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जून - जुलाई : 2020

लातिन अमेरिका डायरी मोटरसाइकिल पर जीवन-'अर्नेस्टो’ के साथ!

जितेन्द्र भाटिया

बस्ती बस्ती परबत परबत

 

मैंने कभी मोटरसाइकिल नहीं चलाई, हालांकि कॉलेज के बाद शादी के प्रारम्भिक दिनों  में मुझे वेस्पा स्कूटर पर पत्नी और छोटी सी चार वर्षीय बेटी सहित अक्सर अँधेरी से सात बंगला जाने वाली सड़क पर देखा जा सकता था। तब 350 सी सी वाली दैत्यानुमा, तेल खाने वाली भारी मोटरसाइकिलों को सिर्फ पुलिस वाले और 'माचो’ टाइप पुरुष चलाते थे और परिवार के लिए इनका प्रयोग अकल्पनीय था। आम मध्यवर्गीय परिवार की चलायमान ज़िन्दगी तब 'वेस्पा’ और 'लेम्बरेटा’ के इर्दगिर्द घूमती थी। कई दशकों के बाद जब जापानियों के सहयोग से देश में 100 सी सी इंजनों की ईंधन बचत वाली हल्की मोटरसाइकिलें आयी तो यह परिदृश्य तेज़ी से बदला और कुछ ही वर्षों में हमारे तमाम मध्यवर्गीय परिवार गांवों में ट्रैक्टरों और शहरों में हीरो होंडा या  कवासाकी पर बैठे दिखाई देने लगे। मोटरसाइकिलों के उत्पादन में हमारा देश आज दुनिया में सबसे आगे है। चेन्नई में तो रविवार के दिन आपको कदम-कदम पर मोटरसाइकिल के पीछे कांजीवरम की सिल्क साड़ी में बैठी पत्नी या बहन और उसके आगे या पीछे, पुरुष चालाक के बीच चमत्कारिक ढंग से टंगे दो और कभी-कभी तीन बच्चों वाले मध्य-वर्गीय परिवार दिखाई दे जाएंगे। पुलिस कई बार यहाँ हेलमेट पहनने और नियम तोडऩे वालों पर सख्त दंड के अभियान चला चुकी है, लेकिन छुट्टी वाले दिन यहाँ शायद ही कोई दुपहिया चालक हेलमेट में सफ़र करता दिखाई दे! देश के दूसरे शहरों और कस्बाई इलाकों की भी यही कहानी है।  

मोटरसाइकिल का सफ़र इंसान और मशीन के बीच एक अंतरंग रिश्ते की मांग करता है और इस रिश्ते ने दुनिया में कई पुस्तकों और फिल्मों को प्रेरित किया है। अपनी चर्चित पुस्तक 'ज़ेन एंड दि आर्ट ऑफ़ मोटरसाइकिल मेंटेनेंस’ में लेखक रॉबर्ट परसिग लिखते हैं—

''मोटरसाइकिल पर चलना किसी भी अन्य सफ़र से बिलकुल अलग है। एक कार में आपको बंद डिब्बे में बैठने की आदत हो चुकने के बाद महसूस ही नहीं होता कि खिड़की के फ्रेम से बाहर जो दिखता है, वह घर के टीवी का ही एक विस्तार है। बोरियत में खिड़की से गुज़रते परिदृश्य में आपकी भूमिका एक मूक दर्शक से अधिक नहीं होती....

....लेकिन मोटरसाइकिल में यह फ्रेम हट जाता है। हर दृश्य में दर्शक होने की जगह आप उसका हिस्सा बन चुके होते हैं और उपस्थिति का यह अपरिहार्य अनुभव अचम्भे से भरा होता है। पैरों से पांच इंच नीचे ज़न्नाटे से गुज़रता धुंधला कंक्रीट असल होता है, जिस पर आप चल चुके होते हैं और आप जब चाहें इसे पैर बढ़ाकर छू सकते हैं। मोटरसाइकिल पर सफ़र की वास्तविकता का यह सम्पूर्ण अहसास एक क्षण के लिए भी आपका साथ नहीं छोड़ता ...’’        

साठ के दशक में, कॉलेज के ज़माने में जो प्रभावी अंग्रेज़ी फिल्में मैंने बम्बई में देखी थी, उनमें संभवत: सबसे दूर तक याद रहने वाली थी पीटर फोंडा और डेनिस हॉपर की 'ईज़ी राइडर’ जिसमें यही दोनों किरदार एक मोटरसाइकिल पर गोया कि अमेरिका की ड्रग्स और अनास्था में डूबी ज़िन्दगी की असली आत्मा तलाशने निकलते हैं और अंतत: मारे जाते हैं। यह फिल्म कई अर्थों में जीवन और साहित्य के उन अनास्थावादी स्वरों को छूती थी जिसे लेकर जॉन केरूआक, एलेन गिन्सबर्ग और ज्यां गिने जैसे लेखक तब अमेरिका और योरोप (विशेष रूप से फ्रांस) में लिख रहे थे और जिसका कुछ प्रभाव हमारे अपने देश के रचनाकारों तक भी तब पहुंचा था।

