मुक्के: हिटलर और मुसोलिनी के मुँह पर

  • 160x120
    मार्च : 2015
श्रेणी पहल विशेष
संस्करण मार्च : 2015
लेखक का नाम यादवेन्द्र





देशांतर
/दो


पिछला 2014 का वर्ष अश्वेत अमरीकी कॉम के सम्मान के लिए इतिहास बदल देने वाले मुक्केबाज और जोए लुइस का शताब्दी वर्ष रहा। जिस समय अमेरिका-यूरोपीय तानाशाहों मुसोलिनी और हिटलर की बर्बर सेनाओं के सामने हतप्रभ खड़ा हुआ था उस समय जोए लुइस एक एक कर दोनों तानाशाहों के प्रिय पात्र मुक्केबाजों को पटखनी देकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली किवदंती नायक बन गये। 1935 में लड़े गये जोए लुइस और इतावली मुक्केबाज प्राइमो कोर्नेरा के ऐतिहासिक मुकाबले को साहित्यिक दस्तावेज के तौर पर अमर बना देने वाली अमेरिका की प्रतिष्ठित अश्वेत एक्टिविस्ट और साहित्यकार माया एंजेलु इसी साल (1914) 86 सालकी उम्र में दिवंगत हुई। अश्वेत अस्मिता का परचम लहराने वाली इन दोनों विभूतियों को श्रद्धांजलि स्वरूप यह आलेख और कथा प्रस्तुत है।
पिछली बार हमने प्रथम विश्वयुद्ध की शताब्दी पर कुछ चुनी हुई कविताएं दी थीं, इस बार यह उपहार।





