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जून - जुलाई : 2020

सुबोध सरकार की कविताएं

अनुवाद: मुन्नी गुप्ता/अनिल पुष्कर

शुरुवात/एक

कविता/बांग्ला

 

 

गांधी

 

बैठकर न कि खड़े रहकर?

गांधी बैठे रहेंगे या खड़े रहेंगे?

 

उन्हें बैठाया गया, बैठे हुए गांधी को रात की रौशनी में देखकर

एक विशेषज्ञ ने कहा,

'न, नहीं चलेगा, लग रहा है गांधी गूँ करने बैठे हैं,

उन्हें खड़ा करो, हाथ में लाठी दो’

लेकिन खड़े होने पर से ही तो नहीं होगा न, कहाँ खड़े होकर

किस ओर खड़े होकर, किसलिए खड़े होकर

खड़े हुए को देखकर ही तो समझ सकते हैं कि एक आदमी

भीख मांग रहा है न कि भीख दे रहा है।

पुपुल जयकर बोले,

नोआखाली दंगा के समय गांधी बांस का पुल

पार कर रहे हैं - उसी असामान्य मुहूर्त को पकडिय़े।

 

पकड़ लिया। कलकत्ता में हम कहते हैं 'जब तक हो न जाए, भरोसा नहीं,

दिल्ली में वे कहते हैं - अरे यार, पकडऩे से ही नहीं होता, पकड़कर गाड़  देना होता है।

ट्रक से डोरी-बंधे गांधी को उतारा गया।

पहले इण्डिया गेट के सामने, रे रे कर उठे दस जन, यहाँ नहीं, गांधी चल पड़े

राजघाट

वहाँ भी नहीं, वितर्क चरम पे पहुँचा

राजघाट से होके तीनमूर्ति से ट्रक चला

जमुना की तरफ।

 

जमुना तीरे गोधूलि की धुँधली रौशनी में खड़े थे गांधीजी

और भी दुबले हो गये हैं,

बड़बड़ा रहे हैं, 'तुम लोग मुझे जरा सी जमीन भी नहीं दे पा रहे हो खड़े  होने के लिए?’

एक बार बाईं तरफ दो पैर आगे बढ़े

तीन कदम दाहिने तरफ, हाथ की लाठी को मिट्टी में ठोंका

उसके बाद सीधे चलने लगे अन्धकार भरे भारतवर्ष की ओर यमुना के उलटी तरफ।

 

इन्टेन्सिव केयर यूनिट

 

माँ को इन्टेन्सिव केयर यूनिट में रख बाहर निकल आया

मेरे कंधे पर आकर बैठ गया एक प्रजापति*।

 

रुपया उठाने के लिए निकला, ऑफिस ने कहा, राइटर्स से

लिखवा लाइए, राइटर्स ने कहा, मंत्री से कहिये,

मंत्री के पी.ए. ने कहा, आज सुबह दस बजे

मंत्री को ही इंटेंसिव केयर में रखना पड़ा, बाद में आइये।

 

लेकिन माँ को बचाने के लिए रुपये की जरूरत है।

प्रजापति आकर दूसरे कंधे पर बैठ गया

भाई प्रजापति, तुम कुछ बोलोगे?

 

चेयरमैन घोस ने कहा, उम्र हो चली है आपके माँ की

इसे अन्यथा न लें, डॉक्टर से कहकर

इंटेंसिव केयर यूनिट की स्विच बंद करवा दीजिये।

ठीक ही कहा था उन्होंने, लेकिन राइटर्स से निकलकर लगा

सिर्फ राइटर्स ही नहीं, सेंट्रल एवेन्यू ही नहीं

इधर हावड़ा उधर सियालदाह

दो खराब हो चुके फेफड़े को ले, पूरा कलकत्ता एक

विराट इंटेंसिव केयर यूनिट के बीच धकधक कर रहा है।

 

कंधे पर बैठे प्रजापति से कहा, भाई कुछ बोलोगे?

उसने कहा, मैं पहले अविवाहित लड़के-लड़कियों के

आस-पास घूमता रहता था। अब मरणासन्न के कंधों पर बैठा रहता हूँ।

नगरउन्नयन मंत्री ने धप्प से प्रजापति को पकड़ते हुए कहा:

न्यूयार्क नहीं, मास्को नहीं, टोक्यो हांगकांग नहीं

एकमात्र कलकत्ते में ही अब भी प्रजापति मिलता है

एकमात्र कलकत्ते में ही।

यही होगा हमारा परवर्ती विज्ञापन

मैंने आँसू पोछते हुए कहा, इंटेंसिव में सोई पड़ी मेरा माँ का क्या होगा,

मेरी माँ का?

