ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न*

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    जनवरी 2015
श्रेणी कहानी
संस्करण जनवरी 2015
लेखक का नाम मिथिलेश प्रियदर्शी





उन तमाम संस्कृतिकर्मियों और लोगों को याद करते हुए जो फर्जी आरोपों में जेलों में क़ैद हैं

इस अरबों की आबादी वाली दुनिया में एक बड़ी संख्या उनकी है, जो थोड़ी खुशियों के बीच जन्म लेते हैं, चंद उम्मीदों के सहारे पाले जाते हैं, कुछ आशाओं के साथ बड़े होते हैं, और अंत में तयशुदा गुमनामी में एक जरूरी मौत मर जाते हैं। कल पैदा हुए, आज बड़े और कल मर गए। दुनिया की पैदाइशी फितरत कि वह केवल शक्तिशालियों की बात करती है और दुनियावी मुहावरे में इनका कुछ भी उल्लेखनीय नहीं होता, न जन्म, न जीवन, न मृत्यु, जीवन के खतरनाक मोड़ों से ये इतने सताये हुए होते हैं कि इनकी पूरी उम्र बच-बच के जीने में निकल जाती है।
एमैन्यूल इसी भीड़ का एक सदस्य था, जिसे उसके परिवार प्रेमी पिता फैलिक्स भेंगरा ने सिखाया था, जीवन सावधानी से जीने की चीज है, जैसे हम गोभी के पौधों को संभालते हैं, जैसे अपनी मुर्गियों को बड़ा करते हैं। जीवन कच्ची शराब की तरह पी जाने के लिए नहीं है। इसे सेम के लतरों की तरह अच्छे से ऊपर की ओर चढ़ाना पड़ता है। संवारना पड़ता है।
बांस के पेड़ों से थोड़ी ही मोटी मौसी सिसिलिया जिसने अपनी बड़ी बहन बान्डो के जामुन के पेड़ से गिर कर मर जाने के बाद एमैन्यूल को पाला था, कहती थी, हम मगरमच्छों से भरे तालाब में जी रहे हैं, हमारा गांव तालाब के उस कोने में हैं, जहां मगरमच्छ नहीं हैं, पर शहर, जहां तुम जा रहे हो, हर जगह वे मौजूद होंगे, तुम्हें होशियार रहना होगा। प्रभु ने हमें जीवन एक काम को पूरा किए जाने की तरह सौंपा है, हमें इसे बिना उबे, बिना क्रोध किए पूरा करना है।
अब्राहम और एमैन्यूल जब दुनियावी समझदारी से कई साल छोटे थे, जब उन्हें लगता था, केकड़े भी उन्हीं के साथ बड़े होंगे और उन्हीं के बारबर सोएंगे, हाथी बड़े होकर पहाड़ बन जाएंगे, तब से पिता फैलिक्स उन दोनों को हर रात की नींद से पहले समझाते थे कि उन्हें उनके दादा और दादा को उनके दादा ने ठीक इसी तरह हर रात की नींद से पहले समझाया था कि हमें नींद में बहुत नीचे तक नहीं उतरना है, हमें जागते हुए सोना है, नींद हमें लापरवाह कर देती है। एक रोज शैतान, जब वे अपना सब कुछ खा कर खत्म कर लेंगे, हमारी ओर जरूर आएंगे। हमें सावधान रहना होगा। सोते हुए हम अपने जंगल, भगत पहाड़ और इकलौती नदी जोपो को नहीं खो सकते।
फादर सोमोर के बहुत समझाने और पैसों से सहायता किए जाने के बाद एमैन्यूल दर्जनों ऐसी सीख और हिदायतों के साथ शहर में बारहवीं पढऩे गया था। एमैन्यूल को बस पर चढ़ाने के रोज चिंतित पिता ने बहुत ज़ोर की बारिश के बावजूद धान के लिए खेत नहीं तैयार किया था, बटेर पकडऩे गया बड़ा भाई अब्राहम उदासी में एक भूरा कठफोड़वा पकड़ लौट आया था, रोती हुयी मौसी खौलते पानी में मकई का अनाज डालना भूल गयी थी और बाद में उसने खाने के समय सबको नमक लगा कच्चा पपीता परोसा था। और एमैन्यूल, वह बस में सबसे पीछे कोने की सीट पर बैठा, जागती आंखों से चौकन्ना, शहर की जिंदगी और लिसा के बिना कुछ कहे छोड़ जाने के बारे में सोच रहा था। इसी बस से एक साल पहले लिसा ब्रदर सेबेस्टियन के साथ गांव छोड़ चली गयी थी।
एमैन्यूल पर बात करना किसी खरगोश पर बात करने की तरह है, जो बाहर निकलने के पहले अपने कानों को पूरी कायनात की आवाजों को सुन लेने की हद तक खड़ा करता है, दुनिया का चप्पा-चप्पा देख लेने की हद तक आँखें नचाता है, और रोम-रोम में चौंकन्नापन और डर लिए जितनी जल्दी हो सके हरी दूबों को अपने छोटे से मुंह में समेटकर तेज़ी से अपनी झाडिय़ों में वापस लौट आता है।
