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जनवरी 2021

कठ

प्रचंड प्रवीर

लंबी कहानी

 

 कठकृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत 'मुख्य उपनिषद’ है। इसमें प्रसिद्ध यम-नचिकेता संवाद है। प्रस्तुत गल्प उसकी कल्पित विवेचना है।

 

प्रथम अध्याय

 

प्रथमा वल्ली

 

पूस की पूनम की रात थी। ग्रहण समाप्त हो चुका था। केले का खेत कुछ कोहरे में डूबा था, जिस पर तेज चाँदनी बरस रही थी। वहीं ठिठक कर चंद्रमा को निहार रहे मलिन चेहरे वाले बालक का हाथ अचानक से किसी ने आ कर मजबूती से पकड़ लिया। इस तरह अचानक पकड़े जाने पर भी बालक न चौंका, न ही भयभीत हुआ। पकडऩे वाली आकृति एक मध्यवय के कठोर पुरुष की थी, जिसकी घनी काली-सफेद मूँछें थी और पेट निकला-सा था। उसने महंगा नाइट सूट पहन रखा था। पकडऩे वाले मजबूत हाथ की अनामिका उँगली में फिरोज़ा रत्न सोने की अंगूठी में जड़ा था। चेहरे के रौब-दाब से वह व्यक्ति प्रतिष्ठित-सा जान पड़ा। उसने बालक को लगभग घसीटते हुए अपने आलीशान घर में ले आया, जहाँ पर अलाव जला हुआ था।

आग के पास बैठने पर कंपकपाती ठंड से कुछ राहत मिली। कठोर पुरुष ने कहा, ''इतनी रात तुम कहाँ घूम रहे हो? मैंने समझा कोई चोर होगा। चोरों को मैं देख कर ही पहचान जाता हूँ।’’ बच्चे से कोई उत्तर न पा कर उसने फिर कहा, ''मुझे देख कर अच्छे से अच्छे डर जाते हैं। तुम्हारे नहीं डरने से मुझे आश्चर्य है। तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है? इस वीराने में कहाँ से आये हो?’’

''मेरा नाम नचिकेता है।’’ काँपते हुए लड़के ने उदासी से कहा, ''मैं घर छोड़ आया हूँ।’’

सिहरते हुए लड़के को देख कर कुछ नरम पड़ते हुए कठोर पुरुष ने पूछा, ''कुछ खाओगे?’’

नचिकेता ने रूखे बालों वाला सिर घुटनों में समेटते हुए मना कर दिया। रोते-रोते उसके आँसू गाल पर सूख गए थे।

''मेरा नाम धर्मराज सिंह है। यह बताओ, इस कड़ाके की सर्दी की रात में अपना घर छोड़ कर कहाँ भटक रहे हो?’’ इस तरह पूछे जाने पर भी नचिकेता ने कोई जवाब नहीं दिया। धर्मराज ने कहा, ''अच्छा, मैं समझता हूँ कि तुम मरने जा रहे हो।’’

यह सुन कर नचिकेता चौंका, ''आपको कैसे पता?’’

''मुझे बहुत कुछ पता है। तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, तो मैं तुममें विश्वास जगाता हूँ। मेरा नाम, जैसा बताया, धर्मराज है। मैं इस जिले का न्यायाधीश हूँ। यह मेरी पुश्तैनी जमीन है। तुम यहाँ के नहीं लगते! लगता है तुम कहीं दूर से आ पहुँचे हो। बहुत दूर से आ रहे हो न? यहाँ से उत्तर जाने पर नेपाल शुरू हो जाएगा। इन दिनों सर्दियों के कारण कोर्ट बंद है, इसलिए मैं यहाँ छुट्टियों में आया हूँ। जहाँ तक मैं समझता हूँ नचिकेता तुम्हारा नाम नहीं है। ऐसा लगता है कि तुम नचिकेता की कथा जानते हो और दु:ख से मरना चाहते हो।’’ धर्मराज ने कहा।

नचिकेता ने कुछ जवाब न दिया और जलती आग के पास और सरक गया।

''कुछ खा लो।’’ धर्मराज ने बड़े प्यार से कहा। नचिकेता चुपचाप आग की लपटें देखता रहा। ''क्या तय किया है? आगे कहाँ तक जाओगे? क्या ऐसे ही भूखे, प्राण त्याग देने को ठाना है?’’

नचिकेता की आँखों से आँसू बरसने लगे। धर्मराज ने कहा, ''अच्छा, मत खाओ। लेकिन तुम्हें नचिकेता की कहानी पता है?’’

नचिकेता आग के लपटों के ऊपर हाथ फैलाते हुए बोला, ''हाँ, पता है।’’

''बताओ।’’

''यज्ञफल के इच्छुक वाजश्रवा ने अपना सारा धन दे डाला। जब दक्षिणा में गायें ले जायीं जा रही थीं तब उसके पुत्र नचिकेता ने सोचा - जो घास नहीं खा सकतीं, जो दूध नहीं दे सकतीं, ऐसी गायों को दान करने वाला आनन्द रहित लोक को जाता है। इसलिए उसने अपने पिता से कहा - आप मुझे किसको देंगे? ऐसा उसने दुबारा-तिबारा भी कहा। तब पिता ने नचिकेता को कहा - ''मैं तुझे मृत्यु को दूँगा।’’ तब नचिकेता ने विचारा कि बहुत से कार्यों में मैं प्रथम हूँ, बहुतों में मध्यम हूँ, मृत्यु के देवता यम का कौन सा काम मुझसे सिद्ध होगा? उसने अपने पिता से कहा-मनुष्य खेती के समान बूढ़ा हो कर मर जाता है और खेती की भाँति फिर उत्पन्न हो जाता है। इसलिए जैसा उचित व्यवहार पहले लोग करते आये हैं और अभी लोग जैसा करते हैं उसको भी देखिए।’’

''फिर क्या होता है?’’ नचिकेता के चुप हो जाने पर धर्मराज ने उससे प्यार से पूछा।

''शायद यह होता है कि नचिकेता तीन दिन और तीन रात मृत्यु के घर पहुँच कर प्रतीक्षा करता है, क्योंकि यम उस समय बाहर गये हुए थे। वापस आने पर वह नचिकेता को तीन रातों तक भूखे रहने के कारण तीन वर देते हैं और ज्ञान देते हैं।’’

''तो इस तरह तुम तीन दिन और तीन रात भूखे रह कर मृत्यु को पा लोगे, ज्ञान कहाँ से मिलेगा? ज्ञान पाना है तो पढ़ाई -लिखाई करो, मरने से क्या होगा?’’ धर्मराज ने कहा और हँस पड़ा। नचिकेता को उसके हँसने पर कौतुहल हुआ। टुकुर-टुकुर देखते-देखते नचिकेता ने धर्मराज से पूछा, ''आप कैसे कह सकते हैं कि मेरा नाम नचिकेता नहीं?’’

धर्मराज झट से बोल पड़ा, ''बहुत से तरीके हैं। पहला तो भाव-भंगिमा से जान लेने का मनोवैज्ञानिक तरीका। दूसरा तरीका कहीं ज्यादा कारगर है। वह है तुम्हारे चेहरे की बनावट की तस्वीर ले कर आनलाइन डेटाबेस में ढूँढ निकालना।’’

नचिकेता सुन कर ठिठक गया। धर्मराज ने बताया कि जब वह नचिकेता को ले कर घर के अंदर आ रहे थे तभी नचिकेता की तस्वीर आटोमैटिक ले ली गई थी। अच्छी बात यह है कि उसके चेहरे की बनावट का कोई आपराधिक रेकार्ड नहीं मिला। ऐसा उसके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट मशीन ने बताया।

करीब आधे घंटे तक यूँ ही चुप बैठे रहने के बाद धर्मराज ऊब कर बोला, ''कुछ कहो या फिर सो जाओ। रात गहराने लगी है।’’ बाहर चांदनी बरस रही थी। नचिकेता मानो किसी ग्रहण से अभी ग्रसित था। किसी सोच में डूबे नचिकेता ने पूछा, ''आप इतने बड़े न्यायाधीश हैं, इतने बड़े ज्ञानी हैं, फिर भी सच को जानने के लिए डेटाबेस का सहारा लेना पड़ रहा है।’’

''इसमें क्या आपत्ति है?’’ अलसाये हुए धर्मराज ने कहा, ''यह तो छोटी-मोटी बात है। तुम्हारा नाम नचिकेता न हो कर 'वाजश्रवा’ भी हो, तो इससे कोई विशेष अंतर नहीं पडऩे वाला। यह सूचना परक ज्ञान है। जिसे जानना सबसे मुश्किल है, वह किसी डेटाबेस में नहीं आ सकता। वह आश्चर्यवत् है। जो बहुतों को तो सुनने के लिए भी प्राप्त होने योग्य नहीं है, जिसे बहुत-से सुन कर भी नहीं समझते उसका निरूपण करने वाला भी आश्चर्यरूप है। उसको प्राप्त करने वाला भी कोई निपुण पुरुष ही होता है तथा कुशल आचार्य द्वारा उपदेश किया हुआ ज्ञाता भी आश्चर्यरूप है। कई प्रकार से कल्पना किया हुआ वह नीच पुरुष द्वारा कहे जाने पर अच्छी तरह नहीं जाना जा सकता। इसमें है या नहीं है कि कोई गति नहीं है, क्योंकि यह अणु से भी सूक्ष्म और दुर्विज्ञेय है। यह ज्ञान के लिए शुष्क तार्किक से भिन्न, तर्क द्वारा प्राप्त होने योग्य नहीं है। वह ज्ञान तुम्हें पढाई -लिखाई से नहीं मिलेगा। किसी यूनिवर्सिटी में भी नहीं मिलेगा।’’

''वह क्या है?’’ नचिकेता ने पूछा। धर्मराज ने इसका उत्तर न देते हुए नचिकेता से कुछ और ही पूछा, ''तुम न जाने किस नाराजगी में घर छोड़ कर भाग आए हो। तुम्हारे घर वाले चिंतित होंगे।’’

''अब मेरा इस दुनिया में कोई नहीं।’’ कहते हुए नचिकेता की बाँयीं आँख से आँसू की बूँदें टपक पड़ीं।

मासूम को बेआवाज़ रोता देख कर धर्मराज का दिल पिघल गया। ''उदास मत हो। मेरा भी संसार में लगभग कोई नहीं। बीवी बच्चों के साथ रहती है। बच्चे विदेश में। ऐसा करो कि तुम यहीं रह जाओ। मेरे इस फार्म हाउस की देख-भाल करो। मेरे खेती-बाड़ी, जमीन-जायदाद देखो। मेरी गैरहाजिरी में इस आलीशन घर के तुम मालिक होगे। यह मरने का विचार छोड़ो और यहीं रहो।’’

नचिकेता ने कुछ उत्तेजना से कहा, ''धन्यवाद। ये आपका आलीशन घर, ये धन-दौलत 'कल रहेंगे या नहीं’- इस प्रकार के हैं। इसके मिल जाने से मनुष्य आलसी ही होगा, और सारे तेज जीर्ण हो जाएँगे।’’ कुछ थम कर उसने पूछा, ''यदि आप जानते हैं तो मुझे कुछ बताएँगे?’’