लातिन अमेरिका की यात्रा से पहले दक्षिण और दक्षिण पूर्व अमेरिका से गुज़रते हुए फिल्म 'ईज़ी राइडर’ का अहसास मेरे दिमाग में था। अमरीका की उपभोक्ता सभ्यता से भागकर देहातों के बीच एक नए सिरे से अपना अन्न, भोजन और संसाधन पैदा करते हुए कबीलों के गुंथे हुए परिवार इस दुनिया को फिर से ईजाद करने की असम्भाव्य उम्मीद जगाते थे। लेकिन मोटरसाइकिल का यह सफ़र 'ईज़ी राइडर’ से भी अधिक मुझे उसे प्रेरित करने वाली, लगभग सत्तर साल पुरानी लातिन अमेरिका की एक और ऐतिहासिक मोटरसाइकिल यात्रा की ओर ले चलता था जिसे अर्नेस्टो ने 1951 में अपने दोस्त अल्बर्टो ग्रानाडो के साथ जिया था। उस यात्रा का भोगौलिक ब्यौरा लगभग वही था, जिसे मैंने अपनी लातिन अमेरिका की यात्रा के लिए चुना था। फर्क था तो सिर्फ इतना कि अर्नेस्टो लातिन अमेरिका के दक्षिणी भाग से शुरू होकर चिली, पेरू और कोलंबिया से होता हुआ उत्तर में आया था और मैंने इससे उलट, सबसे उत्तरी भाग से शुरू कर दक्षिण की ओर बढऩे का मन बनाया था। यह अनायास नहीं है कि 'ईज़ी राइडर’ के पीटर फोंडा को देखते हुए हमारे दिमाग में बार-बार अर्नेस्टो की वह तस्वीर उभरती है जिसने उस फिल्म के बनने तक पूरे महाद्वीप के नौजवानों के दिल में सिनेमा के हीरो से कहीं आगे किसी जीते जागते भगवान या 'कल्ट फिगर’ की जगह ले ली थी। अर्नेस्टो की यात्रा का विवरण भी पहले हाथ से लिखे नोट्स, फिर किताब और अंतत: फिल्म तक पहुंचा और यह भी मात्र संयोग नहीं है कि 1967 में जब अमरीका के सुपारी प्राप्त हत्यारे अर्नेस्टो को 39 वर्ष की छोटी सी उम्र में  बोलीविया में घेरकर मार डालते हैं तो इसके दो वर्ष बाद बनी 'ईज़ी राइडर’ में अर्नेस्टो के प्रभामंडल को बरकरार रखता फिल्म का नायक भी कुछ उसी तरह की मृत्यु का भागी बनता है।  1967 में मृत्यु से पहले ही अर्नेस्टो की हाथ के पन्नों में लिखी वह मिथकीय डायरी चर्चा का केंद्र बन चुकी थी। बहुत बाद में उस यात्रा के सहभागी ग्रानाडो की मदद से उसने पहले एक पुस्तक और बाद में फिल्म का रूप लिया।  लेकिन जिन विचारों के लिए अर्नेस्टो की हत्या की गयी थी, उन्हें मारना इतना आसान नहीं था। सिर्फ लातिन अमेरिका में ही नहीं, बल्कि अमरीकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध छिड़ी दुनिया की हर लड़ाई में ये विचार आज भी  बारंबार याद किये जाते हैं। 'मोटरसाइकिल डायरीज़’ के 2003  संस्करण की भूमिका में अलीडा लिखती हैं —

''मैंने जब इस डायरी को पहली बार पढ़ा तब यह किताब की शक्ल में नहीं थी और मैं इसके लेखक को भी नहीं जानती थी। तब मैं बहुत छोटी थी, लेकिन फिर भी मैंने स्वत:स्फूर्त ढंग से किस्से सुनाने वाले उस शख्स से अपनी पहचान बना ली थी। फिर जैसे जैसे मैं आगे पढ़ती गयी, यह पहचान और साफ़ होती गयी, और आखिरकार मुझे बेहद खुशी महसूस हुई कि मैं उसकी बेटी हूँ...

...इसे पढ़ते हुए कभी कभी तो मैं यह भी सोचती कि काश, उस मोटरसाइकिल के पीछे ग्रानाडो की जगह मैं होती, अपने पिता से चिपककर उन पहाड़ों और झीलों से होकर गुज़रती हुई ... 

....सच कहूं तो मुझे उस लड़के से प्यार हो चला था जो कभी मेरे पिता हुआ करते थे। मैं नहीं जानती कि आप इससे सहमत होंगे या नहीं, लेकिन उसे पढ़ते हुए मैंने उस नौजवान अर्नेस्टो को पहचाना था जो कई सपने लिए अर्जेंटीना से निकला था और जिसे आगे चलकर बड़े बड़े काम करने थे। जिसने छोटी उम्र में ही इस महाद्वीप की असली हकीकत को जान, इसमें रहने वाले हज़ारों-लाखों लोगों के दर्द को आत्मसात किया था।

....मेरे पिता ने हम सबको वह लातिन अमेरिका दिखाया जिसे तब बहुत कम लोग जानते थे। उन्होंने  इसके हर मंज़र में रंग भर उसे अपनी नज़रों से देखने की समझ हमें दी...

    और अगर आपको कभी उनकी यात्रा के पदचिन्हों पर दुबारा चलने का मौका मिले तो आप यह देखकर उदासी से भर उठेंगे कि इतने वर्षों बाद भी वहां कुछ बदला नहीं, बल्कि पहले से कुछ बदतर ही हो चला है...

    बस, इन शब्दों के साथ मैं आपको उस शख्स के हवाले करती हूँ जिसे मैंने जाना था, ताकि मेरी तरह आप भी उसकी हिम्मत, ताकत और संवेदनशीलता को महसूस कर उससे प्यार कर सकें...

 अलीडा चे ग्वेवारा

(अर्नेस्टो चे ग्वेवारा की बेटी)

* *

 

यकीन कर पाना मुश्किल है कि मध्य अमेरिका की ग्वातेमाला से पनामा तक फैली धरती की जिस पतली पट्टी पर हम खड़े हैं, उसके रक्तरंजित इतिहास ने ही (संभवत: मार्क्स के बाद  पहली बार) पूरी दुनिया के मजदूरों और किसानों के एक हो जाने की मुश्किल उम्मीद जगायी थी। और इस विश्वव्यापी चेतना का सबसे परिचित प्रतीकचिन्ह था वह चेहरा जिसने कुछ ही समय में दुनिया के नौजवानों के बीच 'बीटल्स’ और 'बॉब डिलान’  जैसे फैशनेबल 'कल्ट’ नामों के बीच अपनी जगह बना ली थी। वामपंथ का सबसे सशक्त प्रवक्ता, जिसकी गिनती 'टाइम’ पत्रिका ने बीसवीं सदी के सबसे प्रभावकारी व्यक्तियों में की, और जिसके नीचे दिए जा रहे चित्र को मेरीलैंड इंस्टिट्यूट कॉलेज ऑफ़ आर्ट ने उस वक्त 'दुनिया के सबसे प्रसिद्ध चित्र’ के रूप में चुना!