 

अच्छी जगह कहाँ है?

 

दुपहरी में नींद से उठते ही मेरे तीन साल के लड़के ने कहा

बाबा, मुझे एक अच्छी जगह ले चलोगे?

 

मैंने आश्चर्य से देखा तीन साल की ओर

तीन साल की आँख की तरफ, तीन साल के होंठ की तरफ

निकल आये बिंदु-बिंदु पसीने की तरफ

मैंने कहा, जा तो चिडिय़ाखाना ले आ

शेर को खूब भूख लगी है, बाघ पीछा कर रहा है हरिन का

उसने कहा, न, मुझे एक अच्छी जगह ले चलो।

 

पास के कमरे में जाकर थोड़ा रोया, बंदूक चलाई, उसके बाद

कहीं से कार्ल मार्क्स का एक फटा कैलेंडर ले आया और कहा

इस दादू* को भी ले जायेंगे, ट्रेन से, नौका से

ए बाबा, ए बाबा, एक अच्छी जगह चलोगे?

विक्टोरिया ले आया, उसने कहा, न ये अच्छा नहीं है

गंगाघाट पर ले आया, उसने कहा, यह तो एक नदी है

आईस्क्रीम दिलवा दिया, वह भुनभुन करता ही रहा

परेशान हो आठ बजे घर लौट देखता हूँ, उस समय भी

मेज़ पर गुलाटी खा रहे हैं फटे हुए कार्ल मार्क्स

लड़के से कहा, सुन, इस दादू ने भी

कहा था हमें एक अच्छी जगह ले जायेंगे

उस रविवार को न कोई ट्रेन थी, न नौका।

 

एकाध मिनट चुप रहा, क्या सोचा, क्या जाने, उसके बाद फिर से भुनभुन

बॉल दिया, रोबोट दिया, जहाज दिया

थप्पड़ लगाऊं कि नहीं सोच रहा हूँ, ठीक उसी समय दुनिया का सबसे कठिन प्रश्न

उसने किया:

ए बाबा, कल एक अच्छी जगह ले जाओगे तो, कल?

 

मयूरपंखी

 

लड़की होने पर क्या नाम रखते?

क्या नाम, क्या नाम... क्या नाम रखता?

मयूरपंखी

 

बहुत कम तो भी उन्नीस कवि लेखक अध्यापकों ने कहा है:

समझे, एक लड़का लड़का नहीं होता

तुम्हें एक लड़की की जरूरत है

लड़का खराब हो तो विपद

अच्छा हो तो भी विपद

खराब होने पर सारा मुहल्ला अभिशाप देगा

अच्छा होने पर अमरीका छीन लेगा।

 

लड़की होने पर नाम रखता मयूरपंखी

गलत कहा, कहना होगा, नाम रखूँगा मयूरपंखी।

नन्हे-नन्हे पैर, नन्हे-नन्हे हाथ डगमग करती वह

चली आ रही है मेरी ओर

मयूर, माँ* तुम मुझे प्यार करोगी तो, छोड़ तो नहीं जाओगी न

एप्लाई किया है? पत्नी से पूछा एकसाथ तीन लोगों ने

मैंने कहा, देख भी आया हूँ

जिस किसी दिन होम से टेलीफोन आयेगा भागकर

ले आऊंगा मयूरपंखी को

चूम-चूमकर प्यार करूंगा

वह अपने चार साल के दादा रोरो बाबू के साथ

गहरी नींद सोएगी.

 

एप्लाई, किया है? केवल दो शब्द, दो ध्वनि

इतना तीक्ष्ण कभी नहीं चुभा

रात में बहुत दूर से एक आवाज़ आकर नींद में

पूछती है, एप्लाई किया है?

हावड़ा, सियालदह, चौरंगी, कालीघाट, शोभाबाज़ार के

फुटपाथ से नन्हे-नन्हे कोमल हाथ

हजार-हजार हाथ उठ आये नींद में:

मेरे लिए तुमने एप्लाई किया है?

