संजय कुंदन की कविताएँ

  • 160x120
    मार्च : 2015
श्रेणी कविताएं
संस्करण मार्च : 2015
लेखक का नाम संजय कुंदन





 


दासता

दासता के पक्ष में दलीलें बढ़ती जा रही थीं
अब जोर इस बात पर था कि
इसे समझदारी, बुद्धिमानी या व्यावहारिकता कहा जाए
जैसे कोई नौजवान अपने नियंता के प्रलाप पर
अभिभूत होकर ताली बजाता था
तो कहा जाता था
लड़का समझदार है

कुछ लोग जब यह लिख कर दे देते थे कि
वे वेतन के लिए काम नहीं करते
तो उनके इस लिखित झूठ पर कहा जाता था
कि उन्होंने व्यावहारिक कदम उठाया

अब शपथपूर्वक घोषणा की जा रही थी
कि हमने अपनी मर्जी से दासता स्वीकार की है
और यह जो हमारा नियंता है
उसके पास हमीं गए थे कहने कि
हमें मंजूर है दासता
हम खुशी-खुशी दास बनना चाहेंगे
ऐसा लिखवा लेने के बाद
नियंता निश्चिंत हो जाता था और भार मुक्त।

अब बेहतर दास बनने की होड़ लगी थी
एक बार दास बन जाने के बाद भी
कुछ लोग अपने मन के पन्नों पर
कई करार करते रहते थे
जैसे एक बांसुरी वादक तय करता था कि
वह अपने पचास वर्षों के लिए
अपनी बांसुरी किसी तहखाने में छुपा देगा
कई कवि अपनी कविताएं स्थगित कर देते थे

ये लोग समझ नहीं पाते थे कि
आखिर दासता से लड़ाई का इतिहास
क्यों ढोया जा रहा है
और शहीदों की मूर्तियां देख कर
उन्हें हैरत होती थी कि
कोई इतनी सी बात पर जान कैसे दे सकता है!

फेसबुक

यह तुम्हारी इच्छाओं का आसमान नहीं
आंकड़ों का समुद्र है

ज्यों ही तुम उतरते हो इसमें
एक नजर तुम्हारे पीछे लग जाती है
जो तैरती रहती है तुम्हारे साथ
जब तुम खोलने लगते हो मन की गांठें
वह चौकन्नी हो जाती है
वह दर्ज करती है तुम्हारी धड़कन
तुम्हारे रक्त में कामनाओं की उछाल
माप लेती है वह

तुम्हें पढ़ लिए जाने के बाद तय होता है
कि तुम्हें किस श्रेणी में रखा जाए
मतलब यह कि तुम किस तरह के इंसान हो
आखिर तुम्हें क्या-क्या बेचा जा सकता है
कैसा जूता, कैसी कमीज
कैसा टीवी और किस तरह की शराब।

बहुत उपयोगी होती है यह जानकारी
सौदागरों के लिए
एक कारोबारी इसे बेच देता है दूसरे व्यापारी को
दूसरा तीसरे को

ऐसी कितनी ही सूचनाएं चाहिए होती हैं
एक तानाशाह को भी
जो हर हाल में जीतना चाहता है
आंकड़ों के खेल ने आसान कर दिया है
उसका काम
तुम उसे करते रहो ना पसंद यहां
वह पैसों की ताकत से नापसंद को बदल देता है पसंद में
वह करोड़ों भाड़े के टिप्पणीकार जुटा सकता है
अपने विचार के पक्ष में
वह वेतन पर, ठेके पर प्रतिक्रियाबाज इकट्ठा कर सकता है
और कह सकता है कि उसे पूरी दुनिया पसंद करती है।

बिल्डर ऐसे आते हैं

बिल्डर आते बड़ी-बड़ी मशीनों
बैनरों और पोस्टरों के साथ
वे आते और शहर का एक मैदान
रातोंरात घिर जाता दीवार से
सड़क किनारे खड़ा होने लगता
मिट्टी का पहाड़
कुछ रंगीन छातों के नीचे बैठे जाते उनके कारिंदे

