मुखपृष्ठ पिछले अंक कथात्मक साहित्य का लेखन किसी प्रार्थना या किसी गीत की तरह है - अरुंधति राय
अक्टूबर-2017

कथात्मक साहित्य का लेखन किसी प्रार्थना या किसी गीत की तरह है - अरुंधति राय

जो जैक ओ / अनुवाद - डॉ प्रमोद मीणा

साक्षात्कार/दो

''द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स'' के दो दशक बाद अरुंधति राय का नया उपन्यास 'दि मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैपीनेस' इन दिनों चर्चा में है।

 

अरुंधति राय/जो जैक ओ

कथात्मक साहित्य का लेखन किसी प्रार्थना या किसी गीत की तरह है1

 

बीस सालों के उपरांत अरुंधति रॉय अपने दूसरे उपन्यास के साथ हमारे समक्ष हैं और उनका कहना है कि वे कुछ जड़मति लोगों को इस अवसर को बाधित नहीं करने देंगी और न उन्हें समस्त सुर्खियाँ लूटने देंगी।

अरुंधति रॉय अपना दरवाजा खोलती हैं और मुझे अपने रसोईघर में आने देती हैं। मुझे अचंभा होता है कि कहीं मैंने गलत दरवाजा तो नहीं खटखटा दिया, संभवत: (खाद्य पदार्थ) वितरण वाला प्रवेश द्वार? उनके लिए लाई ताजा कॉफी बीनों के क्षुद्र उपहार को तत्क्षण मैंने उन्हें सौंप दिया। यह उपहार मैं इस अनुमान से खरीद लाई थी कि सभी गंभीर लेखक कॉफी पसंद करते हैं।

अनोखे फैशनवाली कुर्सियों से घिरी उनकी सुदृढ़ रसोई टेबिल के इर्द-गिर्द ज्यों ही हम नीचे बैठे, मैंन महसूस किया कि केंद्रीय दिल्ली में उनकी स्वयं की परिकल्पना के मूर्त रूप उनके इस अपार्टमेंट का सबसे संवेदनशील दिल है उनकी यह रसोई। लंबे समय तक कार्य करने के काम आने वाले काउंटर के अतिरिक्त वहाँ था - एक सोफा, एक पुस्तक आलमारी और एक पुरातन सी बेंच के साथ बाहर बैठने के काम आने वाला छज्जा। कुल मिलाकर एक ऐसा स्थान जहाँ कोई अपना पूरा जीवन बिता सकता था।

लेकिन बिल्कुल अभी तक वे पूरी दुनिया में रही हैं और न्यूयॉर्क से ठीक अभी उड़कर आने से जेट उड़ान की एक प्रकार की थकान उनमें है। कस्बे में बीसियों साक्षात्कारों के बाद वह पुन: शीघ्र ही अपने नये उपन्यास के लिए वैश्विक प्रचार-प्रसार की एक यात्रा पर निकल जायेंगी। 'दि मिनिस्टरी ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस' विश्व स्तर पर सर्वाधिक बिकने वाले और बुकर पुरस्कार प्राप्त उनके उपन्यास 'गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' के बाद से दो दशकों में उनका पहला उपन्यास है। यह इस दशक की साहित्यिक परिघटना सरीखा प्रतीत होता है। और उनके प्रकाशक के मुताबिक 'एक उपन्यास क्या कर सकता है और वह क्या हो सकता है, इसकी यह (उपन्यास) एक बार पुन: पड़ताल करता है।' इसे मैं पढऩा शुरु कर चुकी हूँ, और कह सकती हूँ कि यह एक निर्मम तहकीकात है और समकालीन भारत एक व्यापक आख्यान है। यह इतनी विचारपूर्ण चयनित भाषा में लिखित है कि मुझे सलमान रुस्दी के प्रतिष्ठित (उपन्यास) 'मिड नाइट चिल्ड्रन' की याद दिलाता है। कुल मिलाकर इससे उनका साक्षात्कार लेना मेरे लिए डर की आशंका को जन्म दे देता है। जब वे कॉफी बना रही होती हैं, तो मैं तीन ऑडियो रिकार्डर (जिनमें से दो साक्षात्कार के दरमयान खराब हो जाते हैं) और एक आपातकाल में उपयोग लिये जाने वाले वीडियो कैमरे के साथ अपनी इलेक्ट्रॉनिक मोर्चाबंदी जमा लेती हूँ। वे हतप्रभ होकर देखती हैं और माइक्रोफोन की गोलीबारी की अभ्यस्त नजर आती हैं। हम तीन घंटे का साक्षात्कार आरंभ करते हैं। इस साक्षात्कार के चुनिंदा अंश इस प्रकार हैं:

