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जून-जुलाई 2015

एक मिट्टी से फूटते दो पौधे

अनिल यादव

उपन्यास अंश



स्टेशन शहर के पिछवाड़े है जहां टैक्सी, आटो और रिक्शे वाले टांगे फैलाए पसरे रहते हैं।
गांव की तरफ एक छोटा सा बाजार है जहां मिठाई के मर्तबानों, यहां तक कि पकौडिय़ों और लोगों के सिरों पर भी गहरे कत्थई हड्डे मंडराते रहते हैं, उन्हें देखते हुए भ्रम होता है जैसे भुने हुए चने के दानों को पंख लग गए हों, छप्परों, गुमटियों में चलने वाली दुकानें एक लुप्त होती सभ्यता की खाने की चीजें दिखाई म्यूजियम हैं जिनके मर्तबानों में गुड़ की जलेबियां, खाज़ा, खुर्मे, घुन लगी मठरियां हैं लेकिन सबसे ज्यादा भकोसी जाने वाली चीज शहर से आने वाले अखबार हैं जिनको गुटकने के लिए चाय पीनी पड़ती है।
ग्रेजुएट पान भंडार के बगल में इदरीस का कैंची से लेकर कैंलेडर तक हर चीज पर सातसौछियासी के ठप्पे वाला हेयर कटिंग सैलून है, इस संख्या का कोई धार्मिक मतलब नहीं है, सात-आठ-छह यह तो ग्राहकों की निजता में घुसने की उसकी एक कदम आगे दो कदम पीछे की रणनीति का कोड है। वह कस्टमर की जिंदगी के रहस्यों में तेजी से खोंचा मारकर आंखों में झांकता है, अवरोध पाकर दुगुनी फुर्ती से अल्ला का करम है 'सब अपना कमाते अपना खाते हैं' कहते हुए नए रास्ते की खोज शुरू कर देता है, हालांकि आजकल उसका सारा वाक्-कौशल लौंडों को घटिया केमिकल वाले फेशियल कराने के लिए फुसलाने में जाया हो जाता है। उसके सैलून पर झिझकते हुए बाल खींचने और मुंहासे फोडऩे वाले किशोरों की आवाजाही हमेशा रहती है। यह मुंहासे पोडऩा भी कमबख्त क्या शानदार काम है, बड़ी मुश्किल से एक मीठी कसक के साथ कोई एक फूटता है, खील से खाली हुई जगह में खुद से बढ़ती जाती अजनबियत भर जाती है।
दुकानों के बीच यहां देखने की चीजें गुजरती ट्रेनें और डा. परमानंद परमार की होम्योपैथिक डिस्पेंसरी हैं। हमेशा ऊंघते हुए मक्खियां हांकने में मशगूल इस बाजार के इकलौते कसाई से यूरोप में धाक वाले भारतीय सर्जनों को भी ईर्ष्या हो सकती है जिसकी ख्याति है कि वह मरणोपरांत हर बकरी का जेंडर इस तरह बदल देता है कि फिर कोई दोबारा सुधार नहीं सकता। कसाई के बगल में यह डिस्पेंसरी है जिसकी टूटी फर्श पर बेंचों के नीचे घास उग आती है जिसे कोई गरीब मरीज पांचवें-सातवें महीने उखाड़ देता है। मटमैले लेबलों वाली बोतलों, शीशियों से खडख़ड़ाते शीशे के टेढ़े पल्लों वाली दो आलमारियों के बीच लगे साइनबोर्ड पर नाइट सूट पहने एक यूरोपियन बूढ़े के गंजे सिर की गोलाई में उड़ते हुए लाल पेन्ट से लिखा है - रोग पहले मन को ग्रसता है फिर तन में प्रकट होता है।
