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जून - जुलाई : 2020

महफिल

हरियश राय

कहानी

 

 

हुकुम, एक बार आप उससे मिल लीजिए, शायद आपके लिए मदद गार हो। सौमित्र जब अपने केबिन में आया तो हिम्मत सिंह ने आकर कहा।

सौमित्र  सिंह की तरह ही हिम्मत सिंह इस कंपनी में काम करने वाला एक मुलाज़िम था। फर्क सिर्फ इतना था कि हिम्मतसिंह राजस्थान का रहने वाला था और सौमित्र मजूमदार बाहर से आया था। राजस्थान न का होने के नाते उसे यहां की लोक कलाओं के बारे में पता था।

''कौन है वह।’’ सौमित्र ने उत्सुकतावश पूछा 

''करीम खान है, हुकुम।’’ उसने आत्मविश्वास से कहा।

''कौन करीम खान....’’

''करीम खान लंगा, लीलासर गांव का रहने वाला है। आपके लिए मददगार होगा। आप एक बार बात तो करके देखें हुकुम।’’

''क्या मदद गार होगा मेरे लिए। पिछली बार भी मैं तुम्हारी बात मानकर फंस ही गया। यह तो गनीमत रही कि चेयरमैन ने महफिल में वह शो देखा, लोगों से बातचीत करने में ही मश्गूल रहे, नहीं तो मेरी तो छुट्टी ही हो जाती।’’ सौमित्र ने झुंझला कर कहा।

इस कंपनी के चेयरमैन थे विश्ववीर भसीन। पिछले साल वे वाड़मेर आए थे। रात्रि भोज के मौके पर रखी गई महफिल में कठपुतली शो रखा था। उस समय तो विश्ववीर भसीन के पास इतना टाइम नहीं था कि वे कठपुतली के शो को देख सके।

''पर हुकुम यदि चेयरमैन साहब कठपुतली का शो देख लेते, तो आपकी किस्मत ही बदल जाती। अब इस बार करीम खान ऐसा समां बांधेगा कि चेयरमैन साहब देखते ही रह जायेंगे। आप एक बार इससे बात तो कर लीजिए। एक दम नई चीज पेश करेगा यह।’’

सौमित्र मजूमदार वाड़मेर में एक राष्ट्रव्यापी कंपनी में काम करते थे। कंपनी के चेयरमैन विश्ववीर कंपनी के काम का जायजा लेने वाड़मेर आ रहे थे। ऐसा सुना जा रहा था कि कंपनी में कुछ लोगों की छंटनी होने वाली है और छंटनी के लिए ऐसे लोगों के नामों की एक सूची बनाई जा रही है जो अपने काम के प्रति लापरवाही बरतते है और चेयरमैन साहब की मंजूरी से ऐसे लोगों को घर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है। सौमित्र मजूमदार को पता था कि चेयरमैन विश्ववीर भसीन सुबह की फ्लाइट से मुंबई से वाड़मेर आयेंगे और रात की फ्लाइट से वापस चले जाएंगे। दिनभर मीटिंग्स का दौर चलेगा। उनके सम्मान में वाड़मेर फोर्ट होटल में एक रात्रि भोज का आयोजन किया गया है। इस महफिल में वाड़मेर के कुछ लोक कलाकारों द्वारा गाना-बजाने का प्रोग्राम भी रखा जाना था। गाने बजाने का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सौमित्र मजूमदार पर थी। सौमित्र राजस्थान के गाने वालों को तलाश कर रहा था जो चेयरमैन विश्ववीर भसीन के सामने कुछ नायाब चीज पेश कर सकें। एक साल पहले भी ऐसा हुआ था। तब विश्ववीर भसीन के सम्मान  में रात्रि भोज की महफिल में राजस्थान के कठपुतली वालों को बुलाया गया था। भोजन के बाद विश्ववीर भसीन की कोई मीटिग्स थी, इसलिये वे कठपुतली का डाँस नहीं देख सके। अलबता चलते-चलते उन्होंने कठपुतली का नाच दिखाने वालों पर एक नजर जरुर डाली, लेकिन वे वहां रुके नहीं।

इस बार किसी राजस्थानी गाना गाने वाले को तलाश करने के लिए सौमित्र ने हिम्मत सिंह से कहा था।

''अच्छा बुलाओ, बात करके देखते है।’’