वह एक आसान से हिज्जे वाले शब्द की तरह आसान चेहरे वाला लड़का था। वह फादर द्वारा जुटायी गई कुल जमा समाजशास्त्र, भूगोल और इतिहास की एक-एक पुरानी किताबें, दो जोड़ी कपड़े और एक जोड़ी सस्ते जूते का मालिक था। वह जब अपने छोटे पैरों में बड़े हाँफते जूतों के साथ चलता, लगता उसमें किसी अनजान बीमारी से ग्रसित मरीज की जम्हाई और मरने का इत्मीनान भरा है।
शहर के मदर मरियम कॉलेज में फादर ने उसका नाम लिखवाया था। वह फादर के स्कूल में ही पढ़ा था, जो उसके गाँव से दस किलोमीटर दूर था। फादर ये महसूस कर उसे बहुत प्यार करते थे कि एमैन्यूल की वजह से ही उनकी जान बची है। उन्हें शहर के डाक्टरों ने बताया था, उन्हें एक दुर्लभ बीमारी है। इसमें उनकी आँते रोज दो सेंटीमीटर बढ़ती जांएगी और एक रोज बढ़कर नाक-कान-मुंह या मलद्वार से बाहर निकल पड़ेंगी, ऐसा शहर में चिमनियों से निकलने वाले काले धुओं से हो रहा है, उसकी आंतों को इससे एलर्जी है और वो इसके प्रभाव से फैलती हैं। डाक्टरों ने एलर्जी की कुछ महंगी नीली दवाओं के साथ उन्हें सलाह दी थी कि जितनी जल्दी हो वे शहर छोड़ किसी गांव में आजीवन बस जाएं और दूसरा कि करीब दस साल लगातार बकरी का दूध पीयें। और फिर फादर ने शहर से बहुत दूर जंगलों से घिरे इलाके के एक मात्र कस्बे में चर्च की मदद से सिस्टर मेरियान के साथ एक स्कूल की स्थापना की थी, जहां कई साल बाद ब्रदर सेबेस्टियन भी पढ़ाने आए थे। कुछ समय बाद बकरी का दूध ढूंढते हुए फादर जंगलों के  बीच स्थिति एमैन्यूल के गांव पहुंचे थे, जहां जल्द ही उनकी एमैन्यूल के पिता फैलिक्स से दोस्ती हो गयी थी और अपने दुर्लभ आंतों की बीमारी के बारे में बताने पर एमैन्यूल के पिता ने एमैन्यूल को सुबह-सुबह बकरी के दूध के साथ कस्बे भेजना शुरू कर दिया था। फादर ने नौ साल के एमैन्यूल और आठ साल के लिसा सहित गांव के लगभग इतने ही साल के पांच बच्चों का नाम अपने स्कूल में लिख लिया था, एक ऐसा स्कूल, जहां किसी खास रंग के ड्रेस और जूते पहनने की जरूरत नहीं थी, जिसमें पढ़ते हुए दसवीं तक की पढ़ाई केवल एमैन्यूल और लिसा ने ही की थी।
दसवीं पास कर लिसा एक साल पहले ब्रदर सेबेस्टियन के साथ शहर जली गयी थी, जबकि एमैन्यूल लिसा के जाने के बाद बौड़मो की तरह जंगल में ही भटकता रहा था। फादर के बहुत समझाने पर वह बारहवीं के लिए शहर जाने को तैयार हुआ था। फादर ने उससे कहा था, अभी वह शहर से थोड़ा बाहर किसी सस्ती जगह पर कुछ महीने रह ले, फिर उसे चर्च के हॉस्टल में जगह मिल जाएगी। तब तक वह पैसेंजर रेल से आया जाया करें।
जीवन हो या कमरा, एमैन्यूल संसार की बहुत कम जगह घेरने वाला लड़का था। आठ बाई छ: के लगभग नीम अंधेरे कमरे में जितनी रौशनी और हवा मौजूद होती, वह उतने से ही अपना काम चला लेता। घर के भीतर सीढ़ी के नीचे बना एक ठंढा और अंधेरा कमरा, जिसमें वह एक सुस्त बल्ब से निकलने वाले पके पपीते के रंग की रौशनी में रहता था। दिन में अमूमन बिजली नहीं होने पर उसके कमरे में भादों के घने बादलों वाले दिन की तरह का उजाला सह अंधेरा रहता। घर का मालिक दिन में बिजली काटकर रखता, ताकि बिल कम आए। उसे यह कमरा फादर के कहने पर चर्च के माली ने अपने एक दोस्त की बुआ की मदद से दिलाया था, जिसका किराया बेहद कम था। घर का मालिक, जिसका पेट बढ़ते-बढ़ते वलय की तरह उसके शरीर के चारों ओर समान रूप से फैल रहा था, दिनभर नीचे हैंडपंप के सामने कुर्सी पर बैठा 'कैप्सटन' पीता रहता। जब भी कोई एक बाल्टी से ज्यादा पानी भरता, 'पानी का लेयर नीचे भाग जाएगा' कहकर वह चिल्लाने लगता। उसे लोगों के नहाने से सख्त नफरत थी। सांस भी जरूरत के हिसाब से लेने वाले एमैन्यूल ने डरकर वहां नहाना ही छोड़ दिया था।
एमैन्यूल सुबह ही कमरे से निकल पड़ता था। रेलवे पटरी के उस पार पडऩे वाले गौरी तालाब में, जिसका पानी हरा था, नहाता-धोता। वापस कमरे में आता और आठ बजे तक भरसक कोशिश करता कि क्रॉसिंग के पास वाली झोपड़ी में गरम भात-सब्जी खा ले, ताकि बाद में रिक्शेवालों और मजदूरों की भीड़ की वजह से खड़ा होकर खाना न पड़े, जिसकी उसे आदत नहीं थी। खा कर वह कॉलेज के लिए निकल पड़ता।
फादर से बहुत-कुछ सुनने-जानने के बाद एमैन्यूल ने शहर से पहली बार नजरें मिलायी थी।
