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सितम्बर 2014

एक अजीबोगरीब/अनोखा फल

प्रस्तुति-यादवेन्द्र

हालिया महीनों में एक के बाद एक बलात्कार और हत्या करके लड़कियों/स्त्रियों की लाशें सार्वजनिक तौर पर चुनौती देती जैसे पेड़ों पर लटकायी जा रही हैं और इनकी रोकथाम के महकमें संभाले राजनेताओं के बीच मृतकों के कपड़े लत्ते और शील/आचरण को लेकर जैसे शब्दों का आदान प्रदान हो रहा है उसके लिए ''शर्मनाक'' शब्द छोटा पड़ रहा है। इन्हीं सन्दर्भों को लेते हुए यहाँ स्ट्रेंज फ्रूट को स्मरण करना प्रासंगिक और उचित लगा।
स्ट्रेंज फ्रूट पिछली सदी के तीस के दशक में न्यूयार्क स्टेट के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले रूस से भाग कर अमेरिका में बस गए गोरे यहूदी अबेल मीरोपाल (उस समय वे लेविस एलन के छद्म नाम से कवितायें लिखा करते थे) का गीत है जो अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे। तत्कालीन अमेरिका में अश्वेतों को खुले आम जला या पीट पीट कर मार डालने की घटनाएं आम थीं। ऐसी ही एक घटना का चित्र देख कर मीरोपोल इतने उद्वेलित हुए कि यह गीत लिख डाला। उनका कहना था कि वे यातना देकर ऐसे मार डालने की संस्कृति के खिलाफ हैं। अन्याय और उसको प्रश्रय देने वालों के प्रति अपनी घनघोर नफरत का इजहार करने के लिए ही उन्होंने यह गीत लिखा। शुरू में इसका शीर्षक उन्होंने कसैला फल (बिटर फ्रूट) रखा था पर इस से उनकी राजनैतिक प्रतिबद्धता झलकती थी, सो मित्रों के कहने पर उन्होंने गीत का शीर्षक बदल दिया। पहली बार यह गीत 1937 में अमेरिकी स्कूल शिक्षकों की वामपंथी यूनियन की पत्रिका में छपा।
घटना दरअसल 7 अगस्त 1930 की है जब इंडियाना प्रान्त के मेरियन शहर में दो अश्वेत नौजवानों - थॉमस शिप और अब्राम स्थिम - को बड़ी दरिंदगी से पीट पीट कर सार्वजनिक तौर पर हजारों लोगों के सामने फांसी देकर मार डाला गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने एक गोरे फैक्ट्री कर्मचारी के घर में लूटपाट की और उसकी प्रेमिका के साथ बलात्कार किया। पुलिस वहां मूक दर्शक बनकर खड़ी रही और सबसे अहम बात यह कि जिस स्त्री के शील हरण के आरोप में उन नौजवानों को फांसी चढ़ा दिया गया था उसने बलात्कार से स्पष्ट इंकार कर दिया - हजारों लोगों के सामने अंजाम दिए गये इस हादसे के लिए किसी को सज़ा नहीं दी गयी।
1939 में मशहूर अश्वेत जैज़ गायिका बिली होलीडे ने इसको सार्वजनिक तौर पर गाकर अमर कर दिया। तब नाईट क्लबों में हलके फुल्के गीत गाकर दर्शकों का मनोरंजन करने वाली होलीडे ने बड़े अनमने ढंग से इस गंभीर और मन को झगझोर कर रख देने वाले गीत की प्रस्तुति की। इतिहास में दर्ज़ है कि उस समय की बड़ी रिकार्ड बनाने वाली कंपनी कोलंबिया ने यह गीत गंभीर राजनीतिक विषय होने के कारण रिकार्ड करने से इंकार कर दिया। कहा जाता है कि होलीडे ने अपने पिता का प्रथम विश्व युद्ध में घायल होकर घर लौटने के बाद अमेकिा के अस्पतालों में अश्वेत होने के कारण इलाज न किये जाने