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जुलाई २०१३

मर्लिन के शब्द /मर्लिन का जीवन

मर्लिन


जब से उसे 'सम्थिन्ग्ज़ गॉट टू गिव' से बाहर निकाला गया है, मर्लिन मुनरो ने एक तकरीबन तिरस्कारभरी खामोशी अख्तियार कर ली है, जहाँ तक ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स के साथ उनकी दिक्कतों का सवाल है, उसने साफ कहा कि वह काम करने से ऊब चुकी है - वह जानबूझकर वैसी सूस्त और बिगडैल नहीं है जैसा कि प्रोड्यूसर ने उस पर आरोप लगाया है, जहाँ एक तरफ ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स और मर्लिन के वकील उस से फिल्म पर दुबारा काम पर जाने के समझौतों में लगे हुए थे, मर्लिन अपने करियर के व्यापक आयामों के बारे में सोच रही थी - उन इनामात और ख्याति के बोझ के बारे में जिसे उस पर निछावर करने को उसके प्रशंसक उसकी फ़िल्में देखने पर दो सौ मिलियन डॉलर खर्च करते थे, उन आवेगों के बारे में जो उसे धकेला करते थे और उसके वर्तमान जीवन पर उसके बचपन और अनाथालयों की अनुगूंजों के बारे में, इन सब के बारे में उसने वार्तालापों की एक दुर्लभ और बेबाक सीरीज में 'लाइ$फ' के एसोसियेट एडीटर रिचर्ड मेरीमेन को बताया था, जहाँ एक तरफ एक कैमरा उसके व्यक्तित्व की ऊष्मा और उमंग को कैद कर रहा था, मर्लिन के शब्द मर्लिन मुनरो के बारे में उसके अपने व्यक्तिगत विचारों को प्रकट कर रहे थे...
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कभी-कभी मैं सिर्फ एक स्कॉर्फ और पोलो कोट पहनकर तथा बिना मेक-अप किये हुए ही, एक खास अंदाज में टहलती हुई शॉपिंग करने या शॉपिंग करने के लिये जा रहे लोगों को देखने के लिए निकल पड़ती हूँ। वहाँ तब कुछ किशोर अवश्य होते हैं। वे एक खास तरह की बुद्धि वाले किशोर होते हैं। वे मुझे देखते ही आपस में कहने लगते हैं — ''अरे जरा एक मिनट ठहरो, क्या तुम जानते हो कि यह कौन है?'' फिर वे मेरे पीछे-पीछे चलने लगते हैं। मैं उनके द्वारा इस तरह अपना पीछा किये जाने का बुरा नहीं मानती। मैं इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ कि कुछ लोग अक्सर यह देखना-जानना चाहते हैं कि मैं वास्तविक हूँ, मात्र छवि नहीं। ओह, वे किशोर! वे बच्चे! उनके चेहरे चमकने लगते हैं। वे चकित होकर कहते हैं 'अरे' और फिर वे इस बारे में दोस्तों को बताने के लिये व्याकुल हो उठते हैं। जबकि बुजुर्ग लोग अलग किस्म का आचरण करते हैं, वे निकट आकर कहते हैं — ''कुछ देर यहीं पर ठहरिये, तब तक मैं अपनी पत्नी को आपके बारे में बताकर आता हूँ। आपने तो मेरा समूचा दिन ही संवार दिया है।'' इसी तरह, सुबह के वक्त, कचरा उठाने वाले जो लोग संतावनवीं सड़क से निकलते हैं, अगर मैं दरवाज़े से बाहर दिखूं तो वे सवाल करते हैं — ''हेलो मर्लिन, आप कैसी हैं?'' मैं  इससे गर्व का अनुभव करती हूँ। और उनकी ऐसी भावनाओं के लिये उन्हें प्यार भी करती हूँ। फिर एक और अलहदा किस्म का भी मेरा अनुभव है, जब मैं कामगारों के पास से गुजरती हूँ तो वे सीटियाँ बजाना शुरू कर देते हैं। असल में वे इसलिये सीटियाँ बजाते हैं कि वे समझते हैं कि कोई युवती जा रही है, जिसके बाल सुनहरे हैं और फिगर भी ठीकठाक है। फिर पहचान जाने के बाद उनके मुँह से निकल पड़ता है — ''या खुदा ये तो मर्लिन मुनरो है।'' आप इस बात को समझ लीजिये कि उस समय यह सब अच्छा ही महसूस होता है, क्योंकि वे जानते हैं कि यह आप हैं। और यह जानना कि आपके होने का उनके लिये कोई मतलब है, बेहद सुखकर होता है।
