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जनवरी - 2019

एक कहानी : बकमिन-बानी

स्कंद शुक्ल

 विज्ञानवार्ता

 

 

 

 

काजल की कोठरी में जितनी बार सयाना जाता है ,

उतनी बार वह जानता है कि वह काजल को कुछ भी नहीं जानता।

 

फुटबॉल का प्रहार और ड्रेसिंग-टेबल का शीशा चकनाचूर !

नहीं, बॉनी ने जानकर यह शैतानी नहीं की थी। शैतानियाँ जानकारों के बस का काम वैसे भी नहीं। मम्मा के कमरे के पास वह अपनी नयी फुटबॉल से कई दिनों से खेल रहा था। मना करने के बाद भी। लेकिन बालमन और हिदायतें? दायरों का उल्लंघन जितनी बार बचपन करता है, उतनी बार हम जानते हैं कि अभी वह जीवन्त है। सो बॉनी की किक मस्ती में तनिक ऊँची उठी और...।

पापा अगले कई दिनों के लिए बाहर हैं। वे होते, तो घर में माहौल दूसरा होता। लेकिन मम्मा से सॉरी कहा जा सकता है। शब्द झूठा होगा और पश्चात्ताप क्षणिक। लेकिन मम्मा मम्मा हैं। वे मा करते हुए अगली शैतानी सुनने-देखने के लिए मन को तैयार कर लेंगी। इसलिए बॉनी टाट एक स्लिप निकालता है। उस पर बड़ा सा 'सॉरीलिखता है। नीचे एक स्माइली बनाता है। उसे शेष रह छूटे चटके शीशे के एक टुकड़े पर चिपका देता है।

वह मम्मा का उनके कॉलेज से आते ही सामना नहीं कर सकता। लेकिन स्लिप कर सकती है। स्लिप पर लिखा 'सॉरीउसकी ग़ैरमौजूदगी में मामला सँभाल सकता है। इसलिए ऊधम संक्षिप्त कागी सुलेख के सुपुर्द और बॉनी बाबा छूमन्तर।

रात को मे पर डिनर लगा है। मम्मा के सामने वह अभी-अभी पड़ा है। वे कॉलेज से जब लौटीं, तो वह घर से बाहर खेलने गया था। फिर लौटते हुए अपने एक दोस्त के यहाँ रुक गया। वहीं से फोन कर दिया कि वापसी में थोड़ी देर होगी। इतना समय लिया उसने कि स्थिति सँभल जाए, जब तक वह पहुँचे। अब वह खाना खाते हुए मम्मा के चेहरे पर प्रतिक्रिया खोजने की कोशिश में है।

पर नहीं। मम्मा कुछ प्रतिक्रियात्मक नहीं कर रहीं। वे पढ़ाई के बारे में पूछ रही हैं, खेल के शाम के सेशन के बारे में भी। दोस्तों के विषय में भी। पापा का फोन भी बीच में आता है और दोनों की उनसे बात हो जाती है। लेकिन पूरे भोजन के दौरान ड्रेसिंग-टेबल के शीशे पर कोई भी बात नहीं होती। अन्तत: जब हाथ-मुँह धोकर दोनों माँ-बेटा उस शैतानी के घटनास्थल के बगल से निकलते हैं, तब बॉनी को मुँह खोलना ही पड़ता है; ''मम्मा, सॉरी।’’

मम्मा पलटकर उसे पास बुलाती हैं। ''अरे, आज यह बड़ी अद्भुत बात हुई। एकदम अमेज़िंग।’’ उनके मुँह से निकलता है। ''जानते हो तुमने क्या कर दिया?’’

बॉनी अब भी अटपटा महसूस कर रहा है। वह समझ नहीं पाता। ''क्या मम्मा? समझा नहीं।’’

''ड्रेसिंग-टेबल पर तुम्हारी फुटबॉल की किक ने मुझे कार्बन के कुनबे की याद दिला दी। कार्बन को जानते हो तुम?’’

