पुरानी किताब
कल रात अचानक एक पुरानी किताब चुपचाप बुकरैक से उतर कर मेरे सामने आ खड़ी हुई बोली - मुझे पढ़ो मैंने उसे ध्यान से देखा कमर से कुछ कमज़ोर दिखी कहा - पढ़ तो चुका हूँ तुम्हें कितने बरस पहले मुझे फिर से पढ़ो - उसने कहा क्या होगा फिर से पढ़कर तब तुम्हारी उम्र कच्ची थी कई बातें ठीक से समझ नहीं आई होगी
मैंने उसे प्यार से पुचकारा थोड़ी धूल थी उसे झाड़ा खोल कर देखा - वाकई वह पचास बरस पुरानी थी उस पर अपने हस्ताक्षर भी पहचान नहीं पाया मैं कितना कुछ तो बदल गया इन पचास बरसों में शहर-दर-शहर भटका रोज़गार के चक्कर में कई पुराने दोस्त छोड़ गए साथ कई बिला गए राह में
कितने खट्टे मीठे अनुभव कितने इकतरफा इश्क और उनकी मीठी यादें यादों की टीस बाकी है आज तक दरअसल वह मेरे प्रिय लेखक का उपन्यास था कितना रोया था मैं उसे पढ़कर महीनों तक रखा उसे तकिए के नीचे किसी प्रेमिका के $खत की मानिन्द उसकी कितनी ही पंक्तियां चुराई थीं मैंने अपने प्रेम-पत्रों के लिए किसी भी प्रेमिका ने नहीं पकड़ी मेरी चोरी उन्होंने पढ़ी ही नहीं थी वह किताब हो सकता है मेरे पत्रों को ही न पढ़ा हो एक ने तो अनखोले लिफाफों समेत लौटाए थे मेरे पत्र लौटाते हुए उसके हाथ भी नहीं कांपे उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी बस शायद इतना भांप पाया था मैं उसके दुपट्टे का रंग भी याद है कुछ कुछ आसमानी सा था शायद मैंने पुस्तक को हल्के से दुलराया कृतज्ञता-ज्ञापन में धन्यवाद किया कितना कुछ बेशकीमती लौटाया था उसने आधी सदी बाद
उसका जाना
वह इस तरह चली जाएगी अचानक उसकी आंखों के आगे उसे गुमान भी न था वह एक पल थी अगले पल नहीं थी
डाक्टर-मित्र ने आते ही नब्ज़ देखी आंखों की पुतलियों पर टॉर्च की रोशनी फेंकी और पलके बंद करते हुए बोला - आई. एम. सॉरी तीन शब्दों में पूरा जीवन कैसे सिमट जाती है उसने आज जाना
वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया मित्र की आंखों में संवेदना मिश्रित सहानुभूति छलछला रही थी बोला - चूडिय़ां और अंगूठी उतार लो बाद में दिक्कत होगी यह सुनकर वह पल उसकी आंखों के आगे कौंध गया जब उसने वह अंगूठी उसे पहनाई थी 'और हां बेटे को फोन कर दो पहली फ्लाइट से आ जाए' मित्र की आवाज़ कहीं दूर से आई 'मई की गर्मी है भाभी को अस्पताल के शवघर में रखना होगा'
शवघर में बेहद ठंड थी एक बड़े रेफ्रिजेरेटर की तरह उसका एक रैक खुला और वह लोहे के स्ट्रेचर समेत उसमें समा गई अब उसके हाथ में एक पर्ची भर थी नंबर था पांच कोई नाम नहीं था अब वह सिर्फ एक नंबर भर रह गई थी इतनी खामोश और खौफनाक जगह में इतनी रोशनी भी है उसने सहम कर सोचा
रात भर वह सो नहीं पाया वह जानता था जीवन क्षण भंगुर है और शरीर नश्वर फिर भी वह रोने लगा धीरे धीरे मौन-मुखर अविरल रो कर उसका मन हल्का हो गया एक फूल की मानिन्द अब वह आंखें मूंद प्रार्थना की मुद्रा में बैठ गया अंतत: विनय और विलाप एक ही तो हैं
अब वह तैयार था अगले दिन का और लोगों का सामना करने के लिए।
अगली सुबह अखबार में शोक समाचार छपा फोटो पन्द्रह साल पुरानी थी लाल दुपट्टे में कितनी तो सुन्दर लग रही थी वह
मित्र और परिजन आ गए बेटा मां को अस्पताल से घर ले आया 'अब कोई और मां की आंखों से देख पाएगा'- बेटा बोला पल भर के लिए वह थोड़ा खुश जैसा हुआ फिर बेहद उदास हो आया
श्मशान में थोड़ी भीड़ थी वह अकेला था लोग गले मिले-सान्त्वना दी नम आंखों की धुंध के पार कुछ चेहरे और नाम याद रहे कुछ चेहरों को वह नाम नहीं दे पाया
बेटे ने मां को मुखाग्नि दी एक लपट ऊपर उठी उसे वर्षों पहले की पवित्राग्नि की याद हो आई
अगली सुबह फूल चुनने लौटे एक भरा पूरा जीवन एक छोटे से कलश में समा गया
हरिद्वारा में बेटे ने अस्थियां गंगा को सौंप दीं पलभर के लिए उसका अक्स जैसे पानी में झलका
वह बेटे से बोला - मेरी अस्थियां भी यहीं प्रवाहित करना शायद हम कभी किसी खेत में फिर मिलें नई फसल की खाद बन कर
बेटे ने सुना नहीं वह मां के रक्त की आवाज़ अपनी धमनियों में सुन रहा था और उसे दूर पानी में ओझल होते हुए देख रहा था। |