अमेरिका के अलाबामा प्रान्त में 13 मई 1914 को बेहद गरीब और छोटी मोटी मजूरी कर के जीवन यापन करने वाले आठ बच्चों वाले परिवार में जोए लुइस का जन्म हुआ। बटाईदारी पर गोरे किसानों की खेती करने के लिए आज यहाँ तो कल वहाँ भटकते रहने वाले परिवार पर विपत्ति का पहाड़ तब टूट पड़ा जब जोए के पिता और परिवार के मुखिया का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया और वे जीवन पर्यन्त अस्पताल में भर्ती होने को मज़बूर हो गये। बाद में उनकी माँ लिली बैरो ने दूसरी शादी कर ली और जोए का नया परिवार बेहतर अवसरों की खोज में वहाँ से डेट्रॉयट आकर बस गया।
जोए की माँ का सपना था कि बेटा वॉयलिन सीखे और इसके लिए वे उसको अलग से पैसा देती थीं पर जोए लुइस का मन बॉक्सिंग की ओर खिंचने लगा। कुछ समय तक तो सब कुछ छुप छुप कर चलता रहा पर जब एक दो मुकाबलों में सफलता हाथ लगी तो जोए ने माँ को असलियत बता दी - माँ ने यह सोच कर संतोष कर लिया कि जिसमें अच्छा लगे वही अपनाओ। ...और आगे बढ़ो। इसके बाद जोए ने पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा और जीवन के हर सुख दु:ख में माँ को याद करते रहे। जून 1938 के ऐतिहासिक जोए लुइस मैक्स श्मेलिंग टाइटिल मुकाबले के तुरंत बाद जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आप सबसे पहले किसको धन्यवाद देना चाहेंगे तो जोए ने बगैर एक पल को आगा पीछा सोचे हुए अपनी माँ का नाम लिया।
युवा जोए लुइस देखते देखते अमेरिका में हेवीवेट बॉक्सिंग के नए सितारे बन कर उभरे और एक के बाद एक मुकाबले जीतते गये। पर उनके जीवन में निर्णायक मोड़ तब आया जब जून 1935 में पूर्व विश्व हेवीवेट बॉक्सिंग चैम्पियन प्राइमो कोर्नेरा के साथ उनके मुकाबले का कार्यक्रम बना। उम्र और देहयष्टि दोनों ऊँचाई और वज़न के हिसाब से कोर्नेरा जोए के मुकाबले काफ़ी आगे थे और मुसोलिनी के रोमन जाति की ऐतिहासिक श्रेष्ठता के चमकते हुए सितारे थे। राजनैतिक तौर पर यह इटली के इथियोपिया (उपनिवेशवादी शक्तियों की छत्रछाया से बाहर वाला अग्रणी अश्वेत अफ्रीकी देश पर) मिका बनाने का समय था और फासिज्म का जिन्न आक्रमण करने की भू दुनिया भर में अपने पैर पसार रहा था। अश्वेत अमेरिकी समुदाय इथियोपिया को अश्वेत चेतना के ध्वज वाहक के तौर पर देखता था और मुसोलिनी की साम्राज्यवादी नीतियों का मुखर आलोचक था। प्राइमो कोर्नेरा की शोहरत शारीरिक बल के कारण तो थी ही इसलिए भी थी कि वह तानाशाह मुसोलिनी का चहेता बॉक्सर था अनेक मुकाबलों में मुसोलिनी $खुद उपस्थित रहता था और फासिस्टों की काली पोशाक पहन कर रैलियों में शामिल होता था। अनेक इतिहासकार द स्टार्स ऑफ़ द ड्यूस जैसी किताब बताते हैं कि खुद को प्राइमो कार्नेरो का दोस्त कहने वाले मुसालिनी ने यह लिखित फ़रमान जारी किया था कि कोई अ$खबार पत्रिका बॉक्सिंग के मुकाबलों की फोटो छापते हुए सुनिश्चित करें कि प्राइमो कोर्नेरा की फ़र्श पर गिरे हुए न दिखाया जाये। उधर जोए लुइस इस मुकाबले में मुकाबले से पहले लुइस ने कहा भी था - के लिए लड़ रहा था ''इथियोपिया'' अब मुझे न सिर्फ उस आदमी को हराना है बल्कि - उन्होंने मेरा चौबीस साल कन्धों पर बड़ी जिम्मेदारी डाल दी है। ''एक खास विचारधारा के लिए हराना है। यहां तक कि प्राइमो कोर्नेरा को हराने की घटना को प्रतीकात्मक तौर पर मुसोलिनी को शिकस्त देने जैसा देखा गया। तब के अभिलेख बताते हैं कि जोए लुइस की ...प्राइमो कोर्नेरा के ऊपर विजय के बाद अश्वेत युवक देश के अनेक हिस्सों में नारे लगा रहे थे अब धूल चाटने की 'मुसोलिनी की बारी है'।''
जोए लुइस जून 1936 में एक बेहद विवादास्पद मुकाबले में मैक्स श्मेलिंग से हार गये थे और उसके बाद उन्होंने कई बड़े मुकाबले जीते और वल्र्ड हेवीवेट टाइटिल भी जीती पर अनेक अवसरों पर यह बोलते रहे कि उनको दुनिया भले ही विश्व चैम्पियन माने पर वे अपने आपको तब ही इसका हकदार मानेंगे जब वे मैक्स श्मेलिंग को रिंग के अन्दर पटखनी दे देंगे। इस बीच मैक्स श्मेलिंग दुनिया भर में घूम घूम कर अपनी शक्ति और आर्य रक्त की शेखी बघार रहे थे। डेविड विगिंग एवं पैट्रिक मिलर द्वारा सम्पादित पुस्तक ''द अनलेवेल प्लेइंग : ए डॉक्यूमेंट्री हिस्ट्री ऑफ़ अफ्रीकन अमेरिकन'' मैक्स श्मेलिंग को यह कहते हुए उद्धृत करती है कि दुबारा मुकाबला हुआ भी तो उनके सामने जोए लुइस कुछ नहीं है क्योंकि ''नीग्रो समुदाय जोए लुइस की पिछली हार से सदमे से कभी उबर नहीं पाया... उसकी गोरी चमड़ी ही जोए लुइस की सिट्टी पिट्टी गुम करने के लिए पर्याप्त होगी ... और जब वह रिंग के अन्दर कदम रखेगा तो पहले से ही एक अश्वेत के ऊपर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाये रहेगा।''
पर 22 जून 1938 को जब जोए लुइस और मैक्स श्मेलिंग दुबारा रिंग में आमने सामने हुए तो जोए लुइस को बड़बोले और सफेद चमड़ी के गुरुर में डूबे हुए प्रतिद्वंद्वी को धुल चटाने में सि$र्फ 124 सेकेण्ड लगे और मैक्स श्मेलिंग इस तरह घायल होकर वहाँ से निकला कि सीधा अस्पताल गया और कई दिनों के बाद हैट से मुँह छिपा कर अमेरिका से रवाना हो गया।
जून 1938 के जोए लुइस और मैक्स श्मेलिंग के बीच के ऐतिहासिक बॉक्सिंग मुकाबले का भावनात्मक महत्व खेलके मैदान से उठकर तत्कालीन राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन और युद्धोन्माद तक पहुँच गया .. कोई आश्चर्य नहीं कि मुकाबले की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने जोए लुइस को व्हाइट हाउस बुलाकर हौसला बढ़ाया और कहा : ''जोए हमें नाज़ियों से निबटने के लिए आपके जैसे मज़बूत मांसपेशियों की दरकार है।'' और दूसरी ओर हिटलर ने श्मेलिंग की पत्नी को अपने पास बुलाकर मुकाबले का पल पल का हाल जानने अलग से रेडियो की सुविधा प्रदान की... यह 1938 में एक बड़ी सुविधा थी। इतना ही नहीं जर्मनी के प्रोपैगैंडा मंत्री जोसेफ गाएबेल्स ने मैक्स श्मेलिंग को चिट्ठी लिखी: ''मुझे मालूम है तुम जर्मनी के लिए लड़े और तुम्हारी जीत जर्मनी की जीत है... हमें तुम्हारे ऊपर गर्व है... हिटलर की जय।''
हॉलीवुड के मशहूर फ़िल्म लेखक निर्देशक स्व. बड शुलबर्ग ने इस मुकाबले के बारे में दिलचस्प अंदाज़ में लिखा है :  ''अटलांटिक के इधर और उधर कोई भी ऐसा नहीं था जो लुइस और श्मेलिंग के बॉक्सिंग मुकाबले को अच्छे और बुरे के मानवीकरण से ज़रा भी कम मानने तैयार हो। ...यदि श्मेलिंग जीत जाता है तो नाज़ियों के हवा में लहराते स्वस्तिक से हमारी धरती पर अंधेरा छा जायेगा। और यदि लुइस की विजय हुई तो नीग्रो, यहूदी, नाज़ी विरोधी, युद्ध विरोधी.. सब के सब वे लोग जो बगैर खून खराबे के दुनिया में भद्रता की व्यवस्था बनाये रखने के कायल है, ऊर्जस्वित और आश्वस्त महसूस करेंगे।''
इस पृष्ठभूमि को याद करें तो आज हमें यह जानकर बिलकुल अचरज नहीं होगा कि इस मुकाबले को देखने के लिए स्टेडियम में सत्तर हजार लोग एकत्र हुए थे और दुनिया भर में सात करोड़ लोगों ने रेडियो पर पल पल की कॉमेंट्री सुनी। अमेरिका नेशनल रिकॉडिंग रजिस्ट्री में आज भी यह यादगार कॉमेंट्री सुरक्षित रखी गयी है।
एसोसिएटेड प्रेस के मरे रोज़ ने मैक्स श्मेलिंग को पराजित करने के बाद जोए लुइस को यह कहते हुए उद्धृत किया: ''आम तौर पर मैं किसी पर इतना गरम नहीं होता पर मैं स्वीकार करूँगा कि इस बार मैं गुस्से से पागल हुआ जा रहा था। अपने जीवन में किसी और मुकाबले को लेकर इतना उत्साही मैं कभी नहीं हुआ पर इसको लेकर सबसे ज़्यादा था... किसी भी कीमत पर मुझे इस मुकाबले को जीतना ही था। मुझे लगता है बहुत हो चुका, इन नाजियों को अब अपनी महानता की डींग हॉकनी बंद कर देनी चाहिये। निश्चय है कि अब हिटलर की मुश्किलें शुरू हो चुकी हैं आगे आगे उसको नाकों चने चबाने पड़ेंगे। कोई कदम उठाने से पहले उसको हमेशा श्मेलिंग की याद ज़रूर आयेगी।''
मैक्स श्मेलिंग को पटखनी देने के बाद जर्मनी में तरह तरह की अफ़वाहें फैलाई जाने लगीं जिसमें प्रोपैगैंडा मंत्री और हिटलर के चहेते जोसेफ़ गोएबल्स की ओर से यह अफ़वाह सबसे अहम थी कि जोए लुइस के ग्लोव्स में सीसा भरा हुआ था जिस से मैक्स श्मेलिंग अप्रत्याशित तौर पर घायल हो गया। ऐसी अनेक अफ़वाहों को खुद श्मेलिंग ने जर्मनी जाकर सार्वजनिक तौर पर नकार दिया और औपचारिक तौर पर जोए लुइस के खिलाफ शिकायत दर्ज़ कराने से इंकार कर दिया जबकि जर्मन सरकार और अमेरिका में जर्मनी के राजदूत निरंतर उस पर दबाव डालते रहे। यहाँ तक कि उसने मुकाबले के दौरान अपनी गलतियों और कमज़ोरियों के बारे में विस्तार से बताया और जोए लुइस को ''सीधा जंगल से निकल कर बाहर आया जंगली जानवर'' मानने वालों को करारा जवाब दिया। सबसे दिलचस्प बात यह रही कि श्मेलिंग ने जोए लुइस के हाथों अपनी हार को ''बहुत अच्छा और सकारात्मक'' बताया क्योंकि ''विजय की स्थिति में चाहे अनचाहे हमेशा के लिये मुझे हिटलर के आर्यत्व का सजाऊ नुमाइशी घोड़ा बनना ही पड़ता।'' मैक्स श्मेलिंग के साथ जोए लुइस की दोस्ती अंतिम साँस तक चली। श्मेलिंग जोए के बारे में कहते हैं जोए लुइस रातों  रात ''आज़ादी के प्रतीक बन गये ...इतना ही नहीं उसने नाज़ी खतरे के खिलाफ जाति और रंग के आधार पर समाज को बाँटने वाली दीवार भी ध्वस्त कर डाली।''
डेविड मार्गोलिक ने अपनी किताब ''बियॉन्ड ग्लोरी'' में जोए लुइस के जीवन और समय की गहरी पड़ताल की है और लुइस हमेशा मृदुभाषी, जरुरत से भी कम बोलने वाले और विनम्र बने रहे चाहे उन्होंने जीवन में कितनी ऊँचाई हासिल की हो। रिंग में रहते हुए उन्होंने कभी भी अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी घूर कर नहीं ताका, न ही कभी जीत पर चाल ढाल में अकड़ दिखायी रिंग के अन्दर... बन सँवर कर प्रवेश करने का तो सवाल ही नहीं... शालीनता का साथ उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। स्त्रियों की जहां बात आती थी उनके साथ बर्ताव की जोए की अपनी एक खास शैली थी। गोरी स्त्रियों के साथ तो उन्होंने कभी सार्वजनिक स्तर पर कोई मेलजोल नहीं किया, साथ में फोटो खिंचवाने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। सड़क पर चलते हुए उन्होंने अपनी कार की गति कभी तेज नहीं रखी, खास तौर पर लाल रंग की कार चलाते समय वे तो इसका विशेष ध्यान रखते थे। उस समय प्रेस अक्सर लुइस की बालसुलभ भलमनसाहत, मातृ भक्ति, उनकी माँ का लुइस को मिलने वाले अगाध स्नेह और धर्म परायणता के किस्सों से पटा पड़ा रहता था।''
प्रख्यात लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे बॉक्सिंग के बड़े दीवाने और खुद रिंग में उतर जाने का शौक फ़रमाने वाले लेखक थे। जोए लुइस को जब उन्होंने 1935 में मैक्स बाएर को रिंग में पटखनी देते देखा तो लिखा 'उसका खेल इतना अच्छा था कि नज़रों पर विश्वास करना मुश्किल था पर यह सौ फ़ीसदी वास्तविक...था ...आजतक मैंने अपने जीवन में इतनी $खूबसूरत और सम्पूर्ण फ़ाइटिंग मशीन नहीं देखी थी।'
जॉर्जिया में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर अपने बचपन में उस दिन के साक्षी रहे हैं जिस दिन जोए लुइस ने मैक्स श्मेलिंग को पटखनी दी थी। पड़ोस में रहने वाले लगभग चालीस अश्वेत लोग उनके घर आये और रेडियो पर इस मुकाबले की कॉमेंट्री सुनने देने का आग्रह किया, अपनी अंदरूनी भावनाओं पर लगाम लगाकर पूरी $खामोशी से उन लोगों ने कॉमेंट्री सुनी। जोए के जीत जाने पर भी उन्होंने अपनी खुशी का इज़हार एक गोरे संपन्न किसान के घर बिलकुल नहीं किया पर जैसे ही बाहर निकले उनका व्यवहार बिलकुल बदला हुआ था। इसके बारे में उन्होंने लिखा वे बगैर एक शब्द बोले हमारे अहाते से बाहर निकल गये। सामने की सड़क और रेलवे लाइन पार करने के बाद जब वे अपनी बस्तियों में चले गए तो लगा जैसे एकदम से आसमान टूट पड़ा हो। ...किसी विस्फोट जैसा मंजर था, और यह धूम धड़ाका सारी रात अनवरत चलता रहा।
मैक्स बाएर को बेहद चर्चित मुकाबले में हराने के बाद प्रख्यात अश्वेत विचारक और लेखक रिचर्ड राइट ने पत्रकारिता के अपने पहले विवरण में लिखा : ''चार राउण्ड के मुकाबले में मैक्स बाएर को हरा कर जोए लुइस का हाथ विजेता के तौर पर हवा में लहराया बियर के अड्डों से ...पूल रूम से नाई की दुकानों से तंग अंधेरे कमरों से हर जगह से झुण्ड के झुण्ड नीग्रो निकल कर बाहर आये और सड़कों पर काली छाया की तरह फ़ैल गये ...उनकी आपसी बातचीत में यह भाव था: हम किसी से डरते नहीं हैं, जब समय आयेगा हम भी ऐसे ही लड़ेंगे हम इसी तरहऔ ...जीतेंगे भी।''
अश्वेतों के सम्मान और अधिकारों के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अपनी बेहद चर्चित किताब ''व्हाई वी वान्ट वेट/1964 में जोए लुइस का ज़िक्र इस तरह किया है : ''लगभग पच्चीस साल पहले की बात है एक दक्षिणी प्रान्त ने मृत्युदण्ड की नयी प्रणाली का वरण किया...फांसी के फंदे के स्थान पर विषैली गैस का इस्तेमाल शुरु किया। सबसे शुरु शुरु में चारों ओर से बंद काल कोठरी के अन्दर लटकाया जाता था जिस से वहाँ तैनात वैज्ञानिक पर्यवेक्षक तिल तिल कर मरते हुए कैदी के अंतिम शब्दों को सुन कर निष्कर्ष निकाल सकें कि ऐसी विशिष्ट परिस्थितियों में इंसान कैसा बर्ताव करता है। इस नयी प्रणाली का पहला शिकार एक नीग्रो युवक था... जैसे ही माइक्रोफोन उसकी कोठरी में लटकाया गया, गैस का भभूका ऊपर उठा... और माइक्रोफोन से यह आवाज़ सुनाई पड़ी : मुझे बचा लो जोए लुइस... मुझे बचा लो जोए लुइस... मुझे बचा लो जोए लुइस... मुझे बचा लो जोए लुइस...। ईश्वर नहीं, सरकार नहीं, उदार विचारों के गोरे लोग भी नहीं बल्कि एक नीग्रो जो दुनिया का सबसे कुशल मुक्केबाज था इन आखिरी पलों में उसकी एकमात्र उम्मीद था।
मार्टिन लूथर किंग जिस अश्वेत युवक का ज़िक्र अपनी किताब में करते हैं कहा जाता है उस 19 वर्षीय एलेन फ़ॉस्टर ने 1935 में जोए लुइस को चिट्ठी लिखी थी। मैं यह चिट्ठी काल कोठरी से लिख रहा हूँ और मेरे पास मुश्किल : ''सामने की दीवार पर मैंने आपकी फ़ोटो टांगी हुई है। ...से छह हफ़्ते का समय और है... जब मुझे आखिरी क्षणों में इलेक्ट्रिक चेयर पर बिठाया जायेगा उस समय इस फोटो को देखूँगा तो तकलीफ़ का एहसास थोड़ा कम हो जायेगा। (डेविड मार्कोलिक)''
अमेरिकी अश्वेत चेतना के पुरोधा मैलकम एक्स ने अपनी आत्मकथा में लिखा : ''जब लुइस ने ब्रड्डोक से टाइटिल छीना लैन्सिंग (मिशिगन) के सभी नीग्रो... ऐसे ही अन्य सभी जगहों के नीग्रो भी... अपनी पीढ़ी की महान ऐतिहासिक जातीय विजय की सबसे बड़ी सेलिब्रेशन में उत्तेजना की हद तक जाकर खुशी से झूम उठे।.... जिस किसी नीग्रो लड़के को देखो वही धरती पर कदम रखते ही दूसरा ब्राउन बॉम्बर बनने को उतावला है।''
अश्वेत समाज में मैक्स श्मेलिंग को शिकस्त देने के बाद जोए लुइस एक किंवदंती की तरह लोकप्रिय हो गए थे और बच्चे बच्चे के दिमाग पर जादू की तरह यह बात हावी हो यी थी कि उनके बीच के एक अश्वेत युवक ने अपनी उम्र से काफ़ी बड़े गोरे मुक्केबाज को ऐसा जोरदार घूँसा मारा कि वह घुटनों के बल फ़र्श पर बैठ कर जान बख्श देने की दुआ माँगने लगा... तत्कालीन अमेरिकी समाज के वास्तविक जीवन में इसकी कल्पना करना भी जुर्म था। और वह भी बॉक्सिंग एक ऐसा खेल था जिस पर गोरों ने कब्जा कर रखा था, अश्वेतों के लिए प्रोफेशनल बॉक्सिंग के दरवाज़े कानूनन बंद कर दिए गए थे। एक इतिहासकार ने इसको ''गोरों के अपने आरक्षित खेल में घुस कर एक अश्वेत द्वारा पछाड़ दिया जाना'' कहा है। अश्वेत समाज में ऐतिहासिक मुकाबले और अश्वेत के सामने गोरे का घुटनों के बल लेट जाने के प्रसंग को चटखारे लेकर याद किया जाता था... लोकप्रिय ''ब्लूज़'' की कुछ पंक्तियाँ इस तरह थीं:
''जोए लुइस ने इतने जोर का घूँसा मारा
कि वह घूमने लगा चक्कर खा कर गोल गोल
उसको लगा अब जाना पड़ेगा सीधे अलाबामा। ...हा। हा....
उसने डैम लगाया कि उठ जाये दुबारा
पर जोए लुइस का दाहिना हाथ पड़ा उसकी ठुड्डी पर। ...हा ...हा।
घुटना टेके लेटा रहा... फिर से उठना चाहा
पर गिर पड़ा फर्श पर और भीड़ अचरज से ठठा के हँसने लगी। ...हा।..हा।