मुझे ठीक-ठीक नहीं पता पर मुझे महसूस होता है कि वे इस बात को जानते हैं कि मैं वही करती हूँ, जैसा कि अपने दिल में अनुभव करती हूँ। चाहे पर्दे पर अभिनय करुँ या फिर उनके रू-ब-रूब मुलाकात में उनका अभिवादन करूँ। अर्थात् कि जब मैं 'हैलो' कह रही हूँ तो वाकई कह रही हूँ — हैलो, आप कैसे हैं? वे लोग अपनी फंतासियों में महसूस करते हैं कि ''ओह ईश्वर, ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है।'' लेकिन जब आप एक विख्यात शख्सियत बन जाते हैं, तब आपकी मुलाकात इंसानियत की एक कच्ची किस्म की फितरत से होती है। वहाँ ईष्र्या उपजती है - ऐसा प्रसिद्धि करती ही है। जिन लोगों से आप इतनी सहजता से मिलते हैं, उन्हें ही यह महसूस होने लगता है कि आखिर ये मर्लिन मनरो अपने आपको समझती क्या है? उन्हें लगता है कि मेरी प्रसिद्धि के कारण उन्हें कोई विशेषाधिकार मिल गया है और वे मेरे पास आकर मुझसे कुछ भी कह सकेत हैं। किसी भी तरह की कोई भी बात और उससे मेरी भावनाओं को चोट भी नहीं पहुँचेगी। मानो वे आपके साथ नहीं, बल्कि आपकी पोशाक के साथ वैसा सलूक कर रहे हों। एक बार मैं एक घर खरीदने की तलाश में थी। इसी सिलसिले में एक जगह पहुंची। एक उम्दा, खुश-चेहरा आदमी बाहर आया। मुझे पहचानकर बोला — ''अरे एक मिनट, मैं चाहता हूँ मेरी पत्नी आप से मिले।'' खैर, वह बाहर आयी और कहने लगी — ''क्या आप इस परिसर से जल्दी दफा होंगी?'' तो आपका सामना इसी तरह के लोगों के अचेतन से होता रहता है।
अब कुछ अभिनेताओं, निर्देशकों की बात की जाए। आम तौर पर वे ऐसी बातें मुझ से नहीं कहते, वे उन्हें अखबारों से कहते हैं क्योंकि वह एक बड़ा खेल है। देखिये, अगर वे सिर्फ मेरे सामने आकर मेरा अपमान करें तो तमाशा उतना बड़ा नहीं बनेगा क्योंकि मेरे पास उनसे कहने को सिर्फ यही होता है कि ''आप दफा हो सकते हैं।'' लेकिन यही बात अगर अखबारों में हो, तो उसे एक समुद्र से दूसरे समुद्र दुनिया भर में फैल जाना है। मेरी समझ में यह नहीं आता कि लोग एक दूसरे के साथ थोड़ा ज्यादा उदार क्यों नहीं हो सकते। मुझे यह कहना अच्छा नहीं लग रहा है पर इस धंधे में बहुत ज़्यादा ईष्र्या है। मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ कि ठहरूं और सोचूं ''मैं बिलकुल ठीक हूँ मगर दूसरों के बारे में मैं उतने यकीन से नहीं कह सकती।'' मिसाल के लिए आपने पढ़ा होगा कि एक अभिनेता ने एक दफा कहा था कि मुझे चूमना हिटलर को चूमने जैसा लगता है। ठीक है, वह आपकी समस्या है। अगर मुझे किसी के साथ अन्तरंग प्रेम दृश्य करना है और वह मेरे बारे में ऐसी भावनाएं रखता है तो मेरी फंतासी अपना काम नहीं कर सकती। दूसरे लफ्ज़ों में कहा जाए तो भाड़ में गया वह, मैं अपनी फंतासी के साथ चली जाती हूँ। वह तो वहां था ही नहीं।
