ जैसे कितने ही पत्ते और पत्तों जैसे कितने ही हाथा मुझे विदा देते हैं।

कंबल

सस्ते से होटल का कंबल ओढ़कर यह लगा कि इसमें किसी और की सांस महक रही है। फिर यह लगा कि इसमें किसी और का पसीना महक रहा है। फिर कंबल में लिपटे किसी के बाल दिखे। मेरे साथ कोई सो रहा था। मुझे लगा कि खुद से ज्यादा मुझे उसकी नींद की परवाह थी।

पता

रेलयात्रा में लंबी बात चीत और हंसी मज़ाक के बाद जब उसने फोन नंबर मांगा तो मैंने कहा कि इस तरह से तो तुम्हें पूरी कायनात में खोजने का मेरा रोज़गार तो जाता रहेगा न। मत लो मोबाइल नंबर। न ही दो।

पते

मैंने मेट्रो में पता नहीं कितने लोगों को देखा। मेरे पास उनके पते नहीं थे। ईमेल नहीं थे। होते तो मैं उन्हें एसएमएस ज़रूर करता कि इस दिन दिखने के लिए, और मुझे देखने के लिये भी तहेदिल से शुक्रिया। मैं शांत होकर घर से निकला था। मुझे अशांत करने के लिए शुक्रिया।

मामा

एक आदमी को देखकर मुझे अपने मामा की दीनता की याद आयी। वैसा ही फँसा हुआ। वैसा ही घिरा। मरा। इतना ही बदहाल। मैंने रात में मामा से फोन पर बात की तो उन्होंने कहा - कुछ भी ठीक नहीं, छोटे। सब कुछ नष्ट है। लगता है एक रेलगाड़ी में भागा जा रहा हूं् लेकिन पहुँच कही नहीं रहा। मैंने कहा मामा तुम मुझे मेट्रो में दिखे थे। गलती हुई कि तुमको घर नहीं लाया। मामा ने बेजान हँसी हँसते हुए कहा कि सब कुछ हो गये थे, ईश्वर होना ही बाकी रह गया था - वह भी हो गये।

उपाय

वह स्टेशन पर अपने होने को किसी को फोन पर बता रही थी। मैं यहां हूँ - इस होने को बताने का मैं भी कोई उपाय सोचने लगा।

दृश्य

बस में एक दिन एक स्त्री मुझे अनुपम साध के साथ देखती हुई दिखी। मुझे भी बाद में ही एहसास हो पाया कि उस दिन वह उस तन्मयता से एक कविता के बनने के दृश्य को देख रही थी।

मास्क

वह आदमी बिस्तर पर एक किनारे बैठा था जबकि वह एक के बाद दूसरा कपड़ा उतारती जा रही थी। फिर उसने एक लंबी सी पट्टी उतारनी शुरु की जो उसने शरीर के दर्द को कम करने के लिए हाथों और पैरों में लपेट रखी थी। आदमी ने अधैर्य से कहा कि तुम्हें तो बहुत देर हो रही है। स्त्री ने कहा कि मैं अपने कपड़े एक एक करके उतार रही हूं, तुम एक एक करके अपने मास्क उतारो। स्त्री के कपड़ों का एक बड़ा गट्ठर फर्श पर खड़ा हो गया। स्त्री ने उन्हें देखकर कहा ये मेरी सुरक्षा थे। आदमी के कई मास्क कमरे में बिखर गये थे। आदमी ने अपने मास्कों के बीच टहलते हुए यह कहना चाहा कि ये मेरी लेकिन कहा नहीं।

पिता

पिता और उसका बेटा मैदान में फुटबॉल लेकर गये और खेलने गये। दोनों जब बहुत थक गये तो एक बेंच पर जाकर बैठ गये। बेटे ने पिता से कहा कि बेटों को पिता फुटबॉल की तरह ड्रिबिल करते पूरे मैदान में भगाते हैं। पिता के चेहरे का पसीना गाढ़ा हो गया। वह किसी और तरफ देखने लगा। उसने बेटे के पास आकर बेटे के सिर पर हाथ फेरा। बेटे ने कहा कि आप ज्यादा थक गये। पिता ने बहुत सारी सांस छोड़ी। पिता ने कहा कि यह। बेटे ने कहा कि यह। एक जेल के गार्ड की थकान है। बेटे ने कहा कि मेरी स्वतंत्रता मेरे विफल होने में है जबकि तुम्हें सफलता चाहिये। पिता ने बेटे को तिरछी निगाहों से देखा। पिता ने बहुत हिंसा के साथ फुटबॉल को उठाकर किक मारी - गेंद मैदान के बाहर पता नहीं कहां चली गयी। बेटे ने कहा कि पापा ड्रिबिल मत करो अगर मैं फुटबॉल हूं तो। ऐसी ही एक किक मारो ताकि तुम मुझे ठीक से खो सको।

