प्रतिरोध की कविता
पेरुमाल मुरुगन/प्रस्तुति : यादवेन्द्र
भारतीय कविता
2014 में पुनरुत्थानवादी हिन्दू उग्रवादियों द्वारा एक उपन्यास ( अंग्रेजी में 'वन पार्ट वुमन’ और हिंदी में 'नर नारीश्वर’ शीर्षक से उपलब्ध) पर हिंसक बवाल कर के डराने धमकाने की घटनाओं के चलते ''अपने लेखक की सार्वजनिक मृत्यु की घोषणा’’ करने वाले तमिल के प्रमुख कवि कथाकार पेरुमाल मुरुगन ने आत्मनिर्वासन के दिनों में महत्वपूर्ण कवितायें लिखीं।बाद में जब मद्रास उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसले में मुरुगन को अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान की और फिर से लेखन करने का आग्रह किया तब उनकी बिल्कुल नए तेवर की कविताओं का प्रकाशन सम्भव हो पाया। विवाद थमने का बाद लेखन फिर से शुरू करने पर पेरुमाल मुरुगन ने अपने कुछ वक्तव्यों में कहा : ''इस अवधि में भी मैंने लिखना बंद नहीं किया, अपने निर्वासन के दौरान भी मैं लगातार लिखता रहा। बस यह फैसला किया था कि इन्हें छपने न भेजूं। शुरू के तीन महीने तो कुछ नहीं लिखा...फिर अचानक आवेग में आकर एक कविता लिख डाली... अंदर से आती किसी चीज ने मुझसे वह लिखवा ली... इस पहली कविता ने फिर मेरी उंगलियाँ पकड़ ली और अन्य कविताएँ लिखवाती रहीं। इससे पहले मेरे चार कविता संकलन छप चुके थे जिनमें लगभग 200 कविताएँ शामिल थीं - दिलचस्प बात है कि अकेले इस दौर में मैंने 200 कविताएँ लिख डालीं। मुझे लगता है इस दौरान कविता मुझपर हावी हो गयी थी।’’, मुरुगन कहते हैं। 'अब मैं एक तरह की सेल्फ सेंसरशिप खुद पर लगाने लगा हूँ...मुझे लिखने के लिए जब अपनी पसंद का विषय और किरदार चुनने की आज़ादी नहीं है तब कर भी क्या सकता हूँ - मुझे बेहद सजग रहना पड़ता है। मेरे पास अपने लिखने की शैली बदल डालने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है। पहले मैं अपनी रचनाओं में बड़ी साफ़गोई से जातियों, सड़कों, शहरों इत्यादि के नाम ले लेता था पर अब ऐसा करना संभव नहीं रहा। अब मैंने घुमा फिरा कर बात कहने का रास्ता ढूंढ़ लिया है जिससे पाठक सीधे सीधे किरदारों को पहचान कर मुझ पर आक्रमण न करे।’ (टाइम्स ऑफ इंडिया/फरवरी 2018) कोर्ट के फैसले के बाद पेरुमाल मुरुगन जिस किताब के साथ पुनर्जीवित हुए उस काव्य संग्रह का तमिल शीर्षक है Kozhaiyin Paadalgal जिसमें संकट भरे बीच के समय में उनके परिवेश और मन के हालात बयान करती लगभग 200 कविताएँ सम्मिलित हैं। तमिल में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए जल्दी ही अंग्रेजी में उनका अनिरुद्धन वासुदेवन का सुंदर अनुवाद पेंग्विन ने 'सांग्स ऑफ ए कावर्ड’ शीर्षक से छापा। इन कविताओं में एक ओर जहाँ हमारे समाज में अभिव्यक्ति की आज़ादी की धुँधली सी रेखा की डोलती हुई परछाँई मिलती है तो दूसरी ओर हर जोर जुल्म से टक्कर लेती हुई रचनाकार की परिवर्तनकारी भूमिका का संकल्प। यहाँ पेरुमाल मुरुगन की कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं:
कायर का गीत
विपत्ति किसी को नहीं घेरती किसी कायर के चलते कभी दंगे नहीं भड़कते किसी कायर के चलते कहीं कुछ नष्ट नहीं होता किसी कायर के चलते
कोई कायर निकालता नहीं अपनी तलवार म्यान से कि परखे इसकी धार मार कर किसी पेड़ पर दरअसल कोई कायर तकवार थाम कर कहीं बाहर निकलता ही नहीं कभी कोई डरा है भला किसी कायर से?
कायर भय खाता है अंधेरे से उसके मुँह से गीत फूटने लगते हैं तब कायर थरथर कांपता है दिन के उजाले में जब निकलता है उसके मुँह से तब कविता प्रवाहित होने लगती है
प्रकृति गले लगाती है कायर इंसान को वह न तो कोई पत्ती नोंचता है न नष्ट करता है कोई फूल प्रकृति गले लगा लेती है आगे बढ़ कर कायर को माँ हमेशा दूध पिला कर संभालती है अपने बेसहारा काँपते बच्चे को प्रकृति स्वागत करती है कायर का वह बाहर तभी निकलता है जब लगती है उसको भूख वह आने आप में मगन रहता है किसी के साथ छेड़छाड़ नहीं करता
मुश्किल होता है किसी कायर के लिए घर के अंदर दड़बे जैसे दुबके रहना वह हरदम व्यस्त रहता है कोने अंतरे को संवारने में
आपको कभी नहीं दिखेगा कोई कायर किसी खेल के मैदान में ऐसा भी कभी नहीं होता कि वह बह जाए जोश में आकर राष्ट्रीय भावनाओं में यहाँ वहाँ कोई कायर कभी भर्ती नहीं होता किसी राजनैतिक पार्टी में उसकी नहीं होती अपनी कोई विचारधारा वह नहीं होता किसी नेता का अंध अनुयायी कोई कायर नहीं बना सकता कोई पोस्टर न ही नहला सकता है मूर्तियों को दूध से वह उन्मत्त हो कर न तो सीटी बजा सकता है न उछल कूद कर सकता है बावला हो कर कायर तो शामिल नहीं हो सकता किसी जुलूस में भी
कोई कायर किसी का कुछ चुराता नहीं वह तो उनसे भी नहीं जूझ सकता जो उसके असबाब उठा कर भाग जाते हैं....
