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जून-जुलाई 2015

एदुआर्दो गेलियानो : इतिहास कहता है: फिर मिलेंगे

शिवप्रसाद जोशी

स्मृति/बदलती हुई लड़ाईयां




मेरे देश में ''आज़ादी'' राजनैतिक कैदियों के लिए जेल का नाम है और ''लोकतंत्र'' आतंक के विभिन्न साम्राज्यों का एक टाइटल है, ''प्रेम'' से तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति का अपनी कार से क्या रिश्ता है। और ''क्रांति'' वो है जो एक डिटर्जेंट आपकी किचन में कर सकता है, ''महिमा'' एक मुलायम से साबुन का प्रभाव है जो इस्तेमाल करने वाले के भीतर पैदा होता है. और ''ख़ुशी'' वो उत्तेजना है जो हॉट डॉग खाते हुए अनुभव की जाती है। लातिन अमेरिका में ''एक शांतिपूर्ण देश'' का अर्थ है- एक ''सुव्यवस्थित क्रबिस्तान'' और बाज़दफा ''तंदुरस्त आदमी'' से आशय होता है एक ''कमज़ोर आदमी।''
-एदुआर्दो गेलियानो ( डेज़ ऐंड नाइट्स ऑफ़ लव ऐंड वॉर, 1983, 2000, 2009)

लातिन अमेरिकी जनता के लिए तीन बड़ी क्षतियां एक साल के भीतर हुई है। 2014 जनवरी में अर्जेटीनी कवि-पत्रकार युआन गेलमान का निधन हुआ. उसी साल अप्रेल में गाब्रिएल गार्सिया मार्केस नहीं रहे। और अब 13 अप्रेल 2015 को उरुग्वे के लेखक पत्रकार और एक्टिविस्ट एदुआर्दो गेलियानो का निधन हुआ। वो 74 साल के थे और कैंसर से उनकी मौत हुई। गेलियानो मार्केस के भी दोस्त थे और गेलमान के भी। गेलमान की अंग्रेज़ी में उपलब्ध एकमात्र किताब 'अनथिंकेबल टेंडरनेस' की प्रस्तावना उनके अज़ीज़ दोस्त गेलियानो ने ही लिखी है। पूरी दुनिया के लिए ये क्षति और भी बड़ी हो जाती है क्योंकि इस साल एक ही दिन कुछ घंटों के अंतराल पर पर दो बड़े सार्वजनिक बुद्धिजीवी, जर्मन लेखक ग्युंटर ग्रास और एदुआर्दो गेलियानो नहीं रहे।
एदुआर्दो गेलियानो पूंजीवाद, नवसाम्राज्यवाद और दमनकारी निरंकुश सत्ताओं के ख़िलाफ बोलने वाली सबसे प्रखर आवाज़ों में अग्रणी थे। दुनिया भर के सार्वजनिक बुद्धिजीवियों में वो सबसे आगे की पंक्ति में शामिल थे। और उन प्रतिरोध आंदोलनों के लिए हिम्मत और हौसले का काम करते रहे थे जो अमेरिका से लेकर फ़िलस्तीन और भारत के उत्पीडि़त इलाकों तक फैले हुए हैं। प्रख्यात लेखिका अरुंधति रॉय ने उनके साथ प्रतिरोध के अंतरराष्ट्रीय मंचों और आंदोलनों में शिरकत की है। अरुंधति रॉय के लेखन पर गेलियानो का काफ़ी असर माना जाता है। दोनों की एक शानदार बातचीत भी डेमोक्रेसी नाऊ नाम की अमेरिकी वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसकी संचालिका जानी मानी एक्टिविस्ट ऐमी गुडमैन हैं।
