शुभचिंतक

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    सितम्बर 2014
श्रेणी कहानी
संस्करण सितम्बर 2014
लेखक का नाम विमल चन्द्र पाण्डेय





 


जिस तैंतीस साला आदमी ने काली टी शर्ट पहनी हुई थी वह मज़बूत कद काठी का था और धारीदार कमीज़ वाला अपनी चाल से ही कमज़ोर दिखता था। पैंतीस के ऊपर दिखते उस आदमी ने पुरानी काट की सिलवायी हुई पतलून पहनी हुई थी और उसे देखकर लगता था कि रेडीमेड के इस ज़माने में भी वह लगातार अपने कपड़े दर्जी के यहां सिलवाता रहा होगा। टी शर्ट वाला आदमी जींस पहने हुए था और उसके शरीर की लापरवाही देखकर लगता था कि वह सिलवाए कपड़ों की नज़ाकत को काफी पीछे कहीं छोड़ आया है।
मोटरसाइकिल खड़ी कर जब वे दोनों उस गली में पहुंचे तो शाम के छह बजे थे और धुंधलका अभी भी दूर था। गर्मियां अप्रैल के पहले हफ्ते से ही मई जून वाले ठाट में आ गयी थीं और लोगों का भेजा बिना बात गरम होने लगा था। इस बात के मद्देनजर कमीज़ वाले ने टी शर्ट वाले को समझाया था कि मौसम की गर्मी को दिमाग पर चढऩे देना गलत बात है। टी शर्ट वाले ने बदले में यह कहा था कि मंटू भइया आखिर उसके भी पुराने परिचित हैं और वह कोई उनका दुश्मन नहीं लेकिन बात उसूलों की है। उसका कहना था कि ज़बान की एक कीमत होती है और होनी चाहिये।
दोनों ने एक पुराने मकान के बाहर जाकर ज़ोर से मंटू मंटू की हांक लगायी और दरवाज़ा खटकाने का कोई उपक्रम नहीं किया। दोनों उस पतली सी गली में एक तरफ खड़े थे और सामने से कुछ सांढ़ जा रहे थे। वे दोनों दब कर खड़े रहे। जब सात सांढ़ गुज़र गये तो मंटू बाहर निकले। टी शर्ट वाले ने सांढ़ गिनना छोड़ मंटू की ओर आग्नेय नेत्रों से देखा। मंटू की उम्र चालीस साल के आसपास थी और उनके चेहरे पर न की जा सकी राजनीति का शोक था। उनकी कमीज खास ऑर्डर पर सिलवायी हुयी थी और खद्दर की यह कमीज, कमीज और कुर्ते का मिलाजुला रूप लगने के कारण अलग प्रभाव छोड़ती थी। टीशर्ट वाला उस प्रभाव से बिल्कुल अछूता रहा और सामने आकर बिना झुके मंटू के पांव इस तरह छुये जैसे उनकी जांघों को छूकर उसका ठोसपन जांच रहा हो।
''कहां चला जाय?'' मंटू ने पूछा।
बदले में कमीज वाला चुपचाप कुछ कदम चलने के बाद एक गली की ओर मुड़ गया। टीशर्ट वाला भी उधर मुड़ा तो मंटू भी उधर ही मुड़ गये। मंटू नाम से उन्हें पूरे मुहल्ले में जाना जाता था और एक ज़माने में जब वह विद्यापीठ में छात्रसंघ का चुनाव जीते थे तो अवनीश कुमार सिंह 'मंटू' का बनारस में डंका बजता था। न जाने कितने लोगों को उन्होंने मकान पर कब्जा दिलवाया था, कितने लोगों को पुलिस से छुड़वाया था और कितने ही झगड़ों में पंच बन कर उन्हें शांतिपूर्वक सलटाया था। वह राजनीति में पूरी ईमानदारी से लगे थे और इसे समाज सेवा का माध्यम मानते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि यदि कोई छोटी सोच वाला नेता अध्यक्षी में ही पैसे खाने लगेगा तो वह विधायकी तक कभी पहुंच ही नहीं सकता। वह खुद को बड़ी सोच वाला मानते थे और विधायक न बनने तक पूरे तन मन धन से नेतागिरी यानि समाज सेवा करते थे। लेकिन बाद में समस्या यह हो गयी कि पार्टी के आला अधिकारियों, जो उनकी लगातार मेहनती और ईमानदारी होती छवि को अपने लिये खतरा मानने लगे थे, ने उनका राजनीति से पत्ता घिसवा दिया। वह घिसते घिसते खत्म हो गये। उनकी जगह नये रंगरूट आ गये थे और मंटू भइया और उनकी राजनीति धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो गयी थी। मंटू की राजनीति खत्म होने से ज़्यादा दुख इस बात का था कि ईमानदार यानि कच्चा नेता समझ कर उनको किनारे लगाया गया।
