लद्दाख के दुर्गम इलाके जांसकर की यात्रा अनुभवों से उपजी कविता श्रृंखला
देखो सखी, देखो-देखो
छुमिग मारपो3 रजस्वला स्त्री की देह से बह आये रक्त का नाम है
उर्वरता से बेसुध पड़े पहाड़ ढकी हुई बर्फीली चाटियों के बहुत नीचे तक खिसक आये ग्लेशियरों से भरे हैं
जीवन की संभावनाओं को संजोये पाद में गुद-गुदी कर सरक जाती हैं, इठलाती, बलखाती कितनी ही जलधाराऐं
बदन पर जमी मैल को रगड़ देने के लिए मजबूर करते हैं पहाड़ छुमिग नाकपो3 का काला जल देह की मैल में रल कर पछार खाता बहता चला जाता है तटों पर छूट जाती है रेत लौट नहीं पाता दूधियापन
कितना रोना रोएं गले मिलकर साथ बढ़ती जल-धाराऐं निर्मोही, कैसे तो ठुकराता है हवाओं के बौखों से कैसे तो उठ आयी हैं दर्प की मेहराबें देखो-देखो, देखो सखी, देखो तो।
छुमिग मारपो3 - जगह का नाम, फिरचेन ला का बेस
सलामत रहे दुनिया
मेरे कान वेगवान नदी की उछाल मारती धारा को सुन रहे हैं मेरी आंखें सूखे पहाड़ों पर तृण की तरह उग आई हरियाली को मचल रही है
घुटनों के जोर पर ऊंचाई दर ऊंचाई चढ़ते हुए मेरे फेफड़े लगातार उस वायु को सोखते जा रहे हैं, जिसके स्वच्छ रहने की संभावना विकास का सतरंगी माडल खत्म किए दे रहा है
पिट्ठू का भार उठाते हुए जिस्म की ताकत का भरोसा दिला रहे हैं कंधे सूखी हवाओं के थपेड़ों को झुलसते हुए भी झेलती जा रही है मेरी त्वचा संगीत चेहरे पर ऐसे ही हो रहा है दर्ज अपनी लडख़ड़ाहट भरी पहचान छोड़ते हुए
सलामत रहे दुनिया सलामत रहे अंग प्रत्यंग के साथ गुजरते हुए सारे राहगीर
मेरे घोड़े
जांसकर सुमदो के गड़-गड़ से होकर मैं हांकता चला जाता हूं अपने घोड़े सिंकुला की ओर
पीठ पर लदे टैन्ट, राशन और तेल के भार झुका देते हैं कमर छल-छला जाता है पेट में इकट्ठा द्रव, किसी बड़े से पत्थर के ऊपर अगला पांव रखते जब उठता है पिछला तो फस्स के साथ बह आता है बाहर
मेरी सीटी की लम्बी सटकार पर पंक्तिबद्ध बढ़ जाते हैं मेरे घोड़े गड़-गड़ के बीच झांकता पौधा मचल रहा होता उनके भीतर, मुंह मारने से पहले ही मेरी सीटी की फटकार पर झुकते झुकते भी ऊपर उठ जाती है गर्दन अये, हाऊ क्यूट
व्हेरी ओबीडियन्ट गाई,
हाथ झुलाते हुए चल रहे पार्टी के सदस्य की आवाज गुदगुदा जाती है मुझे मेरे घोड़ों की चाल भी होती है उस वक्त मस्त।
नदी पर झूला पुल
झूला पुल से गुजरते हुए निगाह पहुंच ही जाती है बहाव तक खतरे के अनजानेपन से गुजरते हैं घोड़े
एक छोर से दूसरे छोर तक थमा है पुल जिन रस्सियों पर पकडऩे की कोशिश बेहद खतरनाक है निगाहों में डोलता है नदी का बहाव
घोड़ों ने जो देख लिया नीचे तो कैसे समझाऊंगा, सिर्फ सामने देखो दोस्त पुल तो स्थिर है, पर बहाव पर टिकी आंखें उड़ा रहीं उसे।
डूबने डूबने को होते हुए
डूबते हुए भी घोड़े तैरने का अभ्यास करते हैं नदी भी होती है अपने बहाव में अभ्यास करती हुई - और तेज और तेज बहने का
दृश्य वाकई लुभावना है तालियां पीटते हैं पार्टी के लोग जब जैसे तैसे तो पार लग शरीर को झिंझोड़ कर झटक रहे होते हैं बदन पर लिपट गया पिघलती बर्फ का गीला पन