'ओपन वेन्स ऑफ़ लैटिन अमेरिका' गेलियानों की एक अद्भुत रचना है। 1971 में आई, अपने समय की बेस्टसेलर ये किताब लातिन अमेरिकी समाज की यातनाओं और संघर्षों की ऐसी दस्तावेजी झांकी प्रस्तुत करती है कि आप लगता है इतिहास नहीं पढ़ रहे हैं बल्कि कोई एक बहुत लंबी फ़िल्म देख रहे हैं। ये किताब उन आदिवासी और कबीलाई संघर्षों की दास्तानें ही नहीं बताती ये उस दमनकारी और कपट भरी ऐतिहासिक यात्राओं का मकसद भी बताती है जो यूरोप के व्यवसाइयों और चर्चों और महलों के प्रतिनिधियों ने संसाधनों की लूट और लालच में इस महाद्वीप पर की हैं। गेलियानो का लेखन लातिन अमेरिकी जादुई यथार्थवाद में नये आयाम जोड़ता हुआ लेखन है। उनकी भाषा में करामातें हैं लेकिन वे इतनी सच्ची हैं कि आप उसी रास्ते से वृतांत में दाख़िल होते हैं। ये रास्ता भले ही टेढ़ामेढ़ा और विकट है और अंधेरों से घिरा है लेकिन संघर्षों के आख्यान ऐसे ही रास्तों से निकलते बनते हैं और अपने आंतरिक प्रकाश में चमकते रहते हैं। 'इन डिफ़ेंस ऑफ़ द वल्र्ड' नाम के अपने एक लंबे नोट में  भाषा और साहित्य के बारे में गेलियानो लिखते हैं, ''हम कितने प्रभावशाली रह पाते हैं ये निर्भर करता है इस बात पर कि निर्भीक और दक्ष, स्पष्ट और आकर्षक रहने की हममें कितनी सामथ्र्य है। मैं उम्मीद करता हूं कि हम एक ऐसी भाषा की रचना कर सकें जो धुंधलके का स्वागत करती अनुसरणकारी और परंपरावादी लेखकों की भाषा से ज़्यादा निर्भय और सुंदर हो।''
वेनेजुएला के दिवंगत राष्ट्रपति ह्युगो चावेज़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को 2009 में 'ओपन वेन्स ऑफ़ लैटिन अमेरिका' किताब भेंट की थी। हालांकि ये भेंट भी कुछ कुछ नाटकीय और सांकेतिक ही थी क्योंकि बाद में गेलियानो ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, ''चावेज़ ने ये काम अच्छा किया कि ओबामा को मेरी किताब भेंट की लेकिन वो स्पानी भाषा में थी जो ओबामा को नहीं आती।'' लातिन अमेरिका के आर्थिक और राजनैतिक शोषण की सदियों के वृतांत वाली इस किताब में गेलियानो ने लिखा: ''लातिन अमेरिका में गरीबी से हुई मनुष्य हत्याएं गुप्त हैं। हर साल, बेआवाज़, तीन हिरोशिमा बम उन समुदायों पर गिरते हैं जो भिंचे हुए दांतों के साथ यातना सहने के आदी हो चुके हैं।'' ये किताब चिली, अर्जेटीना और उरुग्वे में सैन्य हुकूमतों के दौर में प्रतिबंधित कर दी गई थी। भारत में थ्री एसेस कलेक्टिव से पुनर्प्रकाशित इस किताब की प्रस्तावना चिली की मशहूर उपन्यासकार और पूर्व राष्ट्रपति साल्वादोर एलेंदे की भतीजी इज़ाबेल एलेंदे ने लिखी है। उनका कहना था कि 1973 में सैन्य तख्तापलट के बाद देश से भागते हुए जो चुनिंदा चीज़ें वो ले जा पाईं उनमें गेलियानो की ये किताब भी थी।
