पाब्लो नेरूदा के बाद चीले के सबसे प्रमुख कवि निकानोर पार्रा 4 सितम्बर 2014 को जीवन के एक सौ वसंत देख चुके हैं. शतायु होने वाले वे हमारे दौर के अकेले कवि है और लातीन अमेरिका के बड़े कवियों में उनका शुमार है। सैद्धांतिक भौतिकी के प्राध्यापक रहे पार्रा कविता के बरक्स 'प्रति-कविता' लिखते रहे हैं जो पारंपरिक कविता की रूमानियत, आवेगमयता और भावप्रवणता से अलग काफी बौद्धिक, शुष्क, सपाट, विरूप और प्रयोगशील है। सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक में पार्रा के अंग्रेजी अनुवादों की किताब 'पोयम्स एंड एंटी-पोयम्स' हिंदी कवियों के बीच चर्चित रही और उनकी कई कविताओं के हिंदी अनुवाद हुए. दुनिया भर के कवियों की बिरादरी में पार्रा के सौ बरस उल्लास के साथ मनाये जा रहे हैं। यहाँ उनकी आठ कविताएँ प्रस्तुत हैं।
काल्पनिक आदमी
काल्पनिक आदमी एक काल्पनिक हवेली में रहता है काल्पनिक पेड़ों से घिरा हुआ एक काल्पनिक नदी के तटों पर।
काल्पनिक दीवारों पर पुरानी, काल्पनिक पेंटिंग टंगी हैं ठीक न हो सकने वाली काल्पनिक दरारें जो काल्पनिक घटनाओं को दर्शाती हैं जो काल्पनिक दुनियाओं में घटित हुईं काल्पनिक जगहों और वक्तों में।
काल्पनिक दोपहरों को, हर दोपहर वह काल्पनिक सीढियां चढ़ता है और काल्पनिक बालकनी के पार देखता है काल्पनिक भू-दृश्य को देखने के लिए जो एक काल्पनिक घाटी से बना है काल्पनिक पहाड़ों से घिरा हुआ।
काल्पनिक छायाएं काल्पनिक सड़कों से होती हुई आती हैं काल्पनिक गीतों को गाती हुईं काल्पनिक सूर्य की मृत्यु के पास। और काल्पनिक चाँद की रातों में वह काल्पनिक औरत का स्वप्न देखता है जिसने उसे काल्पनिक प्यार किया था और वह फिर से वही दर्द महसूस करता है फिर से वही काल्पनिक आनंद और वह काल्पनिक आदमी के दिल को फिर से धड़काता है।
मुझसे समाप्त होती है कविता
मैं किसी चीज़ का अंत नहीं करने जा रहा इस बारे में मुझे कोई मुगालता नहीं मैं चाहता था कि कविता लिखता रहूँ लेकिन प्रेरणा ही हो गयी ख़त्म। कविता ने बड़ी खूबी से खुद को छुड़ा लिया मैं ही पेश आया बुरी तरह से।
यह कह कर क्या हासिल होगा मुझे कि मैंने बड़ी खूबी से छुड़ा लिया खुद को और कविता ही पेश आयी बुरी तरह से जबकि सब जानते हैं मेरा ही रहा है दोष। एक मूर्ख इसी के लायक होता है!
कविता ने खुद को बड़ी खूबी से छुड़ा लिया मैं खुद ही पेश आया बुरी तरह से कविता मुझसे समाप्त होती है।
आखिरी जाम
चाहे हम इसे पसंद करें या न करें, हमारे पास सिर्फ तीन विकल्प हैं: कल, आज और कल।
और तीन भी नहीं क्योंकि जैसा कि दार्शनिक कहता है कल तो कल है और सिर्फ हमारी स्मृति में रहता है पंखुडिय़ां-नुचे गुलाब से और पंखुडिय़ां निकलना नामुमकिन है।
खेलने के लिए दो ही कार्ड हैं : वर्तमान और भविष्य।
और दो भी नहीं हैं क्योंकि जाना-माना तथ्य यह है की वर्तमान का अस्तित्व ही नहीं हैं सिवा इसके की वह अतीत से लगा हुआ रहता है और हज़म कर लिया जाता है जवानी की तरह। अंत में हमारे पास सिर्फ आनेवाला कल बचा रहता है मैं अपना जाम उठाता हूँ उस दिन के लिए जो कभी नहीं आता।
बस इतना ही है जो हमारे बस में है।
प्रस्ताव
मुझे अफ़सोस है कि यहाँ खाने के लिए कुछ नहीं है दुनिया को मेरी रत्ती-भर परवाह नहीं साल-दर-साल मैं कहता आ रहा हूँ कि भिखारी नहीं होने चाहिए।
मेरा प्रस्ताव है कि हम बागीचों में तितलियों की बजाय केंकड़े रख दें --यह कहीं बेहतर है— क्या कोई कल्पना कर सकता है बिना भिखारियों के संसार की?
