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सितम्बर - अक्टूबर : 2020

इब्राहिम अल्काजी मंच और मंच से परे एक दृढ़ पूर्णतावादी

पंकज स्वामी

शोक

मृत्यु लेख

 

 

 

आधुनिक भारतीय रंगमंच के शिल्पकार के रूप में मशहूर इब्राहिम अल्काजी का 4 अगस्त को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके पुत्र फेसल व पुत्री अमाल थिएटर की प्रसिद्ध हस्तियां हैं। वे अपने पीछे कई प्रतिष्ठित सम्मानों के साथ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा; एनएसडी के सैकड़ों पूर्व विद्यार्थियों की विरासत को छोड़ गए। इब्राहिम अल्काजी वर्ष 1962 से वर्ष 1977 तक एनएसडी के निदेशक रहे। इस दौरान उन्होंने समकालीन भारतीय रंगमंच को आकार व आवाज दी और देश के बेहतरीन माने जाने वाले कलाकारों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने भारतीय रंगमंच में आधुनिकता का सूत्रपात किया। उन्होंने न केवल रंग निर्देशन किया बल्कि  भविष्य का रंगमंच कैसा होगा इसके संबंध में चिंतन किया और इसे व्यावहारिक दृष्टिकोण दिया।  

सऊदी अरबी पिता व कुवैती मां के पुत्र इब्राहिम बंबई के सेंट जेवियर कॉलेज में अध्ययन के दौरान सुल्तान बॉबी पदमसी के थिएटर ग्रुप से जुड़ गए। बाद के दिनों में उन्होंने पदमसी की बहिन कास्टयूम डिजाइनर रोशन से विवाह किया। लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ  ड्रामेटिक आट्र्स में अध्ययन किया और कई लुभावने प्रस्तावों को ठुकरा कर बंबई लौट आए जहां वे थिएटर परिदृश्य में प्रमुख नाम बन गए।

वर्ष 1962 में अल्काजी दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने एनएसडी और उसकी रेपर्टरी कंपनी का प्रभार संभाल लिया। वे एनएसडी के सबसे लंबे समय तक निदेशक रहे। एनएसडी में इब्राहिम अल्काजी ने गिरीश कर्नाड के तुगलक धर्मवीर भारती के अंधा युग और जॉन ओसबोर्न के लुक बैक इन एंगर जैसे नाटकों का निर्देशन किया। इन नाट्य प्रस्तुतियों में इब्राहिम अल्काजी ने विस्तार वेशभूषा लाइट्स सेट डिजाइन दृश्यों की ब्लाकिग पर सावधानीपूर्वक काम करते हुए गहरी नज़र रखी। प्रस्तुतियों के प्रत्येक दृश्य में तार्किक सुंदरता थी। उन्होंने आधुनिक नाटककार गिरीश कर्नाड, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश को भव्य रंगमंच दिया।  

इब्राहिम अल्काजी ने एनएसडी के कार्यकाल में सिलेबस को पूरी तरह से आधुनिक रूप में परिवर्तित कर दिया। पश्चिमी व एशियाई नाटक एवं निर्देशन का प्रशिक्षण दिया। वे एनएसडी व रेपेर्टरी की प्रस्तुतियों को कड़ी मेहनत के साथ पूर्णता; परफेक्शन के लक्ष्य को ध्यान में रख कर निर्देशित करते। वर्ष 1970 के दशक में  लैला मजनू  के एनएसडी प्रोडक्शन के लिए अल्काजी भरतपुर से नौटंकी थिएटर के एक मास्टर को कलाकारों के प्रशिक्षण के लिए ले कर आए। मास्टर ने कलाकारों को नौटंकी शैली में गायन व नृत्य की शैली सिखाई। वे विद्यार्थियों को पुस्तकों फिल्मों पेंटिंग्स व संगीत के बारे में बताते और पढऩे के लिए प्रेरित करते ताकि उनमें नाटक की बेहतर समझ विकसित हो पाए। इब्राहिम अल्काजी रंगमंच में सीखने के जिन तीन पहलुओं को रेखांकित करते थे वह है। रंगमंच बतौर शिल्प रंगमंच बतौर कला और रंगमंच का सामाजिक उत्तरदायित्व। 