जिस पतली गली से गली-गली होते सब मीरघाट की तरफ बढ़ रहे थे, उसमें सामने से एक मुर्दा मणिकर्णिका की ओर लाया जा रहा था। भीड़ राम नाम के सत्य होने का नारा लगाती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थी। तीनों एक तरफ दब गये और मुर्दे के ऊपर फेंके जा रहे लीचीदानों में से एकाध मंटू के चेहरे पर भी पड़े। उन्होंने सकपका कर बाकी दोनों की तरफ देखा। टीशर्ट वाले के चेहरे पर दृढ़ता के भाव थे।
''गर्मी चालू हो गयल। मरे सुरू हो गइलन लोग।'' मंटू ने अपने चेहरे की झेंप को अपने कहे इस वाक्य से मिटाने की कोशिश की। कमीज़ वाला मुस्कराया लेकिन टी शर्ट वाले के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।
''तू मरबा तऽ हम लचीदाना नाहीं लेंडुआ लुटाइब।'' उसने ताना मारती आवाज़ में कहा तो मंटू फिर से अपने रास्ते पर चल पड़े। वहां बैठे एक भिखारी ने लड्डू लुटाए जाने की आशा में नज़र उठायी और सेहतमंद मंटू को देखकर दूसरी ओर देखने लगा।
तीनों बाकी रास्ते चुपचाप रहे। मंटू के चेहरे पर तनाव के भाव थे जिन्हें वह छिपाने की पूरी कोशिश कर रहे थे। टी शर्ट वाले के चेहरे पर गुस्से के भाव थे जिन्हें वह ज़ाहिर करने की ताक में था। कमीज वाला चेहरे से ही शांतिप्रिय लग रहा था और उसके चेहरे पर भाव था कि यहां वहां से लेकर पूरी दुनिया तक में शांति कायम रहनी चाहिए।
''किचाइन न होये चाही गुरू।'' उसका प्रिय वाक्य था और यही उसकी जीवनशैली भी थी। इसी कारण वह अक्सर ऐसी जगहों पर पाया जाता था जहां मामला बिगडऩे की आशंका हुआ करती थी।
तीनों चलते चलते मीरघाट पहुंच गये। टी शर्ट वाला घटियारा था और उसे घाट के स्थायी निवासी अच्छी तरह पहचानते थे। मंटू का चेहरा भी घाट के बाशिंदों में खासा लोकप्रिय था। यहीं घाट पर उन्होंने अपने लिये दुनिया की सबसे दुखदायी बात सुनी थी।
''कुछ नेता लोग होलन जेनकर नेतागिरी घाटे तक रहेला, जइसे मंटू।'' किसी मल्लाह ने मंटू के बारे में बताते हुये उनका परिचय किसी छुटभैये को दिया था और गलती से मंटू उधर से ही निकले थे। इस एक वाक्य के परिचय से उनके आत्मविश्वास में गज़ब का ह्रास आया था और उन्होंने घर से निकलना कुछ कम कर दिया था, खासकर दूसरों के काम से। अब कोई दोस्त ही चला आता तो वह मना नहीं कर पाते। दोस्तों के परिवार में उन्हें दोस्त से अधिक सम्मान और प्यार मिलता। दोस्त उन्हें अच्छे दिनों की याद की तरह सहेज कर रखना चाहते। वे दोस्तों की घरेलू समस्याओं को सुलझाने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते।
दोनों मीर घाट पर कुछ सीढिय़ां चढ़ कर एक मंदिर के उपर वाले हिस्सों में जाकर बैठ गये। मंटू काफी देर तक खड़े रहे तो कमीज़ वाले ने उन्हें बैठने का इशारा किया, ''बइठिये भइया।'' वह इधर उधर देखने लगे तो टी शर्ट वाले ने तंज कसा, ''सौफा मंगवा दी का तोहरे बदे?''
