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अप्रैल - 2019

नेपाली कविता

विनोद विक्रम केसी

नेपाली कविता

 

 

 

अपनी सुबह को बचा लो

 

घासलेट गिराया गया है

तुम्हारी सुबह के ऊपर

हाथ में फूल जैसा दीखता हुआ

माचिस का डिब्बा लिए हुए

खड़ी है अन्धकार की विशाल मुद्रा

बचा लो

हर हाल में बचा लो अपनी सुबह

 

अगर वे तुम्हारी सुबह को जलाकर

राख कर दें

तो तुम अपनी सारी जिन्दगी

कर दोगे बन्दूक के हवाले

कभी बेफिक्र प्रेमी हो न पाओगे

गुलाबों पर कविता न लिख पाओगे

अपने पहले शिशु की पहली मुस्कुराहट पर

आँखे भर न पाओगे

ताउम्र रह जाओगे बंदूकधारी

इतनी खोखली हो जायेगी दुनिया

जिसे पृथ्वी की सारी गोलियों की आवाज़ भी भर न पाएगी

तुम बन्दूक के अम्मली हो जाओ -

यही चाहते हैं वे

बन्दूक को भयंकर रोग सावित कर

ये चाहते हैं तोप चलाना तुम पर

 

अगर तुम्हारी सुबह

जलकर राख हो गयी

तो पेड़ कम पड़ जायेंगे जंगल में क्रूर तमाशे के लिए

दहशत इतनी होगी

की पेड़ से लटकाए गए

अपने कम्युनिस्ट बेटों को देखकर भी

माँए रो न पाएंगी

और गरुड पुराण के हाथों

झोपडिय़ों को एक-एक नरक बाँटा जाएगा

तुम्हारे सपने जलमग्न होंगे

लेकिन दम निकलते वक्त

वे तरसेंगे एक घूँट जल के लिए

 

तुम्हारी सुबह

जलकर राख हो गयी

तो तुम्हारी जिन्दगी के तालाब में

कमल नहीं कुल्हाड़ी खिलेगी

और तुम पर वार करेगी

पीछे से आगे से

 

बचा लो

हर हाल में बचा लो अपनी सुबह.

 

परवाह करने वाले

 

चाचा!

क्यों इतने उदास हो तुम

तुम्हे हँसाने के लिए

इतने सारे इन्तजाम किये हैं

दुनिया ने

 

सांसद वृन्द संसद में करते हैं हंगामा

इतने मनोरंजक लोकतन्त्र के भी

मजे नहीं लेते तुम

 

अखबारों ने

तुम्हे समर्पित किए है

दैनिक कार्टून कॉलम

 

फिर भी हँसी नही उछलती

तुम्हारे होठो मे

तुम्हारे दाँतो मे

चाचा, क्या बीमार हो तुम?

मनोचिकित्सक को दिखलाया क्या?

 

क्यों नही हँसते तुम

तुम्हे हँसाने के लिए

खिलखिलाता वह कपिल शर्मा

एक साल का सौ करोड़ लेता है

अपने लिए न सही

कम से कम उसके लिए हँसा करो

ताकि चलती रहे उसकी रोजी-रोटी शानदार

 

तुम्हे पता नहीं है क्या

कितना अच्छा होता है हँसना

सेहत के लिए

स्वास्थ्य विज्ञान कहता है

जो हँसता है खूब

वह जीता है लम्बी उम्र

तुम्हारे होठो मे है

तुम्हारे दाँतो मे है तुम्हारी दीर्घायु

मुस्कुराया करो

खुश रहा करो

 

ऐसे कौन से

दर्द के पर्वत के नीचे दबे हो तुम

ऐसा क्या हुआ

हँसना ही भूल गए

 

यही न

कि इस साल फसल अच्छी नहीं हुई

बेकारी से तंग आकर तुम्हारे बड़े बेटे ने

तीन बार आत्महत्या की कोशिश की

 

यही न

कि किसी रंगीन मिज़ाज के बड़े शहर ने

तुम्हारी बेटी को दफना दिया अपने आलिंगन मे

 

यही न

कि तुम्हारी बीमार पत्नी खून की उल्टियाँ करती है

तुमसे छुप-छुपकर

 

अब क्या कहें तुमसे ?

तुम बैठे हो दिल छोटा करके

इतनी छोटी छोटी बातों मे

और हँसी तो जैसे तुमने जलाकर कर दी है राख

 

हम तुम्हे

इतना जुल्म ढाने नही देंगे खुद पर

तुम्हे हँसना होगा

अपने पीले दाँत दुनिया को

दिखाने से डरते हो क्या?

हमारी कम्पनी इसी का तो हल लायी है

आधुनिक तकनीक और आयुर्वेद को मिलाकर

हमने बनाया है अद्भुत टूथपेस्ट

इसलिए

कि चाचा, हम करते हैं तुम्हारी हँसी की परवाह.