इब्राहिम अल्काजी ने विद्यार्थिेयों को नाट्य सिद्धांत पढ़ाने और उन्हें मंच पर सुनिश्चिच करने के साथ एनएसडी के लिए एक बड़े व बेहतर कैम्पस की लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने एनएसडी को स्वायत्त संस्थान बनाने की लड़ाई भी सफलतापूर्वक लड़ी।

इब्राहिम अल्काजी के संबंध में विद्यार्थियों के संस्मरण अनूठे हैं। विद्यार्थी प्रत्येक दिन उनके अलग अलग रूप देखते थे। कभी सख्त अनुशासनवादी तो कभी वह व्यक्ति जो स्वयं पर हंस सकता था। वे सर्दी में सुबह 6.00 बजे हॉस्टल के कमरे का दरवाजा खटखटाकर विद्यार्थी से पूछते कि वे ओपन थिएटर में आवाज का अभ्यास क्यों नहीं कर रहे। इब्राहिम अल्काजी के व्यक्तित्व में प्रशिक्षक का व्यक्तित्व अधिक हावी है। उनकी स्पष्ट मान्यता रही कि उम्दा किस्म का रंगमंच तैयार और अनुशासित अभिनेताओं के बिना संभव नहीं। एनएसडी में आने से पहले वे अभिनेताओं के प्रशिक्षण के संबंध में संगीत नाटक अकादमी के ड्रामा सेमीनार में लंबा व्याख्यान देते थे। वे प्रशिक्षण के संबंध में कहते थे कि अतीत के प्रवाह के रूप में अपने समय को पहचानने उनसे संवाद करने अपने शरीर पर नियंत्रण करने शिल्प के रूप में अभिनय को साधने कला के रूप में इसका आनंद लेने के लिए प्रशिक्षण जरूरी है। अनुशासित करने और माध्यम को समझने के लिए भी ताकि यह पेशेवर रुख अपना ले। वे प्रशिक्षण में अभ्यास की बड़ी भूमिका मानते थे। उन्होंने एनएसडी के पाठ्यक्रम में ऐसी व्यवस्था की थी जिससे प्रशिक्षण मंचन की तैयारी के दौरान होता था।

अल्काजी ने एनएसडी का जो पाठ्यक्रम बनाया था उसमें विविध शैलियों के नाटक खेलने होते थे जैसे संस्कृत, समकालीन आधुनिक नाटक और पश्चिमी नाटक। प्रशिक्षण अवधि में विद्यार्थी को कालिदास ब्रेख्त शेक्सपियर या मोहन राकेश के नाटकों में अभिनय करना होता था। अल्काजी ने प्रशिक्षण के लिए यह शैलीगत विविधता तैयार की थी जिससे अभिनेता की शैली में एक लचीलापन आ जाए और वह सभी नाटकों में अपने को आत्मसात कर सके। उनके प्रशिक्षण का यह तरीका अद्वितीय था।

आधुनिक भारतीय रंगमंच में अल्काजी पहले ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने अभिनेता के सर्वांगीण प्रशिक्षण की नींव डाली। आवाज रंग भाषण शरीर दिमाग सोच ऐसा कोई भी पहलू नहीं है जिसके प्रशिक्षण पर उन्होंने जोर नहीं दिया। जो अभिनेता स्वयं प्रशिक्षण के इस महत्व को समझ गए वे अपनी लगन मेहनत और साधना से प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गए और जिन्होंने उस प्रशिक्षण के महत्व को ध्यान नहीं दिया वे गुमनामी के अंधेरे में खो गए।