डाक्टर एक बड़ी सी मेज के पीछे आम की लकड़ी की भारी कुर्सी पर बैठा हुआ हिंदी में अनूदित दो किताबों मैटेरिया मेडिका और ऑर्गेनान मेडिसिन को छानता रहता है, उसे याद नहीं कि ये किताबें किसी से उधार ली थीं या वह खरीद कर लाया था लेकिन उनसे उसने दो काम की चीजें सीखी हैं, एक तो यह कि होम्योपैथी लॉ आफ सिमिलिया के जरिए कांटे से कांटा निकालने की कला और दूसरे किसी रोग के ऊपरी शारीरिक लक्षण व्यर्थ है, असली मतलब तो संवेदना, संदेह, डर, स्वप्न, कामुकता, घृणा, उत्तेजना और क्रोध के कारणों का है जिनको सविस्तार जाने बिना दवाई देना चिकित्सा कला के साथ सरासर बेईमानी है। वह कपटी आहों के साथ मरीज के चेहरे पर धंसी आंखें स्थिर किए  हुए हथेलियां रगढ़ता, लंबी सांसे लेता हुआ दस कोस के बाशिंदों की आत्मा थाह लेता है और घरों के सबसे गुप्त रहस्य जान जाता है।
यह डिस्पेंसरी इलाके की राजनीति का सबसे जागृत अड्डा है जहाँ डाक्टर हर तरह के मसले सुलझाता है। जब वह बोलता है तो लोकल एमएलए भी बच्चों की तरह सांस रोक कर सुनता है क्योंकि उसके बताए मुद्दे कभी फेल नहीं हुए, पार्लियामेंट से लेकर प्रधानी तक के चुनाव नतीजों की कोई भविष्यवाणी कभी गलत साबित नहीं हुई।
नौसिखियों नेताओं को वह राजनीति का शुरुआती पाठ यह पढ़ाता है कि पहले समस्या पैदा करो फिर निदान अपने आप हो जाएगा। वे नहीं समझ पाते कि कैसे कई समस्या पैदा की जा सकती है तब वह डॉ. फैडरिक सैमुअल हैनीमैन की महान खोज की कहानी सुनाता है। वह एक मोटी किताब खोलकर एक तस्वीर के आगे सिर झुकाते हुए लंबी सांस लेकर कहता है- डा. हैनिमैन कोई सवा दो सौ साल पहले स्काटलैंड के डाक्टर विलियम कलेन् सलेन् की किताब मैटेरिया मेडिका का अंग्रेजी से जर्मन में तर्जुमा कर रहे थे, एक जगह लिखा था सिनकोना की छाल की डोज देने से मलेरिया का रोगी चंगा हो जाया करता है। डा. हैनिमैन अपनी जवानी में एक नीली आंखों वाली खूबसूरत लड़की के इश्क में पड़कर हंगरी के दलदली इलाकों में भटकते फिरे थे, उस लड़की को मलेरिया हुआ, उन्होंने इलाज किया लेकिन नहीं बचा सके, वह मर गई। डा. हैनिमैन ने पुराने प्रेम की अकाल मृत्यु की टीस और पछतावे से झल्लाकर एक दिन सिनकोना की छाल चबा डाली, आश्चर्य कि उन्हें मलेरिया हो गया। उन्होंने इस प्रयोग को अपनी बेटी एमिलिया और कई दोस्तों पर किया, उन सबमें भी मलेरिया के लक्षण प्रकट हो गए, फिर उन्होंने इन सबको फिर वही सिनकोना की ही सीमित डोज देकर चंगा किया। इस तरह एक महान चिकित्सा सिद्धांत सिमिलिया सिमिलिबस करेन्टर का जन्म हुआ, जो चीज एक स्वस्थ्य आदमी में किसी बीमारी के लक्षण पैदा कर सकती है वही उन लक्षणों वाले किसी बीमार आदमी का इलाज बन जाती है।
डा. हैनिमैन को सबसे गंभीर चुनौती लटकते बकरे पर से मक्खियां हांकते, सर्जनों के कान काटने वाले पड़ोसी कसाई से मिलती थी, वह उनींदी आवाज में वही से बड़बड़ाता... अब बुढ़ापे में बच्चे पैदा करने की तरकीब न सिखाइए बाबूसाहेब, फर्ज कीजिए हमको कोई जहर देकर मार दे, हमारे लड़के हमको सिपुर्दे खाक करने को ले जा रहे हों और आप हमारे जनाजे में आकर वही जहर हमारे मुंह में डाल दें तो क्या हम फिर से जिंदा हो जाएंगे!