अबकी मंटू चुपचाप बैठ गये। तीनों घाटों की तरफ देखते रहे। नीचे की ओर देखने पर ढेर सारे देसी विदेशी गंगा आरती देखने दशाश्वमेघ घाट की ओर जाते दिखायी दे रहे थे। धरम के धंधे का वक्त हो गया था और ढेर सारे प्रकाश के बीच गंगा आरती शुरू होने वाली थी। कुछ पर्यटक गंगा में नाव लगवा कर दूसरी ओर से आरती का आनंद ले रहे थे। मंटू जानबूझ कर चुपचाप आरती की ओर ही देखते रहे। बात शुरू करने की जल्दबाज़ी किसी ने नहीं दिखायी। टीशर्ट वाले ने जेब में कुछ निकालने के लिये हाथ डाला पर अचानक रुक गया।
''ग लेबा कि च?'' वह मंटू से मुखातिब था। इतने समय में उसका पहला वाक्य सहज होकर आया था और मंटू को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि यह उनसे पूछा गया है। वह तुरंत चौकन्ने नज़र आने लगे। टी शर्ट वाले के दोस्ताना रवैये ने उन्हें उत्साहित कर दिया था।
''च च च।'' मंटू ने उत्साह में एक अक्षर का जवाब कई बार दोहरा दिया।
टीशर्ट वाले ने अपनी जेब से एक छोटी सी पन्नी निकाली। उसमें गंदले रंग की एक कागज की पुडिय़ा थी जिसमें एक काली गोली रखी थी। उसने गोली पर अपने मोटरसाइकिल की चाबी का किनारा गड़ाया तो वह उसमें चिपक गयी। उसने माचिस जलायी और चाबी का वह सिरा गरम करने लगा। कमीज वाले ने एक सिगरेट बीचोंबीच फाड़ दी थी और उसमें से निकले तंबाकू को हथेली पर मसल रहा था।
चाबी के सिरे पर लगी गोली ने आग पकड़ ली थी। टी शर्ट वाले ने आग को फूंक मार कर बुझाया और जल्दी से कमीज वाले की हथेली पर उस गोली को गिरा दिया जहां तंबाकू की एक परत बिछी थी। कमीज़ वाला जल्दी जल्दी गोली को तंबाकू के साथ मिला कर मलने लगा। ठोस गोली गरम होने के कारण नरम हो गयी थी और उसका अस्तित्व धीरे धीरे तंबाकू के साथ मिल रहा था। काफी देर तक मलने के बाद उस चूर्ण को एक सफेद पारदर्शी कागज़ पर बिछा दिया जिसके पीछे सिगरेट की डिब्बी से बनी फिल्टरनुमा चीज़ लगायी गयी थी। कागज़ को गोल मोड़ा गया और एक किनारे पर थूक लगा कर उसका सिरा चिपकाया गया। सिगरेट को जला कर टी शर्ट वाले ने तीन लंबे कश खींचे और उसे मंटू को थमाया। मंटू ने उसे क्रांति की मशाल वाले अंदाज से थामा। उन्हें उम्मीद थी कि इसी चीज़ से बात का कोई सिरा खुलेगा जिसे पकड़ कर माहौल सहज बनाया जा सकेगा। उन्होंने पहला ही कश खींचते हुए माहौल को दोस्ताना बनाने की कोशिश की।
''बहुत सही माल है रे, कहां से लियाए?'' वह मुस्करा कर टी शर्ट वाले की ओर देख रहे थे। टी शर्ट वाला जरा भी प्रभावित नहीं हुआ।
''कैलास परवत गये थे। वहीं संकर भगवान पी रहे थे, उनसे छोर लेहली।'' टी शर्ट वाला हिंदी में संयत रहने की कोशिश कर रहा था लेकिन आक्रोश की काशिका संभाल के बाहर चली जाती थी। वह दूसरी तरफ देखने लगा। सिगरेट जब कमीज वाले के हाथ में पहुंची तो उसने धुंए को खींचना और बात को छोडऩा शुरू किया।
