कुछ पंक्तियां अनवर अली मलयालम कवियों की नयी पीढी का अग्रणी नाम हैं। उनके मलयालम और अंग्रेजी अनुवादों के पांच कविता संग्रह प्रकाशित हैं। वे डाक्यूमेंट्री फिल्मकार भी हैं। यह कविता एक ट्रेन यात्रा के ज़रिये समकालीन सामाजिक-राजनीतिक हालात का जायजा लेती है
अनवर अली महबूब एक्सप्रेस : एक प्रबंध
गर्मियों की छुट्टियों में कोट्टयम एक्सप्रेस में सवार हुए हम तभी बोले महबूब मियाँ : अपने कानों को आँख बनाकर सुन, यार! 1 क्या कह रही है चलती हुई ट्रेन : कोल्लत्ते पप्पडम गंडन पप्पडम कोल्लत्ते पप्पडम गंडन पप्पडम 2
सचमुच! उस आवाज़ की धातुई रफ्तार में उबल रही थी एक खडखड बारह साल के एक किशोर के कान कहीं गहरे कहीं डुबकी लगाए हुए थे जो उभर आते थे किसी रेलवे पुल पर। गंडन पप्पडम गंडन पप्पडम पुल पर सिर्फ गंडन पप्पडम सुनाई दे रहा है, मियाँ महबूब!
कोल्लत्ते पप्पडम तो पीछे छूट गया, प्यारे अष्टमुडी के जल-कुंड में! * छह साल बाद दिल्ली से महबूब मियाँ का खत : अरे, अब ट्रेनें यहाँ कह रही हैं: 'कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।' 3
जहां अभी तक चल रही थीं सिर्फ मलयाली ट्रेनें, 'सीपीआइ इल चेरू, रसियाइल पोगम' 4 'गाँधी एंटाक्की, इन्ड्याये मांटीपुन्नक्की' 5 वहाँ महबूबिक्काका 'पेड़' गिर पड़ा था रेल की पटरियों पर।
सतह पर फूल कर उभर आयी उनकी बात उसके अर्थ से अनजान मैंने उन्हें भेजा जवाब: तो अब ट्रेनें हिंदी में भी चलने लगी हैं, क्यों? *
तब तक महबूब मियाँ का तबादला हो गया था सियाचिन वे बैठे थे बर्फ में एकदम लाचार कि उस वक्त भी नहीं आ सके जब वल्लयाप्पा 6 की मौत हुई। मेरा वह बड़ा पेड़ गिर गया, प्यारे!
कहते हैं, वल्लयाप्पा भाग कर आये थे लाहौर से, पीछे छोड़ दी थी उन्होंने अपनी तम्बाकू की मशहूर दूकान नाम था जिसका 'महात्माजी की पान की दूकान' और एक सरदारनी जो थी नौजवान भाप के इंजन वाली उनकी ट्रेन दिल्ली की तरफ जाती चीखते हुए गा रही थी गान: 'पार्टीशन पाकिस्तान पाकिस्तान पार्टीशन' बंदूकों और तलवारों के सामने उन्होंने बताया था अपना नाम दक्षिणामूर्ति। मैं एक साथ पार कर रहा हूँ रावी, ब्यास और सतलज, यार! उस ट्रेन में गा रहे थे वल्लयाप्पा 'पाकिस्तान हिंदुस्तान खालिस्तान'
घर की मुंडेर पर बैठे हुए उन्होंने मुझे बुलाया अपने पास कज़ा बीड़ी 7 पीते हुए उडाय़े धुएं के छल्ले उन्हें देखते हुए बोले: एन एस माधवन 8 की वह किताब तुम मुझे भेजना ज़रूर.
क्यों, वल्लाप्पा ही थे जिन्होंने तुम्हें बताया था कैसे पढी जाती है ट्रेनों की जुबान?
और ट्रेनों ने ही मुझे बताया था: वल्लयाप्पा खुद भी हैं एक जलती हुई ट्रेन' 9। *
पिघल गयी थी बर्फ। अहमदाबाद, अमृतसर, धौलपुर, गांतोक...
महबूब मियाँ भटकते फिरे आग के बगैर धुएं के बगैर शादी की गाँठ बाँधने भी नहीं आ पाए छुट्टियों में बैठा किये ट्रेनों में जो कर रही थीं कूच साबरमती जैसलमेर मेघ-आलयाओं की ओर....