सुबह कमरा छोड़ते ही उसकी मुठभेड़ घर के मालिक से होती, जो सुबह उठकर अपने शरीर को झकझोरता रहता, इस उम्मीद में कि पिछले कल से उसके शरीर से मांस का वलय कम हुआ है। तब वह किसी गदराए भूरे सूअर की तरह धूल झाड़ता प्रतीत होता। एमैन्यूल को देख वो खुद को झकझोरना छोड़ उसे जंग लगी आंखों से ऐसे देखता, जैसे उसने दो बाल्टी पानी से कुल्ला किया हो। एमैन्यूल डरकर खरगोश की रफ्तार से वहीं से भाग जाना चाहता। वह घर से निकल सामने की लंबी गली को भी इतनी ही तेजी से पार कर जाना चाहता, उसे लगता सब उसे ही घूर रहे हैं। अलबत्ता उसे वहां कोई नहीं पहचानता था, सिवाय घर के मालिक के। अपने-अपने कामों में मशगूल गली के  लोगों के लिए जैसे सालों में एक ही जगह खड़े बिजली के खंभे के बारे में सोचना बेमतलब था, जैसे गली के किसी कोने में सुस्ता रहे मरगिल्ले कुत्ते उनकी आंखों और जेहन से लुप्त थे, वैसे ही एमैन्यूल, कुछ पलों के लिए दिखने वाले एक अदने से लड़के की उनके लिए कोई अहमियत नहीं थी। जैसे उसके होने का पता सिर्फ उसके घर के मालिक को था, वैसे ही अगर अचानक वह किसी रोज शहर छोड़कर चला जाता तो यह बात सिर्फ उसका मालिक जान पता, जब सुबह अपने शरीर को झकझोरे जाने के वक्त उसे नहीं पाता।
इस तरह एमैन्यूल के चलने से जितना बचना शामिल था, उतना ही डरना भी। मौसी सिसिलिया जैसे हर कदम उस के साथ चलती थी, कानों में फुसफुसाते हुए एमैन्यूल, मगरमच्छों से बचकर रहना है। हर आफत, हर मुसीबत से बचकर।
एमैन्यूल सुबह खाना खाकर सीधे कालेज जाता। क्लास में पीछे की बेंच पर कोने में वह वहां बैठना चुनता, जहां उसके कमरे जितनी रौशनी मौजूद होती, इससे उसे अपने कमरे में होने का एहसास होता और वह सहज रूप से पढ़ाई कर पाता। चार घंटियों की पढ़ाई के बाद उसे फिर से भूख लग आती और वह शहर में बिना कहीं भटके सीधे वापस उसी रेलवे क्रांसिंग की झोपड़ी में आ जाता। खाना खा चुकने के बाद फिर उसका वही एकांत और वही नीम अंधेरा कमरा।
क्लास में पढ़ाई गयी बातों को वह अपनी किताब में ढूँढता और मिल जाने पर बेहद खुश हो जाता। उसकी आंखें और किताबें दोनों उस नीम अंधेरे की अभ्यस्त हो गयी थीं। यह अभ्यास इस कदर गहरा था कि इस से ज्यादा रौशनी उसकी आंखों को चुभती थी।
कई बार रात में पके पपीते के रंग की पीली रौशनी में उसका मन होता वह जोर-जोर से पढ़े और सारा भूगोल रात में ही कंठस्थ कर ले। उसका मानना था, भूगोल रात में ज्यादा समझ में आता है, संसार की नदियों के उद्गम स्थल और कौन सी नदी किस सागर में गिरती है और किस स्थान पर लुप्त हो जाती है। वह चौंकता कि नदियां लुप्त भी हो जाती हैं। उसे पढ़कर यकीन करने में दिक्कत होती कि इस दुनिया में उसके जंगल से भी बड़े जंगल हैं। उसके भगत पहाड़ से भी ऊंचा पहाड़ है। गैर-जंगलों वाली जगह रेगिस्तान के बारे में पढऩा उसे रात में ही अच्छा लगता था। जब कल्पनाओं से वह दूर तक रेत ही रेत और केवल कैक्टस की शांत खड़ी झाडिय़ां पाता, स्तंभित हो और वापस अपने जंगल की ओर भागता। यह सब पढऩा एक साथ डराने और कौतूहल से भर देने वाला होता। कई मर्तबा पढ़ते हुए वह इतना रोमांचित हो जाता कि बोल-बोल कर पढऩे लगता। पर रात की नीरवता में बोलने का शोर इतना ज्यादा होता कि वह अचानक अपनी ही आवाज से भय खा जाता। इसलिए भूगोल को उसने स्टेशन की खाली बैंच पर बैठकर पढऩे के लिये छोड़ दिया था। इतिहास को दिन में चारपायी का पैर पकड़कर पढऩे से उसे खूब मजा आता था। इतिहास की कहानियाँ चुपचाप पढ़ी जा सकने वाली चीज थी। उसे सोच कर सिहरन होती कि वह और उसका समय इतने सारे युद्धों की पैदाइश है।