 

 

 

 

अर्जेंटीना के एक निम्न मध्य वर्ग परिवार में जन्मा, बचपन में दमे का मरीज़, खूबसूरत नौजवान अर्नेस्टो चे ग्वेवारा, जिसने इंजिनियर बनने का इरादा छोड़, फुटकर नौकरियों के बीच डॉक्टरी की पढ़ाई की थी और छुट्टियों में जो 23 वर्ष की उम्र में अपने दोस्त  अल्बर्टो ग्रानाडो के साथ उसकी खटारा नॉर्टन ला पोदेरासा मार्क 2  मोटरसाइकिल पर लातिन अमेरिका की साढ़े चार हज़ार लम्बी यात्रा पर निकला था। मोटरसाइकिल की वह अविस्मर्णीय यात्रा, जिसने एक शर्मीले नौजवान को अपने युग के सबसे तेज़ तर्रार, प्रभावी क्रांतिकारी में तब्दील कर दिया था।

(इत्तफाक से इन पंक्तियों के लिखे जाने के बीच, कोरोना महामारी में डूबे अखबार के पन्नों पर एक इतर खबर यह है कि जिस मोटरसाइकिल पर 1951 में चे ग्वे वारा अपनी यात्रा पर निकला था, उसे बनाने वाली इंग्लैंड की विख्यात नॉर्टन मोटरसाइकिल कंपनी को अब  भारतीय ग्रुप 'टी वी एस’ ने खरीद लिया है. हमने अपनी लातिन अमेरिका यात्रा के दौरान बोगोटा, लीमा, कुज़्को और अनेक दूसरे शहरों की सड़कों पर टी वी एस और बजाज के तिपहिये दौड़ते देखे थे। लगता है कि नॉर्टन की इस ताज़ा खरीद से मोटरसाइकिल और तिपहियों के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार पर भारत की गिरफ्त कुछ और मज़बूत हो जायेगी, हालांकि 'मोटरसाइकिल डायरीज़’ की कदम-कदम पर दम तोडऩे वाली खस्ताहाल नॉर्टन मोटरसाइकिल किसी भी नज़रिए से उसकी गुणवत्ता का कोई बहुत अच्छा उदाहरण नहीं है!)

'मोटरसाइकिल डायरीज़’ सिर्फ अविस्मरणीय यात्रा वृत्तांत ही नहीं, एक संवेदनशील व्यक्ति के युगनायक बनने की प्रेरणादायक कहानी भी है। लंबे समय तक 'न्यू यॉर्क टाइम्स’ की बेस्ट सेलर रह चुकी इस किताब को लन्दन के 'टाइम्स’ ने 'दास केपिटल’ का 'ईजी राइडर’ से ऐतिहासिक मिलन बताया है तो 'न्यू यॉर्कर’ के शब्दों में इसके 'संवेदनशील पृष्ठों में चे अपनी सुविधा भरी ज़िंदगी पर पशेमान, अपना सब कुछ कुर्बान करते हुए भी, सारी यातनाओं को बीच भी कहीं हतोत्साहित नज़र नहीं आते...’ और 'लन्दन टेलीग्राफ’ के अनुसार इसकी 'सदेच्छा से भरी एकाकी दृष्टि - चाहे वह स्वतन्त्रता सैलानी की हो याकि एक मोटरसाइकिल चालक की—क्रांतिकारियों और प्रति-क्रांतिकारियों से आजिज़ दुनिया को नयी उम्मीद देती है ...’

''उनकी तरोताज़ा शैली में शब्द अनकही ध्वनियों और आहटों के साथ यूं आते हैं कि हम हम उनमें परवेश की सुन्दरता और क्रूरता दोनों महसूस करते हैं। लेकिन अपने दृढ क्रांतिकारी आशय के बावजूद उनके शब्द कभी अपनी कोमलता नहीं खोते। वे कहते हैं कि गरीबों को वैज्ञानिक डॉक्टरी जानकारी से ज्यादा ज़रूरत सामाजिक परिवर्तन के लिए उस ज़िद और संकल्प की है, जिससे उनका शताब्दियों से रौंदे जा रहा आत्मसम्मान उन्हें वापस मिल सके...''

लेकिन 'मोटरसाइकिल डायरीज़’ केवल संघर्ष नहीं, बल्कि जीवन की उन्मुक्त ख़ुशी का सफरनामा भी है, जिसे कोई भी मेरी तरह यात्रा में अपने साथ लिए चल सकता है।     'गार्डियन’ के शब्दों में—

'एक क्रांतिकारी बेस्टसेलर, जो सिद्ध करता है कि मार्क्सवादियों को भी जीना आता है!

                                                            * *

 

लेखक सिन्तियो विटियर कहते हैं कि अपनी असामयिक हत्या के बाद से ही चे ग्वेवारा लातिन अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के नौजवानों के लिए चिरयौवन मिथक का दर्ज़ा पा चुके थे और अब लातिन अमेरिका के महान नेता सिमोन बोलेवार से आगे के समय में कोई उन्हें इस स्थान से हटा नहीं सकता। 'मोटरसाइकिल डायरीज़’ को चे की इस मिथकीय तस्वीर से काटकर पढ़ पाना असंभव है क्योंकि यह पुस्तक यदि उनके क्रांतिकारी जीवन की पूर्वपीठिका न  होती तो शायद हम इसे कुछ अलग ढंग से पढ़ते। खुद चे ने इसके प्रारम्भ में लिखा है कि यह किन्हीं 'साहसिक कारनामों’ की कहानी नहीं है, लेकिन फिर भी वे मानते हैं कि इस यात्रा से गुज़र चुकने के बाद वे वह नहीं रहे जो इससे पूर्व थे—

''इस डायरी को लिखने वाला वह शख्स दुबारा अर्जेंटीना की धरती पर कदम रखने के साथ ही समाप्त हो गया। और इसके शब्दों को दुबारा मांजने वाला मैं, अब वह व्यक्ति नहीं हूँ जो इनके लिखे जाने से पहले था। मैंने सोचा भी नहीं था कि अपने देश की यह यायावरी मुझे इस कदर बदल डालेगी...’’    

('एक दूसरे को पहचानना’—मोटरसाइकिल डायरीज)

 'मोटरसाइकिल डायरीज’ की यात्रा से पहले अर्नेस्टो ब्यूनोस आयर्स के बाद अर्जेंटीना के दूसरे सबसे बड़े शहर कोर्डोबा में डॉक्टरी की पढ़ाई समाप्त कर रहे थे। कोर्डोबा के अधिकाँश बाशिंदे उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में योरोप के इटली, स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन, स्पेन और जर्मनी जैसे देशों से विस्थापित होकर यहाँ आए थे। अर्नेस्टो के पूर्वज स्पेन के थे, हालांकि उनके एक लकड़दादा आयरिश मूल के बताये जाते हैं। जीवन की कठिनाइयाँ कभी चे के रास्ते की बाधा नहीं बनी। उन्हें बचपन से ही दमे की शिकायत थी। लेकिन यह बीमारी उनके खिलाड़ी बनने की आकांक्षा से ज़्यादा बड़ी नहीं थी। वे फुटबॉल, गोल्फ और तैराकी के अलावा कॉलेज के दिनों में बरसों तक क्लब यूनिवर्सितारियो दी ब्यूनोस आयर्स के लिए  'फ्लाई हाफ’ की पोजीशन पर रग्बी का खेल भी खेलते रहे।