इब्राहिम अल्काजी की कल्पना थी राष्ट्रीय रंगमंच। इस पर अमल किया गया होता तो भारतीय रंगमंच का एक अलग ही स्वरूप मिलता जिसमें विविधता भी होती और एकता भी। अल्काजी की मानसिक चेतना का गठन सार्वभौमिक था जिसमें संकीर्णता की जगह नहीं थी। ऐसा उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रशिक्षण से एवं संगत से पता चलता है। वे अरबी माँ बाप के संतान थे जिसके घर में अरबी ही सिर्फ बोलने का नियम था। जिनकी माँ उर्दू हिंदी मराठी गुजराती और पिता अरबी और टूटी फूटी हिंदुस्तानी जानते थे। बचपन और किशोरावस्था बंबई के विविधतापूर्ण सामाजिक सरंचना में गुजरा और वे खुद स्वीकार करते थे कि उनके बनने में विभिन्न अस्मिताओं का योगदान है। वे विश्व की सभी रंग परंपराओं से अवगत थे और उनके उदाहरण भी वही से आते हैं। वे बराबर यह जोर देते रहे कि आधुनिक समय में कला वह स्थल है जहाँ देश की सीमाएँ धुँधली हो जाती है और कला की कोई भी प्रगति किसी देश की प्रगति न होकर समूची मानवता की प्रगति है और आधुनिक समय की माँग है कि एक अंतरराष्ट्रीय शैली विकसित हो जो एक ही समय में उतनी ही देशी हो जितनी अंतरराष्ट्रीय।

भारतीय संस्कृति की मूल्यपरक विविधता को स्वीकार करते हुए अल्काजी किसी एक अस्मिता को थोपे जाने के खिलाफ रहे। भारतीयता को व्याख्यायित करते हुए अल्काजी भारतीयता के किसी एक कट्टर रूप और उसकी संस्कृतिक तानाशाही स्थापित होने के खतरे से भी वाकिफ थे। उनका विचार था कि मानवता की कोई भी उपलब्धि चाहे वह संसार के किसी कोने में हो समूचे मानव जगत की उपलब्धि है। ज्ञान किसी सीमा से बँधा हुआ नही हैं। वे भारतीयता के प्रश्न के ऊपर अपनी बुनियादी मनुष्यता के अभ्यास की वकालत करते हैं और समतावादी तार्किक और भविष्य दृष्टि को साथ लेकर और सामंतवादी प्रतिक्रियावादी और अतीतोन्मुखी दृष्टि को पीछे छोडऩे कि बात करते थे। वे रंगमंच के जरिए समकालीन संवेदना जो एक ही साथ बद्धमूल भी और आधुनिक भी हो का विकास करने की बात करते थे।

इब्राहिम अल्काजी के चिंतन में स्पष्ट था कि जीवन और वर्तमान समय के बिना रंगमंच को कोई अस्तित्व नहीं है वह एक कवायद भर है जिसमें कोई जीवंतता नहीं। इसी समझ के नाते वे वे रंगमंच की भूमिका को और अधिक सक्रिय करने की बात करते थे। उनके अनुसार राजनीति व रंगमंच के बीच और सामाजिक स्थिति व रंगमंच के बीच बहुत ही करीबी रिश्ता है। रंगमंच लोगों के जीवन को तराशने और अधिक लोगों के लिए सार्थक सरोकार बनाने के लिए प्रगतिशील सोच बनाने में रंगमंच को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। इसलिए रंगमंच को जनता से जोडऩा होगा और जनता की भागीदारी भी रंगमंच में बढ़ानी होगी और सक्रिय भागीदारी।

इब्राहिम अल्काजी को भारतीय रंगमंच में उस किवंदती की तरह माना जाता है जो नई पीढ़ी तक दंतकथाओं के रास्ते पहुंचती है। उन्होंने एनएसडी को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल गढ़ा। भारतीय रंगमंच में अल्काजी के योगदान की तारीफ सब करते हैं लेकिन उनके योगदान का लेखा जोखा या मूल्यांकन समग्र रूप से नहीं मिलता। इब्राहिम अल्काजी पर हिन्दी या अंग्रेजी में एक पुस्तक तक नहीं है। इब्राहिम अल्काजी ऐसे रंग चिंतक नजर आते हैं जो भारतीय रंगमंच की भारतीय पहचान के साथ एक अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति चाहते थे।

 

 


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