गेलियानो की मौत पर लातिन अमेरिका के लेखकीय और आंदोलनकारी हल्कों में स्तब्धता का माहौल है। तमाम नेताओं और राष्ट्राध्यक्षों ने भी गहरा अफ़सोस जाहिर किया है। इक्वाडोर के राष्ट्रपति रफ़ाएल कोरया की टिप्पणी थी, ''एदुआर्दो गेलियानो, उरुग्वे के लेखक और प्रिय दोस्त, लातिन अमेरिका की नसें तुम्हारे नाम पर खुली हुई हैं।'' गेलियानो ने आधा सदी के अपने रचनाकाल में दर्जन भर किताबें लिखीं। इनमें से कई किताबें दुनिया की 20 से ज़्यादा भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। 1960 के दशक में लातिन अमेरिका के एक बड़े राजनैतिक और सांस्कृतिक साप्ताहिक 'मार्चा' के संपादक के रूप में उन्होंने काम किया। 1973 में सैन्य बगावत के बाद वो अर्जेटीना चले गए। वहां भी उनका दुस्साहसी लेखन जारी रहा और जब अर्जेटीना की सैन्य हुकूमत ने वामपंथियों के ख़िलाफ़ दमनचक्र छेड़ दिया, जिसे लातिन अमेरिकी वाम संघर्षों में ''डर्टी वॉर'' के रूप में जाना जाता है,  तो गेलियानो को भागकर स्पेन में शरण लेनी पड़ी।
गेलियानो अपने समाज और संस्कृति के व्याख्याता और चिंतक तो थे ही, वे लातिन अमेरिकी जिजीविषा के भी झंडाबरदार थे और इसी जिजीविषा का एक प्रमाण है लातिन अमेरिका में सबसे पसंदीदा खेल- फुटबॉल जिसके अन्यतम दीवाने गेलियानो भी थे। 'फुटबॉल इन सन एंड शेडो' नाम की अपनी एक किताब में गेलियानो ने लातिन अमेरिकी फुटबॉल इतिहास की मार्मिक दास्तान लिखी है। खेल के प्रति उनकी निष्ठा, ज्ञान और अटूट प्रेम को देखते हुए उन्हें फ़ुटबॉल लेखन का पेले भी कहा जाता था।
गेलियानो ने अपने लेखन को स्मृति का लेखन कहा है। उनका मानना था कि उनके लिए इस स्मृति को धरोहर की तरह हिफ़ाज़त से रखना एक नागरिक फ़र्ज़ था। गेलियानो अपने निर्बाध, धुरंधर और धाराप्रवाह लेखन, भाषणों, बैठकों और अन्य सक्रियताओं के बीच खुद को सबसे पहले एक खांटी पत्रकार ही मानते थे। उनका कहना था कि, ''पत्रकारिता को साहित्य का अंधेरा कोना मानना गलत है। हर लिखा हुआ काम, साहित्य के तहत ही आता है। मैं पिछले कई सालों से किताबें लिख रहा हूं लेकिन एक पत्रकार के रूप में मेरी ट्रेनिंग हुई है. और ये ठप्पा मुझ पर अब भी लगा हुआ है। मैं पत्रकारिता का शुक्रगुज़ार हूं क्योंकि उसी ने मुझे दुनिया की वास्तविकताओं से रूबरू कराया है।''
भूमंडलीय पूंजी की सत्ता के ख़िलाफ़ गेलियानो प्रतिरोध की एक प्रमुख आवाज़ माने जाते थे। भूमंडलीकरण और पूंजीवादी सत्ता सरंचनाओं का उन्होंने खुलकर हमेशा विरोध किया, वो कहते थे, ''ये दुनिया किसी भी तरह से लोकतांत्रिक नहीं है। सबसे ताकतवर संस्थान, आईएमएफ़ और विश्व बैंक, तीन या चार देशों के हैं। बाकी लोग बस देख रहे हैं। दुनिया युद्ध की अर्थव्यवस्था और युद्ध की संस्कृति के लिहाज़ से संगठित है।'' लेकिन जब भी संघर्ष की बात आती थी गेलियानो का स्वर कभी फीका या निराशाजनक नहीं हुआ। वो पूरी बुलंदी से संघर्षों और आंदोलनों के पक्ष में बोलते रहे और उनमें शामिल भी रहे। उनके मुताबिक संघर्ष भी एक तरह से प्यार करने जैसा है। जब तक ये जीवित है तब तक अनंत है। 2013 में उनकी आखिरी किताब आई थी, 'चिल्ड्रन ऑफ द डेज़' उन्होंने लिखा कि किस तरह सत्ता और संपत्ति तेज़ी से चुनिंदा लोगों के हाथों में सिकुड़ती जा रही है। इसके लिए उन्होंने 15 वीं सदी से लेकर वर्तमान दौर तक की मिसालें पेश कीं। उनका कहना था, ''इतिहास कभी अलविदा नहीं कहता है, इतिहास कहता है, फिर मिलेंगे।''