''अबे तुम्हारे बड़े भाई जइसे हैं।'' उसने टी शर्ट वाले को नैतिकता का पहाड़ा पढ़ाने की कोशिश की। टी शर्ट वाला सामने से उठा और मंटू भइया के पास जाकर खड़ा हुआ। उनकी ओर एक अश्लील मुद्रा बनाता कमीज़ वाले को दिखाते हुए गुस्से से भर कर कहा, ''हमार लांड़ हंउवन।''
यह एक अपमानजनक बात थी। सामने खड़ा वह उजड्ड लड़का उनके घनिष्ठ मित्र का छोटा भाई था जो शुरू शुरू में उनके पांव छुआ करता था और उनसे डरता था। बाद में कुछ छिटपुट बदमाशों के चक्कर में उसकी लाइन लेंथ बिगड़ गयी और वह धीरे धीरे अपने परिवार से अलग थलग हो गया। उसको किसी बात के लिए कोई समझा नहीं सकता था क्योंकि वह सबके संपर्क से बाहर रहता था। मंटू चुपचाप गंगा की लहरों को देखने लगे जिनमें दूधिया रोशनी के कारण एक अनोखी चमक थी। गंगा आरती पर कैमरों के फ्लैश खटाखट चमक रहे थे। कमीज़ वाले ने टी शर्ट वाले को हाथ दबाकर इशारा किया तो उसे भी लगा यह कुछ ज़्यादा ही हो गया। उसे लगा गुस्से का इज़हार थोड़ा दबा कर करना चाहिए। आखिर कुछ भी हों, बड़े भाई के दोस्त हैं। उसने खुद को थोड़ा नियंत्रित किया। मंटू की ओर जाकर बैठा और अब तक की सबसे सहज और मधुर आवाज़ में पूछा जो फिर भी कड़वी ही थी।
''कहिया?''
मंटू ने उसके ऊपर नजर डाली। उन्हें याद आया कि इस खतरनाक लड़के ने समय पर सूद का मूल न चुकाने वाले कितने ही लोगों के मुंह तोड़ डाले हैं और आंखें फोड़ डाली हैं। वह जानते थे कि वह उनके उपर हाथ नहीं उठायेगा लेकिन यही खयाल उन्हें परेशान करता था कि अगर हाथ नहीं उठायेगा तो क्या करेगा? उन्होंने अपने भीतर एक सिहरन सी महसूस की और कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो पाया कि आवाज़ बाहर ही नहीं आयी। उन्होंने दुबारा उंची अवाज़ में कहा, ''सनिच्चर के।''
एक $खामोशी थोड़ी देर के लिये फैल आयी। घाट पर विदेशी सैलानियों की चहल पहल जारी थी। दो चरसी अंग्रेज़ वहां से गुज़रे तो माहौल की महक ने कुछ पलों के लिये उनके पैर अजगर कर दिये। उन्होंने धुंएं की दिशा में गरदन घुमायी तो टी शर्ट वाले ने आंखों में आगे बढऩे का इशारा किया। वह उन विदेशियों को खूब जानता था जो दशाश्वमेघ घाट से खरीदी हुयी बीड़ी के बदले गांजा चरस पीने के लिए निवेदन किया करते थे। विदेशी दोस्ताना माहौल न देख कर आगे बढ़ गये। सिगरेट बारी-बारी सबके हाथों में जाती रही और धुंआ उड़ता रहा। सबकी आंखें लाल हो गयीं और भारी होने लगीं। नशा पानी में रंग की तरह धीरे धीरे घुल रहा था।
मंटू ने अब दोनों को भर नज़र देखा। उनका आत्मविश्वास वापस लौट आया था। उन्होंने थीड़ी देर टी शर्ट वाले की आंखों में देखा जो अब सहज हो गया था। गुस्से से तने स्नायुओं को उसने आराम दे दिया था और अब परिचित भाव से मंटू की ओर देख रहा था। उसकी आंखों में मंटू ने पढ़ा कि वह अब भी उनकी इज़्जत करता है लेकिन उसे भी पैसों की सख्त ज़रूरत है। मंटू अब फॉर्म में आ गये थे और वह उससे उसी तरह मुखातिब हुये जैसे वह बतौर छात्रसंघ अध्यक्ष अवनीश कुमार सिंह 'मंटू' हुआ करते थे।
