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अप्रैल 2021

धीरे जाएँ, आगे तीखा मोड़ है

मिथिलेश प्रियदर्शी

लम्बी कहानी

 

 

यह झारखंड के उस बित्ते भर के शहर में कोहराम के पहले की शाम थी। सड़कों के किनारे बिजली के पोलों पर बल्ब जलने में आधे घंटे का वक़्त था। सालों से एक ही रूटीन में जीने के आदी हो चुके लोगबाग सौदा-सुलुफ़ कर अपने घर की ओर लौट रहे थे। बच्चों के गलियों के खेल बिना किसी नतीज़े के ख़त्म हो गये थे और उन्हें पाठ्यपुस्तकों की नीरस दुनिया में बिठा दिया गया था। घर की औरतें मसाले पीसकर हरी सब्जियों के आने का इंतज़ार कर रही थीं। बुजुर्गों ने भोजन से पहले खायी जाने वाली अपनी दवाइयों के डोज़ ले लिये थे।

यह अगली सुबह होने वाली मौत की घटना से पहले का शहर था। कल उनके बीच से कोई मर जाने वाला था, पर किसी को ख़बर नहीं थी। मरने वाले को भी।     

 

1.

शहर के बाहरी हिस्से में कुछ साल पहले बने एक मंदिर के सामने पैंतालिस के लपेटे का एक आदमी ठिठका-सा खड़ा था। क़रीब दो-तीन साल रगड़कर पहना हुआ पैंट-शर्ट, लम्बे समय से नाई के हाथों से दूर रहने वाली बेतरतीब दाढ़ी और हाथ में नायलोन के एक पुराने झोले में कुछ औजारों के साथ खड़ा वह आदमी कुत्तों के लिहाज़ से पूँछ हिलाकर सम्मान प्रकट करने लायक कतई नहीं था। उसने इधर-उधर नज़रें घुमायी, आसपास कोई नहीं था। वह मंदिर के गेट की ओर बढ़ा, फिर जाने क्या सोचकर रुक गया। वापस नज़रें घुमायी, कोई नहीं दिखा। वह मंदिर में घुसने ही वाला था कि शाम के धुंधलके से एक व्यक्ति प्रकट हुआ।

''चप्पल पहनकर कहाँ घुसे जा रहे हो?’’ खैनी मलते हुए उस व्यक्ति ने तनिक गुस्से से टोका।

गेट की तरफ बढ़ता आदमी इस औचक सवाल से हड़बड़ा गया। उसने ख़ुद को संयत कर बोला, ''मूर्ति के दाहिने हाथ का अँगूठा टूट गया है। वही ठीक करने आया हूँ।’’

''कहाँ से आये हो?’’

''ताजिया मोहल्ले से।’’ उसने हिचकिचाते हुए कहा।

''मोहम्डन हो?’’

''हाँ।’’

''इधर सुनो।’’ मोटे व्यक्ति ने खैनी मुँह में दबाते हुए कहा। 

 

2.

सुबह के चार बजकर तीस मिनट हो गये थे और मंदिर की शिखा से चौतरफ़ा बंधे आहुजा के विशालकाय लाउडस्पीकरों से अब तक कोई आवाज़ नहीं आयी थी। फलस्वरूप 'या देवी सर्वभूतेषु..’ का मन्त्र सुनकर जागने वाले अब तक सो रहे थे। यही हाल कुत्तों और मुर्गों का था जो सुबह के सूरज की बज़ाय इन्हीं श्लोकों के अलार्म से संचालित होते थे। सितार की प्रारम्भिक 'टुंग-टुंग’ सुनते ही कुत्तों के शरीर में हरकत होती और वे डोप लिए किसी एथलीट सरीखे दौडऩे-कूदने लगते। मैदान के दूसरे छोर पर एक बाँध से विस्थापित होकर बसे आदिवासियों के दबंग मुर्गे मन्त्रों की आवाज़ सुनते ही उसके साथ कोरस शुरू कर देते और लाउडस्पीकर से जागने से रह जाने वालों को अपने गले की नसों की ज़ोर पर उठाकर दम लेते। पर आज मंदिर से सटे इस आधे किलोमीटर की दुनिया में चौतरफ़ा सन्नाटा था।

इस दुनिया में हलचल तब मची, जब लकड़हारिनें इस सन्नाटे से गुजरीं। ये अलस्सुब्ह झुंड के झुंड शहर से सटे जंगलों की ओर सूखी लकडिय़ों के लिए निकल पड़तीं और शाम ढले सिर पर लकडिय़ों के ग ट्ठर और सखुआ पत्तों के साथ लौटतीं। जाते वक़्त कुछ औरतें जिनका ईश्वर में अटूट यक़ीन होता, झुंड और उसके किस्सों से पीछे छूट जाने की परवाह किये बगैर रास्ते में पडऩे वाले इस नये मंदिर के सामने दो मिनट के लिए रुक जातीं। चप्पल उतारकर एक कदम आगे बढ़तीं। आँचल से सिर ढंकतीं। हाथ जोड़तीं और कुछ बुदबुदातीं। कुछ जो ज़्यादा मुसीबत में होतीं, चौखट पर दो-तीन बार माथा टेकतीं और घिघियाते हुए अपनी याचनाएँ दुहरातीं।

रोज़ की तरह आज जब एक औरत ने नाईट बल्ब की पारभासी माहौल में डूबे मंदिर की चौखट पर माथा टेका तो उसे अपने ललाट पर कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। उसने ललाट पोछकर देखा। उसकी हथेलियों पर जमे हुए लहू के कुछ हिस्से थे जो नीम अँधेरे में काले दिख रहे थे। उसने आँखें चिहारकर मंदिर के भीतरी हिस्सों में नज़रें दौड़ायी। काली और थक्केदार खून की एक लकीर अंदर जाती हुई लगी। किसी अनहोनी के भय से हड़बड़ाकर उसने अपनी सहेली को आवाज़ दिया और यह भूलकर कि उसे इस तरह बिना नहाये-धोये मंदिर में घुसता देख कोई भी आपत्ति कर सकता है, भीतर घुस गयी। वह जिस तेज़ी से लपकी थी, वैसे ही चिल्लाती हुई बाहर आयी। उसके पैर खून से सन गये थे। मंदिर के गर्भगृह में देवी की मूर्ति के ठीक नीचे लहू के थक्कों के बीच पचास साल के पुजारी की लाश पड़ी थी। लाश के पास देवी के हाथ में सुशोभित रहने वाला त्रिशूल पड़ा था। लकड़ी के छोटे आसन पर पालथी मोड़े हुए ही लुढ़क गये पुजारी की मृत देह की अवस्थिति से जान पड़ता था, जैसे बीच प्रार्थना किसी ने उनके सिर पर त्रिशूल दे मारा हो। 

 

3.

बात फ़ैल गयी। लोग मंदिर के आसपास जुटने लगे। पुलिस आ गयी। थाना प्रभारी जगत मिश्रा क़रीब पचास-बावन की उम्र के लम्बे कद और बढ़े पेट वाले भीमकाय आदमी थे, जिनकी लंबी टाँगे सरकारी जीप में ठीक से नहीं अंटती थी इसलिए आगे बैठने के क्रम में उनका एक पैर जीप के बाहर पायदान पर टिका होता जिसे लोग उनकी चुस्ती और मुस्तैदी के तौर पर देखते, जैसे जीप रुकते ही किसी नायक की तरह कूद पड़ेंगे। एसपी आते-जाते पर वे सफलतापूर्वक क़रीब दो साल से इस शहर के थाने में काबिज़ थे। बालू, पत्थर और लकडिय़ों जैसी बहुमूल्य संपदाओं से भरपूर इस छोटे शहर के थाने के बारे में प्रचलित था कि यहाँ पोस्टिंग लेने का मतलब है कोई बीस-पच्चीस लाख रुपये चुका कर आ रहा है। और जब इतनी रकम चुकाया है तो इससे कई गुना ज़्यादा वसूलेगा भी। और जगत मिश्रा ने वसूली की दौड़ में वन विभाग को भी पीछे छोड़ दिया था। पिछले दो साल से शहर और उसके आसपास के इलाकों में बालू-छर्री की कीमतें अगर बढ़ी थीं तो इसके ज़िम्मेदार जगत मिश्रा भी थे। लेकिन यह अगर बड़ा सच है तो इससे बड़ा सच यह है कि इन्होंने किसी से पैसे मांगे नहीं। परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि पैसे इनके पास चलकर आये।  

मंदिर में अंदर जाने से पहले वह अपने जूते उतारने के लिए झुके। सिपाही सोम एक्का ने याद दिलाया, भीतर खून फैला है तो उन्होंने जूते वापस पहन लिये। अंदर घुसकर उन्होंने पहले देवी को प्रणाम किया। घंटी बजायी और कुछ बुदबुदाये। देवी के बोलते चेहरे का तेज देखकर जगत मिश्रा को लगा देवी उनसे कुछ कहना चाह रही हैं। उन्होंने झुककर देवी को पुन: प्रणाम किया और पीठ दुखने तक झुके रहे। फोटोग्राफर विभिन्न कोणों से घटनास्थल की तस्वीरें ले रहा था। भीतर मुआयने के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम वास्ते भेजने के लिए गाड़ी मँगवाने को कहा।

हमेशा डायरी लिखने का ज़िम्मा निभाने वाले थाने के सबसे बुजुर्ग सिपाही सुबोध उपाध्याय ने कई सारी चीजें नोट करने के बाद उनसे पूछा, ''मर्डर के बारे में क्या लिखें सर?’’ जगत मिश्रा देवी पर चढ़ाये हुए पेड़े के एक छोटे टुकड़े को मुँह में चुभलाते हुए बोले, ''फ़िलहाल के लिए लिखिए, घटनास्थल पर स्थित साक्ष्यों को देखकर प्रतीत होता है, देवी के हाथ से त्रिशूल लेकर सिर पर वार किया गया, जिससे हेड इंजरी हुई और डेथ हो गयी।’’