'डेज़ ऐंड नाइट इन लव ऐंड वार्स' नाम की अपनी एक आत्मकथात्मक और डायरीनुमा किताब में गेलियानो ने अपने बिखरे हुए नोट्स के बीच एक जगह लिखा है, ''मैं अपनी आजीविका पर भरोसा करता हूं। मैं अपने उपकरणों पर भरोसा करता हूं। मैं ये बात नहीं समझ पाता कि क्यों कुछ लेखक ऐसी हवाई बातें करते हैं कि ऐसी दुनिया में जहां लोग भूख से मर रहे हैं वहां लेखन का कोई औचित्य नहीं। मैं ये भी नहीं समझता हूं कि कैसे कुछ लेखक शब्द को अपने क्रोध और उन्माद का लक्ष्य बना लेते हैं और उसे एक वासना या अंधभक्ति में बदल देते हैं। शब्द, हथियार हैं और वे अच्छे के लिए बुरे के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं, लेकिन चाकू पर आप कभी अपराध का दोष नहीं मढ़ सकते हैं....आज लातिन अमेरिकी साहित्य का आरम्भिक कार्य शब्द की मुक्ति का होना चाहिए। वो शब्द जिसका उपयोग और दुरुपयोग, नैतिकता से पल्ला झाड़कर संचार में बाधा पहुंचाने या उसमें धोखाधड़ी करने के लिए किया जाने लगा है।''

गेलियानो का गद्य
प्रस्तुत गद्यांश एडुआर्दो गेलियानो की किताब, मानवता का इतिहास, मिरर्स (नेशन बुक्स) से लिया गया है। हिंदी में इसका रूपांतर गुएर्निका मैगज़ीन डॉट कॉम से साभार लिया गया है। अंग्रेज़ी में इनका अनुवाद मार्क फ़्राइड ने किया है।

लाल बादशाह
''एक बड़े कदम'' (ग्रेट लीप फ़ॉरवर्ड) की नाकामी के तीन साल बाद मैं चीन में था। किसी ने उसके बारे में बात नहीं की थी। वो एक स्टेट सीक्रेट था।
मैंने माओ को देखा माओ को श्रद्धांजलि देते हुए। थ्येनआनमन चौक पर, स्वर्गिक शांति के द्वार पर, माओ ने एक अत्यंत विशाल परेड की सलामी ली जिसकी अगुवाई माओ की एक अत्यंत विशाल प्रतिमा ने किया था। प्लास्टर वाले माओ ने अपना हाथ ऊंचा किया और जवाब में हाडमांस के माओ ने अभिवादन स्वीकार किया। फूलों और रंगबिरंगे गुब्बारों के महासागर के बीच से भीड़ ने दोनों का स्वागत किया।
माओ चीन थे और चीन उनका पूजास्थल था। माओ ने सबको ली पेंग की कायम की हुई मिसाल से सीखने की नसीहत दी थी और ली पेंग ने सबको माओ की मिसाल का पालन करने की नसीहत दी थी। एक युवा कम्युनिस्ट, ली पेंग, एक संदिग्ध अस्तित्व वाला प्रचारक था, जिसने बीमारों को सांत्वना देने, विधवाओं की मदद करने और अनाथों के हवाले अपना खाना कर देने में अपने दिन बिताए थे। अपनी रातें उसने माओ का समूचे कार्यों को पढ़ते हुए गुज़ारी थीं। जब वो सोया तो उसने माओ को सपने में देखा, जो हर कदम के लिए उसके गाइड थे। ली पेंग की कोई प्रेमिका या कोई मित्र नहीं था क्योंकि वो ऐसे तुच्छ कामों में अपना वक्त जाया नहीं करता था और ये उसे कभी सूझा ही नहीं कि जीवन विरोधाभासी और यथार्थ नाना प्रकार का हो सकता है।  