''बियहवा क्यों नहीं कर लेते बे? तुम्हारे मइया केतना परेसान है।'' उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा। टी शर्ट वाला न चाहते हुये भी मुस्कराया।
''काहें, अपने बरबाद हो गइला त चाहत हउवा कि हमहूं हो जाईं?'' टी शर्ट वाले के इस बार बोलने से लगा कि यही उसका असली लहजा और आवाज है। शादी का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर उलझन के भाव आने लगे। वह कश लंबे लेने लगा और धुंए को मुंह फुला कर देर तक मुंह में रोकने लगा।
''सादी कर लो गुरू, तुम्हारे बड़े भाई जैसे हैं, इसलिये ऐसी राय दे रहे हैं जो तुम्हें दूसरा कोई झांट नहीं देगा। पूरी दुनिया खुद सादी करके घूमत रही लेकिन जब पूछवा त कहीहन लोग कि नाहीं वे सादी मत करे, बहुत नरक चीज हौ।'' मंटू भैया ने अपने स्टाइल में कहा। उन्होंने टांगें छितरा ली थीं और आराम से टेक लेकर बैठ गये थे। कमीज वाले ने भी चर्चा में हिस्सा लिया।
''गुरू आज नहीं तो कल, करना तो पड़ेगा, बिना सादी किये जिंदगी तो नहीं बीत सकती। बुढ़ौती बहुत नरक चीज है।'' टी शर्ट वाले ने एक नज़र उसकी ओर देखा फिर एक नज़र मंटू की तरफ। उसके चेहरे की उलझन और बढ़ गयी।
''बे भइया सादी कर लें तो रक्खें कहां मेहरारू को और खिलाएं क्या? आप ही जइसे तो लोग हैं जो पइसा तो उठा लेते हैं लेकिन मूल त मूल, सूद देने तक में गांड़ फटती है।'' बात खत्म करते करते वह फिर से पुराने अवतार में जाने लगा लेकिन खुद को संभाला। उसने तय किया कि यह बात खत्म होने के बाद वह फिर एक बार मंटू भैया को शनिवार को पैसे देने के लिए धमकाएगा। मंटू ने देखा कि गुस्से में ही सही, उसने उन्हें काफी समय बाद भैया कहा है।
''बेकार चीज हौ सादी फादी।'' टी शर्ट वाले ने झल्लाहट में कहा। गो उसकी आवाज़ में इस बात को लेकर पूरा विश्वास नहीं था।
मंटू पर नशे का जादुई असर हुआ था। वह खड़े हो गये। उनका शरीर हल्का हो गया था। ये लोग जहां ऊंचाई पर बैठे थे वहां से घाट का नज़ारा काफी नीचे और दिलकश था। मंटू को लग रहा था कि वह अगर दोनों बाहें फैला कर नीचे कूद जाए तो हवा में तैरते हुये पहुंचेंगे। नशा उन पर पैराशूट की तरह हावी था। वह कुछ कदम चलकर टीशर्ट वाले के पास गये। उनका इशारा समझ कर वह उठ खड़ा हुआ। मंटू उसके कंधे पर हाथ रखे हुये उसे किनारे पर ले आये और उडऩे का इशारा स्थगित कर उसे समझाने लगे।
''गुरू हमारी जिंदगी के बयालीस साल गुजर गये हैं। तुमको आज जइसा लग रहा है न कि तुम दुनिया की मां बहिन एक कर दोगे, तुम्हारे आगे कोई नहीं है, हमको भी वइसा ही लगता था। चुनाव जीते, पूरे सहर में डंका था, लगता था हम ही हम हैं। अध्यक्ष बस एक साल के लिए रहता है लेकिन हमको लगता था वह एक साल कभी खतमे नहीं होगा। अगले साल हम हार गये, फिर अगले साल लड़े फिर हार गये तो जइसे साला सब कुछ खतम, फिर पूरा दुनिया बेकार लगने लगा। सादी के लिये घर वाले दउड़ाए तो सादी बिना मन के कर डाले कि हेडेक खतम हो। लेकिन गुरू आज सोचते हैं तो अध्यक्षी का बहुत कम बात याद आता है और सादी का एक एक चीज याद आता है।''
