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अप्रैल २०१३

कुछ पंक्तियां

ज्ञानरंजन

कुछ पंक्तियां


अब आपके सामने दूसरी पारी का दूसरा अंक है। अंक 91 की काफी प्रतियां कम पड़ गई हैं। हमें खेद है कि हम मुद्रित प्रतियों के लिए सही आकलन नहीं कर सके थे। प्रसार संख्या बढ़ा रहे हैं लेकिन इससे हमारी अर्थ व्यवस्था पर चोट पडऩे की आशंका है। इससे घाटा बढ़ेगा और सीमित पूंजी और सहकार के सहारे काम चलाने वाली हमारी नीति को ठेस पहुँच सकती है। हमारा आग्रह है कि चूंकि माँग-पूर्ति को पूरी तरह बराबर हम साध नहीं सकते इसलिए आप सब 'पहल'  मिलजुलकर पढ़ें। अब यह आपको वेबसाइट पर भी उपलब्ध है इसलिए उसकी संगत भी करें। जरूरी रचनाओं की फोटो प्रति भी कराई जा सकती है, इसमें हम पाठकों की सहायता भी कर सकेंगे।
अंक 91 में प्रूफ की गलतियाँ बहुत थीं, इस ओर हमने ध्यान दिया है और अब हम आपको आश्वस्त कर सकते हैं। लेखकों से हमारी गुजारिश है कि ब्लॉग पर डाली रचनाओं को छपने के लिए न भेजें। आप अपनी नाव का चुनाव कर लें, गड़बड़झाला संभव नहीं है। आपके पास लिखने के जो भी प्रस्ताव हो उसके बारे में हमारे संपादकों से संवाद अवश्य करें। सुविधा से तैयार असूचित चीजें न भेजें। 'पहल' के हर अंक की एक डिजाइन होती है, उसमें आपकी सहायता उसी के अनुरूप होना जरूरी है।
'पहल' के खाते में सीधे राशियां जमा हो सकती हैं लेकिन उसमें अतेपते की गुंजाईश नहीं रहती, इसीलिए बेहतर है राशियों को चेक, धनादेश और अपने पत्रों के साथ भिजवाएं।
आगामी अंक में कुछ नई सामग्री प्रस्तावित है। विश्वनाथ त्रिपाठी 'कहानी' केन्द्रित एक लेख हमारे लिये तैयार कर रहे हैं और राजकुमार केसवानी, शरद जोशी पर यादगार संस्मरण देंगे। महान पाकिस्तानी लेखक इंतजार हुसैन का एक दुर्लभ व्याख्यान और 'राम की शक्तिपूजा' का संक्षिप्त नाट्य संस्करण पाठकों को पढऩे मिलेगा। गॉड पार्टिकल पर टिप्पणियां तथा अनिल यादव और सुभाष पंत की कहानियां भी होंगी। राहुल सिंह और प्रियम अंकित कहानी और उपन्यास पर एक सिरीज शुरू करेंगे। और केरल से पवित्रन ठेक्कुनी की कविताएं होगी जिसे जैसन चाको और सुभाष गाताड़े ने संभव किया है। नरेश सक्सेना की लम्बी कविता का भी वादा करते है।

'पहल' की वेबसाइट, www.pahalpatrika.com नाम से जारी है। इसकी देखरेख सर्वश्री कुलभूषण मिश्रा और पंकज स्वामी करते हैं।

 

 


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