लंबी कविता
रात और सुबह के धुँधलके के बीच लगभग छ: दिशाओं से आए लगभग छ: लड़के लगभग पाँच सीढिय़ाँ चढऩी शुरू करते हैं जो उन्हें लगभग चार वर्षों में तय करनी हैं सीढिय़ाँ खत्म होने पर उन्हें चार दरवाज़े मिलेंगे जहां से तिलिस्म शुरु होता है
रास्ता बहुत लंबा है और भोर होनी बाकी यह बात दीगर है और ज़रूरी भी कि सीढिय़ाँ लगभग पाँच हैं, कि सीढिय़ों में पीढिय़ों की चढ़ाइयाँ हैं
आकाश में कुहासा है और थोड़ी लाली पत्तियाँ थोड़ी स्याह हैं और थोड़ी धानी रास्ते में थोड़ा सूखा है और थोड़ा पानी सभी लड़के सफर में है और सभी उत्सुक, सभी लड़के दुख में है और सभी उत्सुक, सभी लड़के सुख में हैं और सभी उत्सुक, एक लड़का आकाश से आया है और एक पाताल से एक लड़का मैदान से आया है और एक पहाड़ से एक लड़का पठार से आया है और एक कछार से
लड़के अपने परिवार में साधारण हैं और पहचान में अद्भुत
पहला लड़का कछार से आया है इसका चेहरा नदी हर वर्ष बदल देती है नदी रोज़ इसे नयी शक्ल देती है कभी यह हरा होता है, तो कभी भरा होता है इसकी आँखों में मछलियाँ होती हैं और हाथों में जाल इसकी बातों में मंत्र होते हैं और चुप्पी में षड्यंत्र
आकाश से आने वाला लड़का बादलों की तरह गरजता है बिजली की तरह कड़कता है इसके पास आकाश गंगाएँ और निहारिकाएं लगातार संदेशे और प्रेमपत्र भेजा करती हैं और यह शनि की तरह अपने चमकदार वलय पर बैठा दंडों का विधान करता रहता है इसके यान का मार्ग नियत नहीं है यह कहीं से भी पुच्छल तारे की भाँति गुज़र सकता है मलबा और विध्वंस इसके विजय स्तम्भ हैं यह नक्षत्रों में गुरु है
तुम्हारी दुनिया में आग विस्फोटों और ब्लैक होलों के सिवा कुछ और भी है क्या? मसलन हरियाली, हवा और पानी मसलन चिडिय़ा, खरगोश और घास मसलन कीचड़, नालियाँ और चप्पलें नहीं ना? तो फिर इतनी अकड़ फूँ क्यों? बेहद बुनियादी सवाल करने वाला यह लड़का मैदान से आया है जहाँ दूर-दूर तक बस खेत ही खेत हैं फिर भी आश्चर्य है इसके सिर के तीन चौथाई से ज़्यादा बाल झड़ चुके हैं इस लड़के का परिचय लोक गीतों में मिलता है जिनको सुनते ही यह बहक उठता है ''खेतों की मिट्टी ऐसी ही होती है बादलों का मुँह जोहती रहती है जो बूँद मिल जाए तो बौरा जाती है''
चौथा लड़का पठारी है इसका रंग पक्का है और परत दर परत जमा हुआ एक पर्त में घास है तो दूसरे में पत्थर एक पर्त में पत्थर एक पर्त में प्यास है तो दूसरे में मशक गोया घिस गया है या कि उठ गया है कि एक रगड़ है जो घट्ठा बन गया है
पाँचवा लड़का पहाड़ का बाशिंदा है उबड़-खाबड़ और पथरीला झरने की दुर्धर्ष और नदी की तरह कोमल बर्फ की तरह जमा हुआ और पत्थर की तरह पड़ा हुआ इसके गीतों में गहरी घाटी की गूँज है इसकी कोहरे से ढकी आँखों में लालटेन की टिमटिमाहट है
