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जुलाई २०१३

खामोशी का एक घोंसला - एक नोटबुक

अन्ना कामीएन्सका, अनुवाद और चयन : अशोक पाण्डे




 खामोशी का एक घोंसला - एक नोटबुक
सारस, अध्ययन और एक धुंधुआते जीवन का एकाकीपन


मैं भाग-भाग कर बच निकलती हूँ नींद के भीतर। जब मरूंगी तो सबसे ज़्यादा याद आएगी नींद।
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- ''क्या तुम्हें वाकई यकीन है कि ईसा उस नन्हें चर्च के अस्थाई प्रार्थनागृह में ताले में बंद बैठा है?''
- ''हाँ बिलकुल।''
- ''ऐसा कैसे हो सकता है? मैं यह नहीं कह रही कि वह वहाँ नहीं है, मैं पूछ रही हूँ तुम इस पर यकीन कर कैसे सकते हो?''
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मेरे भीतर कोई प्रतिभा नहीं। मैं साहित्यिक बाज़ार की बात नहीं कर रही : मेरा मतलब है मैं खुद अपने आप को कैसे देखती हूँ। मैं अपने लिए कविताएँ लिखती हूँ, इन्हीं नोटबुक्स की तरह, ताकि चीज़ें के आरपार देख सकूं, बस।
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मुझे रोने की इच्छा हुई, लेकिन मैंने अपने को उस सुख से वंचित रह जाने दिया क्योंकि यानेक* (अन्ना का बेटा) को आना था। लेकिन उसका फोन आया कि  वह नहीं आ पाएगा क्योंकि वह अपने कुत्ते को नहला रहा था; कुत्ते को कल मोनिका जेरोम्सका के कुत्ते से मिलने जाना है। कितनी बड़ी घटना है। सो मैं रोती हूँ, आत्मा के नहीं शरीर के आंसू। टेलीफोन पर मेरी आवाज़ सूज गयी है। ''बच्ची!'' श्रीमती ज़ेड कहती हैं।
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किस तरह लिखा जाए कि कविता खामोशी के नज़दीक हो सके?
ज़ेन - जैसे बिना तार की वीणा बजाना।
सादगी - ज़रूर। मगर कैसे? किस प्रकार?
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मैं किसी मुटल्ली बूढ़ी औरत की तरह छिपी हुई टहला करती हूँ।
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बहरेपन ने मेरे सपनों तक पर कब्ज़ा कर लिया है। मूक फिल्मों की तरह बेआवाज़ होते हैं वे। या जब थियेटर में मशीन टूट जाती है और दर्शक अचानक हुल्लड़ मचाने लगते हैं।
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हमारे युग की विकृत स्मृति खुफ़िया पुलिस की फाइलों और अभिलेखों में निवास करती है। कभी कभी राष्ट्रों को सब कुछ विस्मृत कर सकने की दुआ करनी चाहिए।
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यानेक ने एक ज़रूरी खबर दी है। आपके नाती का एक दांत निकला है। जब वे नन्हे याकूब को खाना खिलाते हैं चम्मच बजती है उस से टकराने पर।
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जब मैं छोटी थी, मुझे हमेशा सदमा महसूस होता था जब लोग कहा करते थे कि मैं एक अनाथ हूँ। मुझे अब हैरत होती है, लोग मुझे विधवा कहते हैं। नहीं, वह मरा नहीं, वह मेरी बगल में इतना ऊंचा उग गया कि अब मैं उसे छू भी नहीं सकती।
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एक मर्तबान में रह रहे डायोजेनीस के पास पानी पीने के वास्ते एक कटोरा था। एक दिन उसने एक लड़के को चुल्लू से पानी पीते हुए देखा। डायोजेनीस ने उसी दिन अपना कटोरा तोड़ डाला। (नोट - ईसा से चार सदी पहले के यूनानी दार्शनिक डायोजेनीस ने निर्धनता को मनुष्य का एक गुण माना। वह पेट पालने के लिए भीख माँगा करते थे और बाज़ार के  बीचोबीच एक बड़े सेरामिक मर्तबान में रहते थे। वे दिन के समय दिया लेकर घूमा करते थे और कहते थे कि उन्हें एक ईमानदार आदमी की तलाश है। उन्होंने प्लेटो को खासा शर्मिंदा किया और सुकरात की उनकी व्याख्या से नाइत्तफाकी ज़ाहिर की। डायोजेनीस ने सिकन्दर की सार्वजनिक रूप से निंदा की थी।)
