रात थी

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    जून-जुलाई 2015
श्रेणी कविताएं
संस्करण जून-जुलाई 2015
लेखक का नाम सुरेश सेन 'निशान्त'






(नौ छोटी कविताएं)

एक


रात थी
घनघोर तम से भरी
रात थी
दुख था
अन्धेरे की चादर ओढ़े।

एक कांटा था अकेलेपन का
चुभता था बहुत गहरे तक।

दर्द से भरी
नींद से कोसों दूर
रात थी।

दो
अन्धेरी सीढिय़ों पर
गमुसुम रोता था कोई।
ईश्वर नहीं सुन पाता था
उसका रोना
घनी अन्धेरी रात थी।

हत्यारों की मुट्ठी में
कैद था समय
उनकी बन आई थी।
दिन में भी अन्धेरे का
आभास देती हुई
रात थी।

तीन
रात थी उनकी
इतने कौशलों से भरी हुई
कि दिन हमारा बुद्धू दिखता था।

रात थी उनकी
इतनी रौनकों से भरी
कि दिन हमारा बदरंग दिखता था।

रात थी उनकी
इतनी चालाकियों से भरी
कि दिन हमारा भौच्चक बुद्धुओं सा
घूमता था।

रात थी उनकी
अपनी ताकत के नशे में
चूर।

पर हमारे दिन की थकान में ही
उगती थी वनस्पतियां
चहकते थे परिन्दे
जीवन सीखता था
ढंग से चलना।

चार
रात थी
पहाड़ के इस छोर से
उस छोर तक रात थी
सन्नाटा था
सन्नाटे में सुनाई देती थी
किसी चीज के टूटने की आवाज।

जो टूटती थी
वह नींद थी
या पहाड़ की देह थी
या हमारी ही कोई उम्मीद
टूटती थी
टूटती थी
उसके टूटने की
सुनाई देती थी आवाज।

पांच
रात थी
पेड़ चुप थे
लगता था जैसे
भय से भरे हुये हों वे
चुप थे विशाल काय पत्थर
लगता था जैसे
हलक में अटकी हुई हो
उनकी भी सांस।

रात थी
नदी रोती थी।
उसकी गोद में बैठी
रोती थी जैसे कोई औरत भी
ऊंची आवाज में।

इतना ऊंचा क्यों था
उस औरत का विलाप
जिसे हम सुनते थे
और पेड़ और पत्थरों की तरह
भय से भरे चुप रहते थे
रात थी।

छ:
रात थी
जब राख हो गये थे
हमारे सभी पेड़।
कुछ लोगों ने कहा
वह आग नहीं
ईश्वर की कृपा है
जो रात भर आसमान से
झरती रही।

शायद रात के रंग जैसा ही है
उनके ईश्वर का रंग
शायद राख के रंग जैसी ही है
उनके ईश्वर की भी कृपा।
कुछ लोग थे जो राख नहीं
ईश्वर की कृपा का
कर रहे थे अपने जिस्मों पर लेप।

रात थी
घने काले रंगों से भरी
रात थी।

सात
रात थी
तो रात की ही बात थी
पत्तों के हिलने
पानी के टपकते तक में।

कोई नहीं करता था
दिन की बात।

दिन में भी
रात ही की बात थी
एैसी लम्बी रात थी।

कोई पूछता था
रहबर का पता
जिधर इशारा करते
उधर अन्धेरे की गोद में बैठी
रात थी।

आठ
रात थी
कोई रोता था
लोग कहते यह
भारल के रोने की आवाज है।

कोई रोता था
लोग कहते यह
किसी प्यासी टिटहरी के
सिसकने की आवाज है।

कोई रोता था
लोग कहते यह
ग्लेशियरों के सिकुडऩे की
आवाज है।

कोई रोता था
लोग कहते यह
यह खेतों से नमी
उडऩे की आवाज है।

रात थी
कोई था जो रोता था
लगातार
उसे चुप कराने वाली
उंगलियों में लग गया था
निस।

नौ
दिन उगने के बाद भी
उसके पांव की छाप थी
एैसी मनहूस रात थी।

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