लोगों की फंतासियों में शामिल हो जाना अच्छी बात है लेकिन आप यह भी जानते हैं कि आपको अपने लिए भी स्वीकार किया जाए। मैं अपने आप को एक जिन्स की तरह नहीं देखती, लेकिन मैं यकीनन कह सकती हूँ कि बहुत से लोगों ने इसी तरह देखा है। इनमें एक खास कारपोरेशन शामिल है, जिसका नाम यहां नहीं लूंगी। अगर मेरी बातों से ऐसा लगता है कि आरोप लगाने को मुझे चुना गया है तो ऐसा लगना चाहिए। मुझे लगता था मेरे बहुत सारे दोस्त हैं पर जब अचानक कुछ घट जाता है तब वे तो बहुत सारे काम करते हैं। वे आपके बारे में प्रेस को बताते हैं, अपने दोस्तों को बताते हैं, कहानियां गढ़ते हैं और आप जानते हैं यह सब बड़ा निराशाजनक होता है। ऐसे लोगों को आप हर रोज़ अपने जीवन में नहीं देखना चाहते।
ज़ाहिर है यह सारा लोगों पर निर्भर करता है। कभी मुझे किसी जगह डाइनिंग टेबल को रोशन करने के लिए आमंत्रित किया जाता है जैसे रात के खाने के बाद पियानो बजाने वाला एक संगीतकार आमंत्रित होता है, और मैं जानती हूँ मुझे मेरे लिए नहीं बुलाया गया। ऐसे आयोजनों में आप सिर्फ एक गहना भर होते हैं।
जब मैं पांच साल की थी, मैंने एक अभिनेत्री बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। मुझे नाटक करने में मज़ा आता था। मुझे अपने आसपास का संसार उसकी बेहिसी की वजह से पसंद नहीं था लेकिन मैं घर-घर खेला करती थी। यह अपने लिए अपनी सरहदें बना लेने जैसा था। मैं घर से बाहर निकल जाया करती। और तब आप अपने लिये खुद ही सिचुएशंस बना सकते थे और उनके अनुरूप प्रदर्शन भी। अगर कोई दूसरा  बच्चा कल्पना करने में उतना तेज़ नहीं भी होता तो आप उस से कह सकते थे ''अरे देखो अगर तुम फलां होते और मैं फलां तो कितना मज़ा आता न!'' और तब वे कहते ''हाँ हाँ'' और मेरा जवाब होता ''तो ये होगा घोड़ा और ये...'' वह खेल होता था, खिलंदरी। जब मैंने सुना कि इसे अभिनय करना कहते हैं तो मैंने सोच लिया कि मुझे यही करना है। आप खेल सकते हैं। लेकिन तब आप बड़े होते हैं और खेलने के बारे में जानना शुरू करते हैं, लोग खेलने को आपके वास्ते बहुत मुश्किल बना देते हैं। मुझे गोद लेने वाले कुछ परिवार मुझे घर से बाहर भेजने की नीयत से फ़िल्में  देखने भेजा करते थे और दिन-रात मैं वहीं बैठी रहती। वहां सामने, उस विशाल परदे के आगे एक नन्हा बच्चा बेहद अकेला होता है। यह मुझे बहुत पसंद था। वहां गतिमान हरेक चीज़ और हरेक घटना को देखना मुझे अच्छा लगता था और हाँ खाने को पॉपकॉर्न भी नहीं होते थे।
जब मैं ग्यारह की हुई, तब सारा संसार जैसे मुझ पर घिर आया। मुझे ऐसा महसूस होता था जैसे मैं उस संसार से बाहर खड़ी हूँ। अचानक ही हरेक चीज मेरे आगे मानो खुल सी गयी थी। यहाँ तक कि लड़कियों तक ने यह सोचते हुए मुझ पर  ध्यान देना चालू किया कि ''हूँ इसे भी बर्दाश्त करना ही पड़ेगा!'' घर से स्कूल तक का कोई ढाई मील लंबा रास्ता था और उतना ही लंबा वहाँ से लौटना भी। इस रास्ते पर जाना और आना मेरे लिये बेहद आनंददायक होता था। तब रास्ते पर हरेक आदमी- काम पर जा रहे मजदूर- अपना हॉर्न बजाता, हाथों से इशारे करता- तब मैं भी हाथ हिलाया करती।
