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सितम्बर - 2018

यही मौका है

नवारुण भट्टाचार्य / मूल बांग्ला से अनुवाद - लाल्टू

पहल प्रारंभ/कविता

 

 यही मौका है

 

 यही मौका है, हवा का रुख है

रीबों को भगाने का

मज़ा आ गया, भगाओ रीबों को

कनस्तर पीट कर जानवरों को भगाते हैं जैसे

हवा चल पड़ी है

रीब अब सही फँसे हैं

राक्षस की फूँक से उनकी झोपड़ी उड़ जा रही है

पैरों तले सरकती ज़मीन

और तेज़ी से गायब हो रही है

मज़ा ले-लेकर यह मंज़र भोगने का

यही वक्त तय है

इतिहास का सीरियल चल रहा है

वक्त पैसा है और यही वक्त है

रीबों को लूट मारने का

रीब अब गहरे जाल में फँस गए हैं

वे नहीं जानते कि उनके साथ लेनिन है या लोकनाथ

वे नहीं जानते कि गोली चलेगी या नहीं!

वे नहीं जानते कि गाँव-शहर में कोई उन्हें नहीं चाहता

इतना न-जानना बुखार का चढऩा है

जब इंसान तो क्या, घर-बार, बर्तन-बाटी

सब तितली बन उड़ जाते हैं

यही रीब भगाने का वक्त कहलाता है

कवियों ने रीबों का साथ छोड़ दिया है

उन पर कोई कविता नहीं लिख रहा

उनकी शक्ल देखने पर पैर जल जाते हैं

हवा चल पड़ी है, यही मौका है

रीबों को भगाने का

कनस्तर पीट कर जानवरों को भगाते जैसे

मौका है रीबों को भगाने का

यही मौका है, हवा चल पड़ी है।

 

 

नबारुण बांग्ला के बड़े कवि, अब दिवंगत। 'पहलने कविता अंक में उनकी प्रसिद्ध कविता 'यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देसप्रकाशित की।

 लाल्टू वरिष्ठ हिन्दी कवि, अनुवादक और सक्रिय संस्कृतिकर्मी, हैदराबाद में रहते हैं

 


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