स्वामी

स्वामी ने मुझसे कहा कि यहां मिला था मुझे ज्ञान। सीढिय़ों पर। सामने गंगा थीं जिसमें पूरे शहर का मलमूत्र बह रहा था। मैंने कहा कि अगर नदी साफ होती तो आपको नदी में नहाते हुए ज्ञान मिलता। मैंने कहा कि क्या ज्ञान मिलने के बाद आपने इस नदी को साफ करने का बीडा उठाया तो स्वामी को धक्का लगा। उन्होंने कहा कि तुमको सीढ़ी पर क्या मिला। मैंने कहा कि मुझे सीढिय़ों पर लड़की मिली। मैंने उसे खोया भी सीढिय़ों पर ही। स्वामी ने यह नहीं कहा कि जो ज्ञान उन्हें सीढिय़ों पर मिलता था वह खोया भी वहीं। स्वामी से मैंने कहा कि ज्ञान पाने के बाद और यह समझने के बाद कि सब कुछ निस्सार है आप जंगलों में नहीं गये, नौकरशाहों के यहां जाने लगे, आश्रम बिल्डर की मदद से बनवाया और फकर नौकरशाहों का शीघ्रपतन कैसे न हो इसका उपाय उन्हें बताया। स्वामी कांप गये। अगले ही दिन स्वामी मुंहअंधेरे सीढिय़ों पर बैठे मिले जहां मैं लड़की के लौट आने का इंतज़ार करने वाला था और वह ज्ञान से लौटने का।

फोटो

मैंने अपना एक फोटो देखा जिसमें मैं एक झील के किनारे लेटा था। यह तस्वीर झाड़ी के पीछे से ली गयी थी। मुझे लगा कि एक जानवर लेटा है। मैंने भूरा पैंट पहन रखा था और ऐसे ही किसी शेड की जैकेट पहन रखी थी। मुझे लगा कि जो जानवर लेटा है वह भूरा है।

हर्निया, हिंदी और हम

मैंने लोकल में बैठे आदमी से यह नहीं कहा कि मुझे सीट दे दो क्योंकि मुझे हर्निया है। मैंने एक पैर उठाकर उसे मोड़ा ताकि दर्द को सह्य बना सकूं। फिर मैंने डंडा पकड़ लिया। मुझे लगा कि मैंने प्रधानमंत्री का मल्टीनेशनल शिश्न पकड़ रखा है- लंबा और चिकना और निर्वीर्य। मैंने डंडा छोड़ दिया। बगल में बैठे उस आदमी और उस आदमी और उस आदमी और उस स्त्री और उस लड़की और उस बच्चे ने यह नहीं कहा कि लगता है आपको कोई तकलीफ है। इस सवाल से ज़्यादा उन्हें अपनी सीट की फिक्र थी। लेकिन मुझे लग रहा था कि मेरे हर्निया का दर्द मेट्रो में एक सूचना की तरह फैल रहा है और लोग अपने को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि किस तरह से मदद न की जाय। जैसे एक नाकाम और तानाशाह अध्यापक बच्चे को मुर्गा बनने की सज़ा देता है वैसी ही सज़ा मुझे लोग जैसे बने थे और बनाये गये थे और राज्य जैसा वह बनाया गया था दे रहे थे। दर्द ज्यादा हो गया तो मुझे लगा कि मुझे हर्निया के बारे में बताकर सीट पर बैठना चाहिये। मैं यह भी कह सकता हूं कि मेरा आपरेशन होने ही वाला है, तारीखें लगभग तय हैं, बस पैसों का इंज़ातम हो जाये। और मुझे यह भी कहने में कोई उज्र न होगा कि ऑपरेशन के पहले मुझे उपन्यास $खत्म करना है। मैंने सोचा कि अगर इस सारे इंटरोगेशन के बाद भी उन्होंने यह नहीं माना कि मुझे हर्निया है तो मैं क्या करूंगा। अपनी हताशाओं के बावजूद शायद मैं नहीं चाहता था कि मेरा विश्वास टूटे - उसे मैं किसी और बहुत संगीन हालात के लिये बचा रखना चाहता था।
मुझे एक दिन यह डर लगा कि अगर मैंने यह कहकर सीट मांगी कि मुझे हर्निया है तो दो तीन लोग मुझे घेरकर यह कहेंगे कि पैंट नीचे करके दिखाओ। नंगे होकर।