सोम एक्का ने पीछे से आकर पूछा, ''सर इस मर्डर वेपन त्रिशूल का क्या करना है?’’ सिपाही अवधेश शर्मा जो जगत मिश्रा का मुँह लगा था, तुरंत बोला, ''देवी ने हज़ारों राक्षसों का संहार किया और त्रिशूल उनके पास रहा। फिर हम कौन होते हैं उनसे उनका अस्त्र जब्त करने वाले?’’ सोम एक्का ने पूछा, ''लेकिन कोर्ट में वेपन माँगा गया तो?’’ ''तो कह देंगे लोगों की धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती थीं, इसलिए छोड़ दिया गया। जज क्या दूसरी दुनिया के होते हैं? देवी का महात्म सबको मालूम है।’’ अवधेश शर्मा ने जगत मिश्रा की तरफ शाबाशी पाने की उम्मीद से देखा। इसके जवाब में उन्होंने उसे घूरते हुए कहा, ''इसको फोरेंसिक जाँच के लिये भिजवाओ।’’ उन्होंने नीचे रखे त्रिशूल को उठाया। वह लंबाई में कम लेकिन काफ़ी वजनी था। उसके तीनों शूल पैने और बेहद नुकीले थे। ''मूर्ति के हाथों में भला असली हथियार रखा जाता है?’’ वह बुदबुदाये।   

मंदिर से बाहर आकर वह सुबोध उपाध्याय से बोले, ''विजय यादव को कहिये, चिंटू, बुत्तन, मोहसिन और शाद को थाने में हाजिऱी देने के लिए बुलाये।’’ सुबोध उपाध्याय 'जी सर’ कहकर थाने में ड्यूटी पर बैठे अपने सहकर्मी विजय का नंबर मिलाने लगे।

धीरे-धीरे एक बड़ी भीड़ इक ट्ठी   हो गयी थी। जगत मिश्रा ने कहा, ''यहाँ फ़ालतू की भीड़ मत लगाइए। वही लोग रुकिये जिनके पास मर्डर को लेकर कुछ ठोस सूचना है। उन्होंने एक अधेड़ और सक्रिय दिख रहे आदमी को अपने पास इशारे से बुलाया और पूछा, ''क्या नाम हुआ आपका? कहाँ रहते हैं?’’

''मेरा नाम गिरधारी गुप्ता है। बगल में जनता मोहल्ले में रहते हैं। घिउ गली में दुकान है हमारी।’’

''किस चीज की? घी की?’’

''नहीं, खैनी की। हम थोक में माल सप्लाई करने का काम करते हैं।’’

''तो क्या लगता है आपको, किसका काम हो सकता है?’’

''हमको क्या लगेगा सर? पता तो आपलोग करेंगे न?’’

''तो आप यहाँ थोक में माल सप्लाई के लिए खड़े हैं?’’

इस अप्रत्याशित डांट से वहाँ खड़े कई लोग खिसककर दूर खड़े हो गये। जगत मिश्रा ने एक चुस्त दिख रहे युवक की ओर देखकर कहा, ''कुछ पता है?’’

अचकचाया-सा वह युवक इसके पहले कि कुछ बोल पाता, साथ खड़े बुजुर्ग रामानंद शास्त्री जो मोहल्ले में 'सही बोले कि नहीं’ के तकियाकलाम के साथ अपनी बात कहने के लिए जाने जाते थे, बोल पड़े, ''यह नौजवान हमारे साथ हैं। असली बात मैं आपको बताता हूँ। आज देस में चारों तरफ साम्प्रदायिक शक्तियों का बोलबाला है। यह असल में सहर का बाताबरण दूसित करने की एक चाल है। ये लोग हमारे समाज में बिभेद पैदा करके उसका लाभ उठाना चाहते हैं। यह हत्या उसी साजिस का नतीजा है। सही बोले कि नहीं?’’

सोम एक्का ने हँसते हुए कहा, ''सर आप सही बोले कि नहीं ये जाँच के बाद पता चलेगा। आप पुराने आदमी हैं, आपको कुछ पता है तो बताइए। नहीं तो भाषण सुनाने के लिए हम लोगों के पास एक आदमी पहले से है।’’

इस बीच एक आदमी ने जगत मिश्रा की कान के पास आकर कहा, उसके पास कुछ सूचना है लेकिन वह थाने आकर बतायेगा। उन्होंने उसकी पीठ थपथपायी और दो घंटे बाद आने के लिए कहा।

तब तक सुबोध उपाध्याय आये और बोले, ''विजय से बात हो गयी सर। वो बोला, चिंटू, बुत्तन, मोहसिन और शाद ये लोग हमारे कॉल करने से पहले ही थाने पहुँच गये थे। विजय ने उनसे थाने आने का कारण पूछा तो वो बोले, शहर में मर्डर हुआ है, साहब तो बुलाते ही..सो ख़ुद ही आ गये। विजय ने सबको साइन करवाकर छोड़ दिया है।’’

जगत मिश्रा भड़क गये। बोले, ''विजय को कहिये, ज़्यादा माथा न लगाया करे। सबको थाने वापस बुलाये। जब तक मैं नहीं आता हूँ, बिठाये रखे।’’

 

4.

जब तक जगत मिश्रा थाने पहुँचे, चिंटू, बुत्तन, मोहसिन और शाद को वापस बुला लिया गया था। यूँ चारों में दोस्ती-यारी जैसी कोई बात नहीं थी। चारों कभी पकड़े भी अलग-अलग अपराधों के लिए गये थे। लेकिन बार-बार की गिरफ़्तारी और हफ्ते की हाज़िरी ने उन्हें दोस्त बना दिया था।

हर बार शहर में जब कुछ होता, इन चारों पर शामत आ जाती। असली मुज़रिम की तलाश बाद में होती, दरोगा कोई हो, पहले इन्हें पकड़ता। चारों इस नियमित आवाजाही से इतना ऊब गये थे कि इनका वश चलता तो ये इस शहर में कोई अपराध नहीं होने देते। इनके जीवन में शांति के लिए शहर का शांत रहना ज़रूरी था। इसलिए यह दुआ इनके परिवार की प्रार्थनाओं का अभिन्न हिस्सा बन गया था।

मंदिर में क़त्ल की ख़बर चारों को जैसे ही लगी, इनका दिल बैठ गया। इन्हें पता था, मामला हत्या का है, पूछताछ बड़ी होगी। इसलिए ये बिना बुलाये भरपेट खाना खाकर, पानी की बोतल, दर्द-बुखार की गोलियाँ लेकर सुबह पहुँच गये थे लेकिन जब सिपाही विजय ने हाज़िरी के बाद इनसे जाने को कहा, इन्हें आश्चर्य हुआ। चारों लौट तो गये लेकिन घर जाने की बज़ाय पास की चाय दुकान में ही बैठकर वापस फोन कर बुलाये जाने का इंतज़ार करने लगे। और महज़ पौन घंटे के बाद चारों वापस थाने में थे।

जगत मिश्रा ने चारों को देखते ही पूछा, ''किसका काम है रे?’’

बुत्तन ने लगभग रिरियाते हुए कहा, ''दिन-रात तो हमलोग आपके सामने ही हैं सर। हमलोग क्या करेंगे?’’

''केवल दिन बोलो..रात में क्या करते हो, हमें नहीं मालूम?’’

''हमलोग पुजारी को क्यों मारेंगे सर?’’ चिंटू ने उसी रिरियाहट के विस्तार में कहा।

''हमलोग नहीं... केवल अपनी बात कहो। सबके ठेके मत लो।’’ जगत मिश्रा ने बाकियों की ओर देखकर कहा।

मोहसिन कुछ कहने को हुआ कि जगत मिश्रा ने अवधेश शर्मा को आवाज़ लगायी, ''इनकी ख़ातिरदारी करो। पूछो क्या जानते हैं?’’

 

5.

थाने में आकर सूचना देने वाले शख्स का नाम महेंद्र जायसवाल था। जमीन ख़रीद-बिक्री और सूद पर पैसा बाँटने वाला सैंतालिस-अड़तालीस का महेंद्र जायसवाल मोटापे और डायबिटीज का मरीज था और डॉक्टर की सलाह पर इधर कुछ सालों से सुबह साढ़े चार बजे मंदिर के लाउडस्पीकर के अलार्म से जाग ज़ाया करता था। डॉक्टर ने उसे रोज़ाना उठकर कम से कम दो किलोमीटर भागने की सलाह दी थी। जागने की सलाह पर तो उसने अमल किया लेकिन दौडऩे की जगह उसने अख़बार की एक ख़बर के उस नुस्खे पर ज़्यादा भरोसा किया जिसमें रोज़ाना सुबह के सम्भोग को मोटापा काटने का अचूक हथियार बताया गया था। और तब से लेकर आज की पुजारी वाली मौत की सुबह छोड़, महेंद्र जायसवाल ने कभी नागा नहीं किया। पत्नी माहवारी में हो या वायरल में, वह मंदिर के लाउडस्पीकर की आवाज़ से तड़के जाग जाता और झिंझोड़कर पत्नी को जगाता। फिर बिना किसी भूमिका के पूरे मनोयोग से अख़बार के नुस्खे को आजमाते हुए अपनी तोंद के आसपास की कैलोरी का जलना महसूस करता और अंतत: माथे पर पसीने की कुछ बूँदे पाकर ख़ुद को अपेक्षाकृत हल्का पाते हुए ज़मीन और लेनदारी-देनदारी की अपनी दुनिया में रम जाता। इधर आज पहली बार हुआ था कि मंदिर से लाउडस्पीकर की आवाज़ नहीं आयी थी और नींद नहीं खुलने से महेंद्र जायसवाल की दिनचर्या गड़बड़ा गयी थी।

वह पिछले एक घंटे से थाने में बैठा थाना प्रभारी का इंतज़ार कर रहा था। जगत मिश्रा आज के मामले की रिपोर्ट देने एसपी ऑफिस गये थे और अब तक नहीं लौटे थे। जब वह आये, एक थका देने वाले सेशन से निकलकर अवधेश शर्मा ने बालों से ढंके अपने हाथों का पसीना पोछते हुए नतीज़ा सुनाने के स्वर में कहा, ''क्लियर हो गया सर, ये इन चारों का काम नहीं है।’’ जगत मिश्रा जो एसपी से केस जल्दी सुलझाने की झिड़की के साथ लौटे थे, सुनकर झल्ला गये, ''किनका काम है ये तुम मुझ पर छोड़ दो।’’

महेंद्र जायसवाल ने इस तनाव भरे माहौल को देखा तो उसे लगा वह ग़लत समय पर आ गया है। लेकिन जगत मिश्रा ने कुर्सी पर बैठते हुए जब उसके लिए चाय मँगवायी, उसे अच्छा लगा। शुरुआती परिचय पूछने के बाद जगत मिश्रा ने उसकी ओर चाय बढ़ाते हुए कहा, ''तो बताइए, क्या बताने वाले थे?’’