''क्या? पूछो।’’ धर्मराज ने निर्विकार कहा।

''आपने न जाने कितनों को उम्र कैद की सजा दी होगी। किसी को फाँसी भी दी होगी। कितने हत्यारे आपके सामने रोज गुजरते होंगे। आप यह बताइए कि मरे हुए मनुष्य के विषय में जो यह सन्देह है कि कोई तो कहते हैं 'रहता है’ और कोई कहते हैं 'नहीं रहता’। जिस परलोक के सम्बन्ध में लोग 'है या नहीं है’ ऐसा सन्देह करते हैं उसके विषय में आप जो निश्चित करते हैं वही हमें कहिए।’’

यह सुन कर धर्मराज ने बहुत गम्भीर हो कर कहा, ''इस विषय में बड़े-बड़े मंत्रियों को, अध्यापकों को, कवियों को, साहित्यकारों को भी सन्देह है, क्योंकि यह सूक्ष्म बातें सुगमता से जानने योग्य नहीं है। तुम मुझसे कुछ और पूछ लो।’’

नचिकेता ने चकित हो कर कहा, ''अगर बड़े-बड़े विद्वान भी इस पर शंका करते हैं और आप भी इसे सुगमता से जानने योग्य नहीं बतलाते। आप इतने अधिकार से कह रहे हैं अर्थात् इस का वक्ता आपके समान अन्य कोई दूसरा नहीं मिल सकता। इसलिए मैं कुछ और नहीं पूछूँगा।’’

धर्मराज ने कुछ झुँझलाते हुए कहा, ''लड़के, तुम्हें अंदाजा नहीं है कि मेरे पास कितनी दौलत है। उस दौलत से तुम क्या कुछ नहीं हासिल कर सकते। अभी तुमने दुनिया देखी ही कहाँ है? पैसे से बड़े बनोगे, घर परिवार होगा, सुंदर लड़कियाँ तुम्हारे आसपास रहेंगीं। कुनबे में अपार धन होगा। ये मरने के बारे में मुझसे मत पूछो।’’

नचिकेता ने कुछ फीकी हँसी हँस कर कहा, ''मनुष्य को धन से तृप्त नहीं किया जा सकता। आपका आशीर्वाद है तो धन भी हम पा लेंगे। यह जो गहनता में अनुप्रविष्ट हुआ प्रश्न है, इसके अलावा कोई प्रश्न नचिकेता नहीं पूछता।’’

 

द्वितीया वल्ली

तभी धर्मराज सिंह का मोबाइल फोन बज उठा। धर्मराज बैठक से उठ कर बगल वाले कमरे में चला गया। अपनी आदत के अनुसार धर्मराज ने फोन का स्पीकर चालू कर के कहा, ''हलो।’’ उधर से आवाज़ आयी, ''सर, आपके कहे अनुसार काम हो गया। हमने हैकर की लाश उसी के घर की छत पर एक ताबूत में छुपा दी। लेकिन हैकर ने मरते-मरते अपना सीक्रेट पासवर्ड नहीं बताया। यहाँ नेटवर्क की समस्या थी, इसलिए आपको बताने में देरी हो गयी।’’

धर्मराज ने देखा कि नचिकेता उठ कर कमरे के दरवाजे के पास उसकी बातें नि:स्तब्ध सुन रहा है। धर्मराज ने बिना विचलित हुए कहा, ''कोई बात नहीं। हम कोई तरीका ढूँढ़ निकालेंगे।’’ फोन काट कर उसने नचिकेता से कहा, ''मुझे स्मार्टफोन से बड़ी शिकायत है। बात करते-करते अचानक 'होल्ड’ पर, कभी अचानक 'म्यूट’ पर चला जाता है। इसलिए मैं स्पीकर पर बात करना पसंद करता हूँ।’’ नचिकेता की सवालिया निगाह देख कर उसने कहा, ''दुनिया में बहुत कुछ आश्चर्यरूप है। कहने को मैं न्यायाधीश हूँ, पर साथ ही मैं कई धंधों में लगा हूँ। अब तुम क्या तुमने क्रिप्टोकरेंसी का नाम सुना है? अच्छा, सुना है! तो यह हैकर साहेब इसके लिए कोड बना रहे थे। इसके लिए इसे जीवनमुक्त करना पड़ गया। खैर जो तुमने पूछा, इसी उदाहरण से समझाता हूँ। श्रेय, यानी अच्छा, और है, वहीं प्रेय मतलब व्यक्ति को अच्छा लगने वाला और ही है। ये दोनों अलग-अलग प्रयोजन वाले होते हुए ही पुरुष को बाँधते हैं। उन दोनों में जो श्रेय को ग्रहण करने वाले का शुभ होता है और जो प्रेय का वरण करता है वह हीन अर्थ को प्राप्त होता है। मनुष्य के पास श्रेय और प्रेय दोनों परस्पर मिले हुए आदमी के पास आते हैं। उन दोनों को बुद्धिमान पुरुष भली प्रकार विचार कर अलग-अलग करता है। विवेकी पुरुष प्रेय के सामने श्रेय को ही वरण करता है, किन्तु जो मूर्ख है वो यह चाहता है कि उसे मनचाहा मिलता रहे और जो मिले वह बना रहे। ऐसे समझो कि मूर्ख योग-क्षेम के लिए प्रेय का वरण करता है। अब यह जो हैकर साहेब थे, मामूली हैकर थे। हमने इनको काम पर रखा, विश्व कल्याण के लिए। अब इसमें इनकी नीयत खराब हो गयी।’’

''इसके लिए उसे मार डालना ज़रूरी था?’’ नचिकेता ने हैरानी से पूछा। अगली ही साँस में उसने अधीर हो कर कहा, ''यह तो गलत है!’’

''तुम कौन होते हो सही ग़लत का फैसला करने वाले? यह तय करने वाला मैं हूँ। अच्छा। समझना चाहते हो तो ऐसे समझो। विद्या और अविद्या अत्यन्त विरुद्ध स्वभाव वाली और विपरीत फल देने वाली है। तुम्हें मेरा धन नहीं लुभाया, और तुम प्रश्न पूछ रहे हो। इसलिए तुम विद्या चाहने वाले हो। अब जो हैकर था, उसने यह नहीं जाना कि मुझसे क्या सीख सकता है? अविद्या क्या है? यही सांसारिक ज्ञान, यही कोडिंग, भौतिकी, रसायन, इतिहास, भूगोल..। अविद्या के भीतर रहने वाला, अपने-आप को बहुत बुद्धिमान समझने वाला, अपने को पण्डित मानने वाला, उसकी वही गति हुई जैसे अंधे को अंधा रास्ता दिखाये। उसे धन का मोह था और उसने यह भी नहीं जाना कि मेरी अवहेलना करने से वह मृत्यु को प्राप्त होगा। अब कोई कितना बड़ा गणितज्ञ हो, या कितना बड़ा हैकर हो, उसको रहना इसी धरती पर है। उसे भी भूख-प्यास लगेगी। पैसे की ज़रूरत होगी। अब छिटपुट काम कर के वह हमेशा पैसा नहीं पा सकता। उसके लिए उन्हें पैसे वालों से नियमित पेंशन जैसा आधार चाहिए। यही सच्चा ज्ञान है कि समाज के नायकों से समक्ष उत्तम ज्ञान को प्राप्त कर के मनुष्य अपना हर्ष-शोक त्याग कर समाज के लिए काम करे।’’

धर्मराज के प्रलाप को सुन कर नचिकेता ने अपना प्रश्न बदल कर पूछा, ''हैकर ने आपके सामने सिर नहीं झुकाया इसलिए आपने उसे मरवा डाला?’’

