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सितम्बर - 2018

नर्मदा के एक तट पर ही तटस्थ रहे अमृतलाल वेगड़

पंकज स्वामी

व्यक्तित्व

 

 

 

कलाकार, लेखक व नर्मदा यायावर अमृतलाल वेगड़ की एक पुस्तक में जिक्र है कि अगर सौ साल बाद किसी को एक दंपति नर्मदा परिक्रमा करता दिखाई दे, पति के हाथ में झाड़ू हो और पत्नी के हाथ में टोकरी और खुरपी, पति घाटों की सफाई करता हो और पत्नी कचरे को ले जा कर दूर फेंकती हो और दोनों वृक्षारोपण भी करते हों, तो समझ लीजिए कि वे अमृतलाल वेगड़ और उनकी पत्नी कान्ता ही होंगे। ''कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साज का सुर मिलाता है, उसी प्रकार इस जनम में तो हम नर्मदा परिक्रमा का सुर ही मिलाते रहे। परिक्रमा तो अगले जनम से करेंगे।’’ इस कथन से समझा जा सकता है कि अमृतलाल वेगड़ का नर्मदा नदी से कितना जुड़ाव व लगाव था। उन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व नर्मदा परिक्रमा से सुर मिलाया, लेकिन उनकी इच्छा या अंतिम इच्छा भी कह सकते हैं कि अगले जन्म में भी वे पत्नी सहित नर्मदा से जुड़ाव चाहते थे। अमृतलाल वेगड़ के समस्त सृजन का आधार नर्मदा थी। नर्मदा ने उनकी कला को नया आयाम दिया था। वे कहते थे कि उन्होंने पिछले चालीस वर्षों से अधिक समय से नर्मदा के राशि-राशि सौंदर्य में से अंजुरी भर सौंदर्य ही पाया है। इस अंजुरी भर सौंदर्य को वे 'चिड़ी का चोंच भर पानीकहते थे। उनका कहना था कि संसार में एकमात्र नर्मदा ही ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करते समय नर्मदा हमेशा दाहिने हाथ पर रहनी चाहिए। अत: उत्तर तट पर चलने वाला 'परकम्मावासीअमकंटक (उद्गम) और दक्षिण तट पर चलने वाला विमलेश्वर (समुद्र) की ओर जा सकता है। अमृतलाल वेगड़ का मानना था कि नर्मदा मध्यप्रदेश और गुजरात को मिला प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान है। वे अपनी नर्मदा परिक्रमा को धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक मानते थे, लेकिन उनको करीब से जानने वाले ही यह समझ सकते हैं कि जीवन भर अमृतलाल वेगड़ नर्मदा नदी के एक तट ही पर रहे और दूसरे से उन्होंने दूरी बना कर रखी।

उनकी पांच वर्ष तक शांतिनिकेतन में शिक्षा-दीक्षा हुई। उन्हें प्रकृति के सौंदर्य को देखने की दृष्टि शांतिनिकेतन से मिली, विशेष रूप से गुरू नन्दलाल वसु से। गुरू ने अमृतलाल वेगड़ को जाते वक्त शिक्षा दी कि जीवन में सफल मत होना, अपना जीवन सार्थक करना। गुरू की शिक्षा और स्वयं की दृढ़ता से उन्होंने नर्मदा व उसकी सहायक नदियों की 4000 किलोमीटर से भी अधिक की पदयात्रा की। वे संभवत: पहले ऐसे चित्रकार व लेखक थे, जो खतरनाक शूलपाण की झाड़ी में गए थे। 

अमृतलाल वेगड़ ने 49 वर्ष की आयु में नर्मदा यायावरी के दौरान सबसे पहले प्रकृति सौंदर्य, मानवता का सहज सौंदर्य, रेखांकन, कोलाज और लेखन को नई दृष्टि से देखा। अमृतलाल वेगड़ ने वर्ष 1977 में पहली नर्मदा पदयात्रा के अनुभव का रेखांकन किया। उनके अधिकांश रेखांकन छोटे व प्राय: पोस्टकार्ड साइज के थे। वे अक्सर कहा करते थे कि उनके पास अभिव्यक्ति का विलक्षण माध्यम-रेखांकन है। वे रेखाओं से उस सौंदर्य को व्यक्त करते थे, जो शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं हो सकते। जहां शब्द मौन हो जाते हैं, रेखाएं बोल उठती थीं। वे कहते थे कि उनके द्वारा बनाए गए रेखांकन नर्मदा से मिले अनमोल उपहार हैं।

अमृतलाल वेगड़ की शिक्षा-दीक्षा जल रंगों (वाटर कलर) से हुई, लेकिन उन्होंने नर्मदा के सौंदर्य व जीवन को उभारने के लिए कोलाज को माध्यम बनाया। कोलाज उन्हें अपनी कला अभिव्यक्ति के लिए सही माध्यम लगता था। कोलाज यानी कि कुछ भी चिपका कर बनाई गई कलाकृति। उनके कोलाज चित्र जैसे लगते थे। कुछ कोलाज जल रंग की तरह, कुछ आइल कलर की तरह तो कुछ शिल्प जैसे। अमृतलाल वेगड़ को कोलाज बनाने में सभी माध्यमों का आनंद मिलता था। उनके चित्रों के विषय नदी, नदी के मोड़, नदी के घाट, नदी को पार करते ग्रामीण बैगा, गोंड, भील, आग तापते ग्रामीण, ग्रामीण गायक, पंडे-पुरोहित, नाई, चक्की पीसती या मूसल चलाती महिलाएं थीं। वे अपने चित्रांकन व कोलाज को 'चिड़ी का चोंच भर पानीकहते थे।