 

नये भारतीय लेखकों की पीढिय़ाँ आपको एक प्रेरणा के रूप में देखती हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो आपको सपना देखने की प्रेरणा देती है कि आप भारत में बैठकर लिख सकते हैं और फिर भी आपको दुनियाभर में पढ़ा जायेगा। अपनी प्रतिष्ठित शख्सियत से आपको कैसी अनुभूति होती है? क्या आप कभी इस विषय में सोचती हैं?

यथार्थ में नहीं, क्योंकि मैं अपने द्वारा जगाये जाने वाले भावावेश और सनकीपन, दोनों में समान रूप से निरपेक्ष रहती हूँ। अपने लिए, मैं अपने कार्य में जीवित रहती हूँ। यद्यपि मुझे कहना चाहिए कि एक समय मैं उन लेखकों के विषय में सोचा करती थी जो गुमनाम रहना पसंद करते हैं, लेकिन मैं कभी वैसी व्यक्ति रही ही नहीं। कारण कि इस देश में विशेषत: एक महिला के रूप में यह कहना मायने रखता है कि : 'देखो, मैं हूँ यहाँ, मैं आप से मुकाबला करने जा रही हूँ, और मैं ऐसा सोचती हूँ और कि मैं कहीं मुँह छिपाने नहीं जा रही।' इसलिए अगर मैंने किसी को भी हिम्मत दी है... प्रयोग करने की... लीक से अलग हटकर कदम रखने की... तो वह बड़ी खूबसूरत बात है। मेरा सोचना है कि यह कहना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि : 'हम कर सकते हैं! और हम करेंगे! हमारे साथ बदतमीजी मत करो! आप यह जानती हैं। चलिए, आगे बढि़ए।'

मैंने गौर किया कि आप साहित्यिक महोत्सवों में शिरकत नहीं करती हैं। इन दिनों भारत में ये सौ से भी ज्यादा होते हैं। मैं स्वयं बहुत से साहित्यिक समारोहों में जाती रही हूँ, लेकिन पहले आप से कभी नहीं मिली। क्या आप दूसरे लेखकों से दूरी बनाकर रखती हैं?

इसका ताल्लुक दूसरे लेखकों से नहीं है। मैं नहीं जानती कि आपने मेरे द्वारा लिखे उस लेख को पढ़ा है या नहीं, जिसका शीर्षक था - 'ए घोस्ट स्टोरी एंड वर्किंग विद दि कॉमरेड्स'? बात यह है कि जयपुर साहित्य समारोह एक कुख्यात खनन कंपनी द्वारा वित्त पोषित है जो आदिवासियों की आवाज़ खामोश कर रही है, लात मारकर जो उन्हें उनके घरों से बेघर कर रही है। और अब तो यह जी टीवी से भी वित्त पोषित है जो आधे वक्त तो मेरे खून का प्यासा रहता है। अत: सैद्धांतिक रूप से मैं नहीं जाऊँगी। कैसे मैं जा सकती हूँ? मैं उनके खिलाफ़ लिख रही हूँ। मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि मैं पूर्णत: निर्दोष व्यक्ति हूँ। हम सभी की तरह मेरे अंदर भी विरोधाभास हैं और (कमजोर) पहलू हैं। आप जानती हैं कि मैं गांधी जी सरीखी नहीं हूँ, लेकिन सैद्धांतिक रूप से मैं उन्हें स्वीकारती हूँ। संसार के निर्धनतम लोगों की आवाज़ों को आप कैसे चुप करा सकते हैं, कैसे उन्हें आप कुचल सकते हैं? और फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए और उडऩे वाले लेखकों के लिए तड़क-भड़क वाला मंच कैसे बन सकते हैं? मुझे इससे समस्या है।

क्या आप बहुत सा भारतीय कथा साहित्य या गैर कथा साहित्य पढ़ती हैं?