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किसी पालतू कुत्ते की तरह मैं बुलाती हूँ अपनी परछाई को। और निकल पड़ती हूँ।
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बुढ़ापे से छिपना। जैसे फर्श की एक दरार के भीतर रेंग जाना।
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लुब्लिन जाने वाली सड़क पर एक ''कसाईखाना'' - कितने घिनौने शब्द। एक आदमी एक गाय को वहाँ ले जा रहा है। गाय का सर नीचे झुका हुआ है। उसके भीतर एक गहरा मानवीय दु:ख ठहरा हुआ है। जब तक हम पशुओं का मांस खाते रहेंगे हम बर्बर बने रहेंगे।
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दु:ख वह सबसे उदात्त चीज़ है जो हमें पशुओं से जोड़ती है। अस्तित्व का दु:ख।
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'मुसाफिर, पोलैंड से कहना'। यह उस किताब का शीर्षक है, जिसे मैं कभी नहीं लिखूंगी।
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कोरचाक - ''छोटी छोटी दिक्कतें इस लायक नहीं होतीं कि उनके लिए रोया जाए। जब बड़ी दिक्कतें आती हैं आप रोना भूल जाते हैं।''
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निर्वासित किये जाने के दो हफ्ते पहले अनाथ बच्चों ने रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'पोस्ट ऑफिस' का मंचन किया। नन्हें अब्रासका ने मरते हुए बच्चे का किरदार निभाया।
कोरचाक से किसी ने पूछा कि उन्होंने ऐसा उदास नाटक क्यों चुना। उसने कहा कि वे मौत के फरिश्ते का ठीक से स्वागत करना सीखना चाहते थे।
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जब मैं सुबह उठी, मेरा कोई चेहरा न था। बस दु:ख का एक मुखौटा था। मैं एक माँ से ज़्यादा कुछ होना चाहती थी। मैं एक दोस्त होना चाहती थी। लेकिन हमारे हिदायतकार का अपना क़ायदा। आपको अपना किरदार खुद चुनने को अवसर नहीं है।
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संत कैथरीन के वृत्तान्त (1922-23) : और मैं ऊपर पहाड़ की चोटी पर गयी और मैंने ईश्वर से पूछा मुझे क्या करना चाहिए। और ईश्वर ने मुझे जवाब दिया : ''शुद्ध पानी की तरह बह निकलो, मुलायम और खामोश, और मेरा प्रतिविम्ब देखो अपने में।''
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नियोबे, नियोबे - मैं हूँ नियोबे। छोड़ दी गयी हर माँ होती है वही।
(नियोबे - यूनानी मिथकों में नियोबे को एक दुखी माँ के प्रोटोटाइप के रूप में चित्रित किया जाता है। होमर की इलियाड के अनुसार उसके छ: बेटे और छ: बेटियाँ थीं। अपनी संतानों पर उसे गर्व था जिसे 'राह' पर लाने के लिए अपोलो ने उसके सारे बेटों और आर्टेमिस ने बेटियों की हत्या कर दी थी।)
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बीसवीं सदी का एक चुस्त फिकरा : ''वे तीस साल एक कोड़े के तमाचे की तरह बीत गए।''
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जोसिया के. के पति मर रहे हैं। उन्होंने संसार को कभी नहीं देखा, लेकिन गिरती हुई बर्फ उन्हें रोमांचित किया करती थी। उन्होंने खिड़कियाँ खोल देने को कहा। एक साथ प्रवेश किया बर्फ और मृत्यु ने।
