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जुलाई 2018

कुछ पंक्तियां

ज्ञानरंजन

 

पाठकों, यह अंक नये, लगभग प्रवेश करने वाले रचनाकारों के लेखन से सजाया गया है। सर्वश्री मनोज कुमार पाण्डे, शशिभूषण मिश्र, महेश वर्मा, सुजाता, रवि बुले, शोभा सिंह, संध्या नवेदिता, ममता सिंह, अनुराधा सिंह, शिरीष खरे के साथ हमारे स्थायी लेखक अविनाश मिश्र और अच्चुतानंद। हमने क़िताबों पर आलोचना के लिए इस बार मृणाल पांडे, प्रभात त्रिपाठी और आनंद हर्षुल के सबसे नये उपन्यासों को चुना। संगीत घरानों, आवारा किस्सागोई और लोककथाओं की पृष्ठभूमि को घेरते हुए ये उपन्यास हैं। ये तीनों उपन्यास अपनी संरचना में अलग हैं और हिन्दी में यदा कदा ही लिखे जाते हैं।

साक्षात्कारों की परंपरा में विदुषी कपिला वात्स्यायन और बेजोड़ फिल्मकार माज़िद मजीदी से वार्तालाप इस बार हमारा दमदार हिस्सा है। माज़िद जब देश में आये तो उनसे साक्षात्कार एक प्रवीण दुभाषिये की सहायता से लिया गया। माज़िद हिन्दी, अंग्रेजी नहीं जानते, फारसी में वार्ता हुई। डेढ़ घंटे की बातचीत रवि बुले ने की और उसके संपादित अंश यहां हैं।

असद जैदी हमारे अनमोल कवि हैं। कम लिखते हैं और कम भेजते हैं। लम्बी मुहब्बतों के कारण हम उनकी ताज़ाकविताएं छाप सके हैं। इनमें एक प्रमुख और पहली कविता के साथ विख्यात ग्राफिक कलाकार ओरजीत सेन का बनाया एक लोकप्रिय चित्र भी है जो उनकी अनुमति के साथ यहां है। इस कविता में कई विस्मृत होते संदर्भ हैं, जो रक्तरंजित जम्मू साम्प्रदायिक नरंसहार के संकेत हैं। इसी बीच एक जरूरी सूचना पाठकों को देना चाहेंगे कि युवा लेखक, कवि और सक्रिय संस्कृतिकर्मी अशोक कुमार पांडे की एक पुस्तक कश्मीर के जटिल इतिहास पर राजपाल से आई है जिसमें उन्होंने जम्मू हत्याकांड के सुनियोजित दक्षिणपंथी कुकर्मों का उल्लेख किया है। इस किताब पर आगामी अंक में पाठक सुप्रसिद्ध लाल बहादुर वर्मा का लेख पढ़ सकेंगे।

स्कंद शुक्ल के विज्ञान स्तंभ के साथ इस बार शिव जोशी का मशहूर वैज्ञानिक स्व. हाकिंग्स पर एक गंभीर नोट भी जा रहा है। पहल में वैज्ञानिक धारा को प्रभावी और पठनीय रुप में अग्रसर करने के लिए सुप्रसिद्ध उद्घोषक और लेखक युनूस खान अगली बार के लिए वैज्ञानिक आंइस्टाइन से जुड़ी दुर्लभ पत्र सामग्री पहल के लिए तैयार कर रहे हैं।

इस अंक का एक आकर्षण है सुप्रसिद्ध कथाकार और आधुनिक इतिहास विषयों पर मौलिक गवेषणा करने वाले प्रियंवद के एक दुर्लभ काम पर अविनाश मिश्र की मीमांसा। हमने घोषित किया था कि उर्दू रजिस्टर का पिछले अंक से ही समापन होना है। इसकी लगभग एक दर्जन किश्तें छपीं। इनमें प्राय: भूली हुई दुर्लभ यादें थीं जिनका अप्रतिम अवदान उर्दू के अलावा हिन्दी संसार तक विस्तृत था। इस अंक में हम राजकुमार केसवानी के नये और पहले उपन्यास 'बाजेवाली गलीका शुरुआती हिस्सा छाप रहे हैं जो जारी रहेगा। यह उपन्यास एक ऐसा वृतांत है जो आज़ादी के आसपास हुए विस्थापन और भोपाल का रोचक नजारा कराता है।

पहल विशेष में महान कवि मिरोस्लाव होलुब का समय और क्षण को लेकर प्रकाशित लेख सुधी पाठकों के लिए तो है ही उन परंपरा विहीन, वायरल कवियों के लिए भी है जो हमें रोज ईमेल पर मतवाली कविताएं भेजते रहते हैं।

इस बार हमने कुछ पत्र छापे हैं। उनमें एक पत्र कवि कुमार अंबुज का है जो अंक 111 में छपी एलेन गिंसबर्ग की लंबी कविता हाउल को लेकर है। 'हाउलके एक परिशिष्ट और संबंधित पोस्टर पर अंबुज काम कर रहे हैं जो अगली बार प्रस्तुत होगा।

जर्मनी के शोधागार में 'पहलको लेकर जो काम हुआ है उसका काफी कुछ वेबसाइट पर आ गया है। जिन पाठकों को इसमें दिलचस्पी हो वे karmendu shishir shodhagar टाइप करके देख सकते हैं। कर्मेन्दु शिशिर ने दो भागों में हाल ही में 'भारतीय मुसलमान, इतिहास और संदर्भ पर अपनी कृति प्रकाशित की है।

 

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