एमैन्यूल हर रविवार फादर को पोस्टकार्ड लिखता, जिसमें अपनी पढ़ाई, खर्च और शहर में मन नहीं लगने की बात हर बार एक ही तरीके से लिखी होती, जिसके जवाब में फादर उसे हर बार अलग-अलग तरीकों से लिखते कि वह किसी तरह पढऩे में मन लगाए बस। फादर उसे बताते कि अब दूध लेकर अब्राहम उनके पास आता है और दिन भर स्कूल में बच्चों के साथ खेलता है। अब वह जंगल कम जाता है। पुलिस ने बकरी चराने गए गांव के तीन लड़कों को मार दिया है, यह कहकर कि वे उन पर हमला करने वाले थे। पर उसके पिता फैलिक्स ने जंगल जाना नहीं छोड़ा है। उन्हें जंगल में एक नया बीज मिला है, जिसके पौधों के आसमानी फूलों का चूरा बनाकर खाने से भूख खत्म होने का एहसास होता है। उनकी मौसी सिसिलिया ने एक मीठे पानी का झरना ढूंढ़ा है, पर वन विभाग के सिपाही उसे वहां तक नहीं जाने देते कि कहीं झरने का शीशे जैसा पानी गंदला न हो जाए, वे दुनिया के लोगों को घुमाने के लिए यहां लाना चाहते हैं। एमैन्यूल यह सब पढ़कर दुखी हो जाता। वह हर बार फादर को लिखता, उसे भाई, पिता और मौसी की बहुत याद आती है, उतना ही, जितना वो अपने प्रभु को याद करते हैं, और वह घर आना चाहता है। उसने लिसा की बकरियों से भी वायदा किया है कि वह उनकी लकड़बग्घों से रक्षा करेगा। पर फादर उसके शहर में रहने को प्रभु की इच्छा बताते और उसे बिना ध्यान भटकाए पूरी ताकत से पढऩे को कहते।
फादर उसकी तीन-चार चिट्ठियों का जवाब महीने दो महीने में एक बार लिखते, जिसे पढ़कर अपने गांव-जंगल और परिवार को याद कर वह अगले दो-तीन दिनों के लिए अजीबोगरीब तरीके से बीमार पड़ जाता। सुस्त शरीर, धीमे बुखार और नियमित नीम अंधेरे के बीच उसे लिसा का चेहरा याद आता, उसे याद आता, इसी शहर के बड़े अस्पताल में वह ब्रदर सेबेस्टियन के साथ नर्स बनने आई थी। दो-तीन धीमे ज्वर वाले ऐसे दिनों में वह पूरी तौर पर लिसा की स्मृतियों के साथा होता।
वह उसे सोचता और अपनी चारपाई के चारों ओर बीमारी का भंवर बनता हुआ पाता।
सांझ ढलने को है। अब और मछलियां नहीं। वे सोना चाह रही होंगी। वह नदी के बीच में है। पारदर्शी जोपों के बीच में। वह मछलियाँ लेकर अपनी छोटी सी चिडिय़ानुमा नाव से घर जाने के लिए तट की ओर बढ़ रहा है। मौसी सिसिलिया के मुंह का कोई गीत उसने गुनगनाने की कोशिश की है और आधा-अधूरा गाकर उसमें मगन हो गया। ताड़ के पेड़ों के बीच इस ओर पीठ किए हुए सांझ के रंग की एक लड़की खड़़ी है। वह लिसा है। वह उसकी परछाई को भी पहचानता है। वह आवाज़ देता है। वह जोर से आवाज़ देता है। पर वह पीठ फेरे हुए तेज़ कदमों से भाग जाने जैसी चल चलती है। यह क्या, जोपो नदी का पानी बढ़ रहा है। इतना सारा पानी। इतनी हवाएं। अंधेरा भी गहरा रहा है। लिसा। वह गले की नसें उभर आने तक चिल्ला रहा है। वह उसकी आवाज़ सुनकर मुड़ आएगी। वह जरूर आएगी। उसने अपनी प्यारी नाव को जोर से थपथपाया है। उसे इस पर लिसा जितना ही यकीन है। वह अपनी आवाज खो देने की हद तक चिल्लाता है। लिसा। उसके चिल्लाने में कंद्रण है। वह एकबारगी थमती है। फिर मुड़ती है। मैं एमैन्यूल। तुम्हारा एमैन्यूल। और फिर भाग जाती है। वह अपनी नाव बीच नदी की ओर मोड़ लेता है। पानी बढ़ता ही जा रहा है। तेज हवाएं शोर कर रही है। अंधेरा गहरा गया है।
चौंककर उसकी नींद टूट जाती। वह गटागट पानी पीता चला जाता। बीच लोटे में उसे घर के मालिक की पानी सम्बंधित हिदायत याद आती और वह लोटा रख देता। वह वापस लेट जाता और तय करता है, वह यहीं पड़ा रहेगा, पर इलाज के लिए उसके अस्पातल नहीं जाएगा।
ज्वर, अँधेरा, नींद और सपने।
हम्फ-हम्फ। वह एक बड़ी मछली के पीछे, जो सांझ के रंग की है, छाती तक तेज बहाव वाले पानी में भाग रहा है, जो किनारे पर अपने पंख और छिलके छोड़ आयी है। वह रोता-भागता पसीने-पसीने हो गया है, आंसुओं और पसीने की अधिकता से नदी का पानी नमकीन हो आया है। बीच नदी में दोनों हाथों में पंखों और छिलकों को भीगने से बचाने के लिए उन्हें ऊपर उठाए हुए वह कह रहा है, स्मृतियों की तरह अब इन पंखों और छिलकों को भी मेरे पास क्यों छोड़े जा रही हो? मैं इनका क्या करूंगा? तुम जाती हुयी इन्हें भी लेती जाओ। मछली एकबारगी रुकती है, फिर पलटती है। वह लिसा है। वह चिल्लाता उसके पीछे नदी के तेज बहाव की उल्टी दिशा में भागता है। और नींद में बिलखकर जाग जाता है।