''मैं शिकागो से चल कर आया जोए लुइस और मैक्स श्मेलिंग की भिड़ंत देखने
श्मेलिंग वैसे लुढ़का जैसे गुडुप से टाइटेनिक, जब जोए ने मारा उसका तगड़ा घूँसा
बस दो मिनट चार सेकेण्ड की बात थी कि वह गिर पड़ा घुटनों के बल
और कातर निगाहों से ताकने लगा जैसे ईश्वर से कर रहा हो प्रार्थना:
दया करो... अब बख्श दो, हे प्रभु।''

''किंग जोए'' एक बेहद चर्चित म्यूज़िक एलबम था जिसको जोए लुइस को अपूर्व सम्मान देने के इरादे से अपने समय के तीन अश्वेत रचनाकारों ने मिलकर साकार किया था... रिचर्ड राइट ने इसके लिए 13 स्टैंजा का गीत लिखा, जैज़ के अमर गायक पॉल रॉबसन ने अपना स्वर दिया और इसको धुनों में बाँधा काउण्ट बेसी ने। इस गीत में ऐसी पंक्तियाँ थीं:

वह कहीं गया नहीं... वो अब भी बादशाह (किंग) है।...

खरगोश बोला मधुमक्खी से: कैसे इतने गहरे डंक मारती हो?
मधुमक्खी बोली मैं जोए जैसे डंक मारती हूँ... कि सब तिलमिला कर सो जायें...
काली आँखों वाली मटर बोली मकई की रोटी से:
तुम कैसे हो इतनी हट्ठी कट्ठी?
मकई की रोटी बोली मैं आई दूर देश से
जोए लुइस के देश से...

शीर्ष अश्वेत अमेरिकी कवि लैंग्स्टन ह्यूज़ ने जोए लुइस पर कई कवितायें लिखीं... उन्होंने एक कविता में कहा है:

जोए लुइस ऐसा इंसान है अच्छा हो जिसका अनुकरण हर कोई करे
सब लोग जोए जैसे बन जाएँ तो
किसी से कभी न सुनायी पड़े
''थोड़े'' और ''समय की कमी'' का रोना...

जोए लुइस शीर्षक वाली अपनी दूसरी कविता में लैंग्स्टन ह्यूज़ ने कहा :

वे जोए को पूजते थे।
खिचड़ी बालों वाले
एक स्कूल टीचर ने कहा:
जोए को इतनी समझ है कि समझें
उसको लोग भगवान मानते हैं
बहुतेरे भगवान ऐसे हैं
जिनको पता ही नहीं कि वे क्या हैं।

जोए लुइस के जीवन को केन्द्रित कर अनेक नाटक लिखे गये, जिनमें अश्वेत अमेरिकी समाज के शिखर कवि लैंग्स्टन ह्यूज़ के लिखे दो लघु नाटक ''यंग ब्लैक जोए'' और ''द एम-फ्यूहरर जोन्स'' बेहद चर्चित और विवादास्पद रहे हैं। ''यंग ब्लैक जोए'' में जोए लुइस खुद जोए लुइस के साथ सवाल जवाब करते हैं। इस बातचीत में औरों के साथ साथ एक नाज़ी रिपोर्टर भी शामिल होता है जो कहता है: ''किसी अफ्रीकन को बोलना कहाँ आता है... हिटलर ने अपने किताब ''मीन कैस्फ'' में लिखा ही है कि दिमाग तो सिर्फ आर्यों के पास होता है। इसके जवाब में जोए लुइस लैंग्स्टन ह्यूज की कविता सुनाता है :
''तुम्हें इतना भी नहीं मालूम
कि मैं अमेरिका का युवा जोए लुइस हूँ।
हरदम सहृदय, मुस्कुराता और खुश रहता हूँ
आसमान में बादल छा जाते हैं कभी कभी
पर देर तक टिकते नहीं।
मैं आता हूँ... मैं आता हूँ...
मेरा सिर कभी नीचे झुकता नहीं।
सीना चौड़ा करके कदम बढ़ाता हूँ...
फुसफुसा कर नहीं जोर जोर से बोलता हूँ
कि मैं अमेरिका का युवा जोए लुइस हूँ।''