हँसते हुए धर्मराज ने कहा, ''यही तुम्हारे पूर्व प्रश्न का उत्तर है। शरीर के अन्दर कुछ ध्रुव है, नित्य है, वह अनित्य से नहीं पाया जा सकता। वह अणु से भी अणु और महान से भी महान आत्मा जीव की हृदय रूप गुहा में स्थित है। वह न उत्पन्न होता है, न मरता है, न तो किसी अन्य कारण से ही उत्पन्न हुआ है और न स्वत: ही कुछ बना है। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है तथा शरीर के मारे जाने पर भी स्वयं नहीं मरता। तुम ऐसा सोचते हो कि मैंने उसे मार डाला, तो तुम यह नहीं समझ रहे कि यह न तो मरता है और न मारा जाता है।’’

इन बातों से उचट कर नचिकेता ने उबासी ली। सुन्दर लड़के को इस तरह थका देख कर धर्मराज ने लाड़ से कहा, ''सो जाओ। सुबह तक मैं तुम्हारे बारे पता लगा लूँगा। फिर तुम्हारे घर भिजवा दूँगा।’’ नचिकेता ने सवालिया निगाह से उसे देखा, तब धर्मराज ने कहा, ''तुम्हारे फिंगर प्रिंट और आँखों की पुतलियों के रिकार्ड से पता चल जाएगा कि तुम कौन हो। अब परेशान मत हो। अगर सोना नहीं है तो मेरे लिए चाय बना कर ले आओ। किचन उधर है।’’

नचिकेता उठ कर किचन में चाय बनाने गया। इधर धर्मराज का फोन बज उठा। ''सर, एक गड़बड़ है।’’ धर्मराज के पूछने पर उधर से आवाज़ आयी, ''हैकर अकेला काम नहीं करता था। उसका बारह साल का बेटा बहुत खतरनाक प्रोग्रामर है, जो उसके साथ काम कर रहा था। हैकर की मौत के बाद वह लापता है।’’

''उसे क्यों नहीं मारा? मुझे यह पहले क्यों न बताया?’’ धर्मराज झुंझलाया।

''सर, दरअसल हमने सोचा काम खतम हो गया है। पर वह हमारी कैद से भाग निकला है। लेकिन सर, हमारे एजेंट ने उसे धीमा जहर दिया था। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाये जाने वाले जहरीले बिच्छू का जहर का इंजेक्शन उसे दे दिया गया है। अगर अब उसके खून में जरा भी ग्लूकोज की मात्रा बढ़ी, उसका दिल फौरन काम करना बंद कर देगा। इसलिए उसके भागने से भी कोई नुकसान नहीं। अधिक से अधिक वह भूखा मर जाएगा।’’

धर्मराज ने संयत आवाज़ में पूछा, ''उसका नाम क्या है?’’

''नचिकेता।’’ उधर से आवाज़ आयी। यह सुन कर धर्मराज ने अपने फोन की लाइन काट कर के उसे नीचे रख दिया।

नचिकेता ने किचन से निकल कर हैरान धर्मराज को आवाज़ लगायी। ''लाइटर नहीं मिल रहा।’’

धर्मराज पशोपेश में खड़ा हो कर नचिकेता को घूरने लगा। नचिकेता के चेहरे पर ज़रा भी शिकन नहीं थी। धर्मराज ने सोचा कि यह बालक खुद अपनी मौत के पास आ ही चुका है तो क्यों न उस की खातिरदारी की जाए। इसलिए उसने कहा, ''तुम अतिथि हो कर भी मेरे घर में भूखे रहो, यह ठीक नहीं है। अतिथि की सेवा न करने से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। तुम यहाँ आ कर बैठो। मैं ही तुम्हारे लिए कुछ बना कर लाता हूँ।’’ नचिकेता ने सिर झुका हामी भर दी और चुपचाप बैठक में आ कर बैठ गया।

गम्भीर योजना विचारते हुए धर्मराज ने किचन में कदम रखा। अंधेरा दूर करने के लिए जैसे ही उसने स्विच आन किया, ज़ोर का धमाका हुआ। पूरे किचन में फैली गैस में भयंकर आग लग गयी। इसके साथ ही सतर्क नचिकेता झट से बाहर की तरफ़ भागा। देखते ही देखते धर्मराज का आलीशान महल धू-धू कर के जलने लगा। केले के खेत के ऊपर पूर्णिमा का चांद और नीचे आग की सुनहरी लपटों में जलता हुआ महल। अंदर से आ रही चीख को बाहर एक झुलसते शरीर में तड़पते आते देखा। जमीन पर घिसटते हुए जलते हुए धर्मराज ने पानी-पानी की गुहार लगायी। नचिकेता आहिस्ते से चल कर उसके पास पहुँचा। जमीन पर झुलसे हुए धर्मराज ने घुटी आवाज़ में कहा, ''तुम... तुम मुझे जानते थे! किन्तु मैं तुम्हें नहीं जान पाया।’’

''जो पापकर्मों से निवृत्त नहीं हुआ है, जिसकी इन्द्रियाँ शान्त नहीं है और जिसका चित्त अशान्त है, वह जानने योग्य बातें नहीं जान सकता। जिस के लिए ज्ञानी और शक्तिशाली दोनों भात हैं, और तुम जैसे लालची सब्जी हैं, उसके विषय में तुम कैसे जान सकते?’’ नचिकता ने क्रोध में भर एक लम्बी साँस में यह कहा।

 

तृतीया वल्ली

 

''आपके आदमियों ने आपको यह नहीं बताया कि मैं और मेरे पिता छाया और धूप के समान परस्पर विलक्षण है। साथ भी हैं और अलग भी।’’ नचिकेता ने रोष में भर कर कहा।    

''तुम्हारे पिता मर चुके हैं और तुम भी जीवित नहीं रह सकते।’’ कराहते हुए धर्मराज ने कहा, ''लेकिन.. लेकिन क्रोध ने तुम्हें अंधा कर दिया है। तुम सही-ग़लत विचार नहीं सकते। देखो, तुम्हें जहरीला इंजेक्शन दिया गया है। कुछ भी खाओगे तो मर जाओगे। भूखे मर जाना ही तुम्हारी नियति है।’’ जलते हुए बार-बार करवटें बदलते हुए धर्मराज दर्द से कराह रहा था।

''हम लोग तुम्हारे ही निर्देशानुसार क्रिप्टोकरेंसी बना रहे थे। तुम्हारे पास ब्लॉकचेन का कोड लिखने लायक कौन भरोसेमंद और काबिल आदमी था?’’

धर्मराज ने इशारे से कहा, ''उस कमरे में आग नहीं पहुँची है। वहाँ पानी होगा।’’ नचिकेता को कुछ दया आयी। जलते हुए घर के अंदर से वह कम्बल और पानी की बोतल ले कर बाहर आया। जलते हुए धर्मराज को कम्बल ओढ़ा कर उसने पानी पिलाया।

धर्मराज ने कराहते हुए कहा, ''तुम दोनों बेईमान निकले। नमकहराम...’’

''हाऽऽ... इसे तुम नमकहरामी कहते हो! मेरे पिता और मुझे पहले से शक से था कि क्रिप्टोकरेंसी के नाम पर लोगों से बहुत सा पैसा निवेश करवा कर तुम गायब होना चाहते हो। आज जब गायब होने का समय आया, तब मेरे पिता ने तुम्हारी मदद से इनकार कर दिया। उन्हें मारने से तुम्हें क्या फायदा हुआ?’’

''अगर तुम दोनों को नहीं मारा जाता तो सारा धन लूट कर तुम दोनों गायब हो जाते। चोरी की सारी जिम्मेदारी हमारे सिर पर आती और तुम दोनों पर कोई शक न करता। तुम बताओ कि तुम दोनों ने हमें क्यों धोखा दिया?’’

''धोखा नहीं दिया। जिसे तुम धोखा कहते हो वह आत्मा के लिए किया। मेरे स्वर्गीय पिता बड़े कम्प्यूटर के बड़े वैज्ञानिक थे। शुरुआती दिनों में उनके लिए कम्पनी पैसे के साथ-साथ खाने-पीने की अथाह चीजें देती थीं। वे नहीं जानते थे कि मेरे पिता को काम में दिलचस्पी अधिक थी। उनकी शुरुआती कम्पनियों ने बहुत पैसा बनाया। पर उन्हें लगा कि यह उनके मन का नहीं है। उन्होंने नयी-नयी चीजें सीखीं और अपनी बुद्धि और विकसित की। किन्तु तुम जैसे भ्रष्ट लोग के साथ उन्होंने जाना कि बुद्धि से भी बढ़ कर विवेक है। इन्द्रियों की अपेक्षा उनके विषय श्रेष्ठ हैं। विषयों से मन उत्कृष्ट है, मन से बुद्धि बढ़ कर है और बुद्धि से भी महान आत्मा है। यह सच है कि एक आदमी से कहीं ज्यादा शक्तिशाली माया है, प्रलोभन है पर यह भी सच है प्रलोभन से बढ़ कर विवेक है। वही दिव्य गुण है।’’

''झूठ है, बकवास है।’’ झुलसे हुए धर्मराज ने खीज़ कर मरी आवाज़ में कहा, ''ये तुम्हारा विवेक कैसा है जो केवल तुम तक सीमित है? मेरे मर जाने के बाद अरबों डालर का धन किसी का न रह जाएगा। न तुम्हारा, न मेरा। तुम्हारा विवेक, तुम्हारी आत्मा यह फालतू की बातें हैं तुम्हारे पिता के पाप को ढँकने के लिए।’’

''सभी में छुपा हुआ यह आत्मा आसानी से नज़र नहीं आता। यह बहुत सूक्ष्मदर्शी पुरुषों द्वारा अपनी तीव्र और सूक्ष्मबुद्धि से ही देखा जाता है। यह वह रथी है और मेरा शरीर रथ, मेरी बुद्धि सारथी और मन मेरा लगाम है।’’

''क्या तुम अभी भी वह धन निकाल सकते हो?’’

''न केवल पैसा मैं निकालूँगा, बल्कि सभी मालिकों को वापस भी करूँगा। यही नचिकेता मरने से पहले कर जाएगा।’’ नचिकेता ने दृढ़ता से कहा। ''अब तुम मेरा साथ दो। क्रिप्टोकरेंसी के कोड के पासवर्ड का एक हिस्सा मेरे पास है। एक तुम्हारे पास। तुम मुझे वह सीक्रेट पासवर्ड बता दो। मरने से पहले यह काम कर दो।’’

मर रहे धर्मराज को हँसी आयी, ''हम दोनों ही मर रहे हैं। हम दोनों ही एक दूसरे की मदद के लिए तरस रहे हैं। तुम यह सोचते हो कि तुम बच जाओगे और धन के स्वामी होगे।’’

नचिकेता ने मना करते हुए स्पष्ट किया , ''न तो मैं जी सकूँगा न आप। न ही हम दोनों में कोई धन का लालची है। न आपने पहले मुझे देखा था, न मैं आपके बारे में कुछ जानता था। किन्तु मैंने आपको ढूँढ निकाला। हम दोनों मरने वाले हैं, पर देखने वाली बात है कि मेरे पास अभी समय है। आपके पास नहीं।’’

''नचिकेता, तुम कैसी बातें करते हो? अब भी तुम अंधेरे में भटक रहे हो। यदि तुम्हें धर्म की इतनी चिन्ता थी, तो फिर क्रिप्टोकरेंसी के लिए तुम और तुम्हारे पिता ने काम ही क्यों किया?’’