मेरा प्रस्ताव है कि हम सब कैथोलिक बन जायें या कम्युनिस्ट या फिर आप जो कहें यह सिर्फ एक शब्द की जगह दूसरा शब्द रखने का सवाल है मेरा प्रस्ताव है कि हम पानी को साफ करना शुरू करें।
भिखारी के इस डंडे से प्राप्त अधिकार के तहत मेरा प्रस्ताव है कि पोप के मूछें होनी चाहिए।
मैं भूख का मारा हूँ मेरा प्रस्ताव है कि कोई मुझे एक सैंडविच दे और फिर मैं अपनी ऊब से छुट्टी पा लूं मेरा प्रस्ताव है कि सूर्य पश्चिम में उगे।
तो फिर आप हैरान न हों अगर मैं आपको एक साथ दो शहरों में नज़र आऊँ।
क्रेमलिन के गिरजाघर में प्रार्थना सुनता हुआ और न्यूयॉर्क के एक हवाई अड्डे पर हॉट डॉग खाता हुआ।
मैं दो जगहों पर एक ही व्यक्ति हूँ हालाँकि यह ऊलजलूल है कि मैं एक ही व्यक्ति हूँ।
चेतावनियाँ
आग लगने पर एलीवेटर का इस्तेमाल न करें सीढिय़ों का इस्तेमाल करें जब तक अन्यथा न लिखा हो।
धूम्रपान न करें कूड़ा न फैलायें शौच न करें रेडियो न बजायें जब तक अन्यथा न लिखा हो। हर बार इस्तेमाल के बाद टॉयलेट का फ्लश चलायें लेकिन उस समय नहीं जब ट्रेन स्टेशन पर खड़ी हो दूसरे यात्रियों का खयाल रखें ईसाई सिपाही आगे बढ़ें दुनिया के मजदूरों एक हो हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है (एवमेव) अपनी ज़िंदगी के अलावा परमपिता का यशगान करें औ उसके पुत्रों का औ पवित्र भूत का जब तक अन्यथा न लिखा हो।
बहरहाल हम भी इन सत्यों को स्वत:-प्रमाणित मानते हैं कि सभी आदमी (एवमेव) को रचा गया है कि उनके रचयिता ने उन्हें कुछ अहस्तान्तरनीय अधिकार प्रदत्त किये हैं कि वे इस प्रकार हैं: जीवन स्वतन्त्रता औ सुख की साधना और आखिरी लेकिन अहम् बात कि 2+2 मिलकर 4 होते हैं जब तक अन्यथा न लिखा हो।
समय देवता
सांतिआगो, चीले में दिन अंतहीन लम्बे होते हैं एक दिन में कई अनंतताएं।
समुद्री शैवाल के विक्रेताओं की तरह खच्चरों की पीठ पर सवार। तुम उबासी लेते हो—लेते जाते हो।
तब भी सप्ताह छोटे पड़ जाते हैं महीने भागते हुए जाते हैं और वर्षों को लगे होते हैं पंख।
युवा कवि
लिखो जैसा तुम चाहो जिस भी अंदाज़ में।
पुल के नीचे बहुत सारा रक्त बह चुका है सिर्फ यह साबित करता हुआ कि एक ही रास्ता सही है।
कविता में सब कुछ जायज़ है तुम्हे सिर्फ एक कोरे कागज़ को बेहतर बनाना है।
मिलर विलियम्स के अंग्रेजी अनुवादों से हिंदी अनुवाद। सूचनार्थ कि पहल ने चालीस वर्ष पूर्व 'पहल-2' में निकोनार को छापा था। अनुवाद शैलेन्द्र शैल ने किया था। काफी बाद में निकोनार भारत भी आये थे, भारत भवन के आयोजन में।