नौसिखिया नेताओं की समझ में भले सिर्फ भ्रम आता हो लेकिन इस सिद्धांत का व्यवहारिक इस्तेमाल डाक्टर इस तरह करता था कि डिस्पेंसरी के सामने से गुजरने वाले बच्चों के मुंह प्यार से खुलवा कर एक शीशी से कुछ गोलियां टपका दिया करता था। कई तो खुद दौड़कर दिन में कई बार आते थे और मछलियों की तरह मुंह खोलकर शीशी के ऊपर हुक की तरह मुड़ी तर्जनी के उठने का इंतजार माथे में आंखे धंसाकर करते थे ताकि मीठी गोलियां टपक सकें। डाक्टर अलाय बलाय और छोटी-मोटी बीमारियों से बचाने के नाम पर इन गोलियों का सबसे स्नेहिल इस्तेमाल बूढ़े कसाई के नाती-पोतों पर करता था जिनमें से अधिकांश तपते, छींकते, खांसते अपनी मांओं के साथ जल्दी ही डिस्पेंसरी में दिखाई देते थे लेकिन  इस बार फीस देनी पड़ती थी। लगातार दूसरी बार फीस उधार करने वाले मरीजों का डाक्टर ऑर्गेनान मेडिसिन का लाल स्याही से अंडरलाइन किया हुआ पैरा नंबर दो सौ सताइस सुनाता था, बीमारी मूर्ख लोगों को चतुर और बुद्धिमानों को मतिमंद बना देती है लेकिन होम्योपैथी के डाक्टर को किसी बीमारी को ठीक कर देने के बाद यह देखकर सदमा लगता है अब स्वस्थ्य हुए आदमी का भावनात्मक व्यवहार बदल गया है, उसके मन में मैल आ गया है, वह कृतघ्न हुआ है और अब उसे बात बात पर गुस्सा आने लगा है।
इस स्टेशन पर आकर मरने से बस एक घंटा तेइस मिनट पहले मॉडल, टीवी सीरियलों की पॉपुलर अभिनेत्री आंध्र प्रदेश की मेघना राव उर्फ गोदावरियम्मा पहली बार नार्थ इंडिया के युवाओं में अपना क्रेज देख कर बेहद खुश थी। वह तीन साल तक मुंबई में किराये के डेढ़ कमरों वाले छोटे से फ्लैट से कई स्टूडियोज के बीच चकरघन्नी रहने, नकचढ़े डाइरेक्टरों की बेवजह डांट खाने, प्रोड्यूसरों की अपराधबोध में गर्क कर देने वाली शर्तें सिर झुकाकर स्वीकार करने और मेहनताने के मिले चैकों में से दो तिहाई अपने पिता के खाते में ट्रांसफर करने के बाद पहली बार एक बड़ी मल्टीनेशल कंपनी के सौंदर्य प्रसाधनों के प्रमोशन टूर पर निकली थी। उसे पहली बार अपने उस अस्तित्व का पता चला था जो टीवी स्क्रीन से बाहर निकल कर न जाने कब दर्शकों के मन में चला गया था जो किसी सचमुच की स्त्री में होना संभव नहीं है और विज्ञापनों के लिए हमेशा ऐसी ही छवि वाली स्त्रियों की दरकार होती है।
अब तक वह ऐसी एक्ट्रेस थी जो हर दिन थककर चूर हो जाने तक कैमरे के आगे असली जैसी नकली भावनाएं पैदा करने वाली मानसिक फैक्ट्री की मशीनें चलाती थी, रात में अक्सर कुछ भी खाकर सो जाती थी और छुट्टी के दिन केरल के एक बूढ़े आयुर्वेदाचार्य के घर जाती थी जो मेकअप के जहरीले रसायनों से बचाने के लिए उसकी देह का ट्रीटमेंट कर रहा था ताकि उसका कैरियर लंबा हो सके। लेकिन एक हफ्ते में ही वह अपनी देह के सभी अंगों, अदाओं, मुस्कानों और आहों का असली प्रभाव जान गई थी। लाखों आंखों की लालसा में खुद को टिमटिमाते देखना रोमांच था, वह खुद को जानने वालों के साथ फ्लर्ट करके उन्हें चाहने वालों में बदलने का कौशल सीख गई थी। कंपनी के साथ हुए कांट्रैक्ट के मुताबिक नार्थ इंडिया में उसे लोकर फ्रैंचाइजी के साथ मिलकर टार्गेट कस्टमर्स युवाओं और महिलाओं के बीच अपने अपियरेन्स, इंटरैक्शन का तरीका खुद चुनना था जिसमें उसने दक्षिण भारतीय उच्चारण 'तोड़ा तोड़ा इन्दी आता' की मासूम अदा से कमाल का असर पैदा किया था।
कंपनी के सभी ब्रांड मैनेजर्स उसे मिल रहे रिस्पांस से चहक रहे थे, दूसरी बड़ी कंपनियों के एजेंट उसे घेर रहे थे, दिखाई देने लगा था कि वह विज्ञापन की दुनिया का एक बड़ा ब्रांड यानि कारपोरेट के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बनने वाली है। उसने अपने प्रायमरी स्कूल के अध्यापक पिता को फोन पर कह दिया था कि वे अब जब चाहे अपनी मनपसंद कार खरीद सकते हैं और मैसूर में अपना फ्लैट बुक करा सकते हैं क्योंकि वह अब ईएमआई यानि लोन की किस्तें चुकता कर सकने की स्थिति में आ गई है।