''क्योंकि यह काम अपने आप में अपराध नहीं है। हमें जो भी कहा जाता है, उसे हम मन में उपसंहार करते हैं, उसे प्रकाशस्वरूप बुद्धि में लय करते हैं, बुद्धि को शुचि ज्ञान में और ज्ञान को विवेक में लय करते हैं। धर्मराज, आप कितने अज्ञानी हैं।’’

''पानी.. पानी।’’ धर्मराज ने करुण आवाज़ में पुकारा।

इस पर नचिकेता ने भयानक हँसी हँसते हुए कहा, ''तुम मुझे अपना सीक्रेट पासवर्ड बता दो। मैं तुम्हें पानी ही नहीं दूँगा बल्कि बचा भी लूँगा।’’

''तुम पर भरोसा करना कठिन है।’’, धर्मराज ने कहा, ''यह तुम्हारी बुद्धि पर निर्भर करता है। सीक्रेट पासवर्ड जिसे पाने के लिए तुम मरे जा रहे हो, वह मैं संक्षेप में कहता हूँ। यह एक अक्षर है। उस अक्षर को जान कर जो तुम इच्छा करते हो, वह तुम्हारा हो जाएगा।’’

नचिकेता सोच में पड़ गया। उसने विचारा - ''अगर वह केवल एक अक्षर है, वो ब्रुट-फोर्स अल्गोरिद्म (brute-force algorithm)) से उसको ढूँढा जा सकता है। जितने कैरेक्टर इनपुट (character input)) सम्भव हैं वह मशीन के द्वारा कोशिश कर लेने पर काम कर जाय।’’

धर्मराज ने दर्द से बिलखते हुए कहा, ''यहाँ एम्बुलेन्स बुलवा लो। या मुझे मेरी गाड़ी में लाद कर पास के हॉस्पिटल ले चलो। वैसे मैं मृत्यु को वरण करने से नहीं घबरा रहा। अफसोस है कि मेरी मौत के जिम्मेदार तुम होगे। जब सच को जानोगे तो खुद को धिक्कारोगे।’’ धर्मराज की बात पर नचिकेता विचार ही कर रहा था कि धर्मराज ने कटाक्ष किया, ''नचिकेता, तुम्हारा भरोसा नहीं है। मेरे बताने से भी तुम पासवर्ड नहीं तोड़ पाओगे।’’

नचिकेता ने क्षोभ में भर कर कहा, ''उठो, जागो। वहाँ मेरे दिवंगत पिता की प्रेतात्मा खड़ी है। उन श्रेष्ठ पुरुष के समीप जा कर जानो। तुम्हारे जलते हुए बदन पर अभी कंकड़ भी छुरी की धार की तरह चुभेंगे। लेकिन फिर भी तुम्हें सत्य का बोध हो जाए तो उसे जान कर मरने से बच जाओगे। देखो वह तुम्हें वहाँ बुला रहे हैं।’’

धर्मराज ने कनखियों से उस दिशा में देखा जिधर नचिकेता ने फैली हुयी बाँह से इशारा किया। दूर अंधेरे में उसे कुछ भी न सूझा। धर्मराज सिंह ने बड़ी कोशिश कर उठने की जहमत की। नचिकेता का लिपटाया कम्बल गिर पड़ा। साथ ही उसकी जली हुयी चमड़ी भी गिरने लगी। अधजला धर्मराज कुछ कदम चला और फिर एकदम धड़ाम से गिर गया।

नचिकेता धर्मराज का धू-धू कर के जलता हुआ आलीशान महल देखता रहा।

नचिकेता के द्वारा क्रिप्टोकरेंसी की धोखाधड़ी का आख्यान जान कर तथा शेयर बाजार, पिरामिड मार्केटिंग और अन्य जल्दी धन प्राप्त करने के उपायों की फरेबी सुन कर बुद्धिमान पुरुष महिमान्वित होता है। जो कोई प्रोग्रामर इस तरह धन, काले धन और जालसाजी के धन्धे को अपने कार्यस्थल में सुनाता है वह निश्चय ही धोखेबाजों से सचेत हो जाता है।

 

द्वितीय अध्याय

 

प्रथमा वल्ली

नेपाल के दूसरे सबसे बड़े नगर बिराटनगर जिले में शाम के समय झील के पास एक बोटिंग कम्पनी का मालिक बैठा गिटार बजा कर सैलानियों का दिल बहला रहा था। उनमें से एक युरोपियन महिला ने गिटार वादक को झील के दूसरी ओर चीख कर इशारा किया, जिसका मतलब था - कोई डूब रहा है। कम्पनी के चालीस साला मालिक ने फौरन अपने आदमियों को उस डूबने वाले बच्चे को बचाने को कहा।

इस घटना के आधे घंटे के बाद जब शाम अलसा कर रात में छुप गयी, तब गीले बालक से बाँस की टोपी पहने फूलों की छाप वाली स्वेटर पहने, लम्बे चेहरे वाले खुशमिजाज गिटारवादक ने कहा, ''घर से भागे मालूम पड़ते हो। अच्छे घर के लगते हो। घरवालों को खबर कर दूँ?’’ बारह साल के बच्चे को चुप देख कर उसने पूछा, ''इतनी बड़ी दुनिया में ऐसे कैसे रहोगे? कुछ काम-वाम आता है या होटल में बर्तन धो कर गुजारा करोगे?’’

यह सुन कर बालक ने धीरे से जवाब दिया, ''जी, आता है।’’

''क्या?’’

''हैकिंग।’’ नचिकेता ने कहा।

यह सुन कर खुशमिजाज गिटारवादक ने कान खड़े हो गये। वह चौकन्ना हो गया। ''अच्छा, हम दोस्त बन जाते हैं। यहाँ से बात शुरू करते हैं। मेरा नाम अन्तक है। तुम्हारा नाम क्या है?’’

''नचिकेता।’’ गीले कपड़े बदलने के बाद सहमे हुए लड़के ने जवाब दिया। उसने देखा कि गिटारवादक ने दाहिनी अनामिका उँगली में फिरोज़ा की अंगूठी पहन रखी थी।

''बड़ा सुन्दर नाम है। तुमने नचिकेता की कथा सुनी है?’’ अन्तक ने पूछा। नचिकेता कुछ कहने को हुआ, तब अन्तक ने टोक दिया, ''बिराटनगर का वर्णन महाभारत में आता है। इसलिए मैं तुम्हें महाभारत में नचिकेता की जो कहानी है, सो बतलाता हूँ। प्राचीन काल में नचिकेता के पिता जो ऋषि थे, नदी किनारे वन्दना के उपरान्त अपनी पूजा की सामग्री वहीं छोड़ आये थे। उन्होंने अपने पुत्र नचिकेता से कहा कि वहाँ जो नदी के पास सामग्री छूट गयी है, उसे लेते आओ। नचिकेता जब तक वहाँ पहुँचा, उसे कुछ न मिला क्योंकि नदी की लहरें वह पूजा सामग्री बहा ले गयी थी। जब नचिकेता ने वापस जा कर अपने पिता को यही कहा तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। उन्होंने उल्टे नचिकेता को ही डाँटा। पिता की डाँट से नचिकेता मूर्छित हो गया। यह देख कर उसके पिता विलाप करने लगे, पर नचिकेता होश में न आया। पूरे एक दिन बेहोश होने के बाद जब नचिकेता होश में आया और उसने कहा कि सपने में उसने मृत्यु के देवता यम के दर्शन किए।’’

नचिकेता को यह सुन कर बड़ा विस्मय हुआ। ''मैंने तो कुछ और ही सुना था।’’

बालक को कुछ खुलता हुआ देख कर अन्तक प्रसन्न हो गया। ''देखो, जरा मुस्कुराओ। अब बताओ, कुछ खाओगे?’’ नचिकेता के न में सिर हिलाने पर उसने चिन्ता प्रकट की, ''चेहरे से तो भूखे लग रहे हो। ये बताओ यहाँ डूब कर मरने का ख्याल क्यों आया? मेरा धंधा चौपट करवा दोगे।’’

''क्यों? मेरे मरने से आपके धंधे पर क्या असर पड़ेगा?’’

''जगह बदनाम हो जाएगी। फिर कोई यहाँ नहीं आएगा क्योंकि यहाँ तुम्हारा भूत घूमेगा।’’

अन्तक के इस तर्क से आहत हो कर नचिकेता ने कहा, ''आप भूत-प्रेत मानते हैं?’’

''मेरे मानने नहीं मानने से भूत-प्रेत तो होना नहीं छोड़ेंगे। ऐसे समझ लो कि भले ही मैं न मानूँ, तुम न मानो, पर दुनिया तो मानना न छोड़ेगी। यह सोच लें कि सब समझ लेंगे, ऐसा कभी नहीं होने वाला। वैसे सोचा जाय, परमात्मा ने मनुष्य की इन्द्रियों को बाहर की तरफ देखने वाला बना कर उन्हें हिंसित कर दिया है। बड़ी मुश्किल से ही कोई अपने अन्दर झाँकता है। सोचो, भूत-प्रेत हैं या नहीं हैं, चोर-बेईमान हैं या नहीं - इन सबको देखने के बजाय कोई यह थोड़े ही देखता है कि हम डर क्यों रहे हैं? किसी बुराई देखने से हमें क्या खुशी मिलेगी या किसी का धन देखने से हम क्यों जल रहे हैं? पूरी दुनिया बाहर की तरफ दौड़ रही है। कोई कोई ही यह देख पाता है कि अन्दर से हम न कभी बूढ़े होते हैं, न कभी बीमार - हमारा शरीर भले ही रुग्ण हो जाय, किन्तु हमारी चेतना कभी साथ नहीं छोड़ती।’’

अन्तक की तरफ अपलक देखते हुए नचिकेता ने कहा, ''आप बहुत ज्ञानी जान पड़ते हैं।’’

''ज्ञानी ही नहीं, धनी भी हूँ। किस बात का दुख है? क्यों मरना चाहते हो? क्या चाहिए तुम्हें?’’

