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मार्च - 2020

क्यों नही जी पाया यह जीवन?

विमल कुमार

कविता पुस्तक/कुलदीप कुमार

 

 

 

 

हिंदी अंग्रेजी के प्रसिद्ध पत्रकार और कवि कुलदीप कुमार का पहला संग्रह 'बिन जिया जीवन’ 64 वर्ष की आयु में आया है। वह हिंदी के संभवत: पहले कवि हैं जिनका संग्रह इस उम्र में आया है। समकालीन कविता के सुधी  पाठकों को शायद याद होगा जब आज से करीब 40 साल पहले पहल के कविता विशेषांक में उनकी कविताओं ने काव्य प्रेमियों का ध्यान खींचा था। वे उस कविता विशेषांक के अंतिम कवि है जिनका इन चार दशकों में कोई संग्रह नही आया था। उस विशेषांक के एक और विनम्र एवम संकोची कवि मनमोहन का पहला संग्रह एक दशक पहले आ चुका था। अब कुलदीप कुमार के प्रथम संग्रह की प्रतीक्षा हिंदी जगत को थी। जिस तरह पिछले बीस वर्षों में कुलदीप कुमार ने अपनी कविताओं के प्रकाशन में दिलचस्पी लेनी बन्द कर दी थी उसे देखते हुए काव्य प्रेमी अब लगभग कुलदीप को विस्मृत कर चुके थे। विशेषकर नई पीढ़ी के कवि। लेकिन जब चालीस साल बाद उनका संग्रह आया तो पाठकों और काव्य प्रेमियों को थोड़ा विस्मय भी हुआ और प्रसन्नता भी।हिंदी समाज उनके संग्रह की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा भी कर रहा था। वैसे यह सच है कि इन चार दशकों में कविता की चार पीढिय़ाँ भी आ गयी और समकालीन कविता का परिदृश्य ही नही बदला बल्कि  भाषा और शिल्प तथा विषय वस्तु भी बदला। इस बीच भारतीय समाज और राजनीति का स्वरूप भी बदला है। कुलदीप आठवें दशक के ही कवि हैं लेकिन उनके अन्य समकालीन कवियों और बाद की पीढ़ी के कवियों के अनेक कविता संग्रह आ गए। कुलदीप ने अपनी किताब की भूमिका में अपने आलस्य भाव का जिक्र किया है। उनकी यह उदासीनता व्यैक्तिक से अधिक सामाजिक भी है।जिस तरह का समाज इन तीन चार दशकों में बना है और जिस तरह के सामाजिक आर्थिक बदलाव हुए है उसे देखकर एक सच्चे कवि के मन मे वितृष्णा या वैराग्य बोध भी पनपने लगता है। फिर भी कुलदीप कुमार ने इस निराशा भरे माहौल में लिखना नही छोड़ा। वह अपनी कविताएँ लिखते रहे भले ही उन्हें प्रकाशित करवाने में दिलचस्पी न ही दिखाई। लेकिन अब जब उनका पहला काव्य संग्रह आ गया है तो उसका मूल्यांकन और विश्लेषण उस दौर के आलोचनात्मक भाव भूमि पर होगा जिस दौर में वे लिखीं गईं। इस संग्रह में कुल 59 कविताएँ है लेकिन उनके नीचे न तो प्रकाशन वर्ष लिखा है न रचना वर्ष ही। इसलिए आप पाठकों या नये आलोचकों के लिए मुश्किल होगी कि वे किस काल खंड में लिखी गयी हैं। जाहिर है इन कविताओं को गत चालीस का ही प्रतिबिंब माना जायेगा। इसलिये समकालीन कविता के चार दशकों की काव्य प्रवृतियों को चिन्हित कर ही इन कविताओं का मूल्यांकन करना प्रीतिकर और उचित होगा। कुलदीप कुमार, वीरेन डंगवाल, मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, अरुण कमल के ही समकालीन कवि है। उनकी काव्य यात्रा उन्हीं के साथ शुरू भी हुई थी। यह अलग बात है कि वह यात्रा अनवरत नही चली और बाधित रही। कुलदीप के इस संग्रह में 54 कविताएँ और महाभारत कथा की चार स्त्री नायकों के बहाने भी 5 कविताएँ हैं। इनमें सर्वाधिक प्रेम कविताएँ है। अगर गौर से देखा जाए तो कुलदीप  के पहले संग्रह में जितनी प्रेम कविताएँ है उतनी उनके किसी अन्य समकालीन कवि की पहली किताब में नही है। इस दृष्टि से यह अनोखा संग्रह है लेकिन इन प्रेम कविताओं  को केवल प्रेम कविता कहना उनका अवमूल्यन होगा। प्रेम के अलावा जीवन और समाज के संघर्ष की भी कविताएँ हैं। हिंदी का हर कवि जब अपना पहला संग्रह निकालता है तो उसमे कुछ प्रेम कविताएँ रहती है। प्रेम जीवन और समाज तथा सभ्यता विकास की सहज प्रकृति और प्रक्रिया भी है। इस संग्रह में करीब  पंद्रह ऐसी कविताएँ हैं जिनमे प्रेम की आकांक्षा जिजीविषा और सफलता असफलता के द्वंद भी स्वाभाविक