संसार दोस्ताना बन गया। अखबार बांटने वाले लड़के अपना काम करते हुए यह देखने आते कि मैं कहाँ रहती हूँ। मैं एक पेड़ की टहनी से टंगी रहना पसंद करती थी और एक तरह की स्वेट-शर्ट पहना करती थी। उन दिनों मुझे स्वेट - शर्ट की कीमत पता नहीं थी पर मैं उन्हें पसंद करना शुरू कर रही थी हालांकि मुझे उनकी आदत नहीं पड़ी थी और उन दिनों मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं स्वेटरें खरीद सकूं। फिलहाल वे लड़के अपनी साइकिलें लेकर आया करते थे और मुझे मुफ्त में अखबार मिला करते थे। यह बात परिवार वालों को अच्छी लगती थी। वे अपनी साइकिलें पेड़ के गिर्द टिका दिया करते और मैं किसी बन्दर जैसे टंगी रहती थी। मेरे $ख्याल से मुझे नीचे उतरने में शर्म आया करती थी। खैर मैं उतर कर उन बाधाओं तक पहुँचती, एक तरह से उन्हें और पत्तियों को लतियाती हुई और बड़बड़ाती हुई, लेकिन ज़्यादातर मैं उनकी बातें सुना करती थी। कभी कभी परिवार को चिंता होने लगती थी क्योंकि मैं इतनी जोर से खुश होकर हंसा करती थी; मुझे लगता है वे मुझे हिस्टीरिकल समझते थे। यह अभी अभी पाई हुई स्वतंत्रता थी कि मैं लड़कों से पूछ लिया करती ''क्या अब मैं तुम्हारी साइकिल की सवारी कर सकती हूँ?'' और वे कहते ''हाँ''। और तब मैं हवा की तरह निकल जाया करती, हवा में हँसती हुई, साइकिल की सवारी करती और वे सारे मेरे आने तक वहीं खड़े रहते। लेकिन मुझे हवा से प्यार था। वह मुझे दुलारा करती। वह एक तरह की दोधारी चीज़ थी। जब संसार मेरे सामने खुला तो मैंने पाया कि लोग आपको कुछ नहीं समझते, जैसे कि वे दोस्ताना हो सकते थे और अचानक ही जरूरत से ज़्यादा दोस्ताना और बहुत कम के एवज में आपसे बहुत कुछ चाहते थे। जब मैं थोड़ा और बड़ी हुई तब मैं ग्राउमैंस चाइनीज थियेटर जाया करती थी और वहां सीमेंट पर बने प्रिंट्स में अपने पैर फ़िट करने की कोशिश करती थी। मैं कहा करती ''अरे शायद मेरे पैर ज़्यादा ही बड़े हैं। बाहर निकल आए शायद!'' बाद में जब मैंने अपना पैर उस गीले सीमेंट में रख ही दिया तो एक अजीब सा अहसास हुआ। मुझे यकीनन पता था। इस बात का मेरे लिए क्या मतलब था। कुछ भी संभव था, करीब करीब कुछ भी।
जब मैं अभिनेत्री बनने की कोशिश कर रही थी। यह मेरा रचनात्मक हिस्सा ही था जिसने मुझे आगे बढ़ते जाने की ताकत दी। अगर आप अभिनय करते हुए अपनी बात बिल्कुल सही तरीके से कह दें तो तो अभिनय में वाकई आनंद आने लगता है। मेरे ख़याल से मेरे भीतर ज़रूरत से ज्याद फंतासी थी, और यह भी कि मैं फ़क़त हाउसवाइफ बनकर नहीं जी सकती थी। हाँ, मुझे अपना पेट भी पालना था। सीधे शब्दों में कहूं तो मुझे किसी ने ''रखा'' नहीं; मैंन ही हमेशा खुद को रखा। मुझे हमेशा इस बात का फख्र रहा कि मैं आत्मनिर्भर थी। लॉस एंजेल्स में मेरा घर था और जब उन्होंने कहा ''अपने घर जाओ!'' तो मैंने जवाब दिया ''मैं अपने घर में ही हूँ।''
एक दफा मैं किसी को ड्राइव करके एयरपोर्ट ले जा रही थी, और जब मैं वापस आई तो एक सिनेमाघर में मैंने रोशनियों में लिखा अपना नाम देखा। मैंने सड़क पर थोड़ी दूरी पर गाड़ी खड़ी की। अचानक इतने करीब से उसे देख पाना ज़रा परेशानी की बात थी। मैं बोली ''हे भगवान! किसी ने जरूर कोई गलती कर दी है।'' लेकिन वह मेरा नाम ही था, रोशनियों में। मैं वहीं बैठकर खुद से कहने लगी ''तो यह ऐसा दिखाई देता है।''  वह सब मेरे लिए अजीब था।  