 

बाकी रात उठकर बैठा रहता हूँ

मेरे सामने अलसुबह

फुटपाथ और फुटपाथ

सोया है एक भारतवर्ष मयूरपंखी।

हम क्या नहीं कर सकते

कि होम से, रास्ते से, फुटपाथ से

एक-एक मयूरपंखी घर ले आयें?

 

घूस

 

रवीन्द्र रचनावली के नौवें खंड से दबाकर रखा गया सुसाइड नोट,

लड़के को लिखा गया। लिखा है, हाथ में ब्लेड लेकर

बाथरूम में घुसे थे मास्टर साहब

दुपहरी में घर का नौकर दरवाजे के नीचे से

खून आता देखकर चिल्ला उठा।

लड़के को लिखी यही उसकी पहली और आखिरी चिट्ठी: 'अरनि’,

मैं विश्वास करता हूँ सन्तान पवित्र जल की तरह होती है

यद्यपि तुम्हारे साथ मेरा सम्बन्ध अच्छा नहीं

फिर भी तुम्हें ही लिखे जा रहा हूँ

बीते दो साल तुम्हारी माँ के इलाज के दौरान

मेरी अब तक की संचित सामान्य जमापूंजी खत्म हो गई

इलाज का खर्च भार मैं और नहीं झेल पा रहा था।

जीवन में तुम्हारे रुपये को हाथ नहीं लगाया, मरने के बाद भी नहीं छुऊंगा।

मैंने जीवन भर छात्रों को पढ़ाया है, जानबूझकर कोई अन्याय नहीं किया।

बीते महीने मेरे स्कूल में एक अभिभावक आकर

गिड़गिड़ाता रहा उनके लड़के को लेने के लिए

मैंने पहले दिन लौटा दिया, दूसरे दिन भी लौटा दिया

तीसरे दिन नहीं कर पाया। उन्होंने मुझे एक बड़े लिफ़ाफ़े में

तीस हजार रुपये दिए और चले गये।

उसी रुपये से इस महीने तुम्हारी माँ का इलाज चल रहा है।

नहीं जानता कि वो घर लौट पाएगी फिर कभी या कि नहीं

लौटने पर कहना, पृथ्वी पर मेरे ज़िन्दा रहने का अधिकार चला गया है

इति 'बाबा’

जब पूरा देश खड़ा है घूस के रूपये पर

तब रवीन्द्र रचनावली से दबाकर रखा गया एक सुसाइड नोट।

अस्पताल में पेड़ के नीचे शरीर किसी अज्ञात डर से सिहर उठा

आगे बढ़ गया सफेद कपड़े में ढके मास्टर साहब की तरफ

थोड़ा बाहर निकले दो पैर की तरफ-

 

वही जरा सा बाहर निकले दो पैर जैसे भारतवर्ष की शेष मिट्टी हो।

 

प्रेसिडेंट की चीन यात्रा

 

साल 1998 के जून महीने में, मैं

प्रेसिडेंट का सहयात्री बनकर चीन गया था

पत्रकार की तरह नहीं, वह योग्यता मुझमें नहीं है

मैं इस क्षुद्र ग्रह के एक क्षुद्र पतंग की तरह

प्रेसिडेंट के हैंडबैग में घुस पड़ा था।

हैंडबैग में ख़ास कुछ नहीं था

चीन से सम्बन्धित एक बुकलेट, एक टूथब्रश

एक वक्तव्य, जो उन्होंने सारे देशों में दिया था

और एक पैकेट चिकलेट।

 

आप सभी जानते हैं, उनके प्रेसिडेंट देखने में अच्छे होते हैं

चीन भारत के प्रेसिडेंट देखने में अच्छे नहीं होते

उनके प्रेसिडेंट तैयारी पोशाक में

अर्थात जांघिया पहने तस्वीरें छापी जाती हैं

श्री बाजपेयी की वैसी तस्वीर आज तक नहीं देखी।

मैं इस क्षुद्र ग्रह का एक क्षुद्र पतंग

पूरी यात्रा को मैंने अभिभूत हो लक्ष्य किया

पृथ्वी, जल, आग, वायु, आकाश

पांच में एक हुआ जल।

 

जल पृथ्वी में सभी जगह पाया जाता है

सम्भवत: चीन में भी पाया जाता है। मगर उससे क्या?