ऐसे कई सपनों के बीच वह जागता, फिर सोता, फिर जागता।
उन दिनों पूरा जंगल, गांव, बकरियाँ सब उन दोनों के प्रेम के गवाह थे। दोनों ने उत्तर के सबसे चमकीले तारे को अपने प्रेम में शामिल कर उसके सामने कबूला था, हम जीवन के अंतिम सालों तक प्रेम करेंगे और उन सालों तक हमारा प्रेम पलाश के लाल फूलों की तरह ही चटख बना रहेगा, पहाड़ी चट्टानों की मजबूती, सखुआ पेड़ों की गंभीरता, और पोठिया मछली की खूबसूरती हमारे प्रेम में ये सब कुछ जीवन के आखिरी सालों तक आएगा। लिसा ने उसे भरपूर दुलारा था, मेरे प्यारे एमैन्यूल, प्रभु का दिया अनमोल वरदान सिर्फ मेरा एमैन्यूल। वह उसे गहरे तक चूमती और पूछती, वह उससे कितना प्रेम करता है, तब भगत पहाड़, जो एमैन्यूल को दुनिया का सबसे बड़ा पहाड़ लगता, उसकी ओर सिर घुमा, वह कहता, उतना।
एमैन्यूल लिसा के साथ ही खुश होता, उसी के साथ उदास और उसी के साथ परेशान भी। लिसा की खुशी, उदासी, परेशानी सब उसकी अपनी थी। वह उसकी मुर्गियों के लिए भी परेशान हो सकता था, जो समय पर अंडे नहीं दे पायीं, उसके खेत में लगे गोभी के पौधों के लिए भी, जिसमें फूल नहीं लगे, उसे पसंद आने वाली पपीहे की आवाज के लिए भी, जो बोलना बीच में छोड़ उड़ गया या उस बकरी के बच्चे के लिए भी, जो आज शाम घर नहीं लौटा।
वह उसके बूढ़े पिता के साथ हल चलाने में उनकी सहायता करता। मकई काटने में मदद करते हुए वह उसकी मां के लिए गीत गाता। बारिश और आंधी में बर्बाद हुए उनके घर की मरम्मत में हाथ बंटाता। और उसकी मां के मन लायक साग बनाने के लिए कोहड़े के फूल इकट्ठा करने में पूरा दिन लगा देता।
वह सपने में सवाल करता। उसने दो बार सोने के रंग की उसकी बकरियों को खुद घायल होकर लकड़बग्घे से बचाया था। जब वह उसकी बकरियों-मुर्गियों से इतना प्रेम कर सकता था, तो लिसा से कितना करता? क्या वह लिसा को चर्च के अंग्रेज़ी बोलने वाले उस ब्रदर से कम प्यार करता? ब्रदर ने उससे कहा था, वह शहर में उसे बड़े अस्पताल में नर्स बनाएगा और और वह मान गई थी। जब ब्रदर आजीवन शादी न करने के प्रभु के साथ किए गए वायदे को नहीं निभा पाया, तो लिसा से किए गए वायदे को क्या निभाएगा?
सूखी पत्तियों के अनिवार्यत: गिर जाने वाले मौसम में, जब चारों ओर पहले से ही ऊजाड़, उदास वातावरण बना था, सूखी, बेकार हवाएं अनमने से चल रही थीं, लिसा ने उससे कहा था, अब वह उससे प्रेम नहीं कर पाएगी, कहकर वह चुप हो गयी थी। एमैन्यूल को लगा था, उस रोज उसकी बकरियों के वास्ते लकड़बग्घे से लड़ते हुए क्यों नहीं उसने खुद को थोड़ा ढीला छोड़ दिया था कि लकड़बग्घे के मृत्यु बांटने वाले दाँत उसकी गर्दन में धंस जाएं।
कुछ दिनों बाद जब वह जंगल में सेमल के पेड़ के नीचे पके सेमल के फलों से उड़ते रुओं के बीच लकडिय़ों के साथ लौटती लिसा द्वारा रोता हुआ पकड़ा गया था। लिसा ने उसे सांत्वना में कहा था, अगर वह उसे गर्मियों में खिले काले धान के हरे फूलों का गुलदस्ता लाकर देता है तो वो उससे जरूर प्यार करेगी। उसने सेमल के रूओं से उसके आंसु पोछे थे और अपने साथ वापस लेकर आयी थी। बाद में अब्राहम ने उसे बताया था, तब तक वह उससे प्यार कर रही थी, जिसको उसने बेहद आसान शर्त के रूप में बसंत में खिले लाल पलाश के फूलों का गुलदस्ता लाने के लिए कहा था। और वह ब्रदर सेबेस्टियन था।
जिस दिन सेबेस्टियन लिसा से मिलने गांव आया था और वे दोनों पके करौंदे खाने जंगल गए थे, उन्हीं छोटे और पथरीले रास्ते से, जिसे एमैन्यूल ने इजाद किया था, वह जामुन के पेड़ पर बैठा, जिससे गिरकर उसकी मां बान्डो की मौत हुयी थी, उसे जाते हुए देखता रहा था, तब तक, जब तक वे दिखने बंद नहीं हो गए थे। शाम को उसे अनाथों जैसी हालत बनाए लिसा की बकरियां मिली थीं। उनमें से एक-एक को उसने पीपल के सबसे मुलायम पत्ते तोड़कर खिलाए थे और बाद में उनके गले लगकर रोया था। उसने उनसे रोते हुए कहा था, वे बेफिक्र रहे, लिसा के शहर चले जाने के बाद भी वह उन्हें लकड़बग्घे से बचाता रहेगा।