फ़िदेल
उसके दुश्मन कहते हैं कि वो ऐसा बेताज राजा था जिसे भ्रम था कि एकता में ही एकात्मकता है।
और उसके दुश्मनों की ये बात सही है।
उसके दुश्मन कहते हैं कि अगर नेपोलियन के पास ग्रैनमा जैसा अखबार न होता तो कोई फ़्रांसीसी वॉटरलू के विनाश के बारे में न जान पाता।
उसके दुश्मनों की ये बात भी सही है।
उसके दुश्मन कहते हैं कि वो बहुत बोलकर और कम सुनकर अपनी सत्ता आज़माता है, क्योंकि वो आवाज़ों से ज़्यादा प्रतिध्वनियां सुनने का आदी है।
और दुश्मन इसमें भी सही हैं।
लेकिन उसके दुश्मन जो नहीं कहते हैं: महज़ इतिहास की किताबों में बतौर चित्र प्रकाशित होने के लिए उसने हमलावरों की गोलियों के आगे अपना सीना नहीं खोला,
उसने अधंड़ों का सामना किया, एक के बाद एक अंधड़,
वो अपनी ज़िंदगी पर हुए 637 हमलों में बचा,
उसकी संक्रामक ऊर्जा एक उपनिवेश को देश बनाने में निर्णायक बनी,
और ये लूसिफ़र का शाप या ईश्वर का चमत्कार नहीं था कि उसका नया देश, अपनी गोदों में नैपकीन बिछाए, उसे खाने के लिए कांटे और छूरी के साथ तत्पर, दस अमेरिकी राष्ट्रपतियों से बचकर निकल आया।
और उसके दुश्मन कभी इसका ज़िक्र नहीं करते कि क्यूबा एक अकेला दुर्लभ देश है जो वल्र्ड डुअरमैट कप के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करता है।
और वे नहीं कहते हैं कि क्रांति, जिसे गरिमा के अपराध के लिए सज़ा मिली, वही है जो वो हो सकती थी और वो नहीं जो उसने बनना चाहा था। ये भी वे नहीं कहते हैं कि साम्राज्यवादी नाकाबंदी की बदौलत यथार्थ से इच्छा को अलग करने वाली दीवार और ऊंची और चौड़ी हो गई थी, जिसने क्यूबाई शैली के लोकतंत्र का दम घोंटा, समाज का सैन्यीकरण किया, और हर निदान के लिए एक समस्या के साथ हमेशा तैयार रहने वाली नौकरशाही को वे बहाने मुहैया कराए जिनसे उसे खुद को जस्टीफ़ाई करने और जारी रखने के लिए मदद मिलती थी।
और वे नहीं कहते हैं कि तमाम दुख के बावजूद, तमाम बाहरी आक्रमण और आंतरिक अक्खड़ताओं के बावजूद, इस संतप्त और ज़िद्दी द्वीप ने लातिन अमेरिका में सबसे न्यूनतम अन्यायी समाज को जन्म दिया है।
और उसके दुश्मन ये नहीं कहते हैं कि ये कमाल उसके लोगों के त्याग का नतीजा था, और उस सूरमा की अडिय़ल उत्तेजना और सम्मान की पुरातन भावना का नतीजा था जो हमेशा गंवाने वालों की ओर से लड़ता था जैसे कास्टिले के मशहूर युद्ध में उसके मशहूर सहयोगी ने किया था।


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