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दिसंबर - 2019

यह फूल इराक के बाहर कहीं भी नहीं मिला मुझे - दुन्या मिखाइल

जयप्रकाश मानस

पहल विशेष/एक

साक्षात्कार

 

 

चर्चित इराकी-अमरीकी कवयित्री दून्या मिखाइल (Dunya Mikhail ) अरबी में लिखतीं हैं। 1990 के दशक में इराकी सरकार की सांघातिक धमकियों के कारण उन्हें अपनी माटी से दूर जाना पड़ा। 1996 से निर्वासित दून्या अमेरिका में अरबी पढ़ाती हैं। उनकी कविताओं में इराक के हालात, युद्ध, युद्ध से प्रभावित जीवन व निर्वासन-विस्थापन का सघन दर्द पसरा हुआ है। वे दरअसल निर्वासन, संघर्ष और विरोध की कवयित्री हैं। अरबी में उनकी कविताओं के पाँच संकलन प्रकाशित हुए हैं। उनकी अंग्रेज़ी  में अनूदित कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए हैं, जिन में 'द वार वर्क्स हार्ड’ को PEN ट्रांसलेशन अवार्ड मिला व 'डायरी ऑफ़ अ वेव आउटसाइड द सी’ को अरब अमेरिकेन बुक अवार्ड का गौरव मिला है। यह किसी भी इराकी कवयित्री का अरबी से अंग्रेज़ी  में अनुदित किताब भी है। 2001 में उन्हें यू.एन. ह्यूमन राइट्स अवार्ड फॉर फ्रीडम ऑफ़ राइटिंग प्राप्त हुआ। न्यूयार्य पब्लिक लायब्रेरी ने इसे सन् 2005 की सर्वश्रेष्ठ पाँच कृतियों में समादृत किया है ।

कुछ बरस पहले जयप्रकाश मानस ने उनसे बातचीत की थी। उस बातचीत का अंग्रेज़ी  से हिंदी अनुवाद यहाँ विशेष तौर पर उनकी कुछ ज़रूरी कविताओं के साथ - संपादक

 

मानस - आज आप जिस मुकाम (ऊँचाइयों) पर हैं उसमें आपदाओं की भूमिका कितनी है और संघर्ष की भूमिका कितनी?

मिखाइल - जब मुझे देश छोडऩा पड़ा था, तब मेरे इराकी पासपोर्ट में मेरा व्यवसाय लिखा गया था - कवयित्री। और इसी व्यवसाय ने मेरे जीवन की रक्षा की। अन्यान्य व्यवसाय में बहुत अधिक समय और क़ागज़ी  औपचारिकताएँ अनिवार्य होती हैं। यह बात है 1995 की और यही वह समय था जब मैं लोगों को कवयित्री के रूप में अपनी पहचान देती थी। इस रूप में जब लोग जब मुझे मान्य करने लगे तब फिर मैं अपनी दूसरी बातों का परिचय देने का प्रयास करती।

मानस - क्या कभी संसार के सारे मनुष्यों को सुख देने वाला समय आएगा? यदि हाँ तो कैसे? उसमें साहित्य या कविता की भूमिका कितनी होगी?

मिखाइल - ऐसा मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकती कि सभी आदमी $खुशहाल हैं या हो रहे हैं। केवल यह कह सकती हूँ मैं कि काव्य सृजन मेरी अपनी $खुशी है। कवि यहूदा आमिचई अपनी कविता में इस पर कहते हैं -

इन सबके पीछे

       कोई खुशी ज़रूर ही

              छिपी होगी।

मानस - आप अपनी कविता के साथ-साथ अपने घर-परिवार, बचपन के बारे में बताना चाहेंगी? आपकी पहली कविता क्या थी और वह कहाँ प्रकाशित हुई?

मिखाइल - सबसे पहले मैं कह दूँ कि मेरी पहली कविता प्रकाशित नहीं हो सकी। बताती हूँ क्यों। मैं और मेरी चचेरी बहन तिग्रिस नदी पर जहाज में सैर कर रहे थे... वहीं पर मैंने मेरी पहली कविता लिखी थी। सागर की उठती लहरों पर लिखी इस कविता में मैंने बताया कि कैसे सागर की एक लहर उठती है और उसके दूसरे छोर तक पहुँचने तक दूसरी लहर उठ जाती है। मेरी चचेरी बहन ने कविता के उन पन्नों की नाव बनाई और उन्हें तिग्रिस की लहरों के हवाले कर दिया। काग़ज़ की उस नाव को पानी में दूर तक जाते हम देखते रहे और आनन्दित होते रहे।