छठा लड़का पाताल का रहवासी है नग्न और चुप्पा इसकी आँखों में दरारें हैं और नाखूनों में पीलिया इसका इतिहास अंधेरा है भूगोल कीचड़ और दलदल है वैधानिक उपलब्धि के नाम पर यह आरक्षित है, सांस्कृतिक आख्यानों में यह नाली का कीड़ा है पैरों की चप्पल है सामाजिक परिदृश्य में यह कौआ है काला है, गज़ालत का मेढक है कोढ़ है, चेचक है, दाग है हरामी है, कुत्ता है, भंगी है, चमार है लेकिन इस सफर में इसके कंधे झुके हुए नहीं उठे हुए हैं हालांकि उन पर अभी भी सदियों का चमड़ा और मैला लदा हुआ है
सभी लड़के दुनिया के तमाम लड़कों की पुनरावृत्ति हैं लेकिन सभी मौलिक हैं
रात और सुबह के धुँधलके के बीच छ: दिशाओं से आये छ: लड़के पाँच सीढिय़ाँ चढ़ रहे हैं सीढिय़ां वहां खत्म होती हैं जहां से तिलिस्म के चार दरवाज़े खुलते हैं
लड़कों के पैरो में वेग है लड़कों के हाथों में शक्ति लड़के अपनी पृष्ठभूमियों को बिसरा चुके हैं लड़के कदम से कदम मिला रहे हैं लड़के हाथों से हाथ मिला रहे हैं
लड़कों के होठों पर बातें हैं बातों में नैन-मटक्का हैं बातों में चाकू-कट्टा हैं बातों में गाली-गुप्तारी हैं बातों में दोस्ती-यारी है बातों में महतारी-बाऊ हैं बातों में पंडित-नाऊ हैं बातों में लंबी-बातें हैं बातों में छोटी बातें हैं बातों में उँची बातें हैं बातों में नीची बातें हैं गोया बातों में बस बातें ही बातें हैं
लड़कों के लिए बात करना एक मजबूरी है क्योंकि यह सफर तय करना ज़रूरी है वर्ना लड़के जितना बता बता रहे हैं उससे ज़्यादा छुपा रहे हैं
वर्ना लड़कों के कानों में मीलों लंबी आवाज़ें हैं आवाज़ों में मंदिर की घंटी है स्कूल की प्रार्थना है मास्टर की छड़ी है बाप के तमाचे हैं पड़ोसी के ताने हैं लेकिन सबसे बड़ी आवाज उस घड़ी की है जिसने लड़कों की कलाई पकड़ रखी है
वर्ना लड़कों की नाकों में मीलो लंबा धुआँ है धुएँ में माँ की अंगीठी है बाप की बीड़ी है बस्ती का दंगा है लेकिन सबसे गाढ़ा धुआँ उस अगरबत्ती का है जो उनके पूजाघरों से उठता है जिसने उनके दिमागों को बलगम से भर दिया है
वर्ना लड़कों की आँखों में मीलों गहरे कुएँ हैं इन कुओं में झाँको तो सूखा है सन्नाटा है कुएं हुआं-हुआं करते हैं फिर भी लड़के खुश हैं मगन है... आशान्वित हैं
लड़के सफर तय कर रहे हैं सीढिय़ाँ अब खत्म हो चुकी हैं लड़के तिलिस्म के अंदर जा रहे हैं लड़कों के अंदर जाते ही तिलिस्म के दरवाज़े बंद हो गये हैं तिलिस्म के अंदर हवा बेहद मुलायम है और बेहद हल्की तिलिस्म का रंग इंद्रधनुषी है और रोशनी उजली घास बेहद नरम और हरी है सीढिय़ाँ चमकदार और उँची हैं बरामदे चौड़े हैं और गलियारे स्तंभों पर टिके हैं तिलिस्म में दारोगाओं के कक्ष हैं तिलिस्म में एक ग्रंथालय है जहां से अंधकार और प्रकाश जैसा कुछ टूट-फूट रहा है