इस पुस्तक को लिखने के दौरान मैं समसामयिक चीजों के साथ बहुत संपर्क में नहीं रही। यहाँ तक कि मैं फेसबुक और ऐसी सब चीजों पर भी नहीं हूं। मुझे इससे कोई समस्या नहीं हैं लेकिन जैसा कि एडवर्ड स्नोवडेन ने मुझसे कहा कि जब फेसबुक की शुरुआत हुई तो सीआईए ने इसका उत्सव मनाया क्योंकि उन्हें बिना संग्रह किये यों ही सारी सूचनायें प्राप्त हो गईं। उसके अतिरिक्त, मेरा सोचना है कि जब आप लिख रहे होते हैं तो आप पठन के प्रति किंचित बेगाने से हो जाते हैं, कई दफा मैं पूरी पुस्तक नहीं पढ़ रही होती हूँ, अपने विवेक की जाँच हेतु मैं चीजों में डुबकी लगा रही होती हूं। (वे अपने चेहरे पर एक उम्दा किस्म की लोकोत्तर मुद्रा लाकर अपना बायाँ हाथ लहराती हैं।) क्या मैं इसी ग्रह पर हूँ?

क्या कोई विशिष्ट भारतीय लेखक है जिसकी आप प्रशंसा करती हैं?

मैं सोचती हूँ कि नायपाल एक बहुत ही निष्णात लेखक हैं, चाहे हमारे विश्वदृष्टियों के संसार जुदा-जुदा हैं। आप जानती हैं, कि यथार्थ में मैं किसी से प्रभावित नहीं हूं। मुझे यह कहना पड़ता है कि भारत में लेखकों को मैं विश्वास योग्य नहीं पाती, या अधिकांश भारतीय लेखकों को या कम से कम प्रसिद्ध लेखकों को... लेखकों के बारे में न भी कहें तो भी जाति जैसी चीजें जो समाज के केंद्र में हैं, उन्हें उपेक्षित कर देने वाले तत्वों का एक स्तर रहा है। आप देखती ही हैं कि यहाँ कुछ बहुत ही बुरा है। यह ऐसा ही है जैसे नस्लीय वैभिन्यता वाले दक्षिण अफ्रीका में लोग वहाँ नस्लीय भेदभाव होने का उल्लेख करे बिना लिखें।

आपका लेखन तिलमिला देने वाला और मुखर है। क्या आपने किसी प्रतिकूल प्रतिक्रिया का अनुभव किया है?

हे भगवान, इसे फिर हल्के ढंग से प्रस्तुत करना होगा! बेशक, जेल जाने के अलावा सभी कुछ। यहाँ तक कि अभी भी जब 'ब्रोकन रिपब्लिक' के नाम से जानी जानेवाली मेरे निबंधों की पिछली पुस्तक का दिल्ली में विमोचन हुआ तो निगरानीकर्ताओं का एक दल मंच पर चढ़ आया, और उसने मंच को तोड़ डाला। ये दक्षिणपंथी लोग, यह गुस्सैल भीड़ और ये निगरानीकर्ता लोग हिंसा से लेकर हर तरह की बात की धमकी देते हुए हर बैठक में रहते हैं। (किंतु) अभी भी मैं पंजाब, उड़ीसा में जहाँ तहाँ बोलने जाती हूँ, मैं वह लेखक नहीं जो कहीं एकांतवासी होते हैं। मैं संभवत: एकाकी रहती हूँ किंतु भीड़ के हृदय के बीचों-बीच।

एक वैयक्तिक नज़रिया रखने के बाद स्वयं को यकायक तिहाड़ जेल की सलाखों  के पीछे देखना किंचित सदमे सरीखा लगना चाहिए?