 

चावल का पहाड़

 

दुस्वप्न की तरह खडा है चावल का पहाड़

जिसके आगे बिखर जाते हैं सारे स्वप्न

टूट जाता है हर इन्द्रधनुष

एक पतली लकड़ी की तरह

 

इसको कोसने में

मेरे बाप-दादा ने गंवा दी सारी उम्र

लेकिन मै कतई न करुंगा यह भूल

 

पहाड़ कभी नहीं था भयानक

उस आदमी ने इसे ऐसा बना दिया

बहुत मासूम था पहाड़

वह था अपने ही गर्भ में दबे खनिजों से बेखबर था

अपनी ऊंचाई की भव्यता से बेखबर

उसकी यही मासूमियत ले डूबी उसे

उस आदमी के हाथों

पहाड़ लुटता रहा सदियौं तक

 

पहाड़ को खोखला कर देने के बाद

उस आदमी ने चोटी पर बनाया

चावल का एक विशाल गोदाम

और हमारे खेतों से

फसलें गायब होने लगीं रातोंरात

 

मै जानता हूँ

नमक से भरे मर्माहत गीत

या ढेर सारे शिकवे

या आक्रोश का कोई बौखलाता हुआ तूफ़ान

ये सब नहीं बन सकते औजार

जो काम आ सकें

इस पहाड़ पर चढते के समय

 

इससे पहले कि भूख

मुझे इन्सान से गिराकर बना दे जानवर

इससे पहले कि मै उस पशुता को प्राप्त हो जाउँ

जिसके बाद विवेक घास बन जाता है

और घास विवेक

और पता नहीं चलता कौन किसको खा रहा है

मुझे पहुँचना होगा

इस पहाड़ की चोटी पर

और पकडऩा होगा उस आदमी का गरेबान

 

मै निकल चुका हूँ घर से।

 

एक खास मौसम

 

उसने कहा - 'भाई साब

आप तो हीरो दिखते हैं’

उधर मेरे पड़ोस के बच्चे

मुझे भूत कहते हैं

 

उसने कहा- 'भाई साब

आपकी आँखे बहुत सुन्दर हैं’

मेरे पड़ोस के बच्चों को

वे लगती हैं टमाटर की तरह

 

उसने कहा- 'भाई साब

आपकी नाक को बारीकी से तराशा है कुदरत ने’

मगर मेरे पड़ोस के बच्चे मेरे मुंह पर कहते हैं-

'ऐसी नुकीली नाक

किस चोर बाजार मे मिलती है, अंकल?’

आपको बता दूं

मेरे पड़ोस के बच्चे बहुत अच्छे हैं

मेरा मजाक उडाते हैं

पर मुझे प्यार करते हैं

 

ये बच्चे नहीं होते तो

मै भूल ही जाता कि एक खास मौसम में

मै उनको अच्छा लगता हूँ, बहुत अच्छा

 

वह

जो राजनीति सीख रही अपनी सन्तति को सिखाता है-

'इलेक्शन के मौसम मे

हर कुत्ते को हिरन कहा करो

फिर लोकतन्त्र की गली भी तुम्हारी

लोकतन्त्र का जंगल भी तुम्हारा.’

(2017,जब नेपाल में स्थानीय सरकार का निर्वाचन हो रहा था.)

 

इतने रोमान्टिक भी क्या हों

 

अब इतने रोमान्टिक भी क्या हों

कि बारिश को आसमान के आंसू कहें

और पड़ोस के भूखे बच्चों के आंसुओं को

नाली के पानी से कम आंकें

 

अब इतने रोमान्टिक भी क्या हों

कि डूबते हुए सूरज पर

लम्बी शायरी छांटें

और रात भर खाँसती माँ की तबीयत से बेखबर

दूसरे कमरे मे खर्राटे भरें

 

अब इतने रोमान्टिक भी क्या हों

कि सर्दी मे फूल के काँपने से आँखे भर जाएँ

और शीतलहर से मरे हुए देहातियों की खबर तक न पढ़ें

तुम जिस तरह हो रहे हो रोमान्टिक

उस तरह तो कविता से बहुत बदसलूकी होगी

क्रूरता जब बोलती हो इतनी मीठी जुबान मे

तो यही लगेगा हर कातिल को

कि कत्ल की भी होती है अपनी एक मिठास

 

अब इतने रोमान्टिक भी क्या हों

कि तिनका भर रिएलिस्टिक भी न हो पायें.

 

 

 

नेपाली कवि विनोद विक्रम केसी का जन्म काठमांडू के एक गांव चाल्नाखेल में चालीस साल पहले हुआ। दस साल से पत्रकारिता के पेशे में हैं। एक कविता संग्रह 'भूख का क्षेत्रफल’ प्रकाशित। नेपाली प्रगतिशील कविता के मुख्य रचनाकारों की संगत में हैं। हिन्दी टूटी फूटी है, उसमें यदाकदा लिखते हैं पर हिन्दी के प्रति गहरा लगाव है


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