शैलेय की पांच कविताएं
शैलेय
कविता
नाप
और कितनी दूर होगा पानी मेरे कहने में जैसे थकान भी शामिल थी
बस आता ही होगा उसके कहने में जैसे प्याऊ भी शामिल था
गर्मियों की यात्रा में अपना पानी साथ लेकर चलना चाहिए यह हम दोनों की ही प्यास बोल रही थी
सच भी था रास्ते को हम कहां प्यास ही तो नाप रही थी
बेनकाब
क्या थकान हड्डियों से सारी ताकत निचुड़ जाने का नाम है या कि किसी उदास शाम यकबयक दिल का बैठ जाना तुम कहां हो कि मैं तुम्हीं से मुखातिब हुआ हूं अभी-अभी तो हजार कबूतर उड़े थे आसमान में अभी-अभी आसमान में अंधेरा छा गया जमीन खून से लथपत गीली हो आई है
एक फफूंद है ऊपर से लिथड़ती हुई एक हवा है निरंतर बासी होती हुई एक दुख चुपके से कांधे पर आकर बैठ गया है आत्मा छिन्न-भिन्न है रसातल से ऊपर उठने के प्रयास में
मैं इस रात में सो नहीं पाऊँगा मुझे आने वाली सुबह का अभी और इंतजार है मुझे मेरे हजार कबूतर चाहिए अपने आसमान में उड़ते हुए मुझे मेरी जमीन चाहिए अपनी फसल लहलहाती हुई फिलहाल मैं तुम्हारा चेहरा बेनकाब चाहता हूं।
मुझे पता है
आप एक अदद आंसू पर आसमान उठाये हुए है मैं खून के घूंट पिये हुए हूं दोस्त समझ सकते हो कि मुझे पानी की कितनी दरकार है
मैं जानता हूं आप अपनी अधूरी यात्रा से दुखी हैं दुखी हैं अभी तक अप्राप्य पुरस्कारों से दुखी हैं कि आपका जीवन बीता जा रहा है जीवन के साथ ये-ये भी बीत रहा है मैं इस अंधेरे कमरे के उस सुराख के बारे में जानता हूं जिसमें एक दूरबीन फिट की हुई है जहां से आप अनन्त की ओर से भविष्यवाणियां करते हैं और अच्छे-भले कदमों के निशां पर 'नरक’ लिखा हुआ बोर्ड टांग देते हैं
प्यारे जिंदगी मुंडेर पर बैठी हुई बिजली है हंसी-दुलार में भी गप कर सकती है तुम्हें क्या पता कि तुम्हारी असल जगह कहां है जैसे मुझे पता है कि दरअसल इस वक़्त मुझे कहां होना चाहिए।
कुछ नहीं तो
मुझे हर समय एक खालीपन लगता है यह खालीपन मुझे सबसे ज्यादा सताता है
खालीपन में मुझे फूल-फल-पत्ती-पेड़-जंगल याद आते हैं याद आते हैं रस भीगे मौसम रसभीनी बयार
खालीपन में मुझे पर्वत-नदी-समुद्र-बादल याद आते हैं याद आती है बारिस एक गहराई से बर्फ तक उछाल लेते हुई
खालीपन में मुझे खेत-खलिहान-बर्तन-बोरे गोदाम के गोदाम याद आते हैं याद आते हैं बोलियों के शोर से भरते बाजार
खालीपन में मुझे बहुत कुछ याद आता है जैसे कि मैं और तुम जैसे कि सूनी आंखों से उठते धुंअे पर भीतर कहीं गहरे मिचमिचाता हुआ दिल कि इतना भी खाली क्या रहना दोस्त कुछ नहीं तो कुछ जिंदगी भी भर लो।
सूखा
वह क्या था जिसे हम एक ख्वाब कहा करते थे जाड़ा हो लू हो हम अपना दिन-रात एक किये रहते थे मगर धीरे-धीरे जो होता गया अब नाकाबिलेबर्दाश्त है
जिंदगी क्या एक मौत का सफर है और पनाह एक कमबख्त धोखा कि चौखट पर की सुबह किसे कहते हैं किसे कहते है मुट्ठी का दिन मैं भूल सा गया हूं
यह गई रात का सर्द अंधेरा है गई रात की अमावश कि अपनी ही लपट के उजाले में दर-दर दर-दर मैं कहां-कहां नहीं भटक रहा हूं
ख्वाब सूख गया है कि आफ़ताब सूख गया है?
शैलेय वरिष्ठ कवि हैं। कई संग्रह प्रकाशित। रूद्रपुर, उत्तराखंड में घर बनाया है। संपर्क- मो. 9760971225
|