पीने का पानी तो है ही।

 

नौ दिनों के नहाने का पानी भी वाशिंगटन से

विशेष प्लेन से चीन पहुँचा

जल विशेषज्ञ कमिटी ने बताया था

चीन के पानी में अमासा है।

 

इतना भय आपको, मि. प्रेसिडेंट?

भारत पाकिस्तान को लेकर आपको नींद नहीं

चीन के मानवाधिकार को लेकर आपको इतना उद्वेग

उस अपने अमासा को लेकर इतना भय?

 

क्या जाने किस कागज पर साइन करना होगा हम लोगों को?

साइन करके क्या होता है आपके हैंडबैग में कितने साइन

कितनी तारीखों के बीच कितने बरस सोते हुए काटा

साइन करके क्या कोई युद्ध रोका जा सकता है?

इस क्षुद्र ग्रह का एक क्षुद्र पतंग मैं

चीन में अब भी बहुत से मिरेकल घटते हैं सुना है

आपने नौ दिन चीन का पानी पिया होता तो

शायद पूरी तरह से ठीक हो जाते

 

जीवन में फिर कभी आपको अमासा नहीं होता।

 

वही संघातक आदमी

 

जिस आदमी ने

मिस्र के रास्ते पर खड़े हो कम्बल से मुँह ढके

तीन लोगों से कहा था: 'जला दे’

और धू धू कर जल उठी अलेक्जेंड्रिया लाइब्रेरी

मैं इस आदमी को पहचानता हूँ।

पृथ्वी के सबसे श्रेष्ठ चाय कप का सिप लेते हुए टेलीफोन पर कहा:

'यहूदियों को इजराइल में घुसने मत देना’

मैं उस आदमी को पहचानता हूँ।

 

जिस आदमी ने गंगा और बल्लम* के बीच खड़े होकर कहा था:

'48 घंटे के भीतर बाबरी मस्जिद को तोडऩा होगा’

मैं उस आदमी को पहचानता हूँ।

 

उस आदमी की एक आँख काले कांच से ढकी है।

 

उसी आदमी को तीन हजार साल से

तीन सौ तरीके से यूनेस्को धिक्कारता आ रहा है

मगर उसका एक बाल भी बांका न कर सका।

 

वह आदमी अलेक्जेंड्रिया से अयोध्या होते हुए

चलते-चलते अफगानिस्तान पहुँचा एक दिन

एक सौ पचहत्तर फुट बुद्ध के सामने खड़े हो वही आदमी

डायनामाईट का तार ठीक कर रहा है

एवं दुर्लभ बाली पत्थर पर मूत रहा है

पृथ्वी पर जहाँ जहाँ किया है

वहाँ वहाँ लहलहा उठे हैं शस्य सब्ज़ी संसार

 

एक सौ पचहत्तर फुट की बुद्ध मूर्ति, टाटा सेंटर की तरह ऊँची

हे शांत, समाहित बुद्ध, न जाने किसने आपसे एक बार कहा था

आप कौन हैं? ईश्वर? अवतार? त्राता?

आपने शायद कहा था, ''मैं कोई नहीं, मैं जागृत।’’

ये क्या बात हुई?

आप जागृत? अगर वही होंगे

तब तो आपके गगनस्पर्शी मूर्ति से

दो हाथ बाहर आ

डायनामाईट रिमोट लेकर खड़े

उस संघातक आदमी की दो आँखों को सादा क्यूँ नहीं कर देते?

 

गुजरात

 

राजा का मन खराब है, रात को नींद नहीं

कोई सुनता नहीं बात, पुलिस को गोली चलाने को कहा है

पुलिस चुन-चुनकर गोली मार रही है

फिर से घुटने का दर्द बढ़ा है।

 

ऐसे वक्त में राजा का मन चाहता है शिकार पर चलें।

 

जंगल में घुसने से पहले राजा ने मंत्री से पूछा:

'क्यों जी, आज बारिश होगी?

मंत्री बोला, 'नहीं सर, आज बारिश नहीं होगी’।

 

घने जंगल में राजा के घुसते ही बारिश शुरू हो गई, भीगता है कौवा।

घर लौटते बुखार, तीन दिन बाद बुखार से उठते ही

मंत्री को भगाया, और उसकी जगह पर बुलाकर

बैठाया चासी को।

 

चासी ने प्रेस कांफ्रेंस की, ढेरों फाइलें साइन की

राजा के पास आया, राजा बोला, 'आओ, आओ बैठो

अब बताओ तो जरा कैसे कहा तुमने उस दिन कि बारिश होगी?’