रूपक, विद्रोह और फूल

मैंने एक आदमी को देखा जो एक हाथ से पेशाब का पाइप पकड़े था और दूसरे हाथ में मोबाइल पकड़कर बात कर रहा था। पास में उसकी कार खड़ी थी। यह हमारी सभ्यता के रूपक की तरह था। उसने कार में लौटकर अपनी प्रेमिका से कहा कि एक कवि को मेरा पेशाब करते हुए बात करना सभ्यता के रूपक की तरह लगा तो उसने कहा कि मैंने इस तरह नहीं सोचा था। मैं तो यह सोच रही थी कि तुम किसी और लड़की से बात कर रहे होंगे। आदमी ने एक गहरी सांस ली और कहा कि चलो मॉल चलते हैं ताकि कवि की नज़रों के दायरे से दूर जा सकें। लड़की ने कहा कि मैं तो कितना चाहती थी कोई कवि मुझ पर निगाह डाले। लड़के ने कहा कि तुम जो चाहोगी डाल देंगे। लड़की ने कहा कि दो मायने वाली बातें कायर करते हैं जो तुम हो भी। लड़के ने कहा कि हम अपने समय के बड़े रूपक में बदलते जा रहे हैं। लेकिन मैं नहीं चाहता था सभ्यता का रुपक बनना क्योंकि यह तो पतन का रूपक बनना होगा। लड़की ने कहा कि हम विद्रोह कर सकते हैं। लड़के ने कहा कि अभी लो। उसने कार स्टार्ट की। कार ने जल्दी ही 120 किलोमीटर की स्पीड पकड़ ली। लड़के ने ऐसी ही किसी स्पीड में कार चलाते हुए लड़की को चूमा। फिर अपनी पैंट की बटन खोल कर लड़की के हाथ को वहां तक लाया। अब लड़के के हाथ में कार का गियर था जबकि लड़की के हाथ में लड़के का गियर था। लड़के ने स्पीड बढ़ा दी और उसने कहा कि यह विद्रोह है। लड़की ने लड़के के गियर को ऊपर नीचे करते हुए और सांसों पर काबू करने की कोशिश करते हुए कहा कि हम तो सभ्यता के रूपक की केंद्रीयता हासिल करते जा रहे हैं। लड़के ने भयावह उत्तेजना और चिढ़ से कहा - फक यू। यह कहते हुए उसने स्पीड तेज़ कर दी। स्पीड उसके नियंत्रण के बाहर चली गयी। इसमें वे तीन मज़दूर मारे गये जो फुटपाथ पर काम कर रहे थे। मुकदमा जो कायम हुआ तो कहा गया बीएमडब्ल्यू कार को महंगू नाम का ड्राइवर चला रहा था। लड़के को कम चोट आयी लेकिन लड़की को ज्यादा चोटें आयीं। इसलिए लड़का लड़की के पास फूल लेकर प्राइवेट वॉर्ड में पहुंचा। लड़के ने सिटकनी लगा दी तो लड़की ने कहा कि हम सभ्यता के रूपक कैसे न हो पाएं। लड़के ने कहा - इस तरह। और यह कहकर उसने सीसीटीवी कैमरे को तोड़ दिया और लड़की की चोटाई जगहों को बचाते हुए लड़की के ऊपर आ गया। लड़का कमरे से बाहर निकला तो कवि वहां घूम रहा था। लड़के के पास वही गुलदस्ता था जो वह लड़की के लिए ले गया था। कवि ने पूछा कि यह गुलदस्ता तुम वापस क्यों ला रहे हो तो लड़के ने कहा कि लड़की को पता चल गया है कि मैं उसे डबलक्रास कर रहा हूं। लड़के ने कहा कि आप चाहें तो मैं आपको अपना कार्ड दे सकता हूं। कवि ने कहा कि चाहो तो यह गुलदस्ता मुझे दे दो। लड़के ने कहा कि इसे वह अपनी दूसरी प्रेमिका के लिये ले जा रहा है। कवि ने पूछा कि क्या वह भी अस्पताल में है तो लड़के ने कहा कि नहीं, आज उसका कंसर्ट है। वह गाने वाली है, यद्यपि वह गाती बहुत बुरा है।