उस वक्त यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी की किताबें और नागपदम पुल के नीचे उगे हुए भांग के पौधे भनभन करते थे मेरे दिमाग में
एक बार मैं रजत मीन की तरह सीधे घुसकर बोला: बहुत सारी बातें तुम्हें पता ही नहीं हैं, मियाँ महबूब।
एक ठेलागाड़ी जो चली थी अन्दर किसी देहात से जिसका नाम था
'ठाकुर, बाह्मण, बनिया छोड़ बाकी सब हैं डीएसफोर' 10 अब वह कहर ढा रही है और गा रही है समूचे गंगा मैदान में 'तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार।' 11 तुमने देखा नहीं यह सब, मियाँ महबूब।
तुमने सुनी नहीं वह खामोशी, महबूब मियाँ, जो जमी हुई थी पूरब की पहाडिय़ों के पेट में वहाँ जहां रेल की पटरियां नहीं हैं और उधर भी उत्तर की तरफ कुनान, पोशपोरा 12 में
लेकिन मेरा राष्ट्रगान तो ट्रेन ही है, बेवकूफ! *
जब आत्मघाती दस्ते की गाड़ी आयी पंबन के पुल पर रेंगती हुई कहती हुई 'श्रीपेरुम्बदूर, श्रीपेरुम्बदूर' 13, उसी के आसपास आया एक पोस्टकार्ड 1991 में काजीरंगा से। उसपर चिपका था एक सींग वाले गैंडे का डाक टिकट।
1992 में बरसने शुरू हुए गांधी के चहरे वाले ढेरों पोस्टकार्ड जगह-जगह से एक के बाद एक। 'सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे' 14। 'एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो। 15'
'अभी तो यह झांकी है काशी मथुरा बाकी है' 16 *
ईमेल अदृश्य ट्रेनें हैं, यार। ---2003 में अहमदाबाद से मैंने उसे जवाब में भेजी थीं डब्ल्यू एच ऑडेन की कविता 'रातगाडी' 17 की पंक्तियाँ इस पते पर: mehbubalone1961@hotmail.com 'रात गाड़ी जो गुज़र रही है सरहद पर, अपने साथ ला रही चेक और पोस्टल ऑर्डर, ला रही है चि_ियाँ अमीरों और गरीबों के नाम नुक्कड़ की दूकान और पड़ोसी लडकी के नाम।'
साबरमती एक्सप्रेस में महबूब मियाँ ने इसकी जगह कुछ और ही पढ़ा: 'मुसलमान का एक ही स्थान पाकिस्तान या कब्रिस्तान' 'गोधरा, गुलबर्ग, नरोदा पाटिया खून का बदला खून' 18 *
दिल्ली से एक इलेक्ट्रिक ट्रेन हॉर्न बजाती गयी अपने चारों पैरों पर: 'गोमाता की जय' महबूब मियाँ नौकरी से रिटायर हुए सितम्बर 2015 में।
वे लौट आये घर अपने खरीदे हुए फ्लैट में बिलकुल अकेले अखलाक अखलाक अखलाक 19
दक्षिण की तरफ को लपकती हुई सूखे स्तनों वाले गावो 20 को आरे की तरह चीर रही थी राजधानी एक्सप्रेस उसकी आवाज़ का काकोलम 21 पीते हुए वल्लयाप्पा और दक्षिणामूर्ति नाचते रहे सारी रात कब्रगाह का नाच: 'मोहम्मद अखलाक और कोई नहीं, मैं ही हूँ, यार यही तुम्हारा आवारा वल्लयाप्पा'।
सुबह हुई तो व्हाट्सएप्प पर मियाँ महबूब का सन्देश: हमें खोलनी चाहिए; कोच्चि में 'महात्माजी की पान की दूकान' मैंने उनसे किया वादा उसी रात। *
19 जून 2017
कोच्चि मेट्रो के पुतियपल 22 वाले कोच में गौर से सुन रहा हूँ महबूब मियाँ की बगल में बैठा हुआ उन्होंने ही मुझे सिखाया था ट्रेनों की 'खडखड़' का तर्जुमा दुनिया की तमाम ध्वनियों में।
अबे!...अपनी आखों को कान बनाने की ज़रुरत नहीं यह ट्रेन तो चल रही है बगैर कोई आवाज़ किये हुए।
सचमुच! बगैर आवाज़ की एक इस्पाती आवाज़। आवाज़ कोच्चि के जल-कुंडों में गिर चुकी है, यार!