''आपको शायद नहीं पता होगा, वह मंदिर किसका है?’’ महेंद्र जायसवाल को बातचीत की शुरुआत में ही सामने वाले को चौंकाकर बढ़त लेने की आदत थी।

''किसका है?’’

''आप उसे नहीं जानते होंगे। एक है यमुना राय। उसी का है। गीतम वस्त्रालय के ठीक बगल में उसका घर है।’’

''हूँ।’’

''आज जहाँ मंदिर दिख रहा है, कल वहाँ कुछ नहीं था सर। वो ज़मीन गौरमेंट लैंड थी। उसके बगल में ही यमुना राय की ज़मीन थी, जिसमें उसने बीड़ी पत्ते का गोदाम बना रखा है। आपको नहीं पता होगा, लेकिन गोदाम का एक बड़ा हिस्सा गौरमेंट लैंड में बना हुआ है। जब उसे पता चला उसमें अंधे-गूंगों का सरकारी सेंटर प्रस्तावित है, उसने बहुत कोशिश की ये सेंटर वहाँ नहीं खुले। क्योंकि सेंटर के लिए जब गौरमेंट लैंड की नापी होती तो ज़मीन कम होने पर उसके गोदाम का टूटना तय था। इससे बचने के लिए उसने एक रात कुछ लोगों के साथ मिलकर हल्ला करवा दिया कि वहाँ खुदाई में देवी का त्रिशूल निकला है। जबकि सच ये है कि वह त्रिशूल शेरघाटी के किसी लोहार से बनवाया गया था। फिर यमुना राय ने विधायक तिवारी बाबा को पकड़ा और वहाँ मंदिर का शिलान्यास करवा दिया। धर्म का काम कहकर मजदूरों, राजमिस्त्रियों, लुहारों से तुरंत-फुरंत में मंदिर बनवा लिया। इस बहाने उसका गोदाम बच गया और बाद में देखिये कि उसने बाक़ी के गौरमेंट लैंड को भी बाउंड्री से घेर दिया। आज मंदिर प्रांगण में यज्ञ के लिए जो छोटी-छोटी झोपडिय़ाँ देखते हैं, सब उसी सरकारी ज़मीन में बनी है। त्रिशूल निकलने की बात से मंदिर फेमस हो गया, कमाई होने लगी सो अलग। आप नहीं जानते होंगे लेकिन आज की तारीख़ में सुबह सात बजे से लेकर दस बजे तक उस मंदिर में इतनी भीड़ होती है, बाहर से इतने लोग आते हैं कि अब मंदिर हटाने की हिम्मत कौन करेगा?’’ जायसवाल ने एक साँस में रहस्य बताने की तरह कहा।

''च्च्च...पुजारी जी कैसे मरे ये बताइए?’’

इतने बड़े रहस्योद्घाटन के बाद जायसवाल को इस दो-टूक सवाल की उम्मीद नहीं थी। वह एक मिनट के लिए गड़बड़ा गया। वापस लय में आकर बोला, ''आपने शायद ध्यान नहीं दिया। यमुना राय के मंदिर का पंडित मरा है और वह ख़ुद ग़ायब है। सारे लोग आये, पर वह नहीं दिखा। सोचने वाली बात नहीं है?’’

अबकी जगत मिश्रा ने एक लम्बी साँस छोड़ी और बोले, ''ठीक है, समझ गये। ज़रूरत होगी तो बुलायेंगे आपको।’’

 

6.

अगले रोज़ पुजारी की हत्या की ख़बर सभी अख़बारों के स्थानीय पन्ने पर छपी थी। शहर के चार पुराने कुख्यात अपराधियों से पूछताछ ज़ारी रहने की बात सबने प्रमुखता से लिखी थी। साथ में इनबॉक्स में एसपी का बयान था कि शेष संदिग्ध अपराधियों की धरपकड़ के लिए जाल बिछाया जा रहा है और अपराधी जल्द पुलिस की गिरफ्त में होगा।

जगत मिश्रा ने ख़बर पढ़कर सबके सामने सुबोध उपाध्याय की तारीफ़ की। बरसों से पत्रकारों के लिए क्राइम का प्रेस नोट तैयार करते हुए सुबोध उपाध्याय इतने अनुभवी हो गये थे कि पत्रकारों को एक शब्द भी इधर-उधर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। वे हेडिंग लगाते और विशेष संवाददाता लिखने भर से ख़बर तैयार हो जाती।

जगत मिश्रा के टेबल के ठीक दूसरी ओर बैठे यमुना राय की नज़र इन्हीं ख़बरों पर थी। सिगरेट के धुएँ से झुलसे काले मोटे होंठ, व्हिस्की की अधिकता झेल अपनी मासूमियत खो चुकी आँखें, सफ़ेद और काले का कन्ट्रास्ट पैदा करती खिचड़ी दाढ़ी, मोटे घनत्व वाले कड़े बाल और गले में लहराती पतली सोने की चेन। चेहरे से लेकर कपड़े तक देखने में कहीं से भी बहुत प्रभावित नहीं करने वाला एक औसत व्यक्तित्व का आदमी। पैंतालिस-छियालीस की उम्र भी गंभीरता के लिहाज़ से कम ही मानी जायेगी। अख़बारों में डूबे जगत मिश्रा ने अचानक बेमुरव्वत से अख़बार मोड़ते हुए यमुना राय की आँखों में देखकर कहा, ''तो मंदिर के असली मालिक आप हुए?’’

 ''मंदिर तो देवी का है। देवी भक्तों की हैं। मैं कैसा मालिक?’’ एक खुरदरी और स्थिर-सी आवाज़ में यमुना राय ने कहा।

''कल मंदिर के बाहर आप दिखे नहीं?’’ जगत मिश्रा ने यमुना राय के चेहरे से आँखें नहीं हटायी थी।

''बाहर गया था। लौटा तो पता चला आपलोग मुझे खोजने घर आये थे तो सीधे यहीं आ गया।’’

''पुजारी को कब से जानते थे? वैसे नाम क्या हुआ उनका?’’

''नाम तो कभी पूछा नहीं। सब पंडित जी ही कहते थे। मंदिर जब बन रहा था, उसमें योगदान देने आये थे। तब से यहीं थे। भाषा से लगता था, उड़ीसा के कहीं के थे। अपने बारे में व्यक्तिगत बातचीत पसंद नहीं थी उनको। लेकिन भले और विद्वान आदमी थे।’’ यमुना राय ने कहा।

''किसी से कोई लड़ाई-झगड़ा? किसी पर डाउट?’’

''इस शहर में आने के पहले का उनका इतिहास नहीं मालूम। लेकिन यहाँ एक आदमी के बारे में कह सकता हूँ, जिसने पंडित जी को काफी परेशान किया था। जब मंदिर नहीं बना था, उस आदमी की नज़र उस परती ज़मीन पर थी। उससे सटे हुए पश्चिम की तरफ की ज़मीन उसी की थी। वह मंदिर की ज़मीन को अपनी ज़मीन में मिलाकर प्लॉटिंग कर बेचने की फ़िराक में था। एक-दो पार्टियों से उसने पैसे भी पकड़  लिये थे। बाद में जब मंदिर बनने के बाद उसकी बाउंड्री पडऩे लगी, रात में वह उसकी कच्ची दीवारें तोड़ दिया करता था। पंडित जी जब आपत्ति करते, उनसे गाली-गलौज पर उतर आता। बहुत मुश्किल से बाउंड्री हो पायी। जब वह पार्टी को अपनी ज़मीन दिखाने लाता तो मंदिर के पिछले हिस्से की ज़मीन को भी अपना बताते हुए दिखाता। पंडित जी टोकते तो झगड़ पड़ता। कहता, एक दिन डायनामाइट से मंदिर उड़ा दूँगा, फिर झाल बजाना।’’ यमुना राय अपने कुर्ते की आस्तीनों में फँसे बालू झाड़ते हुए कहा।

''क्या नाम बताया उस आदमी का?’’ जगत मिश्रा डायरी के पन्नों पर पड़ी कलम उठाकर टिप-टॉप करते हुए बोले।

''महेंद्र जायसवाल।’’ यमुना राय ने नाम उद्घाटित कर जगत मिश्रा की ओर देखा। जगत मिश्रा ने बिना कुछ लिखे कलम वापस डायरी के पन्नों में फँसा दिया।

''जब तक जाँच चल रही है, शहर से बाहर मत जाइएगा। बहुत ज़्यादा ज़रूरी हो, मुझसे अनुमति ले लीजियेगा।’’

 

7.

पुलिस मंदिर को छानने के लिए एक बार फिर से पहुँची थी। कोई और दिन होता तो सुबह मंदिर में भीड़ के मारे अँगूठे कुचल गये होते। लेकिन पुजारी की मौत के बाद से पुलिस ने मंदिर में ताला लगा दिया था।

सोम एक्का ने जब ताला खोला, कुछ श्रद्धालुओं ने अंदर आकर नारियल फोडऩे की अनुमति माँगी। जगत मिश्रा ने मना कर दिया और जूते उतारकर अंदर चले गये। इस बार वह बहुत ध्यान से चीजों को देख रहे थे। मंदिर की ऊँचाई बहुत नहीं थी किंतु देवी की मूर्ति थोड़ी ऊँची थी। उन्होंने देवी को देखा। बड़ी-बड़ी क्षोभरहित आँखें, कंधे से सामने आते काले घुँघराले बाल, चेहरे पर ललाई लिये एक अद्भुत कांति, लाल सिल्क-सी चमकती साड़ी और विभिन्न शस्त्रों से सुसज्जित हाथ। उनका ध्यान त्रिशूल वाले हाथ पर अटक गया। उसका अँगूठा टूटा हुआ था। देवी के उस ख़ाली और भंग हाथ को देखकर उन्हें बुरा लगा। ''इनके इस ख़ाली हाथ में एक नकली त्रिशूल लगवा दो।’’ जगत मिश्रा ने अवधेश शर्मा से कहा।

''लेकिन त्रिशूल उसमें फँसेगा नहीं सर। उनकी मुट्ठी बंद नहीं है। त्रिशूल गिर जायेगा।’’ सोम एक्का ने कहा।  

मूर्ति के दूसरी ओर लोहे के मोटे चदरे की बनी दान पेटी थी, जिसपर एक बड़ा-सा ताला लटका था। जगत मिश्रा ने पेटी उठाने की कोशिश की, लेकिन वह हिली तक नहीं। उसे पीछे की ओर से लोहे के पोल से मिलाकर वेल्डिंग किया गया था। मंदिर के गर्भ गृह के ठीक पीछे एक कंबल आधा बिछा हुआ था। संभव है, यह पुजारी के सोने की जगह होगी। सोम एक्का ने पैरों से कंबल को किनारे करना चाहा। जगत मिश्रा ने च्-च् करते हुए मना किया। अवधेश शर्मा लपक कर आगे बढ़ा और उसे तह कर किनारे करने लगा। जब कंबल अपनी गोलाई में आया, अवधेश शर्मा को उसमें कुछ फँसा हुआ लगा। कंबल वापस खुला तो उसमें नोकिया का हथेलियों में समा जाने वाला एक पुराना मोबाइल फोन था। जगत मिश्रा उसे ऑन करने की कोशिश करने लगे पर जब नहीं हुआ तो वापस अवधेश शर्मा को देते हुए बोले, ''इसको चालू करवाइए।’’

''कुछ सुराग हाथ लगा?’’ यह रामानंद शास्त्री थे, जो अपनी छड़ी के सहारे मंदिर के भीतर चले आ रहे थे। ''आप लोगों की जीप दिखी तो लगा आपलोग ही होंगे। कुछ पता चला?’’ उन्होंने सिपाही विजय से पूछा।

जगत मिश्रा ने उनके सवाल के जवाब में थोड़ी तल्खी के साथ कहा, ''आपको कुछ पता चला?’’