तिहाड़। (वे गहरी सांस लेती हैं) हाँ, यह सदमादायक होता है, किंतु उसी समय देखिए कि कितने हजारों लोग सलाखों के पीछे हैं, वे लोग जिन्हें (कानूनी) भाषा की कोई समझ नहीं है, जो यह भी नहीं जानते कि उन पर अभियोग क्या है। मेरे साथ जो हुआ, उसको लेकर मैं सचमुच में नाटकीय संयोग का हिस्सा नहीं हो सकती क्योंकि बिना कुछ, बिना कुछ किये लोग सालों से जेल में हैं। यह सनकभरा है। अदालत की तौहीन करने के नाम पर मेरे द्वारा लिखित एक अन्य लेख के चलते मेरे ऊपर फिर न्यायिक जाँच चल रही है। इस लेख का शीर्षक है पीओडब्ल्यू जिसे आप आउट लुक पत्रिका में पढ़ सकती हैं।

क्या आपको कभी लगा कि आपको भारत छोड़ देना चाहिए और एक ऐसे देश में रहना चाहिए जहाँ आपको इस प्रकार की समस्याओं का सामना न करना पड़े?

मैं जिस किसी चीज को जानती हूँ, वह यही है। मैं वास्तव में कभी बाहर विदेश में नहीं रही हूँ। अत: किसी अनजान देश में नितांत अकेले रहने का विचार भी भयावह है। लेकिन मेरा मानना है कि ठीक अभी भारत अत्यंत ही भयावह स्थिति में लटक रहा है। मैं नहीं जानती कि किसी के भी साथ क्या घटित होने वाला है, मेरे साथ या किसी भी अन्य के साथ। सिर्फ ये भीड़ें हैं जो तय करती हैं कि किसे मारा जाना चाहिए, किसे गोली से उड़ा देना चाहिए, किसे भगा-भगाकर मार देना चाहिए, क्या आप जानती हैं? मैं सोचती हूँ कि यह पहली बार है जब भारत में लोग - लेखक और दूसरे लोग उस प्रकार की यंत्रणा झेल रहे हैं जैसी यंत्रणाएं चिली और लैटिन अमेरिका में लोगों ने झेली थीं। एक प्रकार का आतंक खड़ा कर दिया है जिसका पूरा आंकलन हमें नहीं है। आप उन कालों से होकर गुजरते हैं जब आप बहुत चिंतित होते हैं, फिर क्रोधित होते हैं और फिर विद्रोही बन जाते हैं। मेरा मानना है कि कहानी का खुलासा अभी होना है।

क्या आप इस नई पुस्तक से लोगों के क्षुब्ध होने की आशंका रखती हैं? यद्यपि भीड़ किसी भी चीज को विवेक के साथ नहीं पढ़ती, किंतु क्या वे लोग पढ़ेंगे?

यह विक्षुब्धता इस पुस्तक को लेकर, या जो वे पढ़ते या नहीं पढ़ते हैं, उसको लेकर कभी नहीं होती। यह तो उनके द्वारा बनाये गये कुछ मनमाने नियमों से तय होती है कि क्या कहा जा सकता है, क्या नहीं कहा जा सकता, कौन क्या कह सकता है, कौन किसे मार सकता है। वे सब (नियम) इसी प्रकार की चीजों को लेकर हैं। हाँ, तो मेरा तात्पर्य है कि मैं यहाँ रहती हूँ, और मैं यहां लिखती हूँ, और यह पुस्तक यहीं के विषय में है। अगर आप मुस्लिम हैं तो बिना अपने जीवन को जोखिम में डाले बस या ट्रेन में बैठ भी कैसे सकते हैं? अत: मेरे साथ क्या घटित होने वाला है, इसका मुझे कुछ भान नहीं है। मैंने एक पुस्तक लिखी है और इसे लिखने में दस साल लगे हैं और संसार के तीस देशों में सबसे बड़े प्रकाशक इसे छाप रहे हैं। मैं कुछ जड़मति लोगों को इस अवसर को बाधित करने की अनुमति नहीं दूँगी और न उन्हें समस्त सुर्खियां लूटने दूँगी। मुझे ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? यह उनके संकीर्ण दिमागों के बारे में नहीं है, यह साहित्य के बारे में है। इसे संरक्षित करना होगा और इस माहौल में यह युक्तियुक्त ढंग से करना होगा।

पुस्तक के विषय में बात करें। सार्वजनिक जीवन में बौद्धिकता के बीस साल व्यतीत करने के बाद ऐसा क्या था जिसने आप से एक नया उपन्यास प्रकाशित कराया?

