युद्ध
विवेक चतुर्वेदी
लंबी कविता
अलस्सुबह एक तानाशाह ने घोषणा की... युद्ध होगा और जरा देर में ही दूसरे तानाशाह ने अभी दोनों ने अपनी गर्वित भंगिमाएँ उतार कर तह भी न की थी की जरखरीद युद्ध खोज एजेंसियाँ ट्वीट करने लगीं... युद्ध होगा खबरों के इलाके में गुम हुए क्वात्रोची और खागोशी फिर सतह पर आ गए। पौ फट भी न पाई थी कि टीआरपी के दंश से पीडि़त अपाहिज और कोढ़ी मीडिया रोग शैया से उठ खड़े हो चीखने लगा यहाँ उत्सव की तरह सजाया गया युद्ध फौज के पुराने जनरल... पार्टियों के प्रवक्ता मुँह धोए बिना स्टुडियो की ओर भागे। राष्ट्रवादी तिलक और जालीदार टोपियाँ हुंकारने लगीं जुगलबंदी में मौकापरस्त और कुटिल राजनीतिज्ञ मैदान में आ खड़े हुए युद्ध दिमागों में फैलता गया। शहरों में दफ्तर खुले तो मरघिल्ले बाबू अलसायी फाइलें छोड़ चाय की चीकट दुकानों में जमा हो गए और सिर हिला-हिला कर तसदीक की... युद्ध होगा। दोपहर के पहले ही अखबारों के सम्पादक भागते हुए दफ्तर पहुँचे स्याही की जगह खून उड़ेल दिया उन्होंने मिलों में छंटनी की/मरते बच्चों की/ महंगी प्याज की/बैंकों से हड़पे कर्ज की/ रुपये की कमजोरी की/सरकार के फर्ज़ की खबरें तुरंत गुड़ी कर फेंक दीं। ठण्डी औरत की तरह लेटा बाजार अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ अनाज से लेकर शराब तक के व्यापारी चहक उठे भरे जाने लगे गोदाम। इस बीच दोनों देशों में पसरी आम चर्चाओं में महंगाई का रोना मिट गया जुलूस सड़क तक आते-आते ठिठक गए भ्रष्टाचार पर पेट दर्द कम हुआ प्रतिरोध की कविताएँ आधी लिखी रह गई सभी असंतोष स्थगित हो गए। दोपहर खाने की छुट्टी में स्कूल के लड़कों को मालूम हुआ... युद्ध होगा वे खेल के मैदान में ही दो देसों में बंट गए माँ बहन होने लगी। शाम से पहले मिट्टी में ढंके सूखे मेंढकों जैसे बूढ़े युद्ध विश्लेषक सम्भावना के छींटे पड़ते ही जीवित हो बताने लगे कि कितने दिनों में फौज लाहौर और दिल्ली में होगी। शाम ताड़ीखाने में 'लाल’ और 'सफेद’ की तेज गंध के बीच एक ताड़ीबाज रोया युद्ध होगा... युद्ध होगा। सड़कों पर निरुद्देश्य फिरतीं रेशमी जुल्फों वाली लड़कियाँ और उनके चिपके अधगंजी हेयरकट वाले चाकलेटी लड़कों की बातों में नेशन प्राइड, वॉर, बॉर्डर, मिसाइल जैसे शब्द च्युंइगम की तरह चुभलाए जाने लगे। मंदिरों और मस्जिदों में आरती और अजान के स्वरों से नाजुक चिडिय़ाएँ उड़ गईं... वे बाज हो गईं राम और खुद भी एक दूसरे की ओर पीठ करके खड़े हो गए ''अल्लाह ओ अकबर’’ और ''सीताराम’’ की गूँज खोती गई ''चीर देंगे’’, ''चाक कर देंगे’’ इबादत और मंत्र जैसा दोहराया जाने लगा। रात शीघ्र स्खलन से पीडि़त पुरुष, कामेच्छा की कमी से ग्रस्त स्त्रियाँ, थके हुए कामगार, दिन भर चूसे गए दफ्तरी, बेरोजगार लौंडे, मरणासन्न बूढ़े, बिनब्याही लड़कियाँ, होमवर्क चोर बच्चे सबकी आंखें टेलीविजन देख चमक उठीं वे उत्तेजना से चिल्लाए... युद्ध होगा। देर रात तक अनसुनी करते रहे कवियों और कलावंतों ने भी आखिरश कलमें और कूचियाँ फेंक दीं दाढ़ी खुजा वे बुदबुदा उठे... युद्ध होगा उनका अस्फुट स्वर सुन... सूरज जो सुबह निकलने को घर से चल पड़ा था... राह में ही रुक गया रात गहराती ही गई। उस बहुत काली रात में दोनों तानाशाह फिर राष्ट्र के नाम संदेशों में प्रकट हुए और अब पहले से भी अधिक गर्वित भंगिमाओं और प्रभुता सम्पन्न मुद्राओं में कह सके चाहता है देश... युद्ध होगा... युद्ध होगा।
विवेक चतुर्वेदी नये तेजी से उभरने वाले कवियों में अग्रणी हैं। पूर्व प्रकाशित। एक संग्रह वाणी से आया है। संपर्क:- मो. 9039087291
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