कुछ ही पलों में एक आदमी सौमित्र के केबिन का दरवाजा आधा खोलकर झांकने लगा। उसे देखकर सौमित्र ने उसे इशारे से अंदर आने के लिए कहा। हाथ जोड़े हुए वह आदमी भीतर आ गया। सौमित्र ने उसे गौर से देखा। रंग बिरंगी पगड़ी पहने हुए था। कान तक कलम थीं। कानों में बालियां थी। होठों के ऊपर छोटी - छोटी मूँछें थी। बड़ी-बड़ी भौंहे। सफेद कुर्ता और सफेद पायजामा पहने हुए था। कुर्ते पर लाल सदरी थी जिस पर तमाम तरह के बेल - बूटे कढ़े हुए थे। उसके कंधे पर एक थैला था। पच्चीस - तीस साल उसकी उम्र रही होगी लेकिन दिखता पैंतीस- चालीस का था। गरीबी और अभावों ने उसे समय से पहले ही उम्रदराज बना दिया था, देश के लाखों अभावग्रस्त लोगों की तरह।

''घणी खम्मा सा’’, उसने हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

''हां आओ, बैठो।’’ सौमित्र ने सामने रखी कुर्सी पर उसे बैठने का इशारा किया। उसके साथ ही हिम्मत सिंह भी था। वह भी सामने रखी दूसरी कुर्सी पर बैठ गया।

वह आदमी सकुचाते हुए कुर्सी पर बैठ गया।

''क्या नाम है तुम्हारा।’’ पूछा सौमित्र ने।

''करीम खान हुकुम।’’ उसने हाथ जोड़कर कहा।

''कहां रहते हो।’’

''लीलासर गांव में।’’

''क्या करते हो तुम।’’ सौमित्र ने पूछा।

''लंगा गाऊं हूँ हुकुम।’’ हाथ जोड़े - जोड़े उसने बहुत संकोच से कहा था।

इससे पहले सौमित्र कोई प्रतिक्रिया देता हिम्मत सिंह ने कहा ''यह राजस्थान का बहुत ही मशहूर गायन है, चेयरमैन साहब को जरुर पसंद आयेगा।’’

अच्छाह....

''हुकुम,मैं कई सालों से गा रहा हूं। देश- विदेश सब जगह अपना गाना सुना कर आया हूं। लोग खूब तारीफ करते है सा। आप भी मुझे एक मौका दीजिए सा। बड़ी मजबूरी है सा।’’

एक दयनीयता सी उसकी आवाज में बरकरार थी।

''अच्छा कहां - कहां जाकर अपना गाना सुनाया है।’’

यह पूछे जाने पर उसके चेहरे पर एकाएक खुशी छा गई। उसने अपने थैले को कंधे से उतार कर सामने की मेज पर रख दिया और उसमें से कुछ तस्वीरें निकालीं, कुछ सर्टिफ़िकेट निकाले और सौमित्र को दिखाते हुए कहा, ''यह देखिए, कई देशों में हो आया हूं, रूस, जापान, अमरीका। लोग बड़ा पसंद करते हैं मेरा गाना। मुझे प्रमाणपत्र भी दिया है।’’

उन तस्वीरों और सर्टिफ़िकेट को देखने के बाद सौमित्र को मालूम हुआ कि करीम खान कई देशों में अपना गाना सुना चुका है।

''यह तो बड़ी खुशी की बात है।’’ सौमित्र ने उसे तस्वीरों और सर्टिफ़िकेट वापस करते हुए कहा।

करीम खान ने अपनी तस्वी सौमित्र से लेकर बड़े ही एहतियात से वापस अपने थैले में रख लीं और कहा, ''साहब, हम लोग संगीत की पूजा करते है। हमारी आवाज ही हमारी पहचान है। देश और विदेश के मेहमानों को दीवाना बना देती है हमारी आवाज। पर हम लोग साब दर-दर भटकने को मजबूर है। हम देश विदेश में अपना गाना सुनाने तो जाते है पर हमारे घरमे छत नहीं है.बस आपकी कृपा हो जाए हुकुम।’’

''विदेशों में गाना सुनाने जाते हो तो पैसे तो खूब मिलते होंगे।’’

''हां मिलते हैं सा, पर हमें नहीं। बीच में एजेंट लोग सब खा जाते हैं सा। हमें तो रुपया में चार आना भी नहीं मिलें सा। पर आजकल तो हुकुम , लोगों ने हमें बुलाना ही बंद कर दिया।’’

''क्यों बंद कर दिया।’’

