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जून-जुलाई 2015

डिस्पैच/जर्मन में पहल

हेमंत शर्मा




प्रोजेक्ट साथ-साथ और पहल पत्रिका


प्रोजेक्ट समूह साथ-साथ ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय, जर्मनी प्रिंटिंग प्रेस और उपनिवेशवाद के दौर में दक्षिणी एशिया के साहित्यिक जगत में उपजी विभाजन की फांकों को नयी टेक्नोलॉजी और नए अंतर्राष्ट्रीय अवसरों के उपयोग से पाटने का प्रयास है। हिंदी और उर्दू के सक्रिय साहित्यिक जगत को यदि एक बोलते-चालते और दृश्य-श्रव्य पोर्टल पर लगाया जाये तो यह चीनी भाषा के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा साहित्यिक जगत होगा। इस प्रोजेक्ट समूह में कई टीमें मिलकर काम कर रही है जो भारत, पाकिस्तान यूरोप के विभिन्न विश्वविद्यालयों, संस्थाओं से हैं।
प्रोजेक्ट समूह साथ-साथ के प्रमुख लक्ष्य हैं:
1. हिंदी और उर्दू साहित्यिक पत्रिकाओं को डिजिटाइज़ करना और ओंडिओ दर्शन, ऑप्टिकल करेक्टर रिकॉग्निशन तकनीक (OCR) और विडिओ फिल्मो के माध्यम से देवनागरी और अरबी फारसी लिपि की सीमाओं को पार करना। इस प्रकार हिंदी और उर्दू पाठको और अध्येताओं के बड़े वर्ग के लिए एक-दूसरे की साहित्यिक दुनियाँ में प्रवेश के रास्ते खुल जायेंगे। हम जानते है कि पाठको के एक बहुत बड़े वर्ग को मात्र या तो उर्दू लिपि आती है या देवनागरी लिपि।
2. दोनों साहित्यों की दुनिया को ऑडिओ और दृश्य-श्रव्य माध्यमों में प्रस्तुत करने से एक और नया वर्ग भी उर्दू-हिंदी जगत से जुड़ जा सकता है, जो हिंदी और उर्दू समझता है किन्तु पढ़ नहीं सकता है।
3. इस प्रोजेक्ट समूह का तीसरा लक्ष्य है विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय, धार्मिक, भाषायी, साहित्यिक और सांस्कृतिक विभाजनों को दूर करने की और उनके बीच गहन संवाद स्थापित करने की कोशिश करना।
प्रोजेक्ट समूह साथ-साथ की शुरुआत कर्मेंदु शिशिर शोधागार की स्थापना से हुई। इस शोधागार में लगभग 4,500 हिंदी की साहित्यिक पत्रिकायें, पुस्तकें, साहित्यकारों के पत्र, हस्तलिखित पाण्डुलिपि शामिल है। इसके उर्दू वाले हिस्से को वसुधा डालमिया बर्कले यूनिवसिर्टी केलिफोर्निया ने दान दिया है, जिसमें मुंशी नवल किशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित पुस्तकें और रचनायें हैं। इसका नाम विख्यात आलोचक कर्मेंदु शिशिर के नाम पर रखा गया क्योंकि उन्होंने न केवल हिंदी पत्रिकाओं को दान  दिया बल्कि उसकी एक विस्तृत विवरिणका भी बनायीं तो इस वेबसाइट पर उपलब्ध है।
http://www.kss.uni-tuebingen.de/photogallery.php
http://www.kss.uni-tuebingen.de/literacy_magazines.php

प्रोजेक्ट साथ-साथ और पहल

प्रोजेक्ट साथ-साथ की शुरुआत से ही इसे पहल का निरंतर सहयोग मिल रहा है। इस शोधागार के लिए साहित्यिक पत्रिकाओं के संकलन की अपील का विज्ञापन सबसे पहले पहल ने ही छापा था। हमारे संग्रह के सबसे अहम हिस्सों में से एक इस पत्रिका के सारे अंक हमारे पास हैं।
हाल ही में शिशिर जी के सम्पादन में हमने पहल की एक प्रामाणिक और मुकम्मल विवरणिका इसके परिचय के साथ प्रकाशित (2015) की है। लगभग 90 पृष्ठों की  इस विवरणिका को पलटने से पाठकों को बहुत कम समय में ही उसे पता चल जायेगा कि अपने जन्म से अब तक इस पत्रिका में किस विषय पर क्या क्या प्रकाशित हुआ है।
हमारी योजना है कि हिंदी उर्दू की साहित्यिक पत्रिकाओं को सबसे नयी उपलब्ध तकनीकी से डिजिटल रूप दिया जाये। इसके तहत पहल के 75 वें अंक को चुना गया है। स्कैनिंग के बाद हमारे प्रायोगिक वेबपोर्टल पर इसे ऑनलाइन किया गया है। इस तकनीक से इसे लाभ यह है कि जैसे कोई भी पत्रिका हाथ में ली जाती है उसी तरह से इसे ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है। जैसे विषयसूची पर स्किल करने पर आप सीधे निबंध के पृष्ठ पर जा सकते हैं। डीवर्क प्रोग्राम में ऑडियो वर्शन और ऑप्टिकल कैरेकटर रिकॉग्निशन (OCR) को जोडऩे और अपलोड करने की गुंजाइश है।
इसकी ऑनलाइन विवरणिका को ही पढ़कर, कराची के संपादक अजमल कमाल ने बताया कि उन्हें उर्दू के किन लेखकों की रचनायें कब हिंदी जगत में प्रकाशित हुई थी। पहल की ऑनलाइन विवरणिका यहां उपलब्ध है:
http://www.kss.uni-tuebingen.de/downloads/Pahal.pdf.
हम अपने अभियानों और योजनाओं में पहल को आगे रखते है ताकि इसकी माँग के अनुरूप इसे अपने पाठकों और अध्येयताओं के सामने रखने की सबसे नयी तकनीकी संभावनाओं को तलाश कर सकें।
हेमंत शर्मा (09811591604)





प्रोजेक्ट साथ-साथ के समन्वयक दिव्यराज अमिय के साथ बातचीत के आधार पर
विदित हो कि पहल के सौवें अंक में हम मुंशी नवल किशोर पर राजकुमार केसवानी का एक विशेष दस्तावेजी लेख प्रकाशित कर रहे है।
प्रसिद्ध उर्दू लेखक-संपादक पाकिस्तान के अजमल कमाल 'पहल' को निरंतर सहयोग देते रहे है।


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