इससे काफी पहले से ही मैं बहुत सा पद्य और गद्य लिखती रही थी, लेकिन उन्हें मैं कविता नहीं मानती थी। इन सब के लिए मेरे माता-पिता का आशीर्वाद मुझ पर हमेशा रहा। उन्होंने मेरे लेखन अथवा लिखने की आदत पर कभी हस्तक्षेप नहीं किया। न तो वे मुझे हतोत्साहित करते थे और न कभी प्रोत्साहित किया। हाँ वे मेरे लिए अच्छी किताबें ज़रूर लाते और मुझे देते थे।

मानस - यूँ तो सिर्फ़ सामान्यत: कविता की कोई निश्चित रचना-प्रक्रिया नहीं होती, जिसे हर कोई अपनाए ही। हर कवि अपने हिसाब से विषयो को छाँटता है और उसमें अपनी बात रखता है। आप नियमित लेखन करती रही हैं, क्या आप रचना-प्रक्रिया जैसी किसी अवधारणा पर विश्वास करती हैं? यदि हाँ तो वह क्या है?

मिखाइल - मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ । काव्य सृजन का कोई निश्चित नियम नहीं। यह सब तो बस अभिव्यक्ति है।

मानस - कविता किस हद तक सिर्फ़ शिल्प है और किस हद तक सिर्फ़ भाव या फिर भाषा?

मिखाइल - कविता भाव और ढाँचे का मिला-जुला संयोजन है। जिसमें अभिव्यक्ति का रूप सँवरे और निखरे वही कविता है। भाषा भी गौण हो जाती है काव्य सृजन में।

मानस - बीच-बीच में रह-रह कर ये फ़तवे उछाले जाते हैं कि कविता की मौत हो चुकी है। आज के दौर में आप कविता को कितना सजीव और कितना निर्जीव मानती हैं?

मिखाइल - मुझे लगता है केवल आप इस बात पर शंकित हैं। पर सच में ऐसा नहीं है। गार्जियन के जून 2007 के अंक में मार्टिन एमिल ने लोगों के कथन को उद्धृत किया था - ''आपने ध्यान दिया होगा कि कविता मर चुकी है, यह बहुत पहले से कहा जा रहा है।’’ बिट्स ऑफ़ न्यूज़ के फरवरी 2007 के अंक में अलेक्जेंडर बी. रुबियो ने लिखा है ''यह एक दुखद पहलू है कि कविता किसी अन्य चिन्ताओं की तरह बहुत पहले ख़त्म हो चुकी है।’’ नेशनल रिव्यू ऑनलाइन, अगस्त 2006 में जॉन डर्बीशायर ने कह दिया - ''कविता अब समाप्त, समाप्त, समाप्त।’’ न्यूज़ वीक पत्रिका में ब्रूस वेक्सलर ने मई 2003 में अपने एक रोचक लेख में कविता की मौत की घोषणा कर दी। ''कविता मर गई है’’ शीर्षक से लिखे इस लेख में वेक्सलर ने कहा - ''कविता मर गई है। वास्तव में कोई इसकी परवाह नहीं करता है।’’ कहकर कविता की मौत की घोषणा कर दी। वह कहते हैं ''संगीत, सिनेमा तथा नाटकों के बिना इस दुनिया की कल्पना करना मुश्किल है, परन्तु बिना कविता के दुनिया चल रही है।’’ मैं $खुद नहीं समझ पाती कि यह कैसे सही है। क्या कविता सिनेमा, संगीत तथा नाटक का हिस्सा नहीं है? वेक्सलर यह भी कहते हैं कि उन्हें किसी जीवित कवि का नाम भी याद नहीं। उनकी इस बात के समर्थन में मैं सभी जीवित कवियों को सोसायटी ऑफ डेड पोएट्स की सदस्यता के लिए आमंत्रित करती हूँ।

माना कि कविता परंपरागत नहीं रह गई है। यह कोई समस्या की बात भी नहीं। लेकिन कविता परंपरागत मात्र नहीं रह गई है इसीलिए ही कविता को मृत घोषित कर देना बहुत ही पीड़ादायक है। यह ज़रूर है कि भाव परंपरागत हैं पर यथार्थ परंपरागत नहीं। मैं वेक्सलर की कविता की चिंता का कारण नहीं समझ पाती हूँ। बहरहाल मेरा माना है यह कविता का दोष नहीं है बल्कि इसके दोषी कवि हैं।

मानस - आप उत्तर आधुनिकता को किस दृष्टि से देखती हैं? उत्तर आधुनिकता में कविता यानी मनुष्य की अस्मिता, स्वतंत्रता, उदात्तता और सार संक्षप में कहें तो मनुष्यता के बचने की कितनी गुंजाइश है?

