देवी प्रसाद मिश्र की कविताएँ

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    जून-जुलाई 2015
श्रेणी देवी प्रसाद मिश्र की कविताएँ
संस्करण जून-जुलाई 2015
लेखक का नाम देवी प्रसाद मिश्र





अमरता


बहुत हुआ तो मैं बीस साल बाद मर जाऊंगा
मेरी कविताएँ कितने साल बाद मरेंगी कहा नहीं जा सकता हो सकता है वे
मेरे मरने के पहले ही मर जाएँ और तानाशाहों के नाम इसलिये अमर रहें कि
उन्होंने नियंत्रण के कितने ही तरीके ईज़ाद किये

मैंने भी कुछ उपाय खोजे मसलन यह कि
आदमी तक पहुंचने का टिकट किस खड़की से लिया जाए

एक भुला दिया गया कवि बहुत याद किये जाते शासक से बेहतर होता है
और अमरता की अनंतता एक जीवन से बड़ी नहीं होती

फासला

या तो पानी बरसने वाला है या फिर अत्याचार होने वाला है
या तो तारीख बदलने वाली है या फिर युग
या तो घर की दीवार पर एक नया रंग होगा
या फिर पूरे शहर की दीवारें सफेद हो जाएंगी

दो संभावनाओं के बीच यह फासला हमेशा इतना ही
कम
था

इस तरह

अब इसको इस तरह से करते हैं जिसे उस तरह से करते आये थे।
इस तरह से करने का मतलब होगा कि बिल्कुल नये तरह से करना।
बिल्कुल नये तरह से करने का मायने होगा कि बिल्कुल पुराने तरीके से नहीं करना।
लेकिन बिल्कुल नये तरीके से बिल्कुल पुराने तरीके को भुला पाना आसान नहीं
होगा। अब देखो- बिल्कुल नये तरीके में बिल्कुल पुराने तरीके के दो शब्द हैं।
तो जो बिल्कुल नया है वह बिल्कुल नया नहीं हो पाता। मतलब कि बहुत नयी
भाषा में मैं, तुम, हम, हमारा, तुम्हारा वगैरह कहाँ बदलते हैं।
बहुत नयी भाषा में बहुत पुरानी चीज़ें बनी रहती हैं। इसलिये बहुत नये मनुष्य
में बहुत पुराने मनुष्य का बहुत कुछ होगा।
मसलन रक्त का बहना और नंगे होकर नहाना।

बोझ

आदमी रास्ते के किनारे अपने बोझ के पास बैठा था कि कोई आये तो उसकी मदद से वह बोझ को सिर पर उठाकर रख सके।

कोई नहीं आ रहा था।

एक आदमी दिखा। लेकिन उस के सिर पर बोझ था।
उसने इंतज़ार करते आदमी से कहा कि वह उसका बोझ उतरवा दे तो भला होगा।

उसने बताया कि वह बहुत दूर से और देर से किसी आदमी को पाने की कोशिश कर रहा था जो उसके सिर पर रखे बोझ को आहिस्ता से नीचे रखवा सके। दो की मदद से उसे उसने सिर पर रखा था और दो की मदद से ही उसे नीचे रखा जा सकता था।

इंतज़ार करते आदमी ने उसका बोझ नीचे रखवाया।

जो आदमी बाद में आया था उसने पहले से बैठे आदमी से कहा कि मैं तुम्हारा बोझ तुम्हारे सिर पर रखने में तुम्हारी मदद करता हूं ताकि तुम अपने सफर पर आगे निकल सको। तुम्हारे जाने के बाद मेरा जाना होगा। तब तक मैं इंतज़ार करूंगा। तब तक मैं इंतज़ार करूंगा ऐसे आदमी का जो मेरा बोझ मेरे सिर पर रखने में मदद करे वैसे ही जैसे तुमने मेरी और मैंने तुम्हारी मदद की। तुम्हारे जाने के बाद जो आदमी आये हो सकता है उसके सिर पर बोझ हो। तो मैं उसका बोझ उतरवाऊंगा। फिर वह मेरा बोझ मेरे सिर पर रखवायेगा। और खुद अपने बोझ के साथ बैठा रहेगा कि कोई आये और उसका बोझ उसके सिर पर रखवाने में उसकी मदद करे जिसे लेकर वह आगे निकल पड़ेगा।

और जो आदमी छूट गया है वह इंतज़ार करेगा कि कोई आये।

मेज़

वे लोग मेज़ के चारों ओर बैठे थे।

एक आदमी ने यह कहा कि ईश्वर की ओर अधिक झुकाव की वजह से उसने शराब और सिगरेट छोड़ दी। उससे किसी ने यह पूछना चाहा कि मनुष्यों की ओर झुकाव का हाल का कोई वृत्तांत उसके पास है कि नहीं।

काफी देर बाद एक आदमी ने दबी ज़बान से कहा कि उसे इसका कम अंदाज़ा है कि वहशीपन से लडऩे में ईश्वर कोई मदद करता है कि नहीं। दूसरे ने कहा कि वह घुमंतू कबाइलियों के लिए काम करता है। उसका कहना था कि जगहों को छोड़ते रहना दुनिया का सबसे बड़ा विचार है।

