पोस्टर कविता/दो

  • 160x120
    जून-जुलाई 2015
श्रेणी पोस्टर कविता/दो
संस्करण जून-जुलाई 2015
लेखक का नाम अनु. निष्काम






                                            और अपने रहे - चुप्पई चाप
First they came for the Jews                           पहले वे आये यहूदियों के लिये
and I did not speak out                                 और अपन रहे - चुप्पई चाप।
because I was not a jew                                काय से, यहूदी थोड़े ही न थे अपन।

Then they came for the Communists               फिर आये कम्युनिस्टों के लिये
and I did not speak out                                 और अपन रहे - चुप्पई चाप।
because I was not a Communist.                    काय से, कम्युनिस्ट थोड़े ही न थे अपन।

Then they came for the Trade Unionists           फिर आये वे ट्रेड यूनियन वालों के लिये
and I did not speak out                                 और अपन रहे - चुप्पई चाप।
because I was not a Trade Unionist.                काय से, ट्रेड यूनियन वालों से अपना क्या नाता?

Then they came for me                                  फिर वह आये मेरे लिये
and there was none left                                 मगर, बचा ही नहीं था वहाँ कोई
to speak out for me.                                     जो बोलता कुछ अब मेरे लिये।

- Paster Niemoeller                                      - पास्टर निमौले - अनु. निष्काम
(Victim of the Nazis)



जर्मनी के मार्टिन निमौले (14 जनवरी 1892) का पूरा नाम फ्रेडरिक गुस्ताव एमिल मार्टिन निमौले था। वह उतने ही कट्टर देशभक्त थे जितने हिटलर के दुश्मन। उन्होंने सात साल कंसन्ट्रेशन कैम्प की यातनायें भोगी। बाद में यू.एस. की सेना ने आस्ट्रिया के कैम्प से उन्हें आजाद कराया। वह दुनिया भर में मनुष्यता के खिलाफ नाजी अत्याचार का विरोध करने वाली आवाज के प्रमुख स्वर बन कर उभरे। प्रथम विश्वयुद्ध में उन्होंने जर्मनी की जल सेना की यू-वोट के कमाण्डर के रूप में भाग लिया था। मगर उसके बाद प्रोटेस्टेन्ट ईसाई धर्म के प्रचारक बन गये। उन्हें सबसे ज़्यादा 'पहले वे आये...' की वज़ह से जाना जाता है, जो एक अत्याधिक प्रभावशाली एवम् उद्दीप्त कविता के रूप में आज भी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस कविता में निमौले ने जर्मनी के बुद्धिजीवी वर्ग के दब्बूपन पर तीखा और झकझोर देने वाला वार किया। यह वार उस बुद्धिजीवी वर्ग पर था जो नाज़ियों के सत्ता में आने के तत्पश्चात नाज़ियों के निशाने पर चुने गये समूह के एक के बाद एक करके हो रहे सफाये पर अपने पूरे दब्बूपन के साथ हाथ पर हाथ धरे चुपचाप तमाशा देख रहा था। संभवत: निमौले ने अलग-अलग मौको पर शब्दों में कुछ परिवर्तन किया गो कि निशाना हमेशा दुनिया भर का वही तमाशबीन बुद्धिजीवी वर्ग रहा। मार्टिन निमौले ने 6 मार्च 1984 को अन्तिम सांस ली।

Login