मिखाइल - वस्तुत: नई पीढ़ी में कविता अत्यंत संवेदनात्मक है जिसमें आधुनिकता भी समाहित है। यथार्थ है कि काव्य का झुकाव भी आधुनिकता की ओर है और इस पर ही प्रतिबम्बित भी होती है। काव्य या कविता का निर्धारित लक्ष्य नहीं वरन स्वयं काव्य ही कवि का साध्य है। काव्य कोई आज़ादी नहीं है और न ही यह किसी समस्या को सुलझाती है। फिर काव्य हमारी ज़रूरत है, विशेषकर आज की विस्फोटक स्थितियों में स्व की अभिव्यक्ति के लिए। काव्य वह एक्स-रे है जो अदृश्य बुराइयों को ढूँढ निकालता है और उसका विश्लेषण करने में सहायता करता है। यह आवश्यक नहीं है कि काव्य उन बुराइयों को दूर भी कर सके।

मानस - साहित्य या कविता को क्या सबसे पहले वादी होना चाहिए या संवादी?

मिखाइल - काव्य के लिए कोई शर्त या सीमा नहीं होती है। संप्रेषण और संवाद तक तो ठीक है, कविता में वाद को कोई स्थान मैं नहीं दे सकती।

मानस - एक अच्छी कविता की पहचान क्या हो सकती है? उसके लिए क्या कोई निश्चित शास्त्र या व्याकरण होना चाहिए? ख़ासकर आपके लेखन में?

मिखाइल - काव्य पर कोई बंधन लागू नहीं किया जा सकता है सिवाय कविता के। न ही व्याकरण, न ही बिम्ब और न ही व्याकरण। कविता केवल कविता होती है न कि व्याकरण या भाषा या भाव।

मानस - आप निर्वासन की कवयित्री हैं, संघर्ष और विरोध की कवयित्री। आपकी कविता में यह किस तरह से आया? इस रूप में इराक और आपकी ज़मीन किस तरह से आपकी कविता में जगह घेरती है?

मिखाइल - कविता का एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक पहलू यह है कि वह किसी भी स्थान, भाव अथवा बिम्ब को कवि के लिए सर्जना-सूत्र में ढाल देती है। मैंने कभी सम्पूर्णता का अनुभव नहीं किया, जब मैं अपने देश में थी। निर्वासन के बाद के अपने देश मे भी नहीं। मुझे यह अनुभव तब होता है जब मैं कविता लिख रही होती हूँ, चाहे वह जगह कोई वीरान खण्डहर हो, कोलाहल से भरी गली हो या किसी हवाई जहाज में बादलों के बीच।

मानस - आज आप बग़दाद को किस तरह याद करती हैं?

मिखाइल - मुझे याद आता है सुन्दर छोटी-छोटी पंखुडिय़ों और हरी पत्तियों वाला फूल रज़की फूल, जिसकी खुशबू बड़ी मनमोहक होती है। यह फूल इराक के बाहर कहीं भी नहीं मिला है मुझे। मुझे याद आते हैं तिग्रिस नदी पर स्थित अल नाहर स्ट्रीट  (शॉपिंग काम्प्लेक्स) पर पैदल घूमते मेरे दोस्त, जहाँ पर आपको गर्मागर्म चकपीज़ बेचने वाले मिलते हैं। इसी मार्केट का दूसरा हिस्सा अल मुतानबी स्ट्रीट मुझे याद आता है किताबों के लिए। इसके साथ ही वहाँ पर भयानक और लगातार होने वाले विस्फोट भी मेरी स्मृति को झकझोरते रहते हैं।

मानस - बग़दाद को छोड़कर आप अमेरिका में ही जीवन बिताना चाहती हैं? यदि हाँ तो वह भी ऐसी स्थिति में जबकि आप और आपके जैसे हजारों लोगों के निर्वासन के पीछे अमेरिका की ही भूमिका है। यह कैसा द्वंद्व है?