तिलिस्म में परियाँ यहाँ से वहाँ हाथों में फूल लिए तितलियों के पीछे दौड़़ रही हैं लड़के भौचक हैं और स्तंभित लड़कों के सपनों का कलश जगमगा रहा है लड़के उत्तेजना के मारे थरथरा रहे हैं लड़के उल्लास से बरामदे में पैर रखते हैं तो बरामदे की फर्श सफेद और काले खानों में बदल जाती है और हर खाना एक बंद कमरे में तब्दील हो जाता है
लड़के कमरों की दीवार पर चढ़ते हैं और वे पाते हैं कि वे एक अंतहीन सुरंग में पहुँच गए हैं सुरंग एक गलियारे में खुलती है लड़के गलियारे में चलना शुरू करते हैं और पाते हैं कि गलियारे के स्तंभों में कैमरे और बंदूकें फिट हैं लड़के घास पर सुस्ताना चाहते हैं और वह पाते हैं कि घास के सांप नर्म रोयेंदार और हरे होते हैं कभी कभी ये रंगहीन और अदृश्य भी हो जाते हैं और इन साँपों का काटा जीवन भर केवल पानी ही माँगता रहता है लड़के बेहद प्यासे हैं और बेहद श्लथ उन्हें रक्त में हरे साँपों का ज़हर घूम रहा है लड़के पानी की तलाश में यहां से वहां भटक रहे हैं
तिलिस्म में खिड़कियाँ हैं और खिड़कियों से लगी परियाँ खड़ी हैं उनकी आँखों में आमंत्रण हैं और होठों पर गीत पूरे तिलिस्म में उनके दुपट्टे फरफरा रहे हैं लड़के अपनी थकान भूल गये हैं वे परियों के साथ गीत गा रहे हैं फूल और पत्र किताबों में रख रहे हैं परियों के गीत धीरे-धीरे श्रंृगार से कारण करुण करुण से वीभत्स रस में तब्दील होते जा रहे हैं परियाँ हो रही हैं... परियाँ चीख रही हैं परियाँ दांतों पर दाँत जमाए हिस्टीरिया के दौरों से गुज़र रही हैं
लड़के परियों के रुदन से विस्मित हैं परियों के दुख भी हमारे दुख जैसे होते हैं
लड़कों को गले में काँटे महसूस होते हैं लड़कों को दिमाग में भाले घुसते महसूस होते हैं उन्हें याद आता है वह बेहद प्यासे हैं लड़कों को परियों की आँखों से पानी रिसता नज़र आता है वह उसे पीना चाहते हैं वह परियों की आँखों से होंठ लगाते हैं और अचानक कै करते हुए उकडूँ बैठ जाते हैं परियों की आँखों से रक्त और पीप टपक रहा है लड़के घबराए हुए हैं लड़के बदहवास लड़़के फिर भागते हैं
यह तिलिस्म के पहले दारोगा का कक्ष है लड़के इसके पास चीखते हैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हैं क्यों?... क्यों?... क्यों? कहाँ?...कहाँ?....कहाँ? कैसे?...कैसे?....कैसे? इस दारोगा के दाहिने हाथ का अंगूठा एक शीतल पेय के विज्ञापन की तरह हमेशा उठा रहता है यह तिलिस्म का स्टंटमैन है इसका स्वउच्चारित मैं, मैं और मैं इसकी संपूर्ण पहचान है देवताओं में यह बजरंगबली और देवियों में दुर्गा का उपासक है लड़कों के सवाल में जवाब में यह चिल्लाता है मैं, मैं और मैं और पठार से आए लड़के के शरीर में प्रवेश कर जाता है पठार से आया लड़का चिल्लाने लगता है मैं, मैं और मैं लड़के हतबुद्धि हैं, लड़के अवाक