स्टूडियो में वे मुझसे कह चुके थे ''याद रखना, तुम कोई स्टार नहीं हो।'' मगर मेरा नाम वहां पर था रोशनियों में। मुझे इस बात का अहसास पत्रकार पुरुषों ने कराया कि मैं एक स्टार हूँ; मैं पुरुष कह रही हूँ स्त्रियाँ नहीं जो आपका इंटरव्यू करती हैं और आपके साथ दोस्ताना और गर्मजोशी से भरी रहती हैं। खैर, प्रेस का वह हिस्सा, मेरा मतलब पुरुष पत्रकारों से है, जो हमेशा बहुत दोस्ती भरे होते थे बशर्ते उनमें से किसी को मुझसे कोई व्यक्तिगत शिकायत न हो। वे कहा करते थे ''पता है, तुम इकलौती स्टार हो।''  मैं कहती ''स्टार?'' वे मुझे इस तरह देखते जैसे मैं कोई पागल होऊं। मेरा ख्याल है कि अपने तरीके से उन्होंने मुझे अहसास दिलाया कि मैं प्रसिद्ध  हो गयी हूँ।
मुझे याद है जब मुझे 'जेंटलमैन प्रेफर ब्लौन्ड्स' में रोल मिला। जेन रसेल फिल्म में ब्रूनेट थी और मैं ब्लौंड। उसे दो लाख डॉलर मिले जबकि मुझे हफ्ते के पांच सौ। लेकिन मेरे लिए वह भी ठीकठाक रकम थी। उसका सुलूक मेरे साथ  बहुत अच्छा होता था। इकलौती बात यह थी कि मुझे एक ड्रेसिंग रूम नहीं मिल सका। आखिरकार मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने कहा ''देखिए, जो भी हो मैं ब्लौंड हूँ और फिल्म का नाम 'जेंटलमैन प्रेफर ब्लौन्ड्स!''' तो भी वे कहते रहे ''याद रखो तुम एक स्टार नहीं हो।'' मैंने कहा ''मैं जो भी होऊं मैं ब्लौंड हूँ!'' और मैं लोगों से कहना चाहती हूँ कि अगर मैं एक स्टार हूँ तो मुझे लोगों ने ही स्टार बनाया है। ऐसा न किसी स्टूडियो ने किया, न व्यक्ति ने - सिर्फ लोगों ने किया। स्टूडियो में प्रतिक्रिया पहुँच रही थी, फैन मेल या जब मैं एक प्रीमियर में जाती थी या जब कोई प्रोड्यूसर मुझसे मिलना चाहता था। क्यों, मुझे मालूम नहीं। जब वे सारे मेरी तरफ बढ़ रहे थे तो मैंने पलटकर देखा मेरे पीछे कौन है और मेरे मुंह से निकला ''हे ईश्वर!'' मुझे भयानक डर लगा। मुझे ऐसा अहसास होता था, और अब भी कभी कभी होता है कि कभी कभी मैं किसी को उल्लू बना रही हूँ; किस आदमी या चीज़ को या खुद अपने आप को - मुझे मालूम नहीं।
छोटे से छोटे सीन के बारे में भी - चाहे मुझे उसके भीतर आकर सिर्फ ''हैलो'' मात्र ही कहना होता - मैंने हमेशा सोचा है कि लोगों को उनके पैसे की पूरी कीमत मिलनी चाहिए और यह भी कि मेरा सबसे बेहतरीन उन तक पहुंचाना मेरा फर्ज़ है। किसी-किसी दिन मुझे अजीब सा अहसास होता, क्योंकि तब सीन में उसके अर्थ के प्रति मेरी बड़ी जिम्मेदारी होती। तब मेरे मन में ऐसी इच्छा हुआ करती — ''काश मुझे सिर्फ कपड़े धोने वाली का रोल करना होता।'' स्टूडियो जाते हुए अगर मैं किसी को सफाई करते हुए देखती तो मैं कहती ''मुझे यही बनना है। यही मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश है।'' लेकिन मैं सोचती हूँ सारे अभिनेता इस अनुभव से गुजरते हैं। हम हमेशा अच्छे बने रहना नहीं चाहते, बल्कि हमें होना ही होता है। जब मैंने अपने अध्यापक ली स्ट्रासबर्ग से नर्वसनेस के बारे में बात करते हुए कहा ''मुझे नहीं पता क्या ठीक है पर मैं थोड़ी नर्वस हूँ। वे बोले ''जब तुम नर्वस न रहो तो अभिनय छोड़ देना, क्योंकि नर्वसनेस संवेदनशीलता की तरफ इशारा करती है।'' और इसके अलावा अभिनेताओं को