तुम्हें बताने के लिए
उनको भरोसा नहीं होता कि मैं मर चुका हूँ मौत का क्या है,यह तो कुदरती है लोग बड़े होते हैं बूढ़े होते हैं मर जाते हैं लोग बीमार होते हैं मर जाते हैं लोग दुर्घटनाओं से भी मर जाते हैं बाढ़ से भूचाल से लोग मर जाते हैं सर्दी से गर्मी से लोग मर जाते हैं हत्या कर दी जाती है किसी की और कोई खुदकुशी कर मर जाता है
मेरी मृत्यु में अजूबा कुछ नहीं इनकी तरह ही है यह अब इसे कत्ले आम का नाम दो या एक कायर की खुदकुशी कह लो इसको चाहे तो ड्रामा कह लो झूठ भी कह सकते हो एक चाल कह सकते हो तुम्हारे लिए यह ढोंग भी हो सकता है जब सुविधानुसार मेरी मृत्यु के लिए अपना नाम ढूँढ़ लोगे और अपने दैनिक काम धंधे में लग जाओगे मैं अपनी मृत्यु के पलों का अंधेरा चीर कर बाहर आऊँगा चमकता हुआ एक सितारे सरीखा और स्थिर होकर बैठ जाऊँगा आकाश में यह सितारा ही बोलता रहेगा आज कल और सदा सदा
अपना गाँव शहर
इतनी जल्दी भी क्या है कि हर किसी से पूछते चलते हो कहाँ है उसका गाँव शहर
ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए संभव नहीं है बताना अपना गाँव शहर ऐसे भी हैं लोग जिनके सपनों में आता रहता है उनका गाँव शहर
शायद ऐसे लोग भी हैं जिन्हें भूल चुके हैं उनके गाँव शहर और अपना गाँव शहर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ आये लोग भी आसपास मिल ही जायेंगे
ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो अपने गाँव शहर में वास करते हैं पर कभी रहते नहीं वहाँ ऐसे लोग भी मिल जायेंगे जिन्हें खदेड़ कर भगा दिया दूर अपने गाँव शहर ने ही
इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ लोगों के पास ऐसा कुछ है ही नहीं जिसे कहा जाता है अपना गाँव शहर
सुरक्षा
सड़क के आवारा कुत्तों की नोंच झपट से बचने को वह जान बचा कर भागती है और लोहे के बड़े गेट के सामने धप से बैठ जाती है मादा घर में भी भौंक रहे हैं कुत्ते गेट के अंदर से....
एक नई भाषा
दिन भर में मेरे पास की सारी शब्द संपदा चुक गयी कुछ भी नहीं बचा जीवन भर जिनको इकठ्ठा किया था इतने जतन से
अब चाहे कितना भी बोल लूँ कितना भी बतिया लूँ घिसी पिटी चीजों को कैसे दुरुस्त कर पाऊँगा? कितनी बार पैबंद लगाऊँ भला चद्दर धसक रही हो तब?
मैंने थामी अपनी भाषा और ले जाकर फेंक आया बाहर सड़क पर
अब मेरे पास है एक नई नवेली भाषा चुप्पी
जो चाहो वह बोलो
आस्तिकता,नास्तिकता जाति, धर्म समुदाय,भाषा ईश्वर,जीव किसान,मजदूर सरकार,पार्टी,नेता पर्यावरण,आतंकवाद ऑर्गेनिक खेती काला धन,चुनाव साहित्य,कला,संगीत अनुसंधान, विज्ञान पद, दायित्व जो जो मन में आये जो चाहो वह बोलो
पर बोलो मेरे शब्द, मेरी बात
सिर्फ यह आवाज
अब तक मैं नाहक सिर मारता रहा था और यह छोटा सा पेंच/चालाकी नहीं जानता था अब तक मैं सिर्फ कान बना रहता था चिडिय़ों के गान सुनने वाला जिनमें मुझे संगीत सुनाई देता था
जैसे त्योहारों में बजाए जाते हैं लाउड स्पीकर जो जब जिस तरफ चाहें मोड़ दिए जाते हैं उनकी तरह अब मैंने अपने कान भी मोड़ दिए हैं इंसान की तरफ़, सुनने को उनकी आवाज़
शब्दों के शोर गुल में मेरे कान बहुत बड़े हो गए हैं और मेरे होंठ सिकुड़ कर चुप हो गए हैं जैसे मुड़ तुड़ जाती हैं विशाल पेड़ की पत्तियाँ मुरझा कर
अब सिर्फ एक शब्द है मेरे पास न और मेरे होंठ चीन्हते हैं सिर्फ एक आवाज़ म म (चुप्पी)
( अनिरुद्धन वासुदेवन के अंग्रेजी अनुवादों पर आधारित सामग्री का चयन और हिंदी पुनर्रचना : यादवेन्द्र ) |