है लेकिन कुलदीप ने इस प्रेम को केवल मानवीय जरूरत ही नही बताया है  बल्कि उसमे एक वैचारिक विमर्श को  रचने का भी  प्रयास किया है। प्रेम उनके लिए  जीवन का बिडम्बना बोध और आत्म निरीक्षण एवम विश्लेषण  भी  है। वह अपनी आत्म परीक्षा भी है। उसमे पीड़ा विछोह स्मृति  खुश्बू तिलिस्म  अनुभव और क्षण भी समाहित है। उनकी प्रेम कविताओं के शीर्षक भी इस भाव की पुष्टि करते हैं। इसमे देह और मन मस्तिष्क भी घुले मिले है। स्त्री के प्रति गहरा सम्मान भाव मित्र भाव और रूमानी भाव के कोलाज भी है। ये सरल सहज प्रेम कविताएँ है।लेकिन कवि को इस बात की एक शिकायत बनी रहती है कि वह इस जीवन को जी नही पाया तभी बिन जिया यह जीवन किताब बन पाई है। यह जीवन कवि क्यों नही जी पा रहा है? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी कविताओं में एक गहरा अवसाद भी है। यह अवसाद समाज के साथियों के कारण है। संग्रह की पहली कविता  वह चेहरा इस बात को चित्रित करती है। चौराहे पर लड़की या मां कविता भी इसी जीवन संघर्ष और अवसाद को रेखांकित करती है। उनकी कविता में स्त्री के नाना रूप है। प्यार में चिडिय़ा कविता में चिडिय़ा भी एक स्त्री का ही प्रतीक बनकर उभरती है। मंगलेश डबराल ने इस किताब की भूमिका में लिखा है कि सरल होना साधारण होना नही होता बल्कि सरलता अक्सर असाधारण होती है और जीवन मे बड़ी मुश्किल से हासिल होती है। समकालीन हिंदी कविता जटिल यथार्थ को व्यक्त करने के नाम पर कुछ अधिक जटिल और अ सम्प्रेषणीय होती जा रही है। कविता में सरलता को कलाहीनता भी माना जाने लगा है। कुलदीप के कई समकालीन कवियों में वह सरलता और तरलता नही है। उसमे विलक्षणता बोध और विशिष्ठता बोध इतना अधिक विकसित हो गया है कि वह अपना अर्थ कम सम्प्रेषित नही कर पाई है। काव्य कौतुक अधिक हावी हो गया और भाषा अभिव्यक्ति के मार्ग में बाधक हो गई है। कुलदीप के यहां न तो भाषा शिल्प और विषय का कोई आग्रह है। खुद को अलग और विशिष्ठ दिखने का बोध भी नही।उसमे एक बिडम्बना और लाचारगी का बोध है कि यह जीवन वह जी नही पाया। उसमे जीवन की एक पुकार भी छिपी है पर वह मद्धिम स्वर में है। कुलदीप संगीत के अच्छे जानकार है और कई बार हिंदी में वह संगीत पर अंग्रेजी वालों से बेहतर लिख देते हैं। संगीत में एक रियाज और धैर्य की निरंतर जरूरत  रहती है। संगीत हड़बड़ी की कला नही है। वह नाट्यशास्त्र नही है न नृत्य ही। उसमे अपने भीतर अधिक रमना होता है। संगीत की साधना साहित्य की साधना से अधिक प्रदीर्घ होती है। कुलदीप कुमार को साहित्य में धैर्य संगीत पर लिखने से मिला है। संगीत पर लिखी कविताओं में यह धैर्य और बानगी दिखाई देती है। लेकिन समकालीन काव्य परिदृश्य की हलचलों को देखते हुए उनका काव्य संग्रह कितने दिनों तक स्मृति में बना रहेगा यह भविष्य ही बताएगा। यूं तो कई बार एक कवि अपने एक मात्र संग्रह से ही जाना और पहचाना जाता है जैसे मुक्तिबोध चाँद का मुहं टेढ़ा है से धूमिल संसद से सड़क तक से और श्रीकांत वर्मा जलसा घर से। कुलदीप का यह संग्रह खुद कवि के लिए एक चुनौती है।

 

 

विमल कुमार कवि और पत्रकार हैं। आलोचना भी लिखते हैं। हमारे आग्रह पर उन्होंने कुलदीप कुमार के पहले कविता संग्रह पर संक्षिप्त आलेख लिखा।

कुलदीप कुमार हिन्दी अंग्रेजी के बड़े पत्रकार हैं। कविता उनकी मुख्य भूमि रही है पर कविताएं मुश्किल से 2019 में संग्रहीत हुईं। एक शानदार आयोजन में उनके संग्रह का लोकार्पण हुआ। पर उस आयोजन के कत्र्ताधत्र्ता, दोस्तों के दोस्त देवी प्रसाद त्रिपाठी (डीपीटी) हाल ही में हमसे बिछुड़ गये। कुलदीप कुमार का संग्रह ''बिन जिया जीवन’’ 2019 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित।

संपर्क - विमल कुमार, गाज़िंयाबाद. मो.- 9968400416

कुलदीप कुमार, दिल्ली, मो. 9810032608

 


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