शहर के सबसे बड़े मॉल फन रिपब्लिक के भीतर वातानुकूलित स्पेस के अतिरेक से लडख़ड़ाती आवाजें, तीखी सीटियां और मुक्त सिसकारियां थीं, उन खुशकिस्मत युवाओं की खचाखच भीड़ थी जो मेघना राव को देखने के लिए अंदर घुसने और इसी कारण फ्री स्नैक्स, कोक और कंपनी की गोरा बनाने वाली क्रीम का सबसे छोटा पाउच पाने में भी कामयाब हो गए थे। बाहर कई एलसीडी स्क्रीनों के आगे मिस नार्थ आफ फन रिपब्लिक का फाइनल राउंड, जिसकी चीफ जूरी मेघना राव थी, देखने के लिए जुटी भीड़ के कारण पुलिस वालों की कोशिशों के बावजूद ट्रैफिक किसी तरह रेंग रहा था। बिल्डिंग के खंभे और बाहरी दीवारें, गुब्बारों, चमकीले सितारों, मेघना राव के साथ स्विम सूट में खड़ी स्टैंडर्ड फिगर वाली लड़कियों के कटआउटों से सजे थे, अंदर म्यूजिक और शोर इतना धमाकेदार था कि बहुमंजिला बिल्डिंग माचिस की डिबिया की तरह हिलती लग रही थी। स्टेज पर मायावी लोक रचती लेजर बीमों की बौछार में स्थानीय सुंदरियां कैटवॉक कर रही थीं जिनसे अधिक उनके मां बाप को परिणाम का इंतजार था जो अगली कतारों में बैठे हुए थे, खालिस देसी गर्व और निराशा को अंग्रेजी फैशन में जताने के चक्कर में उनके चेहरे और देहभाषा दोनों उनका साथ छोड़ देते थे जिस कारण वे तुरंत पहचान में आकर जबान को द्विअर्थी ढंग से इस्तेमाल करने में माहिर अनाउंसर के तंज के शिकार हो जाते थे।
अनंत उस वक्त अपनी मां के साथ एक रिक्शे से मॉल के सामने से गुजरा था, वह मां को घुटनों के चेकअप के लिए डाक्टर के पास ले जा रहा था, उसे याद है रिक्शा चलाने वाले स्मार्ट लड़के ने अपनी बातों से उसे और मां को वहां पहुंचा दिया था जहां वे दोनों साथ जाने से हमेशा बचते रहे हैं। जाम में वह एक एलसीडी स्क्रीन के आगे थम गया था, उसने कैटवॉक करती लोकल लड़कियों को देखते हुए कहा, ''भाईजान, सड़क पर इनको इससे ज्यादा कपड़े में देखो और तारीफ करो तो बुरा मानती हैं, इस समय थोड़ा सा छोड़ कर बाकी पूरी नंगी हैं, लौंडे सीटी बजा रहे हैं और इसे टीवी पर जनता को दिखाया जा रहा है, कितनी अजीब बात है?''
अनंत ने समझाने की कोशिश की, ''ये शरीर की नाप तौल का कंपटीशन है, यह देखा जाता है किसका फिगर कितना अच्छा है।''
''भाईजान अगर शरीर का मुआमला है तो बेबी कंपटीशन भी हमने देखा है लेकिन उसमें तो बच्चों को नंगा करके नहीं चलाया जाता।''
''इसमें शरीर के साथ जवानी भी दिखायी जाती है,'' उसके मुंह से निकल गया।
''गलत है, सरे नौ से गलत भाईजान, इतनी दूर से ककड़ी की बतिया जैसी लड़कियों के रोएं दिखाई दे रहे हैं, वे ठीक से जवान नहीं हो पाई हैं,जरूर उनके वालिदैन ने उमर का गलत सर्टिफिकेट दिया होगा।''
 अनंत और उसकी मां दोनों ने रहस्यमय ढंग से मुस्करा एक दूसरे को देखा फिर ठठा कर हंस पड़े। उसने मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया, मां ने झिड़का, ''सीधे डाक्टर के पास चलो, तुम तो रास्ते में ही डाक्टरी करने लगे।''
''हम तो चल ही रहे हैं लेकिन यह बीमारी हर बीमारी से बड़ी है और इसका इलाज किसी के पास नहीं।''