ठीक है, यह उपन्यास दस सालों से लेखन में रहा है। लेकिन 'गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' और अब के बीच के बीस सालों के दौरान मैं सोचती रही, मैंने यात्राएँ कीं और घटित होने वाली बहुत सारी चीजों के साथ संलग्न रही और विस्तार से उनके बारे में लिखा। जब मैं राजनीतिक निबंध लिख रही थी तो उनमें तात्कालिकता का गहन अर्थ रहता था क्योंकि हर बार किसी मुद्दे पर आप खुला विचार रखना चाहते हैं। लेकिन कथात्मक साहित्य अपना समय लेता है और बहुस्तरीय होता है। कश्मीर जैसे किसी स्थान पर जो उन्माद घटित हो रहा है, उसे और वहाँ की हवा के आतंक को आप कैसे वर्णित करते हैं? कहाँ और कितने लोग मारे गये, इसे लेकर यह कोई मानवाधिकार रपट नहीं है। जो घटित हो रहा है, उसकी मनोविक्षिप्ति आप कैसे वर्णित करते हैं? कथात्मक साहित्य के अतिरिक्त?

तो यह कारण है जिसके चलते (उपन्यास लेखन) चुना...

नहीं, कारण यह नहीं है। मुझे कश्मीर के विषय में कुछ कहना था, इसके लिए मैंने कथात्मक साहित्य लेखन नहीं चुना अपितु कथात्मक साहित्य ही मुझे चुनता है। मैं नहीं मानती कि यह इतना आसान है कि मेरे पास कह डालने के लिए कुछ सूचनायें थीं और इसलिए मैं एक पुस्तक लिख डालना चाहती थी। ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह तो देखने का एक तरीका है। यह सोचने का एक तरीका है, यह एक प्रार्थना है, यह एक गीत है।

पुस्तक में आप कठोर विषयों पर बात करने के लिए उल्लेखनीय काव्यात्मक भाषा का इस्तेमाल करती हैं।

भाषा आपके लिए बहुत ही प्राकृतिक चीज होती है, आप जिसे जानते हैं। कोई ऐसी चीज नहीं होती जिसे आप मेरे लिए निर्मित कर सकते हैं।

वास्तुशिल्प का अध्ययन करने के कारण आपने किसी बिंदु पर अपने क्षेत्र के रूप में उस पर सोचा होगा, जबकि आज आप इस ग्रह पर सबसे ज्यादा विख्यात उपन्यासकारों में से एक हैं। भाषा के मूल में आपकी रुचि कब से उत्पन्न होती है?

सच में तो भाषा का विचार वास्तुशिल्प से बहुत पहले का है। मेरे रास्ते में वास्तुशिल्प बहुत ही दुनियादारी की चीज के रूप में आया। जब मैं सतरह साल की थी, मैंने घर छोड़ दिया। और मेरे लिए जरूरी था किसी प्रकार से...

(इसी क्षण उनके कुत्तों में से एक पूरी तरह मेरे पर चढ़ गयी। वे जिस क्षण मुझे देखते हैं, मैं उसी क्षण से कुत्तों के भौंकने की अपेक्षाकृत अभ्यस्त हूँ लेकिन (मुझे) उलझन में डालते हुए, यह ऐसी लगी कि जैसे मेरा चेहरा चाटना चाहती हो। अरुंधती हँसती हैं।)

वह आपके साथ इश्कबाजी कर रही है। वे दोनों गली के कुत्ते हैं। वह एक नाली के बाहर जन्मी थी। उसके बाद एक कार ने उसकी माँ को टक्कर मार दी। एक दूसरे को मैंने क्रूरता से बिजली के खंभे से बंधे पाया।

मैं समझती हूँ। तो हम भाषा के साथ आपके रिश्ते पर बात कर रहे थे और आपने सतरह साल की उम्र में घर कैसे छोड़ दिया?