 यात्रा पर निकलने से पहले अर्नेस्टो ने डॉक्टरी की सारी परीक्षाएं दे डाली थी और उनका इरादा लौटकर अपनी 'इंटर्नशिप’ को पूरा करना था। अल्बर्टो ग्रानाडो एक बायोकेमिस्ट और कुष्ठरोग विशेषज्ञ था जिसके छोटे भाई अर्नेस्टो के साथ स्कूल में पढ़ते थे। इसी दोस्ती के बीच यात्रा का यह कार्यक्रम बना था।

    मोटरसाइकिल पर अल्बर्टो और चे के साथ एक थैले में कुत्ता भी है, जिसका नाम 'कमबैक’  है क्योंकि उसे उन्हें मिरामार में रुकी अर्नेस्टो की प्रेमिका चिचिना को देकर आना है। बदकिस्मत कुत्ता हिचकोले खाती मोटरसाइकिल पर कई-कई बार थैले से बाहर नीचे गिरता है और एक बार तो किसी दौड़ते घोड़े के पैरों तले कुचले जाने से बमुश्किल बचता है, पर उसकी जिजीविषा गज़ब की है। रास्ते में सामने से हुई एक सीधी टक्कर में भी उसका बाल तक बांका नहीं होता। उस दैत्याकार मशीन को वश में रखना बेहद मुश्किल है। कुछ दिन के सफऱ के बाद वे मोटरसाइकिल पर गेसेल स्थित अपने चाचा के घर से निकले हैं। अलविदा कहते वक्त चाचा उस जानलेवा मोटरसाइकिल पर एक नज़र डालते हुए कहते हैं कि यदि इसपर कभी सचमुच बारिलोच पहुँच जाओ तो वहाँ से मुझे तार भेजना, ताकि मैं उस टेलीग्राम के नंबर की लॉटरी खरीद सकूं।

''एक कसाई की दुकान पर हम रास्ते में पकाने के लिए गोश्त और कुत्ते के लिए थोड़ा दूध खरीदते हैं। लेकिन कुत्ता जब दूध को एक बार सूंघकर मुंह घुमा लेता है तो मुझे उसके स्वास्थ्य से अधिक चिंता उन पैसों की होती है, जिन्हें मैंने दूध पर खर्च किया है। गोश्त घोड़े का निकलता है, इस कदर मीठा, कि उसे खाया नहीं जा सकता। मैं झल्लाकर एक टुकड़ा उठाकर परे फेंकता हूँ तो कुत्ता उछलकर उसे पकड़, समूचा चट कर जाता है। मैं एक और टुकड़ा उछलता हूँ तो फिर वही होता है। लगता है कुत्ते के दूध पीने के दिन पूरे हो चुके। अपने प्रशंसकों की बारंबार 'वाह-वाही’ के बीच हम कब मिरामार पहुँच जाते हैं, पता ही नहीं चलता...’’

('समुद्र की खोज’—मोटरसाइकिल डायरीज)

उन्हें मिरामार में दो दिन रुकना था, लेकिन प्रेमिका की बांहों में गिरफ्तार हो चुकने के बाद जब अर्नेस्टो का आगे चलने का कोई इरादा दिखाई नहीं देता तो अल्बर्टो को डर सताने लगता है कि बाकी का सफ़र कहीं उस नाज़ुक मिजाज़ वाली मोटरसाइकिल पर अकेले न झेलना पड़ जाए। लेकिन आठवें दिन वे सचमुच समंदर की चेतावनी भरी आवाज़ को पहचान वहां से निकल पड़ते हैं, अपने अर्जेंटीना और फिर वहाँ से चिली के सफ़र के लिए।

''समंदर के पीछे पूरा चाँद है, लहरों पर अपनी रजत परछाइयां बनाता हुआ। एक टीले पर  अपने-अपने ख्यालों में डूबे हम उसके अविकल उतार-चढ़ाव को देख रहे हैं। समंदर को मैंने हमेशा अपना राज़दार माना है; एक भरोसेमंद दोस्त, जो सब सुन लेने के बाद भी अपने रहस्य छिपाए, सही और वाजिब सलाह देता है। उसकी मानीखेज ध्वनियों का आप जो मतलब चाहे निकाल सकते हैं। लेकिन हाल ही में सेनफ्ऱासिस्को के पश्चिमी तट से आए तीस वर्षीय अल्बर्टो के लिए यह एक नया, बेहद विचलित कर देने वाला दृश्य है। उसने अटलांटिक सागर को पहली बार देखा है और उसकी आँखों के सामने शायद दुनिया के हर सुदूर कोने तक पहुँचते वाले इसके असंख्य रास्ते खुलने लगे हैं ....’’

('समुद्र की खोज’—मोटरसाइकिल डायरीज)

ब्यूनोस आयर्स से आगे जिस अटलांटिक महासागर को पहली बार देखकर चे के दोस्त अल्बर्टो ने चमत्कृत भाव से धरती की हर दिशा में जाने वाले रास्तों को महसूस किया था, कुछ उसी भाव के साथ हम अटलांटिक के दूसरी ओर, अबंगारितोस समुद्रतट पर उस पतली पट्टी के पश्चिमी हिस्से में हैं, जहां हमारे आगे उत्तरी प्रशांत सागर फैला है। यहाँ ज़मीन में दूर तक धंसी हुई छोटी-बड़ी खाडिय़ाँ बरबस अंडमान के मुंडा पहाड़ की याद दिलाती हैं, जहां शाम के वक्त समंदर कुछ और नीला हो उठता है.  यहाँ हवा में उड़ते पक्षियों में से बहुत से हमारे लिए अपरिचित हैं; किसी रडार जैसी लम्बी, बहुत लम्बी पूंछ वाली झक्क सफ़ेद ट्रॉपिक-बर्ड जो हवा में उड़ती पनडुब्बी या कि समंदर से निकली किसी 'रे मछली’ की सी विचित्र प्रतीति देती है। और इसके उलट गहरे काले रंग के विशालकाय डैनों वाले फ्रिगेट पक्षी, जिन्हें पक्षियों में 'समुद्री डाकुओं’ का उपनाम प्राप्त है। तट के कैज़ुरिना पेड़ों की सबसे ऊंची डालों पर  झुण्ड बनाकर बैठे ये समंदर से लौटते पक्षियों का इंतज़ार करते हैं, जो शाम के वक्त घोंसलों के बच्चों के लिए चोंचों में छोटी मछलियाँ दबाकर लौट रहे होते हैं। किन्हीं रसीली मछलियों वाले पक्षियों के समूह को दूर से पहचान डाकुओं का यह झुण्ड उन्हें तब तक दौड़ाता है जब तक वे चोंचों की मछलियाँ छोड़ भागने पर मजबूर नहीं हो जाते। चोंचों से मछलियों के छूटते ही ये लुटेरे दक्षता से उन्हें हवा में ही पकड़कर हड़प जाते हैं और फिर निर्विकार भाव से उन्हीं कैज़ुरिना पेड़ों में लौट, पक्षियों की अगली खेप का इंतज़ार करने लगते हैं।