''न..’’ उन्होंने इंकार में सिर हिलाया जो कुछ सेकेंडों तक हिलता रहा। फिर जब रुका तो बोले, ''लोग कह रहे हैं, मंदिर की दान पेटी का पैसा लूटने के चक्कर में किसी पियक्कड़ ने ये कांड किया है। सहर के आधे पियक्कड़ सस्ती हँडिय़ा के चक्कर में दिन-रात आदिबासी टोले में डोलते रहते हैं।’’

''मंदिर में लूटने लायक पैसा आता है क्या?’’ अब तक रामानंद शास्त्री की अनदेखी कर रहे जगत मिश्रा ने उनको एकटक देखते हुए पूछा।

''अब ये तो पता नहीं है कितना पैसा आता है। लेकिन मंगलवार और शनिवार को बहुत भीड़ रहती है। सहर के लोग तो आते ही हैं। बाहर से जो लोग कौलेस्बरी पहाड़ पूजा करने आते हैं, वो भी अब यहाँ आने लगे हैं। बाहर इस मंदिर की बहुत बड़ाई हो गयी है। सब कुछ मानने पर है। मानो तो इस्बर, नहीं तो पत्थर। आज यहाँ मंदिर है, नहीं तो पहले सूअर-बकरी चरते थे। सब कुछ मानने पर है। सही बोले कि नहीं सर?’’

जगत मिश्रा ने कनखियों से दरवाज़े के पास खड़े बाक़ी सिपाहियों की ओर देखा और इशारों में ही रामानंद शास्त्री को बाहर छोड़ आने के लिए कहा।

 

8.

मंदिर प्रांगण से मिला मोबाइल ऑन हो गया था। सोम एक्का ने जगत मिश्रा को बताया, इसकी बैटरी डिस्चार्ज थी। पतली पिन वाला चार्जर खोजने में दिक्कत हो रही थी, इसलिए देर हुई। जगत मिश्रा ने देखा, मोबाइल के कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेवा प्रदाता कंपनी की अपनी सेवाओं वाले नम्बरों के अलावा कुल छह लोगों के नंबर थे। अशोक, यमुना राय 1, यमुना राय 2, जयमाला, राजू, नवनीत और बबिता। कॉल लॉग में बबिता और जयमाला के नंबर आवक-जावक दोनों में थे। दोनों नम्बरों की कॉल हिस्ट्री बता रही थी, सबसे ज़्यादा बातचीत इन्हीं दो नंबरों पर हुई है। कॉल लॉग में दो और नंबर थे, जो नाम से सेव नहीं थे।

जगत मिश्रा ने सबसे पहले बिना सेव नंबरों में से एक पर कॉल किया लेकिन दूसरी ओर का मोबाइल बंद था। उन्होंने अगला नंबर लगाया। घंटी जा रही थी। लेकिन चार-पाँच घंटियों बाद ही दूसरी तरफ से कॉल काट दिया गया। उन्होंने जब दुबारा कॉल किया, उधर का मोबाइल स्विच ऑफ हो गया था। सुबोध उपाध्याय ने रजिस्टर में यह नंबर लिख लिया। अगला कॉल अशोक को किया गया। उसने बताया वह मंदिर के सामने अपने भाई के साथ ठेले पर फूल और पूजा का सामान बेचता है। राजू नाम से सेव नंबर एक फल वाले का निकला। नवनीत नामक आदमी बैंक में कर्मचारी था, जो हर शनिवार मंदिर आता था। उसने बताया, पंडित जी बैंक में एक अकाउंट खोलना चाहते थे, इसलिए उनसे दोस्ती हो गयी थी।

एक चाय के बाद जगत मिश्रा ने बबिता के नंबर पर कॉल किया। उस तरफ से एक क्षीण से स्वर में हैलो कहा गया। इतनी निरीह आवाज़ सुनकर जगत मिश्रा ने भी बड़ी मुलायमियत से कहा, ''पंडित जी से आपका नंबर मिला है। आपसे कुछ काम था।’’ बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कॉल काट दिया गया।

''इसका मतलब इसे पता है पुजारी मर गया।’’ जगत मिश्रा ने सुबोध उपाध्याय को बबिता का नंबर नोट कराते हुए कहा।

आख़िर में जयमाला लिखे नंबर को कॉल लगाया गया। आवाज़ उडिय़ा में आयी।

''आप हिंदी समझ सकती हैं क्या?’’ जगत मिश्रा को अचानक आयी इस भाषाई दिक्कत की उम्मीद नहीं थी।

उडिय़ा की बात आते ही सब सोम एक्का की ओर देखने लगे। वह झारखंड-उड़ीसा बॉर्डर के पास राउरकेला के एक गाँव का था और थोड़ी-बहुत उडिय़ा समझता-बोलता था। जगत मिश्रा ने स्पीकर ऑन कर मोबाइल उसकी ओर बढ़ा दिया। जिस तरह सब सोम एक्का को घेरकर बैठ गये, अवधेश शर्मा का मुँह शाम को मुरझा कर झूल रहे फूल की तरह हो गया। वह उसे मिली किसी भी तवज़्ज़ो पर बहुत चिढ़ता था।

''किये कहुच्छ? भाईअंक मोबाइल तुम पाखरे केमिटि पहंचीला?’’ दूसरी तरफ से आश्चर्य और चिंता मिश्रित आवाज़ आयी। 

''तूमें किये कहुच्छ?’’ सोम एक्का ने पूछा।

''तूमें किये कहुच्छ?’’ महिला ने सवाल दुहराया।

''मु कहिबी मु किये कहुछी, आग तुमें कूह तुमें नना अंकु केमिटि जाणीछ?’’ सोम एक्का पूछा।

''तूमें कॉल करीछ, आग तूमें कूह भाईअंक $फोन तुम पाखरे कण करुछी?’’ महिला गुस्से में बोली।

जगत मिश्रा को दोनों के बीच चल रही बातचीत के टोन से अंदाज़ा लग गया, बात आगे नहीं बढ़ रही है। उन्होंने मोबाइल के माउथपीस को हथेलियों से दबाते हुए सोम एक्का से पूछा, ''क्या हुआ?’’ सोम एक्का ने कहा, ''मैं पूछ रहा हूँ, कौन बोल रही हो तो उल्टे मुझसे ही पूछ रही है, मैं कौन बोल रहा हूँ।’’ जगत मिश्रा ने खीझ कर कहा, ''तो बोल दो थाने से बोल रहा हूँ। पुजारी मर गया। अब बताओ कौन हो तुम?’’

सोम एक्का के हिस्से आयी इस झल्लाहट से अवधेश शर्मा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

सोम एक्का ने वापस मोबाइल के पास मुँह ले जाकर जगत मिश्रा की बात दुहरा दी। सुनकर महिला रोने लगी और डर तथा अविश्वास के मारे गालियाँ देने लगी, ''तूमें माने मिच्छ कहुछ, मु थाना रे रिपोर्ट देबि..।’’

जगत मिश्रा ने सोम एक्का से कहा, ''उससे बोलो, रोना बंद करे और पुजारी के बारे में पूरी बात बताये। हम उसकी मदद के लिए हैं।’’

महिला का रोना नहीं रुका। वह एक सुर में कुछ बोलती और फिर रोने लगती। सोम एक्का के कहने-पूछने का कोई असर नहीं हो रहा था। जगत मिश्रा ने मोबाइल अपने हाथ में लिया और कॉल काट दिया।

एक मिनट के भीतर महिला ने वापस फोन किया। सोम एक्का ने उडिय़ा में ही पूछा, ''आप पंडित जी की कौन हैं?’’ इस बार उसने भर्रायी आवाज़ में बताया, बड़ी बहन।

सोम एक्का ने उसे ढाढ़स बँधाया और पुजारी की हत्या संबंधित सारी बात बतायी। फिर महिला से उसके भाई के बारे में विस्तार से पूछा। वह रुदन और हिचकियों के बीच ही अपने भाई की कहानी बताने लगी। सोम एक्का धैर्य से उसे सुन रहा था और सामने रखे रजिस्टर पर कुछ नोट करता जा रहा था।

जब दोनों की बातचीत ख़त्म हुई, सोम एक्का ने देखा, सब चारों ओर से कुर्सियाँ लगाकर बात समझने की कोशिश कर रहे थे। सोम एक्का ने कहा, ''उसका असली नाम शिवकुमार दास है। वह उड़ीसा के भद्रक जिले का था। परिवार काफी गरीब था। माँ नहीं थी। बाप चौबीसों घंटे गाँजे के नशे में रहता था। इसलिए वह दसवीं के पहले ही घर छोड़कर निकल गया। उसने बहन के आलावा किसी से कोई सम्पर्क नहीं रखा। वह बता रही थी, सोने से पहले भाई एक बार उसको ज़रूर फोन करता था। वह एक-एक बात बताता था। बोली, वो आ रही है। भैया की लाश तुमलोग जलाना मत।’’

''तुम क्या बोले?’’ जगत मिश्रा ने पूछा।

''बोल दिये, तीन दिन बॉडी पर दावा करने जब कोई नहीं आया तो हमलोग क्या करते? सारे पेपर में हमलोगों ने विज्ञापन दिया था। दो दिन के विज्ञापनों के बाद भी जब उसके परिवार का पता नहीं चला तो हमने हिंदू रीती-रिवाज से उसको जला दिया। लाश सडऩे के लिए थोड़ी न छोड़ते।’’ सोम एक्का ने कहा।