''मालूम नहीं सा। पता नहीं देश में अच्छे दिनों की कैसी हवाएं चल रही हैं। हम लोगों को तो सुनना ही बंद कर दिया। लंगा कलाकारों के अच्छे दिन नहीं है हुकुम’’ करीम खान ने अपना दु:ख बयान किया।

किसके अच्छे दिन हैं। उसकी अपनी कंपनी में छंटनी की खबरे बड़े जोरो से चल रही है। ऊपर से नीचे तक सब लोग परेशान हैं कि कहीं छंटनी में उनका नाम न हो।  इसीलिए चेयरमैन साहब की गुडबुक्स में बने रहने के लिए एक महफिल सजाई जा रही थी।

''मुंबई से हमारी कंपनी के चेयरमैन आ रहे हैं अगले संडे को। फोर्ट होटल में रात्रि भोज है वहां ऐसा गाना, गाना कि चेयरमैन साहब खुश हो जायें।’’

''आप फिक्र न करें साहब म्हारों गाणों सुनकर चेयरमैन साहब खुश ही नहीं आपको इनाम भी देकर जायेंगे।’’ आप एक बार म्हने मौका देकर तो देखो हुकुम।’’

''तो ऐसा करो। सौमित्र ने कुछ सोचते हुए कहा, तुम परसों आ जाओ मैं तब तक नीलमणि साहब से पूछ लेता हूं।’’

जयंत नीलमणि इस आफिस के सर्वेसर्वा थे। ऐसे कामों के लिए सौमित्र को उनकी इजाजत लेना जरूरी था।

करीम खान ने कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर अपना सर नवाया।

''धणी खम्मा हुकुम, मैं परसो हाजिर हो जाऊंगा।’’ कहकर वह अपनी कुर्सी पर से उठ गया और केबिन के दरवाजे के पास पहुंचकर सजदे की तरह अपनी कमर को झुकाया और सौमित्र के कमरे से बाहर आया।

अपनी कला को बेचने का हुनर था उसमें। उसे पता था कि जब तक वह निरीह और याचक नहीं बनता, तब तक लोग उसकी तरफ आकर्षित नहीं होंगे। इसलिए वह सौमित्र  के सामने झुककर दोहरा हो रहा था।     

उसके जाते ही हिम्मत सिंह ने कहा, ''आप ही फाइनल कर देते। नीलमणि साहब से पूछने की क्या जरूरत है। उन्होंने तो सब कुछ आपको ही सौंपा हुआ है।’’

''नहीं ऐसा नहीं है। चेयरमैन साहब का मामला है, उन्हें बताना जरूरी है।’’

करीम खान के जाने के बाद बड़ी देर तक सौमित्र के मन में करीम खान की बातें गूँजती रहीं। आखिर करीम खान इतना निरीह और याचक सा क्यों है। अपनी कला को दिखाने के लिए इतनी निरीहता और कृतज्ञता क्यों। क्यों नहीं आज कल लोग उसे बुला रहे। उसे लगा कि करीम खान आज के समय की नब्ज को ज्याादा बेहतर तरीके से समझ रहा है। इस देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि करीम खान जैसे लोग हाशिये से बाहर होने लगे। कहीं उसे निरीह और याचक बनाने में उसका अपना नाम तो जिम्मेदार नहीं है।

सौमित्र ने जब नीलमणि से करीम खान का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, ''देखों मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है। मैंने भी लंगा गायन सुना है। एक दम अलग अंदाज रहता है इनका। चेयरमैन साहब को पसंद आयेगा। पर एक बात का ध्यान रखना।’’

''क्या ...’’ चौंक  गया सौमित्र, क्या कहना चाहते हैं।

''देखों चेयरमैन का मामला है। कोई रिस्क मत लो। तुम एक दिन पहले उसका गाना सुन लो, आज कल में उसका कहीं शो हो तो तुम जाकर सुन लो। नहीं तो उसकी रिकार्डिग ही सुन लो। चेयरमैन को सुनाने से पहले एक बार खुद सुनना ठीक रहेगा।’’ नीलमणि ने अपनी सहमति देते हुए कहा।

सौमित्र ने हिम्मत सिंह से कहकर करीम खान के गाने की रिकार्डिग मंगवाई, अपने कम्प्यूटर पर उसके गानों को सुना। उसे लगा कि यह एक नई तरह की गायन की शैली है। चेयरमैन साहब खुश हो जायेंगे।