हड्डियों के भीतर सरक गई ठंड लाख झटकने के बाद भी गिरती ही नहीं जैसे नहीं गिरा होता पीठ पर लदा सामान बहाव के बीच डगमगाते हुए भी
कितनी बार उतरना होगा अभी और बहते हुए दरिया में पन्द्रह साल तो हो ही चुकी है उम्र अब।
जैसे गुजरे घोड़े
नीचे बहते पानी को मत देखो यात्री झुलने लगेगा पुल चक्कर खा जाओगे झूलती हुई रस्सियों को तो पकडऩे की बिल्कुल भी गलती न करना ऐसे में ये वहां पर होंगी नहीं, न ही हाथ आएंगी
सीधे, एकदम सामने देखो वैसे ही जैसे निर्विकार भाव से देखते हुए घोड़े गुजर गए।
गुजरेंगे तो जान पाएंगे
जानने की जितनी भी जगह हैं हैं सफेद, बर्फ-सी उजास अंधेरे कोनों में महाकाल है
घास बर्फीली सफेदी के साथ नहीं हरेपन की चित्तीदार पहाडिय़ां हैं
दूर से देखो तो ढकी हुई है चित्तियां कुछ कम दूर से देखने पर बिखरी हुई भेड़ें नजर आती हैं गद्दियों से पूछो तो बता देंगे- उस तरफ तो भेड़ें हो ही नहीं सकती सहाब वे तो कठोर चट्टाने हैं वो हरियाता हुआ मंजर जली हुई चट्टानों से है जो इतनी दूर से ऐसे ही दिखता है
भेड़े जांसकरी थोड़े ही है जो झांसे में आ जाएं चारागाह पहचान लेती हैं पहाड़ी के पार भी, जिसे इस तरफ से तो देखा ही नहीं जा सकता
गुजरेंगे तो जान पाएंगे वे उसी ओर बढ़ी हैं।
यह कैसा गिरिभाल
सिंकुला की चढ़ाई पर निकलते हैं जांसकरी मनाली पहुंचना है नमक, चीनी, कपड़ा-लत्ता बोरी-राशन भर कर लौटते हैं कुल्लू दारचा वाली बस से
मनाली की इस भागम-भाग में बदन पीसने से चिप-चिपाने लगते हैं मनाली की गरम हवाऐं काटने लगती हैं घर का रास्ता रोके खड़ी रोहतांग की चढ़ाई बहुत चिढ़ाती है
कम्बख्त... कितना तो दूर हो जाता है मनाली बाजार लाहौल वाले भी जांसकरियों के स्वर में ही बोलते हैं।
कैद स्वच्छंदता
ऐसा नहीं है कि ऊंचाइयों पर चढऩे का शऊर नहीं कितने ही उजाड़ और वीराने में बिता देती हैं जिन्दगी जांसकर की स्त्रियां
ऊंचाई-दर-ऊंचाइयों के पार फिरचेन लॉ की चढ़ाई को चढ़कर डोक्सा तक पहुंचते हैं तांग्जे गांव के बच्चे अपनी मांओ के साथ
लेह रोड दूर है बहुत, खम्बराब दरिया के भी पार डोक्सा से कैसे तो देखेगीं? मोटर-गाड़ी तो कोई सुना गया शब्द है किसी चीज का नाम जैसे सुना है - मनाली एक शहर है जहां के बाजार से मर्द खरीद लाते हैं कपड़ा, लत्ता, राशन
डोक्सा में याक की पीठ पर सवारी करती जांसकरी स्त्री को देख चौरु, याक, सुषमो, गरु, गिरमो को ङ देखने आने वाले स्वच्छंदता की तस्वीर को कैद करने का उतावलापन संभाल नहीं पाते तन जाते हैं कैमरे।
नोट : चौरु, याक, सुषमो, गरु, गिरमो के ङ - जांसकरी पालतू जानवर
फिसलन भर चमक
डिब्बाबंद, पैकेटों के रंगबिरंगेपन में छोड़ दिये गए उच्छिष्ट को जितना ही जलाओ राख के रंग में भी न दिखेंगे तो राख तो होगें ही क्या
हवाओं में घुलते अंश के साथ खड़ी होती जा रही टीले दर टीले ऊंचाई संजोती रहेगी फिसलन भर चमक मुनाफे की लोलुप निगाहें फैलाने लगे भ्रम कि सदियों से यूंही धातु के ठोसपन का नाम है ग्लेशियर तो आश्चर्य क्या। |