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अप्रैल - 2019

अंग्रेजी कविता

के श्रीलता / अनुवाद - मंगलेश डबराल

अंग्रेजी कविता

 

के श्रीलता अंग्रेज़ी की जानी-मानी कवि और उपन्यासकार हैं। उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हैं जिनमें 'बुकमार्किंग द ओएसिस’ हाल ही में छपा है। 'टेबल फॉर फोर’ उनका उपन्यास है और उन्होंने 'पेंगुइन बुक ऑफ़ तमिल पोएट्री’, 'रैपिड्स ऑफ़ ग्रेट रिवर’ और भारत-आयरलैंड की कविता के संयुक्त संकलन 'आल द वर्ल्ड्स इन बिटवीन’ का सह-सम्पादन भी किया है। श्रीलता आईआईटी चेन्नई में अंग्रेज़ी की प्रोफेसर हैं।

 

(अता मोहम्मद की मौत को तीन साल से कुछ ज्यादा हो गए हैं जिन्होंने उत्तरी कश्मीर में अकेले दम पर 200 से ज्यादा लापता और लावारिस लोगों की लाशों को दफनाने का काम किया, जिनकी शिनाख्त नहीं हो पायी। उनकी मृत्यु 11 जनवरी 2016 को हुई।)

 

मैं उन्हें दफनाता हूँ चिनारों की ज़र्द गवाही में

(कश्मीर में बेशिनाख्त लाशों की कब्र खोदने और उनका रख-रखाव करने वाले अता मोहम्मद के नाम)

 

मैं उन्हें दफनाता हूँ चिनारों की ज़र्द गवाही में,

वे लहूलुहान चाँद सरीखे चेहरे

जिन्होंने अभी जवानी की मिठास नहीं चखी थी,

जिनकी दाढिय़ाँ आना ही शुरू हुई थीं,

फर्जी मुठभेड़ें,

ज़ख्मी देहें जो बेहद ज़रूरी थीं

किसी-न-किसी के लिए कहीं-न-कहीं

वे बेटे जिन्हें उनकी मांएं कभी देख नहीं पाएंगी,

अभी-अभी जन्मे बच्चे,

जवान लडकियां जिनकी योनियाँ कटी-फटी हैं

और जिनकी आँखों में सपने थे...

मैं सभी को दफनाता हूँ,

और मेरी रगों में खून जम जाता है.

 

मेरा वक्त बीता है

गुमशुदाओं, मरे हुओं और हमेशा के लिए गायब लोगों

को नाम देते हुए,

हर नयी क़ब्र पर फातेहा पढ़ते हुए,

मेरा वक्त बीता है रोते हुए,

और मेरे साथ रोये हैं चिनार के पेड़।

चिनार के ही नीचे दफन है

मेरा यह खुशनुमा और बूढा वजूद।

 

एक दोस्त चिढाता है,

'मोहम्मद, तुम यह दफनाने का काम

बड़ी खूबी से करते हो, है न?’

वह ठीक कहता है. जो भी मिल जाए मैं हर चीज़

दफना सकता हूँ।

सिर्फ मेरी यादें हैं जिन्हें दफना नहीं पाऊंगा कभी।

           

 

बगैर पूछे बहुत सारी चीज़ें

(28 अगस्त को देशव्यापी छापों के दौरान पुणे की पुलिस ने जिन जगहों में छापेमारी की, उनमें अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद के 51-वर्षीय प्रोफेसर के सत्यनारायण का घर भी था। छापे के लिए यह झूठा बहाना बनाया कि पुलिस दस्तावेजों के अनुसार, प्रोफेसर के ससुर वरवरा राव भी वहां रहते हैं।)

 

वे आठ घंटे तक उसके घर की तलाशी लेते हैं,

बगैर पूछे ब्रेड उठा लेते हैं

जो मेज़ पर रखे-रखे भुरभुरा रही है।

वे बगैर पूछे उन प्रेमपत्रों को उठा लेते हैं

जो उसने अपनी पत्नी को बाईस साल की उम्र में लिखे थे।

वे बगैर पूछे मार्क्स की एक किताब निकाल लेते हैं

जिसे उसने आबिद के फुटपाथ से दस रुपये में खरीदा था,

उसके पुस्त पर जमी धूल देश के पतन जैसी ही मोटी है।

वे बगैर पूछे आम्बेडकर का फोटो उठा लेते हैं,

और उसके पीछे से भागती मकडी को देखकर हँसते हैं।

उनमें से एक उस पर बन्दूक दागने का अभिनय करता है।

वे बगैर पूछे उसकी पत्नी के बारे में उसकी फ़िक्र का 

ज़िक्र करते हैं और यह कि वे दूसरे कमरे में

उसके साथ क्या व्यवहार कर रहे हैं।

वे बगैर पूछे अपनी बेटी के बारे में उसके पेट में उठ रहे

पितृ-भय को भाप लेते हैं—

क्या होगा उसका अगर....?

वे बगैर पूछे उसके दिमाग से इन्क़लाबी गीतों का पता

लगा लेते हैं और उन्हें गाने भी लगते हैं,

अपनी कठोर और खिल्ली उडाती आवाज़ में।

उनकी बातें तीरों की तरह भेदती हैं स्याह रात को

जो खिड़की पर दुबकी हुई है

खामोश और भयभीत।

 

एक गुमशुदा आदमी

 

वे कहते हैं

कोई आदमी लापता हो सकता है

कोई भी निशान छोड़े बगैर।

ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं

गुमशुदा लोग कोई छाया नहीं छोड़ते,

खाने के जूठे बर्तन वाश बेसिन में नहीं छोड़ते,

और न नहाने के साबुन के चौकोर टुकड़े,

न घिसकर कुछ फूले हुए टूथब्रश,

न फ्रिज में कागज़ के पुर्जे

जिनमें प्रेम वगैरह का इज़हार होता है।

लेकिन पक्की बात है कि गुमशुदा आदमी की ज़िंदगी में भी 

विकास या ऐसी ही चीज़ें होना संभव है।

और इसलिए

एक चाकू की धार जैसी

वह छाया-उपस्थिति

जो किसी दूसरे के वाश बेसिन में खाने के बर्तन छोड़ देती है,

और नहाने के साबुन के चौकोर टुकड़े,

और घिसकर कुछ फूले हुए टूथब्रश,

और किसी दूसरे के फ्रिज में

प्रेम वगैरह का इज़हार करने वाले पुर्जे

थोडा-थोडा बिगाडती रहती है

हमारे जीवन की

ज्यामितिक संगति को.

 

मूल अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद- मंगलेश डबराल

 


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