दूसरे नाटक में भी नाज़ी पत्रकार हैं और हिटलर है। हिटलर अश्वेतों के प्रति इतनी घृणा से भरा हुआ है कि बार बार अनार्यों (नन आर्यन) से दूर जाने और ''काले अंधेरे जंगल'' से निकलने की बात दोहराता है जिसके जवाब में एक बॉक्सर मंच पर यह कहते हुए आता है कि ''उसकी पसलियों पर ऐसा तगड़ा मुक्का पड़ा था जिसके बाद उसको धूल चाटनी ही चाटनी थी।''
ओलिवर मायेर का ''जोए लुइस ब्लूज़'' और जॉन चेनॉल्ट तथा फ्रैंक प्रोटो का ऑपेरा ''शैडोबॉक्सर'' भी जोए लुइस के जीवन पर आधारित लोकप्रिय मंच प्रस्तुतियाँ रही हैं।
ख्याति के चरम वर्षों में जोए लुइस युवा होते हुए भी इतिहास पुरुष बन चुके थे और उनको सिर आँखों पर उठाकर रखने वालों में सदियों से अपमान और ज़लालत की घूँट पीने को अभिशप्त अश्वेत समुदाय तो था ही, नाज़ी जर्मनी के हिटर की विस्तारवादी और नस्ली नीतियों का विरोध करने वाला गोरी चमड़ी वाला बड़ा अमेरिकी समाज भी था। यही कारण था कि जोए लुइस सि$र्फ अश्वेत समुदाय में लोकप्रिय नहीं थे बल्कि आम तौर पर अश्वेत समाज के लिए घृणा का भाव रखने वाले गोरे अमेरिकियों के बीच भी उनकी छवि एक ऐसे शक्तिशाली प्रतीक पुरुष के तौर पर थी जो हिटलर को शिकस्त देने के लिए आम अमेरिकी को प्रेरित कर सकता है।
उन दिनों अमेरिकी फ़ौज में अश्वेत सैनिकों की संख्या करीब पाँच लाख थी जो आम अमेरिकी समाज की तरह ही फ़ौज के अन्दर भी शोषण, अपमान और गैर बराबरी के शिकार थे - ऐसे में जोए लुइस की तुलना में कोई और अश्वेत आइकन मिलना मुश्किल था जो अश्वेत सैनिकों के बीच अपनी पहुँच और पैठ बना सके और लड़ाई के मोर्चों पर अमेरिका के लिए कुर्बानी देकर देश का मनोबल ऊँचा रख सके। द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व पीठिका भी तैयार हो रही थी और देशभक्ति प्रमाणित करने के लिए फौज को ज्यादा धन का दान देने का चलन बढ़ रहा था ... जोए लुइस भी बड़ी दरियादिली के साथ फ़ौज के लिए दान दिया करते थे और देश के लिए उनके कंधे से कन्धा मिलाकर लडऩे की इच्छा व्यक्त कर रहे थे। एक एक मुकाबले के लिए जोए लुइस जिन दिनों छह अंकों वाली मोटी राशि प्राप्त किया करते थे उन दिनों उन्होंने रिजर्व सैनिक की हैसियत से मात्र 21 डॉलर प्रति सप्ताह के वेतन पर फ़ौज में दाखिल लिया। हॉलाकि श्वेत अश्वेत के बीच की खाई तब इतनी गहरी थी कि सेना का हिस्सा बनने के बावजूद अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्र नायक जैसा मान प्राप्त करने वाले जोए लुइस को अश्वेतों के लिए निर्धारित जगह पर बैठ कर इन्तजार करने को कहा गया और उनके इंकार करने पर सेना पुलिस उन्हें धकियाते हुए बाहर घसीट ले गयी।
सेना में रहते हुए गनीमत रही कि जोए लुइस के हाथ में राइफल नहीं थमायी गयी बल्कि ''मोरेल ऑफिसर'' का ओहदा दिया गया और दुनिया भर में घूम घूम कर अमेरिकी सैनिकों को प्रेरक उद्बोधन देने का काम सौंपा गया। यद्यपि वे मुहम्मद अली की तरह मुखर वक्ता नहीं थे और लिखा हुआ कुछ पढऩे से परहेज करते थे पर अनायास कही गयी उनकी एक स्वत:स्फूर्त उक्ति अमेरिकी सेना को इतनी उपयुक्त उपयोगी लगी कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उसके पोस्टर छपवा कर पूरी दुनिया में चिपकाये गये : ''प्राइवेट जोए लुइस का कहना है : हम सब अपना आपना काम मुस्तैदी से करेंगे... और हमें युद्ध में विजय जरूर प्राप्त होगी... क्योंकि हम उसी तरफ़ हैं जिस तरफ़ भगवान है।'' आम जनता के बीच जोए लुइस की अपार लोकप्रियता को देखते हुए 1943 में बनी फ़िल्म ''दिस इज़ द आर्मी'' में $खुद अपनी भूमिका में जोए लुइस को रुपहले परदे पर आना पड़ा। फ़िल्म में उनके मुँह से यह कहलाया गया कि ''मुझे सिर्फ इतना मालूम कि मैं अंकल सैम की फौज का हिस्सा हूँ... और हम भगवान का अनुसरण कर रहे हैं।'' दिलचस्प बात यह है कि बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति बने रोनाल्ड रीगन ने भी उस फ़िल्म में अभिनय किया था और जब जोए लुइस की मृत्यु हुई तब रीगन ने सार्वजनिक तौर पर जोए लुइस को ''मेरा दोस्त'' कहा था। दोस्ती का फर्ज़ निभाते हुए रीगन ने राष्ट्रपति के विशेषाधिकार से अमेरिकी सेना के एलीट अर्लिंगटन नेशनल सिमेट्री में जोए लुइस को दफनाने का प्रबंध किया। क्या विडंबना है कि आम तौर पर सफ़ेद संगमरमर की कब्रों के बीच काले संगमरमर पर जोए लुइस का नाम खुदा हुआ है।
अपने चार साल के सैन्य कार्यकाल के दौरान जोए लुइस ने दुनिया के उन तमाम देशों में घूम घूम कर लगभग एक सौ बॉक्सिंग प्रदर्शन शो किये जहाँ अमेरिकी सैनिक तैनात थे। दस्तावेज़ बताते हैं कि बीस लाख से ज्यादा सैनिकों ने जोए लुइस की शक्ति और विनम्रता से साक्षात्कार किये।
amlitintheworld.commons.yale.edu वेबसाइट कहता है कि पिछली शताब्दी का तीस का दशक ऐसा अद्वितीय था कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को अखबारों में जितनी जगह मिली थी जोए लुइस की उस से कहीं ज्यादा चर्चा  हुई थी।
जोए के बेटे जोए लुइस बैरो जूनियर जून 1938 के ऐेतिहासिक मुकाबले का हवाला देते हुए कहते हैं कि सम्पूर्ण अमेरिका इस मुकाबले को नाज़ियों के खिलाफ़ लोकतंत्र की लड़ाई के प्रतीक के रूप में देख रहा था ..ऐसे में जोए लुइस को तत्कालीन परिस्थितियों ने एक अमेरिकी हीरो के तौर पर स्थापित कर दिया।
वे अमेरिका समाज में अपनी सीमारेखा पहचानते थे और कभी उसको लाँघने की जुर्रत नहीं की। भले ही सैनिकों के लिए किसी ऐसे होटल में पूरा फ़्लोर बुक हो जो गोरों के क्षेत्र में हो पर जोए लुइस हमेशा अश्वेत लोगों के लिए तय होटलों में ही जाते थे... अपने अश्वेत होने का उनको भरपूर एहसास था और उनको कभी यह मु$गालता भी नहीं हुआ कि वे आम अश्वेत समुदाय से ऊपर और विशिष्ट हैं... इस मामले में उन्होंने खुद को हमेशा अश्वेत समाज का ही हिस्सा माना।
''अमेरिकी सेना में भर्ती अश्वेत सैनिकों के प्रति रंगभेदी रवैय्या बदलने के लिए जोए लुइस हमेशा प्रयत्नशील रहे। उन्होंने इसके लिए निरंतर संघर्ष किया और इस सिलसिले में अक्सर युद्ध मंत्री के असैनिक सहायक ट्रूमैन गिब्सन से बात कर स्थितियों को बेहतर बनाने का आग्रह करते रहते थे। वे अश्वेत सैनिकों के ठिकानों का दौरा करते और वहाँ के वास्तविक हालातों का जायजा लिया करते, शिकायतें दर्ज़ कराते।''
सेना में अश्वेत सैनिकों की भर्ती के लिए अपील करने को लेकर अश्वेत समाज में जोए लुइस का अच्छा खासा विरोध भी हुआ और यह कहा गया कि सेना जब बाहर और खुद अपने अंदरुनी ढाँचे के अंदर उनके नागरिक अधिकारों की रक्षक नहीं है तो सिर्फ जान गँवाने के लिए उसमें भर्ती क्यों होना। इन आरोपों के जवाब में जोए लुइस बैरो जूनियर का कहना है कि ऐसा नहीं है कि उनके पिता ने अश्वेतों के पक्ष में सामाजिक बदलाव की बात नहीं उठायी... उठायी ज़रूर, पर उस ढंग से ही जिसमें वे सहज थे। जोए लुइस ने बारह सालों तक टाइटिल किसी और को जीतने नहीं दी और एकछत्र राज किया तो लोगों को लगने लगा कि उनकी एक ऊँची हैसियत हो गयी है। उस हैसियत के चलते लोगों को यह उम्मीद बँधने लगी कि उनकी बात ऊँचे स्तर पर मानी भी जायेगी। पर असल जीवन में वे वैसे थे नहीं.. वे बेहद नरम स्वभाव के भोले भाले मृदुभाषी इंसान थे जिनके अपने विचार और विश्वास तो थे पर सार्वजनिक तौर पर वे उनको ज़ाहिर करना पसंद नहीं किया करते थे।
बतौर सैनिक उनके कार्यकाल के बारे में सरकारी दस्तावेजों में उनके व्यवहार की खास बातें दर्ज है, जैसे नमूने के लिए यह : ''सैनिकों के लिए बॉक्सिंग प्रदर्शनी वे इतनी ज्यादा बार करते थे कि अक्सर खुद को घायल कर लेते... यही उनकी जीविका थी, और इसी को वे दाँव पर लगा देते। हजारों की तादाद में सैनिक उनकी बॉक्सिंग देखने के लिए स्टडीएम में इकट्ठा हो जाते और जोए लुइस थे कि उनको निराश होकर कभी लौटने नहीं देते।''
इतिहासकार बर्टन फोलसोम ने अपनी किताब ''न्यू डील और रा डील'' में रुज़वेल्ट के जमाने में टैक्स के नाम पर जोए लुइस को कैसे परेशान और प्रताडि़त किया गया इसके बारे में विस्तार से लिखा है। अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए अपने जिन दो मुकाबलों से कमाए गए धन को जोए ने फ़ौज को दान में दे दिया और उसकी एक पाई भी अपने हाथ में नहीं रखी उस पर भारी भरकम टैक्स लगाकर (शुरू में 79 और बाद में 90 फ़ीसदी, और वह भी हर वर्ष ब्याज जुड़ जाने से बढ़ता जा रहा था) आरोपी बना दिया गया - जिस व्हाइट हाउस को जोए लुइस की बलशाली की दरकार थी उसने लिखत पढ़त में अनाड़ी मुक्केबाज को कोई राहत नहीं दी। यहां तक कि दरियादिली दिखाते हुए जब उन्होंने खुद को और पूरे परिवार को मिली वेयफेयर राशि एकमुश्त डेट्रायट शहर को दान कर दी तब भी उस राशि पर टैक्स लगा दिया गया। हालात इतने संगीन हो गये कि मुकाबला दर मुकाबला वे अपने थैले सीधे टैक्स दफ़्तर में जमा कराते रहे।
हद तो तब हो गयी.. वह राशि भी टैक्स दफ्तर ने फ़ौरन अपने कब्ज़ में ले ली। इस सन्दर्भ में एक मार्मिक प्रसंग है कि प्रोफ़ेशनल बॉक्सिंग को अलविदा कहने के बाद पैसों के लिए जब जोए लुइस फिर से मुक्केबाजी के रिंग में उतरने लगे तो एक कड़े मुकाबले के बाद उनकी माँ ने उनसे मुक्केबाजी छोड़ देने को कहा। जोए का जवाब उनकी आतंरिक पीड़ा और मज़बूरी बयान कर देती है : ''सरकार को मुझसे पैसा चाहिये और उसके लिए मैं जितने घूँसे चला सकूँ चलाऊँगा ही।''
