जितना ज़्यादा तुम देखते हो उतना ज़्यादा सितारे बढ़ते जाते हैं उन्हें गिनने के लिए जितनी अंगुलियाँ हैं तुम्हारे पास उससे ज़्यादा अंगुलियों की ज़रूरत पेश आयेगी
कुछ सितारों को सुना जा सकता है कुछ को नहीं जितना ज़्यादा तुम उन्हें सुनते हो उतना ज़्यादा रात में सितारों की आवाज़ें तुम तक आती हैं कुछ आवाज़ें जल्दी आती हैं और कुछ आवाज़ें देर से
हर एक चीज़ लिये हुए है अपनी एक आवाज़ यहाँ तक कि अंधकार में भी यह रात हवा में और पेड़ की शाखों में बहाती रहती है अपने रंग
वह दरख्त अपनी बंद पलकों को लिए कर रहा होगा इंतज़ार बढ़ाता हुआ पत्ते हाथों और हथेलियों की मानिंद वह करेगा इंतज़ार तब तक जब वह सुन ले हवाओं और शाखों में 'हरे' को प्रविष्ट होते हुए
तब यह तरख्त डूब जायेगा अपने ही स्वप्न में * * *
हसन हुसईन (1927-1984)
पाँसा
यह खराब है चीज़ें खराब हैं एक तरह से चीज़ें बेहद खराब हैं एक तरह से चीज़ें वाकई खराब हैं
या तो यहाँ या फिर वहाँ या तो इस तरह या उस तरह या तो आज या कल या तो सुबह या शाम पक्के तौर पर खराब ही हैं चीज़ें चीज़ें बेहद खराब दिखलायी दे रहीं हाँ बेशक, वे दिख रही हैं खराब
खराब खराब खराब
नहीं, यह नहीं कहा जा सकता कि होने के लिये खराब हमेशा इसी तरह हुआ जाता है या उसी तरह या इससे ठीक उलट अगर चीज़ें हुईं इस तरह वे नहीं होगी इस कदर खराब या अगर वे हुईं दूसरी तरह तो होंगी बेहतर और अगर वे हुईं उस तरह जैसा कि मैंने कहा तो होंगी वे शानदार
अच्छी अच्छी चीज़ें बैठी हैं बेहद सलीके से बेहद बेहद हसीन
वाकई चीज़ें नहीं हो रही हैं ठीक - ठाक ***
नेसिप फाज़िल किसाकुर्क (1904-1983)
होटल के कमरे
अफसोस है कि जलना है कुछ उन संकरे कमरों में धुआँ उगलती कंदीलें धुआँ उगलती कंदीलें
पहचाने चेहरों का अक्स उभरता है धुंधले आईनों में धुंधले आईनों में
मार डाले गये शख्स की तरह पड़े हैं बिखरे हुए कपड़े टूटी कुर्सियों पर टूटी कुर्सियों पर
बदलती हुई फिसलन करती है बयान गुप्त चीज़ों के बारे में गंदले फर्श पर गंदले फर्श पर
नंगी दीवारों पर धड़कती है दर्द की नाड़ी नाखूनों के ज़ख्म में नाखूनों के ज़ख्म में
और वक्त के दांत चबाते सड़ी लकड़ी को धूल खायी दराज़ों में धूल खायी दराज़ों में
उन लोगों के लिये करो मातम जो बगैर आवाज़ और बगैर दोस्त के मारे जाते हैं होटल के कमरों में होटल के कमरों में * * *
सबाहतीन कुदरेत अक्साल (1920-1993)
शब्द
वे शब्द होते हैं जो बांधे रखते हैं दिमाग को
और वे भी शब्द ही होते हैं जो कर देते दिमाग को छिन्न भिन्न छिन्न भिन्न! * * *
सुनयन अकिन (जन्म 1962) स्क्रू ड्रायवर
जैसे बेशुमार परमाणु बम किये जाते हैं लैस स्क्रूओं से हथियारों के ख़िलाफ अवाम के हाथों में एक आखिरी उम्मीद स्क्रूड्रायवर ही है ***
स्मारक
यह सिर्फ मैं हूँ जो जानता है कि दुनिया के तमाम प्रवासी पक्षी आते हैं इसलिये कि कर सकें वे तानाशाहों के स्मारकों पर बैठकर पेशाब * * *
खिड़की
नयी ब्याहता दुल्हन अपना दरवाज़ा थोड़ा खोलकर रखती है ताकि शाम गये उसके हाथों पकाये गये भोजन की महक फैल जाये समूची बस्ती में