एक आदमी एक घंटे के भीतर एक लंबी यात्रा पर निकलने वाला था। वह इस बात को इस तरह से कह रहा था कि जैसे वह अब कभी नहीं लौटेगा। जो स्त्री वहाँ बैठी थी उसकी बेटी अगले दिन अपना गाना मंच पर पहली बार गाने वाली थी। उसकी माँ ने कहना चाहा कि पहली बार मंच पर गाना पहली बार सेक्स जैसा नर्वसकारी होता है लेकिन कहा नहीं।

उससे किसी ने पूछा कि तमाम सिद्धियां छींक कर विजय नहीं पा सकीं। क्यों। वह हँस पड़ी।

एक आदमी ने कहा कि मैं अपनी आत्मकथा पूरी करने वाला हूं लेकिन वह बहुत मामूली है। उसने बहुत विकलता से कहा कि आत्मकथा को एक आदमी ही लिख सकता है।
पता नहीं किस आदमी ने कहा कि वह किताबों को उसकी असाधारणता के लिए नहीं पढ़ता है।

इस बीच आदमियों के बीच बैठी स्त्री को आभास हुआ कि उसे ढेर सारे प्रेम की ज़रूरत है लेकिन वह कहे तो किससे और किस तरह।

बेहतर मनुष्य बनने के लिये दवाएँ

मैंने खाँसी के लिये दवा खरीदने के बाद केमिस्ट से यह कहा कि
बेहतर मनुष्य बनने के लिए दवाएँ नहीं हैं तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कि
एक लेटेस्ट स्कीम में कंडोम के साथ इच्छाएँ मुफ्त है मैंने कहा कि
कवि इच्छा और स्वप्न के संस्मरण हैं उसने फुसफुसाते हुए कहा कि जो फिल्म
पास के थियेटर में चल रही है उसमें पेड़ में पानी डालने का कोई दृश्य नहीं है
और रात के शोक के बाद थियेटर से जो निकले वे कह रहे थे कि मारना एक कला है मैंने बहुत डर से कहा कि जो फोन मैंने भतीजे से बात करने के लिए लगाया था वह ईश्वर को लग गया

होटल पैराडाइज़

जिस होटल में मैं रुका हूँ वह गुलाबी नियान लाइट में पैराडाइज़ है मेज़
चिपचिपी है गिलासों और कप और दीवारों पर ग्रीज़ है बिस्तर का चादर ऐसा है
कि जैसे कीर्तन में बिछाने के बाद झटककर यहाँ बिछा दिया गया हो ओढऩे
वाला चादर ज्यादा संदेहास्पद है - जंगल काटने वाले किसी मामूली स्मगलर का
सेक्सवर्कर के साथ अभिसार का बिछावन। तकिया किसी मेडिकल रिप्रज़ंटेटिव
की दवाओं का थैला लग रहा है

होटल मालिक का तीसरा बेटा सीने की ज़ंजीर गले में डालकर घूमता है - स्टेशन
के पास माइनिंग के पैसे से होटल होने का जो भरोसा उसके पास है उसकी तुलना मेरे हिंदी
में लिखने के गिरते आत्मविश्वास से नहीं की जा सकती

वह मेरे कुर्ते, मोबाइल और होने को हिकारत से देखता है और पूछता रहता है
कि सब ठीक तो है सर मैं कहता हूँ कि सब ठीक होता तो तुम यह होटल न
बनवा पाते उसने हँसते हुए कहा कि होटल के परिसर में उसने मंदिर बनवा
रखा है माँ का आदेश हुआ कृष्ण उसका सखा है बोलो राधे राधे
मैं बिस्तर से उठता हूँ - हड्डियों की चट चट की आवाज़ें आती हैं। मैं अपने
पास कम साल होने की घबराहट से नहीं से अत्याचार की परंपराओं से विचलित हूँ

होटल का सबसे दुबला कर्मचारी आकर पूछता है कि टीवी चला दूँ तो जैसे याद
करके औचक कहता हूँ कि पंखा चला दो उसने कहा वह ख़राब है उसने जाते
हुए कहा कि कुछ और चाहिये क्या तो मैंने कहा कि सरसों का तेल जिसे वह
वाकई दे गया बहुत धीमे से यह बताते हुए कि वह इस बोतल को अपने कमरे
से लाया है जो होटल की छत पर है ठीक वहाँ जहाँ पैराडाइज़ लिखा है उसके पीछे

वह पूछता है कि आप क्या काम करते हैं तो मैं कहता हूँ कि कविताएँ लिखता
हूँ वह कहता है कि क्या आप इस बात को अपनी कविता में लिख सकते हैं
कि होटल के मालिक का दूसरा बेटा हर तीसरे दिन गुलाबी नियान लाइट में
नहाये पैराडाइज़ की बरसाती में बारह के बाद आता है, मुझे नंगा करता है और
पेट के बल लिटाता है मैंने कहा कि हिंदी में शील और अश्लील को लेकर बहुत
पाखंड है इसीलिये सच कहने के तरीके भी सीमित हैं- काफी हद तक अप्रमाणिक।

वह मुझे देखता रहा। फिर वह चाय नाश्ते के बर्तन हटाता रहा। इस दौरान कभी
टीवी का रिमोट दब गया - टीवी चल गया और लोकतंत्र के फ़साद का बहुत
सारा धुआँ कमरे में भर गया- बहुत सारे फासिस्ट कमरे में टहलने लगे जिसमें
होटल के मालिक का तीसरा बेटा भी था जो यह कहते हुए कमरे में घुस आया
कि सर सब ठीक तो हैं?