बोलते बोलते मंटू की आवाज़ में भारीपन आ गया था। व्यक्तिगत बातें वह कम ही करते थे। कमीज वाला भी इस दुर्लभ मौके को सम्मान देता उनके पास खिसक आया।
''लगातार दो साल चुनाव हार गये तो पता चला कि हम एक दौ कौड़ी के पूर्व अध्यक्ष हैं जिसका बिना जोगाड़ राजनीति में दो कदम चलना मुस्किल है। हमको कोई कुछ समझता ही नहीं था। जो साले पहिले पैलग्गी करते थे, वे पहचनबे नहीं करते थे। हमको लगने लगा कि हमारा कोई कीमत ही नहीं है लेकिन उसी समय सादी हुयी। हमको सादी से कोई उम्मीद नहीं थी गुरू लेकिन सादी के बाद जब तुम्हारी भउजाई आयी तो हमको लगा कि का झांट जइसन जिंदगी बितावत रहना अवनीस कुमार सिंह। हमारा बी कोई कदर है, अगर से राती को बारह बजे तक हम नहीं पहुंचते तो एक मिली हमरे बदे बिना खाना खइले बइठल रही। एकर मतलब समझेला? लांड़ समझबा तूं? सादी कर ला गुरू नाहीं त जिंदगी में कुछ हौ नाहीं।'' उन्होंने अंतिम पंक्ति जनसभा स्टाइल में कही थी।
टी शर्ट वाला उनकी बात को गंभीरता से सुनता रहा। ''पिछली दोनों तीनों बार भी समझाये थे लेकिन ऐसे तो कभी नहीं समझाए।'' वह मन ही मन सोच रहा था। मंटू अपनी बात का सकारात्मक असर देख और जोश में आ रहे थे।
''गुरू हम दोनों एक दूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे। माई बाउ कहे लगलन कि हो गयल एनकर नेतागिरी लेकिन बाद में देखो नगर निगम का टेंडर हमको कितना जादा मिलने लगा। नक्करऽबा सादी त कइसे जनबा कि एक दूसरे से झगड़ा करे में अउर दू दिना बिना बतियइले रहले के बाद मनावे में जवन मजा आवऽला उ अउर कउनो चीज में ना हौ।''
वह चुप हो गये थे। टी शर्ट वाला वहीं बैठ गया था। तीनों की नज़रें कहीं दूर टिकी हुयी थीं जहां से बीता हुआ समय गुज़र रहा था। मंटू की आवाज़ में अब ठहराव और इत्मीनान आ गया था।
''देख रहे हो टाइम कितना तेज भाग रहा है। तुम्हारे हमारे लोग चालीस पैंतालिस का होने के बाद आराम चाहते हैं। चालीस के बाद गाली गुफ्ता देवल, मारपीट करल, पुलिस से बेइज्जती करावल अच्छा ना लगऽला गुरू, यही से हम नेतागिरी छोड़ देहली। सादी करके जो लोग त्रस्त हैं उनको क्यों देख रहे हो। जिनकी सादी अच्छी चल रही है, उनको देखो। हमको देखो। गुरु एक चीज जान लो सादी में जादू है लेकिन तोहरे पल्ले जादू समझे के समझ होवे के चाही। केतने बेचारे दोस्त रहलन जो सादी के बाद हर समय मेहरारू से झगड़ही में लगऽल रहऽलन लेकिन हम लोग हमेसा एक दूसरे के लिए टाइम निकालते रहे, एक दूसरे को प्यार करते रहे। बेटा ए उमर में जइबा त पता चली जेतना बढिय़ा टाइम बीतल हौ, या त बचपने में हौ या त फिर सादी के बाद हौ। जहां जहां हम लोग एक साथ घूमने गये, जानते हो उसका