बेहिसाब शोहरत और पैसा कमाने वाले जोए लुइस ने कभी अपने पैसों का ढंग से हिसाब किताब नहीं रखा और जानकारों का कहना है कि शिखर छू लेने के बाद एकबार प्रोफेशनल बॉक्सिंग की दुनिया को अलविदा कह देने के बाद उनके द्वारा वहाँ लौटने और पराजित अपमानित होने के पीछे मुख्य वजह/उनकी आर्थिक तंगी ही रही। उनकी मासूमियत का हाल यह था कि जिस अमेरिका की फौजों के लिए उन्होंने अपने दो महत्वपूर्ण मुकाबलों की थैलियाँ दान दीं उसी देश के रिवेन्यू सर्विस महकमें ने उसी राशि के लिए उनकों बरसों परेशान किया और टैक्स चोरी का आरोप लगा कर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। और तो और अपनी तंगी के दिनों में लुइस ने मामूली स्तर की पहलवानी भी की। तभी तो डोनाल्ड मैकराइ ने उनको और 1936 के ओलम्पिक विजेता जेसी ओवेंस को लक्षित कर के विचारोत्तेजक किताब लिखी हीरोज विदाउट ए कंटी ''अमेरिकाज़ बिट्रेयल ऑफ़ जोए लुइस एण्ड जेसी ओवेंस'' यह किताब एक ऐसे हृदय विदारक ऐतिहासिक प्रसंग का विवरण देती है जिसे दुनिया भर में अमेरिका का झण्डा बुलंद करने वाले दो अश्वेत खिलाडिय़ों की अविश्वसनीय दयनीयता और लाचारी का काला अध्याय कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जुलाई 1938 (श्मेलिंग को हरा कर विश्व टाइटिल जीतने के महज दो तीन हफ़्ते बाद हिटलर को चुनौती देते हुए) बर्लिन ओलम्पिक में चार चार स्वर्ण पदक जीतने वाले दुनिया के सबसे तेज धावक जेसी ओवेंस को पैसों के लिए मुक्केबाजी के विश्व चैम्पियन जोए लुइस के साथ रेस लगानी पड़ी भले ही यह असली रेस न होकर प्रदर्शनी रेस क्यों न हो।
1942 में अपने दो मुकाबलों से कमाये एक लाख डॉलर आनन फ़ानन में अमेरिका सेना को दान कर डालने वाले जोए लुइस की दरियादिली और अक्खड़पन प्रसिद्ध था। इनके बारे में अनेक लेखकों जीवनीकारों ने लिखा भी है। ''शाम को घर से बाहर जाते हुए वह हमेशा चेकबुक लेकर निकलता था और सौ से लेकर हज़ार डॉलर तक का चेक बेहिचक किसी को भी काट कर दे देता था चाहे आँखों में आँसू भर कर उसको कोई कहानी गढ़ कर सुना दे वह... अच्छी पहचान वाला इंसान भी हो सकता था। ...और पहली बार उससे मिलने वाला अजनबी भी। (ल्यू फ़्रीडमैन ...''जोए लुइस द : लाइफ़ ऑफ ए हेवीवेट'')
''मंै जो भी कर रहा हूँ अपने देश के लिए कर रहा हूँ... नेवी के लिए कर रहा हूँ। मुझे नहीं लगता कि यह करने के बाद उनके सामने कोई माँग प्रस्तुत करूँ तो यह उचित होगा... यह तो वैसा ही होगा कि क्रिसमस के दिन आप किसी इंसान को उपहार दें और अगले दिन ही उससे कोई बड़ा फेवर मांगने लगें। मैं नेवी के लिए यह कर रहा हूँ... अब इन्तज़ार करूँगा और देखूँगा कि नेवी हमारे लोगों के लिए कुछ करती है या नहीं।''
1940 में दिए एक भाषण में जोए लुइस ने कहा : ''मैं जितना जानता हूँ उसके अनुसार यह दुनिया का सबसे अच्छा देश है। ...और इसकी सुरक्षा करते हुए लडऩे में मुझे खुशी होगी। मैं जितने अश्वेत लोगों को जानता हूँ उनमें से एक एक व्यक्ति सौ फ़ीसदी अमेरिकी है... मैं भी अपने देश और लोगों के प्रति अंतिम साँस तक निष्ठावान रहूँगा और इनमें से किसी का सिर कभी झुकने नहीं दूँगा। अपने देश के प्रति मेरी वफ़ादारी में कभी कोई कमी नहीं आयेगी। देखो मेरे देश ने मेरे लिए क्या क्या किया ... इसने मुझे विश्व हेवीवेट टाइटिल जीतने का मौका दिया। अंकल सैम देश के प्रति मेरे दायित्व के बारे में भरोसा रखें, यदि विदेशी आक्रमण की कोशिश हुई तो देश की सुरक्षा करने के अपने दायित्व को पूरा करने में मैं कोई कसर नहीं छोड़ूँगा।''
जीवन के आखिरी सालों में जोए लुइस का जीवन भयंकर अभावों और परेशानियों में बीता... घरेलू समस्याओं से लेकर नशाखोरी, अवसाद और टैक्स चोरी जैसे आरोपों से जूझते हुए। ज़ाहिर है अपने प्रोफेशनल जीवन में बे इन्तहाँ पैसा कमाने वाले जोए को अंतिम समय में एक जुआघर में ग्राहकों के साथ हाथ मिला कर पैसों का जुगाड़ करना पड़ा। हाँलाकि जोए के मित्रों और प्रशंसकों ने अपने अपने क्षेत्र के शिखर के लोग थे ... जोए के हाथों पराजित होकर इतिहास बनाने वाले मैक्स श्मेलिंग ने आखिरी साँस तक जोए के साथ अनुकरणीय दोस्ती निभायी और कहा तो यहाँ तक जाता है कि जोए लुइस की मृत्यु बाद के खर्चों में बड़ा हिस्सा मैक्स श्मेलिंग ने दिया था। फ्रैंक सिनात्रा, रिचर्ड राइट (लेखक पत्रकार), लैंग्स्टन ह्यूज़ (कवि), पॉल रॉबसन, लेना होर्ने (गायिका), माइल्स डेविस (ट्रम्पेटियर) जैसे ख्यात लोगों के अतिरिक्त राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन जोए को अपना मित्र मानते थे और उनकी मदद करते थे। जोए की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मार्था ने कहा कि ''जोए पराजित और गरीब इंसान नहीं थे, बल्कि बेहद अमीर थे... उनके पास दोस्तों की अकूत दौलत थी। जिस पल वे बोल देते थे कि एक डॉलर की जरूरत है, लाखों लोग एक एक डॉलर लिए उनके पास पहुंच जाते थे... सो हुए न वे लखपति?''
अपने मित्रों की मदद के लिए जोए लुइस हमेशा तत्पर रहते थे और वक्त पडऩे पर यथासम्भव बगैर आगा पीछा देखे आगे आते थे। उनकी सदाशयता के उदाहरण के तौर पर समकालीन अश्वेत लाइट वेट चैम्पियन (1935-1939) जॉन हेनरी लेविस के साथ उनके मुकाबले को अक्सर याद किया जाता है जब जोए लुइस ने कहा था: ''मैं जान हेनरी के साथ लडऩा नहीं चाहता... वह मेरा बेस्ट फ्रेंड है। अंकल माइक को जाने क्या हो गया है कि वे मुझे अपने अजीज दोस्त को ही मुक्का मारने के लिए कह रहे हैं।'' इतनी अनिच्छा के बाद भी जोए लुइस ने यह मुकाबला लड़ा, सिर्फ इसलिये कि बूढ़े बीमार जॉन हेनरी लेविस को पैसों की दरकार थी।
अपने से बाद की पीढ़ी के विश्व हेवीवेट चैपियन मुहम्मद अली के साथ जोए लुइस का सम्बन्ध कोई मधुर नहीं था हाँलाकि मुहम्मद अली ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनका बचपन जोए लुइस के मुकाबलों के बारे में पढ़ते सुनते बीता है और वे उनके बॉक्सिंग में आने के प्रेरणा पुंज रहे हैं। पर बाद में अली भी उन अश्वेत खिलाडिय़ों और सांस्कृतिक हस्तियों में शामिल हो गए जिनका मानना था कि अमेरिकी समाज में अश्वेत समुदाय को मानवाधिकारों का उल्लंघन कर के जिस हेय दृष्टि से देखा जाता है उनकी ओर से जोए लुइस समझ बूझ कर आँखें मूंदे रहे... उन्हे जो कद हासिल था वहाँ खड़े होकर उनको इस सामाजिक भेदभाव का मुखर विरोध करना चाहिये था।
अश्वेतों के प्रति भेदभाव और अन्याय का जोरदार विरोध करते हुए जब कैसियस क्ले ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और मुहम्मद अली बन गए तो जोए लुइस ने खुल कर इसका विरोध किया था और सामाजिक मुद्दों पर आम तौर पर बहुत कम बोलने वाले जोए ने सार्वजनिक तौर पर कहा: ''मैं अश्वेत मुस्लिमों के बिल्कुल खिलाफ हूँ। ...और कैसियस क्ले के मुस्लिम धर्म अपनाने के भी खिलाफ हूँ। मैं इस विचार के पक्ष में कभी खड़ा नहीं हो सकता कि सभी गोरे लोग दुष्ट हैं।... मैं इसको इस तरह से देखता हूँ कि मुस्लिम अश्वेत बिलकुल वही करने जा रहे हैं जिसका सदी से हम निरंतर विरोध करते आ रहे हैं। वे समाज को नस्लों और जातियों में विभाजित कर देने पर उतारू हैं... और यह प्रतिगामी कदम है... जबकि हम सबके बीच भाईचारे और एकता की बात करते हैं।''
अमेरिका में युवा अश्वेत समुदाय में जोए लुइस को कई बार यह कर आलोचना का निशाना बनाया जाता है कि उन्होंने शिखर पर रहते हुए भी दो टूक लहजे में यह नहीं कहा कि अश्वेतों के साथ भेदभाव और अन्याय किया जा रहा है और इसको रोका जाना चाहिए। उनके बारे में सार्वजनिक तौर पर जितनी सामग्री उपलब्ध है उनसे उपर्युक्त तर्क खारिज करने का कोई विश्वसनीय आधार नहीं मिलता, यह सच है। पर प्रकट रूप में भले ही न हो, परोक्ष रूप में आज बराक ओबामा का व्हाइट हाउस में प्रवेश जिस रास्ते से सम्भव हुआ है, उसमें जोए लुइस एक बहुत जरूरी मील के पत्थर है।
फ़ौज में रहते हुए एक बार अलाबामा के एक सैनिक कैम्प में एक अन्य अश्वेत सैनिक साथी के साथ जोए लुइस बस का इन्तजार कर रहे थे तो अश्वेत सैनिकों के लिए अलग से बनाये हुए बस स्टैण्ड पर न खड़े होकर गोरे बस स्टैण्ड पर खड़े हो गये। उन्हें ऐसा करते देख कर मिलिट्री पुलिस का कोई गोरा सैनिक वहाँ आकर उनको धमकाने लगा और तुरंत वहाँ से हट जाने को बोला। जोए को गुस्सा तो बहुत आया पर संयम न खोते हुए बोले मुझे बस पकडऩी है: इस बात से मेरे चमड़े के रंग का क्या ताल्लुक.. मैंने भी वैसी ही वर्दी पहनी हुई जैसी तुमने। जोए के वहाँ से न खिसकने के फैसले से बात बढ़ती गयी और वह उन दोनों को पकड़ कर हवालात तक ले गया। वहाँ मौजूद अफसर ने स्थिति को सँभाला और एक जीप मँगवा कर अपने अपने कमरों पर जाने का इन्तज़ाम किया। पर देश भर में यह बात अखबारों की मार्फत पहुँच गयी और अंतत: फ़ौज को गोरों और अश्वेतों के लिए अलग अलग बसों की व्यवस्था खत्म करने का फ़रमान जारी करना पड़ा।