यहाँ एक रास्ता नारियल के झुरमुटों के बीच से निकल गया है। एक छोटी सी झोंपड़ी पर 'पिपा फ्रिया’ का लकड़ी का साइनबोर्ड देखकर हम रुकते हैं तो भीतर से एक बूढ़ा दौड़ा चला आता है। 'पिपा फ्रिया’ या हरा नारियल यहाँ का सर्वप्रिय पेय है। ऊपर का आवरण पूरा हटाकर उसने नारियल को शायद फ्रीजर में रखा है। हमने इतने बड़े बड़े नारियल पहले नहीं देखे हैं। हम विदेशियों से इसके पैसे उसे अमरीकी डॉलर में चाहिए, वह नारियल थमाने से पहले ही हमें आगाह कर देता है। 1896 में स्पेनिश सरकार ने कोस्टा रिका की मुद्रा का नाम पेसो से बदलकर 'कोलोन’ कर दिया था, क्रिस्टोफर कोलंबस (स्पेनिश में 'क्रिस्तोबल कोलोन’) की स्मृति में। कई दशकों के निरंतर अवमूल्यन के बाद अब एक अमरीकी डॉलर में 565 कोलोन खरीदे जा सकते हैं। यही हाल मध्य अमेरिका की अन्य मुद्राओं का भी हुआ है। फिर भी एक ठन्डे 'पिपा फ्रिया’ का एक डॉलर दाम अमरीकी पर्यटकों के लिए बेहद सस्ता है। पानी पी चुकने के बाद बूढ़ा हमारे देशी अंदाज़ में ही अपनी 'टांगी’ से उसके दो टुकड़े कर भीतर का सफ़ेद गूदा हमें पेश करता है।

उधर अपने अदम्य उत्साह में, मोटरसाइकिल पर अर्जेंटीना के गाँवों से गुज़रते हुए चे और अल्बर्टो सहजता के साथ हर जगह अजनबियों, मजदूरों, किसानों और चौकीदारों का विश्वास अर्जित कर, उनके साथ बिचाली का बिस्तर या बिछौना, उनका रूखा-सूखा भोजन बाँट और अपनी शराब 'माटे’ उनके साथ पीते हुए जो खुशी महसूस करते हैं, उसका अहसास शब्दों में छनता हुआ कहीं हम तक भी पहुँचता है। हम, जो वहाँ से हज़ारों मील दूर, पश्चिमी तट पर उत्तरी प्रशांत सागर पर खड़े हैं। लेकिन आसमान में चाँद वही है जिसे बरसों पहले समंदर में उतारकर अर्नेस्टो ने अपना राज़दार बनाया था। किसी सुदूर खेत के झोंपड़े में अलस्सुबह वे एक बड़ी सी अंगीठी के गिर्द वे अपने-आपको मुलातो खेत मजदूरों के घेरे में पाते हैं। अपनी कड़वी तेज़ 'माटे’ के घूँट भरकर बोतल आगे बढ़ाते हुए वे उनकी मीठी 'लड़कियों वाली’ माटे का मज़ाक उड़ाते हैं। लेकिन एक हद से आगे वे उनसे खुलते नहीं। चे को महसूस होता है कि वे उन श्वेत लोगों पर भरोसा नहीं करते, जिन्होंने सदियों से उन्हें बदकिस्मती के सिवा कुछ नहीं दिया है और आज भी जो उनका भरपूर शोषण कर रहे हैं। पूछे गए सवालों के जवाब में वे अपने कंधे उचकाते हैं और 'पता नहीं’ या 'हाँ, शायद’ जैसे अस्पष्ट उत्तरों के साथ वार्तालाप समाप्त कर देते हैं। चे और अल्बर्टो कुछ रुंआसे हो अपने तीसरे साथी यानी अपनी 'ला पोदेरोसा’ मोटरसाइकिल की ओर लौट जाते हैं जिसे साधना अब मुश्किल से मुश्किलतर होता जा रहा है।

''तेज़ बारिश हमें एक खेत के बाड़े में रुकने के लिए मजबूर करती है। लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए तीन सौ मीटर दलदली कीचड़ से गुजरना होगा, जिसके दौरान हम वाहन समेत दो बार और चित्त होते हैं. वे गर्मजोशी से हमारा स्वागत करते हैं, लेकिन हमारे लिए उस छोटे से वक्फे में, सुबह से अब तक कुल नौ बार धराशायी होने का ख्याल विचलित करने वाला है। उस दिन से आगे अब बाड़ों के खुरदुरे तख्त ही हमारा एकमात्र बिछौना होने वाले थे, लेकिन उस वक्त, उस घोंघेनुमा छोटे से बाड़े में अपनी मोटरसाइकिल की बगल में लेटे हुए भी हम खुशी और अधीरता के साथ आने वाले दिनों का इंतज़ार था।  खेत की उस उन्मुक्त हवा में हमारी साँसें किसी अनकहे उत्साह से भरी थीं। दुनिया के सुदूर प्रदेश अपने साहसिक कारनामों और खूबसूरत लड़कियों के साथ हमें अपनी कल्पनाओं में बुला रहे थे। इन सबके प्रभाव में हमें देर तक नींद नहीं आयी...’’