जिस समय मैं बहुत ही छोटी थी तभी से भाषा के साथ संबंध था। जो एकमात्र चीज है, वह यह है कि मुझे संभव ही नहीं लगता था कि मैं कभी किसी लेखक की हैसियत रखूँगी।

क्यों नहीं?

(कारण कि) कोई पैसा नहीं... (इससे) आप आजीविका भी कैसे कमा सकते हैं? अपने जीवन के शुरुआती सालों में मेरी एकमात्र अभिलाषा किसी प्रकार जीवित रहने की थी, अपना किराया देने की थी। इसलिए ऐसा लगा ही नहीं कि कभी समय होगा जब आप वास्तव में बैठ सकते हैं और कुछ लिख सकते हैं। किंतु आजीविका में ही आप इतने व्यस्त होते थे कि आप कैसे जीवित रहेंगे - प्रश्न सिर्फ यही होता था।

तब आपने अपना अस्तित्व कैसे बचाया?

मैं राष्ट्रीय नगर कार्य संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स) नामक इस जगह कार्य किया करती थी जहाँ मैंने लगभग कुछ नहीं कमाया। मैं निजामुद्दीन दरगाह के पास वाले परकोटे के छोटे से गंदे स्थान पर रहा करती थी और काम पर जाने के लिए एक रुपये किराये पर साईकिल लिया करती थी। अपना पूरा समय मैंने पैसों के विषय में सोचने में बिताया। (वे हीं-हीं करती हैं)

तो उस समय आप लगभग नौकरशाह बनने वाली थीं?

नहीं, नहीं, वास्तुशिल्पी। मैं कभी नौकरशाह नहीं बन सकती थी।

किंतु एक सरकारी कर्मचारी?

नहीं, वह भी नहीं। मैं सिर्फ अस्थायी थी, आप इसकी तकलीफों को जानती है।

तो तब सिनेमाई पटकथाओं से यथार्थ में लेखन आरंभ हुआ?

मूलत: एन्नी (इन विच एन्नी गिब्स इट दोज ओपन्स (1989) के उपरांत, एक ऐसी फिल्म जिसने बड़ी सफल फिल्मों से परे संसार में अपना छोटा सा गुप्त रास्ता मात्र बनाया। मैंने इलेक्ट्रिक मून के नाम से जानी गई दूसरी फिल्म लिखी और फिर 'गॉड ऑफ स्माल थिंग्स'। और उसके बाद निबंध लिखे।

और अब आप कथात्मक साहित्य के साथ वापसी कर रही हैं। क्या कोई ऐसा विशिष्ट विचार या घटना थी जिसने इस नई पुस्तक के लिए उत्प्रेरित किया? यह राष्ट्र की दशा पर चिंतन सरीखी लगती है।

(वे कॉफी का एक लंबा घूंट लेती हैं और अपनी आँखें मलती हैं) यह एक चिंतन है, चलिए इसे मात्र चिंतन कह लीजिए। हमेशा कुछ चीजें कुछ चीजों का कारण बनती हैं। मेरे मामले में मैं नहीं समझती कि इसे जिसने चिंगारी दिखाई, वह अनिवार्यत: है क्या। जाहिर है कि यह होगा : किसी के जीवन के इतने साल, और चिंतन और मुठभेड़ें इसी प्रकार की अन्य सभी चीजें... किंतु मेरा मानना है कि यह उन रातों में से एक रात है जिन्हें मैं विरोध प्रदर्शकों के साथ-साथ जंतर-मंतर के सामने गुजारा करती थी जो वहाँ आते हैं। उस रात एक बच्ची प्रकट हुई और लोग पूछ रहे थे '(इसका) क्या करें?' कोई भी नहीं जानता था कि क्या करना है। अत: वह उन चीजों में से एक थी।

मैं इस उपन्यास के उस कथाक्रम का स्मरण करती हूँ, और आप जंतर मंतर पर जिन चरित्रों से मिलती हैं, उनके पीछे की बहुत सी वैयक्तिक कहानियाँ भी वर्णित करती हैं।

