इन्दु श्रीवास्तव की ग़ज़लें

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    फरवरी 2014
श्रेणी ग़ज़ल
संस्करण फरवरी 2014
लेखक का नाम इन्दु श्रीवास्तव





किस तरह दिल को लगावै कोई
यां ग़ज़ल किसको सुनावै कोई

दूर तक पेड़ न कोई साया
दोपहर कैसे बितावै कोई

तेरी बस्ती भी कुई बस्ती हैं
पास दो पल भी न आवै कोई

कोई भूले से न मुड़ कर देखै
हाथ खिड़की से हिलावै कोई

प्यास के  वास्ते पानी चइए
लाख आंखों से पिलावै कोई

यां तो सब आग लगाने वाले
कोई तो हो कि बुझावै कोई

हम तो शीशा हैं हमारा क्या है
कोई संवरैं कि लजावै कोई

* *

रात चुप थी मगर दिया बोला
तेल, बाती को शुक्रिया बोला

मेरी ग़ज़लों में दर्द बोला तो
लोग समझे कि क़ाफ़िया बोला

हुक्मरानो की कुर्सियां बोलीं
कामगारों का हाशिया बोला

आंख आंसू से आदतन बोली
दिल उदासी से शौक़िया बोला

एक बेज़ार अधजला पंछी
जब भी बोला पिया-पिया बोला

मेरे लहज़े में लंतरानी थी
तू बिना बात तंज़िया बोला


* *

उन्हें सुन कर ये हैरानी नहीं है
हमारे गांव में पानी नहीं है

मछलियां  मरते-मरते कह गई हैं
शरारत है ये नादानी नहीं है

किसी ने कहकहों के शोर-गुल में
मेरी आवाज पहचानी नहीं है

नदी का रेत में तब्दील होना
ये कोई कम परेशानी नहीं है

कोई देखे इसे महसूस करके
हमारा दर्द बेमानी नहीं है

* *
मुफ़लिसों की जिन्दगानी भूख में
भूख में बचपन जवानी भूख में

बस्तियों की भूख को तो छोडि़ए
हमने देखी राजधानी भूख में

जो न भूखा हो उसे ये क्या पता
आग सा लगता है पानी भूख में

रोटियों के वास्ते भटका किए
दर-ब-दर की ख़ाक छानी भूख में

भूख में तो सारे मौसम एक से
क्या करेगी रुत सुहानीं भूख में

* *




'रज़ा पुरस्कार' से सम्मानित।
'उडऩा बे आकाल परिन्दे' उल्लेखनीय संग्रह है।
'इन्दु श्रीवास्तव की दुनिया में स्त्री की बात कही है। वही ग़ज़ल का मर्म है। एक फकीर का सा स्वभाव इन्दु की पहचान है'।
- स्व. परमानंद श्रीवास्तव

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