('आखिऱी बंधन के टूटने तक’—मोटरसाइकिल डायरीज)

* *

 

कोस्टा रिका की पतली पट्टी पर कैरीबियन समुद्र के पूर्वी तट से उत्तरी प्रशांत सागर के पश्चिमी तट पर आ जाने के बाद अब हम अबंगारितोस से दक्षिण में तार्कोलेस नदी की ओर बढऩे लगे हैं। यह इलाका अपने मगरमच्छों की बहुतायत के लिए विख्यात है। जिस समतल पानी से घिरे समतल मैदानों में हम हैं, वहाँ सड़क के दोनों ओर बहती नालियों और गड्ढों तक में उनके छोटे छोटे बच्चों को पानी से बाहर अपने सिर निकालकर सांस लेते देखा जा सकता है। यह अमरीकी मगरमच्छ की प्रजाति है जो हमारे अपने या नील नदी के अफ्रीकी मगरमच्छों से काफी भिन्न है। तर्कोलेस नदी पर बने पुल के नज़दीक सड़क पर पर्यटकों की गाडिय़ों की कतारें हैं। वे सब पुल के नीचे, नदी के दोनों तटों की चिकनी मिट्टी पर धूप में लेटे असंख्य मगरमच्छों की तस्वीरें निकाल रहे हैं।  इतनी दूर से वे लगभग निर्जीव दिखाई देते हैं। लेकिन पानी में मछली की महक पाते ही वे तेज़ी से झपट्टा मारते हैं।

हाईवे से कुछ हटकर जंगल की ओर जाते रास्ते पर हमारी मुलाकात प्रदेश के दो मुख्तलिफ जीवों से होती है, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखा है। पेड़ की एक ऊंची आड़ी टहनी पर बन्दर की तरह उल्टा लटका विचित्र सा जीव, जिसमें जीवन के कोई लक्षण ढूंढना मुश्किल होगा। यह तीन पंजे वाला स्लोथ है, दुनिया का सबसे सुस्त जानवार, जिसका अधिकाँश जीवन इसी तरह डालों से उलटे टंगे बीतता है और जब यह चलता है तो लगता है कि इसकी गति किसी फिल्म की तरह 'स्लो मोशन’ में तब्दील हो गयी है। एक से दूसरी डाल तक पहुँचने में इसे कई मिनट लग जाते है। यह दूसरे जीवों से अपने रक्षा कैसे करता होगा? मेरे मन में यह भी सहज जिज्ञासा थी कि इसके अंग्रेज़ी नाम स्लोथ (सुस्त) और लगभग इसी अर्थ के हिंदी/संस्कृत शब्द 'श्लथ’ (शिथिल) के बीच क्या कोई सम्बन्ध है?  लेकिन अंग्रेजी शब्द के संस्कृत से आने का कोई संकेत बहुत ढूँढने पर भी मिला नहीं।

निर्जीव दिखने वाला दूसरा जीव था 'बड़ा पोटू’ जो हमारे देश के रात में विचरते उड़ते 'छपका’ की ही प्रजाति का पक्षी है, लेकिन जो आकार में 'छपका’ से दुगुने से भी बड़ा है। गाइड की मदद के बगैर हमारे लिए उसे ढूंढ निकालना असंभव था। दिन में किसी डाल पर सोए बड़े पोटू को बहुत नज़दीक से देखने पर भी किसी खुरदुरी छाल वाली डाल का ही धोखा होगा। चांदनी रातों में, जंगल के बीच अक्सर इसके विलाप की डरावनी आवाज़ सुनी जा सकती है। कहते हैं कि एक पक्षी के रूप में अपनी शिनाख्त से पहले, रात में इसकी विलाप-भरी आवाज़ का सम्बन्ध किन्हीं अतृप्त प्रेतात्माओं से जोड़ा जाता था।

हम एक चौकोर तालाब की कगार पर चल रहे थे जहां से आगे एक पेड़ों का झुरमुट था। नज़दीक जाने पर वे सब आम के पेड़ निकले। नीचे घास पर अनगिनत छोटे-छोटे आम गिरे हुए थे। हमने एक दो को उठाकर चूसा तो वे हमारे देसी आमों जितने बढिय़ा न होते हुए भी काफी मीठे निकले। हम पूरे उत्साह से आम चुन-चुनकर खाने लगे तो सुदूर किसी घर से निकली एक लड़की काफी कौतुक से हमें देखने लगी। हमें लगा कि ये पेड़ उसके हैं और वह अभी हमें टोककर हमसे आम के पैसे मांगेगी। लेकिन वह कुछ दूर खड़ी, हमें ध्यान से देखती रही। हम बोतल के पानी से आम धोते, फिर उसका पहला कसैला रस गिराकर शेष आम को चूसते। गुठली निकालकर चूसने के बाद हम छिलके के खोल में बचा आम का रस सीधा मुंह में डालते। उस लड़की के आश्चर्यचकित चेहरे से साफ़ था कि उसने कभी किसी को उन गिरे हुए आमों को इस तरह खाते नहीं देखा है। शायद  गिरे हुए आमों को यूं खाना उसकी कल्पना से बाहर था। हमने एक पके हुए आम को थोड़ा सा दबाने के बाद उसे पेश किया तो उसने आम पकड़कर उसे बेहद डरते डरते चूसा। फिर वह शरमाकर भाग गयी। हमने कुछ आम अपने बैग में भी भर लिए थे। जाते-जाते देखा, वह लड़की फिर लौट आयी थी। इस बार वह घर से एक थैला लायी थी, जिसमें वह ज़मीन से आम उठाकर उनमें भरने लगी थी। हमने हवा में हाथ हिलाया तो उसने भी खुशी से अपने हाथ के अंगूठे को उठा विजय की खिलखिलाहट हवा में बिखेरी। ज़ाहिर था कि हमारी आम खाने की हिन्दुस्तानी कला का 'टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर’ सफलता के साथ कोस्टा रिका में हो चुका था।

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चे और अल्बर्टो अब उस खस्ता मोटरसाइकिल को बारी बारी चला रहे हैं। उसके  असुन्तालित वज़न को साधना किसी भी तरह आसान नहीं। अर्जेंटीना की सीमा पर एक झील के दूसरे किनारे पर स्थित चिली पहुंचाने के लिए 'ला पोदेरोसा’ को पहले मशक्कत के साथ एक नाव पर चढ़ाना और दूसरी ओर पहुँचने के बाद वापस  उतारना ज़रूरी हो जाता है। इस बीच मोटरसाइकिल का आगे का पैनल टूट चुका है और टायर भी एकाधिक बार पंक्चर की यातना से गुज़रे हैं। लेकिन इस पूरी मेहनत के बाद भी लातिन अमेरिका के पश्चिमी तट पर लम्बाई में फैले एक नए देश में प्रवेश करना उत्साहजनक है। चिली- जिसे आने वाले दिनों में चे और अल्बर्टो बेहद मेहमाननवाज़ लोगों का देश पाने वाले थे। अर्जेंटीना से विदा लेते समय पिछले पड़ाव पर मिले एक डॉक्टर ने उनसे कहा था, ''तुम जहां जाना चाहते हो, वहाँ ज़रूर पहुंचोगे क्योंकि तुम बेहद हिम्मती हो। और पहुँचने के बाद देखना, तुम कई दिन वहाँ रुकोगे...’’

