मुखपृष्ठ पिछले अंक कुछ पंक्तियां
जून - जुलाई : 2020

कुछ पंक्तियां

ज्ञानरंजन

 

कहानी अंक की शुरुवात हम बांग्ला के बड़े कवि सुबोध सरकार और मशहूर युवा चिकित्सक स्कंद शुक्ल की रचनाओं से कर रहे हैं। सुबोध सरकार को बांग्ला का अग्रणी कवि माना जाता है। उनकी कविताओं में विचार और गद्य का अनुपम दानापानी है। सत्तर के दशक में पहला कविता संग्रह छपा और अब तक इस आधुनिक कवि के छब्बीस संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे बांग्ला कल्चरल मैगजीन और भाषा नगर के संपादक होने के साथ बांग्ला कविता अकादमी के अध्यक्ष भी हैं। फुल ब्राटर फेलो रहे हैं और साहित्य अकादमी के अलावा अनेक सम्मान पुरस्कार प्राप्त हैं। उनके कुछ कविता संग्रहों के नाम हैं, चन्द्रदोष दवा से ठीक नहीं होता (1991), अढ़ाई हाथ मनुष्य (1992), जेरुसलम से मेदनीपुर (2001), मैं किसी का अंधकार नहीं (2004), जो उपनिषद वही कुरान (2006), सारे रास्ते रोम नहीं जाते (2001), चौदह नम्बर डेड बॉडी (2008)। आपने विश्व के दर्जन भर से अधिक कविता के प्रतिष्ठित आयोजनों में पाठ किया है और इसके अलावा 'पोस्ट कॉलेनियल लिटरेचर’ पर अमरीका में अध्यापन भी किया है।

उकने दोनों अनुवादक अनिल कुमार पुष्कर और मुन्नी गुप्ता विग्दघ रचनाकार है। 1980 में इलाहाबाद में जन्मे, अपनी प्रमुख शिक्षा जेएनयू में पूरी करके अब पूरा वक्ती लेखक और संस्कृति कर्मी है। नैनी, इलाहाबाद में रहते हैं। चालीस वर्षीय मुन्नी गुप्ता कोलकाता में पढ़ीं और अनुवाद के अलावा स्त्री विमर्श पर मुख्य काम हैं। वर्तमान में प्रेसीडेंसी कॉलेज में अध्यापक हैं।

स्कंद शुक्ल लखनऊ केन्द्रित एक चिकित्सक और विज्ञान लेखक हैं। कुछ अर्से पहले ही उन्होंने 'पहल’ में एक गंभीर सिरीज की थी। फेसबुक पर उन्हें जाना पहिचाना जाता है और सम्मान दिया जाता है। यहां उन्होंने पहल के लिए एक विशेष लेख पूरा किया और कहानी अंक की शुरुवात इस प्रकार सुबोध सरकार तथा स्कंद शुक्ल से की जा रही है।

भीतरी बाहरी कठिनाईयों के बीच 'पहल’ का कहानी अंक आपके सामने है। अभूतपूर्व आपदा के बीच भी भारतीय सत्ता अपना गर्हित एजेंडा पूरा करने में लगी है। देश में आदमी की दलेल और दुर्गति का ठिकाना नहीं है। हम इससे परे नहीं हैं। कहानीकारों ने अपना सर्वोत्तम लिखकर हमें भेजा। ये कहानियां मात्र छुटपुट प्रयास नहीं हैं बल्कि समय का सम्पूर्ण कथानक हैं। इसमें कई कहानियां ऐसी हैं जिनमें उपन्यास के लक्षण है। वे एक संदिग्ध और हत्यारे संसार में प्रवेश करती हैं। उनमें प्रतिरोध, आलोचना, व्यंग्य है और औपन्यासिक ढांचा है। ये कहानियां उपन्यास को छूकर लौटती हैं और समय के पार जाती हैं। हमें भरोसा है कि इन्हें 2020 में रेखांकित किया जायेगा।

समय की याद दिलाने वाली राजेंद्र सिंह बेदी की एक ऐसी पुरानी कहानी अजमल और राजकुमार ने हमें मुहैया कराई है जो चकित करती है। यह उर्दू रजिस्टर के अन्तर्गत है। अजमल काफी दिनों भारत में रहकर हाल ही में पाकिस्तान गये हैं।

विवेचन में रोहणी अग्रवाल और अमिताभ राय की अनुपस्थिति कहानी अंक के लिए दुर्घटना है। वे तमाम कोशिशों के बावजूद अपनी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण लेख नहीं दे सके। शशिभूषण मिश्र ने जो आलोचना के महत्वपूर्ण आगन्तुक हैं, काफी कमी अपने लेख से पूरी की है। धीरेन्द्र अस्थाना, ममता कालिया और चरण सिंह पथिक की कहानियों का इंतजार इंतजार ही रह गया। ये हमारी डिज़ाइन के अंतर्गत थे।

जितेन्द्र भाटिया का स्तंभ परबत परबत बस्ती बस्ती का प्रकाशन अनवरत है। जितेन्द्र भाटिया ने पहल को कभी नहीं छोड़ा, देस में रहते हुए विदेश में रहते हुए। उनका एक बड़ा पाठक वर्ग है। इस अंक में राजेन्द्र धोड़पकर के कार्टून नहीं है। पहल की दूसरी पारी में धोड़पकर ने हर सूरत कार्टूनों को जारी रखा। वे अगामी अंकों में नए विचार नई कल्पना के साथ फिर आएंगे ऐसा भरोसा उन्होंने दिया है।

मुखपृष्ठ के अंत में दी गई कविता सौजन्यपूर्वक देवीप्रसाद मिश्र के एक वीडियो से ली गई है।

 


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