मुखपृष्ठ पिछले अंक स्व. मुद्राराक्षस और सतीश जमाली की स्मृति को समर्पित
जुलाई 2016

स्व. मुद्राराक्षस और सतीश जमाली की स्मृति को समर्पित

संपादक

शोक


मुद्राराक्षस के निधन का समाचार सुनकर सबसे पहली बात मुझे ध्यान में आई कि बहुत पहले उनकी कुछ कहानियां पढऩे के अलावा उनको अधिक जाना नहीं है। उनकी एक क़िताब ‘धर्मग्रंथों का पुर्नपाठ’ मेरे पास शायद तेरह सालों से पड़ी हुई है, पर मैंने पढ़ी नहीं है। मैंने यह क़िताब पढऩी शुरू की। अभी कोई साठ पन्ने पढ़े हैं और अविभूत हूँ। उनके संदर्भों का उल्लेख करते हुये उनकी प्रस्तावना है कि आर्य भारत के निवासी थे पर उनमें ब्राह्मण नहीं थे। ब्राह्मण बाहर से आये और वैदिक संस्कृति के नाम पर सुविधानुसार अपने स्वार्थ में बार बार बदले गये तंत्र यंत्र उन्होंने स्थानीय लोगों पर थोपे। इस क़िताब में जो नई धारणायें हैं उनको फैलाया जाना चाहिए। खास तौर पर इस क़िताब में ‘‘वैदिक समुदाय और स्त्री’’ तो जरूर पढ़ा जाना चाहिए
इस महत्वपूर्ण क़िताब को इतिहास बोध प्रकाशन ने 2002 में छापा था
                                                                                     कवि और कार्यकर्ता लाल्टू द्वारा सूचित

जून महीने में एक मामूली सी दुर्घटना के बाद सतीश जमाली नहीं रहे। वे पठानकोट से इलाहाबाद आये थे। वे अनोखे कहानीकार और संपादक थे और उन्होंने लम्बे समय तक सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘कहानी’ के संपादक रहे। ‘कहानी’ ने हिन्दी की सैकड़ों यादगार कहानियों को छापा है। नये कथाकारों की तो वह एक केन्द्रीय जगह थी। प्रेमचंद के वरिष्ठ पुत्र, सरस्वती प्रेस के स्वामी श्रीपत राय के वे प्रिय थे और सारे इलाहाबाद के यार बन गये। उनके पास आधुनिक इलाहाबाद के स्वर्णकाल के अनुभवों का बड़ा खजाना था। ‘पहल’ ने उन्हें कुछ जरूरी काम सौंप रखा था पर दुर्भाग्य से वह इंतजार टूट गया। इलाहाबाद के चार शानदार पंजाबियों, सर्वश्री बलवंत सिंह, उपेन्द्रनाथ अश्क, रवीन्द्र कालिया के बाद सतीश जमाली को अंतिम कड़ी के रूप में पहचाना गया। जमाली की बोली प्यारी थी, वह पठानकोट की कलम थी। सिविल लाइंस इलाहाबाद के महात्मा गांधी मार्ग पर अभी भी कई कोने बचे हैं जहां सतीश जमाली को मृत्यु के उपरांत भी देखा जा सकता है।
संपादक


Login