चरते बादल
भरे हुए को भरते बादल सोचो, यह क्या करते बादल। उनके खेत बरसते केवल उनसे भी क्या डरते बादल। किस नदिया के आमंत्रण पर बनते और सँवरते बादल। हाँक रही है हवा पहाड़ी बुग्यालों में चरते बादल। मोती चुग कर सिंधुदुर्ग से पंख पसार उतरते बादल। वृन्दावन की बात और है वैसे, नहीं ठहरते बादल। देखो कभी गौर से नभ में बाने कितने धरते बादल।
जी भर गाओ
मुझ पर प्यारे शोध करो मत मुझको जी भर गाओ।
चीरफाड़ कविता के तन की अच्छी बात नहीं खून-पसीने की फसलें मिलतीं खैरात नहीं मुझको माला पहनाओ मत मुझको जी भर गाओ।
रोकर गाती है जैसे बुधनी बकरी मरने पर रोकर गाओ, हँसकर गाओ तुम भी जी करने पर मेरी बातें याद करो मत मुझको जी भर गाओ।
दो दिन या दो सदी जिएँगे ये कविवर, क्या जानें हमें जिलाएँगी आकाश- कुसुम-सी ये सन्तानें ज्यादा मेरा नाम रटो मत मुझको जी भर गाओ
बैरागी भैरव
बहकावे में रह मत हारिल एक बात तू गाँठ बाँध ले केवल तू ईश्वर है बाकी सब नश्वर है। ये तेरी इन्द्रियाँ, दृश्य, सुख-दुख के परदे उठते-गिरते सदा रहेंगे तेरे आगे मुक्त साँड़ बनने से पहले लाल लोह-मुद्रा से वृष जाएँगे दागे
भटकावे में रह मत हारिल पकड़े रह अपनी लकड़ी को यही बताएगी अब तेरी दिशा किधर है।
यह जो तू है, क्या वैसा ही है जैसा तू बचपन में था? कहाँ गया मदमाता यौवन जो कस्तूरी की खुशबू था।
दुनिया चलती हुई ट्रेन है जिसमें बैठा देख रहा तू नगर-डगर, सागर, गिरि कानन छूट रहे हैं एक-एक कर।
कोई फर्क नहीं तेरे इस ब्लैक बॉक्स में भरा हुआ पत्थर है या हीरा-कंचन है। जितना तू उपयोग कर रहा मोहावृत जग में निर्मम हो उतना ही बस तेरा धन है।
एक साँस, बस एक साँस ही तू खरीद ले वसुधा का सारा वैभव बदले में देकर!
अखबार
अपराधों के जिला बुलेटिन हुए सभी अखबार सत्यकथाएँ पढ़ते-सुनते देश हुआ बीमार।
पत्रकार की कलमें अब फौलादी कहाँ रहीं अलख जगानेवाली आज मुनादी कहाँ रही? मात कर रहे टीवी चैनल अब मछली बाजार।
फिल्मों से, किरकिट से, नेताओं से हैं आबाद ताँगेवाले लिख लेते हैं अब इनके संवाद सच से क्या ये अंधे कर पाएँगे आँखें चार?
मिशन नहीं गन्दा पेशा यह करता मालामाल झटके से गुजरी लड़की को फिर-फिर करें हलाल सौ-सौ अपराधों पर भारी इनका अत्याचार। त्याग-तपस्या करने पर गुमनामी पाओगे एक करो अपराध सुर्खियों में छा जाओगे सूनापन कट जाएगा बंगला होगा गुलजार।
पैसे की, सत्ता की जो दीवानी पीढ़ी है उसे पता है, कहाँ लगी संसद की सीढ़ी है और अपाहिज जनता उसको मान रही अवतार।
पंडवानी
एक था राजा, एक थी रानी मेरी तेरी है पंडवानी।
राजा राजजात का भेड़ा रानी थी बेताल पचीसी राजा की दाढ़ी में तिनका रानी खतरनाक मकड़ी-सी
ऐसे में मत कर नादानी बाँध के रखियो बोली-बानी। राजा था गुलाम रानी का रानी थी उस्ताद तिरंगी नाक रगड़वाती थी सबसे सोचो बस तलवार थी नंगी परजा बस मूरख अज्ञानी माँगे उससे दाना-पानी।
किन्तु आग जंगल की फैली जिसमें राख हुआ नौमहला पिघल गया वह भी लपटों में राजा निरा मोम का पुतला
बंसी बजा न पाया नीरो रुतबा गया, गयी परधानी।
आया एक सिंह गिरिवन से भौंक उठे कुत्ते गलियों में राजा घुसा सियारों के घर रानी शामिल छिपकलियों में
लगी सुबकने नकली रानी जैसे रोए कुतिया कानी।
चाँद के चूरे
बजते हैं तैमूर-तमूरे नये वक्त के ढहे कँगूरे।
पीते मुगली घुट्टी, खाते बिरियानी बाबरनामे की कहाँ-कहाँ से रकबा अपना नकल ढूँढ़ते बैनामे की देख रहे हैं आँखें मीचे शीशमहल के ख्वाब अधूरे।
घर है एक, एक है वालिद दो तन हैं इक जान, न देखें बाहर की पहचान पे मरते भीतर की पहचान न देखें दो भाई सदियों के बिछड़े कब मिलकर ये होंगे पूरे?
वह लड़का जो गाँव छोड़कर भाग गया था साहब बनने मिला सउदिया में ढाबे पर मुझको देख लगा सिर धुनने धँसी हुई आँखों में उसकी चाँद सितारों के थे चूरे!
हिन्दी और मैथिली के प्रबल प्रतापी, मूर्धन्य गीत-कवि। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं और राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय काव्यमंचों पर समान रूप से लोकप्रिय। 'जाल फेंक रेमछेरे' 'शिखरिणी' 'ऋतुराज एक पल का' चर्चित गीत संग्रह। अलेग्जेंडर पुश्किन सम्मान, राष्ट्रकवि दिनकर जन्मशती राष्ट्रीय सम्मान, दुष्यन्त कुमार अलंकरण, उ.प्र. हिन्दी संस्थान ने 'साहित्य भूषण' और कोलकाता के प्रथम 'काव्यवीणा सम्मान' से सम्मानित। सम्प्रति, अन्तरराष्ट्रीय संस्था 'स्वयम्प्रभा- होलिस्टिक सेंटर फॉर लेंग्वेज एंड लिटरेचर' के संस्थापक अध्यक्ष। |