रात भर खुदाई करती उनकी मशीन
ठक् ठक् ठक् ठक्
करती हमारी नींद में भी सूराख

हमारे सपनों की दरारों में घुसे चले आते हैं बिल्डर
मोबाइल पर भेजते संदेश पर संदेश
अखबारों में डालते रहते पर्चियां
करते रहते पीछा निरंतर
टीवी खोलते ही दिखती एक अभिनेत्री
अपील करती हुई उनकी तरफ से
एक क्रिकेट खिलाड़ी बताता कि
सुख की कुंजी तो एक बिल्डर के पास ही है
यहां तक कि
लाल किले की प्राचीर से
घोषणा की जाती कि
बिल्डरों के बूते ही चल रही है
देश की अर्थव्यवस्था
बिल्डर आते
और बदल जाता शहर का भूगोल
उनकी नई बहुमंजिली इमारतों के आगे
बेहद जर्जर लगने लगते पुराने छोटे मकान
जैसे शर्म से धंस जाना चाहते हों
कुछ पुराने बाशिंदें भी अचानक
बहुत पुराने लगने लगते
उन्हें शक हो उठता कि शायद उन्हें
शहर में बसना अब तक नहीं आया
वे फिर कभी दिखाई नहीं देते।

तानाशाह की जीत

वो जो तानाशाह की पालकी उठाए
सबसे आगे चल रहा है
मेरे दूर के रिश्ते का भाई है
और जो पीछे-पीछे आ रहा है
मेरा निकटतम पड़ोसी है
वो वक्त-बेवक्त आया है मेरे काम
और जो आरती की थाल लिए चल रहा है
वह मेरा दोस्त है
जिसने हमेशा की है मेरी मदद
और जो कर रहा प्रशस्ति पाठ
वह मेरा सहकर्मी है मेरा शुभचिंतक

मैं उस तानाशाह से घृणा करता रहा
लानतें भेजता रहा उसके लिए
पर एक शब्द नहीं कह पाया
अपने इन लोगों के खिलाफ
ये इतने भले लगते थे कि
कभी संदिग्ध नहीं लगे
वे सुख-दुख में इस तरह साथ थे कि
कभी खतरनाक नहीं लगे
हम अपने लोगों के लालच को भांप नहीं पाते
उनके मन के झाड़-झंखाड़ की थाह नहीं ले पाते
उनके भीतर फन काढ़े बैठे क्रूरता की
फुफकार नहीं सुन पाते
इस तरह टल जाती है छोटी-छोटी लड़ाइयां
और जिसे हम बड़ी लड़ाई समझ रहे होते हैं
असल में वह एक आभासी युद्ध होता है
हमें लगता जरूर है कि हम लड़ रहे हैं
पर अक्सर बिना लड़े ही जंगल जीत लेता है हमारा दुश्मन।

धन पशु धार्मिक हैं

धनपशुओं का धार्मिक होना
इतना स्वाभाविक था
कि किसी धन पशु के धार्मिक न होने पर ही
संदेह होने लगता था
अब तो कंपनियों के नाम भी
भगवान के नाम पर रखे जा रहे थे
लेकिन इसका मतलब यह नहीं
कि धन पशु धर्म भीरु भी थे
वे अध्यात्म की सीढिय़ों पर चढ़ रहे थे
तो इसका अर्थ यह नहीं था
कि उसका संसार से मोहभंग हो गया था
या वे ऊब गए थे धन बल से
वे कहते जरूर थे कि जीवन निस्सार है
लेकिन उनका पूरा ध्यान मुनाफे पर रहता था
वे कहते थे कि सादगी से रहो
पर उनका अपने ऊपर खर्च
जरा भी कम नहीं होता था
निरंतर पूजा-पाठ और सत्संग के जरिए
धन पशु बताना चाहते थे कि
जिसने इहलोक में अब तक मौज किया है
वही परलोक में भी राज करेगा
मतलब यह कि जिसके पास माल है
मोक्ष भी उसी का है।

Login