अन्तक के पूछने पर नचिकेता ने कहा, ''कोई खुशी से थोड़ी ही मरना चाहता है! दुख से दुखी हो कर मरना चाहता है।’’

''माँगो तो सही। ऐसा क्या है जो मैं नहीं दे सकता?’’

''स्वर्गलोक में कुछ भी भय नहीं है। वहाँ मृत्यु का वश नहीं है। वहाँ कोई बूढ़ा नहीं होता। वहाँ मनुष्य भूख-प्यास दोनों को पार करके शोक से ऊपर उठ कर आनन्दित होता है।’’ नचिकेता के ऐसा कहने पर अन्तक जोर से हँसा। ''बहुत शातिर लगते हो। बच्चे, जो यहाँ हैं वही वहाँ भी, जो वहाँ है वही यहाँ भी है। जो आदमी इसको नहीं समझता वही मरता रहता है। दुनिया में जितनी भी स्वर्ग की कल्पना है, वह है क्या? आराम और भोग। तो यहीं भोग लो न। बिराटनगर में मेरा बोटिंग क्लब है। काठमाण्डू में मेरा कसीनो चलता है। डांस बार भी है। जो स्वर्ग है, वह यहीं हैं। वहाँ वही होगा, जो यहाँ मिल सकता है। खैर छोड़ो इन बातों को। यहाँ बैठो, मेरे लैपटॉप पर गाने सुनो, समाचार पढ़ो, ईमेल देखो। मन बहल जाएगा।’’

अन्तक कह कर कमरे से बाहर गया। नचिकेता उसके शानदार रूम में लैपटॉप को देखने लगा।

करीब एक घंटे बाद अन्तक वापस आया और कहा, ''खाना खाओगे?’’ नचिकेता ने नहीं में सिर हिलाया और एकदम से पूछ बैठा, ''आपके कितने रूपये फँसे हुए हैं?’’ अन्तक चौंक गया। उसने कहा, ''अच्छा, तुम क्या जानते हो मेरे बारे में?’’

''ज्यादा तो नहीं। इतना पता है कि आप एक बहुत बड़े खेल में भागीदार हैं। ऐसा खेल जिसमें आपको पता नहीं कि आपके साथ कौन है, आपके खिलाफ़कौन है।’’

''तुम्हें कैसे पता?’’ अन्तक सम्भलते हुए सामने वाली बाँस की कुर्सी पर कुछ चकित हो कर बैठ गया।

''आपके लैपटॉप पर जो सॉफ्टवेयर इन्स्टॉल हैं, वह क्रिप्टोकरेंसी में सौदा करते हैं। आपने तो क्रिफ्टोकरेंसी में बहुत पैसा बनाया भी है। बहुत से लोगों से पैसे इक_ा कर कर लिया, पर अब समझ नहीं आ रहा कि इसे कैसे छिपाएँ।’’

''तुम ज़रूरत से ज्यादा जानते हो, नचिकेता। इतनी कम उम्र में तुम इतना जानते हो, मुझे बड़ी खुशी हुई। तुम्हारे जैसे प्रश्न करने वाले हमें मिलें तो क्या बात है! इस संसार में यह राज की बात है कि अच्छे शिष्य को अच्छा गुरु मिलना उससे कहीं आसान है, जितना कि किसी अच्छे गुरु को अच्छा शिष्य। हाँ सच है कि नयी तरह की क्रिप्टोकरेंसी हम लोगों ने बनवायी है। यह भी सच है कि यहीं नेपाल के धरान में रहने वाले मेरे दोस्त कीनाश के अलावा मैं बाकी किसी सहयोगी को नहीं जानता। मुझे ताज्जुब है कि तुम्हें यह सब कैसे पता?’’

''शौक है। बचपन से ही मैं हैकिंग पर काम कर रहा हूँ। इसलिए पता है।’’ नचिकेता ने पूर्ववत धैर्य के साथ उत्तर दिया।

''तुम डरते नहीं हो? पता है जिस खेल की तुम बात कर रहे हो उसकी दीवारों के आसपास मौत दौड़ती है।’’

''अच्छा। यह बोटिंग क्लब और कसीनो दिखाने भर के लिए है?’’

''हाह्ह.. मेरे कह देने से भी क्या होगा? तुम डरा जाओगे? मैं कंकालों का धंधा करता हूँ। मुर्दों के कंकाल बेचना। कभी कभी गुर्दे-लीवर भी बेचता हूँ। ऐसे बहुत से धंधे हैं मेरे। तुम मेरे किस काम आओगे? यह क्रिप्टोकरेंसी का मामला जो फँसा हुआ है, उसका पासवर्ड हैक कर सकते हो?’’ अन्तक ने चुनौती दी।

''न कर सका तो आप मेरा कंकाल भी चीन निर्यात कर देंगे।’’ नचिकेता ने निडर हो कर कहा, ''मैं मरने से क्या डरूँ, जब मैं मरना ही चाहता हूँ। लेकिन मैं आपका काम कर सकता हूँ।’’

अन्तक यह सुन कर बहुत खुश हुआ। उसके सामने दारू की बोतल खोल कर गिलास में दारू डाल कर उसने कहा, ''फिर कर दो। अरबों रुपये का मामला है। यह कर दिया तो काठमाण्डू का कसीनो तुम्हारा समझो। और नहीं तो तुम्हारा कंकाल बीजिंग पहुँच जाएगा।’’

नचिकेता ने अन्तक से सॉफ्टवेयर पर 'लाग-इन’ करवाया। नचिकेता बहुत देर तक कुछ-कुछ कोड चलाता रहा। इसी बीच अन्तक ने अपना रेडियो चलाया। उस पर आवाज़ आयी- ''यह आकाशवाणी है। ...अब आप सुनिए देव आनंद पर फिल्माया फ़िल्म 'सोलहवाँ साल’ का मोहम्मद रफ़ी का गाया मधुर गीत। इसके बोल लिखें है 'मजरूह सुल्तानपुरी’ ने और संगीत दिया है 'सचिन देव बर्मन’ ने।’’

''यही तो है वो, यही तो है...’’

इधर नचिकेता ने झुँझला कर कहा, ''इसका पासवर्ड अंग्रेजी कीबोर्ड के कैरेक्टर से नहीं बने हैं। लगता है पासवर्ड में यूनिकोड कैरेक्टर भी डाले गये हैं।’’

'मतलब?’ अन्तक ने पूछा।

''क्रिप्टोकरेंसी बनाने वालों ने इसके लिए ओटीपी - वन टाइम पासवर्ड - का इस्तेमाल नहीं किया। न ही बायोमेट्रिक पासवर्ड, न ही उंगलियों के निशान। अब शायद यूनिकोड कैरेक्टर से पासवर्ड बना है, जिसके लिए आपके साधारण लैपटॉप से 'ब्रुट फोर्स अल्गोरिद्म’ से अटैक करने में महीनों लग जाएँगे और हाथ कुछ न लगेगा।’’

''तुम्हें कैसे पाता कि इसमें बायोमेट्रिक पासवर्ड नहीं लगा?’’ अन्तक के सवाल पर नचिकेता ने झुँझला कर कहा, ''हैकर मैं हूँ या आप? आप ही तोड़ डालिए पासवर्ड।’’

''यही तो है वो, यही तो है,’’ अन्तक गुनगुनाया। नचिकेता ने चिढ़कर कहा, ''इधर पासवर्ड ब्रेक नहीं हो रहा और आप गाना गा रहे हैं।’’ अन्तक ने धीरज बँधाते हुए कहा, ''याद आया। मेरा दोस्त कीनाश शायद इसका पासवर्ड जानता है। पर वो थोड़ा सिरफिरा आदमी है। उसको पैसे से मतलब नहीं। धरान में एक मामूली कसाई की तरह रहता है। लेकिन बड़ा धुरंधर विद्वान है। उसने मुझे पासवर्ड के लिए कुछ इशारा किया है। वह इशारा था - ''यही तो है वो, यही है वो।’’

''मैं कुछ समझा नहीं।’’ नचिकेता ने कहा।

अन्तक झट से दूसरे कमरे में गया और जरा देर में एक डायरी ले कर लौटा। ''इसमें कुछ पंक्तियों में इशारे किए गए हैं।’’ नचिकेता का सिर भूख से और थके होने के कारण जोर से फट रहा था। वह किसी तरह अन्तक की बातें सुनने लगा।

''जिसके द्वारा मनुष्य रूप, रस, गन्ध, शब्ध, स्पर्श और रति सुख को जानता है, यही है वो।’’ अन्तक ने कह कर नचिकेता की तरफ देखा। नचिकेता ने बुद्धू की तरह उसकी तरफ़ वापस देखा।  ''जिसके द्वारा मनुष्य स्वप्न और जाग्रत में कुछ भी देखता है, उसको जान लेने से मनुष्य शोक से मुक्त हो जाता है। यही है वो।’’ नचिकेता सुनता रहा। ''जिसे सबका शासन करने वाला जानकर उसकी रक्षा करने की इच्छा नहीं करता, यही है वो।’’ अन्तक पढ़ता रहा। नचिकेता ने उबासी ली।

''जो तप से पहले उत्पन्न हुए को, जो कि सभी भौतिक पदार्थो को बुद्धि में देखता है, यही है वो।’’ अन्तक ने यह पढ़ कर के नचिकेता से कहा, ''यही तो है वो’ या 'यही है वो’ या 'यही तो है’ - यह सब कोशिश कर के देखो।

''शब्दों के बीच खाली स्थान होगा या नहीं?’’ नचिकेता ने पूछा। ''यार मुझे कैसे पता होगा?’’ अन्तक भी झुँझलाया। नचिकेता ने सारे सम्भव प्रयास कर लिए किन्तु वह क्रिप्टोकरेंसी सॉफ्टवेयर का 'प्रशासक’ (एडमिन) लॉग-इन नहीं कर पाया।

''जो सभी विषयों के साथ विषयी रूप में बुद्धि में है, यही है वो। जैसे गर्भिणी में गर्भ सुरक्षित है, माचिस में आग सुरक्षित है, जो स्तुति करने योग्य है, यही है वो। जिसमें सभी देवता उदित और अस्त होते हैं, जिसमें सूर्य उदित और अस्त हो जाता है, यही है वो।’’ अन्तक ने आगे आकर सूत्र पढ़े। नचिकेता ने विचार कर कहा, ''कुछ व्यञ्जना में कहा जा रहा है। जो हम समझ नहीं पा रहे। आप कीनाश को फोन लगा कर पूछ क्यों नहीं लेते?’’