''हूँ... तो घर छोड़कर वह सीधे इसी शहर में आया था?’’ जगत मिश्रा ने जानना चाहा।

''नहीं... यहाँ तो काफी बाद में आया। घर से निकलकर वह सबसे पहले कटक गया। फिर शिमोगा गया। एलेप्पी गया। तिरुपति, महाबलेश्वर, देवघर कई जगहों पर बरसों भटका। वह बतायी, उसने बर्तन धोने, फूल बेचने, नारियल काटने, मुर्गा काटने से लेकर इडली बेचने, खोवा बनाने जैसे दर्जनों काम किये और अंत में बोधगया में एक बुजुर्ग भिक्षुक और होम्योपैथ के ज्ञाता आदमी की सेवा-टहल में लग गया। वहीं उसकी मुलाक़ात यमुना राय से हुई। यमुना राय अपनी पत्नी के लिए दवाई उसी भिक्षुक के पास से बनवाता था। यमुना राय जब भिक्षुक के यहाँ जाता, शिवकुमार उसकी बहुत ख़ातिरदारी करता।’’

''मतलब उसकी बहन यमुना राय को जानती है?’’ जगत मिश्रा ने पूछा।

''हाँ..उसने यमुना राय के बारे में अपनी बहन को बताया था। यमुना राय ने ही उसे अपने नये बने मंदिर में पुजारी के काम के लिये कहा। पहले उसने मना कर दिया कि वह निचली जाति का है। उसको पूजा-पाठ नहीं आता। यमुना राय बोला वह सब संभाल लेगा और उसे इस काम के लिए वेतन भी देगा। उसे बस लोगों से हिसाब से बोलना है और पूजा उडिय़ा में करवाना है। उसकी बहन बोली, उसने अपने भाई को काफी मना किया लेकिन वह सिर पर छत और पैसे के लिए पुजारी बनना स्वीकार कर लिया। शुरू में जब मंदिर नया था और चढ़ावा कम आता था यमुना राय उसको खर्चे-पानी के लिए कुछ पैसे देता था। बाद में लोगों की भीड़ बढऩे लगी और चढ़ावा ज़्यादा आने लगा। लेकिन पुजारी का पैसा नहीं बढ़ा। यमुना राय प्रतिदिन शाम को दान-पेटी की चाभी लेकर आता और सारे रुपये इकट्ठे कर पुजारी के हाथ में खाना-खुराकी के लिए कुछ पैसे छोड़ बाक़ी सब अपने पास रख लेता। उसकी बहन ने कहा, उसके भाई को यमुना राय ने चुना ही इसलिए था कि उसे एक सीधा-साधा, ईमानदार सस्ता मजदूर चाहिए था जो उसकी हर बात माने। यज्ञ, हवन, बलि आदि से मंदिर का काम और आमदनी बढ़ती गयी लेकिन पुजारी का हिस्सा नहीं बढ़ा। पुजारी ने कभी कोई शिकायत नहीं की लेकिन मंदिर में पैसे की बढ़ती आवक देख वह मन ही मन अपने लिए थोड़े पैसे और चाहता था ताकि बुढ़ापे में गलियों में बैठकर माँगना नहीं पड़े। उसने नवनीत नाम के एक श्रद्धालु की सहायता से एक बैंक अकाउंट भी खोलना चाहा था। बैंक का वही आदमी जिसको अभी आपने पुजारी के मोबाइल से कॉल किया था।’’ सोम एक्का ने जगत मिश्रा को याद दिलाते हुए कहा।

''हाँ..हाँ..’’ जगत मिश्रा ने सिर हिलाया।

''लेकिन यमुना राय पैसे बढ़ाना तो दूर उल्टे पुजारी पर शक करने लगा कि वह लोगों को दान पेटी की बज़ाय सीधे अपने हाथों में पैसे देने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस किचकिच से परेशान पुजारी कई बार अपने उसी भिक्षुक मालिक के पास वापस लौट जाना चाहता था लेकिन इतने सालों में देवी से हुए लगाव और लोगों से मिले मान-सम्मान ने उसे लौटने नहीं दिया। जीवन में इतना आदर उसे पहले कभी नहीं मिला था। उसे यह भी नहीं मालूम था, उसका भिक्षुक मालिक जीवित है या मर गया। बहन बोली, उसने बहुत समझाया यह झूठ का धंधा अच्छा नहीं है। एक दिन वह पकड़ा जायेगा। वह उसे भद्रक वापस बुलाती रही, लेकिन पुजारी मंदिर छोड़कर कहीं नहीं गया। वह अपनी बहन से कहता था, लोगों को उसकी सादगी और भाषा लुभाती है। एक अलग-सी भाषा में देवी की उपासना करने से श्रद्धालु उसे सिद्ध महात्मा समझते हैं। उसकी लोकप्रियता इसीलिए भी बढ़ी है कि वह कभी किसी से मुँह खोलकर दक्षिणा नहीं माँगता। इन्हीं वजहों से दूसरे मंदिरों के बरसों-बरस के सैंकड़ों श्रद्धालु इस नये मंदिर की ओर शिफ्ट हो गये थे। लेकिन इसी यश के कारण दूसरे पुजारी उसको बाहरी और अपनी रोजी का दुश्मन भी समझने लगे थे।’’

''जैसे कौन? उसकी बहन ने किसी के बारे में कुछ कहा क्या?’’ जगत मिश्रा ने बीच में रोककर पूछा।

''हाँ, कोई लबदा भैया है। शहर का बड़ा पंडित। शिवचर्चा कराता है। उसने पुजारी को कई बार धमकाया था।’’ सोम एक्का ने नोट किये हुए कागज़ में से कुछ देखते हुए कहा।

''क्या कहकर धमकाया था?’’ जगत मिश्रा ने पूछा।

''इतना तो उसकी बहन ने नहीं बताया लेकिन बोली जब-तब वह फोन करके धमकाता रहता था और शहर छोड़कर चले जाने के लिए कहता था।’’ सोम एक्का बोला।

''मतलब कॉल लॉग में जो दो नंबर सेव नहीं हैं, उसी में से कोई एक लबदा का होना चाहिए। दोनों नंबरों का कॉल डिटेल निकलवा कर देखो।’’ जगत मिश्रा ने सोम एक्का के हाथ से मोबाइल लेते हुए कहा।

''हाँ, लेकिन यमुना राय वाली बात पूरी नहीं हुई सर।’’ सोम एक्का ने याद दिलाया।

''बताओ..।’’

''वह बोली, पैसे में गड़बड़ी के इल्ज़ाम की वज़ह से जो तनाव था, वह तो था ही। एक रोज़ यमुना राय को मंदिर के कलश से सौ के नोटों की एक गड्डी मिली। जुमना राय को पुजारी पर शक पहले से था। सबूत मिल गया। पुजारी उसे समझाता रहा, रुपये किसी श्रद्धालु ने रखे होंगे। इसमें उसका कोई हाथ नहीं है। लेकिन यमुना राय उससे बार-बार यही पूछता रहा कि बाक़ी पैसे कहाँ छुपाये हैं? उसकी बहन बता रही थी, उस दिन शराब के नशे की ज़ोर में यमुना राय उसको मार ही डालता लेकिन मंदिर के बाहर पहले से लड़ते कुछ पियक्कड़ों के हो-हंगामे ने उसे बचा लिया। उसके बाद से पुजारी ने यमुना राय से बात करनी बंद कर दी।’’

''लेकिन इतनी मारपीट के बाद भी पुजारी यहाँ से गया क्यों नहीं?’’ सुबोध उपाध्याय को आश्चर्य हुआ।

''वह प्यार में था। दोनों दूर भागने की फ़िराक में थे। लेकिन उसके पहले ये सब हो गया।’’ सोम एक्का को सब ऐसे ताक रहे थे जैसे उसने उनकी चलती मोटरसाइकिल का अगला ब्रेक दबा दिया हो।

''लड़की कौन थी?’’ जगत मिश्रा ने अधीरता से पूछा।

''लड़की नहीं, उसी मोहल्ले की औरत है। पति ने छोड़ दिया तो यहीं मायके में रहती है। अभी तो  हमलोगों ने उसको कॉल किया था।’’ सोम एक्का ने रहस्य के मारे मुस्कुराते हुए कहा।

''बबिता..? जिसने फोन काट दिया..?’’ जगत मिश्रा ने हँसते हुए बहन की गाली देकर ताली मारी। उनके चहरे की चमक देखकर प्रतीत हो रहा था, मानो उन्होंने केस सुलझा लिया हो।

''मतलब समय पर पुजारी का मर्डर नहीं होता तो दोनों भाग जाते। मतलब उस स्थिति में भी औरत के घर वालों की तरफ से अपहरण या गुमशुदगी का एक केस हमलोगों को झेलना पड़ता।’’ अवधेश शर्मा हँसने लगा।

''हाँ लेकिन मर्डर से अच्छा था, बेचारा भाग जाता। घर बस जाता उसका।’’ सोम एक्का ने उसकी हँसी के जवाब में कहा। 

 

9.