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ज़ेड़ के साथ एक उम्दा बातचीत। जीवविज्ञान का संसार। वह कहता है ''भविष्य का जीवन ठीक आज जैसा होगा। लेकिन हरेक चीज़ का उत्थान हो चुका होगा। ईश्वर उसे अपनी झलक से प्रकाशित करेगा और उसे अपनी तरफ खींचेगा।''
नर पतंगे में अनिवार्यत: आहार नाल नहीं होती। उसे उसकी ज़रूरत नहीं होती। उसके सिर में स्थित नसों का जाल उसे सूंघने भर की ताकत की मदद से मादा के पास ले जाता है। वह उसकी महक को बारह किलोमीटर दूर से सूंघ सकता है। वह उसे निषेचित करता है और मर जाता है। वही उसके जीवन का सबसे बड़ा मरहला होता है। जीवविज्ञान हरेक जीवित प्राणी के जीवनकाल को निर्धारित करता है।
मनुष्य भी अनवरत अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता जाता है - मृत्यु की तरफ। उसी में उनकी पूर्णता है। पतंगे और उसमें फर्क सिर्फ यह है कि वह रास्ते में गिरता-पड़ता रहता है।
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दुर्भाग्य और व्यक्तिगत त्रासदियाँ हमारे आंतरिक समय को कम कर देती हैं। बाह्य समय गुजरता जाता है - लेकिन हम पानी में भूसे की तरह चक्कर काटते रहते हैं।
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सुबह से दु:ख अपना सिर उठा रहा है किसी वफादार जानवर की तरह।
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सुबह मैंने अचानक अपने को पकड़ा - मैं थी ही नहीं वहाँ, इस कदर ख्यालों में खोई थी मैं। मुझे पता ही नहीं आसपास हो क्या रहा है। क्या आप सोचते सोचते मर सकते हैं?
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जहां तुम्हारा दर्द है, तुम्हारा दिल भी उसी जगह होता है।
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हिब्रू भाषा। किसी पवित्र किताब की तरह चूमती हूँ मैं उसे। समय का मसौदा लिखा हुआ है इसके अक्षरों में। साउल और डेविड टहलते हैं यहाँ, रोता  है निर्वासित किया गया कवि। हिब्रू में खामोशी भी बोलती है।
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जानवर कैसे बर्दाश्त करते होंगे अकेलेपन को? जब हम पोज़नान जा रहे थे विस्वावा शिम्बोस्र्का ने मुझे अपने पालतू सेही के बारे में बताया, निपट अकेला, एक झाड़ू के प्रेम में गिरफ्तार। क्या मैं खुद को बहकावे में रखने वाले एक सेही में बदलती जा रही हूँ? मुझे किसी झाडू से प्यार नहीं करना, चाहे जो नाम हो उसका। मैं इस सबसे मुक्त होना चाहती हूँ। अकेलेपन से मुक्त? यही पहेली है जिसे मैं अपने आप से पूछती रहती हूँ। मुक्ति के लिए अकेलापन चाहिए होता है। लेकिन अकेलापन बोझ बन जाता है। सोचते हुए अपना सिर टकराती रहती हूँ मैं दीवारों से।
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अपने बारे में बहुत ज़्यादा बात करने का मतलब हुआ कपड़ों को उलटा पहन लेना।
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ए. के भीतर ज़रा भी सेन्स ऑफ ह्यूमर नहीं। घातक रूप से ईमानदार, घटक रूप से मसरूफ, हमेशा महान शब्द। वह मक्खियों के ऊपर से टैंक की
मानिंद धड़धड़ाता गुज़र जाता है - जीवन की भिनभिनाती, चिड़चिड़ाती मक्खियों के ऊपर से।