जून का महीना था और शाम को भी झ़ुलसाने वाली गर्मी थी। फोर्ट होटल में चेयरमैन विश्ववीर भसीन के साथ कुछ खास मेहमानों केलिए एक महफिल सजाई गई थी। इस महफिल में डिनर का इंतजाम था। डिनर के साथ- साथ करीम खान और उसके साथियों ने लंगा गीत भी सुनाने थे। चेयरमैन सुबह से ही आफिस में आ चुके थे। दिन भर मीटिंग्स चल रही थीं करीब सात बजे चेयरमैन ने डिनर के लिए आना था। सौमित्र  ने शाम पांच बजे ही करीम खान को फोर्ट होटल में आने के लिए कहा था। करीम खान अपने दो साथियों के साथ होटल में आ गया था। सभी सफेद कमीज और पायजामा पहने हुए थे। एक आठ -  दस साल का एक लड़का भी था। सबके सिरों पर लाल और नीले रंग की पगडिय़ां थी, गले में गहरे पीले रंग का साफा था। लड़के ने अपने माथे पर लाल रंग का टीका लगा था।

''बेटा नमस्ते करो साहबने।’’ करीम खान ने उस लड़के से कहा।

उसने हाथ जोड़ते हुए घणी खम्मा कहा।

''यह तुम्हारा बेटा है।’’

''हां साब बेटा है म्हारों।’’ 

''क्या नाम है तुम्हारा।’’ सौमित्र  ने उस लड़के से पूछा।

''सिकंदर.....’’ उस लड़के ने बडे ही फक्र के साथ कहा।

''अच्छा, क्या करते हो।’’

''संगीतकी साधना करे है हुकुम।’’

''अरे वाह यह तो बहुत अच्छी बात है। कहां करते हो संगीत साधना।’’

''घर में ही हुकुम।’’

''स्कूल जाते हो।’’

''हुकुम हम लोगों के पास पैसा कहां जो बच्चों को पढ़ा सकें। बस गाने बजाने से ही काम चल जाता है।’’ जवाब करीम खान ने दिया।

''इसे क्यों’’ अपने साथ लगा दिया। पढऩे देते इसे स्कूल भेजते इसे।’’

''गाना बजाना तो पुश्तैनी काम है हमारा। अभी सीख जायेगा तो आगे जाकर रोजी रोटी कमा लेगा।’’ जवाब करीम खान ने दिया था।

सौमित्र ने देखा कि उस आठ दस साल के लड़के के चेहरे पर एक मासूमियत थी। उसने यह भी महसूस किया कि  जैसे-जैसे अपने पिता के साथ वह गाने और बजाने के लिए जाने लगेगा, वैसे- वैसे उसके चेहरे पर मासूमियत की जगह कातरता आ बैठेगी। अपने पिता को देखकर गाने के रियाज के साथ-साथ वह अपने चेहरे पर कातरता लाने का रियाज भी अनायास कर लेगा। सौमित्र को यह भी महसूस हुआ उसे पढ़ाई - लिखाई से दूर कर अपने पुश्तैनी काम में लगाकर करीम खान अपने बेटे के साथ अन्याय कर रहा है। सिकंदर को गाना - बजाना सिखाने के साथ -साथ स्कूल तो भेजना ही चाहिए था। करीम खान अपने बेटे के बालपन की हत्या सिर्फ अपनी कमाई के लिए कर रहा है। धीरे-धीरे सिकंदर भी इसका आदी हो जायेगा और उसकी जिंदगी भी अपने पिता की तरह एक घिसी घिसाई पटरी पर हिचकोले खाते चलने लगेगी। निरीहता और कातरता उसके जीवन में हमेशा की तरह समा जायेंगे।

सिकंदर के हाथ में दो बांसुरियां थीं। उसे देखकर सौमित्र  ने पूछा, ''यह क्या है तुम्हारे हाथ में।’’

''हुकुम, इन्नहें अलगोजा कहवे हैं। यहीं तो गाणा रे साथे बजावा हुकुम।’’ उसने उन बांसुरियों को दिखाते हुए कहा।

इस छोटी सी उम्र में ही उसके करीम खान ने उसके हाथ में 'अलगौजा’ थमाकर  उसे बता दिया था कि उसे जीवन में आगे क्या करना है। किस रास्ते पर चलना है।

''देखों आज की महफिल में तुम्हारा प्रोग्राम अच्छा होना चाहिए। चेयरमैन साहब खुश होकर जाने चाहिए। अभी थोड़ा टाइम है उनके आने में। तुम तब तक अपनी तैयारी कर लो। आओ में तुम्हें वह जगह दिखा देता हूं, जहां पर बैठकर तुम्हें गाना है।’’ सौमित्र ने कहा

सौमित्र उन्हें हॉल के एक कोने में ले गया जहां पर एक तख्त रखा हुआ था। उस तख्त पर सफेद चादर बिछी हुई थी। करीम खान ने उस तख्त को देखते हुए कहा

''आप हुकुम बिल्कुल फिक्र न करें, आपके साहब खुश होकर जाएगें। पर.....