शर्म से संघर्ष, किसी भी और व्यक्ति से ज्यादा करना होता है। हमारे भीतर एक सेंसर होता है जो बताता है कि हम किस सीमा तक आगे जा सकते हैं, जैसा बच्चे के खेलने में होता है। मुझे लगता है लोग समझते हैं हम बस काम करने चले जाया करते हैं। सही है, ऐसा हम सब करते हैं। हम सब काम करते हैं। लेकिन यहाँ बड़ा संघर्ष है। मैं दुनिया में खुद को लेकर सबसे सचेत रहने वाले लोगों में से हूँ। मुझे सचमुच बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
अभिनेता कोई मशीन नहीं होता, चाहे वह कितना ही कहे कि वह एक मशीन है। रचनात्मकता की शुरुआत मानवीयता से होती है और जब आप एक मानव होते हैं आप महसूस करते हैं, आप खुश हैं, आप बीमार हैं, आप नर्वस हैं या कुछ भी हैं। किसी भी रचनात्मक मनुष्य की तरह मैं थोड़ा अधिक नियंत्रण चाहूंगी ताकि चीज़ें मेरे लिए उस वक्त तनिक आसान हो सकें जब निर्देशक कहता है ''एक आंसू, अभी।'' ताकि एक आंसू बाहर निकल सके। लेकिन एक दफा मेरे दो आंसू आए क्योंकि मैंने सोचा ''इसकी ऐसी हिम्मत कैसे हुई?'' गेटे ने कहा था ''प्रतिभा का विकास एकाकीपन में होता है।'' और आप को पता है, वह किस कदर सही था। आपको एकाकीपन की ज़रूरत महसूस होती है, और मैं समझती हूँ अभिनेता के तौर पर अधिकतर लोग इस बात को नहीं समझते। यह अपने वास्ते कुछ किस्म के रहस्यों के अस्तित्वमान होने जैसा है, जिन्हें आप अभिनय करते समय थोड़े ही समय के लिए, सारी दुनिया के आगे रख देते हैं। लेकिन हर आदमी आपकी बांह खींच रहा है। हर किसी को जैसे आपका कोई टुकड़ा चाहिए।
मुझे लगता है कि जब आप विख्यात होते हैं आपकी हर कमजोरी को अतिरंजित किया जाता है। इंडस्ट्री को ऐसी माँ की तरह व्यवहार करना चाहिए जिसका बच्चा एक कार के सामने घिसट गया हो। लेकिन बजाय बच्चे को गोद में उठाने के लोग उसे दंड देना शुरू कर देते हैं। जैसे कि आपको जुकाम लगने तक का अधिकार  नहीं। भई आप को हिम्मत कैसे हुई खुद को जुकाम लगाने की। मेरा मतलब है एक एक्जीक्यूटिव्ज़ को जुकाम हो सकता है और वे जब चाहें अपने घर रह सकते हैं और इसकी सूचना भी फोन पर दे सकते हैं लेकिन एक अभिनेता होने के नाते तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि तुम्हें जुकाम हो गया या वायरल। और आप जानते हैं आप को कितना खराब महसूस होता है जब आप बीमार होते हैं। कभी मेरी इच्छा होती है कि बुखार और वायरल इन्फेक्शन को लेकर वे एक कॉमेडी बनाते। मैं वैसी अभिनेत्री नहीं हूँ जो सेट पर केवल अनुशासन के उद्देश्य से पहुँचती है। इसका कला से कोई लेना देना नहीं है। मैं खुद चाहूंगी अपने काम के भीतर ज़्यादा अनुशासित होना। मैं एक परफोर्मेस देने आई हूँ न कि किसी स्टूडियो द्वारा अनुशासित किए जाने के लिए। जो भी हो मैं किसी मिलिट्री स्कूल में तो नहीं हूँ। माना जाता है कि यह एक आर्ट फॉर्म है न कि कुछ उत्पादन करने वाला कोई प्रतिष्ठान। देखिये जो संवेदनशीलता मुझसे अभिनय करवाती है, वहीं से मेरी प्रतिक्रिया भी आती है। एक अभिनेता को एक संवेदनशील उपकरण माना जाता है। आइजैक स्टर्न अच्छे तरीके से अपने वायोलिन की देखभाल करते हैं। किन्तु तब क्या होगा अगर हर कोई उनके वायोलिन पर कूदना शुरू कर दे?