कंधों से नीचे एक तरफ बिल्कुल नीचे तक खुले खूनी रंग का गाउन स्टेज पर आई मेघना राव ने जब मिस नार्थ आफ फन रिपब्लिक के नाम की घोषणा करते हुए तीन लड़कियों को कागज के ताज पहनाए और उन्हें एक टीवी सीरियल में काम करने का आफिशियल ऑफर दिया तो तालियों और सीटियों के शोर से बिल्डिंग के सबसे उपेक्षित कोनों में सोए कबूतरों के बच्चे भी अंडे तोड़कर उड़ गए। मेघना राव ने ढाई घंटे के अंदर छिहत्तर लोगों को आटोग्राफ दिए और सताइस बार माइक से कहा, यह शहर उसके दिल में बसता है, यहां के युवा रोमांटिक और दिलेर हैं, उन्हें जिंदगी जीना आता है। हर शहर में कहा जाने वाला यह वाक्य काफी मूर्खतापूर्ण था लेकिन न जाने क्यों सुनने में उतना ही अच्छा लगता था। माल के ऊपर बने एक पेंटहाउस में हुई प्रेस कांफ्रेंस में किससे टक्कर है, किससे केमिस्ट्री है, शादी कब करेंगी, आने वाले सीरियल और फिल्में कौन सी हैं जैसे सूखे सवालों के बेहद रसीले जवाब देने के बाद वह एक फाइव स्टार होटल में अपने कमरे में गई और आधे घंटे बाद वहां से सीधे स्टेशन की ओर रवाना हो गई क्योंकि कांट्रैक्ट के मुताबिक उसे उस दिन कम से कम रूरल मार्केट को विजिट कर लोगों को कंपनी के उत्पादों से परिचित कराना था।
स्टेशन से सटे बाजार की रेकी करके लौटे कैम्पेन टीम के लड़कों ने उसे पहले ही बता दिया था कि वहां अपकंट्री एरिया की बारबर एसोसिएशन के ऑनरेरी सेक्रेट्री इदरीस का हेयर कटिंग सैलून ही एकमात्र ऐसी जगह है जहां वह बहुत थोड़ी देर के लिए रूक सकती है।
मेघना राव कैम्पेन की पूर्वनिर्धारित रणनीति के तहत एक काले रंग की लक्जरी कार से गॉगल लगाए, बड़ा सा हैंड बैक लिए अकेली उतरी, उसे निराशा हुई कि पूरे तीस सेकेंड खड़े रहने के बाद भी उसे किसी ने नहीं पहचाना जबकि सामने की गुमटी पर उकी फोटो के साथ मिस नार्थ आफ फन रिपब्लिक का पोस्टर चिपका हुआ था। अपना गाउन संभाल कर रास्ते में पहियों से बने गड्ढों में भरे कीचड़ से बचते हुए कसाई की दुकान के बाहर गुटखे के पाउचों, बकरे के कान, पूंछ और कचरे पर चलते हुए इदरीस हेयर कटिंग सैलून की दो खाली कुर्सियों में से एक पर बैठ गई। फोकट में बाल खींचते लौंडे हड़बड़ाकर बाहर निकले तो इदरीस का ध्यान गया जो जरा दूर पान की दुकान पर गप्पें मार रहा था, उसने चूना चाटते हुए हैरानी से कहा, ये कौन आ गई जन्नत की चिडिय़ा लेकिन अपनी जगह से नहीं हिला। वह पहले पक्का कर लेना चाहता था कि वो कौन है और क्यों आई है। कुर्सी पर बैठी लड़की ने जब सामने रखे डिब्बों, शीशियों को जांच परख कर कैंची को हवा काटकर जांचने के बाद आगे पीछे शीशों में उसे तलाशना शुरू किया तब उसने सैलून में घुसते हुए कहा, ''मैडम ये लेडीज नहीं जेंटुलमैन सैलून है।''
मेघना राव ने चश्मे के उस पार से उसे भरपूर देखा, वह सहम गया, उसने मुस्कराते हुए कहा, ''आप इसे अच्चा से रन करेगी तो एक दिन लेडिस भी आएगी और आप बहुत बरा आदमी बन जाएगी।''
इतनी देर में कुछ लड़कों ने उसे पहचान लिया था, खबर फैलने लगी थी, सैलून के आगे भीड़ जमा हो रही थी, रेलवे लाइनों के उस पार धान के खेतों में मेड़ों पर भागते हुए करीब के गांवों से लोग चले आ रहे थे। मेघना राव ने अपने बालों में पीछे छिपी एक क्लिप को निकाल कर सामने पटरे पर रखा, बैग से मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर एक घूंट पिया, गॉगल उतारा और अपनी लंबी सुराहीदार गरदन को बहुत धीरे धीरे दाएं बाएं झटके देने लगी जिससे उसके लंबे बालों के छल्ले खुलकर कंधों से नीचे फैलने लगे। उसने हाथ के इशारे से इदरीस से कहा कि वह उसके सिर में पिचकारी मार दे ताकि वह अपने बाल संवार सके।