कहते-कहते करीम खान रुक गया।

सौमित्र को कुछ हैरानी हुई, लगा कि कहीं तय रकम से ज्यादा रकम तो नहीं मांगेगा।

''क्या बात है क्या चाहिए।’’

''चाहिए कुछ नहीं हुकुम, पर एक विनती है।’’ उसने हाथ जोड़कर कहा।

''क्या...? सौमित्र सोच में पड़ गया। ऐन वक्त पर यह कोई ऐसी वैसी डिमांड न कर बैठे जिसे पूरा करना मुश्किल हो और पूरी महफिल चौपट हो जाए।’’ उसके चेहरे पर कुछ घबराहट सी आ गई।

''हुकुम, महफिल में खाने के बाद जो बटर-चिकन बच जाये, वह हमको खाने के लिए दे देना हुकुम। कई सालों से हमने होटल का चिकन नहीं खाया। सुणयों है। इण होटल रो चिकनखूब मजेदार है। बड़ी आस है हुक्मह इण होटल के चिकन खावण री।’’

उसकी आंखों के सामने प्लेट में रखे हुए चिकन तैर गये।

सुनकर आश्वस्त हो गया सौमित्र। यह कोई ऐसी वैसी मांग नहीं थी जिसे पूरा नहीं किया जा सके। कुछ देर सोचने के बाद कहा, ''अच्छा ठीक है खा लेना तुम बटर चिकन। तुम्हारे गाने से अगर चेयरमैन साहब खुश हो गये तो तुम्हें चिकन पैक करवा कर भी दे दूंगा। घर भी ले जाना’’

फोर्ट होटल के हॉल के एक कोने पर रखे तख्त पर करीम खान ने अपनी महफिल सजाई। उसके दायें-बायें उसके दोनों साथी बैठ गये और एक कोने में उसका बेटा सिकंदर अपना अलगौजा लिए हुए। वे अपना लंगा सुनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे। सात बजने वाले थे लोगों काआना- जाना शुरु हो चुका था। सौमित्र ने करीम खान को कह दिया था कि जैसे ही चेयरमैन साहब हॉल में आयें, वह गाना शुरु कर दे।

कुछ ही देर में उस हॉल में नीलमणि आये और सौमित्र से कहा, ''देखो सौमित्र मैं क्या सेाच रहा था कि चेयरमैन को अभी इस महफिल में आने में थोड़ी देर लगेगी। क्यों न हम लोग करीम खाना का गाना एक बार सुन लें। पता तो चले कि कैसा गाता है।’’

बात सौमित्र को जंच गई थी।

''सही कहा आपने। जरुर सुना जा सकता था। हमको भी पता चल जायेगा कि यह ठीक गाता है या नहीं।’’

''पर एक बात है .... कहते - कहते नीलमणि अचानक रुक गये।’’

''क्या....’’

''यदि इसका गाना मुझे पसंद न आया तो इसे महफिल से जाने के लिए भी कह सकते हैं। कोई जरूरी नहीं है चेयरमैन को इसका गाना सुनाया जाये।’’ उनके मन में आशंका थी।

''ऐसा नहीं होगा सर, मैं इसके गाने की रिकार्डिग सुन चुका हूं। बहुत नाम है इसका। देश विदेश में इसके लंगा गाने की धूम है।’’

''ठीक है, सुन लेते हैं।’’

सौमित्र ने जब करीम खान से लंगा गाने को कहा तो वह खुश हो गया।  उसने पूरे मन से 'लंगा’ सुनाया। उसके साथ के लोगों ने ढोलक पर थाप दी और? सिकंदर ने पूरे वेग से  अलगोजा बजाया। करीम खान की आवाज से पूरा हॉल गूंज उठा। हॉल में जितने लोग थे, उस समय हॉल में दस बाहर लोग थे। सब मंत्र मुग्ध होकर करीम खान का ग़ायत सुन रहे थे। करीब पंद्रह मिनट तक करीम खान लंगा सुनाता रहा। नीलमणि खुश हो गये सुनकर। ऐसा अदभुत गायन उन्होंने अपने जीवन में नहीं सुना था। उन्हें लगा कि कुछ दम है इसकी आवाज में। यूं ही नहीं यह देश विदेश में मशहूर हो गया।

