पंखुरी सिन्हा की कविताएं
पंखुरी सिन्हा
कविता
काली गुफाओं की हिरासत बाहर भाषा की परिधि से भाषा की दृष्टि से बाहर उसकी सोच से उसकी लोच से मर्यादा से उसकी बाधा से उसकी उसमें सोच पाने से बाहर उसमें देख पाने से बाहर महसूसने से परे नाकाबिल भाषा की सारी काबिलियत के बाद सिर्फ स्पर्श के सहारे कि नुकीली है चट्टान यहाँ खंजर सी तेज़ खंजन नहीं पक्षी यहाँ चमगादड़ों की दीवारें हैं अनंत डैनों की फडफ़ड़ाहट सुगबुगाहट रेतीली है ज़मीन यहाँ निशाचरों के डंक हैं विष का अड्डा है विष का व्यापार यहाँ स्पर्श खतरनाक किन्तु फ़ क़त स्पर्श के सहारे दर्ज़ घुप्प स्याह गुफाएं।
फोटो सिन्थेसिस फोटो सिन्थेसिस नामक वह क्रिया समूची जो होती है दौड़ती है पत्तों के भीतर टहनियों में फुनगी में, टूसे में हर कहीं हरे में पड़ते ही धूप लगते ही धूप उगते ही धूप धूप में धमनियों में शिराओं में जैसे दौड़ता है रक्त दमकता है रक्त धकेलता है रक्त ह्रदय की दीवारों को आहट जिसकी छिपी होती है अपने भीतर स्पंदन में भीतर के स्पंदन में मेरुदंड में जहाँ से प्रेषित संप्रेषित होते हैं अनेक आदेश जहाँ होती है आदेशों की एक संपूर्ण संरचना अस्थि, मज्जा, मांस पेशियों का तंत्र एक जंजाल ऐसे नहीं कि आवारा उगते हों शैवाल एक ढाँचा समूचा जिसमे दौड़ती रहो हो झुरझुरी गुदगुदी सिहरन बातों की साँसों की निस्पंद निष्प्राण, निस्तेज ओढ़े बर्फ का लबादा नहीं हो जैसे अब और कोई वादा बर्फीले दिनों की ख़बरों में बर्फ से ढंकी गाडि़ओं के लैंडस्केप से घिरे पाते बस और हिमपात की ख़बर.....
इजराइली टैंक की ज़ुबानी इजराइली टैंक की ज़ुबानी एक लड़ाई की कहानी दूर दूर से आती है उसके पास तन्हा सी लड़की के पास जो मोर्चा संभाले है देर से बहुत देर से बहुत अकेली इंतजार में अपने अधिकार के पर जबसे उसके नए घर में वह प्यारा सा बच्चा कर रहा है खिलौनों की बेहद राजनीतिक नुमाइश जाने किनके इशारों पर वह बच्चा जिसके साथ मित्रता की बहुत उम्मीद थी कर गया है उसे और भी अकेला हर शाम दिखाता उसे रंग बिरंगी खिलौने की बन्दूक अपनी एक आदमकद मशीन गन किसी फ़िल्मी कहानी के अंत की ग़लत नुमायिश की तरह उसे लग रहा था कहीं छोड़ न जाये वो लड़ाई ये।
फिलिस्तीनी मोर्चे हाँ, यह सच है लड़ाई है उत्पात है आक्रमण है आक्रमण का इतिहास है तारीखें हैं पर आम दिन हैं रोज़मर्रा की ज़िन्दगी है लोगों का आना जाना है दुकाने हैं सौदा है पैसे हैं या नहीं हैं फांका है विनिमय की दर है और उसके बाद अघोषित युद्ध है बमों का फटना है हताहत घायल लोग है सिविलियन ज़िन्दगी के भीतर एक मोर्चा है आतंक का और भयानक शश्त्रिकरण के बीच सवाल है कि इस फिलिस्तीनी मोर्चे को कौन, कहाँ कायम कर रहा है?
आखिरी नाम वो कौन सा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वो नाम जो तुम्हे सबसे प्रिय है उसे भी धोखा दे दोगी तुम? धज्जियाँ उड़ा दोगी उसकी कौन नहीं जानता कि एक चलते हुए कोल्ड वार यानि असमाप्त कोल्ड वार और उसके बाद की लड़ाई में ऐसी खुफिया जेलें हैं जहाँ कुछ ऐसे हथियारों का इस्तेमाल होता है और इतनी सफाई से कि नाखून क्या उंगलियाँ निकाल ली जाती हैं। क्या आप जानना नहीं चाहेगे कि उन हथियारों के नाम क्या हैं? और उससे भी ज्यादा कि उन जेलों की नागरिकता क्या है?
युवा लेखिका, दो हिंदी कथा संग्रह ज्ञानपीठ से, तीन हिंदी कविता संग्रह, दो अंग्रेजी कविता संग्रह। कई संग्रहों में रचनाएं संकलित हैं, कई पुरस्कार जीत चुकी है- कविता के लिए राजस्थान पत्रिका का 2017 का पहला पुरस्कार, राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2013, पहले कहानी संग्रह, 'कोई भी दिन’ , को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान, 'कोबरा: गॉड ऐट मर्सी’, डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यू जी सी, फिल्म महोत्सव में, सर्व श्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला, 'एक नया मौन, एक नया उद्घोष’, कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, 1993 में, ष्टक्चस्श्व बोर्ड, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान। इनकी कविताओं का मराठी, पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और नेपाली में अनुवाद हो चुका है।
|