बॉनी सिर हिलाता है। वह कक्षा सात में है, जहाँ कार्बन नामक रासायनिक तत्त्व से उसका परिचय हो चुका है। उसे अच्छा लगता है कि उसकी शैतानी की कहानी अब केमिस्ट्री की ओर रुख़ कर गयी है।

''हाँ। जानता हूँ।’’

''क्या जानते हो? बताओ।’’

''यही कि कार्बन प्रकृति में खूब पाया जाता है। हम-सब कार्बन से ही बने हैं। हमारे भीतर उसी के तरह-तरह के रसायन मौजूद हैं। हम सब कार्बन के ही पुलिन्दे हैं।’’

''हम्म। जब तुमने फुटबॉल से शीशा तोड़ा, तो कार्बन के तीन प्रकार मानो एक जगह पर आकर जमा हो गये। बल्कि चार। ध्यान से जाकर वहाँ देखो : तुम्हें कार्बन का कोई रूप नर आता है?’’

बॉनी ड्रेसिंग-टेबल के पास जाता है और तलाशता है। उसे एक काजल का आइलाइनर मिलता है। उसे वह लेकर मम्मा की ओर इशारा करता है।

''हम्म।’’ वे उठती हैं और नीचे का एक दरा खोलती हैं। उसमें एक हीरे की अँगूठी है। उसे वे आइलाइनर के साथ बॉनी के हाथ में रख देती हैं। ''ये दोनों कार्बन ही हैं बॉनी। चारकोल वाला आइलाइनर हो या जगमगाता हीरा। दोनों हैं एक ही रासायनिक तत्त्व।’’

बॉनी ने इतनी केमिस्ट्री पढ़ी है। लेकिन मम्मा ने तो तीन-चार का नाम लिया है। फिर वह तीसरा और चौथा कार्बन-प्रारूप कहाँ है ?

''आपने तो कहा था कि एक-दो और ...’’

''वे तुम्हारे बताने के लिए रख छोड़े हैं। अब शैतानी की है ,तो इस क्वेश्चन का आंसर तो देना ही पड़ेगा। शैतानियों के बदले में अब हर बार जानकारी साझी करनी पड़ेगी। पढऩा पड़ेगा। सोचना पड़ेगा।’’

बॉनी को तो लगा था, मम्मा भूल गयी हैं। अरे पर उन्होंने तो बात बिठा ली है भीतर। अब पनिशमेंट इस तरह पढ़ाई-सम्बन्धित प्रश्न के रूप में मिल रही है। या फिर न बता पाने के बाद मिलेगी? शायद। पता नहीं।

दण्ड मिलना ही है, तो मिले। क्या किया जा सकता है। बेहतर है, हाथ खड़े कर दिये जाएँ। सो वह कह देता है, ''मुझे नहीं पता, सॉरी।’’

''अरे, तुम्हारी पेंसिल की लिखाई भई। वह भी तो कार्बन ही है न। क्या कहते हैं उसे बताओ?’’

इसका जवाब अब बॉनी को पता है। वह तपाक से बोल उठता है : ''ग्रेफाइट!’’

''हाँ, तो पेंसिल में मौजूद ग्रेफाइट, अँगूठी में जड़ा हीरा और आइलाइनर में उपस्थित चारकोल, सभी कार्बन हैं। अब तुम्हारे लिए स्टार क्वेश्चन! बता दोगे तो शैतानी के बावजूद ईनाम मिलेगा। बताओ, फुटबॉल देखकर कोई कार्बन की क़िस्म याद आती है तुम्हें?’’

अब बॉनी चुप है। उसे इसका जवाब नहीं पता है। मम्मा उसे पास बिठाकर उस फुटबॉली कार्बन की कहानी सुनाने लगती हैं, जो ग्रेफाइट-हीरे-कोयले का ही भाई-बन्धु है और जिसके ऊपर विज्ञान के क्षेत्र में ढेरों क्रान्तिकारी काम किये जा रहे हैं।

''कार्बन को हम जानने का दम्भ करते हैं बॉनी। ऐसा लगता रहा है हमें कि इसे तो हम जानते ही हैं। कार्बन क्या है? साधारण है। सामान्य है। हर जगह है। कोयला है। हीरा है। ग्रेफाइट है। काजल है। कालिख है। हम-सबमें है। हम-सब इससे बने हैं। ऐसा क्या है इसके बारे में जो हमें नहीं पता होगा।’’

लेकिन फिर इसी कार्बन ने बार-बार इंसान को चौंकाया है। उसे बताया है कि साधारण-सामान्य के बारे में हम कितने अज्ञानी हैं। कितने अल्पज्ञ। सन् 1985 में हुई उस खोज ने इसी तरह वैज्ञानिकों को अचम्भित कर दिया था जब उन्होंने लेर किरणों की बारिश ग्रेफ़ाइट पर की थी।

 

''कैसा अचम्भा?’’