''यह तो बहुत अच्छा गाता है। अद्भुद। क्या सुर पाया है इसने।’’ नीलमणि ने खुश होकर कहा। ''मैंने तो आपको पहले ही कहा था कि यह अद्भुत गाता है।’’

''सही कहा था तुमने। तुमने हीरा खोजा है, हीरा सौमित्र। चेयरमैन साहब बेहद खुश हो जायेंगे इसका गाना सुनकर। बस थोड़ी देर में चेयरमैन साहब की मीटिंग्स खत्म होने वाली हैं।’’ नीलमणि ने कहा और वहां से चले गये।

उसके जाने के बाद सौमित्र ने करीम खान से कहा, ''बस ऐसे ही गाना जब चेयरमैन साहब इस हॉल में आ जायें।’’

''आप फिक्र न करो हुकुम। आपकी शान बढ़ा कर जावेंगे इस महफिल? से।’’

करीब सात बजे चेयरमैन विश्ववीर भसीन डिनर हॉल में आये। तेज-तेज चलते हुए। उनके पीछे आठ दस लोगों का काफिला चल रहा था। जून की इस गर्मी में भी उन्होंने काले रंग का सूट पहना हआ था। उनसे मिलने के लिए शहर के सेठ साहूकार आ गये थे, जिन्हें उन्होंने ही बुलाया था। वे बड़ी आत्मीयता से लोगों से मिल रहे थे। लोग उनसे हाथ मिलाकर अपने आप को धन्य समझ रहे थे। महफिल में बुफे डिनर था। राजस्थान के एक से एक लजीज पकवान थे। पूरा हॉल खाने की सुगंध से महक रहा था। माहौल खुशनुमा था।

चेयरमैन साहब को देखते ही सौमित्र मजूमदार ने करीम खान को गाने का इशारा किया। इशारा पाते ही करीम खान ने सबको घणी खम्माम कहकर 'लंगा’ गाना शुरु किया। शुरु में उसकी आवाज मद्धम थी लेकिन धीरे - धीरे वह ऊंचे स्वर में गाने लगा। महफिल में उसकी आवाज गूंजने लगी थी उसके गाने के बोल किसी की समझ से परे थे। पर उसकी आवाज बड़ी मधुर थी।  उसके दोनो साथी ढोलक पर थाप दे रहे थे और उसका बेटा सिकंदर अपने साथ लाये 'अलगोजा’ तन्मयता से बजा रहा था करीम खान लंगा इस तरह गा रहा था गोया कि वह अपने प्राण निकालकर सबके सामने रख देगा। पर वहां मौजूद लोग उसकी इस कला से बिल्कुल अंजान थे इसलिये उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। सिर्फ ढोलक की थाप और बांसुरी नुमा अलगोजा की लय ही समझ में आ रहीं थी। गाते-गाते करीम खान की पूरे देह हिल रही थी गोया वह मुंह से नहीं पूरी देह से गा रहा हो।

चेयरमैन विश्ववीर भसीन ने शहर अपने मेहमानों से गर्मजोशी से मिल रहे थे। करीम खान की आवाज उन्हें सुनाई दे रही थी। अचानक उनकी नजर करीम खान पर पड़ी। उसे देखकर थोड़ा चौंके फिर उन्होंने इशारे से सौमित्र को अपने पास बुलाया।

सौमित्र खुश हो गया कि चेयरमैन ने उसे अपने पास बुलाया है। सोचा वे जरुर इसे शाबाशी देंगे, करीम खान इतना अच्छा जा गा रहा था। वह सहमते-सहमते उनके पास गया। इससे पहले वह कभी चेयरमैन के इतने करीब नहीं गया था। केवल उन्हें दूर से ही देखा था। पास पहुचंते ही चेयरमैन साहब के चेहरे को देखकर वह सहम सा गया। उनके चेहरे पर खुशी के भाव सोमित्र ने नहीं देखे थे। एक नाराजगी सी थी।

''यह कौन है।’’ चेयरमैन विश्ववीर भसीन ने धीरे से सौमित्र से पूछा। उनकी आवाज में धमक थी।

''सर यह करीम खान है।’’ सोमित्र ने सहमते हुए जवाब दिया

''कौन करीम खान।’’ उनकी आवाज में एक नाराजगी थी जिसे सौमित्र ने भांप लिया था।

''लंगा गाने वाला करीम खान।’’ उसने डरते - डरते कहा।

उसकी बात सुनकर विश्ववीर भसीन ने अजीब सा मुंह बनाया गोया कोई कुनैन की गोली उन्होंने खा ली हो।

