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दिसंबर - 2019

मंगलेश डबराल की कविताएँ

मंगलेश डबराल

 कविता

 

 

 

 

वर्णमाला

 

एक भाषा में अ लिखना चाहता हूँ

अ से अनार अ से अमरूद

लेकिन लिखने लगता हूँ अ से अनर्थ अ से अत्याचार

कोशिश करता हूँ कि क से कलम या करुणा लिखूं   

लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से क्रूरता क से कुटिलता

अभी तक ख से खरगोश लिखता आया हूँ

लेकिन ख से अब किसी खतरे की आहट आने लगी है 

मैं सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा   

बहुत सारे फूल

घरों के बाहर घरों के भीतर मनुष्यों के भीतर

लेकिन मैंने देखा तमाम फूल जा रहे थे

जालिमों के गले में माला बन कर डाले जाने के लिए 

 

कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है

भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है

द दमन का और प पतन का संकेत है

आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला

वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं

समाज की हिंसा 

ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है

हम कितना ही हल और हिरन लिखते रहें

वे ह से ह्त्या लिखते रहते हैं हर समय।

 

भूलने का युग

 

याद रखने पर हमला है और भूल जाने की छूट है

मैं अक्सर भूल जाता हूँ नाम

अक्सर भूल जाता हूँ चेहरे

एक आदमी मिलता है बिना चेहरे का एक नाम

एक स्त्री मिलती है बिना नाम का एक चेहरा 

कोई पूछता है आपका नाम क्या है

उसे यकीन नहीं होता

जब मैं भूला हुआ कुछ याद करने की कोशिश करता हूँ

कुछ देर किसी के साथ बैठता हूँ

तो याद नहीं आता उसका नाम 

जो कभी झंडे की तरह फहराता था उस पर

उसका चेहरा लगता है

जैसे किसी अनजान जगह की निशानदेही हो

 

यह भूलने का युग है जैसा कि कहा जाता है

नौजवान भूलते हैं अपने माताओं-पिताओं को

चले जाते हैं बड़ी-बड़ी गाडिय़ों में बैठ कर

याद रखते हैं सिर्फ वह पता वह नाम 

जहां ज्यादा तनख्वाहें हैं 

ज्यादा कारें ज्यादा जूते और ज्यादा कपड़े हैं

बाज़ार कहता है याद मत करो

अपनी पिछली चीज़ों को पिछले घर को

पीछे मुड़ कर देखना भूल जाओ

जगह-जगह खोले जा रहे हैं नए दफ्तर

याद रखने पर हमले की योजना बनाने के लिए

हमारे समय का एक दरिंदा कहता है

मेरा दरिंदा होना भूल जाओ

भूल जाओ अपने सपने देखना 

मैं देखता रहता हूँ सपने तुम्हारे लिए.

 

एक लोकगीत सुन कर 

 

वह बहुत मीठी धुन थी

दूर से एक स्त्री का स्वर गूंजता हुआ आता था

सुरीला सुखद और मार्मिक

ज़रूर वह लम्बे समय तक संगीत सीखती रही होगी

मर्म पर छपते उन स्वरों के शब्द

आर्तनाद से भरे हुए थे

हे दीनानाथ मेरा यह अघ्र्य स्वीकार करो

हे पांच नामों वाले देवता इस बस्ती के नारायण

स्वीकार करो मेरे खाली हाथों का यह नैवेद्य  

मैं सुनती रहती हूँ सास-ससुर घर के लोगों के कुबोल

पता नहीं कहाँ से पुरखे चले आते हैं

और ताने देकर चले जाते हैं

पता नहीं किस गुनाह की सज़ा मुझे मिलती है   

 

दूर से आ रही थी वह ध्वनि

नज़र नहीं आती थी उसकी गायकी

जैसे सभी स्त्रियाँ उसे गा रही थीं एक चेहरे से नामहीन  

बहुत मीठी थी वह धुन

लेकिन उन शब्दों में भरी थी एक स्त्री की दासता

उसकी कातरता एक अभागेपन की खबर

वे एक साथ मुग्ध करते और डराते थे

 

स्त्रियाँ मीठे स्वरों में बांचती हैं अपनी व्यथा

अपने अभागेपन की कथा

उसके भयानक शब्दों को सजाती-संवारती हैं

उनमें आरोह-अवरोह-अलंकार के बेल-बूटे काढ़ती हैं

ताकि वे सुनने में अच्छे लगें 

पूछती हैं दीनानाथों से

बताओ कौन से हैं मेरे गुनाह

जिनके लिए दी जा रही है मुझे सज़ा

दीनानाथ कोई जवाब नहीं देते

उनका यह अभागापन अलग से है।

 

हिटलर

 