बाहिया ब्लांका से आगे एक भयावह टक्कर में मशीन को नुक्सान के अलावा अर्नेस्टो का पैर गर्म सिलिंडर से जल चुका है। चिली की सख्त चढ़ाइयों पर मोटरसाइकिल का गियरबॉक्स भी जवाब देने लगता है। एक भयानक हादसे में वे बाल-बाल बचते हैं, लेकिन इस त्रासदी के बीच भी उसका रोमांचकारी विवरण हमें विस्मित करता चलता है ...

''अल्बर्टो को जैसे स्थितियों का पूर्वाभास हो चला था। उसके इन्कार करने के बाद मोटरसाइकिल चलाने की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गयी। लेकिन कुछ ही किलोमीटर तय करने के बाद मुझे दम तोड़ते गियरबॉक्स को ठोक-बजाने के लिए रुकना पड़ा। इससे आगे एक घुमावदार मोड़ था, जिसके आगे पहले एक गाय और फिर गायों का एक समूचा झुण्ड अचानक हमारे सामने आ गया। पिछला ब्रेक दबाते ही उसका स्क्रू खुलकर नीचे गिर गया। बदहवासी में मैंने तेज़ी से हैण्ड ब्रेक खींचा तो उसका कामचलाऊ ढंग से मरम्मत किया हिस्सा टूटकर मेरे हाथ में आ गया। कई क्षणों तक मुझे दोनों ओर ज़न्नाटे से गुज़रते हुए धुंधले मवेशियों के अलावा कुछ नज़र नहीं आया। हमारी 'पोदेरोसा’ ढलान पर रफ़्तार पकड़ती जा रही थी। खुशकिस्मती से  एक गाय को महज़ रगड़कर हम आगे निकले तो कुछ आगे ही एक उफनती नदी अपने विकराल रूप में हमारी ओर बढ़ती दिखी। मेरा सिर चक्कर खाने लगा था। आखिरी क्षणांश में मैंने हैंडल एक ओर घुमाया तो मोटरसाइकिल किनारे से ज़रा से फासले पर ही उछली और हम दो बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच जा गिरे। कमाल की बात यह थी कि हममें से किसी को भी चोट नहीं आयी थी...’’

('ला पोदेरोसा का आखिरी पड़ाव’—मोटरसाइकिल डायरीज)

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अर्जेंटीना और चिली की सीमा पर फैली नहुएल हुआपी झील का जो सफ़र चे और अल्बर्टो ने सत्तर वर्ष पहले एक मामूली नाव 'मोडेस्टा विक्टोरिया’ पर अपनी मोटरसाइकिल चढ़ाकर तय किया था, वहाँ अब तेज़ गति वाली आरामदेह 'काटामरैन’ नावें चलने लगी हैं। लातिन अमेरिका में उत्तर से दक्षिण तक फैली एंडीज़ कोर्दुलेरा एक हद तक हमारे हिमालय की तरह एक अभेद्य दीवार की तरह है जिसे पार कर चिली आने का यही प्रचलित रास्ता है. यहाँ बड़ी-बड़ी झीलें हैं, जिनमें पेरू की टिटिकाका भी शामिल है, जहां चे की तरह आगे हमें भी पहुंचना है. चिली की सीमा में प्रवेश करते ही आपका सामना फ्रियास झील के पीछे खड़े हिमाच्छादित त्रोनादोर ज्वालामुखी से होगा।

''चिली सीमा चौकियों से होते हुए हम कोर्दुलेरा के दूसरी ओर निकल आए हैं। यहाँ से आगे झील एस्मेराल्दा है जिसमें त्रोनादोर नदी का पानी गिरता है, जहाँ से इसी नाम का वह भव्य ज्वालामुखी दिखाई देता है। इस झील का पानी अर्जेंटीना की दूसरी झीलों की तरह बर्फीला नहीं है और इसमें आराम से नहाया जा सकता है। यहाँ से आगे पहाड़ों में कासा पांगू का मोड़ है जहां से नीचे दूर तक फैला चिली दिखाई देता है। मेरे लिए वह एक निर्णायक मोड़ की तरह था, जहां से मैं चिली की लम्बी धरती और उससे आगे अपने पूरे भविष्य को देख पा रहा था...’’

('और अब अपनी गहरी जड़ों तक पहुंचना’—मोटरसाइकिल डायरीज)

पाब्लो नेरुदा की जन्मस्थली का सफ़र हमारे नक्शे पर नहीं था, पर चे और अल्बर्टो के साथ उनकी  'एल पोदेरोसा’ पर बैठकर हम इसे बहुत नज़दीक से देख पाए थे। और इस समझ में कुछ योगदान लेखिका इसाबेल अलेंदे की पुस्तक 'माई इनवेंटेड कंट्री’ का भी था। पाब्लो नेरुदा की ही तरह इसाबेल अलेंदे को चिली में तानाशाही सरकार बनने के बाद वहाँ से भागना पड़ा था और वे अंतत: उत्तरी अमेरिका में जाकर बस गयी थी। चिली पर लिखी उनकी किताब गोया कि उनके दिल का एक पुरानी दुखती रग है। और नेरुदा के अनुसार 'यह धरती मेरे भीतर, मेरे साथ चलती है और इससे दूर होकर भी इसके लम्बे अक्षांशों की खुशबू  मुझे जिलाए रखती है...’