इदरीस ने लंबी झिझक के बाद जबरदस्ती मुस्कराते हुए बोतल उठाकर पिस्टन को पंप किया लेकिन वॉशर कटा होने के कारण पानी नहीं निकला, झेंप कर उसने बोतल को एक पैर के घुटने पर रख कर पसली के साथ दबाया और मेघना राव की बड़ी काली आंखों में देखते हुए ताबड़तोड़ पंप करता हुआ संतुलन बनाए रखने के लिए दाएं बाएं लचकने लगा। उफ्फ... यह एक सौंदर्य विह्वल पुरूष का नृत्य था, दोनों तरफ शीशों में ठीक इसी तरह इतने पुरुष नाच रहे थे कि गिना नहीं जा सकता था, उन सबको वह मुस्कराते हुए देखती रही। अचानक पिचकारी का पिस्टन तिरछा होकर पटाक से टूट गया, इदरीस जमीन पर गिर पड़ा, बोतल टूटने से पानी और पानी के ही रंग के कांच के टुकड़े पूरी दुकान में छितर गए। उसके खुले मुंह को देखते हुए वह हाथ से मुंह छिपाते हुए खिलखिलाकर हंसी, ''हम तो मजाक किया था, अगर पानी निकल जाती तो तुम इस जगह को स्वीमिंग पूल बना देती और मुझको तैर के निकलने पड़ते।''
अब तक सैलून के बाहर शहर से कई गाडिय़ों में पहुंचे एक बैंड ने धमाकेदार म्यूजिक शुरू कर दिया था, एक न्यूज चैनल की ओवी वैन आ पहुंची थी, फोटोग्राफरों के कैमरों के फ्लैश चमकने लगे थे, लाउडस्पीकर से बताया जा रहा था कि बारबर एसोसिएशन के ऑनरेरी सेक्रेट्री इदरीस की दुकान पर साल भर तक कंपनी के सभी सौंदर्य प्रसाधन डिस्प्ले किए जाएंगे, अगर वह लेडीज पार्लर खोलना चाहे तो उसकी आर्थिक मदद भी की जाएगी।
जैसा प्लान किया गया था वैसे कार्निवाल का समां बन चुका था, अब समय आ गया था, मेघना राव को पहली बार गंवई, उजड्ड, बर्बर पुरुषों की भीड़ के बीच एक सुंदरी के श्रृंगार का अभिनय करना था जिसे वह भरपूर मजा लेते हुए अपने और उन सबके लिये यादगार अनुभव बना देना चाहती थी। उसने अपने बैग से अलग अलग आकार के कई ब्रश, डिब्बे, लिपिस्टिक, क्लिपें, शीशियां निकालकर पटरे पर सजा दिए और दुकान के मुहाने से आते बीसियों कैमरों की फ्लैश में अपनी इंद्रियों की पहुंच के पार जा पहुंचे इदरीस को हर प्रोडक्ट के बारे में जानकारी देते हुए तन्मयता से श्रृंगार करने लगी, जिस भी कोण से उसे देख पाना संभव था हर उस खाली जगह, आसपास की दुकानों में घुसे और पेड़ों की डालियों पर बैठे लड़के सुधबुध खोकर उसके खुलते बंद होते, कौंधते होठों को देख रहे थे, इस तमाशे से बौखलाए से कुत्ते लगातार भौंक रहे थे।
जिस समय वह काजल लगा रही थी, सामने कसाई की दुकान पर मंडराता एक कौआ सैलून के दरवाजे के ऊपर की खाली जगह में से गोता मारते हुए घुसा, शीशे में मेघना राव के प्रतिबिंब पर चोंच मार कर उसी रास्ते दक्खिन दिशा की ओर उड़ गया। वह कौए के भारी काले पंखों की कान के पास फडफ़ड़ाहट से डर कर चीख उठी। इदरीस उसे बताना चाहता था कि यह कौआ समझता है कि शीशे के भीतर कोई अजनबी कौआ है जिससे झगड़ा करने के लिए रोज इसी समय चला आता है, तभी फोटोग्राफरों की भीड़ को झटके से चीरते हुए मटमैली आसमानी कमीज और नीला पेंट पहने एक पतला सा गोरा लड़का सैलून के भीतर घुसा, उसने नाभि के नीचे खोंसा हुआ मोटी नाल वाला बड़े आकार का तमंचा निकाल और ठीक सामने आकर अभिनेत्री के सीने पर फायर कर दिया।
गोली चलने की आवाज के बाद पता नहीं उसने हाथ जोड़े या बचने के लिए तमंचे को पकडऩे के लिये दोनों हाथ बढ़ाए लेकिन वह कुर्सी समेत कंपकपाती हुई नीचे गिरी और मर गई। दांतों के नीचे अपना निचला जबड़ा भींचे लड़के ने पलटते हुए सबसे आगे खड़े एक बूढ़े फोटोग्राफर के मुंह पर तमंचे की मुठिया मारी, इससे पहले कि उसकी झुर्रीदार खाल से खून रिसना शुरू होता वह भीड़ के बीच अपने आप बनते जाते रास्ते पर चलता हुआ लापता हो गया।