और एक रोज लिसा अपने परिवार की शानदार और फादर के अबोले स्वीकृति के साथ पलाश के लाल फूलों, पहाड़ी चट्टानों, सखुआ पेड़ों और पोठिया मछली से किए गए वायदों को जोपा में बहा, एमैन्यूल की आँखों में ढेर सारा पानी छोड़ सेब्सेस्टियन के साथ नर्स बनने शहर चली गयी थी।
उस रोज की दूधिया रात एमैन्यूल जंगल में ही रह गया था। उसने जीने की तमन्नाओं को जगाए रखने के लिए खूब सारे तर्क जुटाए थे। और इन तर्कों को मुट्ठियों में जोर से भींचे वह सुबह तक अपने खेतों में लौट आया था, निराश, सूखा, बिलकुल पड़पड़ा कर सूखी धरती की तरह। रात में प्यारी नदी को शांति से सोता देख उसने छलांग लगाकर मरने का इरादा छोड़ दिया था। उसे लगा था, यह जोपा के साथ ज्यादती होगी और लोग नदी को ही दोष देंगे। लोग निर्दोष मछलियों को भी कोसेंगे कि उन्होंने उन लोगों को खबर क्यों नहीं की। वह भगत पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी से भी लौट आया था। उसे नींद में ऊंघती चोटी से इस तरह चुपके से कूदना, चारपाई पर सोये पिता को बिना बताए हमेशा के लिए कहीं निकल जाने की तरह लगा था।
फादर उसे रोज कहते कि इसके पहले कि उनकी अंतडिय़ां अनियंत्रित होकर बाहर झूलने लग जाए, वह बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर ले। फिर उसकी नौकरी लग जाएगी। पूरे एक साल तक उनकी बात नियमपूर्वक सुनने के बाद वह शहर जाने को राजी हुआ था। तब उसने गंभीर बेचैनी में, इसलिए जाना तय किया था कि वह शहर जाकर लिसा से एक बार जरूर मिलेगा और उसे बताएगा, गर्मियों में खिले काले धान के हरे फूल दुनिया में कहीं नहीं होते लिसा। कहीं नहीं।
एमैन्यूल जब कॉलेज के लिए शहर निकलता, उसकी नज़रें हर भीड़ में लिसा को ढूँढती रहतीं। पर इतने बड़े शहर की इतनी बड़ी भीड़ में लिसा का दिख जाना गर्मियों में खिले काले धान के हरे फूल मिल जाने की तरह था। वह कौतुहलवश सोचता, शहर बड़ा है या उसका जंगल। काफी देर मथने के बाद वह इस नतीजे पर आता कि बड़ा शहर है, क्योंकि जंगल का तो वह चप्पा-चप्पा जानता है। उसने बहुत सारी चीजों को शहर आकर देखा था। बहुत सी रंगीन गाडिय़ां, सूरज से होड़ लेती रौशनियाँ, बात-बात में गालियाँ देने वाले बहुत सारे गुस्सैल लोग। खाने की अनोखी चीजें, जिनका स्वाद उसे नहीं पता था। पर उसने कुछ के अटपटे नाम रट लिये थे, जिन्हें वापस जाकर गांव वालों को बताना था।
फादर ने उसे चेताया था, सड़क पर हमेशा बाएँ चलना। एमैन्यूल ने कोशिश भी की थी, पर वह बेहद खतरनाक था। पीछे से आने वाली हर हॉर्न की आवाज़ पर उसका कलेजा भारी हो जाता। वह जल्दी से पीछे मुड़कर आने वाली गाड़ी की स्थिति देखने लग जाता। उसने चिट्ठी में एक जगह डरते हुए फादर से पूछा था, क्या वह दायीं ओर चल सकता है, जिससे अपनी ओर आती हुयी गाडिय़ों को देखकर चला जा सके। फादर ने तुरंत चिट्ठी लिखकर उसे मोटे अक्षरों में आगाह किया था, नहीं।
फादर हर बार लिखते, उसे शहर में रहते हुए भी शहर से दूर रहना है। वहां बहुत सारे झमेले हैं, सारे झमेलों से दूर। पढ़ाई और बस पढ़ाई।
रात के एकांत में पढ़ते हुए वह सोचता, पढ़कर वह क्या करेगा। नौकरी। और नौकरी के बाद? पैसे। फिर पैसों से? पैसों से वह ढेर सारा मकई का अनाज खरीद पाएगा, जो सबके लिए पूरे साल भर तक चलेगा। वह खुश हो मकई के दानों जितना गदरा उठता।
एहतियात और सजगता के साथ शहर के उसके ये बेमन दिन शायद इसी तरह कॉलेज, तैयारी, चिट्ठियों और लिसा की स्मृतियों के बीच बीत जाते, शायद मौसी सिसिलिया, पिता फैलिक्स की आ$फत-मुसीबत से बचकर चलने की हिदायतों के बीच वह कहीं रेलवे के ग्रुप डी में नौकरी भी पा जाता, शायद फादर अपने अंतडिय़ों के अनियंत्रित होकर झूलने से पहले उसे बी.ए. भी करा देते, या शायद बकरियों के दूध के दम पर वह अगर और साल जीवित रहे तो एम.ए. भी। होने को और भी कुछ अनोखा हो सकता था, खुशी मिश्रित आंसुओं के साथ लिसा उसके अकूत प्रेम को याद कर वापस आ सकती थी, और बिना किसी शिकवे-शिकायत के वे एक दूसरे को घंटों चूम सकते थे, पर हर क्षण जीवन को किसी नए जन्मे बच्चे की तरह संभाल कर जीने की कोशिशों और उम्मीदों पर कई बार अप्रत्याशित रूप से ठनका गिर जाता है। फिर सब खत्म हो जाता है।