यह मेरे लिए उन योजनाओं में से एक थी जिस पर मैंने प्रयोग किया। जैसा कि आप एक 'सफल' पुस्तक लिखने वाले किसी लेखक के बारे में कल्पना कर सकते हैं कि हर एक तब आप से अनुबंध पर हस्ताक्षर चाहता है और आपको बहुत सारे पैसे देता है... और मैंने वही नहीं चाहा। मैं प्रयोग करना चाहती थी। मैं एक ऐसी पुस्तक लिखना चाहती थी जिसमें मैं किसी के पीछे नहीं चलूँ, यहाँ तक कि छोटे से बच्चे या किसी महिला के पीछे भी नहीं। इस पीछे चलने की बजाय मैं यहाँ (उपन्यास में) बैठ जाती हूँ, एक सिगरेट फूँकती हूँ और बातचीत करती हूँ। यह एक आरंभ, मध्य और अंत वाली कहानी नहीं है। यह ज्यादा से ज्यादा किसी शहर या भवन के नक्शे सरीखी है। या यह शास्त्रीय राग के ढांचे सरीखी है, जहां आपके पास स्वर होते हैं और आप विभिन्न दृष्टिकोणों, विभिन्न तरीकों और विभिन्न उतार-चढ़ाव के साथ उन पर अन्वेषण-परीक्षण जारी रखते हैं।

आप अपने लेखन में कितना आत्मकथात्मक विवरण इस्तेमाल करती हैं?

यह कहना कठिन है, क्योंकि जहां आपकी कल्पना समाप्त होती है, आपके प्रयोग वहीं से आरंभ होते हैं जैसे आपकी स्मृतियाँ। यह सब एक सूप जैसा है। यह वैसा ही है जैसे कि जब 'गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' में एस्थाप्पेन कहती है - 'अगर किसी सपने में आप मछली खाते हैं, तो क्या इसका यह मतलब है कि आपने मछली खाई है?' या सपने में आप खुश हैं तो क्या इसका कोई महत्व है? मेरे लिए यह उपन्यास के छद्मवेश में कमोवेश कोई प्रच्छन्न राजनीतिक निबंध नहीं है, यह एक उपन्यास है। और उपन्यासों में हर चीज संसाधित होती है, आपकी चमड़ी के पसीने से उपजी होती है, उसे आपके डीएनए का हिस्सा होना होता है। और यह आपकी देह के अंदर रहने वाली किसी भी चीज की जैसे जटिल होता है।

इस टिप्पणी पर मुझे पूछने दीजिए, जिन सालों आपने इस उपन्यास पर काम किया, उन सालों में किसी बिंदु पर क्या आप इससे थकी थीं? या एक पूरे दशक आप तन्मयता के साथ खुशी-खुशी इससे संबंद्ध रही थीं?

जब मैं कथा साहित्य लिखती हूँ तो उसके साथ मेरा बहुत सीधा-सरल रिश्ता होता है, वह इस अर्थ में कि मैं किसी जल्दी में नहीं रहती हूँ। आप जानते ही हैं कि अंशत: मैं वास्तव में चाहती हूँ कि यह मेरे साथ लंबे समय तक सांस लेता रहे। अगर मैं इससे पक जाती, तो इसे छोड़ देती और कल्पना कर लेती कि संसार भी इससे ऊब जायेगा। मेरे लिए जरूरी होता है कि इसके साथ लगभग वैसा ही रिश्ता विकसित करूँ जैसा कि... (वह बिल्कुल चुप हो जाती है)

जब आप लेखन की शुरुआत करती हैं तो क्या कोई ऐसा कर्मकांड है जिससे आपको गुजरना पड़ता है, जैसे जाज़ रिकार्ड बजाना या ओल्ड मोंक वाली बोतल खोलना?