सुबह के आठ बजे थे। सड़क पर स्कूली बच्चों की गाडिय़ों और रिक्शों का कब्ज़ा था। पुलिस की जीप आधे घंटे में रेंगती हुई तीन माले की एक आलीशान घर के सामने रुकी। यह मिहिर सिंह का घर था, जहाँ बबिता रहती थी। पुलिस की गाड़ी रुकते ही आसपास के घरों के लोग अपनी छत से झाँकने लगे।

आज से पंद्रह-बीस साल पहले शहर के क़रीब चालीस फ़ीसदी घर मिहिर सिंह के हार्डवेयर की दुकान से ही बने थे। घर में चार लोग थे। पत्नी जो सप्ताह के हर दिन किसी न किसी व्रत के नियमों में बंधी होती थी। एक बेटा, जिस पर दस-बारह साल पहले मारपीट के दो केस दर्ज हुए थे लेकिन वो पन्ने अब रजिस्टर में नहीं हैं। और एकलौती बड़ी बेटी बबिता। अड़तीस साल की लंबी, थोड़ी गदबदी और पके अमरूद-सा पीलापन और अंडेनुमा चेहरे वाली महिला जो पति से अलग होने के बाद से यहीं रहती थी। जगत मिश्रा और उनकी टीम इसी को ढूँढते हुए यहाँ पहुँची थी।

जगत मिश्रा एक सजे-सजाये ड्राइंग रूम में सोफे पर धँस गये। मिहिर सिंह हाथ बाँधे खड़े थे। घर आयी पुलिस को देख माँ, बेटे या पिता के चेहरे पर आश्चर्य, डर, परेशानी, हड़बड़ी जैसी किसी भी भाव की अनुपस्थिति से ज़ाहिर होता था, इन्हें संभावित पूछताछ का अंदेशा था और वो इसके लिए तैयार थे।

बबिता बिना बुलाये ड्राइंग रूम में आ गयी।

''मैंने आप लोगों को थाने नहीं बुलाया। लेडिज मैटर मानकर आपलोगों को रियायत दी। अब आपकी ज़िम्मेदारी है, मुझे सब सच-सच बताइए।’’ जगत मिश्रा ने समझाने के स्वर में कहा। मिहिर सिंह और उनका बेटा एक साथ कुछ बोलने को हुए कि जगत मिश्रा ने उन्हें हाथ उठाकर चुप करा दिया, ''इनको बोलने दीजिये।’’

बबिता काफी देर तक कुछ नहीं बोली। सिंगल सोफे पर बैठी अपने पैर के अँगूठे से टाइल्स चमकाती रही। जगत मिश्रा ने दुबारा कहा, ''अगर आप नहीं बोलियेगा तो मामला ज़्यादा खींचेगा। पुजारी जी से कैसा परिचय था आपका?’’

''परिचय जैसा कुछ ख़ास नहीं था। मंदिर जाती थी तो प्रणामपाती हो जाता था।’’ पिता मिहिर सिंह ने हस्तक्षेप किया।

''बोला न, इनको बोलने दीजिये। आपलोगों से अलग से बात करूँगा।’’ जगत मिश्रा ने अबकी थोड़े गुस्से से कहा।   

बबिता सहम गयी। ''बहुत ज़्यादा परिचय नहीं था।’’ उसने महीन धागे की-सी आवाज़ में पहली बार कुछ बोला।

''फिर एक ही दिन में आपके नंबर पर पंडित जी का पाँच-पाँच कॉल कैसे आता था?’’ जगत मिश्रा ने सवालिया नज़रों से बबिता को देखा।

''पंडित बदमाश आदमी था। इसके पीछे हाथ धोकर पड़ा था।’’ पिता मिहिर सिंह दुबारा बीच में बोले।

''फिर ये उस बदमाश आदमी को इधर से दिन में पाँच बार कॉल क्यों करती थीं?’’ अबकी कमरे में एक चुप्पी छा गयी।

''इसलिए बोल रहा हूँ सच बोलिए। इसी में आपलोगों की भलाई है।’’ जगत मिश्रा बोले।

थोड़ी देर की इस चुप्पी के बाद किसी व्रत के उपवास के असर में बेहद कमज़ोर आवाज़ में उसकी माँ बोली, ''उस पंडित की नियत बबिता पर ख़राब थी। बबिता फोन करके उसे कहती थी कि मेरा पीछा छोड़ दीजिये। लेकिन वह मानता नहीं था। प्रसाद देने के बहाने घर तक चला आता था।’’

''इसलिए आपलोगों ने उसे रास्ते से हटा दिया?’’ जगत मिश्रा ने बबिता के माँ, बाप और भाई की तरफ देखते हुए दो टूक में पूछा। ''आपलोग दो मिनट के लिए बाहर जाइए।’’

 जगत मिश्रा पास रखे पानी का बोतल शांत बैठी बबिता की ओर बढ़ाते हुए बोले, ''देखो पुजारी ने अगर तुम्हारे साथ कुछ बुरा किया है तो बेझिझक बोलो। यह मामला यहीं ख़त्म हो जायेगा।’’

 वह पूर्ववत सिर झुकाए बैठी रही।

''लेकिन अगर इनलोगों ने पुजारी के साथ कुछ गड़बड़ किया है तो तुमको डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। तुम बस सच बोलो।’’ सुबोध उपाध्याय ने जोड़ा, ''पुजारी के लिए तुम्हारे मन में कुछ भी था तो बता दो। हमलोग तुम्हारी तरफ ही रहेंगे।’’

अचानक बबिता सिसकने लगी। आँसुओं और नाक से चल रहे पानी से उसका चेहरा पूरी तरह भीग गया। जगत मिश्रा उसे चुप कराते कि उनका मोबाइल बजने लगा। उन्होंने कॉल रिसीव किया तो अचानक खड़े हो गये और लगातार 'जी..जी’ करने लगे। वह बबिता को रोता और भौंचक्का छोड़ पूरी टीम के साथ घर से निकल गये। बाप-बेटे छाती पर हाथ बाँधे कुटिल मुस्कान के साथ उन्हें जाते हुए देख रहे थे।

 

10.

इस बार यमुना राय को बुलाया नहीं गया, सीधे पुलिस की जीप धड़धड़ाते उसके घर पहुँची। उसे थाने लाया गया। थाने में एक बार फिर से वह उसी कुर्सी पर था, जगत मिश्रा के ठीक सामने। बस इस बार जगत मिश्रा का तेवर बदला हुआ था।

''कहते हैं, मनुष्य चला जाता है, उसका नाम रह जाता है। बेचारे पुजारी को यह सुविधा भी नहीं मिली। आदमी बेनाम मर गया। आपने हमें पुजारी का नाम नहीं बताया लेकिन हम आपको बता देते हैं, शिवकुमार दास। उड़ीसा के भद्रक जिले के निवासी थे। अब आप सीधे से बता दीजिए पूरा मामला क्या है? हम बस आपके मुँह से सुनना चाहते हैं।’’ जगत मिश्रा ने इस ठंढेपन से कहा कि सामने रखी गर्म चाय से भाप उठनी बंद हो गयी।

''आप मुझ पर बेकार में शक कर रहे हैं सर। यह सरासर जायसवाल का काम है। मुझे पहले से लग रहा था वह कुछ न कुछ करेगा। आप उसे टाइट कीजिये, सब उगल देगा।’’

''जायसवाल क्या चीज है, टाइट करेंगे तो आप भी उगल देंगे कि कैसे बोधगया से शिवकुमार दास को उठाकर पुजारी बना दिये..कैसे मंदिर के ज़रिये ज़ेब भरते रहे... कैसे बात बिगड़ी तो पुजारी को रास्ते से हटा दिये। हमें तो यह भी पता है, वो त्रिशूल कहाँ से आया था..।’’ जगत मिश्रा हँसे।

''बाबा प्रणाम, हम थाने में हैं। प्रभारी महोदय बैठे हैं। एक बार बात कर लीजिये।’’ यमुना राय ने जाने कब किसी को कॉल लगा दिया था। उसने स्पीकर ऑन कर मोबाइल जगत मिश्रा की ओर बढ़ा दिया।

''मिश्राजी, सनोज तिवारी बोल रहा हूँ। अभी यमुना को जाने दीजिये। मैं कल आपसे बात करता हूँ।’’

यह विधायक तिवारी बाबा की आवाज़ थी जो पिछले दो चुनावों से लगातार जीतते आ रहे थे। क्षेत्र भर में गायों के लिए बनाये गए विश्रामगृहों और गो-भोजनालयों जैसे उनके अनूठे कदमों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने पिछले साल उन्हें प्रदेश का श्रेष्ठ विधायक घोषित किया था।

''जी..जी..।’’ जगत मिश्रा बीच दुपहरिया पानी में तब्दील होते मीठे आइसक्रीम की तरह बोले।

 

11.

पाँच बज रहे थे और शहर में हल्के उजाले और ठंढ के सटीक समिश्रण से बनी शाम उतरी थी। शाम को समोसे और रसगुल्ले खाना शहर के पुरुषों का शगल था इसलिए हलवाइयों की दुकान के कड़ाह लगातार समोसे उगल रहे थे। जगत मिश्रा अपने लोगों के साथ लबदा पांडे से पूछताछ के लिए आये थे। आज गुरूवार था सो बंगाली मिठाई दुकान के ठीक ऊपर बने एक हॉल में लबदा पांडे महिलाओं के साथ शिवचर्चा में बैठा था।

जगत मिश्रा ने समय के सदुपयोग वास्ते बंगाली मिठाई दुकान से आठ समोसे मँगवाये। थाने के नाम पर बिना देरी के सखुआ पत्तों के दोने में आठ समोसे पोस्ते की चटनी के साथ हाजिऱ थे। सोम एक्का ने समोसा टूंगते हुए कहा, ''बंगाली दादा अपने समोसे में उबले आलू की जगह भुजिया और धनिया पत्ती की जगह भाँग के हरे पत्ते मिलाता है। इसलिए भीड़ लगी रहती है।’’ हँसी-मज़ाक शुरू ही हुआ था कि लबदा पांडे सीढिय़ों से उतरता दिखा। पचपन की उम्र का घुटे सिर और बड़े पेट वाला एक आदमी नील में डूबे धोती-कुर्ता में उनके सामने था। लबदा पांडे ने जगत मिश्रा को देखकर हाथ जोड़ लिया।

''समोसा खायेंगे पंडीजी?’’ जगत मिश्रा ने गर्म समोसे को सफलतापूर्वक फोड़कर उससे निकले भाप और उसकी बेजोड़ महक को अपने नथुनों में महसूस करते हुए कहा।

लबदा पांडे वापस हाथ जोड़कर बोला, ''आज उपवास है। आपलोग लीजिये। लेकिन अच्छा होता, सबलोग ऊपर हॉल में आराम से बैठकर खाते।’’

शिवचर्चा ख़त्म हो गयी थी। महिलाएँ लोहे की पुरानी पतली घेरेदार सीढिय़ों के सहारे एक-एक कर हॉल से उतर रही थीं। जगत मिश्रा ने कहा, ''हमने पुजारी जी के मोबाइल में आपका नंबर देखा तो आपको कॉल किया। लेकिन आपने हर बार काट दिया। आज जब दूसरे नंबर से कॉल गया, तो आप भूल से उठा लिये। बात क्या है? क्या छिपा रहे हैं?’’ जगत मिश्रा समोसे से निकले गर्म आलू को ठंड़ा करने के लिए फूँक मारते हुए बोले।

''पंडित जी को पहचनाते हैं?’’ सोम एक्का बोला।

''बहुत भले व्यक्ति थे सर।’’ लबदा पांडे आसमान की तरफ आँखें कर दु:ख व्यक्त करते हुए बोला।