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हिब्रू का मेरा अध्ययन जारी है। कभी कभी मुझे लगता है कि यह ज़बान वास्तविक है ही नहीं। यह कोई अवास्तविक सी संरचना है जिसके भीतर मुझे प्रवेश मिला है, जैसे सपने में किसी महल के भीतर। ऐसा मेरी मेहनत की सम्पूर्ण अरुचि के कारण होता है, क्योंकि सिर्फ ईश्वर मुझसे गुफ्तगू कर सकेगा हिब्रू में।
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फादर जे. के साथ पोवाज्की में एक वार्तालाप। चमकीला दिन, करीब करीब गर्म। सैनिकों की कब्रों के गिर्द टेढ़े मेढ़े भागते हुए बच्चे। मिलिट्री वाला हिस्सा अभी से टिमटिमा रहा है छोटे छोटे दीयों की लौ में। हम शरीर और आत्मा के बारे में बातें करते हैं। हम हरेक खराब चीज़ के लिए शरीर को दोषी ठहराते हैं। शरीर एक भुक्खड है जिसे बस कटलेट चाहिए हर समय। आत्मा, आत्मा जो जटिल है, उसे कहीं कमतर चीज़ें चाहिए होती हैं -ताकत, गरिमा। ''सपनों में'' फादर जे. कहते हैं ''शरीर आत्मा जैसा दिखाई देता है।''
हम एक दशक से कब्रों के बीच से होकर गुज़र रहे हैं।
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मूर्तिकारों के सिर ऐसे होते हैं मानो उन्हें गढा गया हो। उनके चेहरों पर उकेरी गयी होती हैं गहरी लकीरें। हमारी व्यवस्थाएं और उत्कंठाएं अपने निशान बनाती हैं, सार छोड़ जाती हैं।
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साँग आँफ सॉग्स एक आलीशान प्रेम कविता है : उसकी अशालीनता उसे एक रूपक में बदल देने से आती है। धर्मशास्त्र की ताकत उसकी शब्दश:ता है। और उसके शाब्दिक अर्थ के भीतर एक रहस्य उकेरा हुआ है लेकिन हमारे मैले हाथ उसे छू नहीं सकते।
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एक चीनी सूक्ति : ''क्या एक अबाबील या गौरैया किसी सारस के महान विचारों को समझ सकते हैं?''
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नीले समुन्दर और हाथियों के बारे में एक सपना, एक दयालु हथिनी पानी के भीतर से मेरा खोया हुआ चश्मा निकाल लाती है।
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किसी कहानी को नायक की मृत्यु के साथ खत्म करना बेहद आसान है। त्रासदियों और संघर्षों के लिए मृत्यु सबसे आसान समाधान होता है, जिसमें आप गाँठ को खोलने के बजाय उसे काट देते हैं। लेकिन ज्यादातर लेखक बिना मरे निकल नहीं सकते।
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मुझे बचपन से ही संदूक अच्छे लगते रहे हैं। मैं अपने हकीर से खज़ानों को उनमें रखा करती थी - कागज़, कांच के टुकड़े। फिर चिट्ठियाँ, परिवार की निशानियां। लेकिन अब कुछ भी नहीं इस लायक। क्या आप मोहब्बत को एक बक्से में रख सकते हैं? यहाँ तक कि उस आखिरी संदूक तक में ठीक से नहीं समा सकता एक इंसान।
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शानदार पेशे - मुरब्बा बनाना, सिलाई करना, रफूगरी, रफू करना खालीपन को, घिसते जाना एक अतल को, सीते जाना दर्दनाक विरोधाभासों को एक साथ।
औरतें गुनगुनाते हुए कर लेती हैं इन कामों को।
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काली नदी प्रवेश करती है मेरे भीतर
काली नदी घेर लेती है मुझे
काली नदी कब्ज़ा कर लेती है मुझ पर
काली नदी बहती है काले सागर की तरफ
उछाल फेंकती है मुझे काली रेत पर
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चार साल का याकूब अपनी परनानी की कब्र पर पहुंचकर अपनी नानी को बताता है कि वह फूल किसी और की मेज़ पर भूल आया है। सारे कब्रिस्तान में खुशी फैल गई।