आपको तो पता है न्, बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें बहुत सी सनक भरी दिक्कतें होती हैं और वे उन दिक्कतों के बारे में किसी को पता नहीं लगने देते। क्योंकि ऐसा करने की उनमें हिम्मत ही नहीं होती। मेरी भी एक परेशानी है, जो मुझे नज़र आने लगी है - मैं देर से पहुँचती हूँ। मेरा खयाल है कि लोग सोचते हैं कि मेरा देर से आना किसी किस्म की अराजकता है जबकि मैं समझती हूँ यह अराजकता का उलटा है। मुझे यह भी महसूस होता है कि असल में मैं इस विशाल अमरीकी दौड़ में शामिल नहीं हूँ - आपको चलते जाना और आपको जल्दी जल्दी जाना है, अलबत्ता ऐसा करने का कोई तार्किक कारण नहीं है। असली बात यह है कि मैं चाहती हूँ कि एक अच्छी परफॉरमेंस देने के लिए या अपनी काबिलियत के हिसाब से श्रेष्ठतम देने की कोशिश करने के लिए वहां पहुंचूं। पर वहाँ बहुत से लोग समय पर पहुँच जाते हैं और कुछ भी नहीं करते, मैंने उन्हें ऐसा करते हुए देखा है। आप जानते हैं सारे लोग साथ बैठकर गपबाजी करते रहते हैं और अपने सामाजिक जीवन के बारे में बातें भी। गेबल ने मेरे बारे में कहा था ''जब वह वहाँ होती है, तो वहां होती है। वह सारी की सारी वहां होती। वह वहां काम करने आती है।''
मुझे बड़ा सम्मानित महसूस हुआ जब मुझे मेडिसन स्क्वायर गार्डन में राष्ट्रपति के जन्मदिन की रैली में हिस्सा लेने को बुलाया गया। और जब मैं ''हैप्पी बर्थडे'' गाने पहुंची तो एक अजीब सा सन्नाटा छा गया, जैसे मैं स्लिप भर पहन के आई होऊं जिस से मेरा बदन दिख रहा हो। मैंने सोचा ''हे भगवान, अगर मेरी आवाज़ नहीं निकली तो क्या होगा।''
लोगों में पसरने वाला इस तरह का सन्नाटा मुझे ऊष्मा देता है। यह एक तरह का आलिंगन होता है। भगवान कसम तब आप सोचते हैं अगर इन सारे लोगों के लिए मेरे द्वारा किया जाने वाला यह आखिरी काम होने वाला होना हो तो भी मैं इस गीत को गाऊंगी। क्योंकि मुझे याद है जब मैं माइक्रोफोन की तरफ मुड़ी तो मैंने पहले ऊपर निगाह डाली और फिर वापस तो मैंने सोचा ''मैं वहां होऊँगी ऊपर छत के पास उनमें से एक रैफ्टर के पास, इस जगह आने के लिए दो डॉलर देने के बाद।'' बाद में एक तरह का भोज था। मैं अपने पूर्व ससुर इजाडोर मिलर के साथ थी। सो मुझे लगता है जब मैं राष्ट्रपति से मिली तो मैंने कोई गलत हरकत कर दी हो। बजाय यह कहने के कि ''आप कैसे हैं?'' मैंने सिर्फ इतना कहा ''ये मेरे पूर्व ससुर हैं - इजाडोर मिलर''। वे यहां एक अप्रवासी की हैसियत से आये थे और मैंने सोचा कि वह उनके जीवन की सबसे बड़ी घटना होगी। वे करीब 75-80 सालके हैं और मुझे लगा यह एक ऐसी चीज़ होगी जिसे वे अपने नाती-पोतों को सुनाएंगे और ऐसी ही तमाम बातें। मुझे कहना चाहिये था ''आप कैसे हैं मिस्टर प्रेसीडेंट?'' लेकिन मैं अपना गाना गा चुकी थी और मेरा $खयाल है किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया।
प्रसिद्धि अपने साथ एक $खास तरह का बोझ लेकर आती है, जिसके बारे में मैं अभी और इसी जगह पर कुछ बता सकती हूँ। मुझे किसी ग्लैमरस या सैक्सी चीज़ हो जाने के बोझ से कोई गुरेज़ नहीं पर उसके साथ जो और चीज़ें आती हैं वे हो सकती हैं बोझ। मेरा मानना है कि सौन्दर्य और स्त्रैणता आयु से परे होती हैं और उन्हें बनाया नहीं जा सकता। हालांकि निर्माता मेरी बात पसंद नहीं करेंगे - ग्लैमर का उत्पादन नहीं किया जा सकता। वास्तविक ग्लैमर का तो कभी नहीं; उसकी बुनियाद स्त्रैणता में होती है। मेरा मानना है कि सेक्सुअलिटी तभी आकर्षक हो सकती है जब वह नैसर्गिक और स्वत: स्फूर्त हो। इस बात को समझने में उनमें से अधिकांश असली मुद्दा भूल जाते हैं। और एक और बात जो मैं कहना चाहूंगी - भगवान् का शुक्र है हम सब सैक्सुअल प्राणियों के तौर पर जन्म लेते हैं, लेकिन बहुत दु:ख की बात है कि इतने सारे लोग इस नैसर्गिक तोहफे से नफरत करते हैं और उसे कुचल देते हैं। कला, वास्तविक कला, सारी चीज़ें इसी से आती हैं।