हॉलाकि चेयरमैन ने बहुत धीरे से यह कहा था लेकिन चेयरमैन के आस पास खड़े लोगों देख और समझ लिया था कि चेयरमैन साहब को इसका गाना पसंद नहीं आ रहा है।

''तुम्हें इन लोगों के सिवाय और कोई लोग नहीं मिले।’’ चेयरमैन साहब ने घुड़कते हुए बहुत धीरे से कहा गोया कोई और न सुन ले। यह कहते-कहते उनके चेहरे के भाव बदल से गये थे। एक वितृष्णा सी उनके चेहरे पर उभर आई थी।

सौमित्र मजूमदार की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। समझ में नहीं आया कि वह इसका क्या जवाब दे.उसके दिल की धड़कन बढ़ गई।

सौमित्र ने दूर से ही करीम खान को अपना गाना बंद करने का इशारा किया। करीम खान ने इशारा पाते ही अपना गाना बंद कर दिया। उसका गाना बंद होते ही उसके साथियों ने ढोलक और उसके बेटे ने अलगौजा बजाना भी बंद कर दिया।

पर महफिल में लोगों की बातचीत पहले की तरह बदस्तूर जारी रही। किसी को पता नहीं चला कि चेयरमैन विश्ववीर भसीन ने सौमित्र मजूमदार को क्या कहा। करीम खाने का गाना सुनने में भी किसी की दिलचस्पी नहीं थी। महफिल में सबकी दिलचस्पी तो चेयरमैन विश्ववीर भसीन में थी।

किसी ने होटल वाले से सॉफ्ट म्यूजिक बजाने के लिए कहा। होटल में इसकी व्यवस्था पहले से ही थी। और देखते-देखते ही हॉल करीम खान के लंगा गीत की जगह सॉफ्ट म्यूजिक से गूंज उठा।

थोड़ी देर बाद सौमित्र करीम खान के पास गया। करीम खान और उसके साथी हॉल के कोने में रखे तख्त पर चुपचाप बैठे थे। ''क्या हुआ हुकुम। कुछ बेअदबी हो गई।’’ करीम खान ने हाथ जोड़कर कहा।

''नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम अब जाओ यहां से।’’

''क्यों हुकुम, कुछ गलत हो गया हो तो माफ़ करे दे हुकुम।’’

पसीने से तर-बतर करीम खान सौमित्र के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे गाना गाने से मना क्यों किया गया।

''नहीं, कुछ गलत नहीं हुआ तुम जाओं यहां से।’’

''तो हुकुम क्या बात है’’ करीम खान की आवाज में एक दयनीयता थी।

करीम खान ने अपना सारा सामान समेटा और उस महफिल से बाहर आ गया। वह और उसके दो साथी धीरे - धीरे चलते हुए फोर्ट होटल? की लाबी मेंकूर्सियों पर में बैठ गये। सहमे से। करीम खान के मन में रह - रह कर उसके मन में एक ही सवाल उभर रहा था कि उसका गाना क्यों बंद करवा दिया गया। आज तक उसके साथ ऐसा नहीं हुआ था। फिर आज क्यों हुआ। क्या बात हुई..

अचानक होटल के एक गार्ड ने आकर पूछा

''अठे क्यों बैठा हो भाई।’’

''सौमित्र साहब का इंतजार कर रहे है हुकुम।’’ करीम खान ने जवाब दिया।

''कौन सौमित्र।’’  गार्ड ने सवाल किया।

''वो जिनकी पार्टी हो रहीं है हॉल में।’’

वो चेयरमैन साहब वाली महफिल में ..

''हां हुकुम वही...’’

 उससे यह जवाब सुनकर गार्ड वापस चला गया। करीम खान वहीं बैठा रहा सौमित्र का इंतजार करते।

थोड़ी देर बाद वहीं गार्ड फिर आया और करीम खान से कहा, ''सौमित्र साहब को आवण में देर लगेगी। अठे बैठणों मना है। होटल रे गेट रे बाहर जाने ने इंतजार कर।’’

करीम खान समझ नहीं सका, यहां बैठने में क्या बुराई है। उसे गेट के बाहर इंतजार करने के लिए क्यों कहा जा रहा है। भारी मन से वह उठा और आहिस्ता-आहिस्ता चलते- चलते फोर्ट होटल के गेट के पास आ गया।