अमृतलाल वेगड़ को मॉडर्न आर्ट पसंद था, लेकिन वह उनका रास्ता नहीं था। वे मानते थे कि मॉडर्न आर्ट वैश्विक है, लेकिन स्वयं की कला को देश की माटी की गंध मानते थे। 'कला के लिए कलावाला रास्ता उनका नहीं था। अमृतलाल वेगड़ की कला नर्मदा के लिए थी। वे अपने चित्रों में नर्मदा को और नर्मदा तट के जनजीवन दिखाना चाहते थे, इसलिए उनकी कला अमूर्त नहीं थी। उनकी कोशिश रहती थी कि चित्र ऐसे बने, जो देखने के लिए बाध्य करें और थोड़ा बहुत रस भी मिले।

नौवें दशक की शुरूआत में अमृतलाल वेगड़ को लेखन से प्रसिद्धि मिली। उन्होंने सबसे पहले 1992 में नर्मदा के सौंदर्य को पुस्तक का रूप दिया। उनकी सहज व सरल भाषा ने पाठक को सहयात्री बना दिया। वे नर्मदा को सिर्फ जलधारा नहीं मानते थे, बल्कि उसके साथ जीवन, जीव, वनस्पति, प्रकृति, खेत, पक्षी व मानव सभी को आपस में इस प्रकार जोड़ दिया, जिससे नर्मदा एक नदी नहीं, मनुष्य के जीवन से मृत्यु तक का आधार बन गई। सौंदर्य की नदी नर्मदा के पश्चात् उनकी तीन पुस्तकें अमृतस्य नर्मदा, तीरे-तीरे नर्मदा और नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो प्रकाशित हुईं। उनकी अंतिम पुस्तक नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो में शब्द नाम मात्र के हैं और पूरी पुस्तक कोलाज व रेखांकन से समृद्ध है। इन्हीं पुस्तकों में कहीं अमृतलाल वेगड़ यह जिक्र करते हैं कि यह तो अधिक से अधिक परिक्रमा की इंटर्नशिप की है, परिक्रमा तो वे अगले जन्म में करेंगे। उनकी पुस्तक तीरे-तीरे नर्मदा को बीबीसी ने वर्ष 2013 में हिन्दी के 10 श्रेष्ठ यात्रा संस्मरण में चुना था। वर्ष 2004 में अमृतलाल वेगड़ को 'सौंदर्यनी नदी नर्मदाशीर्षक की हिन्दी से गुजराती में अनुवादित पुस्तक पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्रदान किया गया।

सहज, सरल, विनोदप्रिय व गब का सेंस ऑफ ह्यूमर रखने वाले अमृतलाल वेगड़ व उनका संयुक्त परिवार वर्तमान समाज में उत्कृष्ट उदाहरण है। जीवन भर वे खादी पहनते रहे। घर में चक्की में गेहूं पीसा जाता था। वे पैदल चलने को प्राथमिकता देते थे और जीवन में उन्होंने कभी चाय का सेवन नहीं किया।

यायावर अमृतलाल वेगड़ का नर्मदा केन्द्रित लेखन पूरी तरह सौंदर्य आधारित रहा। नर्मदा का जन सरोकार उनकी लेखनी में कभी नहीं उभरा। नर्मदा क्या थी, क्या हो गई और क्या होने वाला है, इस मुद्दे से वे विमुख रहे। यह अनायास था या जानते-बूझते हुआ-इस पर अमृतलाल वेगड़ मौन ही रहे। नौवे दशक के अंत में एक साक्षात्कार मे उन्होंने खुल कर बड़े बांधों का समर्थन किया था। नर्मदा विस्थापन त्रासदी व इससे संबद्ध आंदोलन पर उन्होंने जीवन भर नहीं लिखा और न ही बोला। वे इस मुद्दे पर मेघा पाटकर से असहमत रहे। वे बड़े बांध का विरोध नहीं करते थे। उनका कहना था कि आबादी बढ़ती रही, तो और बड़े बांध जरूरत के लिए बनाने होंगे। उन्हें शहर के किनारे बहती नर्मदा की मटमैली धारा में अपशिष्ट नहीं दिखे। वे कई बार बांध दीवारों में डूब चुकी नर्मदा की 400 किलोमीटर लम्बाई से बनी झीलों में डूबे गांवों के विस्थापित खेतीहरों के रिक्शों में बैठ कर यहां से वहां गए। नर्मदा पुत्र-पुत्रियों की दुर्दशा पर उनको कभी सिहरन नहीं हुई। नर्मदा पर केन्द्रित बड़े आयोजन में उनकी सहभागिता फिल्म कलाकारों, संतों व राजनेताओं के साथ रही, लेकिन हजारों विस्थापित आदिवासियों की ओर उनकी दृष्टि कभी नहीं गई। दरअसल अमृतलाल वेगड़ नर्मदा के एक तट यानी कि सत्ता की ओर ही बने रहे।

 


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