ये सैक्स सिम्बल वाली बात मेरी समझ में कभी ठीक से नहीं आयी। मैंने हमेशा सोचा था कि सिम्बल वे चीज़ें होती हैं जिनके साथ आप मिल कर संघर्ष करते हैं! यही दिक्कत है। सैक्स सिम्बल एक चीज़ बन जाती है। और मुझे चीज़ में बदल जाने से नफरत है। लेकिन अगर मुझे किसी का सिम्बल होना ही है तो वह सैक्स की बजाय उन चीज़ों के जिनके सिम्बल्स बनाए जा चुके हैं! ये लड़कियां जो मर्लिन मुनरो होना चाहती हैं, मुझे लगता है स्टूडियोज उन्हें इसके लिए तैयार करते हैं या यह विचार खुद ही उनके भीतर आ जाता है। मगर उनमें वो बात है ही नहीं। आप इस बात पर खूब बकबक कर सकते हैं कि उनके पास या तो वह पृष्ठभूमि नहीं है या अग्रभूमि। लेकिन मेरा मतलब बीच से है- जहां आप जिंदा रहते हैं।
मेरे सारे सौतेले बच्चों को मेरी ख्याति का बोझा उठाना पड़ा। कभी कभी वे मेरे बारे में अजीबोगरीब बातें पढ़ा करते थे और मुझे चिंता होती थी कहीं उन्हें चोट तो नहीं पहुंचेगी। मैं उनसे कहती थी: मुझसे इन चीज़ों को मत छिपाओ। मैं चाहूंगी तुम सीधे मुझसे बात करो और मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।
मैं चाहती थी कि वे अपने जीवन के अलावा के जीवन को भी जानें, मिसाल के लिए मैं उन्हें बताया करती थी कि मैं एक महीने में पांच सेंट की नौकरी कर चुकी थी, कि मैंने एक सौ तश्तरियां सा$फ कीं। और मेरे सौतेले बच्चे पूछते ''एक सौ तश्तरियां!'' मैं कहती ''इतना ही नहीं, उसके पहले मैं उन्हें रगड़ कर उनकी गंदगी अलग करती थी। मैं उन्हें धोती थी फिर पानी में खंगालती थी और उन्हें ड्रायर में रखा करती। भगवान का शुक्र है मुझे उन्हें सुखाना नहीं होता था।''
मुझे खुश रहने की कभी आदत नहीं रही सो मैंने कभी भी नहीं सोचा कि उसे बने ही रहना है। देखिये, एक औसत अमेरिकी बच्चे की तुलना में मेरी परवरिश काफी अलग तरह की रही थी, क्योंकि औसत अमेरिकी बच्चो को इस तरह पाला जाता है कि वह खुश रहने की उम्मीद करे। यानी -सफल, खुश और समय का पाबन्द, तो भी अपनी प्रसिद्धि के कारण उस समय तक मैं तब तक मिले सबसे बेहतरीन दो पुरुषों से मिल सकी और उनसे विवाह कर सकी।
मुझे नहीं मालूम था कि लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे। कम से कम अपने आप तो नहीं। मुझे लोगों से प्यार है। मुझे ''जनता'' से डर लगता है। लेकिन लोगों पर मैं यकीन करती हूँ। हो सकता है उन पर प्रेस का प्रभाव पड़ता हो या जब स्टूडियोज से तमाम तरह की कहानियां बाहर भेजी जानी शुरू कर दी जाती हैं तो उसका असर होता हो। लेकिन मैं मानती हूं कि जब लोग सिनेमा देखने जाते है, वे अपना फैसला खुद करते हैं। हम मनुष्य बहुत अजीब प्राणी होते हैं, और तब भी अपने लिए सोचने के अधिकार को आरक्षित रखते हैं।
एक बार जब यह सोच लिया गया कि मुझे खत्म हो जाना है। मेरा अंत आ गया था। जब मि. मिलर पर कांग्रेस की अवमानना का मुकदमा चल रहा था एक कारपोरेशन के एक्जीक्यूटिव ने कहा या तो वह कुछ लोगों के नाम फंसा देगा या मैं उसे कुछ नाम बतलाऊं। या फिर मुझे खत्म हो जाना था। मैंने कहा ''मैं अपने पति की स्थिति का आदर करती हूँ और पूरी तरह उनके साथ खड़ी रहूँगी।'' ऐसा ही कोर्ट ने भी किया। ''खत्म'' उन्होंने कहा ''अब तुम्हारा कोई नाम भी नहीं लेगा।''
खत्म हो चुकना एक तरह की राहत जैसा होता है। आपको सब दोबारा शुरू करना होता है। लेकिन मुझे लगता है कि आप हमेशा अपनी क्षमता जितना बेहतरीन कर पाते हैं। फिलहाल मैं अपने काम में और चंद लोगों, जिन पर में सचमुच भरोसा कर सकती हूँ, के साथ चंद संबंधों में निवास करती हूँ। प्रसिद्धि चली जाएगी, और वह कितनी देर मेरे साथ रहे? अगर वह चली जाती है, मुझे पहले से पता था वह बेठिकाना होती, तो वह कम से कम ऐसी चीज़ तो है जिसे मैंने अनुभव किया, मगर ये वो जगह नहीं जहां मैं रहती हूं।


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