तभी गूंजा खामोशी का राष्ट्रगान; हम उतर गये कलूर में।
द्राविड-उत्कल-बंग भूमि 23 के बीच फुटपाथ पर था ठेकेदार की अगली गाडी के आने का इंतज़ार उठ कर चल दिए मियाँ महबूब उस घर की तरफ जो एरका 24 घासों की तरह उगा हुआ था उस दलदली ज़मीन पर।
एजे थॉमस के अंग्रेज़ी अनुवाद से हिंदी अनुवाद: मंगलेश डबराल
टिप्पणियाँ 1. इसके लिए मलयालम में 'टे' का अनौपचारिक, प्यार भरा संबोधन है, जिसका हिंदी अर्थ सन्दर्भ के अनुरूप 'अरे, 'प्यारे' और 'अबे' जैसा होगा। 2. इसका अर्थ है: 'कोल्लम के पापड़ सबसे अच्छे होते हैं'. कविता में इसे ट्रेन ध्वन्यात्मक सौन्दर्य और अनुप्रास के लिए भी प्रयुक्त किया गया है। 3. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी ने इन्ही शब्दों का प्रयोग किया था, जिसके बाद दिल्ली और देश में सिख-विरोधी हिंसा फैली। 4. 'सीपीआइ में शामिल हों रूस जाने का मौका मिलेगा' ---इस कथन का श्रेय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पुराने दिनों को दिया जाता है.. 5. 'गाँधी को क्या मिला हिन्दुस्तान को ज़ख्म दिया' -इस कथन का श्रेय भारत के आज़ाद होने के समय कांग्रेस-विरोधी तत्वों को दिया जाता है. 6. दादा. कविता के एक पात्र महबूब के दादा का सन्दर्भ। 7. करीब तीन दशक पहले केरल और आसपास के राज्यों में एक लोकप्रिय बीड़ी। 8. मलयालम के प्रसिद्ध लेखक एन एस माधवन की कहानी 'जब बड़े पेड़ गिरते हैं' का सन्दर्भ। यह कहानी 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सिख-विरोधी हिंसा पर लिखी गयी थी। 9. मलयालम में अभिव्यक्ति अनेकार्थी है जिसका हूबहू अनुवाद संभव नहीं है। 10. यह डीएस-4 या डीएस एस एस एस (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) के निम्नवर्गीय संघर्षका पुराना नारा रहा है. इसकी स्थापना 1981 में दलित नेता कांशी राम ने की थी। 11. डीएस4 के लगातार संघर्ष के नतीजे में 1984 में गठित बहुजन समाज पार्टी का उग्र नारा। 12. कश्मीर के गाँव जहाँ 1991 में भारतीय फौज ने कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किये। 13. तमिलनाडु का कस्बा, जहाँ राजीव गाँधी की हत्या हुई। 14. सन 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के दौरान लगाया गया नारा। 15. अयोध्या में 6 नवम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद के सामने साध्वी ऋतंभरा द्वारा दिया गया नारा, जिसने कार सेवकों के बीच उन्माद फैलाया और नतीजतन मस्जिद पूरी तरह तोड दी गयी। 16. बाबरी मस्जिद के ध्वंस के समय कार सेवक यह नारा लगा रहे थे। 17. रात की ट्रेन में चलते पोस्ट ऑफिस पर ब्रिटिश कवि डब्ल्यू एच ऑडेन की प्रसिद्ध कविता। उसकी ये पंक्तियाँ मूल में इस तरह हैं: 'दिस इस द नाइट ट्रेन क्रासिंग द बॉर्डर, ब्रिंगिंग द चेक एंड द पोस्टल आर्डर, लेटर्स टू द रिच, लेटर्स टू द पोअर. द शॉप एट द कॉर्नर एंड द गर्ल नेक्स्ट डोअर।' 18. सन 2002 में गुजरात के साम्प्रदायिक दंगे का कुख्यात नारा और गुजरात में कत्लेआम की जगहों के नाम. 19. दादरी गाँव में 28 सितम्बर 2015 को गाय का मांस रखने के झूठे आरोप में मारे गये एक मुस्लिम व्यक्ति, जिनका बेटा भारतीय वायु सेना का एक अ$फसर था। 20. 'गाव' का प्रयोग मलयालम में अंग्रेज़ी के 'विलेज' यानी गाँव और 'काउ' यानी गाय को एक साथ बताने के लिए किया गया है। 21. वह विष, जिसे शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए पिया था। 22. मलाबार इलाके में दूल्हे के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द। 23. सन्दर्भ : वे प्रवासी मजदूर जो बहुत से राज्यों से आकर भरोसेमंद और कुशल कारीगरों के रूप में केरल की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल रहे हैं। 24. एरका एक घास का नाम है. ऐसा माना जाता है कि वह द्वापर युग के अंत में प्रलय के समय कृष्ण की जीवन लीला की समाप्ति पर उगी थी। |