अगले दिन जब शहर के एयरपोर्ट से मेघना राव की लाश लेकर एक जहाज हैदराबाद की ओर रवाना हुआ उसी समय के आसपास, स्टेशन के उसी बाजार से हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया। वह एक खाद की दुकान के पिछवाड़े के अहाते में, सफेद खादी की नई पैंट कमीज पहने, परीक्षा के रिपोर्ट कार्ड की तरह अखबारों का एक बंडल हाथों में सहेजे दो वकीलों से हाईकोर्ट में आत्मसमर्पण के लिए बात कर रहा था। देर तक चैनलों पर चमकने के बाद सुबह अधिकांश अखबारों के पहले पन्नों पर एक फोटो छपी थी जिसमें वह सैलून में जमीन पर गिरती मशहूर मॉडल, अभिनेत्री मेघना राव के विपरीत कोण पर स्कूली ड्रेस में तमंचे को फोटोग्राफर के मुंह पर मारने के लिए तानता हुआ दिखाई दे रहा था, इस फोटो को देखते हुए न जाने क्यों यह ख्याल चला ही आता था कि एक मिट्टी से दो पौधे फूट रहे हैं।
देहात के एक कालेज में ग्यारहवीं के छात्र, एनीमिया के पीलेपन के कारण गोरे होने का भ्रम देते साढ़े पांच फुट के हत्यारे का नाम अमेरिका यादव था, हत्या की सनसनी के साथ बीती रात के सन्नाटे में धीरे धीरे उसके रूतबे का जन्म हुआ था जो सुबह तक बाढ़ के पानी की तरह शहर और गांव में समान दूरी तक फैल गया था। खाद की दुकान के बाहर मददगारों की लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिये लोकल एमएलए के साथ कई ग्राम प्रधान, जिला पंचायत, बीडीसी मेम्बर, अध्यापक और ठेकेदार उसके बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के नाम वाले इस लड़के का सपना अप्रत्याशित सरलता से साकार हो चुका था लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था क्योंकि उसका सपना ज्यादातर सपनों की परंपरा में गैरकानूनी था। गरीबी रेखा से नीचे, पिछड़ी जाति का छात्र होने के नाते नवीं क्लास में मिली सरकारी छात्रवृत्ति के पैसों को जोड़कर उसने एक कंडम जीप की स्टियरिंग काटकर बनाया गया एक भरोसेमंद तमंचा खरीदा था। उसे मालूम था कि स्कूल की पढ़ाई किसी काम नहीं आती लेकिन यह देसी मशीन जिंदगी भर उसके काम आएगी, वह इसे स्टेशन की तरफ आने वाले शहरी छोकरों को किराए पर उठाने लगा जो तमंचे के कमर में खुंसा होने पर जो थ्रिल और भय एक साथ सताता है उसे बार बार महसूस करने के लिये ले जाते थे। इस अनुभूति का वर्णन खालिस कविता हुआ करता है।
एक बकबकिया लड़के की चुगली पर वह आर्म्स एक्ट में पंद्रह दिन के अंदर हुआ था लेकिन यह वरदान था, जल्दी ही उसके गिर्द देहात में बेरोजगार हुए पुश्तैनी लुहारों और नौसिखुआ अपराधियों का मोबाइल फोन से चलने वाला एक नेटवर्क तैयार हो चुका था जो असलहों और तेज रफ्तार गाडिय़ों के बारे में अपनी प्रेमिकाओं की तरह बात करते थे। उसे इंटर के फाइनल इम्तहान में यदि मैं प्रधानमंत्री होता के बजाय यदि मैं माफिया होता विषय पर निबंध लिखने का मौका मिलता तो वह जिले में सबसे अधिक नंबर ला सकता था, प्रधानमंत्री उसकी कल्पना के बाहर की चीज था जबकि सैकड़ों लड़के माफिया का ग्लैमर और रूतबा जीने की जी तोड़ कोशिश में लगे थे जिनमें से वह एक था।
अमेरिका तमंचे का इस्तेमाल जीवनयापन के लिये करना शुरू कर चुका था। उसे बस का किराया, इदरीस के सैलून पर बाल कटाने और कुछ दुकानों पर खाने पीने के लिए पैसे देने की जरूरत नहीं रह गई थी, उधार समझो या भूल जाओ का मीठा इशारा जानबूझ कर न समझने पर वह चुपचाप खड़े होकर तमंचे की नाल को दुकानदार की जांघ से सटा देता था। कागज की मुद्रा तो बहुत बाद में आई, भूमिगत व्यापार की स्पर्शमुद्रा का प्रचलन आदिम था जिसे आमतौर पर तुरंत स्वीकार कर लिया जाता था, मुद्रा नहीं स्वीकार होने पर हाथापाई होती थी जिसमें अक्सर वह पिट जाता था लेकिन गिरोह बंदी के बाद कोई न कोई कामचलाऊ समझौता हो ही जाता था। स्कूली लड़कों के गिरोहों से बीसियों बार पिटने के बावजूद उसके तमंचे ने अब तक सूरज की रोशनी नहीं देखी थी क्योंकि उसने उसके इस्तेमाल के एक लिए खास दिन निर्धारित कर रखा था और गांव के डीह को खस्सी की मनौती मान रखी थी।