मिखाइल - मैं जमीन और राजनीति तथा आम जन और शासन को हमेशा अलग-अलग अंग मानती रही हूँ। वस्तुत: अमेरिका में मैं बहुत सी चीजों को पसंद करती हूँ। इनमें सबसे मुख्य बात यह है कि अमेरिका में सभी वर्ग और वर्ण और जाति के लोग रहते हैं और इस प्रकार वह एक वर्ण, जाति विशेष के मनुष्यों की धरती नहीं है। विभिन्न राष्ट्रों के लोग वहाँ निवास करते हैं। इस तरह वह एक निश्चित राष्ट्रीयता की भी धरती नहीं रह जाती है।

मानस - कहते हैं इराक़ में औरतों की स्थिति ज़रा दोयम दर्ज़े की है। आपने इसे किस तरह अनुभव किया? यह कैसे दूर हो सकेगा?

मिखाइल - आपके इस प्रश्न पर मेरा सीधा और सपाट सवाल है पूरे विश्व में तो क्या कहीं भी स्त्री-पुरुष में समानता है? तो फिर मात्र इराक को लेकर यह प्रश्न क्यों किया जा रहा है?

मानस - मैं एक ऐसा प्रश्न पूछना चाहूँगा जो मेरे भूगोल की आज सबसे बड़ी समस्या है - भारत के 8-9 राज्य नक्सलवाद (माओवाद) से ग्रसित है। यहाँ आये दिन माओवादी असहाय, निर्बल, आदिवासीजन को मौत के घाट उतार रहे हैं। ये वहीं हैं जो सशस्त्र क्रांति को ग़रीबी, असमानता और शोषण के विरुद्ध हथियार मानते हैं और प्रजातंत्र को एक आवश्यक बुराई के रूप में देखते हैं। वे विकास के संवाद पर कतई विश्वास नहीं करते। सिर्फ़ हिंसा पर विश्वास करते हैं। अब तक करोड़ों अरबों रुपयों की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है। हजारों जानें जा चुकी हैं। हजारों परिवार निर्वासित जीवन जीने को बाध्य हैं। और इनसे सताए हुए लोग जब इनकी वास्तविकता को जानकर इनके विरुद्ध कहीं कोई जन आंदोलन भी शुरू करते हैं तो देश-विदेश के बुद्धिजीवी इसे ग़लत बताते हैं। ऐसे में एक बुद्धिजीवी होने के नाते आपसे जानना चाहता हूँ की हमें ऐसे में किधर खड़े होना चाहिए। डेमोक्रेसी की ओर या हिंसक माओवाद की ओर?

मिखाइल - हमें सदैव-सर्वदा ही लोकतंत्र का साथ देना चाहिए, प्रत्येक परिस्थिति में, किसी भी काल में। लेकिन हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि लोकतंत्र में मनुष्य चाहे जो वह करने के लिए स्वतंत्र नहीं है।

मानस - पिछली सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में आप किन बातों को तरज़ी ह देती हैं? नई सदी मनुष्य के लिए कितना सुखद और आज़ादी लाने वाला है?

मिखाइल - कंप्यूटर को मैं पिछली सदी की महान एवं विस्मयकारी उपलब्धि मानती हूँ। विशेषकर तब तक जब तक मनुष्य की छोटी-बड़ी खुशियों, सुख-दुख, भावनाओं के साथ कंप्यूटर ही समाप्त हो जाए।

आपके प्रश्न के दूसरे हिस्से के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती। क्योंकि मैं नहीं जानती कि भविष्य में क्या होगा। यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है नई सदी में मानव सुखी और स्वतंत्र हो सकेगा।

मानस - अंतिम प्रश्न के रूप में यह जानना चाहता हूँ कि आपमें वह कौन सी कमज़ोरियाँ हैं जिससे आप स्वयं भी परेशान होती हैं?

मिखाइल - जब दो व्यक्ति आपस में लड़ाई करते हैं और एक-दूसरे को मारते हैं तो यह बात मुझे कतई परेशान नहीं करती। लेकिन ऐसा वे उस स्थान पर करते हैं, जहाँ ऐसे दूसरे लोग भी होते हैं, जिनका उनकी आपसी लड़ाई से कुछ भी लेना-देना नहीं होता, तब यह बात मुझे बुरी तरह परेशान करती है, हृदय को बेध जाती है...

 

जन्म-2 अक्टूबर, रायगढ़, छत्तीसगढ़। कविता संग्रह -  होना ही चाहिए आँगन, अबोले के विरूद्ध। ललित निबंध संग्रह- दोपहर में गांव। आलोचना- साहित्य की सदाशयता। इसके अलावा बाल साहित्य की एक दर्जन किताबें । देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। विशेष - विदेश में 7 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों का आयोजन संयोजन व वेब पत्रिका सृजनगाथा डॉट काम का पिछले 7 वर्षों से संपादन । संप्रति- स्कूल शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी।

संपर्क- मो.-94241-82664

 


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