अमेरिकी इतिहास में बेसबॉल के गोरे आभिजात्य को धराशाही कर देने वाले महान अश्वेत खिलाड़ी जैकी रॉबिन्सन और जोए लुइस की दोस्ती अनुकरणीय मानी जाती है हाँलाकि दोनों के स्वभाव परस्पर विरोधी रहे। रॉबिन्सन ने जोए लुइस के बारे में कहा : ''मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी हिचक नहीं है कि मेरे लिए और मेरी तरह ही दूसरे खिलाडिय़ों के लिए खेल के मैदान में अनुकूल स्थान बनाने में जोए लुइस का अविस्मरणीय योगदान है - उन्होंने रिंग के अन्दर रहते हुए या बाहर सार्वजनिक जीवन में जैसा आचरण और उदाहरण पेश किया उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। हम सबको जोए के कंधे थपथपाने ही पड़ेंगे कि ऐसा करके उन्होंने हमारे लिए अनुकूल और प्रेरणास्पद मार्ग प्रशस्त किया।''
रॉबिन्सन के बारे में जोए का कहना था कि ''वह किसी बात को अन्दर से कसमसाते  हुए चुपचाप सुन लेने वाले लोगों में बिलकुल नहीं था... मुझमें उनके जैसा साहस नहीं था, सो मैं उनकी तरह बेबाकी के साथ सबके सामने मन की बात कह नहीं पाता था... यह भी तय था कि मैं उनकी तरह अच्छा वक्ता नहीं था। ...अपनी बात कहते हुए वह कभी असमंजस में नहीं रहते और सही को सही और गलत को गलत कह पाने की हिम्मत उनमें थी।''
इतिहासकार जेफ्री साइमन्स जोए लुइस के बारे में कहते हैं कि उनके मैनेजरों ने जोए के लिए नियम निर्धारित किये थे कि वे किसी गोरी स्त्री के साथ फोटो खिंचवायें, अपने प्रतिद्वंद्वी को किसी भी स्थिति में घूरें नहीं और सार्वजनिक तौर पर कभी भी दीन हीन न दिखायी दें। उनकी छवि निष्ठापूर्वक बाइबिल पढऩे वाले, माँ के लाडले और आज्ञाकारी, ईश्वर पर भरोसा रखने वाले इंसान के तौर पर तो प्रस्तुत की ही गयी थी, साथ भी प्रचारित किया गया कि वे अश्वेत तो हैं पर उतने काले भी नहीं हैं। अपने सार्वजनिक आचरण के सिलसिले में जोए ने खुद बताया कि ''मैं अपनी नाक साफ़ सुथरी रखता था, और जेंटिलमैन की माफिक बर्ताव करता था... जैसे अमेरिकी लोग करते हैं। यह मेरा सार्वजनिक बर्ताव ही है जिसने अश्वेत लोगों के प्रति गोरे अमेरिकियों का रवैय्या बदलने का काम किया।'' जोए लुइस का यह नरम व्यवहार ही गोरे अमेरिकी समाज में उनकी स्वीकार्यता की वजह बना।
प्रोफेशनल बॉक्सिंग को अलविदा कहने के बाद जोए लुइस के जीवन को केंद्रित करते हुए कुछ फ़िल्में बनायीं गयीं... द नीग्रो सोल्जर, द जोए लुइस स्टोरी और द फ़ाइटर नेवर एंड्स इनमें प्रमुख हैं। अनेक फिल्मकारों ने अमेरिकी समाज में उनकी अनुकरणीय भूमिका को रेखांकित करते हुए फिल्में बनायी .. कमिंग टु अमेरिका, हार्लेम नाइट्स, रॉकी मार्सियानो और डी पी इनमें प्रमुख हैं।
जोए लुइस के बेटे ने पिता के बारे में कहा ''पिता गोरे और अश्वेत अमेरिका के बीच एक सेतु की तरह थे... उन्होंने गोरे अमेरिका को यह समझाया कि वे भी औरों की तरह एक अमेरिकी हैं न कि सिर्फ अश्वेत। विश्व हैवीवेट टाइटिल जीत... कर के गोरे अमेरिका के पहले अश्वेत हीरो बन गये।
''मुक्का'' (द फ़िस्ट) एक आम अमेरिकी नागरिक के दैनिक बोलचाल में जोए लुइस के डेट्रॉयट स्थित स्मारक का नाम है हालांकि आधिकारिक तौर पर इसे ''द मॉन्युमेंट टु जोए लुइस'' कहा जाता है। 1986 में साढ़े तीन लाख डॉलर का कमीशन देकर ''स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड'' पत्रिका ने मेक्सिको से अमेरिका आकर बस गये मूर्तिकार रॉबर्ट ग्राहम से यह बेहद चर्चित... विवादास्पद कहें तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा... स्मारक बनवाया था। एक तिपाये स्टैंड से लटकते हुए चौबीस फुट लम्बे और आठ हजार पाउंड वज़न के काँसे से बने मुक्के को लेकर शुरू से बहुत विरोधाभासी विचार सामने आते रहे... कुछ को यह जोए लुइस के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाने में असमर्थ लगता है तो कई लोगों को यह अधिसंख्यक गोरे अमेरिकियों के विरुद्ध भड़काने वाला स्मारक लगता है। मूर्तिकार ग्राहम का इस बारे में कहना था कि ''हर दर्शक अपने अपने अनुभव को इस स्मारक के साथ जोड़ कर देखता है... मैं चाहता भी यही था कि इसको किसी संकुचित दायरे में बाँध कर न देखा जाये। मैं इसको किसी खास व्यक्ति या घटना के रूप में न चित्रित कर के एक प्रतीक के रूप में स्थापित करना चाहता था।''
अश्वेत मूर्तिकार एड हैमिल्टन को रॉबर्ट ग्राहम का बनाया जोए लुइस का स्मारक इतना नागवार गुज़रा कि उन्होंने उसी के पास एक लुइस की दूसरी प्रतिमा (काँसे की बारह फुट ऊँची) बनायी जिसमें मशहूर मुक्केबाज़ अपनी मुक्केबाजी की चिर परिचित मुद्रा और पोशाक में नज़र आते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने ''मुक्के'' के विरोध में वैकल्पिक प्रतिमा यह सोच कर बनाई कि इस से अश्वेत समुदाय खुद को जोड़ कर देख सके।
कोई दस साल पहले डेट्रॉयट के दो गोरे पुलिस अफ़सरों की हत्या कर दिए जाने के बाद एक दिन सुबह सुबह लोगों ने देखा कि सांवले रंग के मुक्के (स्मारक) को सफ़ेद पेंट से पोत डाला गया है और उस पर जो लिखा गया था उससे साफ़ था कि यह कारस्तानी अश्वेतों को गोरों से पंगा न लेने का सन्देश देने के लिए की गयी थी। वहीं उन दो मृत अफ़सरों की फ़ोटो भी रखी हुई मिली। इस कुकृत्य के बाद पकड़े गए दो युवकों ने अश्वेत समुदाय के प्रति अपनी घृणा की बात स्वीकार भी की और कहा कि यह स्मारक जातीय हिंसा के लिए प्रेरित करता है। मूर्तिकार रॉबर्ट ग्राहम ने इस घटना के बाद कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि जोए लुइस स्मारक में जान और भावना है तभी तो लोगों में यह अब भी आवेश उत्पन्न करता है भले ही यह बेवकूफी भरा हो।