किसी कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर

कमरे में जो खिड़की बायीं तरफ खुलती है उसके ऊपर लटकता चे ग्वेवारा का
पोस्टर हवा में हिलता रहता है फटता रहता है और आवाज़ करता रहता है

माक्र्स लेनिन और ज्योति बाबू की शबीहों के नीचे एक आदमी कुहनी मेज़ पर
रखकर बैठा है- निस्पंद क्रुद्ध और प्रबुद्ध।

फिलहाल उसके पास क्रांति को नहीं दफ्तर को संभालने का दारोमदार है जहाँ
दिन में तीन चार कवि आ जाया करते हैं लगभग गारंटी की तरह है कि उनका
विप्लवकारी पतन नहीं होगा परिवर्तन की उनकी आग धीरे धीरे बुझेगी पूँजीवाद
का गहरा क्रिटीक लिये हुए धीरे धीरे वह भारतीय जनतंत्र में नौकरियाँ पायेंगे वे
धीरे धीरे सब कुछ नहीं भूल जाएंगे इसलिये वे फैब इंडिया के लंबे कुर्ते पहनेंगे
और गमछा या मफलर गले में लपेटे मिलेंगे कि ज़रूरत हो तो बहुत बोलने के
बाद फेन और थूक पोंछा जा सके और मुँह ढँककर निकला जा सके। तो
कॉमरेड, पंद्रह बाई पंद्रह का यह कमरा नैतिकता की आखिरी धर्मशाला है जो
इससे ज्यादा नीमरौशन, निर्जन और उद्ध्वस्त नहीं हो सकती।
कमरे में दो तीन घंटे में चाय आ जाया करती है गाय भी आ जाती है जिसे
देखकर कम्यूनिस्ट कहता है कि गाय देश को बाँट देगी। दूसरे ने कहा कि
कुछ करना चाहिए। बट द प्रॉबलम इज़ मोबिलाइज़ेशन। व्हेयर इज़ द कनेक्ट।

किसी आदमी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांकेर में आदिवासी नक्सलियों ने 17 ट्रक जला दिये जो माइनिंग के काम में आते थे। हिंसा से हम कहीं नहीं पहुँचेंगे- किसी ने कहा तो किसी ने कहा कि आपको जाना भी कहाँ होता है मयूर विहार तक-वहाँ तो आप बिना किसी विचारधारा के भी पहुँच सकते हैं। यह बात बताकर एक आदमी दरवाज़ा धाँय से बंद करके निकल गया तो हरियाणवी गार्ड यह कहते हुए कि इतँड़ाँ तेज्ज धम्माका कैसे हुआ आ गया है और पार्टी दफ्तर के सोफे पर बैठने ही वाला था कि मेज़ पर झुके तनावग्रस्त कॉमरेड ने कहा- अभी निकलो। मीटिंग चल रही है।

नदी

मैं बस में चढ़ा
मैं खिड़की से बाहर देख रहा था
बस में बहुत सारे लोग थे
लोग कंडक्टर को बता देते थे जो उन्हें किसी स्टेशन, गाँव या कस्बे में उतार देता था
मुझसे कंडक्टर ने पूछा कि कहाँ उतरना है तो मैंने कहा कि सुवर्णरेखा पर उतार देना।
कंडक्टर ने कहा सुवर्णरेखा तो नदी है और ऋत्विक की फिल्म है
मैंने कहा मुझे नदी या ऋत्विक के पास उतार देना।

आवारा के दाग़ चाहिये

दो वक्तों का कम से कम तो भात चाहिये
गात चाहिये जो न काँपे
सत्ता के सम्मुख जो कह दूँ
बात चाहिये कि छिप जाने को रात चाहिये
पूरी उम्र लगें कितने ही दाग़ चाहिये
मात चाहिये बहुत इश्क़ में फाग चाहिये
राग चाहिये साथ चाहिये
उठा हुआ वह हाथ चाहिये नाथ चाहिये नहीं
कि अपना माथ चाहिये झुके नहीं जो
राख चाहिए इच्छाओं की भूख लगी है
साग चाहिये बाग़ चाहिये सोना है अब
लाग चाहिये बहुत विफल का भाग चाहिये
आवारा के दाग़ चाहिये बहुत दिनों तक गूँजेगी जो
आह चाहिये जाकर कहीं लौटकर आती राह चाहिये
इश्क़ होय तो आग चाहिये।

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