 

गर्वीला चासी बोला, 'उसमें क्या बड़ी बात है

मैं गधे की पीठ पर चढ़ा गीत गाते-गाते जा रहा था

उस गधे ने मुझसे फुसफुसाकर कहा

'कहा, बारिश होगी, कहो बारिश होगी, कहो...

और मैंने आपसे कह दिया बारिश होगी’।

 

गुजरात में गोली चल रही है, राजा का मन खराब है, पौर सभा हाथ से गयी

फिर भी चासी को भगा दिया

चासी को भगाकर उसकी जगह

चासी का गधा लाकर बिठा दिया।

 

पुनश्य: खबर आई इस तरह, दो हजार दो साल तक राजा के मंत्रीसभा में प्राय: दो सौ गधों ने प्रवेश किया था वे लोग गुजरात में आग बुझा नहीं पाए, लेकिन राजा ने कहा था बारिश होगी, बारिश होगी, बारिश होगी।

 

खलासी टोला में वे तीन लोग

 

जीसस क्राइस्ट

गौतम बुद्ध

कार्ल मार्क्स

तीनों अत्यंत उत्तेजित एक लड़की को लेकर

लड़की का नाम लक्ष्मी है,

लक्ष्मी जिस घर में कपड़े धोती थी, उस घर में

आ गया है एक वाशिंग मशीन, अब क्या होगा?

 

यीशु ने कहा : लड़की को मैं रास्ता दिखाऊँगा, जो दिशा हारा है

मैं उसे दिशा दूँगा।

गौतम बुद्ध ने कहा : रखिये तो आप अपनी शैतानी

लड़की क्या खाएगी, उसका कोई ठिकाना नहीं, और आप हाँके जा

रहे हैं?

कार्ल मार्क्स ने कहा : गौतम सर, आपकी भाषा इतनी

खराब क्यूँ हो गयी? मैं जानता था सोवियत

टूट जाने पर लक्ष्मी जैसों की अवस्था और खराब होगी।

कई करोड़ लक्ष्मी को भिखारी बनाकर खड़ा होगा वैश्वीकरण।

खलासी टोला के देशी शराब का एक घूँट लेते हुए यीशु ने कहा:

लक्ष्मी के पास अगर एक रोटी रहती, भाई-बहनों के साथ

मिल-बांटकर खाती, तब देखते उसी से पेट भर गया है।

 

गौतम बुद्ध ने कहा: आप जिस किसी दिन देशी शराब पियेंगे,

वह तो बाइबिल में कहीं लिखा नहीं है। फिर भी यह सही है -

भारतवर्ष लक्ष्मियों के लिए अब और भात-रोटी स्पोंसर नहीं कर पायेगा।

कार्ल मार्क्स ने बाकी बातें कहीं : अब भी मेरा भूत

देख डरता है अमेरीका, एशिया, अफ्रीका। लक्ष्मी को

लक्ष्मी सब को खाना दे सकती है। आप मैं नहीं। कई

करोड़ लक्ष्मी अगर एक-साथ आ खड़ी होगी, दो देखिएगा क्या होता है?

 

गांधी आकर खड़े हो गये : वह क्या आप लोग, थ्री मस्केटियर्स

यहाँ क्या कर रहे हैं?

गौतम बुद्ध ने कहा : हे छोकरे यहाँ लोग क्या करते हैं?

गांधी ने कहा : यहाँ घुसकर अच्छा ही किया, पार्लियामेंट में

आप लोगों को घुसने नहीं देंगे, मुझे ही अब नहीं दे रहे हैं।

 

आश्विन की गोधूलि रौशनी में लक्ष्मी अपने लड़के को पकड़कर

नहीं रख पा रही है, उसके पेट में एक भारत भूखा, और आँख में

एक पृथ्वी स्वप्न, बड़ा होकर वह अमत्र्य सेन होगा

लेकिन न खा पाने पर कोई क्या

अमत्र्य सेन हो सकता है?

 

कार्ल मार्क्स ने सब देख सुन खलासी टोला में ही बैठ

कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में एक नई लाइन जोड़ी:

लक्ष्मियों को ही गर भात नहीं जुटता

तो कौन रोटी देगा सरस्वती को।

 


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