मुखपृष्ठ पिछले अंक प्रकाशकीय
जनवरी 2018

प्रकाशकीय

ज्ञानरंजन


इस अंक का प्रथम आवरण विनीता कुमार (झांसी) और पिछला अबीर चट्टोपाध्याय (कोलकाता) ने तैयार किया है। यह हमें 'इत्यादि आर्ट फाउन्डेशन', जबलपुर के सहयोग से उपलब्ध हुआ है। भीतर के रेखांकन सुप्रसिद्ध चित्रकार राजू बाविस्कर और हमारे संपादक मंडल के अवधेश वाजपेयी द्वारा निर्मित हैं। विश्वविख्यात मार्क्सवादी विचारक जॉन जर्जन का फोटोग्राफ जर्मनी से प्रो. दिव्यराज अमिय ने उपलब्ध कराया है उनकी तसवीर विनय रंजन (2012) खींची है। फ़िक्र तौंसवी का चित्र राजकुमार केसवानी के सौजन्य से प्राप्त है और कृष्णा सोबती का छायाचित्र हमने इंटरनेट से लिया है।
अपनी प्रतिज्ञाओं के बावजूद इस अंक में कई महत्वपूर्ण रचनाएं नहीं दे पाये हैं जिनको हम आगामी अंक में निश्चित रुप से दे सकेंगे। विष्णु खरे और महेश एल. कुंजवार के साक्षात्कार क्रमश: अविनाश मिश्र और अनूप कुमार कर रहे हैं। महेश एल. कुंजवार का दुर्लभ गद्य भी वायदे में है। पाठकों को इस सूचना से अच्छा लगेगा कि अरुन्धती राय के ताज़ा अंग्रेजी उपन्यास (जिसका भारतीय भाषाओं में अनुवाद संभव हो रहा है।) का एक अंश भी हम प्रकाशित करेंगे। इस उपन्यास का अनुवाद हिन्दी कवि मंगलेश डबराल लगभग पूरा कर चुके हैं।
उर्दू रजिस्टर के अन्तर्गत इस बार राजकुमार केसवानी ने फ़िक्र तौंसवी पर लिखा है जिसमें कई दुर्लभ विवरण हैं। यह वर्ष फ़िक्र तौसवीं का शताब्दी वर्ष है इसलिए यह सामग्री विशेष रुप से महत्व की है।
शताब्दी पुरुष मुक्तिबोध पर हम साल भर कुछ प्रकाशित करते रहे हैं। इस अंक में अशोक कुमार पाण्डेय के लेख से हम इस क्रम का समापन कर रहे हैं। इसी प्रकार कृष्ण कल्पित की कविता पर लिखी आलोचना से अविनाश मिश्र की सिरीज का भी अंत होता है।


Login