''लेर-किरणों ने ग्रेफाइट को वाष्पीकृत किया। फिर जब इस गैसीय ग्रेफाइट को एक गैस हीलियम से गुारा गया, तो कार्बन के एक नये रूप का ज्ञान मिला। यह गोल-गोल फुटबॉल के आकृति के साठ परमाणुओं वाले कार्बनी पिंजड़े थे। लेकिन बहुत ही नन्हे। इतने नन्हे कि इनका आकार नैनोमीटरों में नापा जा सके। लेकिन इन सूक्ष्म फुटबॉली गोलों ने रसायन विज्ञान के साथ ही आम लोगों को अचम्भित कर दिया। कितना कम जानते हैं हम सबसे अधिक प्रचलित रासायनिक तत्त्व के बारे में!’’

''लेकिन  हैरत अंगे बातें हमें कार्बन के बारे में ही क्यों पता चलती रही हैं मम्मा? तत्त्व तो और भी हैं न?’’

''क्योंकि कार्बन-परमाणुओं के पास स्वयं-जैसों के साथ जुडऩे के नये-नये ढंग ढर्रे हैं। नयी-नयी सर्जनाएँ हैं। नया-नया बना सकने का हुनर है। वह है एक ही मूलत:, लेकिन अपने समाज में प्रयोगात्मक ढंग से सम्बन्ध स्थापित किया करता है। एक ओर हम हैं : इतने कार्बन-युक्त होने के बाद भी अपने भीतर मौजूद प्रचुरतम तत्त्व से कुछ सीख ही न पाये!’’

मम्मा की कई बातें बॉनी की समझ से परे निकल जाती हैं। उसका आकर्षण अभी जानकारियाँ हैं, ध्यानकारियाँ नहीं। ग्यारह वर्ष की उम्र में अभी वह फैक्टों को एकत्र कर रहा है, उनसे सिंथेसिस आगे होगी। कदाचित। ''इस नये कार्बन के प्रकार को नाम क्या दिया गया मम्मा?’’

''इसके नाम की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प रही। एक आर्किटेक्ट बकमिंस्टर फुलर के नाम पर इसे बकमिंस्टर फुलेरीन कहा गया। फुलर ने गोलाकार गुम्बदों को लोकप्रिय किया था; इन्हें जियोडेसिक डोम कहा जाता है। इनके जैसे दिखने वाले इन नन्हे कार्बनी फुटबॉलों को इसीलिए बकमिंस्टर फुलेरीन कहा गया। बोलचाल की भाषा में बकीबॉल या बकीगेंद। रा अपनी फुटबॉल लाना तो बॉनी।’’

बॉनी कुछ समझ नहीं पा रहा। मम्मा क्या करना चाह रही हैं?

''अरे ,लेकर तो आओ।’’

फुटबॉल को हाथों में लेकर मम्मा उसे उसकी सतह समझा रही हैं। फुटबॉल की सतह पर चमड़े के षट्कोण भी हैं और पंचकोण भी। इसी तरह बकमिंस्टर फुलेरीन की सतह पर भी कार्बन के साठ परमाणु इसी तरह से षटकोणी-पंचकोणी ढंग से जुड़े हुए हैं। एकदम इस नये कार्बन प्रारूप को तुम कार्बन-परमाणुओं की नन्ही फुटबॉलें समझो।’’

''पर इसका मिलना मिलना ही भर तो है न मम्मा। मिलने से क्या हो गया? आई मीन... यह तो इतनी मशक्कत के बाद बनाया गया न लैब में। अपने-आप तो नहीं बन सकता था न? और फिर इसका कोई यू कहाँ?’’