से तिल तिल कर मरना देखा था, सो इस गीत ने उनके मन के तारों को झंकृत कर दिया। यह भी कहा जाता है कि होलीडे की मां को हल्का फुल्का गा कर दर्शकों का मनोरंजन करने वाली बेटी का यह गीत गाकर एक राजनैतिक सन्देश देने का ढंग कतई पसंद नहीं आया था और इसको लेकर मां बेटी के बीच खूब अनबन भी हुई... इस बाबत जब उन्होंने होलीडे को कहा तो उनका जवाब था: मैं यह गीत गाते हुए अश्वेतों के प्रति किये गए अन्याय को महसूस करती हूं, और अपनी कब्र में भी मैं इसको अपने साथ रखूंगी - इसको भूल जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
इस गीत ने जितनी ख्याति होलीडे को दिलाई उसको भुनाने के लिए उन्होंने इस गीत को लिखने का श्रेय लेने की कोशिश अपनी आत्मकथा में की, पर बाद में मीरोपाल के स्पष्टीकरण से मामला स्पष्ट हो गया। उनके बाद से लगभग चालीस अन्य गायकों ने इस गीत को अपनी अपनी तरह से गाया... आज अमेरिकी समाज में अश्वेत समुदाय पर किये जाने वाले अत्याचार का यह दस्तावेजी गीत बन गया है। इस गीत के पक्ष और विपक्ष में बहुत तीखे विचार व्यक्त किये जाते रहे हैं और अनेक रेडियो स्टेशनों और क्लबों ने इस पर प्रतिबन्ध भी लगाये - पर आज भी अश्वेत प्रतिरोध गीतों में निरंतर अग्रणी बना रहा। डेविड मार्गोलिक ने इस पर एक बहुचर्चित किताब लिखी। 1999 में टाइम मैगजीन ने इसको ''शताब्दी का गीत'' घोषित किया था। 2010 में न्यू स्टेट्समैन ने इस गीत को दुनिया के बीस सर्वश्रेष्ठ राजनैतिक गीतों में शुमार किया है। पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त मशहूर इतिहासकार लियोन लिट्वाक इस गीत को बर्कले यूनिवर्सिटी में अपने छात्रों को कक्षा में पढ़ाते भी हैं। युवा अमेरिकी िफल्मकार जोएल काट्ज़ ने 2002 में इस महान प्रतिरोध गीत के इतिहास और सार्वजनिक जीवन पर पडऩे वाले प्रभाव को रेखांकित करते हुए इसी नाम से एक बहुचर्चित डॉक्युमेंट्री बनायीं- उनका मानना है कि जब छोटी छोटी महज़ बारह पंक्तियां पूरी दुनिया के प्रतिरोध आंदोलन पर इतना असर डाल सकती हैं तो आधुनिक जीवन में प्रतिरोध की कोई छोटी से छोटी घटना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और आज उनकी बेहद ज़रूरत है।


एक अजीबोगरीब/अनोखा फल (स्ट्रेंज फ्रूट)

दक्खिन के पेड़ों में लगा हुआ है एक अजीबोगरीब/अनोखा सा फल
पत्तियों पर लहू के धब्बे... जड़ें भी लहू लुहान
दक्खिनी हवाओं से हिल रहे हैं काले कलूटे शरीर
यह अजीबोगरीब/अनोखा फल लटक रहा है पोपलर के पेड़ पर...

लड़ाके दक्खिनी चरवाहों के इलाके का मंजर ऐसा
कि बाहर निकल आयी आँखें और वीभत्स हो गए मुँह
पर फूलों की गमक उतनी ही मोहक और तरोताजा
पर बीच बीच में घुस आती है जलते हुए मांस की सड़ांध।

यहां फूल खिला है जिसे नोंच ले जायेंगे कौवे
जिन पर गिरेगा बरसात का पानी, जिसको सूंघेगी बहती हुई बयार
जिसे सड़ा डालेगी धूप... और एक दिन ज़मीन पर गिरा देगा पेड़
यहां उगी हुई है एक अजीबोगरीब/अनोखी कसैली फसल...


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