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डिपार्टमेंट स्टोर के आगे से गुजरते हुए आनिया याकूब को बता रही है -
- ''तुम उस बड़े स्टोर में सब कुछ खरीद सकते हो।''
- ''और सिर्फ एक चीज़ कहाँ मिल सकती है?'' वह पूछता है।
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सपना, मनुष्य के चेहरे जैसा, चिमुडाए सेव के जैसा मेलबॉक्स। मेरे पास चाभी है। मुंह की तरह खुले हुए उसके छेद में लगाती हूँ उसे। कुछ नहीं है। खाली है बक्सा। चिट्ठियों की मेरी ज़रूरत पर हँस रहा है कोई।
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सपने में देखती हूँ कि मैं नहाना चाहती हूँ। मैं टब में घुसती हूँ, मगर वह पानी नहीं किताबों से भरा हुआ है। आप किताबों से देह की सफाई नहीं कर सकते।
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''जब भी आदमी पहाड़ों से मिलता है, महान घटनाएं घटती हैं।'' (स्तानिस्लाव विनसेंज से पाई एक बौद्ध कहावत)। मैं तुरंत जोडऩा चाहती हूँ: समुद्र के सात भी यही होता है।
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बहरे लोग व्यर्थ प्रार्थना करते रहते हैं खामोशी से। अंधे को लालसा होती है सच्चे अन्धकार की।
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सत्य को अभिव्यक्ति देना। एक छैनी की मदद से। एक शब्द से। खामोशी की मदद से। जीवन से।
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जब मैं ईसा मसीह के बारे में सोचती हूँ, कोष्ठकों में लिखा एक वाक्यांश मुझे थाम लेता है - वे पूरी तरह मनुष्य थे (सिवा पाप के)। यह ''सिवा पाप के'' मुझे गलत तरीके से प्रभावित करता है। धर्म की किताब में मुझे ईसा के सारे कमज़ोर क्षण याद हैं। हो सकता है इन कमज़ोर क्षणों में तकरीबन पाप जैसी कोई चीज़ छिपी हुई हो? जैसे कि उनका वह अति-उत्तेजित गुस्सा जब वे सूदखोरों को मंदिर से बाहर कर रहे थे? कभी कभी मुझे ईसा को सिर्फ यातना में नहीं पाप में भी अपने भाई की तरह शामिल होने की इच्छा होती है। हालांकि मैं जानती हूँ उसका पापमुक्त होना ही उसका देवत्व था।
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हम अपने लिए अमरता की कामना नहीं करते: बहुत भयावह होगा। हमें उसकी दरकार अपने परिवार और अपने प्यारों के लिए होती है।
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एक कुशल और बुज़ुर्ग लुहार ने मुझे बताया : आपने लोहे की इज्ज़त करनी होती है। यानी आपको पता होना चाहिए उसके साथ क्या किया जाना चाहिए। लुहार का संगीत मेरे लिए फरिश्तों का गान है। मोहतरिमा, आपको ज़रा भी अन्दाज़ा नहीं कि लोहे की महक कितनी महान होती है।
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औक्तावियो पाज़ और उनका शानदार निबंध ''क्रान्ति की गोधूलि'' (1974)
एकरेखीय समय के संकट से उपजती है क्रान्ति की गोधूलि। भविष्य का ढहना। वर्तमान के प्रतिरोध से युवा आन्दोलन खड़े होते हैं। ऐन्द्रिकता का एक विस्फोट- शरीर है वर्तमान। कला में अवाँ-गार्द का संकट। अवाँ-गार्द हमेशा नएपन को खोजता है और उसे नए के आतंक में तब्दील कर देता है। सारी क्रांतियाँ हुकूमतें बन कर रह जाती हैं... ऐसी कोई कला नहीं जो शैली का निर्माण न करें और कोई शैली नहीं जो अंतत: कला को नेस्तनाबूद न कर दे... बचता क्या है?