''यह बहुत बड़ा भ्रम है बॉनी कि जो लैब में बनता है, वह अप्राकृतिक है। दरअसल लोग प्रकृति को पृथ्वी समझने लगते हैं। प्रकृति पृथ्वी नहीं है, उससे बहुत-बहुत बड़ी है। ये तमाम दूरस्थ तारे, ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु, नीहारिकाएँ, आकाशगंगा-गैलेक्सियाँ --- क्या ये प्रकृति नहीं हैं? हैं। ये सभी प्रकृति हैं। और वैज्ञानिकों ने पाया कि कई तारों के इर्दगिर्द आसमानी गैसों में यह कार्बन-प्रारूप भी मौजूद है। तारों से हम-तक आते प्रकाश को हमने पढ़ा तो पाया कि अन्तरिक्ष में मौजूद यह बकमिंस्टर फुलेरीन इस आ रहे तारक-प्रकाश की खास तरंगों को रोकने का भी काम करता है।’’

''पर इस्तेमाल हम तो नहीं कर रहे यहाँ इसका?’’

''वही बताने जा रही हूँ। कर रहे हैं। इन नन्हे कार्बनी पिंजरों में दवाएँ भरकर हम मानव-शरीर में पहुँचा सकते हैं। नैनो तकनीकी के इस युग में इन नन्ही थ्रीडी गेंदों का बड़ा इस्तेमाल हो रहा है। इनके भीतर दवाएँ रखकर शरीर में प्रविष्ट कराना। तरह-तरह के रोगों से लडऩा। मनुष्य की वृद्धावस्था और कैंसर जैसी समस्याओं से लडऩे में तो वैज्ञानिकों का पूरा एक तबका ही इन गेंदों के माध्यम से लगा हुआ है।’’

बॉनी इतनी सारी जानकारी को मन-ही-मन समेटता हुआ चुप हुआ बैठा है। उसकी स्थूल फुटबॉली शैतानी से बात हटते हुए रसायन विज्ञान की सूक्ष्म फुटबॉलों तक आ गयी है। दण्ड का इतना सकारात्मक और ज्ञानवान् प्रारूप उसने पहले कभी नहीं सोचा था। पर यह बात उसे रूर हैरान कर रही है कि मम्मा ने इस तरह से उसे कहानी क्यों सुनायी --- वे सीधे-सीधे उसे समझा भी सकती थीं या फिर उसकी शैतानी को नरअंदा भी कर सकती थीं।

वह मन-ही-मन ख्यालों में खोया हुआ है। उसे लगता है कि वह सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो चला है और किसी खोखली कार्बनी बकीगेंद में बैठा शरीर की यात्रा पर निकल पड़ा है। रक्तप्रवाह में तैरता हुआ, अलग-अलग अंगों में घूमता हुआ, वह प्रकृति के अब तक अदर्शित सत्यों से साक्षात्कार कर रहा है। आख़िर प्रकृति उतनी ही थोड़े है, जितना हम साधारणत: उसे सोच बैठते हैं!

''अब जब शैतानी करोगे, तो कुछ-न-कुछ सीख उसमें से निकालकर दी जाएगी। तुम्हारी ही शैतानी से तुम्हें हैरान किया जाएगा। पॉज़िटिव रीइंफोर्स्मेंट का इस्तेमाल करके तुम्हें बताया जाएगा कि आइलाइनर-हीरा-पेन्सिल की नोक कितने एक-से हैं।’’ मम्मा कहती जा रही हैं।

''और बकमिंस्टर फुलेरीन भी।’’

''बिलकुल। तुम्हें जानना है बेटा कि तुम्हारे आसपास ही कितना कुछ है ,जिससे तुम अनजाने-अछूते हो।’’

''पर मम्मा... जान लेने से तो मैं बड़ा हो जाऊँगा!’’

''तो बचपन का अर्थ एक ही शैतानी बार-बार करना थोड़े ही होता है। बचपन का मतलब है, एक शैतानी करना --- उससे सीखना , फिर उसे न दोहराना। फिर नयी शैतानी तलाशना, उसे करना। फिर उससे सीखना।’’

''इस तरह से तो एक दिन सारी शैतानियाँ त्म हो जाएँगी न मम्मा। तब क्या करूँगा?’’