''कीनाश नहीं बताएँगे।’’ चिन्तित और व्यग्र अन्तक ने कहा, ''दो सूत्र और हैं। जो अंगूठे जितने बड़े हृदय में स्थित हैं, जो अतीत और भविष्य का शासक है, यही है वो। यह अंगूठे जितनी बड़ी ज्योति जो बिना धुएँ की है, यही आज है और भविष्य में भी रहेगी, यही है वो।’’

''आत्मा।’’ नचिकेता न अपने आप से कहा, ''मैं एक बार और कोशिश करता हूँ। यही होना चाहिए।’’ अभी नचिकेता कोशिश कर ही रहा था कि बाहर से कुछ धम-धम करती आहटें आनी लगीं जैसे कोई बूट पटकते आ रहे हैं। अन्तक ने यह सुन कर झट से मेज की दराज से अपनी पिस्तौल निकाली। पिस्तौल लिए वह बाहर निकला। इधर नचिकेता यह सुन कर सावधानी से फौरन अल्मारी के अंदर छुप गया।

बाहर काले ओवरकोट में काले चश्मे पहने हुए दो आदमियों ने अन्तक पर राइफल तान दी। अन्तक खीज कर चिल्लाया, ''मूर्खों, मेरे आदमी हो कर तुम मुझ पर बन्दूक तान रहे हो?’’

एक ने कहा, ''बीजिंग से आर्डर आया है। कल फारबिसगंज में धर्मराज सिंह के घर में आग किसने लगायी? कल रात तुम कहाँ थे?’’

''कल रात .. कल रात तो मैं अररिया में था। धर्मराज सिंह को कुछ हुआ तो नहीं?’’ अन्तक ने चौंक कर पूछा।

''धर्मराज सिंह मर गया। उसके घर में किसी ने आग लगा दी। क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ा हर आदमी मारा जा रहा है।’’ दूसरा आदमी गुर्राया।

''मेरा क्या कसूर है?’’ अन्तक ने थूक निगलते हुए कहा, ''मैंने कुछ नहीं किया।’’

''तुम्हारे घर से सॉफ्टवेयर को हैक करने की कोशिश की जा रही है। सच है या नहीं?’’ पहले ने धमकाते हुए पूछा।

घबराहट से अन्तक की आँखें फैल गयीं। उसने कहने की कोशिश की, ''सच है, लेकिन...’’

''धाँय.. धाँय।’’ एक गोली बाँयें कपाल पर, एक गोली दाहिने कपाल पर लगी और अन्तक का वहीं अन्त हो गया।

अन्तक की लाश पर अपनी राइफल की मूठ रख कर पहले ने कहा, ''जैसे ऊँचे स्थान पर बरसा जल चारों तरफ इधर-उधर बह जाता है, उसी तरह ऐसे चाल-चलन वाला आदमी भी इधर-उधर न जाने कितनी जगह दौड़ता रहता है। इसे कसीनो भी चलाना था, बोंटिग क्लब भी, नकली नोट भी, कंकाल भी बेचने थे,अब क्रिप्टोकरेंसी की जालसाजी भी। अब इसकी लाश का क्या करें?’’

दूसरे ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया। ''इसी झील के पानी में फेंक देते हैं।’’

''इसकी लाश सड़ेगी तो झील का पानी गन्दा हो जाएगा। पीने लायक नहीं रहेगा।’’ पहले ने कहा।

''यह लाश नहीं शुद्ध जल है।’’ दूसरे कातिल ने हँस कर कहा, ''शुद्ध जल में डाला हुआ शुद्ध जल वैसा ही हो जाता है। तुम कौन-सा इस झील का पानी पीने वाले हो? ले चलो यहाँ से।’’

दोनों ने अन्तक की लाश को रात के धुँधलके में दूर से आती रौशनी से झिलमिल झील के नीले पानी में बेदर्दी से फेंक दिया। 'गड़ाप’ सी आवाज़ हुई और दोनों कातिल भारी बूट पटकते हुए दूर चले गए।

           

द्वितीया वल्ली

 

धरान में शाम ढलने वाली थी। धनकुटा जाने वाली सड़क के पास ऊँची पहाड़ी पर एक बालक बार-बार नीचे देखते हुए कुछ घबरा रहा था। सस्ता शॉल ओढ़े हुए एक मजबूत आदमी ने उस किशोर की बाँह पकड़ ली।

''मरना है तो एक बार में कूद कर मर जाओ। ऐसे कितनी देर लगाओगे।’’ फिर बालक की शकल देख कर कहा, ''नेपाली तो नहीं लगते। यहाँ रहते हो?’’ बालक ने कोई जवाब नहीं दिया। शाल ओढऩे वाला आदमी गंजा और बेहद तंदुरुस्त था। वह बालक को लगभग घसीटते हुए अपने साथ ले चला। पास ही एक झोपड़ीनुमा घर में ले जा कर उसने कहा, ''अब बताओ। क्यों जान देना चाहते हो?’’

बालक ने कुछ भी जवाब न दिया।

''पिता जी ने घर से निकाल दिया है?’’ बालक ने सिर हिला कर हामी भर दी। ''अरे कुछ बोलो भी। तुम्हारा नाम क्या है?’’

''नचिकेता।’’ निढाल सी आवाज़ आयी।

''वाह... नचिकेता की कहानी पता है?’’ पूछा गया। भूख से बेहाल नचिकेता ने नहीं में सिर हिलाया।

''मेरा नाम कीनाश है। कुछ खा लो।’’ कीनाश उठ कर अन्दर से कुछ लाने को हुआ। नचिकेता ने कहा, ''नहीं, मैं कुछ नहीं खाऊँगा।’’

''तुमने तो मरने की ठान ही ली है। कुछ खाओगे नहीं। पहाड़ से कूद कर मर जाओगे। बिलकुल अपने नाम के अनुसार नचिकेता हो। जानते हो नचिकेता की कहानी?’’

नचिकेता ने कुछ न कहा। थकावट से उसकी पलकें भारी थीं। चाँद से बोझिल पीली रात में कीनाश ने अंधेरे में कहना शुरू किया, ''तैत्तरीय ब्राह्मण में नचिकेता की कहानी है। उसमें नचिकेता के पिता क्रोधित हो कर उसे मौत को सौंप देते हैं। नचिकेता भी तुम्हारी तरह बहुत उदास हो कर मरने जाता है। तभी एकदम से आकाशवाणी होती है कि नचिकेता मौत के घर जा कर यम का इंतजार करना, जब तक वह न आये तब तक कुछ मत खाना। जब यम आ जाए तो कहना कि मैं तुम्हारे घर तीन दिन भूखा रहा। इसके बदले में पहले दिन का बदला मैं तेरे बेटों को खाऊँगा। दूसरे दिन का बदला मैं तुम्हारे मित्रों, बन्धु-बान्धवों को खाऊँगा। तीसरे दिन का बदला तुम्हारे पशुओं को खाऊँगा। इससे यम डर जाएगा। बदले में यम से ज्ञान माँग लेना। फिर ऐसा ही हुआ। नचिकेता मृत्यु के देवता से तीन वर माँगता है। जिससे यम उसे ज्ञान देते हैं।’’

नचिकेता ने सुन कर कुछ न कहा। अपने सूखे होटों पर उसने उँगली फेरी। कीनाश ने कुर्सी पर पसर कर पूछा, ''तुम क्या चाहते हो?’’

''मैं अपने पिता से मिलना चाहता हूँ। चाहता हूँ कि वह जब मुझसे मिलें तो प्रसन्न हों, क्रोधरहित हो कर वे मुझसे बातें करें।’’ नचिकेता ने कहा।

''इसमें कौन सी मुश्किल है? मैं बात करता हूँ, तुम्हारे पिता से।’’

''मुझे मेरे पिता तक पहुँचने के सारे रास्ते बन्द हो चुके हैं। एक ही पहेली सुलझानी बाकी है। शायद वही आखिरी रास्ता है।’’ नचिकेता ने कीनाश को देखते हुए कहा। ''कौन सी पहेली?’’ कीनाश ने पूछा।

''यही तो है वो, यही तो है। यही है वो।’’ नचिकेता ने झट से कह दिया और रोष से भरी लाल आँखों से कीनाश को घूरने लगा।

''अच्छा, अच्छा। तो तुम उस हैकर के बेटे हो। यहाँ अपनी बाप की मौत का बदला लेने आये हो!’’ कीनाश ने हँस कर कहा, ''वाह, अच्छा है! और इस तरह मौत के मुँह में खुद चल कर आ गये। मूर्ख लड़के।’’

''आपको मालूम है कि मुझे जहरीला इंजेक्शन दिया हुआ है। मैं तो वैसे भी मर जाऊँगा। मुझसे डरने की क्या आवश्यकता?’’

कीनाश ने कहकहा लगाया। ''तुमसे..? तुमसे मैं..? तुमसे मैं डरूँगा? अच्छा मजाक कर लेते हो!’’

नचिकेता कीनाश को घूरता रहा। कीनाश ने कहा, ''फिर क्या चाहते हो?’’