यह सच है कि हिटलर मर चुका है, लेकिन उसे इस तरह याद किया जाता है

जैसे वह अभी जीवित हो. उसने पहले से ही  दुनिया को दो

हिस्सों में बाँट रखा है। जो लोग उसकी पूजा करते हैं उन्हे इस पर गर्व है

कि दुनिया का यह सबसे बड़ा आदमखोर एकदम शाकाहारी था,

वह हर दिन दो किलो चॉकलेट खाता था और शराब में भी चीनी

डलवाता था। वह नुकीली, तेज़ धारदार चीज़ों, हजामत की ब्लेडों

वगैरह से डरता था और नाई से बाल बनवाते वक्त उसे लगता जैसे

वह मौत के उस्तुरे के नीचे आ गया हो। उसने पादरी बनना चाहा,

चित्रकार बनना चाहा, कला-वस्तुओं का संग्रह करना चाहा, घर

बसाना चाहा, लेकिन जब यह सब नहीं कर सका तो उसने अपने को

प्रेम करने के लायक भी नहीं रहने दिया। कहते हैं कि एक दुर्घटना

में उसका एक अंडकोष निकल गया और शिश्न टेढ़ा और विकृत हो

गया और फिर उसने बिस्तर में किसी स्त्री के साथ कपड़े नहीं उतारे।

इसके बावजूद उसे मर्दानगी से इतना प्यार था कि वह सांड के वीर्य

के इंजेक्शन लगवाया करता था. जहां तक यौन-उत्तेजना का प्रश्न

है, उसे उत्पन्न करने के लिए वह अपने चूतड़ों पर औरतों से लात

लगवाया करता। इस काम के लिए उसने कुछ तीसरे दर्जे की

अभिनेत्रियों को बाकायदा नौकरी पर रखा था। खेतों में काम करने

के लिए झुकी हुई किसान औरतों के उठे हुए नितम्बों को देखने की

लत तो उससे कभी छूटी ही नहीं।

किशोर उम्र में हिटलर एक सुन्दर, मासूम यहूदी लड़की से प्रेम

करना चाहता था, लेकिन अपनी कायरता के चलते कर नहीं पाया.

बाद में वह जिन स्त्रियो के साथ रहा, उनसे वह पहले प्रेम की

नाकामी का बदला लेता रहा और सबको आत्महत्या करनी पड़ी।

अंत में बेचारी एफा ब्राउन बची, जो कभी उसकी समूची देह नहीं

देख पायी। वह चाहती थी कि हिटलर उससे बराबरी का बर्ताव  करे,

उसे बीवी बनाये और सरकारी आयोजनों में अपने साथ बिठाये। दिन

में सात बार श्रृंगार करने के बावजूद हिटलर ने उसे कभी पत्नी नहीं

माना. एफा उसकी ज़िंदगी बदल सकती थी, उसे एक मनुष्य बना

सकती थी, लेकिन वह ताकत और अन्याय के पीछे पगलाई हुई

औरतों की तरह सिर्फ श्रीमती हिटलर होना चाहती थी। लिहाज़ा वह

सिर्फ छत्तीस घंटे के लिए उसके पत्नी बन सकी,  जिसके बाद दोनों

को मर जाना था। एफा ब्राउन इतिहास की सबसे बदनसीब स्त्री के

तौर पर रही जिसने दो बार खुदकुशी की असफल कोशिश भी की।

हिटलर के साथ उसकी कुछ तस्वीरें बची रह सकती थीं, लेकिन

हिटलर ने उन्हें भी नष्ट कर दिया और उन्हें खींचने वाले को सज़ा के

तौर पर युद्ध में झोंक दिया। वह इतिहास की त्रासद नायिकाओं में भी

जगह नहीं पा सकी जिनका नाम आने पर लोग थोड़ा अफसोस

व्यक्त कर लेते हैं। यह और बात है कि ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे

यकीन है कि हिटलर उनके आसपास या उनके भीतर अभी ज़िंदा है।

 

आइस्लिंगेन 

( आइस्लिंगेन दक्षिण जर्मनी का एक छोटा सा शहर है जहां कवि टीना स्ट्रोहेकर ने जगह-जगह कई भाषाओं की कवितायें उकेर कर एक बागीचा जैसा निर्मित किया है)

 

एक पतली नदी

छोटी बच्ची जैसी

अपनी मुट्ठियों में थोडा सा पानी लिये हुए

दौड़ती जाती है दिनों और रातों को पार करती हुई 

वह एक छोटे से शहर को लगातार बड़ा करती है

 

जगह-जगह कविताएँ हैं

बहुत सी पीड़ाओं को अपने भीतर छिपाये हुए

सडकों के किनारे चौराहों पर

फूलों पत्तों झुरमुटों के बीच

कब्रगाह के अहाते में जहां आदमी औरतें बच्चे दबे हैं

जिन्हें मार दिया गया था

दूसरे विश्वयुद्ध में यातना शिविरों में 

कविता के शब्द अब भी उन्हें समवेदना और सुकून देते हैं

 

एक बागीचा हैं जो कभी मुरझाता नहीं

आसमान एक खुला हुआ नीला दरवाज़ा है  

जहां लाल रंग की एक नर्तकी अपने अदृश्य सर के साथ 

हर दिशा में घूमती रहती है

जैसे वह शहर की घड़ी हो 

कहती हुई कि जब तुम यहाँ आते हो

तो यहाँ से लौट जाना होता है 

और जब जाते हो तो यहाँ लौटना होता है।

 

आठवें दशक के प्यार और आदर किये जाने वाले बड़े कवि और लेखक। उनके कारनामों की एक बड़ी सूची है। जनसत्ता अपार्टमेंट में रहते हैं।

संपर्क - मो. 9910402459

 


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