कहना होगा कि जब मैं जड़ चीजों को तोड़ रही थी और जो करने का प्रयास कर रही थी, उसे समझने की वास्तव में कोशिश कर रही थी, तो बहुत लंबे समय तक कभी कार्य करने में सक्षम नहीं होती थी, एक दिन के सिर्फ कुछ घंटें ही काम कर पाती थी। इस पुस्तक के लेखन के दो चरण थे - एक तो धुँआ उड़ाने वाला चरण था और तब दूसरा इसे गढऩे वाला चरण था। इनमें से कोई भी चरण लेखन और पुनर्लेखन सरीखा न था या मसौदा बनाने सरीखा न था। लेकिन जब आप धुँआ उड़ा रहे हैं तो यह वैसे ही होगा कि मैं तीन वाक्य ही लिख पाती हूँ और फिर क्लांत हो सो जाती हूँ। लेकिन जब अंतत: पुस्तक मेरे समक्ष स्पष्ट हो गई, तो मैं घंटों काम कर करने लगी। ऐसा ही 'गॉड ऑफ स्माल थिंग्स' के साथ था। उसका अकेला वाक्य मुझे सुला देता था। लगभग एक अजीब सी समाधि सरीखी चीज होती थी।

प्रेरणा के लिए आप क्या करती हैं?

आप जानती ही हैं, कि इस देश को छोडऩा मेरे लिए जिन कारणों से बहुत कठिन है, उनमें एक कारण है कि जहाँ कहीं भी मैं मुड़ती हूँ वहाँ कहीं गहरे कुछ घटित हो रहा होता है। यहाँ मैं जिन संसारों से होकर गुजरती हूँ, उस संदर्भ में मैं भाग्यशाली हूँ, चाहे यह गुजरना नर्मदा घाटी में हो या कश्मीर में। मैं जिस संसार में रहती हूँ, वह बहुत ही सामंती, अव्यवस्थित संसार है। मेरे लिए अगर कोई चीज है, तो वह है हर प्रकार के उद्दीपनों से जरूरत से ज्यादा भारी चीज। मुझे लगता है कि मैं पारिवारिक चीजों से बंधी नहीं हूं। मेरे और संसार के बीच एक छिद्रिल सीमा है और इससे होकर बहुत सी चीजें आती और जाती हैं। मैं इसी तरीके से जीती हूं। हर समय मेरे चारों ओर प्रतिभाशाली लोग होते हैं जो कुछ करते रहते हैं। जैसे सिर्फ इस पुस्तक के लेखन प्रक्रिया को ही लें तो अगर मैं चाहती हूँ कि ऐसा हो जो उन्मादी हो... जो वास्तव में मानव न हो, अपितु छापेखाने की मशीन हो, तो मैं इस रास्ते हो लेती हूँ। अगर मैं कोई ऐसा चाहती हूँ जो फोटो लेते हुए शहर के आसपास लुकछिप रहा हो, तो मैं इस रास्ते की ओर हो जाती हूँ। यहाँ हर कोई सदैव स्वच्छंद प्रतिभाओं से घिरा रहता है।  और मेरी वास्तविक प्रेरणा यही है। अगर मैं सच में बहुत ही असभ्य कुत्ते चाहती हूँ तो मेरे पास वे भी होते हैं। (वे हँसती हैं और पीछे भौंक रहे एक कुत्ते को गले लगा लेती हैं, संभवत: वह हमारे साक्षात्कार से अधीर था)

कथा साहित्य और गैर कथा साहित्य के बीच कौनसा साहित्य आपको ज्यादा आनंद देता है? या वे दोनों समान रूप से संतोषप्रद हैं?

नहीं, उनके बीच मेरे लिए कोई तुलना ही नहीं है। गैर कथात्मक साहित्य आनंद हेतु नहीं होता है, गैर कथात्मक साहित्य में उनके साथ एक प्रकार की तात्कालिकता और एक दूसरे प्रकार की प्रगाढ़ता रहती है। लेकिन कथा साहित्य आनंद विषयक होता है। मैं जानती हूँ कि कुछ लोगों के लिए यह बहुत दु:खदायी होता है, लेकिन मेरे लिए नहीं।

 

(बेंगलुरु में रहने वाली जैक ओ' ये का ताजा मनोरंजक जासूसी उपन्यास 'हरी, ए हीरो फॉर हायर' सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यासों में से एक है।)

- द हिन्दू के साभार 

 

अंग्रेजी से अनुवाद : डॉ. प्रमोद मीणा। मो. 07320920958


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