उसने हाईस्कूल का इम्तहान देने के बाद लोकल एमएलए के पैरों पर आतुर श्रद्धा से सिर रखकर प्रार्थना की थी कि वे उसे अपने काफिले की आखिरी खटारा जीप पर लटक कर साथ चलने की इजाजत दें, वह उसकी हिफाजत में अपनी जान लगा देगा, विधायक ने उसे स्नेह से पुचकारते हुए सांत्वना दी, तुम्हारा भी समय आएगा बेटा, अभी जाओ पढ़ो लिखो, कुदरत का कानून है, समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। कमसिन होने के कारण अंगरक्षक के रूप में नकार दिए जाने से वह निराश नहीं हुआ, वह विधायक के नौकर की तरह राजधानी चला गया, रात में सबको खिला पिला कर विधायक निवासी की दरी पर सोते हुए वह अक्सर किसी अंगरक्षक का हाथ अपने सीने या जांघ पर पाता तो उसका मन वहां से भागने का करने लगता। वे दिन उसके हाथों के नाखूनों को हसरत से देखते, उंगलियों के पोरों को दबाते, भद्दे मजाक करते हुए बांह के कोमल रोयों पर उंगलियां फिराते, रात में नींद में सीने से लगाकर भींचने लगते, अपने मुंह पर घायल भैंसे जैसी उनकी सांसे झेलते हुए उबकाई आती कि वह माफिया बनने आया था लेकिन मेहरा की ट्रेनिंग पा रहा है। अपराधबोध से बौखला कर वह राजधानी के चैनलों, अखबारों के चक्कर लगाते हुए पत्रकारों से विनती करने लगा कि वे जिसे कहें वह दिन, समय बताकर टपका सकता है, वे बस एक बार उसे हाईलाइट कर दें, जिंदगी बन जाएगी, पत्रकार उससे चम्पी करवाते, पैर दबवाते, चाय सिगरेट मंगवाते, कभी कभार पुलिस अफसरों के सामने समाज में अपराध के अतिरेक से विक्षिप्त हुए नमूना लौंडे के रूप में पेश करके उपहास उड़ाते, सिर्फ एक रिपोर्टर ऐसा था जिसने उसका मजाक नहीं उड़ाया बल्कि उसकी फोटो के साथ अखबार में स्टोरी छापी जिसकी हेडलाइन थी- माफिया बनना चाहता है अमेरिका। वह इसी अखबार के एक टुकड़े को अपनी कमाई की तरह साथ लिए गांव वापस लौट आया था।
उसने स्कूल से लौटते हुए जब बंबई की हिरोइन को इदरीस के सैलून में बैठे देखा तो उसे पूर्वाभास हो गया कि उसके जीवन का वह स्वर्णिम क्षण आ पहुंचा है जब वह फिल्म उद्योग, मल्टीप्लेक्स, बड़े व्यापारियों, नेताओं, पुलिस अफसरों और तमाम मालदार लोगों तक मैसेज भेज सकता है कि एक नये माफिया का जन्म हो चुका है। मीडिया एक खूबसूरत मॉडल की अधनंगी लाश पर रखकर यह संदेसा उन लोगों तक ले जाएगा जो अपनी गढ़ी कहानियों के जरिए इसे आतंक में बदल देंगे, आतंक से पैसा और पैसे से सारे रास्ते अपने आप खुल जाएंगे।
जब पुलिस वाले इसे गिरफ्तार करके स्टेशन के बाजार से ले जा रहे थे, उसने परिचित चेहरों पर बौखलाई जिज्ञासा को शांत करने के लिए अखबारों का बंडल सिर के ऊपर लहराते हुए अजीब आवाज में चिल्लाकर दो बातें कहीं, ''बेचारी को मरना ही था क्योंकि मैं माफिया बनना चाहता हूं। जो भी बहुत सुंदर होता है बहुत गड़बड़ होता है, स्विटजरलैंड बहुत सुंदर देश है लेकिन सारी दुनिया का काला पैसा वहीं पर है।''
डा. परमानंद सुबह से ही गहरी आंखों से सब कुछ देख रहे थे, यह उन्हें अपनी जमी हुई प्रैक्टिस को और मजबूती से जमाने का मौका लगा जिसे वे चूकना नहीं चाहते थे, जब वह पीछे छोटी सी भीड़ और पुलिस के दो सिपाहियों के साथ डिस्पेंसरी के सामने से गुजरा वह बाहर निकल कर बीच रास्ते में खड़े हो गए, उसकी पीठ पर हाथ रखकर साथ चलते हुए उन्होंने जोर से कहा, ''तुम्हें बचपन से ही एकोनाइट की डोज देना चाहता था, मेरी बात मानकर खा लिए होते तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता न।''
''अब खुद ही खा लो डॉक्टर, सिमिलिया सिमिलस करेंटर के फार्मूले से जेल पहुंच जाओगे, वहां दोनों साथ रहेंगे,'' अमेरिका ने डराने वाले आदर से उनकी तरफ झुक कर हंसते हुए कहा।


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