ज़ोए लुइस के प्रसिद्ध उद्धरण
अपने कैरियर के शिखर पर जब जोए लुइस थे तो एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया कि आपको भी किसी चीज़ से डर लगता है? जोए ने फ़ौरन जवाब दिया ''बिलकुल, लगता है। ...आसमान में जब बिजली चमकती है तब और जब मैं किसी डेंटिस्ट के पास जाता हूँ तब मुझे उससे डर लगता है।''
''दुनिया खूबसूरत बने इसके लिए ज़रूरी है कि हम भिन्न भिन्न प्रकार के लोगों को उसमें स्थान दें।''
''जब मैं बॉक्सिंग करता था तब पचास लाख डॉलर कमाये और इसको छोड़ कर बाहर आया तो कंगाल था... इतना ही नहीं सरकार ने मेरे उपर दस लाख डॉलर का टैक्स ठोक रखा था।''
''मैं अपनी मौत के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता पर इस बात की बाजी ज़रूर लगा सकता हूँ कि घुटनों के बल झुक कर नहीं मरूँगा।''
''मुझे उम्मीद है कि आज के ज़माने में भी मेरी माँ सरीखी स्त्रियाँ होती होंगी। उन्होंने मुझे हमेशा सिखाया है कि वही करो जो सही हो... खुद पर गर्व करो... उन्होंने सिखाया कि धन दौलत की तुलना में ऊँचा सम्मानजनक नाम है।''
''अमेकिी नीग्रो समुदाय धीरे धीरे जातीय पूर्वाग्रहों के िखलाफ लड़ाई जीत रहा है। कठिन संघर्ष था पर मुझे लगता है कि हमारे जीते जी इसका फ़ाइनल राउण्ड संपन्न हो जायेगा।''
अपनी आत्मकथा ''जोए लुइस : माई लाइफ़'' में जोए ने लिखा : ''मैं नहीं जानता लोग ऐसा कैसे मानते हैं कि स्त्रियाँ दुर्बल और लाचार (वीकर सैक्स) होती हैं ....और शर्मीली भी। हे भगवान, औरतें ...फ़िल्मी हीरोइनें... चाहे वे गोरी हों या अश्वेत... पास आकर सीधे मेरे ऊपर चढ़ी जाती हैं। ऐसे में वीकर सेक्स मैं हुआ या वे? हाँ, जो भी अपनी आँखों में चमक लेकर मुझ तक आयी ऐसी किसी कमसिन से मैं खुद को दूर नहीं रख पाया... मेरी हमेशा हमेशा से यह $ख्वाहिश रही कि काश मेरे हाथ में उतनी ज्यादा दौलत भी होती जितनी बड़ी तादाद में औरतें रहीं - तो मैं सचमुच में अमीर आदमी होता।''
पर्ल हार्बर पर जापान के अप्रत्याशित आक्रमण के बाद अमेरिका के आम नागरिकों के मन में युद्ध का सीधा शिकार बन जाने की आशंका घर करने लगी थी पर उन्हीं दिनों जोए लुइस के अमेरिकी फ़ौज के साथ नज़दीकियों की खबरें आनी शुरू हुई। जोए लुइस का उन्हीं दिनों जापानियों को लक्षित कर कहा गया यह जुमला खूब लोकप्रिय हुआ : ''अमेरिका जापान को बड़ी आसानी से हरा देगा... उसके सैनिक एकदम लाइटवेट हैं, उनके पास है हमारे जैसे कोई हैवीवेट?''
एक टीवी प्रोग्राम में जोए लुइस और मुहम्मद अली दोनों भाग ले रहे थे तो मुहम्मद अली ने चुटकी लेते हुए कहा: ''मैं ऐसा सपना देखना चाहता हूँ जिसमें मैं जोए लुइस के साथ मुकाबले में उतरूँ और उनको हरा दूँ।'' बगैर एक पल भी जाया किये जोए ने पलट कर जवाब दिया: ''ओये... कभी ऐसा सपना देखने की जुर्रत भी मत करना।''