''मैं जानना चाहता हूँ कि पासवर्ड क्या है?’’ नचिकेता के सवाल पर कीनाश ने कड़वाहट से कहा, ''तुम्हारे कारण मेरे दोस्त अन्तक की जान गयी। ये बात और है कि इसमें उसका लालच भी अधिक था। मरने से पहले तुम्हारी अन्तिम इच्छा पूरी ज़रूर कर दूँगा। वो रहा मेरा लैपटॉप। थोड़ी कोशिश और कर लो। अगर पासवर्ड पता कर पाए तो ठीक है, वरना इसी पहाड़ी में तुम्हें उल्टा टाँग कर खाई में ढकेल दूँगा। खाई में देखने पर तुम्हें ग्यारह दरवाजों वाला नगर दिखेगा। उसको ध्यान करने से तुम्हें कोई शोक न होगा। देखते ही तुम समझ जाओगे कि यही है वो।’’

नचिकेता ने अपनी रही शक्ति संजो कर कीनाश की टेबल पर जा कर लैपटॉप पर काम करना शुरू किया। कीनाश वहाँ बगल में बैठ कर देखने लगा। ''अच्छा, तुम्हें यह भी पता है। अच्छा... बहुत अच्छे। तुम्हारे पिता बड़े काबिल आदमी थे। बहुत कुछ सिखाया तुम्हें। हमारी कभी मुलाकात नहीं हुई। तुम्हारे पिता के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान था। अगर हमारी बात मानते तो आज अरबों-खरबों रुपये के मालिक होते या नहीं?’’

''अन्तक ने बहुत से सूत्र बताये थे। मैंने 'आत्मा’ भी डाला लेकिन काम नहीं किया। आपने यूनिकोड कैरेक्टर में पासवर्ड डाल रखें हैं?’’

''चलो, तुम्हारा काम आसान कर देता हूँ। हाँ, इसमें यूनिकोड कैरेक्टर में ही पासवर्ड डाल रखे हैं। यह बात केवल धर्मराज को, अन्तक को और मुझे पता थी। तुम्हारे पिता को शायद यह अंदाजा हो गया था। जानते हो यूनिकोड कैरेक्टर में क्यों डाला?’’

''ताकि मुश्किल हो जाए।’’

''केवल इतना ही नहीं, मेरे सूत्रों को तोडऩे वाला कोई बिरला ज्ञानी ही होगा। तुम्हें बताता हूँ। इस देह के भ्रष्ट हो जाने पर- इस शरीर में क्या रह जाता है? यही है वो।’’

नचिकेता कोशिश में लगा रहा। कीनाश उठ कर अपनी झोपड़ी में चहलकदमी करते हुए बोला - ''प्राण के सो जाने पर, जो अपने इच्छित विषयों की रचना करता रहता है वही शुद्ध है, वही ब्रह्म है, वही अमृत है। उसमें सम्पूर्ण लोक आश्रित हैं, कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता, यही है वो।’’

नचिकेता ने 'ब्रह्म’ और 'अमृत’ दोनों कोशिश कर के देख लिया। परेशान हो कर नचिकेता असावधानी से बोल बैठा, ''धर्मराज ने मरते-मरते कहा था कि वह एक अक्षर है।’’

''अच्छा तुमने ही धर्मराज को मारा था? मैं समझता था कि तुम निर्दोष बालक हो। हमसे होशियारी?’’ कीनाश ने अपना कसाई वाली गंडासा निकाल कर कहा, ''तुम्हारी मौत ऐसे गंडासे से ही लिखी है। तुम्हें जहर से नहीं, दण्डित हो कर मरना है। इसलिए तुम अभी तक बचे हुए थे।’’

नचिकेता की साँस ऊपर की ऊपर रह गयी। उसने देखा कि कीनाश की दाहिनी अनामिक उँगली में फिरोज़ा रत्न की अंगूठी है।

''मौत को देख कर प्राण अटक गये। जिस बल से तुम्हारा खून हृदय से ऊपर जाता है वह प्राण है और जो हृदय से नीचे खून को ढकेलता है वह अपान है, वे सभी मेरे डर से काँप रहे हैं। लेकिन तुम न तो प्राण से जीवित हो, न अपान से। अपनी जिद से जीवित हो। तुम्हारे इस बदन को थोड़ा भी ग्लूकोज मिल गया तो तुम्हारा हृदय काम करना बंद कर देगा। क्या होगा तुम्हारे मरने पर? बेईमान बाप के बेईमान बेटे!’’ कीनाश गुर्राया।

''क्रिप्टोकरेंसी की जालसाजी से संचित अपार धन तुम भी नहीं ले पाओगे। मेरे मरने के बाद तुम भी सिर फोड़ोगे। मैं अगर हैक कर पाता तो सारे निवेशकों के पैसे उनके खाते में वापस भिजवा देता। मेरे पिता का अधूरा काम मैं कर देता। लेकिन तुम क्या कर पाओगे? वह पैसा हड़प भी नहीं सकते। बीजिंग वाले आका को क्या मुँह दिखाओगे?’’

''मेरी चिन्ता छोड़ो। तुम कम जानते हो। अपनी चिन्ता करो कि तुम्हारे साथ क्या होगा?’’

कीनाश के ताने पर नचिकेता ने कहा, ''अपने कर्म और ज्ञान के अनुसार किसी और देह में जन्म पाऊँगा।’’

कीनाश बोला, ''तुम किस नैतिक अभिमान की बात कर रहे हो? तुम्हारे पिता और तुम दोनों इस लूट में शुरू से शामिल थे। तब कहाँ सो रहा था तुम्हारा जमीर?’’

नचिकेता ने धैर्य से उत्तर दिया, ''मेरे पिता ज्ञानी थे। ज्ञानियों का स्वभाव होता है अग्नि जैसा होता है। जिस वस्तु में अग्नि लग जाती है, अग्नि उसी रूप का दीखता है। मेरे पिता विद्वान थे। विद्वान वायु की तरह होता है, जिस रूप में जाता है, उसी रूप का हो जाता है। विद्वान हर तन्त्र में पूरी तरह वास कर लेते हैं, पर अपना स्वभाव नहीं छोड़ते। तुम्हारा तन्त्र मेरे और मेरे पिता से चल रहा था। किन्तु हम अपना नैतिक बल कैसे छोड़ देते? जैसे सूरज सभी लोक का नेत्र हो कर भी नेत्र के दोष से लिप्त नहीं होता, उसी तरह विद्वान पुरुष तुम्हारी सफलता-असफलता, नैतिक गुण-दोष से मुक्त होता है। क्या यह सच नहीं कि तुम्हारा तन्त्र विद्वानों के अधीन है।’’

''लेकिन तुम और तुम्हारे पिता एकमात्र विद्वान तो नहीं? केवल तुम ही सही गलत का निर्णय नहीं ले सकते। जिसको तुम जालसाजी कहते हो, वह ज्ञान से अज्ञान का दोहन है। अनित्य में नित्य सुख की कामना करने वालों का भ्रम दूर करने का एक उपाय मात्र।’’ कीनाश ने नचिकेता के हाथ पीछे की तरफ रस्सी से बाँध दिये।

''यह सब आप लोग किस लिए कर रहे हैं? क्या उसे मैं कभी जान सकता हूँ?’’ नचिकेता चिल्लाया।

''जहाँ सूर्य प्रकाशित नहीं होता, चन्द्रमा और तारे भी नहीं चमकते। वहाँ आग और बिजली भी नहीं है। उसके बारे में तुम जान कर भी क्या कर लोगे?’’ यह कह कर बलशाली कीनाश ने नचिकेता को उठा कर कंधे पर लादा और बाहर चल पड़ा।

 

तृतीया वल्ली

 

रात के अंधेरे में नचिकेता एक पीपल के पेड़ की शाखा से रस्सी के सहारे उल्टा लटका हुआ था। कीनाश ने मोटे चाबुक से खींच कर नचिकेता को मारा और अट्टाहास करते हुए पूछा, ''क्या नज़र आ रहा है तुम्हें?’’

''बड़ा अजीब दृश्य है। पूरे संसार में बस उलटा पीपल का पेड़ दिख रहा है, जिसकी जड़ें ऊपर हैं और शाखाएँ नीचे।और तुम ऐसे लगते हो जैसे कि पीपल के पेड़ की छोटी अनुकृति हो। ऐसा पेड़ जिसकी जड़ ऊपर की तरफ और शाखाएँ नीचे की और हैं। तुम्हारे हाथ-पाँव की उँगलियाँ पेड़ की शाखा हंै और तुम्हारा सिर ही जड़ है।’’ नचिकेता किसी तरह बोला।

''यही है वो।’’ कह कर कीनाश ने एक और चाबुक मारा। नचिकेता कराह उठा।

''तुम्हें क्या लगता है, हम लोग पैसे चुराने के लिए काम करते हैं? अरे मूर्ख, सारा पैसा हमारा ही है। ये जो बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ग्राहकों पर अथाह पैसा लुटाती हैं, किसलिए और कैसे? बेवकूफ, यह पैसा सब हम ही हैं। यह जो कुछ सारा जगत् तुम्हें दिखता है, वह सब हमारे इशारे पर चल रहा है। बड़ी सरकारें, वल्र्ड बैंक, सभी हमारे भय से नीतियाँ बनाती है। हमारे भय से शेयर बाजार चलता है। सोचो अगर दुनिया में पैसा एक जगह से दूसरे जगह पहुँचाना हो या गायब करना हो, तो कौन करेगा? हम करेंगे। यह लाभ के लिए नहीं संतुलन के लिए हैं। धर्मराज,अन्तक, कीनाश तक ही सीमित नहीं है यह दुनिया। मेरे जैसे बहुत से फिरोज़ा अंगूठी पहन कर यह संतुलन का काम कर रहे हैं। मूर्ख हो तुम। बेहद मूर्ख!’’

कीनाश की बात सुन कर नचिकेता बोल उठा, ''इस देह के पतन से पहले मुझे बता दो कि उसका पासवर्ड क्या था, वरना यह कसक मेरे साथ रह जाएगी। वह एक अक्षर है या कुछ और?’’

कीनाश ने कहा, ''धर्मराज कुछ ठीक कहता था। वह एक अक्षर है पर तीन अक्षर से पहचाना जाता है। लेकिन जिस प्रकार दर्पण में स्पष्ट छवि दिखायी देती है, उसी तरह निर्मल बुद्धि से यह सहज जान जाओगे। और जब पहेली जान जाओगे फिर किसी तरह का शोक न करोगे।’’ कीनाश ने आगे कहा, ''गंडासे से तुम्हारा सिर उतार दूँ, या फिर तुम्हें भूख से मरने दूँ?’’

