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अप्रैल 2017

प्रकाशकीय

ज्ञानरंजन

पाठकों, अगले अंक में योगेन्द्र आहूजा और राजेन्द्र लहरिया की लंबी कहानियों से 'पहल' में लम्बी रचनाओं के प्रकाशन का अंत होगा। ताकि नये और अधिक रचनाकारों को स्पेस दी जा सके। हमें उम्मीद है कि सहयोगी लेखक हमारी इस कठिनाई का ध्यान रखेंगे।

सूचनार्थ कि आगामी अंक में सुप्रसिद्ध 'पहाड़' के संपादक शेखर पाठक का ''राहुल सांकृत्यायन और हिमालय'' विषयक एक व्याख्यान और बड़े आलोचक मधुरेश का एक मार्मिक संस्मरण पाठकों को पढऩे को मिलेंगे। इसके अलावा कुछ अवरुद्ध सामग्रियां भी प्रकाशित होंगी।
प्रस्तुत अंक में 'मार्क्सवाद पर खुली बहस' अच्युतानंद मिश्र ने तैयार की है और आगा हश्र कश्मीरी पर पहल विशेष हमारे संपादक साथी ने तैयार किया है। उर्दू रजिस्टर के अन्तर्गत एक लंबी मार्मिक कहानी भी पाठक पढ़ेंगे। इस बार हम कई कृतियों और कृतिकारों पर भी सामग्री दे रहे हैं। इनमें बल्लीसिंह चीमा, अनिल यादव, निर्मला गर्ग, मदन कश्यप, पारुल पुखराज और चित्रा मुद्गल की रचनाओं को चुना गया है। इस बार 'पहल' के मुख पृष्ठों पर दो कलाकार हैं। प्रथम मुख पृष्ठ का चित्र अनघा पॉल का है जो ग्वालियर की हैं। वे शौकिया चित्रकारी करती हैं और वंचितों के लिए एक अनोखा एनजीओ चलाती हैं जिसमें फटे पुराने वस्त्रों से नयी सामग्री महिलाएं बनाती हैं। अनघा एम्ब्रायडरी भी हुनर के साथ करती है, वर्तमान में वे जबलपुर में सक्रिय है। यहां पर छपा चित्र 'बाँसिन कन्या' गोंड कला स्कूल से प्रभावित है। विनय अंबर सुपरिचित कलाकार हैं और उन्होंने मुखपृष्ठ का अंतिम पृष्ठ बनाया है। यह श्वेत श्याम चित्र क्यूबा के महान कास्त्रो के निधन पर बनाया गया था और इसे पिछले अंक में जाना था जो संभव नहीं हो पाया। 'पहल' के खुलते पृष्ठ पर कवि मारिन सोरस्क्यू की काव्य पंक्तियां विशेष रूप से छापी गई है। इसका तात्पर्य है कि पुस्तकों का चयन हम और अधिक सावधानी और संतुलन के साथ करेंगे।
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