''नहीं होंगी। अगर नयी शैतानियाँ तलाशोगे- तलाश सकोगे, तो नहीं होंगी। जो नये-नये कुतूहलों को खोजते फिरते हैं, सदा शिशु ही रहते हैं बॉनी। बड़े वे होते हैं , जो पुरानी ही शैतानियों को बार-बार दोहराते हैं, दोहरा पाते हैं। सीखकर भी नहीं सीखते। सीखना ही नहीं चाहते। तो इस तरह बड़े होना है कि कोई दोष दोहराया भी न जाए और बचपन भी बना रहे। जानते हो अच्छी शैतानियाँ करने में भी बड़ा सोचना पड़ता है!’’

बॉनी हँस पड़ता है और उनकी गोद में फुटबॉल लिये लेट जाता है। कितनी प्यारी हैं मम्मा। कितना अधिक रहता है वह उनके साथ, पर कितना कम जानता है, उनके रूपों को। घर में ग्रेफाइट-सी कोमल, समाज में हीरे-सी प्रतिष्ठित, काजल-सी सदा-सर्वदा सुरूप और... बकमिंस्टर-सी सूक्ष्म-सुन्दर किंतु कल्याणकारी सोच वाली।

 

 

( सन1985 विज्ञान के लिए एक अद्भुत वर्ष था। इस साल रिचर्ड स्मॉली, रॉबर्ट कर्ल  और हैरी क्रोटो ने कार्बन के नये प्रकार को खोज निकाला जिसका नाम उन्होंने विश्व-प्रसिद्ध आर्किटेक्ट बकमिंस्टर फुलर के नाम पर बकमिंस्टर फुलेरीन रखा। यह विज्ञान की भवन शिल्पकारिता के प्रति व्यक्त की गयी कृतज्ञता थी।

कार्बन एक सामान्य सा दिखने वाला तत्त्व है , जो जीव-जगत् में सभी के भीतर है। कार्बन न होता, तो हम न होते। न पेड़-पौधे , न जीव-जन्तु। लेकिन कार्बनदेही होकर भी हम कार्बन को कितना कम जानते हैं, यह अचम्भित करने वाली बात है। यह एक ऐसा तत्त्व है, जिसके सबसे ज़्यादा प्रकार मिलते हैं। इन प्रकारों को रसायन विज्ञान एलोट्रॉप कहता है। यानी एक ही भौतिक अवस्था में यह तत्त्व अलग-अलग ढंग के रूपों में पाया जा सकता है। यानी ठोस भौतिक अवस्था में यह कार्बन हीरा हो सकता है, कोयला हो सकता है, कालिख हो सकता है, ग्रे$फाइट हो सकता है और बलमिन्स्टर फुलेरीन भी। और इतनी विविधता केवल इसलिए क्योंकि हर एलोट्रॉप में कार्बन के ही परमाणु अलग-अलग ढंग से अलग-अलग डिायन में जुड़ते हैं। अलग अंदा में परस्पर जुड़ाव, तो अलग-अलग एलोट्रॉप।

बकमिंस्टर फुलेरीन सुन्दर नन्ही फुटबॉलें हैं कार्बन-परमाणुओं की। पृथ्वी के किसी उन्नत रसायन-प्रयोगशाला से लेकर दूर आसमान में किसी तारे की भट्टी के प्रकाश को छानकर हम-तक पहुँचाने वाली अन्तरिक्षीय गैसों के बीच --- हर जगह आपको बकमिंस्टर फुलेरीन के दर्शन हो सकते हैं। कार्बन का ऐसा एलोट्रॉप जो परमाणुओं का पिंजड़ा है। इसी कारण इसका नैनो तकनीकी और विशेषकर चिकित्सा-जगत् में बड़ा महत्त्व है। विषाणुओं से लडऩा हो, चाहे दवाओं की देह के भीतर डिलीवरी, बुढ़ापे को रोके रखना हो , चाहे कैंसर की रोकथाम व उपचार --- हर जगह आपको इस फुटबॉली फुलेरीन की महिमा मिल जाएगी।

सामान्य से कार्बन के इसी अद्भुत से प्रकार की खोज के लिए ही इन वैज्ञानिकों ने सन् 1996 में रसायन-विज्ञान का नोबल पुरस्कार पाया । )

 

पेशे से चिकित्सक, स्कंद शुक्ल विज्ञानवार्ता स्तंभ के नियमित लेखक हैं। लखनऊ में रहते है।

 


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