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सितम्बर 2014

निधन : नादिन गॉर्डिमर

शैलेन्द्र चौहान


दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद के खिलाफ लिखने वाली प्रभावशाली लेखिका नादिन गॉर्डिमर का 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
20 नवंबर 1923 को जन्मी नादिन गॉर्डिमर को औपचारिक शिक्षा नहीं के बराबर मिली। जोहान्सबर्ग की स्थानीय लाइब्रेरी ही उनकी शिक्षण संस्था थी। इसीलिए वे कहती हैं कि अगर उनकी चमड़ी का रंग काला होता तो वे साहित्यकार नहीं बन पातीं, क्योंकि उस लाइब्रेरी में अश्वेतों के आने की मनाही थी। नेल्सन मंडेला की मित्र रहीं गॉर्डिमर रंगभेद नीति के खिलाफ निरंतर सक्रिय रहीं। गॉर्डिमर ने 15 उपन्यास और कई लघुकथायें लिखीं जो दुनियाभर में करीब 40 भाषाओं में प्रकाशित हुईं। नादिन को 1991 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गॉर्डिमर ने 1998 में ब्रिटेन के ऑरेंज ब्रॉडबैंड साहित्य पुरस्कारके लिए शार्टलिस्ट होने से मना कर दिया था क्योंकि यह पुरस्कार सिर्फ महिलाओं के लिए है। और गॉर्डिमर का मानना है कि महिलाओं को अलग खंड में, अलग स्तर पर रखने से उनकी बेहतरी नहीं हो सकती। इसके लिये उन्हें पुरुषों के साथ बराबरी की प्रतियोगिता का मौका मिलना चाहिए। तीस से अधिक पुस्तकें लिख चुकी नादिन की लोकप्रिय पुस्तकों में - माय सन्स स्टोरी, बर्जर्स डॉटर और जुलाईज़ पीपुल रहे हैं। उनकी कुछ किताबों पर दक्षिण अफ्रीका में प्रतिबंध भी लगा था। नादिम गॉर्डिमर दक्षिण अफ्रीका की एक ऐसी श्वेत साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने साहित्य और सामाजिक क्षेत्र में काम के जरिए रंगभेद की मुखालफत की। आश्चर्य नहीं कि उनके ज्यादातर उपन्यास कम या ज्यादा समय के लिए गुलाम द. अफ्रीका में प्रतिबंधित रहे, कोई 10 साल तो कोई 12 साल तक। उनकी पुस्तक द कंजर्वेस्निस्ट के लिए 1974 में उन्हें संयुक्त रूप से बुकर पुरस्कार दिया गया था। नोबल समिति ने उन्हें सम्मानित करते हुए कहा था कि नादिन का लेखन महानतम लेखन की श्रेणी में है क्योंकि इससे मानवता को लाभ हुआ है। बहुत ही छोटी उम्र से नादिन ने लेखन शुरू कर दिया है। उनकी पहली कहानी मात्र 15 साल की उम्र में ही छपी थी। उपन्यास और छोटी कहानियां लिखने वाली गॉर्डिमर के मुख्य विषय रंगभेद और निर्वासन के रहे। चौदह जुलाई 2014 को जोहानिसबर्ग में उन्होंने अपने आवास पर अंतिम समय सांस ली।

अगली बार प्रख्यात अफ्रीकी लेखिका, कवि और एक्टिविरट माया एंजेलु (जिनका हाल ही में निधन हुआ है) पर एक दस्तावेजी सामग्री 'पहल' के पाठकों के लिये।


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