''थे मतलब? क्या हो गया उनको?’’ अवधेश शर्मा ने नकली जिज्ञासा से पूछा। ''इसका मतलब आपको मालूम है पंडित जी मर गये? हाँ आपको तो मालूम ही होगा।’’ उसने व्यंग्य किया।

''कैसी पहचान थी उनसे?’’ जगत मिश्रा ने पूछा।

''हमलोग एक ही क्षेत्र के लोग हैं तो साथ उठना-बैठना चलता रहता है सर। वह ज्ञानी आदमी थे। उनसे बहुत कुछ सिखने को मिला।’’ लबदा पांडे चेहरे पर भरसक शोक लाते हुए बोला।

''बहुत कुछ सिखने को मिला, इसलिए आप गुरूदक्षिणा में ऐसे मैसेज लिखते थे?’’ जगत मिश्रा ने पुजारी के मोबाइल का एक मैसेज निकालकर उसके सामने रख दिया। रोमन में लिखा था, 'भोंड़ी वाला साला पंडित औकात में रहो। नहीं तो मारेंगे पता भी नहीं  चलेगा।’

''क्यों? आपके ही नंबर से मैसेज भेजा गया है न? ऐसे आठ मैसेज और हैं। दिखाऊँ?’’ जगत मिश्रा बोले।

लबदा पांडे के चेहरे पर पहली बार विचलन दिखा। ''गुजर चुके आदमी के बारे में बुरा नहीं बोलना चाहिए। इसलिए कुछ नहीं बोलूँगा सर। लेकिन पंडित जी के कारण बाबा का बहुत नुकसान हो रहा था।’’

''तिवारी बाबा का क्या नुकसान हो रहा था?’’ जगत मिश्रा को आश्चर्य हुआ।

''तिवारी बाबा का नहीं, भोले बाबा का। पहले शिवचर्चा से शहर की हज़ारों औरतें जुड़ी हुई थीं। पंडित जी की वज़ह से केवल सौ-पचास बचीं। बाक़ी सब देवी भक्त हो गयीं। सबको लगता, वो सिद्ध महात्मा हैं। दो महिने पहले पंडित जी ने लोगों की सहायता से मंदिर के पास देवी का एक बड़ा कार्यक्रम किया था। उसी दिन शिवचर्चा के लिए भी जिले भर से लोग जुटने वाले थे। पर सारी भीड़ पंडित जी के कार्यक्रम में चली गयी। उस बाहरी आदमी ने शहर के सारे पुजारियों का काम ख़राब कर दिया। हनुमान मंदिर, छठ तालाब मंदिर से लेकर बड़का मंदिर तक सबका काम ठप्प हो गया। आप किसी भी मंदिर के पुजारी से पूछ लीजिये, सब यही बात कहेंगे। आज स्थिति ये है कि शिवरात्रि और सावन की सोमवारी को छोड़ पूरे साल पचास लोग भी शिव मंदिर में झाँकने नहीं आते।’’ लबदा पांडे के चेहरे पर पुजारी की मौत का कोई अफ़सोस नहीं था।

''आप एकदम ठीक पेले गुरूजी उस मद्रासी को।’’ बगल में दरी मोड़ता अपनी नाप से बड़े आकार का शर्ट पहने और उसके नीचे अजीब ढंग से लुंगी बाँधे पैंतीस साल के एक आदमी ने दांत निपोरकर हँसते हुए कहा। जगत मिश्रा को इस क़िस्म के हस्तक्षेप से बहुत चिढ़ थी। लेकिन उसकी बात सुनकर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया। 

''कब पेले थे आपके गुरूजी उस मद्रासी को?’’ जगत मिश्रा ने उससे पूछा।

''ये पागल है सर। चाय-समोसा के चक्कर में कुर्सी-दरी समेट देता है, इसलिए इसको रखे हैं।’’ अवधेश शर्मा ने उसकी ओर गुस्से से देखते हुए आँखों से ही जाने क्या इशारा किया कि वह हँसना छोड़ डर से सुबकने लगा और वहीं ज़मीन पर बैठ गया।

''तो पंडित जी ने आपका मार्केट ख़राब कर दिया था, इसलिए उनको देवी के पास भेज दिये?’’ जगत मिश्रा समोसे के साथ मिले मिर्च को कच्च से आधा काट सुसुआने लगे।

''शिव...शिव...ये क्या कह रहे हैं सर..? ठीक है, वह हमें पसंद नहीं थे लेकिन इसका ये मतलब नहीं हम उनको मरवा दिये। आप भी ब्राह्मण हैं, हम भी ब्राह्मण हैं, फिर ऐसे निराधार आरोपों का क्या तुक?’’

''आरोप नहीं लगा रहे, गवाह सामने बैठा है। रोते हुए पागल आदमी को मैंने झूठ बोलते नहीं देखा है।’’ जगत मिश्रा ने उस सुबकते आदमी की ओर इशारा कर कहा।

''मतलब अब आप इस पगलेट आदमी पर भरोसा करेंगे? मेरे बारे में पूछना है तो इनसे पूछ लीजिये।’’ कहते-कहते लबदा पांडे ने किसी का नंबर मिला दिया, ''बाबा प्रणाम। लबदा हैं। थाना प्रभारी आये हैं। पकड़कर ले जा रहे हैं।’’ लबदा पांडे ने रिरियाते हुए कहा।

उस तरफ विधायक तिवारी बाबा थे। जगत मिश्रा ने आश्चर्य से लबदा पांडे को देखा जो अब दुखियारे का रूप छोड़ तन कर बैठ गया था।

 

12.

रात के साढ़े सात बज रहे थे और शहर जेनरेटर और इनवर्टर के सहारे भकभुका रहा था। थाने से निकलकर जगत मिश्रा अकेले तिवारी बाबा के बंगले की ओर चल पड़े थे। बिजली गुल होने के बावज़ूद दूर से दिख रही रौनक और लोगों की भीड़ तिवारी बाबा के बंगले का पता बता रही था।

तिवारी बाबा ने जगत मिश्रा को बहुत दुलार से बिठाया और पास खड़े आदमी से व्हिस्की का ग्लास मँगवाया। वहाँ कई कार्यकर्ता मौज़ूद थे और खाने-पीने की व्यवस्था देख रहे थे। सोंधी उठ रही महक से लग रहा था, लिट्टियाँ सेंकी जा रही थीं। यह दुर्लभ संयोग था जो तिवारी बाबा यहाँ थे। नहीं तो इनका स्थायी ठीया रांची और दिल्ली था।

''एक मर्डर से इतना क्यों परेशान हैं मिश्रा जी? कितने समय बाद तो हुआ है। उन जिलों के बारे में सोचिये जहाँ हफ्ते-दस दिन में भीड़ एक लाश गिरा दे रही है।’’ तिवारी बाबा बोले।

''जहाँ रोज़ का है, वहाँ ये नोर्मल हो गया है पर यहाँ मर्डर अब भी बड़ी बात है बाबा।’’

''ठीक है, पर इतना भी लोड मत लीजिये। पुजारी फ्रॉड आदमी था। दलित होकर पंडित बना हुआ था। देवी को अपवित्र करने का दंड तो झेलना था।’’

जगत मिश्रा सकते में आ गये। जब विशेष ताकीद करके थाने में सबको बताया था, पुजारी के दलित होने वाली बात बाहर नहीं आनी चाहिए फिर भी बात बाहर निकल गई। मतलब थाने में इनके लोग हैं जो इन्हें सूचना देते हैं। वह तुरंत कुछ नहीं बोले। बस व्हिस्की का ग्लास घूरते रहे।

''जी बाबा..मगर कुछ एक्शन तो लेना पड़ेगा न। एसपी सर का प्रेशर है।’’ जगत मिश्रा व्हिस्की चखते हुए बोले।

''लीजिये..बिल्कुल लीजिये..किस पर शक है आपको? खुलकर कहिये।’’

''फि़लहाल तो यही तीनों दिख रहे हैं बाबा।’’

''तीनों में सबसे ज़्यादा कौन?’’

''पता नहीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वज़ह सिर पर लगी चोट है। किसी ने त्रिशूल से मारा है। मंदिर से मिले फिंगर प्रिंट और इनके फिंगर प्रिंट की मैचिंग रिपोर्ट आनी बाक़ी है। देवी जाने कौन है?’’

''कोई नहीं है।’’ अचानक रूखे स्वर में तिवारी बाबा आगे की ओर झुकते हुए बोले। ''यमुना को देख ही रहे हैं, पार्टी का कितना बड़ा समर्पित कार्यकर्ता है। उसका नाम आने से फ़ालतू में पार्टी पर बात होगी। दूसरे जो हैं, लड़की के फादर मिहिर सिंह, वो व्यापारी संघ के सचिव हैं। व्यापारी आदमी हैं। पार्टी के बहुत काम आते हैं। भले आदमी हैं। बेटी की इज्ज़त का सवाल है। रही बात लबदा पांडे की, उस शिव के नाती को बहुत पहले से जानते हैं। बड़ा बक्लंडर आदमी है। पहले दिल्ली के एक बापूजी के लिए काम करता था। जब वो बापू एक रेप केस में जेल चला गया तो ये यहाँ शिवचर्चा शुरू कर दिया। एक बार उसको बोले, अपनी औरतों के बीच शिवचर्चा में मेरी चर्चा छेड़ दिया करो। हमने चुनाव के संदर्भ में कहा था। वोट वास्ते। पर वह कुछ और ही समझ गया और एक रात मेरे रांची आवास पर दो महिलाओं को भेज दिया कि लबदा भैया ने सेवा के लिए भेजा है। हमने फोन कर बहुत डांटा उसको। उसके बाद से भांजे के नाम पर शराब दुकान के लाइसेंस के लिए पीछे पड़ा है। दुकान दिला भी दें पर सारी शराब ख़ुद पीकर मर जायेगा।’’ ग्लास की बची व्हिस्की को एक साँस में ख़ाली कर तिवारी बाबा पुन: बोले, ''लेकिन इसमें उसको मत घसीटिये। धर्म से जुड़े लोगों का नाम अपराध में आने से धर्म की बड़ी हानि होती है। और धर्म की हानि होने पर पार्टी को हानि होती है। किसी और का नाम नहीं दिया जा सकता?’’ तिवारी बाबा कुछ सोचते हुए पूछे।

''एक है महेंद्र जायसवाल। यमुना के साथ मंदिर की जमीन में इसका प्रोपर्टी डिस्प्यूट है। ब्लॉक से कागज़ मँगवाये हैं। देखते हैं क्या मामला निकलता है? जालसाज आदमी है। किसी भी रैयती ज़मीन का जाली कागज़ बना लेता है। जब ज़मीन का असली मालिक उस पर निर्माण कार्य शुरू करता है, ये अपने फ़र्जी दस्तावेज़ों और लोगों को लेकर काम रोकने पहुँच जाता है। फिर सुलह-समझौते के बहाने बीस-तीस हज़ार झटककर अपना दावा छोड़ देता है। यही इसका धंधा है।’’ जगत मिश्रा बोले।

''फिर तो ठीक है। उठा लीजिये। वैसे उन मुस्लिम लड़कों का क्या हुआ जिन्हें आप रिमांड पर लिये हैं?’’