 

रात, बर्फ और बालू से बना है

मेरा छरहरा जन्मस्थल

सारा सन्नाटा इसकी समूची दूरियों का 

सारा फेनिल झाग इसकी समुद्री जटाओं का

सारा कोयला इसके अदृश्य चुम्बनों का

                        पाब्लो नेरुदा

 

चिली की राजधानी सेंटिआगो से भी हिमाच्छादित एंडीज़ पर्वतमाला का विहंगम दृश्य दिखता है। इसी से निकली मापोचो नदी शहर को दो भागों में विभक्त करती है। सोलहवीं शताब्दी में स्पेनियों के आगमन से पहले यहाँ इन्का साम्राज्य की पिनुंचे (मापुचे) जातियों का निवास था जिनसे गोरों का लम्बे अरसे तक संघर्ष रहा। एक तरह से एंडीज़ के पश्चिम में पेरू से दक्षिण में चिली के अंतिम दक्षिण छोर तक फैला लातिन अमेरिका कभी इन्काओं का समृद्ध संसार था जहां कृषि सबसे उत्कृष्ट मुकाम पर थी और जहां से मक्का, 'किनुवा’, टमाटर और बैगन जैसी कई प्राकृतिक फसलें पूरी दुनिया को मिली थी।

कोई साढ़े चार हज़ार किलोमीटर की लंबाई में फैले इस विचित्र भौगोलिक देश के तीन मुख्तलिफ भाग हैं- उत्तरी हिस्सा जहां दुनिया में तांबे की सबसे बड़ी खदानें और अटाकामा रेगिस्तान है, देश का सबसे समृद्ध मध्य इलाका जहां सेंटिआगो और वेलपराज़ो जैसे महानगर हैं जिनके गिर्द देश की एक तिहाई आबादी रहती है और लगभग अन्टार्कटिका को छूता दक्षिणी प्रदेश जहां बर्फ के साथ अनगिनत झीलें, नदियाँ, ज्वालामुखी और घने जंगल हैं जो शातिर 'टिम्बर’ व्यापारियों की निगाहों तले अब संकटग्रस्त होते जा रहे हैं।

चे को सेंटिआगो अधिक प्रभावित नहीं करता ('यह कोर्डोबा जैसा ही है, लेकिन उससे कहीं अधिक बड़ा और व्यस्त’)  और वे दो दिन बाद ही आगे वेलपराज़ो बंदरगाह की ओर निकल पड़ते हैं, जहां शराब में धुत्त एक हमवतन उन्हें अगले दिन अपने घर ले चलने का न्यौता देकर अंर्तध्यान हो जाता है. वे अंतत: एक छोटे से रेस्तरां 'गिओकोंडा’ के मालिक से दोस्ती कर उसके रसोईघर में पनाह लेते हैं।

''समंदर के किनारे बड़ी सी खाड़ी के चारों ओर बसा वालपराज़ो बेहद खूबसूरत है। इसकी आबादी अब धीरे धीरे पहाड़ों की ओर फैलने लगी है। उन मकानों के चमकीले रंग समंदर के गाढ़े नीले रंग के साथ कुछ और उभरने लगते हैं। इससे कुछ ही फासले पर इस उजले शहर की चीरफाड़ करते हुए हम इसके पिछवाड़े में आ जाते हैं। अँधेरे गलियारों और गंदे ज़ीनों के भीतर झांकते हुए, भिखमंगों की भीड़ से घिरे, हम उसके विषाक्त माहौल में डूबे, अपने फैले हुए नथुनों से उसकी समूची गरीबी को अपने फेफड़ों में महसूस करते हैं...’’

वह शहर लगातार उनका पीछा करता है. 'गिओकोंडा’ में चे की मुलाकात वहां चुपचाप बैठी दमे से ग्रस्त एक बूढ़ी औरत से होती है। वह डॉक्टर की हैसियत से उसके घर जाकर उसका मुआयना करने की ज़िद करते हैं।

''वह बेचारी बेहद बुरी हालत में थी। उसका छोटा सा कमरा पसीने में डूबी तीखी महक और उसके गंदे पैरों की गंध में डूबा था। समृद्धता के नाम पर वहाँ धूल से ढंकी दो आरामकुर्सियों  के सिवा कुछ नहीं था। उस औरत को दमे के अलावा दिल की बीमारी भी थी। ऐसे मौके पर कोई डॉक्टर अपने आपको असहाय और अशक्त महसूस करने के सिवा क्या कर सकता है। वह चाहता है कि किसी तरह उस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को तोड़ दे, जिसमें एक महीना पहले ही यह औरत अपनी हांफती साँसों के बावजूद उस रेस्तरां में मुश्किलों के बावजूद वेट्रेस की एक सम्मानजनक ज़िन्दगी जी रही थी। अब उसकी बुझती आँखों में अपनी दारुण स्थिति के प्रति क्षमा मांगने वाला भाव था। मैं उसे पौष्टिक भोजन खाने की सलाह और अपने साथ रखी कुछ गोलियां देकर चुपचाप कमरे से निकल आता हूँ, जिसके बाहर कुछ लोग अब बहुत अजीब सी निगाहों से मुझे घूरने लगे हैं ...’’

('गिओकोंडा की मुस्कराहट’—मोटरसाइकिल डायरीज)

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    दमे से परेशान वह बूढ़ी औरत आज भी सेंटिआगो, वेलपराज़ो या कोस्टा रिका के किसी रास्ते में बेंच पर अकेली बैठी मिल जाएगी। सड़क पर दौड़ती गाडिय़ां हमेशा की तरह उसे अनदेखा कर ज़न्नाटे से आगे निकल जाती हैं। वहां से हज़ारों मील दूर, महामारी के बीच एक समूचा देश, या कि विश्व, पलायन की मुद्रा में घर लौटना चाह रहा है, लेकिन दूसरों से वाजिब दूरी बनाए रखने के सिवाय कोई और ठोस सलाह हमारे पास उसे देने के लिए नहीं है।

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पुनश्च:

    अफ़सोस यह भी कि चे और अल्बर्टो के पास अब उनकी 'ला पोदेरोसा’ मोटरसाइकिल नहीं है। सेंटिआगो पहुँचने से पहले ही उसके गियरबॉक्स ने दम तोड़ दिया था और उसे एक ट्रक में  लाद उन्हें शहर के एक गेराज में हमेशा के लिए छोड़ देना पड़ा था। गेराज में आखिरी बार अपने उस खस्ताहाल तीसरे साथी को अलविदा कहते हुए अल्बर्टो की दोनों आँखों में बड़े-बड़े आंसू छलक आए थे।

'पोदेरोसा’ के बगैर अब वे 'मोटरसाइकिल वाले जांबाज़ सैलानियों’ से सिर्फ 'मामूली  आवारा राहगीरों’ में तब्दील हो चुके थे। इसी हालत में उन्हें यहाँ से आगे चिली, पेरू और कोलंबिया और फिर उससे भी आगे बोलीविया, कोस्टा रिका, क्यूबा और जाने कहाँ-कहाँ तक का लंबा सफ़र तय करना था।

लेकिन वह सिर्फ मोटरसाइकिल ही नहीं, कुछ और भी था, जिसे सेंटिआगो के उस गेराज में चे और अल्बर्टो हमेशा के लिए पीछे छोड़ आए थे ...  

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(अगले अंक में जारी )

संपर्क-9324223043, jb.envirotekindia@gmail.com

 


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