नचिकेता के मन में धर्मराज की बातें याद आने लगी। वह क्या है जिसे नेत्र से कोई नहीं देख सकता, जिसे जान कर मनुष्य अमर हो जाता है?

कीनाश ने गंडासा लहराते हुए हुंकारा, ''मरने के लिए तैयार हो जाओ।’’

नचिकेता ने आँखें बंद कर लीं। जैसे सारी इन्द्रियाँ अन्दर छुप गयी हों, और बुद्धि अब बचने की कोई चेष्टा न कर रही हो। उस क्षण नचिकेता प्रमादरहित हो कर याद करने लगा। किस तरह उसके पिता ने उसे लाड़-प्यार से बड़ा किया। माँ के गुजर जाने के बाद दिन-रात वह कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग में लग गया। किस तरह उसके पिता छोटी-छोटी बातों पर उस पर गुस्सा किया करते थे। किस तरह उन्होंने गुस्से में नचिकेता को मर जाने कहा। और वह घर छोड़ कर नदी किनारे डूबने चला गया था। किस तरह वहाँ उसे खबर मिली कि उसके पिता को नकाबपोशों ने गोली मार दी। वापस घर आने पर सूने घर में पिता की लाश तक न मिली। बहुत ढूँढऩे पर छत पर एक ताबूत में बंद पिता का शव मिला जिनके चेहरे पर यूँ लिखा था कि वे अन्तिम समय में नचिकेता को बड़े दुख से पुकार रहे थे। अचानक ही उसके हृदय में पिता के लिए अगाध श्रद्धा उत्पन्न हुई और वह हत्यारों को नाश करने को आतुर हो गया। किस तरह उसने धर्मराज को ढूँढ निकाला! किस तरह अन्तक चल बसा! किन्तु अब किस तरह निर्बल नचिकेता उनसे मिलने परलोक जा रहा है।

उसी समय 'धाँय’ से गोली चलने की आवाज़ सुनायी दी। नचिकेता ने आँखें खोली। उसने देखा कि दो आदमी काले ओवरकोट में राइफल लिए सामने पड़ी कीनाश की लाश का मुआयना कर रहे थे। एक ने कहा, ''बहुत बदमाश आदमी था। इसने भी सिस्टम हैक करने की कोशिश की। बीजिंग वालों को यह पसंद नहीं आया।’’ दूसरे ने कहा, ''अरे, यह क्या? देखो एक मासूम लड़के को इसने पेड़ पर उल्टा लटका रखा था। लगता है हैवान इसको भी मार देना चाहता था।’’

उन दोनों ने नचिकेता को पेड़ से उतारा और हाथ-पाँव खोल कर पूछा, ''कौन हो तुम?’’

''मुझे इस आदमी ने कैद कर रखा था। आपने मेरी जान बचायी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’’ नचिकेता ने कहा।

''घर चले जाओगे यहाँ से?’’ पहले ने अपने पॉकेट से पैसे निकाल कर नचिकेता को दिए। नचिकेता ने हाँ में सिर हिलाया। दूसरे ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा, ''हमने तुम्हारी जान बचायी है। इसलिए तुमने हम दोनों को नहीं देखा। ठीक है?’’

नचिकेता ने कृतज्ञता में दोनों हाथ जोड़ दिए।

 

दोनों ओवरकोटधारियों के चले जाने के बाद नचिकेता धीरे से उठ कर कीनाश के झोपड़ी में जा कर बैठ गया। अब वह सारे घटनाक्रम को शुरू से याद करने लगा। उसे कीनाश की बात याद आयी-वह एक अक्षर है पर तीन अक्षर से पहचाना जाता है- बहुत कोशिश करते हुए उससे पहेली अब भी न सुलझी। वह न वाणी से, न मन से और न ही नेत्र से प्राप्त किया जा सकता है, वह 'है’ ऐसा कहने से किस प्रकार पाया जा सकता है? अगर कोई पासवर्ड है तो 'है’ न! थोड़ा और सोचो। एक अक्षर और तीन अक्षर। ऐसे सोचते-सोचते रात ढलने लगी।

सुबह होने वाली थी। अचानक नचिकेता के अंत:करण में जैसे बिजली-सी कौंधी। सूरज की पहली किरण से पहले उसने टाइप किया - अ+उ+म। और इसके साथ ही प्रशासक (एडमिन) लॉग-इन चल पड़ा। नचिकेता ने झट से ट्रांजैक्शन उलटे किये। इसके साथ ही एडमिन का नया पासवर्ड बदल कर रख दिया - ''यही+ +है+ +वो’’।

इसके साथ ही नचिकेता झोपड़ी छोड़ कर वहाँ से निकल पड़ा।

           

चलते चलते नचिकेता पहाड़ी पर एक देवी के मंदिर के पास सुबह-सवेरे पहुँचा। वहीं नचिकेता बैठ कर आते-जाते लोगों को देखने लगा। एक आदमी पुजारी से गुहार लगा रहा था - ''कोई तो उपाय होगा जिससे मेरी बीमार बच्ची बच सकती है?’’

''जहाँ डॉक्टर हार चुके हों, वहाँ मुझसे क्या चाहते हो?’’ पुजारी ने टरकाते हुए कहा।

''तंत्र-मंत्र में हर तरह का उपाय होता है। आप ही बताइए, किस तरह यह बारह साल की बच्ची बच सकती है?’’ इस पर पुजारी ने निराशा से कहा, ''नरबलि के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। लेकिन इस जमाने में कौन करेगा ऐसा अपराध?’’

यह सुन कर बच्ची का बाप फूट-फूट कर रोने लगा। नचिकेता वहाँ उठ कर गया और दोनों से बोला, ''आप मेरी बलि ले लीजिए।’’

यह सुन कर पुजारी और बच्ची का बाप दोनों दंग रह गये। ''क्यों बच्चे?’’ पुजारी ने हैरानी से पूछा।

''मेरा जीवन ऐसे भी कुछ ही देर का है।’’ नचिकेता ने किसी नीमबेहोशी में कहा और निढाल हो कर वहीं गिर पड़ा। पुजारी ने उसकी नब्ज टटोली और यजमान से कहा, ''जीवित है। आप ग्यारह लोग बुला कर लाइए। यह बलि आप ही को देनी पड़ेगी।’’

बहुत से लोग ढोल पीट रहे थे। किसी ने नचिकेता के कपाल पर लाल सिंदूर मल दिया। कुछ ने उसके कोमल बदन पर हल्दी-चंदन का लेप लगा दिया। तीन दिन के भूखे प्यासे नचिकेता कुछ होश न था। वहाँ ढोल-मंजीरे के शोर के बीच दो ओवरकोट पहने आदमी राइफल लिए पहुँचे। किन्तु इतने लोग की भीड़ देख कर वहीं ठिठक गये।

ढाले की शोर में यजमान ने एक भयानक गंडासा उठाया और हवा में भांजने लगा। किसी ने नचिकेता के कान में कहा, ''अफीम खा लो, दर्द न होगा।’’ बड़ी कठिनाई से नचिकेता के बोले फूटे, ''अब कोई इच्छा शेष नहीं है।’’ कह कर नचिकेता ने अपना सिर बलि वेदी पर रख दिया। अंतिम बार संसार से आँखें मूँद लेने से पहले नचिकता ने देखा कि यजमान के दाहिने हाथ में फिरोज़ा की अंगूठी थी।

नचिकेता सोचने लगा कि अब तीन दिन के भूखे-प्यासे रहने के बाद उसकी मुलाकात यम से होगी। वह पहला वर माँगेगा कि पिता उससे प्रसन्नचित्त हो कर मिलें। दूसरा वर माँगेगा कि स्वर्ग मिले जहाँ भूख-प्यास, जरा-व्याधि कुछ न हो। तीसरा वर माँगेगा कि वह यह जान जाए कि मरने के बाद कुछ शेष रहता है या नहीं।

यजमान ने जोर से हुँकार लगायी और नगाड़ों के कान-फाड़ू शोर में लोहे के मजबूत गंडासे को बलि-वेदी पर झटके से दे मारा।

 

इस हृदय की एक सौ एक नाडिय़ाँ हैं, नचिकेता। उनमें से एक मूर्धा का भेदन करके बाहर को निकली हुई हैं। उसके द्वारा ऊध्र्व गमन करने वाला पुरुष अमरत्व को प्राप्त होता है। शेष नाडिय़ाँ प्राणोत्सर्ग के लिए बनी हैं। अंगुष्ठमात्र पुरुष जो कि जीवों के हृदय में स्थित है,मूँज से सींक के समान उसे धैर्य पूर्वक अपने शरीर से बाहर निकालो। उसे ही शुद्ध और अमृतरूप समझना। उसे ही शुद्ध और अमृतरूप समझना।

इस तरह मौत लुकते-छुपते, विद्या का आखिरी सोपान पार कर नचिकेता मौत को जीत गया। इस तरह जो इसे समझेगा वह भी मौत को जीत जाएगा।

 

ऊँ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यंकरवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।

 ऊँ शान्ति:! शान्ति:!! शान्ति:!!!

 

इति श्री

(वसन्त पञ्चमी, संवत् 2076)

 

 

 

 

प्रचंड प्रवीर की पहली क़िताब 'अल्पाहारी गृहत्यागी’, 1910 में हार्पर हिन्दी ने प्रकाशित की थी। उनके अन्य महत्वपूर्ण कहानी संग्रह है, 'उत्तरायण’ और 'दक्षिणायन’। 'भूतनाथ मीट्स भैरवी’ प्रचंड प्रवीर की अंग्रेजी कहानियों का संग्रह है। 'पहल’ में हम उन्हें पहली बार प्रकाशित कर पा रहे हैं। उपनिषदों पर आधारित उनकी एक कहानी 'समालोचन’ में दूसरी 'तद्भव में छपी। इस सिरीज की तीसरी कहानी यहां प्रकाशित है। विष्णु खरे ने उनके बारे में टिप्पणी करते हुए उन्हें हिन्दी कहानी के इतिहास में सबसे बीहड़ प्रतिभा कहा है।

 


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