लड़कों का प्रश्न अब दूसरे दारोगा के कक्ष में गूंज रहा है क्यों? क्यों? क्यों? कहाँ? कहाँ? कहाँ? कैसे? कैसे? कैसे? यह दारोगा इतना नफीस और अभिजात्य है कि यह एक शास्त्रीय कला में बदल गया है सख्त और सच्ची बातें इसका मन दुखा देती हैं लड़कों के सवाल के जवाब में यह सारे लड़कों को टुकुर-टुकुर ताकता है और कछार से आए लड़के के सिर पर हाथ फैरता है कछार से आया लड़का अचानक एक प्राचीन शंख में बदल जाता है और तिलिस्म की प्राचीर पर जा कर ज़ोर ज़ोर से युद्धघोष करने लगता है
बचे लड़के गुस्से और डर से काँपते हैं और प्रधान दरोगा के कक्ष में जाकर जोर जोर से हांफते हैं क्यों? क्यों? क्यों? कहां? कहां? कहां? कैसे? कैसे? कैसे? तिलिस्म के मुख्य दारोगा का चेहरा एक आईना है जो भी इस से बात करता है उसमें उसी का चेहरा दिखता है उसी की आवाज़ सुनाई देती है
ये आकाश से आए लड़के के हाथ में अपना राजदंड देता है और खुद एक अदृश्य हरा साँप बन कर राजदंड से लिपट जाता है आकाश से आए लड़के का चेहरा एक चमकते क्रिस्टल में बदल जाता है और पूरे तिलिस्म में चारों ओर उसकी चमकीली छवियां फैल जाती हैं
अब तिलिस्म में सिर्फ पहाड़, मैदान और पाताल से आए तीन लड़के बचे हैं बचे लड़के ग्रंथालय में अपने ज़हर का इलाज़ खोज रहे हैं सारी किताबें पढऩे के बाद वे ठगे से खड़े हैं लड़के और ज़्यादा भ्रमित हो गए हैं ग्रंथालय की दीवारों पर नारे और जुलूस उभर रहे हैं ये तिलिस्म का एक और रंग है जितना चमकदार है उतना ही बदरंग है
बचे हुए लड़कों के शरीर में ज़हर फैलता जा रहा है बचे हुए लड़के भागना चाहते हैं लेकिन उनके पांव कहीं खो गए हैं लड़कों के हाथों का कुछ पता नहीं लड़कों की आँखें पेड़ों पर टंगी हैं और देख रही हैं कि तिलिस्म से बाहर निकलने के हर रास्ते पर लावा बह रहा है आग और धुएँ के बवंडर में सब कुछ चट-चट कर रहा है और तिलिस्म का नया प्रधान दरोगा अपने जादुई आईने के सामने बैठा अट्टहास कर रहा है तेज़ होते मंत्र और शंखघोष से डर कर पहाड़ से आया लड़का बुदबुदाने लगता है अपने पुरखों का कोई गीत मैदान से आया लड़का रोने लगता है और पाताल से आया लड़का तिलिस्म की छत से बांधने लगता है लटकने के लिए रस्सी तिलिस्म के भीतर आग बढ़ती जा रही है नए दरोगाओं के मंत्रों और शंखघोष के बढ़ते जा रहे भयानक शोर में मुख्य दारोगा की चमकीली छवियाँ सब कुछ लीलती जा रही हैं
तिलिस्म के बाहर हवाओं के होंठ तिरछे हैं और धूप की निगाह टेढ़ी सीढिय़ां अपने बदन की धूल झाड़ कर फिर से चमकने लगी हैं एक रहस्यमयी आमंत्रण फिर से दसों दिशाओं में बिछ गया है देश देशांतर के लड़कों की नींद और सपनों में तिलिस्म दस्तक दे रहा है
अवनीश गौतम फाइन आटर्स में स्नातक हैं। कानपुर की पैदाइश, आजकल दिल्ली की एक विज्ञापन एजेंसी में काम करते हैं। यह कविता 1997 में पहली बार लिखी गई, जब अवनीश बनारस में पढ़ रहे थे। नये सिरे के बाद में लिखी गई। मो. 09891570925 |