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दिसम्बर 2013

कुछ पंक्तियां / सम्पादकों की राय

सम्पादक

इस अंक की रचनाओं के बारे में हम आग्रह के साथ लिख रहे हैं। पाठकों से उम्मीद है कि वे ध्यान देंगे।
अजीब और जिद्दी अंधेरे से जूझती दुनिया किसकी तलाश में है? उदास क़हक़हों और अट्टहास से गूंजती इस दुनिया की दीवारों से टकराकर आती गूंज कहां तक पहुंच रही हैं? इंसानी रिश्तों में उलझती गहराती जटिलताओं के तिलिस्म का रास्ता किस कुएं से किस कुएं तक फैला है? हम आखिर किस चीज़ को क्या समझ रहे हैं और कितना समझ रहे हैं? सवाल ही सवाल। इन सवालों का जवाब ढूंढ़ता रचनाकार ख़ुद भी नये सवाल खड़े कर जाता है, खासकर तब, जब रचनाकार की दृष्टि अंधेरों को भेदकर दूर तक फैले जवाबों से लिपटे नये नये सवालों तक पहुँचती है।
ईरानी लेखक अमीन फ़कीरी और गुलाम हुसैन सा'एदी ऐसे ही दो विश्व कलाकार हैं जो हदों को पार करने की कुव्वत रखते हैं। ईरानी सिनेमा की धूम तो जग जाहिर है पर ईरानी कथा साहित्य को भी हिन्दी के पटल पर प्रस्तुत करने की 'पहल' की एक ज़िद ही है कि हम एक साथ दो कहानियां विशेष दर्जे के साथ आपके सामने रख रहे हैं।
ईरान के दक्षिणी प्रांत फारस के मूल निवासी अमीन फ़कीरी का जन्म 1944 में शीराज के एक आलिम परिवार में हुआ। बड़े भाई अब्दुल कासिम फ़कीरी भी लेखक थे जिनसे प्रभावित होकर अमीन ने कम उम्र में ही लिखना शुरू किया। 1960 के आसपास एक स्कूल में मास्टर हो गये लेकिन सामाजिक स्थितियों को बदलने की तड़प ने उनको एक सामाजिक सक्रियतावादी बनाया। सदियों के अज्ञान के अंधकार में फंसे गांवों में तालीमी उजाला फैलाने की गरज से गांव में रहकर ही काम किया। फ़कीरी का पहला कहानी संग्रह 1964 में आया। इस प्रकार वे हमारे समकालीन और नजदीकी कथाकार है। उनका कहानी लेखन बहुत दिलचस्प है। पहल के इस अंक में उनकी कहानी 'तीन उदास भाई' जादुई यथार्थ वाले अंदाज में लिखी एक छोटी और मार्मिक कहानी है। एक बे-बालो-पर वाले परिन्दे की कहानी। कौन हैं, ये तीन भाई जो उदास हैं और जो अपनी उदासी में पर लगाकर उडऩे की कोशिश करते है।
दूसरी कहानी 'खेल खत्म हुआ' के लेखक ग़ुलाम हुसैन सा'एदी (4 जनवरी 1936-23 नवम्बर 1985) एक बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक थे। अपनी छोटी सी जिंदगी में उन्होंने बड़े काम किये। उपन्यास, नाटक, यात्राएं, कहानी, बहुत सारी चीजें। 1969 में उनकी लिखी फिल्म 'गाय' ईरानी सिनेमा की 'न्यू वेव' मानी जाती है। यह युग प्रवर्तक मानी गई और यह कहानी 'गाय' पहल ने पुराने दिनों में छापी थी।
इन दोनों कहानियों को फारसी भाषा से हिन्दी में पहल के पाठकों को उपलब्ध कराने वाले अजमल कमाल करांची में रहते हैं और 'आज' नाम की एक विख्यात साहित्यिक पत्रिका का संपादन करते हैं। साथ ही आज की क़िताब नाम से प्रकाशन भी बनाया हुआ है। अजमल कमाल एक ऐसे शख्स है जिन्होंने पिछले अनेक बरसों से हिन्दुस्तान पाकिस्तान के बीच एक सेतु बनाया है। अपनी पत्रिका के 77 अंकों के जरिये उन्होंने आदान प्रदान की संस्कृति का जबरदस्त पालन किया है। 'पहल' के अनन्य सहयोगी अजमल कमाल की कोशिशों से आगे भी इसी तरह की बेशकीमती रचनाएं 'पहल' में आयेंगी।
एक संक्षिप्त वक्तव्य के साथ इस अंक में आदिवासी कवि अनुज लुगुन की कविताएं पहली बार पहल में आई हैं। वे युवा कवि है और उन्होंने ध्यान भी आकर्षित किया है। शुद्धतावादी और कविता के भूमंडल को एक रूप करने में व्यस्त लोग यदा कदा उन पर हमला करते है। यूं यह हमला एक क्षीण आवाज है पर यह कुलीनतंत्र की उठती हुई परम्परा है। जो इन दिनों सुगबुगा रही है, उसे देश के वर्तमान पतनशील संस्कृतिक हालातों में अच्छी हवा मिल रही है।
हुकुम ठाकुर साठ वर्षीय बाग़बानी करने वाले एक तरबतर किसान है। कुल्लू के भीतरी हिस्से के एक गांव में जीवन बसर करते है। कविता लिखते है। कई बार वह लम्बे अंतरालों से अवरूद्ध हुई लेकिन अंतिम तौर पर टूटी नहीं उठ खड़ी हुई। छपने की बड़ी दुनिया से हुकुम ठाकुर कभी सरोकार बना नहीं सके। यह छपने छपाने की दुनिया चमकीले विकास का एक हिस्सा बन गई है, वहां ऊबड़ खाबड़ आदमी जो चौकन्ना नहीं है, फालतू हो उसके खतरे उठायेगा ही। तकलीफ देह बियाबान और संवाद हुकुम ठाकुर की कविताओं में हैं इसलिये हमने इस अंक में उनकी कुछ कविताएं चुनी हैं। अपने एक पत्र में हुकुम ने लिखा है कि भुखमरी, तपिश और कठोर श्रम के लंबे जीवन के बाद अब उनके पेट में कुछ अन्न आने लगा है और कविताएं फिर से जीवित हो उठी हैं।
पहल 92 में युवा आलोचक मृत्युंजय (कटक) की एक अधूरी प्रस्तावना 'मर के भी चैन न मिला तो कहां जायेंगे' हमने प्रकाशित की थी, उस पर इस अंक में युवा कवि विवेक निराला (इलाहाबाद) ने हस्तक्षेप किया है। इस बीच सर्वश्री नरेश सक्सेना, लीलाधर जागूड़ी, मंगलेश डबराल, अरूण कमल, नरेन्द्र जैन और ज्ञानेन्द्रपति के कविता संग्रह आये हैं। युवा आलोचक पंकज पाराशर एक मीमांसा की शुरुआत ज्ञानेन्द्रपति के संग्रह से कर रहे हैं। भविष्य में अलग अलग आलोचक दूसरे कविता संग्रहों पर लिखेंगे। भारत विभाजन की कथा यथावत प्रियम अंकित जारी रखेंगे। वंदना शुक्ल और इंदिरा दांगी नयी कहानी लेखिकाएं हैं जिनके पहले संग्रह 2013 में ही आये है। इनकी कहानियां पहली बार प्रकाशित हैं।


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