फोटो हम लोग दुबारा बइठ के देखते हैं तो फिर से वहीं पहुंच जाते हैं। फीरी में घूम आते हैं फिर से वहीं। बच्चा होने वाला था तो क्या क्या प्लानिंग किये थे हम लोग, और बच्चा होने के बाद जब उ हमको पहिली बार पापा बोला, तोरे भउजाई के अम्मा कहलस। इस सब कइसे समझबा? टाइम बहुत तेज भागता है गुरू, अब देखो हमारा लउंडवा आठवीं में चला गया धीरे धीरे। इस टाइम हम किस काम लायक रहते, कउनो नहीं। अगर हम सादी नहीं किये रहते तो हमारे हाथ में आज इस उमर में क्या रहता? बताओ। तो कुल मतलब ई कि बुढ़ौती में कउनो काम न रही करे बदे तक कम से कम परिवार त रही, समझ में आयल?'' मंटू भइया एक साधारण सिगरेट सुलगा कर पी रहे थे और टी शर्ट वाले के कंधे पर उनका हाथ था। वह उनकी बातों से काफी प्रभावित दिख रहा था। उसे लग रहा था इस  बात पर सोचने की एक और भी दिशा थी जो न उसके दिमाग में अब तक आयी और न ही इसके बारे में किसी ने बताया था। कमीज़ वाले ने शिगूफा छोड़ा जिसे किसी ने नहीं पकड़ा।
''अभी त जवान हउवा मंटू भइया, चालीस बयालिस कउनौ उमर होला?''
टी शर्ट वाले के मन में मंटू की बातें लगातार गूंज रही थीं।
''पहिले त एतऽरे ना समझउला भइया।'' मंटू की बातों का असर उसकी आवाज़ और उसके लहजे से ज़ाहिर था।
''कर लो गुरू कर लो। कई बार मेहरारू की किस्मत से अपनी किस्मत चमक जाती है।'' मंटू ने उपसंहार दिया। टी शर्ट वाला धीमे से उठा और जाने का उपक्रम करते हुये उसके पांव छूने लगा।
''चलत हईं।'' वह पलटा।
''खुस रहा।'' मंटू ने आशीर्वाद दिया। टी शर्ट वाले के पीछे जाने के लिये कमीज़ वाला भी उठ खड़ा हुआ। थोड़ी दूर जाकर टी शर्ट वाला पलटा।
''पइसवा दे दा भइया, दउड़ा मऽत। ई सूद पर पइसा वाला काम हम बंद करब, हमें फलत ना हौ।''
''सनीच्चर के एकदम।'' मंटू ने आश्वस्त किया।
दोनों सीढिय़ां चढ़ते हुये किसी गली में गुम हो गये। मंटू ने सिगरेट मसल कर फेंकीं। उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने काफी पहले सोच लिया था कि जो हुआ सो हुआ, अब भी वह समाज सेवा पूरे मन और ईमानदारी से ही करेंगे। यह खयाल आने के बाद वह यह दूसरा खयाल आने से मुस्करा उठे थे कि कई लोग इसलिए भी ईमानदार रह जाते होंगे कि उन्हें मनचाही बेइमानी करने का मौका ही नहीं मिल पाता होगा।
घाट का एक पुराना साधू काफी देर से बैठा उनकी बातें सुन रहा था। उसने मंटू से चिल्ला कर कहा, ''काहे बदे ओकर जिनगी बिगाड़त हउवा नेता जी?''
मंटू ने उसे एक नज़र देखा और घर की ओर चल पड़े। मोबाइल में उन्होंने अपने दोस्त का नंबर मिला लिया था ताकि उसे खुशखबरी दे सकें।







2013 में मीरा पुरस्कार से सम्मानित। नये कथाकारों में सर्वोच्च पहचान। पहला कहानी संग्रह 'डर', दूसरा 'मस्तूलों के ईर्द-गिर्द' और तीसरा 'उत्तर प्रदेश की खिड़की'। हाल ही में एक उपन्यास 'आधार' से आया है।

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