वे सिमटती सर्दियों के नरम-चमकीले दिन थे। सफेद चकमक पत्थरों की तरह के दिन। दोपहर तक एमैन्यूल ने तीन घंटियों की पढ़ाई कर ली थी, पर उस रोज शाम को एक विशेष क्लास लगने वाली थी, जिसे प्रिंसिपल संबोधित करने वाले थे। इसमें सबकी उपस्थिति अनिवार्य थी। उसने कलाई पर बंधी अपनी घड़ी देखी, स्लेटी डायल पर काली बिंदियों से जलते-बुझते 1:38 लिखा था। यह उसे फादर से मिला था, बस में चढऩे के दो घंटे पहले, यह कहकर कि हमेशा समय के साथ चलना, न उससे आगे, न उससे पीछे। शाम में क्लास 4:20 पर था और उसे आंतों को चाक कर देने वाली भूख का एहसास हो रहा था। एमैन्यूल पूरे मन से चाहता था कि लौट जाए। पर परीक्षा में नंबर काट लेने की धमकी के साथ क्लास में मौजूदगी की अनिवार्यता कि उसे रुकना पड़ रहा था। अगले ढाई घंटे तक भूख की मरोड़ के साथ इंतज़ार करना उसे चिकने लिप्टस पर चढऩे की तरह लग रहा था। उसे हर क्षण लग रहा था, जैसे उसके पेट में एक बरगद का पेड़ लगातार फैलता जा रहा है।
एमैन्यूल ने अपनी किताबें समेटी और कॉलेज से निकल गया। सस्ते में थोड़ा-बहुत कुछ खा लेने की उम्मीद की तलाश में कॉलेज से लगती व्यस्ततम सड़क की फुटपाथ पर वह पैदल चल पड़ा। रास्ते में सीसे से बनी दुकानों, जिस पर वल्र्ड ऑन योर प्लेट, केएफसी, चाइना बाउल आदि लिखा था, के भीतर इत्मीनान से बैठे लोग खा पी रहे थे। एमैन्यूल ऐसी तमाम खाने-पीने की जगहों से होता हुआ किसी ठेले की तलाश में चला जा रहा था। यह रास्ता उसके लिए बिल्कुल नया था। वह इस ओर पहली दफा आया था। काफी चल चुकने पर उसके सामने एक चौराहा था और उसके उस पार एक बड़ा सा मैदान, जिसमें अलग-अलग झुंड में खूब सारे लोग धूप सेंक रहे थे। उसे आश बंधी, मैदान में शायद कुछ मिल जाए। चौराहा पार कर जब वह मैदान में पहुंचा, उसे कोफ़्त हुई। वहां सिवाय मूंगफलियों और आइसक्रीम के कुछ नहीं था। वह थक गया था। उसने सोचा, उसे कहीं से बिस्किट ही खरीद लेना चाहिए था। उसने दो रुपए की मूंगफलियां खरीदीं और एक खाली जगह देख बैठ गया। उसने मूंगफलियां कागज से निकालकर गिनी, कुल सोलह, सोलह बार के लिए, पर उन्हें वह अगले दो घंटे तक खाना चाहता था। उसने एक मिर्च और नमक की दो अतिरिक्त पुडिय़ां मांगी, जिसपर मूंगफल वाले ने उसे घुड़क दिया। बावजूद उसे यह सोचकर अच्छा लगा कि शहर में कम से कम नमक तो आसानी से उपलब्ध है।
एमैन्यूल ने मूंगफलियां खानी शुरू नहीं की थी। उसे मसालेदार नमक का स्वाद ही इतना अच्छा लग रहा था कि वह अपनी भूख भूल गया था।
अभी कुछ ही समय बीता था कि स$फेद कुर्ता-पैजामा पहने, कमर में गमछी बांधे छ: लोग उसे अपनी ओर आते हुए दिखे। उनके हाथों में डफली और करताल था। एमैन्यूल को लगा, बैठने की उस पक्की जगह पर वे भी बैठने आ रहे हों। उसने अपनी नमक की पुडिय़ा मोड़ ली। इतने लोगों के बीच अकेले बैठने की बात उसे अजीब लग रही थी। वह उठकर थोड़ी दूर घास पर बैठने की सोच ही रहा था कि वे रुक गए और घेरा बनाने लगे। उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और गोल-गोल घूमने लगे। डफली और करताल वाले ताल देने लगे।
धूप प्यारी थी और मौसम नन्हें छौने की तरह छू कर महसूस करने लायक गुदगुदा। वे सफेद बादलों की तरह खुश थे और मिलकर गा रहे थे। एमैन्यूल रुक गया। डफली-करताल बजाता सुन आसपास के लोग भी नजदीक आने लगे थे। हवाओं में गीत के घुल जाने से अब वे बेजान-सी नहीं बह रही थी।
'ऐ धरती को लूटने वाले... हाँ, हाँ धरती को लूटने वाले'
'ऐ नदियों को सोखने वाले... हाँ, हाँ, नदियों को सोखने वाले...'
'रुक जा, ठहर जा... हम आते हैं, हम आते हैं...'
'ऐ गाँवों को लूटने वाले...हाँ, हाँ गांवों को लूटने वाले...'
'ऐ जंगलों को काटने वाले...हाँ, हाँ, काटने वाले...'
'रुक जा, ठहर जा... हम आते हैं, हम आते हैं...'