सबसे ऊपर मरते हुए मनुष्यों का प्रतिरोध-ह्यूमर।
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अकेलेपन का कोई विस्तार नहीं, अंतरिक्ष में एक झिरी। अतल की एक आँख। अतल एक ऐसा विषय है जिसे ज़्यादा ही तूल दिया गया है। इसके पार जाने का कोई रास्ता नहीं।
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सारी आवाजें मिलीं - खामोश।
सारे रंग मिले - सफेद।
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मैंने कविताएं लिखते हुए जाने कितनी दफा ''और'' शब्द को काटा होगा। वह भी इतना बातूनी लगता है।
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मैं धीरे धीरे दूर हो रही हूँ अपनी ही देह से।
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मैं कविताओं की बाढ़ में बह गयी। वे सब मुझ तक जंगली मधुमक्खियों की तरह आईं।
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''बाइबिल के साथ रोज थोड़ा समय बिताने की सज़ा तो मिलती ही है - आप उस से बच नहीं सकते'' - चेस्वाव मीवोश।
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खोपड़ी के नीचे - खामोशी का एक घोंसला।
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दादाजी मर रहे हैं। लेकिन वे अब भी हर सुबह कपड़े पहनते हैं और सैंडल (चप्पल नहीं) पहने पहने ही अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं। वे पूरी तैयारी के साथ मरना चाहते हैं, जैसे वे जिए थे। क्या वे ऐसा कर सकेंगे?... वे सो रहे थे जब मैं उन्हें छोड़ आई। मैंने उनके दुबलाए हुए हाथों को दुलराते हुए विदा ली। दादाजी जागे नहीं।
मरना - यह मानवीय स्तर पर किया जाने वाला ऐसा काम है जो हमारे अस्तित्व से बड़ा है, किसी भी इंसानी ज़िम्मेदारी की तरह। जानवर इसे बेहतर ढंग से अंजाम देते हैं।
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दादाजी उस पल पर पहुंच गए हैं जब सारे सिद्धांत उलट जाते हैं। मैं कहती हूँ ''सो जाइए''। वे कहते हैं ''अनंत आराम''। मैं कहती हूँ ''उम्मीद''। ''मौत'' वे कहते हैं। ''बढिय़ा मौसम है'' मैं कहती हूं। वे कहते हैं ''खालीपन। क्या होता है मौसम?''
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डिनर के वास्ते मैं थोड़ी मछली खरीदना चाहती हूँ। स्टोर के बाहर मील भर लंबी कतार। मैं दवा की दूकान पर जाती हूँ। बंद है। मैं मक्खन खरीदना चाहती हूं - स्टॉक में नहीं है।
ऐसे अनुभवों की श्रृंखला आपको सुन्न बना देती है।
किसी बच्चे की तरह दादाजी मुरब्बे की मांग करते हैं। ज़ाहिर है मुरब्बा भी नहीं है।
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मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है? याकूब बोएमे ने कहा था ''उसे कहीं जाना नहीं होता।''
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मैं आज दिन भर सारी कब्रों को सजाने में व्यस्त रही : जे., लेक, पीएताक, एडजीया, मामा (मेरे पिता, दादी और अंकल जेनीएक भी वहीं हैं)।
दिन में जे. और दादाजी के लिए प्रार्थना सभा।
और फिर मैं घसीट ले जाती हूं खुद को वापस ज़िन्दगी की तरफ।
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साल का आखिरी दिन। दर्द और आंसुओं के एक विशाल भूमिगत आईने के आर पार लतीफ मौसम पसरता जा रहा है।
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