विश्व चैम्पियन
- माया एंजेलु

(चैंपियन ऑफ़ द वल्र्ड माया एंजेलु की आत्मकथात्मक पुस्तक आई नो व्हाई केज्ड ''बर्ड सिंग्स'' का उन्नीसवां अध्याय के मुहावरे से लिया गया है। अपने बचपन को याद करते हुए लेखिका यह बयान इस शीर्षक अध्याय में आये से.. करती है कि कैसे उनका और उनके बड़े भाई बेली का बचपन अरकंसास प्रान्त के एक शहर में बीता। वहाँ उनके जीवन की धुरी थी दादी और चाचा विली की दूकान जहाँ आस पास का अश्वेत समुदाय इकट्ठा हुआ करता था। जिस रात की यह कहानी है उस रात जोए लुइस जो... अपने समुदाय के हीरो थे और ब्राउन बॉम्बर के नाम से विख्यात थे एक ...गोरे बॉक्सर के साथ हेवीवेट बॉक्सिंग टाइटिल जीतने के लिए मुकाबला कर रहे थे। एंजेलु ने जिस दिलचस्प और जीवंत अन्दाज में इस घटना का वर्णन किया है उससे यह बखूबी अनुमान लगाया जा सकता है कि उस खास स्थान और कालखण्ड में अफ्रीकी अमेरिकी होना क्या मायने रखता था।)
स्टोर के चप्प चप्पे पर लोग काबिज़ हो गए थे, तिल धरने को भी जगह नहीं बची थी फिर भी लोग थे कि आते जा रहे थे और किसी तरह से दीवार के पास खुद को ठूँसते जा रहे थे। विली अंकल ने रेडियो की आवाज जितनी संभव थी पहले से ही उतनी ऊँची कर रखी थी जिस से पोर्च के बाहरी हिस्से में खड़े लोग भी आवाज़ अच्छी तरह सुन पायें... एक भी शब्द उनसे छूट न जाये। औरतें जहाँ जो मिला उसी पर अटी पड़ी थीं... किचेन की, डाइनिंग रूम की कुर्सियों पर, स्टूलों पर और औंधे रखे काठ के बक्सों के ऊपर। नन्हें बच्चों की मौज थी, जिसकी भी गोद सामने दिखाई देती वे उस पर कब्ज़ा कर लेते। मर्द शेल्फों पर झुके हुए थे... या सामने वाले श्रोता पर।
अज्ञात आशंकाओं से भरे मनों में हर्षोल्लास की लौ कभी कभार ऐसे चमक जाती थी जैसे काले मेघों में आच्छादित आकाश में अनायास बिजली की चमक दिखायी दे जाये।
''इस मुकाबले को लेकर मेरे मन में कोई डर नहीं है... उस पटाखे को जोए तो ऐसे मसल देगा जैसे सड़क चलते कीड़े मकोड़ों की गति होती है।''
''जोए तो उसकी ऐसी पिटायी करेगा कि अंत में उसकी माँ याद आ जायेगी।''
फिर इन गपबाजियों के बंद होने का समय आ पहुँचा... रेज़र ब्लेड के विज्ञापन वाला गाना भी रोक दिया गया...ज़ाहिर है अब मुकाबला शुरू हो गया था।
''माथे पर एक जोरदार घूँसा'' स्टोर में इकट्ठा भीड़ जोरदार ढंग से गुर्राई।
''सिर पर बाँयी तरफ़... फिर दाँयी तरफ़... और ये अब दूसरी बार बाँयी तरफ़ सिर पर'' किसी ने मुँह से मुर्गियों की तरह आवाज़ निकाली पर लोगों ने फ़ौरन उसको घुड़क कर चुप करा दिया।
दोनों प्रतियोगियों के बीच गुत्थम गुत्था जारी है, लुइस उसकी गिरफ़्त से निकलने की कोशिश में है।
पोर्च में खड़ा कोई मज़ाकिया बंदा बोला पड़ा : ''अब देखो वो गोरा नीग्रो को कैसे गले लगा रहा है।''
''रेफ़री को रिंग के अंदर घुसना पड़ा दोनों प्रतियोगियों को छुड़ाने के लिए... पर लुइस ने मुकाबला करने वाले को परे धकेल दिया है... और यह क्या, उसकी ठुड्ढी पर ज़ख्म हो गया है। वह लडख़ड़ाने लगा है... और धीरे धीरे पीछे खिसक रहा है। लुइस ने उसको पकड़ लिया और एक जोरदार घूँसा जबड़े की बाँयी ओर जड़ दिया।''
लोगों की फुसफुसाहटों का रेला दरवाज़े से बाहर निकल कर अहाते भर में फैलने लगा।
''फिर से बाँयी ओर.... और ये उसी तरफ़ एक बार और... लुइस ने मुकाबले वाले बलशाली मुक्केबाज का दाँया हिस्सा बचा दिया है।''
स्टोर से उठती हुई कानाफूसी देखते ही देखते एक गर्जना के रूप में तब्दील हो गयी थी कि तभी अगले राउंड की घंटी बज उठी... एनाउंसर की आवाज़: ''लेडीज़ एंड जेन्टिलमेन... यह तीसरे राउंड की घंटी है।''
जैसे ही मैं लोगों के बीच से किसी तरह रास्ता बनाती हुई स्टोर के अंदर दाखिल हुई यह देख कर हैरान रह गयी कि एनाउंसर जिनको ''लेडीज़ एंड जेन्टिलमेन'' कह कर सम्बोधित कर रहा है क्या उनके बारे में जानता भी है... दुनिया भर में पसीना बहाते हुए, एक अश्वेत की जीत के लिए दुआ माँगते हुए जो लोग अपने ''मास्टर्स वॉयस'' के साथ चिपके पड़े हैं वे सब के सब नीग्रो हैं।
स्टोर में इकट्ठा लोग बीच बीच में कभी आर सी कोला की जो कभी डॉ. पेप्पर्स की... या फिर हायर्स रुट बियर की माँग कर देते थे... दरअसल उत्सव तो जीत के बाद मनेगा। उसके बाद तो वो बुज़ुर्ग औरतें भी कोई न कोई सॉफ्ट ड्रिंक खरीदेंगी जो जीवन भर बाल बच्चों को उनसे नज़रें फेरे रहने की हिदायतें देती रही हैं। और खुदा की फ़जल से यदि ''ब्राउन बॉम्बर'' की जीत हो गयी तब तो मूँगफली वाली पैटीज और बेबी रुथ खरीदने की झड़ी लगा देंगी।
बेली और मेरे हाथ में जो सिक्के थे उनको हमने कैश रजिस्टर के ऊपर धर दिया... विली अंकल मुक्केबाजी के मुकाबलों के दौरान हमें ऐसा कोई काम करने की छूट नहीं देते जिनसे उनकी बिक्री पर किसी तरह का असर पड़े। सारा माहौल बेहद शोरगुल वाला था और ऐसा लग रहा था जैसे कुछ उथल पुथल होने वाला है। जैसे ही अगले राउंड के लिए घंटी बजी हम दोनों दम साधे लोगों के हुजूम को चीरते हुए बाहर बच्चों के झुण्ड में शामिल हो गये।
''उसने लुइस को रस्से की ओर धकेल दिया है... अब उसके बदन के बाँये हिस्से में मुक्के मार रहा है... और अब दाँयी पसलियों के ऊपर। फिर बदन के दाँये हिस्से पर... और ऐसा लग रहा है जैसे निचले हिस्से को निशाना बनाया। हाँ तो लेडीज़ एंड जेन्टिलमेन, रेफरी के बार बार मना करने के बाद भी वो लुइस के ऊपर लगातार घूँसे बरसाता जा रहा है... एक बार फिर उसने बदन पर घूँसा मारा, लगता है लुइस को धूल चटा कर ही छोड़ेगा।''
हमारी कौम के मुँह से समवेत स्वर में गुर्राहट निकल गयी... आिखर हमारे लोग ही हार का मुँह देख रहे थे। लगता था जैसे एकबार फिर से किसी अश्वेत को क्रूरतापूर्वक गोद गोद कर मारा जा रहा हो... और क्षत विक्षत लाश को दहशत फैलाने की नीयत से पेड़ पर टाँग दिया गया हो। कोई और अश्वेत औरत बीच रास्ते से अगवा कर ली गयी हो और झाडिय़ों में ले जाकर उसकी आबरू लूट ली गयी हो।  किसी अश्वेत बच्चे को कोड़ों से मार मार कर हमेशा के लिए गूँगा बना दिया गया हो। किसी नौजवान का पीछा करने के लिए भूखे खूँखार कुत्तों को सँकरी फिसलनभरी गलियों में छोड़ दिया गया हो। कोई गोरी मालकिन अपनी अश्वेत बाई को छोटी मोटी भूल के लिए थप्पड़ थप्पड़ मारे जा रही हो।
स्टोर में एकत्र हुए मर्द दीवार से अलग हट कर दम साध कर खड़े हो गये थे। औरतें बच्चों को अपनी गोद में भींच रही थीं... पोर्च में मुस्कुराहटें बिखरने लगी थीं और धक्का मुक्की शुरु हो गयी थी... औरतों के जमा होने पर ज़ाहिर है थोड़ी देर को आपस में चुहलबाजी और चिकोटीबाजी भी होनी ही थी पर यह सब सहज बर्ताव मिनट भर भी नहीं चल पाया... अचानक लगा जैसे दुनिया का अंत हो गया हो। जोए यदि हार गया तो गुलामी फिर से वापस लौट आयेगी और हम सब असहाय हो जायेंगे। हमारे ऊपर अक्सर लगाये जाने वाले लांछन सही साबित हो जायेंगे कि हम इंसानों की सबसे नीची नस्ल हैं... लंगूरों से बस एक सीढ़ी ऊपर। बात सही ही थी कि हम लोग मूरख, कुरूप, आलसी, गंदे, बदकिस्मत लोग हैं और सबसे बढ़कर यह कि ईश्वर भी हमसे घृणा करता है... उसने हमें सबसे निकृष्ट कामों का शाप देकर धरती पर भेजा है... हमेशा हमेशा के लिये हमारा जीवन ऐसे ही नरक में गुज़रना है।
हमारे साँसे थम गयी थीं... उम्मीद की सारी किरणें अस्त हो गयीं... हम दम साधे प्रतीक्षा करने लगे।
''वह रस्से पर गिर पड़ा लेडीज़ एंड जेन्टिलमेन... अब वह रिंग के कोने की ओर घिसट रहा है।'' संभलने और साँस लेने का वक्त नहीं था। बस अब सामने तो विनाश मुँह बाये खड़ा था।
''अब तो ऐसा लग रहा है जैसे जोए पर पागलपन सवार हो गया हो.. उसने मुकाबला करने वाले का सिर बाँये और दाँये दोनों तरफ से पकड़ दिया है। पहले उसके बदन पर बाँयी ओर घूँसा मारा... फिर उसी तरफ़ माथे पर... अब जोए का घूँसा उसके माथे पर बाँयी तरफ़ पड़ा। उसकी दाँयी आंख से खून का फ़व्वारा फूट पड़ा और वह खुद को सही तरह से सँभाल नहीं पा रहा है। लुइस उसके बदन के चप्पे चप्पे पर घूँसे मारे जारहा है... रेफरी रिंग के अंदर घुस आया पर लुइस रुकने का नाम नहीं ले रहा... उसने इस दफ़ा मुकाबला करने वाले को बाँयी तरफ से मारना शुरु कर दिया... ठुड्ढी के ऊपरी हिस्से से भी खून बहना साफ़ दिखायी दे रहा है। और अब मुकाबला करने वाला फ़र्श पर लुढ़क पड़ा... वह कैनवस पर धराशायी हो गया लेडीज़ एंड जेंटिलमेन।''
एकदम से औरतें उठकर खड़ी हो गयीं और मर्द रेडियो के और पास खिसकने लगे.... बच्चे फ़र्श पर उतर गये।
''हिज़ मास्टर्स वॉयस'' एक चिर परिचित विज्ञापन का नारा था जिसके साथ एक पिद्दी के कुत्ते को काम लगा कर फ़ोनोग्राम सुनते हुए दिखाया गया है (आज भी आर सी ए के कई रिकार्डों पर यह फ़ोटो दिखायी दे जाती है।)
''अब रेफरी गिनती गिन रहा है... एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात। ...इन्तजार कर रहा है, हो सकता है मुकाबला करने वाला दुबारा उठ खड़ा हो।''
स्टोर में इकट्ठा सभी मर्द एक स्वर में बोल पड़े : ''नो''
''आठ, नौ, दस....'' रेडियो सुन रहे श्रोताओं के बीच में इक्का दुक्का आवाज़े उठीं पर वहाँ व्याप्त जबरदस्त दबाव के चलते उन्होंने खुद को सँभाल लिया।
''लेडीज़ एंड जेन्टिलमेन, यह मुकाबला यहीं समाप्त होता है...हम सब यह माइक रेफ़री को सौंपते हैं... रेफ़री यहीं सामने खड़ा है... उसने 'ब्राउन बॉम्बर' का हाथ थामा हुआ है। ...लीजिए अब आप आगे उन्हीं से सुनिये।...''
इसके बाद हमें चिर परिचित भारी भरकम आवाज सुनायी दी जिसने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया: ''वो जीत गया... और विश्व हेवीवेट चैम्पियन बन गया... जोए लुइस।''
विश्व चैम्पियन... एक अश्वेत लड़का... किसी अश्वेत माँ का बेटा। वह दुनिया का सबसे ताकतवर इन्सान है। जिसे देखो वही कोका कोला इस तरह गटक रहा जैसे कोक न हो अमृत हो, और कैंडी बार ऐसे खाये जा रहा था जैसे क्रिसमस का त्यौहार आन पड़ा हो। कुछ लोग स्टोर के पिछवाड़े जाकर अपनी सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलों में सफ़ेद सा कुछ उड़ेल लाये थे और उनकी देखादेखी कुछ बच्चे भी ये ही कर रहे थे। कई लोग अपनी साँस ऐसे छोड़ रहे थे जैसे धकाधक सिगरेट पी रहे हों।
लोगों को स्टोर से निकल कर घरों की ओर लौटने में कम से कम एक घंटा और लगेगा। जिनके घर ज्यादा दूर थे उन्होंने वहीं कहीं रात में रुक जाने का इन्तज़ाम कर लिया था... कोई अश्वेत आदमी और उसका परिवार दूर दराज किसी सड़क पर अकेले संकट में पडऩे का जोखिम मोल लेना नहीं चाहता था और वह भी उस दिन जिस दिन जोए लुइस ने ताल ठोंक कर सबके सामने साबित कर दिखाया कि दुनिया में हम सबसे ताकतवर कौम हैं।


पहल के सुपरचित लेखक

Login