आहिस्ता-आहिस्ता नमक चाटते हुए, एमैन्यूल को ये गीत बहुत प्यारे लग रहे थे।  उसे लगा ये भगत पहाड़ और जोपा नदी की बात कर रहे हैं, उनके गीत उनके गांव के बारे में है, उसके लोगों के बारे में हैं। उसका मन हुलस रहा था। उसके पांव थिरक रहे थे। उसे उस शहर में पहली बार मज़ा आ रहा था। उसे लिसा की मां के साथ मकई बोते समय गाते गीत याद आ रहे थे। उसे लिसा का सरहुल में मांदर की थाप पर नाचना याद आ रहा था। उसे बड़ी अकुलाहट के साथ लिसा की याद आ रही थी। अभी उसे यहां होना चाहिए था।
भीड़ जुट गयी थी। लोगों के जमा होने पर उन्होंने एक नाटक खेलना शुरू कर दिया। वे एक गोल घेरा बनाकर दर्शकों की ओर घूमते हुए मुखातिब होते थे। डफली बजती थी, करताल बजता था, दो आदमी घेरे के बीच गीत के बोलों पर अभिनय करते और बाकी गाते।
'लूट का राज है न...
चोरों के सिर ताज है न...
सरकार बेकार है न...
फिर भी बोलो...
भारत आजाद है न...'
बाकी उसके पीछे कोरस करते थे, 'है न', 'है न', 'है न' फिर घेरा अचानक रुकता और उनमें से एक दर्शकों की ओर हाथ को माइक की तरह सामने कर पूछता, बोलो है न? है न?
लोग इसके जवाब में बस मुस्कुरा देते। घेरा फिर से गाने लगता।
'गरीब लाचार है न...'
'दलालों की बहार है न...'
'है न, है न, है न...'
अबकी जब घेरा रुका, हाथ वाले माइक के सामने एमैन्यूल था। उसने बेतरह खुश हो लगभग उछलते हुए कहा, 'हाँ, है न, है न'
कि ठीक तभी वहाँ पुलिस आ गई थी। सबसे रौबदार से दिखने वाले चेहरे ने कहा था, हो गया नाटक-नौटंकी, अब बांधो इन्हें। सिपाही उन छहों के अलावे, एक, जिसकी ओर लपके, वह एमैन्यूल था। उसकी आवाज नाटक के आखिरी संवाद की तरह अब तक वहां मौजूद थी।
अपनी ओर बंदूक लिए एक सिपाही को झपटता देख एमैन्यूल के दिमाग में मौसी के बताए मगरमच्छ कौंधे थे। वह पूरी ताकत से एक बेमिसाल छलांग के साथ मगरमच्छ के जबड़े से भाग निकलना चाहता था। इसी एक क्षण के दसवें हिस्से में उसे पिता, मौसी और फादर की हिदायतें याद आयीं थी, जिन्हें वह आज भूल गया था। इसी एक क्षण के दसवें हिस्से में उसे दुखी लिसा का ठंढे राख सा चेहरा याद आया था, जब उसे धामन ने काटा था। और इसी एक क्षण के दसवें हिस्से में उसके मस्तिष्क से टांगों को दौड़ पडऩे का आदेश मिला था, पर तब तक दो बेहद पथराए हाथों ने उसकी पतली गर्दन दबोच ली थी।
'ऐन एंदेर हूं मा नंजक़न, ऐन एंदेर हूं मा नंज़कन' वह काटे जा रहे बकरे की तरह मिमिया रहा था।
उस एक पल के लिए एमैन्यूल शहर की भाषा भूल गया था। सोलहों मूँगफलियाँ जमीन पर बिखरी थी, मसालेदार नमक का कागज उड़ गया था और वह घसीट कर बाकी छहों के साथ मैदान के बाहर खड़ी गाडिय़ों की तरफ ले जाया जा रहा था। उन छहों में से हर कोई बार-बार चीख कर उस रौबदार चहरे वाले को कह रहा था, वह एक दर्शक है। उसे जाने दीजिए।
पर्दा गिर गया था। भीड़ छंट चुकी थी।
उसके बाद पूरा शहर मीडिया के साथ 'ऐन एंदेर हूं मा नंज़कन' का मतलब समझने में लगा था। सुबह आँखें मसलता, बासी उबासियाँ लेता शहर अखबारों के पन्नों पर फैले इतने बड़े सच को जानकर भौंचक था कि उसके आसपास इतनी खतरनाक साजिशें रची जा रही थीं। उसकी आंखों की पुतलियाँ इन सनसनी वाली खबर की रौशनी में चुंधिया सी गयी थी। जब उसने ये जाना था कि सात लोगों का एक ग्रुप शहर में नक्सली नेटवर्क तैयार करने में लगा था। वे नाच-गा कर लोगों को नक्सली बनाने की मुहीम में जुटे थे। शहर ने उनके पकड़े जाने की खबरें पढ़-सुनकर कर भारी राहत भरी सांस ली थी। और किसी भी लावारिस वस्तु को नहीं छूने जैसी तमाम पुलिसिया हिदायतों से खुद को फिर से लैस किया था।
हैंडपंप के पास अपनी कुर्सी पर बैठकर शहर का सबसे सस्ता अखबार पढ़ता एमैन्यूल के कमरे का मालिक, जिसके शरीर के चारों ओर मांस का वलय बढ़कर शनि के छल्ले की तरह हो गया था, ईश्वर को अपने कैप्सटन से सजे होंठों से धन्यवाद दे रहा था कि वह एमैन्यूल उर्फ क्रान्ति उर्फ प्रकाश की कमर में हमेशा खुंसी रहने वाली पिस्तौल से बाल-बाल बच गया, जो असल में शहर में नक्सली नेटवर्क फैलाने आया एक इनामी हार्डकोर नक्सली था, जिसने अपने छ: साथियों के साथ कॉलेज-यूनिवर्सिटी में अपना नेटवर्क फैलाने के लिए छात्र बनकर एडमिशन लिया था।


* शीर्षक कुडुख में जिसका मतलब है, मैंने कुछ नहीं किया।

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