ऊंचाई, मृत्यु और उड़ान

मेरा घर चौथी मंजिल पर है। चढ़ते हुए नीचे ही एक बूढ़ा मिल गया। उसने कहा कि बहुत चढऩा पड़ता है। मैंने कहा कि घर तक पहुंचने के लिए यह ऊंचाई ज्यादा नहीं है। फिर मैंने कहा कि पूरा शहर या तो फिल्मों में दिखता है या मेरी खिड़की से। उसने कहा कि वह मुझे अपने उपन्यास में दिखता है। मैंने कहा कि मैं यह सोचता हूं कि मेरे मरने के बाद शव नीचे लाने में कितनी मुश्किल होगी। उसने कहा कि बेहतर होगा तुम अपनी खिड़की से ऊपर ही ऊपर उड़ जाना। उसने कहा कि क्या मैं इन बातों को अपनी कहानी में लिख लूं तो मैंने कहा कि यह मेरी कविता में पहले से ही मौजूद है - लेकिन आप चाहें तो मेरी कविता को अपने उपन्यास में शामिल कर सकते हैं।

भीतर

मुझे यह लगा कि मेज के भीतर एक और मेज़ है और हाथ के अंदर एक और हाथ। मैंने सामने से आते आदमी को भीतर एक और आदमी को देखा। मैं चश्मे की दुकान पर पहुंचा तो मैंने अपनी दिक्कत बतायी। उसने कहा कि बेटी का दिमाग ठीक नहीं चल रहा। इसलिये वह दुकान पर व्यापार करने नहीं घर के कोहराम से निकलकर वहां आया है। फिर जैसे उसे कोई बहुत बुनियादी चीज़ याद आयी। उसने कहा कि उसकी बेटी कहा करती है कि उसे घर की दीवार के भीतर एक दीवार दिखती है। मैंने कहा कि क्या मैं उसकी बेटी से मिलूं तो उसने दुकान बंद कर दी और मुझे स्कूटर पर बैठाकर चल पड़ा। हम लोग बहुत दूर तक बहुत चौड़ी सड़कों से गुज़रने के बाद एक गली में घुसे। उसके बाद गलियों की चौड़ाई कम होती गयी। फिर एक जगह पर आकर उसने कहा कि उतरिये। उसने स्कूटर को वहां छोड़ दिया। मैंने कहा कि क्या स्कूटर को यहां ऐसे ही छोड़ दिया जायेगा तो उसने कहा कि हां। यह चीज़ों को छोड़ते जाने का पूर्वाभ्यास है। हम लोग एक बेहद पतली गली में चलने लगे। अचानक मुझे लगा कि मेरे सिर के ऊपर कुछ नम चीज़ गिरी तो उसने कहा कि माफ कर दीजिये - एक आदमी है जो लोगों ने जो संस्कृति बनायी है उस पर थूका करता है। फिर हम लोग एक ऐसे घर के सामन पहुंचे जिसमें दो मंजिलें थीं। घर गिरने वाला था। मुझे लगा कि घर के भीतर पांव रखते ही यह घर ढह जायेगा। हम लोग एक पतले सीढ़ीमार्ग से ऊपर चढऩे लगे। सीढिय़ां इतनी ऊंची और पत्थर की थीं कि आगे बढऩे के लिये हमें साथ में लगी रस्सियों की मदद लेनी पड़ रही थी। हम लोग खुले में दाखिल हुए तो किसी के रोने की आवाज़ें आयीं। उसने कहा कि ये उसकी बेटी की आवाज़ें हैं। उसने कहा कि इस समय वह हंस रही है जो रोने जैसा लग सकता है। हम लोग कमरे में दाखिल हुए तो मैंने देखा कि घर बेतरतीब है और जगह जगह पुराने चश्मे पड़े हैं। हमारी आहटें सुनकर बेटी आयी तो उसने कहा कि वह मुझसे बात नहीं करना चाहती। मैंने कहा कि तुम नहीं मैं तुम से बात करना चाहता हूं। इस बात ने उसे उन्मुक्त किया। उसने कहा कि पापा चश्मों का काम करते थे तो मुझे यह लगा कि मुझे बहुत कुछ दिखेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मैं बहुत ज्यादा देखना चाहती थी। लेकिन ये चश्मे बेकार हैं। लेकिन और देखना है और देखना है की ज़िद के कारण हुआ यह कि मुझे एक के भीतर एक और दिखने लगा। तभी से मैं निर्वासित हूं। फिर उसने कोई बात नहीं की और मैंने भी जबकि इस बीच उसने चाय बनायी जो हमने एक दूसरे को देखते हुए पी। इस बीच उसके पिता खुली छत पर घूमते रहे।

सरकार

सरकार का दावा था कि उसे लोगों ने चुना है - सरकार लोग थी। लेकिन सरकार के सारे काम लोगों के विरुद्घ थे। जो ढांचा बना था उससे लगता था कि लोग अपने विरुद्घ हैं।

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