''वो लोग बस प्रेशर कम करने के लिए हैं बाबा, ताकि हमें जाँच का समय मिल जाये। उन पर कोई केस टिकेगा नहीं। कुछ करने की कोशिश भी करें तो लगेगा जबरदस्ती लिंक किया गया है।’’ जगत मिश्रा ने नकार में सिर हिलाते हुए कहा।

''हाँ..लेकिन कोशिश करके देखिये, अगर ऐसा हो पाए तो पार्टी का बेस बढ़ेगा। चुनाव हो न हो, माहौल बना रहना चाहिए।’’

''आप परेशान न हों। मैं हैंडल करता हूँ बाबा।’’ जाने क्या सोचते हुए सामने आ चुकी गर्म लिट्टियों में घी डालने के लिए जगत मिश्रा ने उन्हें फोड़ दिया। भाप-सा उठा और उनकी ऊँगलियाँ जल गयीं। उन्होंने झट से अपना कान छू लिया। 

''पुजारी के दलित होने की बात एसपी को पता नहीं चले मिश्रा जी, नहीं तो वो ख़ुद दिलचस्पी लेने लगेंगे। अपनी जात-बिरादरी को लेकर बहुत संवेदनशील हैं मीना जी।’’ पता नहीं यह गालों के बीच दबे गर्म लिट्टियों की वज़ह से था या अपनी बात में छिपे किसी संकेत की वज़ह से, तिवारी बाबा का मुंह मुस्कुराने जैसा हो गया।

''उनको कोई दिलचस्पी नहीं है इस शहर में। वो ट्रांसफर करवा कर जयपुर भागने के चक्कर में लगे हैं।’’

 

13.

पुजारी की मौत के बाद की यह सातवीं सुबह थी। फिंगर प्रिंट की रिपोर्ट आ गयी थी। कोई मैच नहीं मिला था। भद्रक से पुजारी की बहन जयमाला पिछली शाम पहुँच गयी थी और एक मंदिर की धर्मशाला में ठहरी हुई थी। वह शाम में ही थाना आकर प्राथमिकी में अपना बयान जोडऩे की ज़िद कर रही थी। उधर प्रखंड कार्यालय में महेंद्र जायसवाल के फर्जीवाड़े के दस्तावेज़ तलाशे जा रहे थे। सबूत मिलते ही कई काम आसान हो जाने वाले थे। 

लेकिन उस सुबह दो कॉल आये। एक अच्छा, एक बुरा।

बुरा कॉल यह कि धर्मशाला से ख़बर आयी, सीढिय़ाँ उतरते हुए पुजारी की बहन फिसलकर गिर गयी और सिर फटने से उसकी मौके पर ही मौत हो गयी।  

अच्छा कॉल यह कि पुजारी की मौत का मामला सुलझ गया था।

अचानक थाने में सुसुप्तावस्था में रखा पुजारी का मोबाइल बजा था, जिसपर वहाँ मौज़ूद सारे सिपाही चौंक गये थे। जगत मिश्रा ने कॉल रिसीव किया।

''पंडित जी प्रणाम।’’

उधर से जिस आदमी ने कॉल किया था, उसने फोन के दूसरी तरफ पंडित जी के होने की उम्मीद की थी। जगत मिश्रा ने अपना परिचय पंडित जी के दोस्त के रूप में दिया और थोड़ी देर में पंडित जी से बात करवाने की बात कही। फिर उसका परिचय पूछा। उस आदमी ने कहा, वह ताजिया मोहल्ले से बरकत बोल रहा है। वह मूर्ति बनाने का काम करता है। पुजारी जी ने उसे बुलाया था कि देवी की मूर्ति के एक हाथ का अँगूठा टूट गया है। उसे ठीक करना है। लेकिन जिस शाम वह मंदिर पहुँचा, पंडित जी नहीं दिखे। वह मंदिर में घुसकर उन्हें ढूँढने ही वाला था कि एक आदमी ने उसे बाहर ही रोक लिया और पूछा, ''कहाँ से आये हो?’’

''ताजिया मोहल्ले से।’’ हम हिचकिचाते हुए बोले।

उसने पूछा, ''मोहम्डन हो?’’

हम बोले, ''हाँ।’’

''इधर सुनो।’’ उस आदमी ने खैनी मुँह में दबाते हुए हमको बुलाया और ताबड़तोड़ मारना शुरू कर दिया। फिर कुछ लोग और आ गये। उन लोगों ने पूछा, क्या हुआ तो उस आदमी ने कहा, हम मंदिर में घुसकर पेटी काटकर पैसे चुराने वाले थे। हम मूर्ति बनाने की बात सबको बताते रहे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना। भरदम मारा। संयोग कि उधर से फुटबॉल खेलकर लौट रहे आदिवासी लड़के आ रहे थे। उन लोगों ने हमें बचाया। हम डरकर उसी रात टाउन छोड़ दिये और अपने मामूघर चले गये। पूरे एक हफ्ते हॉस्पिटल में बिताकर आज जब लौटे तो सोचे पंडित जी को ख़बर कर दें कि उस दिन हमारे साथ कितना बड़ा बवाल हो गया था।’’

''लेकिन पंडित जी तो मर गये।’’ जगत मिश्रा ने कहा।

''हें..कैसे?’’ वह चिहुँक गया।

''सिर पर त्रिशूल लगने से।’’

फोन के उस तरफ उसका गला जैसे रुंध गया, ''पंडित जी हमसे हँसकर कह ही रहे थे कि आकर अँगूठे को जाम कर दो। नहीं तो किसी दिन त्रिशूल मेरे सिर पर गिर जायेगा, मैं मर जाऊँगा।’’

''लेकिन मूर्ति का एक ही हाथ कैसे डैमेज हुआ?’’ जगत मिश्रा ने जिज्ञासा जतायी।

''त्रिशूल बहुत भारी था। पंडित जी कह रहे थे, लोग देवी के पैर छूने के साथ-साथ त्रिशूल को भी छूकर प्रणाम करते थे। उस पर माथा टेकते थे। जल चढ़ाते थे। टूटे नारियल का पानी गिराते थे। धागा बांधते थे। एक दिन उसे कमज़ोर होना ही था। पंडित जी त्रिशूल वाले हाथ के ठीक नीचे आसन जमाने की बज़ाय थोड़ा हटकर बैठते तो बच जाते। या उस दिन हम मार नहीं खाते और अँगूठे की मरम्मत कर दिये होते, तब भी वो बच जाते।’’                             

14.

 

अगले दिन जब चिंटू, बुत्तन, मोहसिन और शाद छोड़े गये, शाम को खुले आसमान के नीचे हँडिय़ा और चने के संग बैठे शाद ने उदास स्वर में कहा, एक चोरी की इतनी सजाएँ पाकर वह आज़िज़ आ गया है और बस ज़िंदगी की कहानी ख़त्म करना चाहता है। चिंटू ने कहा, वह मरना नहीं, लेकिन इस शहर को छोड़ देना चाहता है। मोहसिन ने कहा, शहर छोडऩे की जगह मर जाना बढिय़ा उपाय है। क्योंकि नये शहर में जाने पर इस शहर में हुए अपराध के साथ-साथ नये शहर में हुए अपराध की सज़ा भी भुगतनी पड़ेगी।

बुत्तन अख़बार में छपी पुजारी की अजीबोग़रीब दुर्घटना से हुई मौत की ख़बर पढ़कर हँस रहा था। उसने कहा, वह न मरना चाहता है, न इस शहर को छोडऩा चाहता है। वह थाना प्रभारी को धन्यवाद देना चाहता है। वे चारों भाग्यशाली हैं जो उन्हें ऐसा थाना प्रभारी मिला है। उसने अख़बार फैलाया और उस पर लेट गया। आसमान में अभी गिनती भर तारे थे। उन चुनिन्दा तारों को गिनते हुए वह बुदबुदाया, ''एक यमुना राय से, एक सिंह परिवार से, एक महेंद्र जायसवाल से, एक लबदा पांडे से और एक हम चारों से। कम से कम पाँच लाख ज़रूर। पुजारी की मौत को संयोग वाले दुर्घटना के खाते में जाना ही था।

 

15.

थाने में केस ख़त्म होने की ख़ुशी में व्हिस्की और चिकन चिली की पार्टी चल रही थी। सब नशे में झूम रहे थे। सोम एक्का लाइन से सबको बधाई कहता हुआ जब जगत मिश्रा के पास पहुँचा, चढ़ी आँखों से उन्होंने मुस्कुराते हुए उससे पूछा, ''अंदाज़ा लगाओ पुजारी की बहन को किसने मारा होगा?’’

 

 

 

 

1985 के झारखण्ड के एक छोटे से जिले चतरा में जन्म। प्रारम्भिक पढ़ाई-लिखाई चतरा में ही। बाद में आगे की पढ़ाई पटना, वर्धा होते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में। मीडिया में पीएच.डी. के साथ ख़त्म हुई। जेएनयू में रहते हुए फरवरी 2016 की घटना पर एक डायरी का लेखन। कुछ समय के लिए बिलासपुर सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी में मीडिया और सिनेमा का अध्यापन। फिलहाल मुम्बई में रह कर मराठी फ़िल्म लेखन में सक्रिय। कहानी लेखन की शुरूआत वर्ष 2007 से हुई और पहली कहानी 'लोहे का बक्सा और बंदूक’ को वागर्थ का 2007 का श्रेष्ठ नवलेखन पुरस्कार मिला। तब से विभिन्न पत्रिकाओं में कहानी लेखन जारी। उडिय़ा, बांग्ला के अलावा कमोबेश सभी कहानियाँ मराठी में अनुदित। संभत: कहानियों की पहली किताब मूल हिन्दी की बजाय मराठी में अनुदित कहानियों की हो। 'पहल’ में यह चौथी कहानी।

संपर्क- 9013673144

 


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