''हमें बटर चिकन मिलेगा खावण वास्तेन।’’ चलते- चलते उसके बेटे सिकंदर ने पूछा -

''के नहीं सका बेटा।’’ करीम खान ने मायूसी से कहा और चलता रहा।

वे चारो होटल के बाहरगेट के पास की जमीन पर उकड़ू बन कर बैठे गये।

फोर्ट होटल में दो घंटे तक रात्रि भोज का कार्यक्रम चलता रहा। चेयरमैन विश्ववीर भसीन अपने खास मेहमानों के साथ गोल मेज पर खाना खाते वक्त दिल खोलकर हंस- हंस कर बाते कर रहे थे। हॉल में शांति थी। इस महफिल में चेयरमैन विश्ववीर से मिलकर सभी लोग खुश थे। पर सौमित्र मजूमदार भीतर तक उदास हो गया था।

करीब दो घंटे बाद एक - एक करके सारे लोग चले गये थे। चेयर मैन भी, चेयरमैन के मेहमान भी और जयंत नीलमणि भी। हॉल पूरा खाली हो गया। केवल सौमित्र मजूमदार रह गया। उसकी नजर खाने की टेबल पर पढ़ी वहां रखे डोंगों में बटर चिकन था। एकाएक सौमित्र के सामने करीम खान का चेहरा आ गया।  उसने इस होटल के बटर चिकन खाने की इच्छा जाहिर की थी। उसने एक बैरे को बटर चिकन पैक कर लाने के लिए कहा। थोड़ी देर में बैरा एक डिब्बे में बटर चिकन पैक कर ले आया। सौमित्र ने वह पैकेट बैरे से ले लिया और करीम खान की तलाश में होटल की लॉबी में आ गया। उसे उम्मीद थी कि करीम खान अपने साथियों और बेटे के साथ होटल की लॉबी में जरुर मिल जायेगा। एक अजीब सी बेचैनी उस पर छा गई। वह अनमयस्क हालत में होटल की लाबी में आया। वहां उसे जब करीम खान नहीं दिखाई दिया। उसने एक गार्ड से पूछा कुछ लोगों को मैंने यहां पर मेरा इंतजार करने के लिए कहा था। कहां गये।’’ उसने वहां के गार्ड से पूछा

''थोड़ी देर पहले थे अब नहीं है।’’ उस गार्ड ने बताया।

''कहां गये?’’

''गेट की तरफ जाते हुए दिखाई दिए थे हुक्म।’’ उस गार्ड ने बताया।

उसकी परेशानी बढ़ सी गई थी। वह करीम खान और उसके बेटे को ढूंढने के लिए बटर चिकन का पैकेट हाथ में लेकर होटल के गेट पर पहुंचा। जब वहां भी उसे कोई न मिला तो उसने वहां खड़े दरबान से पूछा, ''क्यों भाई आपने किसी गाने बजाने वालों को देखा था।’’

''हां, हुकुम दखियां, हां तीण लोग था उणमे एक बच्चा भी था।’’ उस दरबान ने बताया था।

''हां.... हां.. वही.. वही.. कहां गये वो।’’ सौमित्र की उत्सुकता बढ़ गई।

''हुक्म। खूब देर इंतजार करियों, जब आप नहीं पधारियां तो वे उण तरफ चला गया।’’ दरबान ने बताया।

''किधर गये...’’ सौमित्र की घबराहट बढ़ती जा रही थी।

''शायद बस स्टैंडरी ओर।’’ दरबान गेट के बायीं तरफ इशारा करते हुए कहा।

यह सुनकर सौमित्र को धक्का सा लगा। गहरा धक्कार। वह उनकी तलाश में बटर चिकन का पैकेट हाथ में लिए बस स्टैं ड की ओर चल पड़ा। उसके भीतर एक हूक सी उठ रही थी। वह सोच रहा था अगर करीम खान और उसका बेटा उसे मिल जाये, तो वह उनसे माफी मांगेगा और उन्हें बटर चिकन खिलायेगा।

 

 

हरियश राय: पुराने कथाकार हैं। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने कथा कहानी की एक ज़बरदस्त 'चौपाल’ बनाई है, जिसमें पाठ और आलोचना के लिए नए पुराने कहानीकारों तथा आलोचकों को जोड़ा है।

सम्पर्क- 73, मनोचा एपार्टमैंट, एफ ब्लाक, विकासपुरी,नई दिल्ली - 110018 मो - 09873225505 hariyashrai@gmail.com

 


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